Hindi Kahaniyan
Bete Ka Rishta
कुछ दिनों बाद, वकील साहब होने वाले समधी के घर गए तो देखा कि होने वाली समधन खाना बना रही थीं। सभी बच्चे और होने वाली बहू टी वी देख रहे थे। वकील साहब ने चाय पी, कुशल जाना और चले आये। 👉__एक माह बाद, वकील साहब समधी जी के घर, फिर गए। देखा, भावी समधन जी झाड़ू लगा रहीं थी, बच्चे पढ़ रहे थे और होने वाली बहू सो रही थी। वकील साहब ने खाना खाया और चले आये।
👉___कुछ दिन बाद, वकील साहब किसी काम से फिर होने वाले समधी जी के घर गए !! घर में जाकर देखा, होने वाली समधन बर्तन साफ़ कर रही थी, बच्चे टीवी देख रहे थे और होने वाली बहू खुद के हाथों में नेलपेंट लगा रही थी। वकील साहब ने घर आकर, गहन सोच-विचार कर लड़की वालों के यहाँ खबर पहुचाई, कि हमें ये रिश्ता मंजूर नहीं है" 👉__कारण पूछने पर वकील साहब ने कहा कि, "मैं होने वाले समधी के घर तीन बार गया !! तीनों बार, सिर्फ समधन जी ही घर के काम काज में व्यस्त दिखीं। एक भी बार भी मुझे होने वाली बहू घर का काम काज करते हुए नहीं दिखी। जो बेटी अपने सगी माँ को हर समय काम में व्यस्त पा कर भी उन की मदद करने का न सोचे, उम्र दराज माँ से कम उम्र की, जवान हो कर भी स्वयं की माँ का हाथ बटाने का जज्बा न रखे,,, वो किसी और की माँ और किसी अपरिचित परिवार के बारे में क्या सोचेगी। 👉__मुझे अपने बेटे के लिए एक बहू की आवश्यकता है, किसी गुलदस्ते की नहीं, जो किसी फ्लावर पाटॅ में सजाया जाये !! 👉इसलिये सभी माता-पिता को चाहिये, कि वे इन छोटी छोटी बातों पर अवश्य ध्यान दें ।
👉__बेटी कितनी भी प्यारी क्यों न हो, उससे घर का काम काज अवश्य कराना चाहिए। समय-समय पर डांटना भी चाहिए, जिससे ससुराल में ज्यादा काम पड़ने या डांट पड़ने पर उसके द्वारा गलत करने की कोशिश ना की जाये। हमारे घर बेटी पैदा होती है, हमारी जिम्मेदारी, बेटी से "बहू", बनाने की है। 👉अगर हमने, अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से नहीं निभाई, बेटी में बहू के संस्कार नहीं डाले तो इसकी सज़ा, बेटी को तो मिलती है और माँ बाप को मिलती हैं, "जिन्दगी भर गालियाँ"। हर किसी को सुन्दर, सुशील बहू चाहिए। लेकिन भाइयो, जब हम अपनी बेटियों में, एक अच्छी बहु के संस्कार, डालेंगे तभी तो हमें संस्कारित बहू मिलेगी? ?
👉👏ये # कड़वा_सच , शायद कुछ लोग न बर्दाश्त कर पाएं ....लेकिन पढ़ें और समझें, बस इतनी इलतिजा.. वृद्धाआश्रम में माँ बाप को देखकर सब लोग बेटो को ही कोसते हैं, लेकिन ये कैसे भूल जाते हैं कि उन्हें वहां भेजने में किसी की बेटी का भी अहम रोल होता है। वरना बेटे अपने माँ बाप को शादी के पहले वृद्धाश्रम क्यों नही भेजते.

Suno Kal Mammi Papa
अरे तुम आज इतनी जल्दी नहा ली.. हां तुमने रात को बताया था कि आज मम्मी पापा आने वाले हैं तो सोचा घर को कुछ व्यवस्थित कर लूं..स्वाति ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा..वैसे..किस वक्त तक आ जाएंगे वो लोग.. "दोपहर वाली गाड़ी से पहुंचेंगे चार तो बज ही जाऐंगे.. मयंक ने चाय का कप खत्म करते हुए जवाब दिया.. "स्वाति..देखना कभी पिछली बार की तरह.."नही नही..पिछली बार जैसा कुछ भी नही होगा..स्वाति ने भी कप खत्म करते हुए मयंक को कहा और उठकर रसोई की तरफ बढ गई। मयंक भी आफिस जाने के लिए तैयार होने के लिए बाथरूम की तरफ बढ गया। नाश्ता करने के बाद मयंक ने स्वाति से पूछा "..तुम तैयार नही हुई..क्या बात..आज स्कूल की छुट्टी है..??.. " नही..आज तुम निकलो मैं आटो से पहुंच जाऊंगी..थोड़ा लेट निकलूंगी..स्वाति ने लंच बाक्स थमाते हुए मयंक को कहा। "..बाय बाय..कहकर मयंक बाइक से आफिस के लिए निकल गया। और स्वाति घर के काम में लग गई.. "..मुझे तो बहुत डर लग रहा है मैं तुम्हारे कहने से वहां चल तो रहा हूं लेकिन पिछली बार बहू से जिस तरह खटपट हुई थी मेरा तो मन ही भर गया था।
ना जाने ये दस दिन कैसे जाने वाले हैं.. मयंक के पिताजी मयंक की मम्मी से कह रहे थे। "..अजी..भूल भी जाइये..बच्ची है.. कुछ हमारी भी तो गलती थी। हम भी तो उससे कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगाए बैठे थे। उन बातों को सालभर बीत गया है.. क्या पता कुछ बदलाव आ गया हो। इंसान हर पल कुछ नया सीखता है.. क्या पता कौन सी ठोकर किस को क्या सिखा दे.. मयंक की मां ने पिताजी को हौंसला देते हुए कहा.. मयंक की मां यह कहकर चुप हो गई और याद करने लगी.. दो भाइयों में मयंक बड़ा था और विवेक छोटा। मयंक गांव से दसवीं करके शहर आ गया.. आगे पढने और विवेक पढाई में कमजोर था इसलिए गांव में ही पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ बंटाने लगा। मयंक बी_टेक करके शहर में ही बीस हजार रू की नौकरी करने लगा। स्वाति से कोचिंग सेन्टर में ही मयंक की जान पहचान हुई थी यह बात मयंक ने स्वाति से शादी के कुछ दिन पहले बताई। पिताजी कितने दिन तक नही माने थे इस रिश्ते के लिए.. वो तो मैने ही समझा बुझाकर रिश्ते के लिए मनाया था वरना ये तो पड़ौस के गांव के अपने दोस्त की बेटी माला से ही रिश्ता करने की जिद लगाए बैठे थे।
गांव आकर स्वाति के घर वालों ने शादी की थी.. दो साल होने को आए उस दिन को भी। शादी करके दोनो शहर में ही रहने लगे। स्वाति भी प्राइवेट स्कूल में टीचर की जाॅब करने लगी। पिछली बार जब गांव से आए थे तो मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही बहू के तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ हो लिए। कई बार मयंक को फोन करकर बोला भी की बेटा गांव आ जा..पर वो हर बार कह देता.. मां छुट्टी ही नही मिलती कैसे आऊं.. लेकिन मैं ठहरी एक मां..आखिर मां का तो मन करता है ना अपने बच्चे से मिलने का..बहू चाहे कैसा भी बर्ताव करे.. काट लेंगे किसी तरह ये दस दिन.. पर बच्चे को जी भरकर देख तो लेंगे.. "अरे भागवान..उठ जाओ.. स्टेशन आ गया उतरना नही है क्या..
मयंक के पिताजी की आवाज मयंक की मां को यादों की दुनियां से वापस खींच लाई.. सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ गए और आटो में बैठकर दोनो मयंक के घर के लिए रवाना हो गए.. घर पहुंचे तो बहू घर पर ही थी। जाते ही बहू ने दोनो के पैर छुए.. हम दोनो को ड्राइंगरूम में बिठाकर हम दोनो के लिए ठण्डा ठण्डा शरबत लाई हम लोगों ने जैसे ही शरबत खत्म किया बहू ने कहा "पिता जी... आप सफर से थक गए होंगे..नहा लिजिए.. सफर की थकान उतर जाएगी फिर मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं। पिताजी नहाने चले गए। बहू रसोई में घुसकर खाना बनाने लगी। थोड़ी देर में मयंक भी आ गया। फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और फिर सबने खाना खाया। मयंक और बहू सोने चले गए और हम भी सो गए। सुबह पांच बजे पिताजी उठे तो तो बहू उठ चुकी थी पिताजी को उठते ही गरम पानी पीने की आदत थी बहू ने पहले से ही पिताजी के लिए पानी गरम कर रखा था नहा धोकर पिताजी को मंदिर जाने की आदत थी.. बहू ने उनको जल से भरकर लौटा दे दिया.. नाश्ता भी पिताजी की पसंद का तैयार था..
सबको नाश्ता करवाकर बहू मयंक के साथ चली गई पिताजी ने भी चैन की सांस ली.. चलो अब चार पांच घण्टे तो सूकून से निकलेंगे। दिन के खाने की तैयारी बहू करकर गई थी सो मैने चार पांच रोटियां हम दोनो की बनाई और खा ली। स्कूल से आते ही बहू फिर से रसोई में घुस गई और हम दोनों के लिए चाय बना लाई.. शाम को हम दोनों को लेकर बहू पास के पार्क में गई वहां उसने हमारा परिचय वहां बैठे बुजुर्गों से करवाया.. वो अपनी सहेलियों से बात करने लगी और हम अपने नए परिचितों से परिचय में व्यस्त हो गए। शाम के सात बज चुके थे..हम घर वापस आ गए। मयंक भी थोड़ी देर में घर आ गया। बैठकर खूब सारी बातें हुई।
बहू भी हमारी बातों में खूब दिलचस्पी ले रही थी थोड़ी देर बाद सब सोने चले गए। अगले दिन सण्डे था बहू, मयंक और हम दोनो चिड़ियाघर देखने गए.. हमारे लिए ताज्जुब की बात ये थी की प्रोग्राम बहू ने बनाया था..बहू ने खूब अच्छे से चिड़ियाघर दिखाया और शाम को इण्डिया गेट की सैर भी करवाई.. खाना पीना भी हम सबने बाहर ही किया.. फिर हम सब घर आ गए और सो गए.. इस खुशमिजाज रूटीन से पता ही नही चला वक्त कब पंख लगाकर उड़ गया.. कहां तो हम सोच रहे थे कि दस दिन कैसे गुजरेंगे और कहां पन्द्रह दिन बीत चुके थे। आखिर कल जब विवेक का फोन आया कि फसल तैयार हो गई है और काटने के लिए तैयार है तो हमें अगले ही दिन गांव वापसी का प्रोग्राम बनाना पड़ा। रात का खाना खाने के बाद हम कमरे में सोने चले गए तो बहू हमारे कमरे में आ गई बहू की आंखों से आंसू बह रहे थे। मैने पूछा.."क्या बात है बहू..रो क्यों रही हो.?
तो बहू ने पूछा "..पिताजी, मां जी.. पहले आप लोग एक बात बताइये.. पिछले पन्द्रह दिनों में कभी आपको यह महसूस हुआ की आप अपनी बहू के पास है या बेटी के पास.. "नही बेटा सच कहूं तो तुमने हमारा मन जीत लिया.. हमें किसी भी पल यह नही लगा की हम अपनी बहू के पास रह रहें हैं तुमने हमारा बहुत ख्याल रखा लेकिन एक बात बताओ बेटा.. "तुम्हारे अंदर इतना बदलाव आया कैसे..?? "पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई थी। मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा बढिया नही है। इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए तरसते देखा.. बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत होते देखा.. मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर सकता था। मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत दुखी थी।
उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही थी.. कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ किया था। ""किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे।"" मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी होंगे... बहू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई। मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया.. "हां बेटा अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा... ठोकर सबको लगती है लेकिन सम्भलता कोई कोई ही है "लेकिन हम दुआ करेंगे कि तुम्हारी भाभी भी सम्भल जाए.. बहू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के प्रायश्चित के आंसू थे..

Sundar Ladki Jyoti
ज्योति की सुंदरता पर रोहित पहली नजर में ही मोहित हो गया। रीमा जी ने भी सोचा कि, छोटे घर की लड़की है दबकर रहेगी। ज्योति के पिता बचपन में ही गुजर गए थे । माँं ने ही सिलाई करके और दूसरों के घर खाना बनाकर ज्योति और उसके भाई की परवरिश की थी। इतने बड़े घर का रिश्ता आया था ,इसलिए ज्योति की मां का मना करने का कोई सवाल ही नहीं उठता था। शादी बहुत अच्छे से हुई ,लगभग सारा खर्चा अरुण जी ने ही किया।
रोहित ने एक नया बिजनेस शुरू किया। उसके उद्घाटन समारोह में ज्योति ने अपनी मां और भाई को भी बुलाया फंक्शन खत्म होने पर ज्योति ने मां को कुछ दिनों के लिए रोक लिया। एक बार ज्योति के ससुर जी से मिलने उनके खास दोस्त आए। जो शहर के प्रसिद्ध वकील और उनकी पत्नी आरती जी ,एक एनजीओ चलाती थी ।वह जमीन से जुड़े व्यक्ति थे ।ज्योति की मां ने ही सारा खाना बनाया था ।साधारण रहन-सहन के कारण ज्योति की सास ने उन्हें सब के साथ खाना खाने के लिए आमंत्रित नहीं किया। इससे ज्योति को बहुत बुरा लगा।
मेहमानों ने खाने की तारीफ की तो, ज्योति ने कहा कि यह खाना उसकी मां ने बनाया हैं। तब उसकी सास बोली की " जिंदगी भर उन्होंने खाना ही तो बनाया है"। आरती जी ने उनसे मिलने की इच्छा जताई तो, ज्योति अपनी मां को बाहर लाई और सबसे मिलवाया। ज्योति बोली "यह मेरी मां है ,पापा के गुजर जाने के बाद इन्होंने सिलाई और दूसरों के घर खाना बनाकर हमे इस लायक बनाया है"। सबके जाने के बाद रोहित बोला" क्या जरूरत थी सबके सामने सिलाई और खाना बनाने की बात कहने की "।
ज्योति ने कहा "मुझे उन पर गर्व है , जिस मेहनत से उन्होंने हमें बड़ा किया "।हम आपके दरवाजे नहीं आए थे। हमारी इतनी हैसियत नहीं थी। आप लोग आए थे रिश्ते के लिए तो अब क्यों शर्मिंदा होते हैं। आप लोग इस तरह मेरी मां का अपमान नहीं कर सकते।
रोहित और उसकी मां चुपचाप सुनते रह गए।

Beta Ka Zanmdin
रात के 1:30 बजे फोन आता है, बेटा फोन उठाता है तो माँ बोलती है:- "जन्म दिन मुबारक लल्ला" बेटा गुस्सा हो जाता है और माँ से कहता है: - सुबह फोन करती। इतनी रात को नींद खराब क्यों की? कह कर फोन रख देता है। थोडी देर बाद पिता का फोन आता है। बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता बल्कि कहता है:- सुबह फोन करते। फिर पिता ने कहा: - मैनें तुम्हे इसलिए फोन किया है कि तुम्हारी माँ पागल है जो तुम्हे इतनी रात को फोन किया। वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी। जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था। वो मरने के लिए तैयार हो गई पर ऑपरेशन नहीं करवाया। रात के 1:30 को तुम्हारा जन्म हुआ। शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी । लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो सारी पीड़ा भूल गयी ।उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । तुम्हारे जन्म से पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाये थे कि अगर कुछ हो जाये तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे। तुम्हे साल में एक दिन फोन किया तो तुम्हारी नींद खराब हो गई......मुझे तो रोज रात को 25 साल से रात के 1:30 बजे उठाती है और कहती है देखो हमारे लल्ला का जन्म इसी वक्त हुआ था। बस यही कहने के लिए तुम्हे फोन किया था। इतना कहके पिता फोन रख देते हैं।
बेटा सुन्न हो जाता है। सुबह माँ के घर जा कर माँ के पैर पकड़कर माफी मांगता है....तब माँ कहती है, देखो जी मेरा लाल आ गया। फिर पिता से माफी मांगता है तब पिता कहते हैं:- आज तक ये कहती थी कि हमे कोई चिन्ता नहीं हमारी चिन्ता करने वाला हमारा लाल है। पर अब तुम चले जाओ मैं तुम्हारी माँ से कहूंगा कि चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारा हमेशा की तरह आगे भी ध्यान रखुंगा। तब माँ कहती है:- माफ कर दो बेटा है।
सब जानते हैं दुनियाँ में एक माँ ही है जिसे जैसा चाहे कहो फिर भी वो गाल पर प्यार से हाथ फेरेगी। पिता अगर तमाचा न मारे तो बेटा सर पर बैठ जाये। इसलिए पिता का सख्त होना भी जरुरी है।
माता पिता को आपकी दौलत नही बल्कि आपका प्यार और वक्त चाहिए। उन्हें प्यार दीजिए। माँ की ममता तो अनमोल है। निवेदन:- इसको पढ़ कर अगर आँखों में आंसू बहने लगें तो रोकिये मत, बह जाने दीजिये। मन हल्का हो जायेगा!*

Aik Dhaba Par
एक ढाबा पर एक छोटा सा लडका था ...जो ग्राहको को खाना खिला रहा था कोई ऎ छोटू कह कर बुलाता तो कोई ओए छोटू वो नन्ही सी जान ग्राहको के बीच जैसे उलझ कर रह गयी हो । यह सब मन को काट रहा था । मैने छोटू को "छोटू जी" कहकर अपनी तरफ बुलाया । वह भी प्यारी सी मुस्कान लिये मेरे पास आकर बोला , "साहब जी क्या खाओगे ? "मैने कहा , " साहब नही; भाईयाँ जी बोल ! तब ही बताऊगाँ ।"
वो भी मुस्कुराया और आदर के साथ बोला, "भाईयाँ जी आप क्या खाओगे? "मैने खाना आर्डर किया और खाने लगा । छोटू जी के लिये अब मे ग्राहक से जैसे मेहमान बन चुका था । वो मेरी एक आवाज पर दौडा चला आता और प्यार से पूछता, "भाईयाँ जी और क्या लाये, खाना अच्छा तो लगा ना आपको??? "और मै कहता," हाँ छोटू जी ! आपके इस प्यार ने खाना और स्वादिष्ट कर दिया । "खाना खाने के बाद मैने बिल चुकाया और 100रू छोटू जी की हाथ पर रख, "कहा... ये तुम्हारे है, रख लो और मलिक से मत कहना । "वो खुश होकर बोला," जी भईया L "फिर मैने पुछा," क्या करोगो ये पैसो का । "वो खुशी से बोला," आज माँ के लिये चप्पल ले जाऊगाँ, 4 दिन से माँ के पास चप्पल नही है, नग्गे पैर ही चली जाती है साहब... लोग के यहाँ बर्तन माझने ।
"उसकी ये बात सुन मेरी आँखे भर आयी ।मैने पुछा, "घर पर कौन कौन है ।" तो बोला," माँ है, मै और छोटी बहन है, पापा भगवान के पास चले गये ।" मेरे पास कहने को अब कुछ नही रह गया था।मैने उसको कुछ पैसे और दिये और बोला,"आज आम ले जाना माँ के लिये और माँ के लिये अच्छी सी चप्पल लाकर देना और बहन और अपने लिये आईसक्रिम ले जाना और अगर माँ पुछे ...किस ने दिया तो कह देना पापा ने एक भइया को भेजा था, वो दे गये । "इतना सुन छोटू मुझसे लिपट गया और मैने भी उसको अपने सीने से लगा लिया । वास्तव ने छोटू अपने घर का बडा निकला ।पढाई की उम्र मे घर का बोझ उठा रहा है ।
ऎसी ही ना जाने कितने ही छोटू आपको होटल , ढाबो या चाय की दुकान पर काम करते मिल जायेगे । आप सभी से इतना निवेदन है.... उनको नौकर की तरह ना बुलाये, थोडा प्यार से क पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया आपका
ऐसी और भी पोस्ट पढ़ने के लिए हमे मित्र अनुरोध जरूर भेजे।
( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे
