Poetry Tadka

Hindi Kahaniyan

Andhi Maa Ka Beta

अंधी माँ का बेटा

-----------------------
एक विधवा अंधी औरत का एक बेटा था, जिसे वह बहुत प्यार करती थी. वह चाहती थी कि पढ़-लिखकर उसका बेटा एक बड़ा आदमी बने. इसलिए गरीबी के बाद भी उसने कस्बे के सबसे अच्छे स्कूल में उसका दाखिला करवाया. लड़का पढ़ाई में तो अच्छा था, लेकिन एक बात से हमेशा परेशान रहा करता था. उसे स्कूल में दूसरे बच्चे ‘अंधी का बेटा’ कहकर चिढ़ाते थे. वह जहाँ भी दिख जाता, सब उसे ‘देखो अंधी का बेटा आ गया’ कहकर चिढ़ाने लगते.

इसका उस पर बहुत विपरीत असर हुआ और उसके मन में अपनी माँ के प्रति शर्म की भावना घर करने लगी. धीरे-धीरे ये शर्म चिढ़ में बदल गई. वह अपनी माँ के साथ कहीं भी आने-जाने से कतराने लगा. समय बीता और लड़का पढ़-लिखकर एक अच्छी नौकरी करने लगा. उसकी नौकरी शहर में थी. वह अपनी माँ को कस्बे में ही छोड़ गया. उसने अपनी माँ से वादा तो किया कि शहर में रहने की व्यवस्था करने के बाद वह उसे भी अपने साथ ले जायेगा. लेकिन उसने अपना वादा नहीं निभाया. शहर जाने के बाद उसने अपनी माँ से कोई संपर्क नहीं किया.

कुछ महीनों तक अंधी औरत अपने बेटे का इंतज़ार करती रही. लेकिन जब वह नहीं आया, तो एक दिन वह उससे मिलने शहर पहुँच गई. इधर-उधर पूछते-पूछते किसी तरह वह अपने बेटे के घर पहुँची. बाहर गार्ड खड़ा हुआ था. उसने गार्ड से कहा कि उसे उसके मालिक से मिलना है. गार्ड ने अंदर जाकर जब अपने मालिक को बताया, तो जवाब मिला – “बाहर जाकर बोल दो कि मैं अभी घर पर नहीं हूँ.” गार्ड ने वैसा ही किया. अंधी औरत दु:खी होकर वहाँ से चली गई. कुछ देर बाद लड़का अपनी कार में ऑफिस जाने के लिए निकला. रास्ते में उसने देखा कि एक जगह पर भीड़ लगी हुई है. भीड़ का कारण जानने के लिए जब वह कार से उतरा, तो बीच रास्ते में अपनी बूढ़ी माँ को मरा हुआ पाया.

उसकी माँ की लाश की मुठ्ठी में कुछ था. मुठ्ठी खोलने पर उसने देखा कि उसमें एक ख़त है. वह ख़त खोलकर पढ़ने लगा. बेटा, बहुत खुश हूँ कि तू बड़ा आदमी बन गया है. तुझसे मिलने का मन किया, तो शहर चली आई. इसके लिये मुझे माफ़ करना. क्या करूं तेरी बहुत याद आ रही थी. सालों से मेरी इच्छा थी कि एक दिन तुझे बड़ा आदमी बना हुआ देखूं. मेरा सपना तो पूरा हुआ, लेकिन तुझे मैं देख नहीं सकती. काश कि बचपन में तेरे साथ वो घटना नहीं हुई होती. काश तेरी आँखों में सरिया न घुसा होता और मैंने तुझे अपनी आँखें न दी होती, तो आज मैं तुझे इस ओहदे पर देख पाती.

तेरी बदकिस्मत माँ ख़त पढ़ने के बाद लड़का फूट-फूट कर रोने लगा. वह आत्मग्लानि से भर उठा. जिस माँ के अंधी होने के कारण वह उससे दूर हो गया था, उसने अपनी ही ऑंखें उसके लिए ही बलिदान कर दी थी. वह ताउम्र खुद को माफ़ नहीं कर सका.

दोस्तों, माता-पिता का प्रेम असीम है. ये वो अनमोल प्रेम है, जिसकी कोई कीमत नहीं. वे हमारे सुख लिए अपना सर्वस्य न्यौछावर कर देते हैं. हमें सदा उनका सम्मान और उनसे प्रेम करना चाहिए.

Andhi maa ka beta

Merath Se Vimla Chachi Ka Phone

निशा काम निपटा कर बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजने लगी।

मेरठ से विमला चाची का फोन था ,”बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से।
बीमार रहने लगे है , बहुत कमजोर हो गए हैं। हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। *वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।”* निशा बोली,”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।” फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया। बाबूजी तीन भाई है , पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं। निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था, कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर। दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए। निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था। दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी। दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी।

रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का। निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है, मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार। विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका , इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं। रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम सा बैठा है। वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।”

विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो। अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।” निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए। और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।” विवेक उत्तेजित हो गया , बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें। रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं , करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है।

आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है। तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है ,जिजाजी की लाखों की कमाई है?” निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा। पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा। बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने। निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।” सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं।

बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता। वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।” रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे। खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं। विवेक का घर बहुत छोटा है, उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा❓ तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है। मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था , अपने रहने के लिए लिया है। जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी। रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।” पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।”

अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है। बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।” निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं। क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया? क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा? अच्छी खासी नौकरी करती थी , पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है।

तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो। आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती। कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी। भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे। कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे। पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे। लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे। सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं। अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे। उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर। पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं। मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है।

ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ , और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।” निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं। दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा। क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था। बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है। मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।” तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए। निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का। फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं? इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे। दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है। किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना। विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी।

रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी। तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती। वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की। वह बोल रहे थे,” इनके बहू , बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता। वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद। बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।” सन्चालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।”

निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे *कोई किसी का नहीं होता,* फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’ *” हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें | “* ये पैसा ही है जो एक हर रिश्ते की रिश्तेदारी निभा रहा है। मैं भी एक बेटी हूँ मगर एक बात कहना चाहती हूँ कि हर इंसान को अपने हाथ नहीं काट देने चाहिए ममता मे हो के ........ अपने भाविष्य के लिए कुछ न कुछ रख लेना चाहिए .......बाद में तो उनका ही हैं मगर जीते जी मरने से तो अच्छा है .... शायद ही कोई इसे पढ़े फिर भी एक उम्मीद के साथ..🙏🙏 Merath Se Vimla Chachi ka phone

A Farmer Hindi Story

सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है।

बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था. वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था. इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था. उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एक दम सही था. इस वजह से रोज़ घर पहुँचते - पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था. ऐसा दो सालों से चल रहा था. सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है. फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया, उसने किसान से कहा, “मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?”

क्यों ? किसान ने पूछा, “तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?”

“शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ, और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ, मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है, और इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद होती रही है.” फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा. किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला, “कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो.” घड़े ने वैसा ही किया, वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया, ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा|

किसान बोला,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे, सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था, और मैंने उसका लाभ उठाया. मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे, तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया. आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ. तुम्ही सोचो अगरतुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सबकुछ कर पाता ?”

दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं. उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा|

A farmer Hindi Story

Mukhya Athithi

*मुख्य अतिथि*👇🏻
*शहर के एक अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बग़ीचे में तेज़ धूप और गर्मी की परवाह किये बिना, बड़ी लग्न से पेड़ - पौधों की काट छाँट में लगा था कि तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज़ सुनाई दी, "गंगादास! तुझे प्रधानाचार्या जी तुरंत बुला रही हैं।"* गंगादास को आख़िरी के पांँच शब्दों में काफ़ी तेज़ी महसूस हुई और उसे लगा कि कोई महत्त्वपूर्ण बात हुई है जिसकी वज़ह से प्रधानाचार्या जी ने उसे तुरंत ही बुलाया है। शीघ्रता से उठा, अपने हाथों को धोकर साफ़ किया और चल दिया, द्रुत गति से प्रधानाचार्या के कार्यालय की ओर। उसे प्रधानाचार्या महोदया के कार्यालय की दूरी मीलों की लग रही थी जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी हृदयगति बढ़ गई थी। सोच रहा था कि उससे क्या ग़लत हो गया जो आज उसको प्रधानाचार्या महोदया ने तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा।

वह एक ईमानदार कर्मचारी था और अपने कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण करता था। पता नहीं क्या ग़लती हो गयी। वह इसी चिंता के साथ प्रधानाचार्या के कार्यालय पहुँचा...... "मैडम, क्या मैं अंदर आ जाऊँ? आपने मुझे बुलाया था।" "हाँ। आओ और यह देखो" प्रधानाचार्या महोदया की आवाज़ में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रही थी। "पढ़ो इसे" प्रधानाचार्या ने आदेश दिया। "मैं, मैं, मैडम! मैं तो इंग्लिश पढ़ना नहीं जानता मैडम!" गंगादास ने घबरा कर उत्तर दिया। *"मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ मैडम यदि कोई गलती हो गयी हो तो।* मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ। क्योंकि आपने मेरी बिटिया को इस विद्यालय में निःशुल्क पढ़ने की इज़ाज़त दी। मुझे कृपया एक और मौक़ा दें मेरी कोई ग़लती हुई है तो सुधारने का। मैं आप का सदैव ऋणी रहूंँगा।" गंगादास बिना रुके घबरा कर बोलता चला जा रहा था। उसे प्रधानाचार्या ने टोका "तुम बिना वज़ह अनुमान लगा रहे हो। थोड़ा इंतज़ार करो, मैं तुम्हारी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका को बुलाती हूँ।"

वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका प्रधानाचार्या के कार्यालय में पहुँची बहुत ही लंबे हो गए थे गंगादास के लिए। सोच रहा था कि क्या उसकी बिटिया से कोई ग़लती हो गयी, कहीं मैडम उसे विद्यालय से निकाल तो नहीं रहीं। उसकी चिंता और बढ़ गयी थी। कक्षा-अध्यापिका के पहुँचते ही प्रधानाचार्या महोदया ने कहा, "हमने तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी। अब ये मैडम इस पेपर में जो लिखा है उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हें सुनाएँगी, ग़ौर से सुनो।"
कक्षा-अध्यापिका ने पेपर को पढ़ना शुरू करने से पहले बताया, "आज मातृ दिवस था और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में एक लेख लिखने को कहा। तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।" उसके बाद कक्षा- अध्यापिका ने पेपर पढ़ना शुरू किया। "मैं एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही माँयें दम तोड़ देती हैं बच्चों के जन्म के समय। मेरी माँ भी उनमें से एक थीं। उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं कि चल बसीं। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति थे मेरे परिवार के जिन्होंने मुझे गोद में लिया। पर सच कहूँ तो मेरे परिवार के वे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाक़ी की नज़र में तो मैं अपनी माँ को खा गई थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा - दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लायें ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिताजी ने उनकी एक न सुनी और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वज़ह से मेरे दादा - दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ, ज़मीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये और इसी विद्यालय में माली का कार्य करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी ज़रूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है।"

"आज मुझे समझ आता है कि वे क्यों हर उस चीज़ को जो मुझे पसंद थी ये कह कर खाने से मना कर देते थे कि वह उन्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह आख़िरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्त्व पता चला।" "मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख - सुविधाओं का ध्यान रखा और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था।" "यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है तो मेरी माँ मेरे पिताजी हैं।" "यदि दयाभाव, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ हैं।" "यदि त्याग, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं।" "यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग माँ की पहचान है तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ हैं।"

आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामनाएँ दूँगी और कहूँगी कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक हैं। बहुत गर्व से कहूँगी कि ये जो हमारे विद्यालय के परिश्रमी माली हैं, मेरे पिता हैं।" "मैं जानती हूँ कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊँगी। क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था और मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी क़ीमत होगी उस सब की जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया। धन्यवाद"। आख़िरी शब्द पढ़ते - पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था और प्रधानाचार्या के कार्यालय में शांति छा गयी थी। इस शांति में केवल गंगादास के सिसकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। बग़ीचे में धूप की गर्मी उसकी कमीज़ को गीला न कर सकी पर उस पेपर पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज़ को पिता के आँसुओं से गीला कर दिया था। वह केवल हाथ जोड़ कर वहाँ खड़ा था।

उसने उस पेपर को अध्यापिका से लिया और अपने हृदय से लगाया और रो पड़ा। प्रधानाचार्या ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा, "गंगादास तुम्हारी बिटिया को इस लेख के लिए पूरे 10/10 नम्बर दिए गए है। यह लेख मेरे अब तक के पूरे विद्यालय जीवन का सबसे अच्छा मातृ दिवस का लेख है। हम कल मातृ दिवस अपने विद्यालय में बड़े ज़ोर - शोर से मना रहे हैं। इस दिवस पर विद्यालय एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। विद्यालय की प्रबंधक कमेटी ने आपको इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया है। यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग का जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है। यह सिद्ध करता है कि आपको एक औरत होना आवश्यक नहीं है एक पालक बनने के लिए। साथ ही यह अनुशंषा करता है उस विश्वाश का जो विश्वास आपकी बेटी ने आप पर दिखाया। हमें गर्व है कि संसार का सबसे अच्छा पिता हमारे विद्यालय में पढ़ने वाली बच्ची का पिता है जैसा कि आपकी बिटिया ने अपने लेख में लिखा। गंगादास हमें गर्व है कि आप एक माली हैं और सच्चे अर्थों में माली की तरह न केवल विद्यालय के बग़ीचे के फूलों की देखभाल की बल्कि अपने इस घर के फूल को भी सदा ख़ुशबूदार बनाकर रखा जिसकी ख़ुशबू से हमारा विद्यालय महक उठा। तो क्या आप हमारे विद्यालय के इस मातृ दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनेंगे?"
रो पड़ा गंगादास और दौड़ कर बिटिया की कक्षा के बाहर से आँसू भरी आँखों से निहारता रहा , अपनी प्यारी बिटिया को।
*संसार की समस्त प्यारी - प्यारी बेटियों को समर्पित L* 🌷🍃⛳😊💐 Mukhya Athithi

Vidai Hindi Story

विदाई

. नीरज 3 महीने की टे्रनिंग के लिए दिल्ली से मुंबई गया था पर उसे 2 माह बाद ही वापस दिल्ली लौटना पड़ा था. ‘‘कविता की तबीयत बहुत खराब है. डा. विनिता कहती हैं कि उसे स्तन कैंसर है. तुम फौरन यहां आओ,’’ टेलीफोन पर अपने पिता से पिछली शाम हुए इस वार्त्तालाप पर नीरज को विश्वास नहीं हो रहा था. कविता और उस की शादी हुए अभी 6 महीने भी पूरे नहीं हुए थे. सिर्फ 25-26 साल की कम उम्र में कैंसर कैसे हो गया? इस सवाल से जूझते हुए नीरज का सिर दर्द से फटने लगा था.

एअरपोर्ट से घर न जा कर नीरज सीधे डा. विनिता से मिलने पहुंचा. इस समय उस का दिल भय और चिंता से बैठा जा रहा था. डा. विनिता ने जो बताया उसे सुन कर नीरज की आंखों से आंसू झरने लगे. ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि कविता गर्भवती थी. उसे जिस तरह का स्तन कैंसर हुआ है, उस का गर्भ धारण करने से गहरा रिश्ता है. इस तरह का कैंसर कविता की उम्र वाली स्त्रियों को हो जाता है,’’ डा. विनिता ने गंभीर लहजे में उसे जानकारी दी. ‘‘अब उस का क्या इलाज करेंगे आप लोग?’’ अपने आंसू पोंछ कर नीरज ने कांपते स्वर में पूछा. बेचैनी से पहलू बदलने के बाद डा. विनिता ने जवाब दिया, ‘‘नीरज, कविता का कैंसर बहुत तेजी से फैलने वाला कैंसर है. वह मेरे पास पहुंची भी देर से थी. दवाइयों और रेडियोथेरैपी से मैं उस के कैंसर के और ज्यादा फैलने की गति को ही कम कर सकती हूं, पर उसे कैंसरमुक्त करना अब संभव नहीं है.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं? मेरी कविता क्या बचेगी नहीं?’’ नीरज रोंआसा हो कर बोला. ‘‘वह कुछ हफ्तों या महीनों से ज्यादा हमारे साथ नहीं रहेगी. अपनी प्यार भरी देखभाल व सेवा से तुम्हें उस के बाकी बचे दिनों को ज्यादा से ज्यादा सुखद और आरामदायक बनाने की कोशिश करनी होगी. कविता को ले कर तुम्हारे घर वालों का आपस में झगड़ना उसे बहुत दुख देगा.’’

‘‘यह लोग आपस में किस बात पर झगड़े, डाक्टर?’’ नीरज चौंका और फिर ज्यादा दुखी नजर आने लगा. ‘‘कैंसर की काली छाया ने तुम्हारे परिवार में सभी को विचलित कर दिया है. कविता इस समय अपने मायके में है. वहां पहुंचते ही तुम्हें दोनों परिवारों के बीच टकराव के कारण समझ में आ जाएंगे. तुम्हें तो इस वक्त बेहद समझदारी से काम लेना है. मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ नीरज की पीठ अपनेपन से थपथपा कर डा. विनिता ने उसे विदा किया. ससुराल में कविता से मुलाकात करने से पहले नीरज को अपने सासससुर व साले के कड़वे, तीखे और अपमानित करने वाले शब्दों को सुनना पड़ा.

‘‘कैंसर की बीमारी से पीडि़त अपनी बेटी को मैं ने धोखे से तुम्हारे साथ बांध दिया, तुम्हारे मातापिता के इस घटिया आरोप ने मुझे बुरी तरह आहत किया है. नीरज, मैं तुम लोगों से अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता हूं,’’ गुस्से में उस के ससुर ने अपना फैसला सुनाया. ‘‘इस कठिन समय में उन की मूर्खतापूर्ण बातों को आप दिल से मत लगाइए,’’ थकेहारे अंदाज में नीरज ने अपने ससुर से प्रार्थना की. ‘‘इस कठिन समय को गुजारने के लिए तुम सब हमें अकेले छोड़ने की कृपा करो. बस,’’ उस के साले ने नाटकीय अंदाज में अपने हाथ जोड़े. ‘‘तुम भूल रहे हो कि कविता मेरी पत्नी है.’’ ‘‘आप जा कर अपने मातापिता से कह दें कि हमें उन से कैसी भी सहायता की जरूरत नहीं है. अपनी बहन का इलाज मैं अपना सबकुछ बेच कर भी कराऊंगा.’’ ‘‘देखिए, आप लोगों ने आपस में एकदूसरे से झगड़ते हुए क्याक्या कहा, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. मेरी गृहस्थी उजड़ने की कगार पर आ खड़ी हुई है. कविता से मिलने को मेरा दिल तड़प रहा है…उसे मेरी…मेरे सहारे की जरूरत है. प्लीज, उसे यहां बुलाइए,’’ नीरज की आंखों से आंसू बहने लगे. नीरज के दुख ने उन के गुस्से के उफान पर पानी के छींटे मारने का काम किया. उस की सास पास आ कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं.

अब उन सभी की आंखों में आंसू छलक उठे. ‘‘कविता की मौसी उसे अपने साथ ले कर गई हैं. वह रात तक लौटेंगी. तुम तब तक यहां आराम कर लो,’’ उस की सास ने बताया. अपने हाथों से मुंह कई बार पोंछ कर नीरज ने मन के बोझिलपन को दूर करने की कोशिश की. फिर उठ कर बोला, ‘‘मैं अभी घर जाता हूं. रात को लौटूंगा. कविता से कहना कि मेरे साथ घर लौटने की तैयारी कर के रखे.’’ आटोरिकशा पकड़ कर नीरज घर पहुंचा. उस का मन बुझाबुझा सा था. अपने मातापिता के रूखे स्वभाव को वह अच्छी तरह जानता था इसलिए उन्हें समझाने की उस ने कोई कोशिश भी नहीं की. कविता की जानलेवा बीमारी की चर्चा छिड़ते ही उस की मां ने गुस्से में अपने मन की बात कही, ‘‘तेरी ससुराल वालों ने हमें ठग कर अपनी सिरदर्दी हमारे सिर पर लाद दी है, नीरज. कविता के इलाज की भागदौड़ और उस की दिनरात की सेवा हम से नहीं होगी. अब उसे अपने मायके में ही रहने दे, बेटे.’’ ‘‘तेरे सासससुर ने शादी में अच्छा दहेज देने का मुझे ताना दिया है. सुन, अपनी मां से कविता के सारे जेवर ले जा कर उन्हें दे देना,’’ नीरज के पिता भी तेज गुस्से का शिकार बने हुए थे. नीरज की छोटी बहन वंदना ने जरूर उस के साथ कुछ देर बैठ कर अपनी आंखों से आंसू बहाए पर कविता को घर लाने की बात उस ने भी अपने मुंह से नहीं निकाली.

अपने कमरे में नीरज बिना कपड़े बदले औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ा. इस समय वह अपने को बेहद अकेला महसूस कर रहा था. अपने घर व ससुराल वालों के रूखे व झगड़ालू व्यवहार से उसे गहरी शिकायत थी. उस के अपने घर वाले बीमार कविता को घर में रखना नहीं चाहते थे और ससुराल में रहने पर नीरज का अपना दिल नहीं लगता. वह कविता के साथ रह कर कैसे यह कठिन दिन गुजारे, इस समस्या का हल खोजने को उसे काफी माथापच्ची करनी पड़ी. उस रात कविता से नीरज करीब 2 माह बाद मिला. उसे देख कर नीरज को मन ही मन जबरदस्त झटका लगा. उस की खूबसूरत पत्नी का रंगरूप मुरझा गया था. उस ने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया. कविता अचानक हिचकियां ले कर रोने लगी. नीरज की आंखों से भी आंसू बह रहे थे. कविता के शरीर ने जब कांपना बंद कर दिया तब नीरज ने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त किया. अब तक अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का सहारा ले कर उस ने खुद को काफी संभाल भी लिया था.

‘‘मेरे सामने यह रोनाधोना नहीं चलेगा, जानेमन,’’ उस ने मुसकरा कर कविता के गाल पर चुटकी भरी, ‘‘इन मुसीबत के क्षणों को भी हम उत्साह, हंसीखुशी और प्रेम के साथ गुजारेंगे. यह वादा इसी वक्त तुम्हें मुझ से करना होगा, कविता.’’ नीरज ने अपना हाथ कविता के सामने कर दिया. कविता शरमाते हुए पहली बार सहज ढंग से मुसकराई और उस ने हाथ बढ़ा कर नीरज का हाथ पकड़ लिया. उस रात नीरज अपनी ससुराल में रुका. दोनों ने साथसाथ खाना खाया. फिर देर रात तक हाथों में हाथ ले कर बातें करते रहे. भविष्य के बारे में कैसी भी योजना बनाने का अवसर तो नियति ने उन से छीन ही लिया था. अतीत की खट्टीमीठी यादों को ही उन दोनों ने खूब याद किया.

सुहागरात, शिमला में बिताया हनीमून, साथ की गई खरीदारी, देखी हुई जगहें, आपसी तकरार, प्यार में बिताए क्षण, प्रशंसा, नाराजगी, रूठनामनाना और अन्य ढेर सारी यादों को उन्होंने उस रात शब्दों के माध्यम से जिआ. हंसतेमुसकराते, आंसू बहाते वे दोनों देर रात तक जागते रहे. कविता उसे यौन सुख देने की इच्छुक भी थी पर कैंसर ने इतना तेज दर्द पैदा किया कि उन का मिलन संभव न था. अपनी बेबसी पर कविता की रुलाई फूट पड़ी. नीरज ने बड़े सहज अंदाज में पूरी बात को लिया. वह तब तक कविता के सिर को सहलाता रहा जब तक वह सो नहीं गई. ‘‘मैं तुम्हारी अंतिम सांस तक तुम्हारे पास हूं, कविता. इस दुनिया से तुम्हारी विदाई मायूसी व शिकायत के साथ नहीं बल्कि प्रेम व अपनेपन के एहसास के साथ होगी, यह वादा है मेरा तुम से,’’ नींद में डूबी कविता से यह वादा कर के ही नीरज ने सोने के लिए अपनी आंखें बंद कीं. अगले दिन सुबह नीरज और कविता 2 कमरों वाले एक फ्लैट में रहने चले आए. यह खाली पड़ा फ्लैट नीरज के एक पक्के दोस्त रवि का था. रवि ने फ्लैट दिया तो अन्य दोस्तों व आफिस के सहयोगियों ने जरूरत के दूसरे सामान भी फ्लैट में पहुंचा दिए. नीरज ने आफिस से लंबी छुट्टी ले ली. जहां तक संभव होता अपना हर पल वह कविता के साथ गुजारने की कोशिश करता. उन से मिलने रोज ही कोई न कोई घर का सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त आ जाते. सभी अपनेअपने ढंग से सहानुभूति जाहिर कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करते.

नीरज की समझ में एक बात जल्दी ही आ गई कि हर सहानुभूतिपूर्ण बातचीत के बाद वह दोनों ही उदासी और निराशा का शिकार हो जाते थे. शब्दों के माध्यम से शरीर या मन की पीड़ा को कम करना संभव नहीं था. इस समझ ने नीरज को बदल दिया. कविता का ध्यान उस की घातक बीमारी पर से हटा रहे, इस के लिए उस ने ज्यादा सक्रिय उपायों को इस्तेमाल में लाने का निर्णय किया. उसी शाम वह बाजार से लूडो और कैरमबोर्ड खरीद लाया. कविता को ये दोनों ही खेल पसंद थे. जब भी समय मिलता दोनों के बीच लूडो की बाजी जम जाती. एक सुबह रसोई में जा कर नीरज ने कविता से कहा, ‘‘मुझे भी खाना बनाना सिखाओ, मैं चाय बनाने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं.’’ ‘‘अच्छा, खाना बनाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जनाब,’’ कविता उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए मुसकराई. ‘‘मैडमजी, मैं पूरी लगन से सीखूंगा.’’ ‘‘मेरी डांट भी सुननी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे मंजूर है.’’ ‘‘तब पहले सब्जी काटना सीखो,’’ कविता ने 4 आलू मजाकमजाक में नीरज को पकड़ा दिए. नीरज तो सचमुच आलुओं को धो कर उन्हें काटने को तैयार हो गया. कविता ने उसे रोकना भी चाहा, पर वह नहीं माना. उसे ढंग से चाकू पकड़ना भी कविता को सिखाना पड़ा. नीरज ने आलू के आड़ेतिरछे टुकड़े बड़े ध्यान से काटे. दोनों ने ही इस काम में खूब मजा लिया. ‘‘अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा आलू के पकौड़े,’’ नीरज की इस घोषणा को सुन कर कविता ने इतनी तरह की अजीबो- गरीब शक्लें बनाईं कि उस का हंसतेहंसते पेट दुखने लगा. नीरज ने बेसन खुद घोला. तेल की कड़ाही के सामने खुद ही जमा रहा. कविता की सहायता व सलाह लेना उसे मंजूर था, पर पकौड़े बनाने का काम उसी ने किया. उस दिन के बाद से नीरज भोजन बनाने के काम में कविता का बराबर हाथ बंटाता. कविता को भी उसे सिखाने में बहुत मजा आता. रसोई में साथसाथ बिताए समय के दौरान वह अपना दुखदर्द पूरी तरह भूल जाती. ‘‘मैं नहीं रहूंगी, तब भी आप कभी भूखे नहीं रहोगे. बहुत कुछ बनाना सीख गए हो अब आप,’’ एक रात सोने के समय कविता ने उसे छेड़ा. ‘‘तुम से मैं ने यह जो खाना बनाना सीखा है, शायद इसी की वजह से ऐसा समय कभी नहीं आएगा, जो तुम मेरे साथ मेरे दिल में कभी न रहो,’’ नीरज ने उस के होंठों को चूम लिया. नीरज से लिपट कर बहुत देर तक खामोश रहने के बाद कविता ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आप के प्यार के कारण अब मुझे मौत से डर नहीं लगता है.

‘‘जिस से जानपहचान नहीं उस से डरना क्या. जीवन प्रेम से भरा हो तो मौत के बारे में सोचने की फुरसत किसे है,’’ नीरज ने इस बार उस की आंखों को बारीबारी से चूमा. ‘‘आप बहुत अच्छे हो,’’ कविता की आंखें नम होने लगीं. ‘‘थैंक यू. देखो, अगर मैं तुम्हारी तारीफ करने लगा तो सुबह हो जाएगी. कल अस्पताल जाना है. अब तुम आराम करो,’’ अपनी हथेली से नीरज ने कविता की आंखें मूंद दीं. कुछ ही देर में कविता गहरी नींद के आगोश में पहुंच गई. नीरज देर तक उस के कमजोर पर शांत चेहरे को प्यार से निहारता रहा. हर दूसरे दिन नीरज अपने किसी दोस्त की कार मांग लाता और कविता को उस की सहेलियों व मनपसंद रिश्तेदारों से मिलाने ले जाता. कभीकभी दोनों अकेले किसी उद्यान में जा कर हरियाली व रंगबिरंगे फूलों के बीच समय गुजारते. एकदूसरे का हाथ थाम कर अपने दिलों की बात कहते हुए समय कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता. नीरज कितनी लगन व प्रेम से कविता की देखभाल कर रहा है, यह किसी की नजरों से छिपा नहीं रहा. कविता के मातापिता व भाई हर किसी के सामने नीरज की प्रशंसा करते न थकते. नीरज के अपने मातापिता को उस का व्यवहार समझ में नहीं आता. वे उस के फ्लैट से हमेशा चिंतित व परेशान से हो कर लौटते. ‘‘दुनिया छोड़ कर जल्दी जाने वाली कविता के साथ इतना मोह रखना ठीक नहीं है नीरज,’’ उस की मां, अकसर अकेले में उसे समझातीं, ‘‘तुम्हारी जिंदगी अभी आगे भी चलेगी, बेटे. कोई ऐसा तेज सदमा दिमाग में मत बैठा लेना कि अपने भविष्य के प्रति तुम्हारी कोई दिलचस्पी ही न रहे.’’

नीरज हमेशा हलकेफुलके अंदाज में उन्हें जवाब देता, ‘‘मां, कविता इतने कम समय के लिए हमारे साथ है कि हम उसे अपना मेहमान ही कहेंगे और मेहमान की विदाई तक उस की देखभाल, सेवा व आवभगत में कोई कमी न रहे, मेरी यही इच्छा है.’’ वक्त का पहिया अपनी धुरी पर निरंतर घूमता रहा. कविता की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी. नीरज ने अगर उस के होंठों पर मुसकान बनाए रखने को जी जान से ताकत न लगा रखी होती तो अपनी तेजी से करीब आ रही मौत का भय उस के वजूद को कब का तोड़ कर बिखेर देता. एक दिन चाह कर भी वह घर से बाहर जाने की शक्ति अपने अंदर नहीं जुटा पाई. उस दिन उस की खामोशी में उदासी और निराशा का अंश बहुत ज्यादा बढ़ गया. उस रात सोने से पहले कविता नीरज की छाती से लग कर सुबक उठी. नीरज उसे किसी भी प्रकार की तसल्ली देने में नाकाम रहा. ‘‘मुझे इस एक बात का सब से ज्यादा मलाल है कि हमारे प्रेम की निशानी के तौर पर मैं तुम्हें एक बेटा या बेटी नहीं दे पाई… मैं एक बहू की तरह से…एक पत्नी के रूप में असफल हो कर इस दुनिया से जा रही हूं…मेरी मौत क्या 2-3 साल बाद नहीं आ सकती थी?’’ कविता ने रोंआसी हो कर नीरज से सवाल पूछा.

‘‘कविता, फालतू की बातें सोच कर अपने मन को परेशान मत करो,’’ नीरज ने प्यार से उस की नाक पकड़ कर इधरउधर हिलाई, ‘‘मौत का सामना आगेपीछे हम सब को करना ही है. इस शरीर का खो जाना मौत का एक पहलू है. देखो, मौत की प्रक्रिया पूरी तब होती है जब दुनिया को छोड़ कर चले गए इनसान को याद करने वाला कोई न बचे. मैं इसी नजरिए से मौत को देखता हूं. और इसीलिए कहता हूं कि मेरी अंतिम सांस तक तुम्हारा अस्तित्व मेरे लिए कायम रहेगा…मेरे लिए तुम मेरी सांसों में रहोगी… मेरे साथ जिंदा रहोगी.’’ कविता ने उस की बातों को बड़े ध्यान से सुना था. अचानक वह सहज ढंग से मुसकराई और उस की आंखों में छाए उदासी के बादल छंट गए. ‘‘आप ने जो कहा है उसे मैं याद रखूंगी. मेरी कोशिश रहेगी कि बचे हुए हर पल को जी लूं… बची हुई जिंदगी का कोई पल मौत के बारे में सोचते हुए नष्ट न करूं. थैंक यू, सर,’’ नीरज के होंठों का चुंबन ले कर कविता ने बेहद संतुष्ट भाव से आंखें मूंद ली थीं. आगामी दिनों में कविता का स्वास्थ्य तेजी से गिरा. उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी. शरीर सूख कर कांटा हो गया. खानापीना मुश्किल से पेट में जाता. शरीर में जगहजगह फैल चुके कैंसर की पीड़ा से कोई दवा जरा सी देर को भी मुक्ति नहीं दिला पाती. अपनी जिंदगी के आखिरी 3 दिन उस ने अस्पताल के कैंसर वार्ड में गुजारे. नीरज की कोशिश रही कि वह वहां हर पल उस के साथ बना रहे. ‘‘मेरे जाने के बाद आप जल्दी ही शादी जरूर कर लेना,’’ अस्पताल पहुंचने के पहले दिन नीरज का हाथ अपने हाथों में ले कर कविता ने धीमी आवाज में उस से अपने दिल की बात कही. ‘‘मुझे मुसीबत में फंसाने वाली मांग मुझ से क्यों कर रही हो?’’ नीरज ने जानबूझ कर उसे छेड़ा. ‘‘तो क्या आप मुझे अपने लिए मुसीबत समझते रहे हो?’’ कविता ने नाराज होने का अभिनय किया. ‘‘बिलकुल नहीं,’’ नीरज ने प्यार से उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘तुम तो सोने का दिल रखने वाली एक साहसी स्त्री हो. बहुत कुछ सीखा है मैं ने तुम से.’’

‘‘झूठी तारीफ करना तो कोई आप से सीखे,’’ इन शब्दों को मुंह से निकालते समय कविता की खुशी देखते ही बनती थी. कविता का सिर सहलाते हुए नीरज मन ही मन सोचता रहा, ‘मैं झूठ नहीं कह रहा हूं, कविता. तुम्हारी मौत को सामने खड़ी देख हमारी साथसाथ जीने की गुणवत्ता पूरी तरह बदल गई. हमारी जीवन ज्योति पूरी ताकत से जलने लगी… तुम्हारी ज्योति सदा के लिए बुझने से पहले अपनी पूरी गरिमा व शक्ति से जलना चाहती होगी…मेरी ज्योति तुम्हें खो देने से पहले तुम्हारे साथ बीतने वाले एकएक पल को पूरी तरह से रोशन करना चाहती है. जीने की सही कला…सही अंदाज सीखा है मैं ने तुम्हारे साथ पिछले कुछ हफ्तों में. तुम्हारे साथ की यादें मुझे आगे भी सही ढंग से जीने को सदा उत्साहित करती रहेंगी, यह मेरा वादा रहा तुम से…भविष्य में किसी अपने को विदाई देने के लिए नहीं, बल्कि हमसफर बन कर जिंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए मैं जिऊंगा क्योंकि जिंदगी के सफर का कोई भरोसा नहीं.’ जब 3 दिन बाद कविता ने आखिरी सांस ली तब नीरज का हाथ उस के हाथ में था. उस ने कठिनाई से आंखें खोल कर नीरज को प्रेम से निहारा. नीरज ने अपने हाथ पर उस का प्यार भरा दबाव साफ महसूस किया. नीरज ने झुक कर उस का माथा प्यार से चूम लिया. कविता के होंठों पर छोटी सी प्यार भरी मुसकान उभरी. एक बार नीरज के हाथ को फिर प्यार से दबाने के बाद कविता ने बड़े संतोष व शांति भरे अंदाज में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

नीरज ने देखा कि इस क्षण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का बोझ नहीं था. इस मेहमान को विदा कहने से पहले उस की सुखसुविधा व मन की शांति के लिए जो भी कर सकता था, उस ने खुशीखुशी व प्रेम से किया. तभी तो उस के मन में कोई टीस या कसक नहीं उठी. विदाई के इन क्षणों में उस की आंखों से जो आंसुओं की धारा लगातार बह रही थी उस का उसे कतई एहसास नहीं था. Vidai Hindi Story