Poetry Tadka

Hindi Kahaniyan

Pati Patni Ka Prem

पति पत्नी का प्रेम

एक सेठ जी थे उनके घर में एक गरीब आदमी काम करता था जिसका नाम था रामलाल जैसे ही राम लाल के फ़ोन की घंटी बजी रामलाल डर गया। तब सेठ जी ने पूछ लिया ??
"रामलाल तुम अपनी बीबी से इतना क्यों डरते हो?"
"मै डरता नही सर् उसकी कद्र करता हूँ उसका सम्मान करता हूँ।"उसने जबाव दिया। मैं हँसा और बोला-" ऐसा कया है उसमें।ना सुरत ना पढी लिखी।" जबाव मिला-" कोई फरक नही पडता सर् कि वो कैसी है पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है।" "जोरू का गुलाम।"मेरे मुँह से निकला।"और सारे रिश्ते कोई मायने नही रखते तेरे लिये।"मैने पुछा। उसने बहुत इत्मिनान से जबाव दिया- "सर् जी माँ बाप रिश्तेदार नही होते। वो भगवान होते हैं। उनसे रिश्ता नही निभाते उनकी पूजा करते हैं।

भाई बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं , दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है। आपका मेरा रिश्ता भी जरूरत और पैसे का है पर, पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिये हमारी हो जाती है अपने सारे रिश्ते को पीछे छोडकर। और हमारे हर सुख दुख की सहभागी बन जाती है आखिरी साँसो तक।" मै अचरज से उसकी बातें सुन रहा था। वह आगे बोला-"सर् जी, पत्नी अकेला रिश्ता नही है, बल्कि वो पुरा रिश्तों की भण्डार है। जब वो हमारी सेवा करती है हमारी देख भाल करती है , हमसे दुलार करती है तो एक माँ जैसी होती है।

जब वो हमे जमाने के उतार चढाव से आगाह करती है, और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ क्योकि जानता हूँ वह हर हाल मे मेरे घर का भला करेगी तब पिता जैसी होती है। जब हमारा ख्याल रखती है हमसे लाड़ करती है, हमारी गलती पर डाँटती है, हमारे लिये खरीदारी करती है तब बहन जैसी होती है। जब हमसे नयी नयी फरमाईश करती है, नखरे करती है, रूठती है , अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब बेटी जैसी होती है। जब हमसे सलाह करती है मशवरा देती है , परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है, झगडे करती है तब एक दोस्त जैसी होती है।

जब वह सारे घर का लेन देन , खरीददारी , घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है। और जब वही सारी दुनिमा को यहाँ तक कि अपने बच्चो को भी छोडकर हमारे पास मे आती है तब वह पत्नी, प्रेमिका, प्रेयसी, अर्धांगिनी , हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हम पर न्योछावर करती है।"

मैं उसकी इज्जत करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ सर्।" उसकी बाते सुनकर सेठ जी के आखों में पानी आ गया

इसे कहते है पति पत्नी का प्रेम। 👈
ना की जोरू का गुलाम। ?? ✍ Pati Patni Ka Prem

Aik Beta Aisa Bhi

"एक बेटा ऐसा भी"

• "माँ, मुझे कुछ महीने के लिये विदेश जाना पड़ रहा है। तेरे रहने का इन्तजाम मैंने करा दिया है।" तक़रीबन ३२ साल के, अविवाहित डॉक्टर सुदीप ने देर रात घर में घुसते ही कहा। • "बेटा, तेरा विदेश जाना ज़रूरी है क्या?" माँ की आवाज़ में चिन्ता और घबराहट झलक रही थी। "माँ, मुझे इंग्लैंड जाकर कुछ रिसर्च करनी है। वैसे भी कुछ ही महीनों की तो बात है।" सुदीप ने कहा। • " जैसी तेरी इच्छा।" मरी से आवाज़ में माँ बोली। और छोड़ आया सुदीप अपनी माँ 'प्रभा देवी' को पड़ोस वाले शहर में स्थित एक वृद्धा-आश्रम में।

• वृद्धा-आश्रम में आने पर शुरू-शुरू में हर बुजुर्ग के चेहरे पर जिन्दगी के प्रति हताशा और निराशा साफ झलकती थी। पर प्रभा देवी के चेहरे पर वृद्धा-आश्रम में आने के बावजूद कोई शिकन तक न थी। • एक दिन आश्रम में बैठे कुछ बुजुर्ग आपस में बात कर रहे थे। उनमें दो-तीन महिलायें भी थीं। उनमें से एक ने कहा, "डॉक्टर का कोई सगा-सम्बन्धी नहीं था जो अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया।" • तो वहाँ बैठी एक महिला बोली, "प्रभा देवी के पति की मौत जवानी में ही हो गयी थी। तब सुदीप कुल चार साल का था। पति की मौत के बाद, प्रभा देवी और उसके बेटे को रहने और खाने के लाले पड़ गये। तब किसी भी रिश्तेदार ने उनकी मदद नहीं की। प्रभा देवी ने लोगों के कपड़े सिल-सिल कर अपने बेटे को पढ़ाया। बेटा भी पढ़ने में बहुत तेज था, तभी तो वो डॉक्टर बन सका।"

• वृद्धा-आश्रम में करीब ६ महीने गुज़र जाने के बाद एक दिन प्रभा देवी ने आश्रम के संचालक राम किशन शर्मा जी के ऑफिस के फोन से अपने बेटे के मोबाईल नम्बर पर फोन किया, और कहा, "सुदीप तुम हिंदुस्तान आ गये हो या अभी इंग्लैंड में ही हो?" • "माँ, अभी तो मैं इंग्लैंड में ही हूँ।" सुदीप का जवाब था। • तीन-तीन, चार-चार महीने के अंतराल पर प्रभा देवी सुदीप को फ़ोन करती उसका एक ही जवाब होता, "मैं अभी वहीं हूँ, जैसे ही अपने देश आऊँगा तुझे बता दूँगा।"इस तरह तक़रीबन दो साल गुजर गये। अब तो वृद्धा-आश्रम के लोग भी कहने लगे कि देखो कैसा चालाक बेटा निकला, कितने धोखे से अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया। आश्रम के ही किसी बुजुर्ग ने कहा, "मुझे तो लगता नहीं कि डॉक्टर विदेश-पिदेश गया होगा, वो तो बुढ़िया से छुटकारा पाना चाह रहा था।"

• तभी किसी और बुजुर्ग ने कहा, " मगर वो तो शादी-शुदा भी नहीं था।" अरे होगी उसकी कोई 'गर्ल-फ्रेण्ड, जिसने कहा होगा पहले माँ के रहने का अलग इंतजाम करो, तभी मैं तुमसे शादी करुँगी।" • दो साल आश्रम में रहने के बाद अब प्रभा देवी को भी अपनी नियति का पता चल गया। बेटे का गम उसे अंदर ही अंदर खाने लगा। वो बुरी तरह टूट गयी। • दो साल आश्रम में और रहने के बाद एक दिन प्रभा देवी की मौत हो गयी। उसकी मौत पर आश्रम के लोगों ने आश्रम के संचालक शर्मा जी से कहा, "इसकी मौत की खबर इसके बेटे को तो दे दो। हमें तो लगता नहीं कि वो विदेश में होगा, वो होगा यहीं कहीं अपने देश में।"

• "इसके बेटे को मैं कैसे खबर करूँ। उसे मरे तो तीन साल हो गये।" शर्मा जी की यह बात सुन वहाँ पर उपस्थित लोग सनाका खा गये। उनमें से एक बोला, "अगर उसे मरे तीन साल हो गये तो प्रभा देवी से मोबाईल पर कौन बात करता था।" • "वो मोबाईल तो मेरे पास है, जिसमें उसके बेटे की रिकॉर्डेड आवाज़ है।" शर्मा जी बोले। "पर ऐसा क्यों?" किसी ने पूछा। • तब शर्मा जी बोले कि करीब चार साल पहले जब सुदीप अपनी माँ को यहाँ छोड़ने आया तो उसने मुझसे कहा, "शर्मा जी मुझे 'ब्लड कैंसर' हो गया है। और डॉक्टर होने के नाते मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि इसकी आखिरी स्टेज में मुझे बहुत तकलीफ होगी। मेरे मुँह से और मसूड़ों आदि से खून भी आयेगा। मेरी यह तकलीफ़ माँ से देखी न जा सकेगी। वो तो जीते जी ही मर जायेगी। मुझे तो मरना ही है पर मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण मेरे से पहले मेरी माँ मरे। मेरे मरने के बाद दो कमरे का हमारा छोटा सा 'फ्लेट' और जो भी घर का सामान आदि है वो मैं आश्रम को दान कर दूँगा।"

• यह दास्ताँ सुन वहाँ पर उपस्थित लोगों की आँखें झलझला आयीं। प्रभा देवी का अन्तिम संस्कार आश्रम के ही एक हिस्से में कर दिया गया। उनके अन्तिम संस्कार में शर्मा जी ने आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के परिवार वालों को भी बुलाया।

• माँ-बेटे की अनमोल और अटूट प्यार की दास्ताँ का ही असर था कि कुछ बेटे अपने बूढ़े माँ/बाप को वापस अपने घर ले गये। Aik Beta Aisa Bhi

Masoom Si Ladki

"एक आठ दस साल की मासूम सी गरीब लड़कीं बुक स्टोर पर जाती है ,और एक पेंसिल और एक दस रुपए वाली कापी खरीदती है ,और फिर वही खड़ी होकर दूकानदार से कहती है की ,अंकल एक काम कहूँ करोगे ? जी बेटा ,बोलो क्या काम है ?

अंकल ,वह कलर पेंसिल का पैकेट कितने का है, मुझे चाहिए, ड्रॉइंग टीचर बहुत मारती है मगर मेरे पास इतने पैसे नही है, ना ही मेरे पापा के पास है, में अहिस्ता-अहिस्ता करके पैसे दे दूंगी। शॉप कीपर की आंखे नम हो जाती है, बोलता है बेटाजी कोई बात नही ,ये कलर पेंसिल का पैकेट ले जाओ, लेकिन आइंदा किसी भी दुकानदार से इस तरह कोई चीज़ मत मांगना, लोग बहुत बुरे है, किसी पर भरोसा मत किया करो। जी अंकल, बहुत बहुत शुक्रिया ,में आप के पैसे जल्द दे दूंगी ,और बच्ची चली जाती है।

इधर शॉप कीपर ये सोच रहा होता है कि अगर ऐसी बच्चियां किसी हवस के भूखे दुकानदार के हत्ते चढ़ गई तो ...? सभी शिक्षको से हाथ जोड़ कर गुजारिश है,की अगर कोई बच्चा कापी, पेंसिल ,कलर पेंसिल वगैराह नही ला पाता है, तो कारण जानने की कोशिश कीजिये ,के कही उसके माता पिता की गरीबी उसके आड़े तो नही आ रही। और अगर हो सके तो ऐसे मासूम बच्चों की पढ़ाई के खातिर आप शिक्षक लोग मिल कर उठा लिया करें। यक़ीन जानिए साहब ,हज़ारों की तनख्वाह में से चंद रुपए किसी की जिंदगी ना सिर्फ बचा सकते है बल्कि संवार भी सकते है। विचार जरूर कीजियेगा, धन्यवाद, 🙏🙏 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Masoom si ladki

Flat Ki Pahli Manzil

एक फ्लैट की पहली मंजिल में श्वेता नाम की लड़की रहती थी और दूसरी मंजिल में अंकुर नाम का लड़का। श्वेता B.Com फाइनल ईयर में थी और अंकुर ने इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में । श्वेता और अंकुर दोनों एक- दूसरे से बहुत प्यार करते थे। दोनों के परिवारों के बीच भी काफी अच्छा रिश्ता था। दोनों परिवार अक्सर एक- दूसरे के घर आया – जाया करते थे। हर सुख- दुख में दोनों के परिवार हमेशा एक – दूसरे के लिए खड़े होते। यही वजह थी कि श्वेता और अंकुर के रिश्ते भी काफी अच्छे थे, जो वक्त के साथ- साथ प्यार में तब्दील हो गए।

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अंकुर अक्सर किसी भी चीज के बहाने श्वेता के घर आया करता, तो वहीं श्वेता भी अंकुर की भाभी से मिलने के बहाने उनके घर चले जाती थी । दोनों के प्यार का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। एक दिन श्वेका का बड़ा भाई अंकुर के घर से लौटते हुए सीढ़ियों से उतर रहा था, तभी अचानक उसे एक पेपर नीचे गिरा दिखा। उसने उसे उठा लिया। लेकिन जब श्वेता के भाई ने उस पेपर को खोला और उसमें जो लिखा था, उसे पढ़ा तो उसके होश ही उड़ गए और वो गुस्से से लाल हो गया। घर आते ही सबसे पहले उसने श्वेता और अपने मां- पापा को बुलाया। मां के हाथ में वो पेपर देते हुए उसने श्वेता को एक चांटा मारा। वो पेपर पढ़ जैसे उसके मां – पापा के भी होश उड़ गए। उसके बाद श्वेता की मां ने भी उसे खूब चांटे मारा और बोला- ‘कलमुंही, हमने इसलिए तुम्हें इतनी आजादी दे रखी है। पढ़ाई के बदले यही करती है तू।‘....

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वो पेपर दरअसल एक लेटर था, जो अंकुर ने श्वेता को दिया था और आते वक्त श्वेता से सीढ़ियों पर गिर गया। फिर क्या था दोनों परिवारों में भी दूरियां आ गई। लेकिन अंकुर और श्वेता का प्यार कहां कम होने वाला था, दोनों कॉलेज के बहाने अब घर से बाहर मिलने लगे। ऐसा लगता मानों अब दोनों ज्यादा आजाद हो गए हो। दोनों कभी रेस्टोरेंट जाते तो कभी पार्क। धीरे- धीरे दोनों में प्यार भी बढ़ा और टकरार भी।..

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देखते ही देखते अंकुर ने अपनी इंजीनियरिंग पूरी कर ली और अब वो Job के लिए शहर से बाहर जाने लगा। अंकुर के चले जाने के नाम से ही श्वेता बहुत अपसेट हो गई थी। लेकिन आखिरकार एक दिन अंकुर चला गया। अंकुर के जाने के बाद दोनों की बातें फोन पर ही अब हुआ करती। वक्त निकाल कर अंकुर और श्वेता दोनों एक- दूसरे से घंटों बातें करते। लेकिन अब धीरे- धीरे श्वेता के पास अंकुर का फोन कम आने लगा। श्वेता फोन करती तो वो कभी रिसीव कर के ये बोल देता कि मैं Busy हूं तो कभी फोन रिसीव ही नहीं करता। ऐसे में श्वेता तो मानों अंकुर के लिए बिल्कुल पागल होने लगी थी। अब श्वेता का ना खाने का मन करता, ना पढ़ने का और ना और किसी काम में।

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फिर एक बार अंकुर अपने घर आया। श्वेता बहुत खुश थी, सोचा अंकुर तो उससे जरूर मिलेगा। लेकिन अंकुर तो ऐसा बर्ताव कर रहा था, मानों वो श्वेता को जानता ही ना हो। ये देख कर श्वेता टूट गई। उसे समझ आ गया था कि बाहर जाने के बाद अब अंकुर अपनी लाइफ में आगे बढ़ गया है। हो सकता है अंकुर को कोई और मिल गई हो या फिर वो अपने घरवालों के कहने पर मुझसे रिश्ता नहीं रखना चाहता हो। श्वेता ने अपने दिल को ये सारी बाते बोल कर समझाने की कोशिश तो की, लेकिन श्वेताᴄ अब भी अंकुर को भुल नहीं पाई थी। और अब तो श्वेता का मानों प्यार से विश्वास ही उठ गया।...

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अब श्वेता भी बहुत अच्छी कंपनी में जॉब कर रही है, उसके पास सब कुछ है लेकिन अक्सर रात को यही सोचती है कि सब मिला, बस इक तू ही नहीं मिला. अब वो अपनी ज़िन्दगी को जी नहीं रही बस काट रही है.

दोस्तों इस कहानी को पढ़ने के बाद ऐसा नहीं है कि लोग प्यार करना ही छोड़ दें, क्योंकि प्यार में कौन सच्चा है और कौन झूठा इसका पता आसानी से नहीं चल पाता। बल्कि जरुरत है कि अगर आप कभी ऐसी परिस्थिति से गुजरें तो खुद पर भरोसा रखें और जिंदगी में आगे बढ़े। क्योंकि जिंदगी बहुत खूबसूरत है और इसका सिर्फ एक ही रंग नहीं है, इसके तो हजारों रंग हैं।.????

🙏🙏🙏🙏
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Flat Ki Pahli Manzil

Karz Wali Laxmi

*#कर्ज_वाली_लक्ष्मी*
🙏एक बार जरूर पढ़े 🙏

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया। दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी। दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले... हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है..

बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?" कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं.. घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी... खैर.. अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी.. कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए.. दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें.. लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!...

दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा.. समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा..... आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं..

क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही... मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी.. दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा..

शिक्षा- *कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे* .. 🙏🙏🙏

Karz Wali Laxmi