Poetry Tadka

Hindi Kahaniyan

Sammanit Nazar

निशा घर की छोटी बहु थी मोहन के साथ उसकी शादी को अभी सालभर ही हुआ था की मोहन के भाइयों ने मां को अपने साथ रखने से साफ इंकार कर दिया मोहन और निशा तो रहना ही मां के साथ चाहते थे मगर कुछ प्रोपटी के चलते बडे भैया ने ऐसा नही करने दिया मगर जब सबकुछ अपने नाम करवा लिया तो मां के लिए उनके घरमे कमरा नही बचा था कारण बच्चे बडे हो गए अलग अलग कमरों मे रहकर पढाई करेंगे वगैरह वगैरह खैर तबसे मां मोहन और निशा के पास आकर रहने लगी मोहन और निशा मां का भरपूर ख्याल रखते घरमे सबसे पहले बनने वाली सब्जी रोटी हो या बाहर से आनेवाली मिठाई या फल सबसे पहले वो मां को दिया जाता उसके बाद मोहन निशा और उनकी बेटी आराध्या खाते आराध्या अक्सर अपने पापा से पूछती -पापा आप हर चीज पहले दादी को कयो देते हो तो मोहन मुसकराते कहता-बेटा ये हमारे बडो का सम्मान है देखो कल जब तुम बडी हो जाओगी तो सबसे पहले तुम अपने मम्मी पापा को प्यार करोगी सम्मान दोगी कयोंकि आज हम तुम्हें प्यार करते है सम्मान से रहना खाना सीखाते है वैसे ही आराध्या मुसकराते रह जाती ऐसे ही अक्सर कितनी बार मेहमान और दोस्त आते तो वो बुजुर्ग माता जी से पूछते -आपका बेटा बहु आपका ख्याल तो रखते है ना बहु ठीक से खिलाती हे या नही ये सब सुनकर निशा उदास हो जाती मोहन उसे समझाता-निशा हमें लोगों को दिखाने के लिए नही बल्कि अपनी मां के सम्मान और सेहत की फ्रिक करनी चाहिए जिसको देखना है ये सब यकीन जानो वो देख रहा है और निशा कहती-आप नही समझते लोगों को करने के बाद भी सुनना पडे तो कैसा लगता है खैर एकदिन मोहन और निशा बेटी आराध्या सहित निशा की एक सहेली के घर खाने पर गए वहां निशा की सहेली ने मोहन और निशा सहित आराध्या के लिए तमाम बढिया स्वादिष्ट व्यंजनों का ढेर लगा दिया मगर मोहन और निशा से कुछ खाते नही बन रहा था कारण निशा की सहेली की बुजुर्ग सासवहीं पास ही बैठी थी मगर निशा की सहेली ने उन्हें कुछ खाने को देना तो दूर पूछना तक मुनासिब नही समझा ये सब आराध्या बडे गौर से देख रही थी उसने तुंरत टोकते हुए कहा-मौसी जी आप दादी को कुछ नही दे रही कया आप उनसे प्यार नही करती उनका सम्मान नही करती ये शब्द अचानक सुनकर निशा की सहेली और उसके पति की नजरें झुक गई तब आराध्या फिर बोली-मौसी जी हमारे घर मे तो मम्मी दादी को बहुत प्यार करती है बहुत सम्मान करती है सबसे उन्हें खिलाती है फिर हम खाते है यही तो आपके बच्चे यानि मेरे बहन भाई सीखेगे हे ना मौसी जीनिशा की सहेली और उसके पति कि आँखें शर्म से झुकी थी वहीं बुजुर्ग दादी आराध्या को मन ही मन मे दुआएं दे रही थी और आज सचमुच निशा को उसके सवाल का जबाब मोहन की कही बातो मे मिल गया था जिसे देखना चाहिए वो देख रहा है वो लगातार मोहन को सम्मानित नजरों से निहार रही थी

Sammanit Nazar

Aik Raja Hathi Par

एक राजा हाथी पर बैठकर अपने राज्य का भ्रमण कर रहा था।अचानक वह एक दुकान के सामने रुका और अपने मंत्री से कहा- *"मुझे नहीं पता क्यों, पर मैं इस दुकान के स्वामी को फाँसी देना चाहता हूँ।"* यह सुनकर मंत्री को बहुत दु:ख हुआ। लेकिन जब तक वह राजा से कोई कारण पूछता, तब तक राजा आगे बढ़ गया। अगले दिन, *मंत्री* उस दुकानदार से मिलने के लिए एक साधारण नागरिक के वेष में उसकी दुकान पर पहुँचा। उसने दुकानदार से ऐसे ही पूछ लिया कि उसका व्यापार कैसा चल रहा है? दुकानदार चंदन की लकड़ी बेचता था। उसने बहुत दुखी होकर बताया कि मुश्किल से ही उसे कोई ग्राहक मिलता है। लोग उसकी दुकान पर आते हैं, चंदन को सूँघते हैं और चले जाते हैं। वे चंदन कि गुणवत्ता की प्रशंसा भी करते हैं, पर ख़रीदते कुछ नहीं। *अब उसकी आशा केवल इस बात पर टिकी है कि राजा जल्दी ही मर जाए। उसकी अन्त्येष्टि के लिए बड़ी मात्रा में चंदन की लकड़ी खरीदी जाएगी। वह आसपास अकेला चंदन की लकड़ी का दुकानदार था, इसलिए उसे पक्का विश्वास था कि राजा के मरने पर उसके दिन बदलेंगे।* अब मंत्री की समझ में आ गया कि राजा उसकी दुकान के सामने क्यों रुका था और क्यों दुकानदार को मार डालने की इच्छा व्यक्त की थी। शायद *दुकानदार के नकारात्मक विचारों की तरंगों ने राजा पर वैसा प्रभाव डाला था, जिसने उसके बदले में दुकानदार के प्रति अपने अन्दर उसी तरह के नकारात्मक विचारों का अनुभव किया था।* बुद्धिमान मंत्री ने इस विषय पर कुछ क्षण तक विचार किया। फिर उसने अपनी पहचान और पिछले दिन की घटना बताये बिना कुछ चन्दन की लकड़ी ख़रीदने की इच्छा व्यक्त की। दुकानदार बहुत खुश हुआ। उसने चंदन को अच्छी तरह कागज में लपेटकर मंत्री को दे दिया। जब मंत्री महल में लौटा तो वह सीधा दरबार में गया जहाँ राजा बैठा हुआ था और सूचना दी कि *चंदन की लकड़ी के दुकानदार ने उसे एक भेंट भेजी है। राजा को आश्चर्य हुआ। जब उसने बंडल को खोला तो उसमें सुनहरे रंग के श्रेष्ठ चंदन की लकड़ी और उसकी सुगंध को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। प्रसन्न होकर उसने चंदन के व्यापारी के लिए कुछ सोने के सिक्के भिजवा दिये।* राजा को यह सोचकर अपने हृदय में बहुत खेद हुआ कि उसे दुकानदार को मारने का अवांछित विचार आया था। *जब दुकानदार को राजा से सोने के सिक्के प्राप्त हुए, तो वह भी आश्चर्यचकित हो गया। वह राजा के गुण गाने लगा जिसने सोने के सिक्के भेजकर उसे ग़रीबी के अभिशाप से बचा लिया था। कुछ समय बाद उसे अपने उन कलुषित विचारों की याद आयी जो वह राजा के प्रति सोचा करता था। उसे अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए ऐसे नकारात्मक विचार करने पर बहुत पश्चात्ताप हुआ।* यदि हम दूसरे व्यक्तियों के प्रति अच्छे और दयालु विचार रखेंगे, तो वे सकारात्मक विचार हमारे पास अनुकूल रूप में ही लौटेंगे। लेकिन यदि हम बुरे विचारों को पालेंगे, तो वे विचार हमारे पास उसी रूप में लौटेंगे। *"कर्म क्या है?"* *"हमारे शब्द, हमारे कार्य, हमारी भावनायें, हमारी गतिविधियाँ.।"* *हमारे सोच विचारों से ही हमारे कर्म बनते हैं।*
Aik raja hathi par

Mammi Mammi Mai

"मम्मी , मम्मी ! मैं उस बुढिया के साथ स्कुल नही जाउँगा ना ही उसके साथ वापस आउँगा।"मेरे दस वर्ष के बेटे ने गुस्से से अपना स्कुल बैग फेकतै हुए कहा तो मैं बुरी तरह से चौंक गई। यह क्या कह रहा है? अपनी दादी को बुढिया क्यों कह रहा है? कहाँ से सीख रहा है इतनी बदतमीजी? मैं सोच ही रही थी कि बगल के कमरे से उसके चाचा बाहर निकले और पुछा-"क्या हुआ बेटा?" उसने फिर कहा -"चाहे कुछ भी हो जाए मैं उस बुढिया के साथ स्कुल नहीं जाउँगा। हमेशा डाँटती है और मेरे दोस्त भी मुझे चिढाते हैं।" घर के सारे लोग उसकी बात पर चकित थे। घर मे बहुत सारे लोग थे। मैं और मेरे पति,दो देवर और देवरानी , एक ननद , ससुर और नौकर भी। फिर भी मेरे बेटे को स्कुल छोडने और लाने की जिम्मेदारी उसके दादी की थी। पैरों मे दर्द रहता था पर पोते के प्रेम मे कभी शिकायता नही करती थी।बहुत प्यार करती थी उसको क्योंकि घर का पहला पोता था। पर अचानक बेटे के मुँह से उनके लिए ऐसे शब्द सुन कर सबको बहुत आश्चर्य हो रहा था। शाम को खाने पर उसे बहुत समझाया गया पर बह अपनी जिद पर अडा रहा पति ने तो गुस्से मे उसे थप्पड़ भी मार दिया। तब सबने तय किया कि कल से उसे स्कुल छोडने और लेने माँजी नही जाएँगी । अगले दिन से कोई और उसे लाने ले जाने लगा पर मेरा मन विचलित रहने लगा कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया? मै उससे कुछ नाराज भी थी। शाम का समय था ।मैने दुध गर्म किया और बेटे को देने के लिए उसने ढुँढने लगी।मैं छत पर पहुँची तो बेटे के मुँह से मेरे बारे मे बात करते सुन कर मेरे पैर ठिठक गये । मैं छुपकर उसकी बात सुनने लगी।वह अपनी दादी के गोद मे सर रख कर कह रहा था- "मैं जानता हूँ दादी कि मम्मी मुझसे नाराज है।पर मैं क्या करता? इतनी ज्यादा गरमी मे भी वो आपको मुझे लेने भेज देते थे।आपके पैरों मे दर्द भी तो रहता है।मैने मम्मी से कहा तो उन्होंने कहा कि दादी अपनी मरजी से जाती हैं। दादी मैंने झुठ बोला।बहुत गलत किया पर आपको परेशानी से बचाने के लिये मुझे यही सुझा। आप मम्मी को बोल दो मुझे माफ कर दे।" वह कहता जा रहा था और मेरे पैर तथा मन सुन्न पड़ गये थे। मुझे अपने बेटे के झुठ बोलने के पीछे के बड़प्पन को महसुस कर गर्व हो रहा था। मैने दौड कर उसे गले लगा लिया और बोली-"नहीं , बेटे तुमने कुछ गलत नही किया। हम सभी पढे लिखे नासमझो को समझाने का यही तरीका था। धन्यवाद बेटा।
Mammi Mammi Mai

Do Bhai

भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी (इतवार) का दिन है। आप सभी को आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।" छोटे भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।* "क्या छोटे, किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो?" *" नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं । "* अपना मकान", भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला। *"छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।"* " बस भैया", कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया। "अपना मकान", " बस भैया " ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे। *भरत और लक्ष्मण दो सगे भाई और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब पन्द्रह साल।* लक्ष्मण जब करीब सात साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी भरत पर थी। *इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।* प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा नहीं किये। जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा। *पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। वैसे भी अब भरत के पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।* *मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये।* वो बोली, " देवर जी के लिये हमने क्या नहीं किया। कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं आये। *दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से छिपा के रखी।"* इतवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी, भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो गयी। *मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा सुन्दर।* हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम। उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन कहा, " देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से (portion) तैयार कराये हैं। पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।" *मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे जिन्हें उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका।* तभी पण्डित जी ने आवाज लगाई, " हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।" *लक्ष्मण के दोस्तों ने कहा, " पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।" यह सुन लक्ष्मण बोले, " इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं, मेरे बड़े भाई भरत भी हैं। आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत। इस मकान के दो हिस्से हैं, एक उनका और एक मेरा।"* हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, *" भैया, बिटिया की शादी की चिन्ता बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे।"* *पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे, जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान न था।*
Do Bhai

Pati Patni Ki Baat Cheet

*पति-पत्नी का खूबसूरत संवाद...✍👌👍* *मैंने एक दिन अपनी पत्नी से पूछा- क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि मैं बार-बार तुमको कुछ भी बोल देता हूँ, और डाँटता भी राहत हूँ, फिर भी तुम पति भक्ति में ही लगी रहती हो, जबकि मैं कभी पत्नी भक्त बनने का प्रयास नहीं करता..??* *मैं भारतीय संस्कृति के तहत वेद का विद्यार्थी रहा हूँ और मेरी पत्नी विज्ञान की, परन्तु उसकी आध्यात्मिक शक्तियाँ मुझसे कई गुना ज्यादा हैं, क्योकि मैं केवल पढता हूँ और वो जीवन में उसका अक्षरतः पालन भी करती है।* *मेरे प्रश्न पर जरा वह हँसी और गिलास में पानी देते हुए बोली- यह बताइए कि एक पुत्र यदि माता की भक्ति करता है तो उसे मातृ भक्त कहा जाता है, परन्तु माता यदि पुत्र की कितनी भी सेवा करे उसे पुत्र भक्त तो नहीं कहा जा सकता ना!!!* *मैं सोच रहा था, आज पुनः ये मुझे निरुत्तर करेगी। मैंने फिर प्रश्न किया कि ये बताओ, जब जीवन का प्रारम्भ हुआ तो पुरुष और स्त्री समान थे, फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया, जबकि स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है..?* *मुस्कुरातें हुए उसने कहा- आपको थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी...* *मैं झेंप गया और उसने कहना प्रारम्भ किया...दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है...ऊर्जा और पदार्थ।* *पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और स्त्री पदार्थ की। पदार्थ को यदि विकसित होना हो तो वह ऊर्जा का आधान करता है, ना की ऊर्जा पदार्थ का। ठीक इसी प्रकार जब एक स्त्री एक पुरुष का आधान करती है तो शक्ति स्वरूप हो जाती है और आने वाले पीढ़ियों अर्थात् अपने संतानों के लिए प्रथम पूज्या हो जाती है, क्योंकि वह पदार्थ और ऊर्जा दोनों की स्वामिनी होती है जबकि पुरुष मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है।* *मैंने पुनः कहा- तब तो तुम मेरी भी पूज्य हो गई ना, क्योंकि तुम तो ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो..?* *अब उसने झेंपते हुए कहा- आप भी पढ़े लिखे मूर्खो जैसे बात करते हैं। आपकी ऊर्जा का अंश मैंने ग्रहण किया और शक्तिशाली हो गई तो क्या उस शक्ति का प्रयोग आप पर ही करूँ...ये तो सम्पूर्णतया कृतघ्नता हो जाएगी।* *मैंने कहा- मैं तो तुम पर शक्ति का प्रयोग करता हूँ फिर तुम क्यों नहीं..?* *उसका उत्तर सुन मेरे आँखों में आँसू आ गए...उसने कहा- जिसके साथ संसर्ग करने मात्र से मुझमें जीवन उत्पन्न करने की क्षमता आ गई और ईश्वर से भी ऊँचा जो पद आपने मुझे प्रदान किया जिसे माता कहते हैं, उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती। फिर मुझे चिढ़ाते हुए उसने कहा कि यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा तो मुझे क्या आवश्यकता...मैं तो माता सीता की भाँति लव-कुश तैयार कर दूँगी, जो आपसे मेरा हिसाब किताब कर लेंगे।* *🙏सहस्त्रों नमन है सभी मातृ शक्तियों को, जिन्होंने अपने प्रेम और मर्यादा में समस्त सृष्टि को बाँध रखा है...🙏*
Pati Patni Ki Baat Cheet

Aa Gayi Tum

दोस्त " खट खट... आ गई तुम ... आओ अंदर आओ नितिन ने सुधा से कहा ..... सकुचाती घबराती सुधा अपने बांस के कहने पर उससे मिलने एक होटल रूम में पहुँची थी दिल और दिमाग के बीच झूलती सुधा अपने बेटे रेहान की जान बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थी उसे अपने बेटे के कैंसर के इलाज के लिए 10लाख रुपए का कर्ज चाहिए था पति रहा नही था एक विधवा office मे काम करके जैसे तैसे गुजर बसर कर रही थी की बेटे को कैंसर जैसी बीमारी ने घेर लिया सब जगह से निराश हो चुकी सुधा बस office का एक साथी दोस्त मोहन कुछ कोशिश कर रहा था मगर अबतक वो भी नाकाम था आखिर सुधा ने बांस से विनती की तो उसने एक शर्त रखी मदद की.. और शर्त थी वो होटल का कमरा था जहां सुधा को अपने बांस के साथ कुछ वक्त बिताना था दिमाग कहता यह गलत है पर बेटे का बीमार चेहरा आँखों के सामने आते ही दिल उसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता अजीब से कशमकश में उलझी सुधा के कदम कब उसे उस रूम तक ले आए उसे पता ही नहीं चला जैसे ही बांस ने उसके असंतुलित मन मस्तिष्क का फायदा उठाना चाहा ,उसी वक्त अचानक से सुधा को एक call आई -मैडम आपकी किडनी मैच हो गई है "यू कैन डोनेट दैट..उस callके बाद सुधा के विचारों पर पड़ी धूल छट गई और अब उसे सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा था अब उसके मन और मस्तिष्क से एक ही आवाज आ रही थी कि अस्मिता को बेचने से बेहतर है कि किडनी को ही ... और तेज कदमों से बाहर जाने को हुई तो नितिन ने उसका रास्ता रोककर कहा -हाथ आया शिकार कैसे जाने दूं भले ही तुमहारी प्रोब्लम सोल्व हो गई हो मगर मे प्यासा हूं ओर इतना खर्चा किया देखो जरा कमरे को..... सुधा गिडगिडाने लगी मगर नितिन ने उसपर हमला कर दिया तभी कमरे की बेल फिर से बजी ..सुधा खुदको सिमेटती दूर हुई नितिन ने दरवाजा खोला तो सामने मोहन खडा था वो भी उसीके office मे काम करता था नितिन मोहन को देखकर बोला-तुम... तुम यहां कैसे .. सुधा मोहन को देखकर भागकर रोती उससे लिपट गई मोहन ने उसे चुप कराते कहा -सप्राइज सर..नितिन मोहन को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था तभी नितिन की पत्नी आकृति वहां आ गई मोहन ने आकृति से कहा-देखिए भाभीजी सुधा और मैने कैसे सजावट की आप दोनों के लिए ..आकृति नितिन से आकर लिपट गई और सप्राइज के लिए थैंकयू कहने लगी घबराहट भरे नितिन ने भी हां मे हां मिलाते मोहन सुधा को थैंकयू कहा ओर दोनों ने बांय कहकर कमरे से रवानगी कर ली ..सुधा बोली-मोहन तुम.... यहां कैसे .... मोहन-रेहान के इलाज के लिए अपनी बाइक और मां की आखिरी निशानी उनका घर बेचकर..... लेकिन जब अस्पताल पहुंचा तो तुम्हें आटो से होटल आता देख ओर यहां नितिन सर को देखकर सब समझ गया.. बस मैने तुम्हें बचाने को पहले फोन किया ओर भाभी को नितिन सर सप्राइज देने का कहकर यहां बुला लिया ..आखिर हम दोनों दोस्त है ओर दोस्त ही दोस्त के काम आता है कहकर दोनों अस्पताल को चल दिए..
Aa Gayi Tum

Ladki Hui Hai

लड़की हुई है ----- लड़की हुई है? पति ने पूछा... पत्नी को इसी प्रश्न की उम्मीद थी, उसने उम्मीद नहीं की थी कि पति सबसे पहले उसका हाल चाल जानेगा। पत्नी ने सिर्फ पलके झुका दी, पति इसे हाँ समझे या हाँ से ज्यादा कुछ और, लेकिन पत्नी के पलके झुका देने भर में इतनी दृढ़ता थी कि वह कह देना चाहती है कि हाँ लड़की हुई है और वह इसे पालेगी, पढ़ाएगी ! अब क्या करेगी तू? पति ने पूछा... पालूंगी, और क्या करुँगी.... शादी कैसे करेगी ? , अभी तो पैदा हुई है जी , शादी के नाम पर अभी क्यों सूखने पढ़ गये आप.... तू जैसे जानती नहीं, तीन तीन बेटिया हो गयी हैं, हाथ पहले से टाइट है, शादी कोई ऐसे ही तो हो नहीं जाती ! कहा था टेस्ट करा लेते है, लेकिन सरकार भी जीने नहीं देती साली, मन क्यों छोटा करते हैं जी आप ,भगवान् ने भेजी है, अपने आप करेगा इंतजाम, पत्नी ने दिलासा दिया... भगवान! हा हा। भगवान ने ही कुछ करना होता तो लड़का न दे देता ! कुछ जीने का मकसद तो रहता, साले ने काम धंधे में भी ऐसी पनोती डाली है की रोटी तक पूरी नहीं होती! ऊपर से तीन तीन बेटिया और ये नंगा समाज ! पत्नी प्रसव पीड़ा भूल गयी थी, पति की पीड़ा उसे बड़ी लगने लगी एकाएक ! उसने पति की झोली में बेटी डाल दी ! कंधे पर हाथ रख कर रुंधे गले से बोली! गला घोंट देते हैं ! अभी किसी को नहीं पता की जिन्दा हुई है या मरी हुई, दाई को मैं निबट लूंगी ! पति का बदन एक दम से सन्न पड़ गया, वह कभी पत्नी के कठोर पड़ चुके चेहरे की ओर देखता तो कभी नवजात बेटी के चेहरे को ! उसने एकाएक बेटी को सीने से लगा लिया! भीतर प्रकाश का बड़ा सूरज चमकने लगा! बेटी ने पिता के कान में कह दिया था पापा आप चिंता न करें मैं आपके टाइट हाथ खोलने के लिए ही आई हूं। पिता के सीने से लगी बेटी को देखकर पत्नी की आँखे आंसुओ से टिमटिमाने लगी, पति ने आगे बढ़कर पत्नी के आंसू पोंछे और भीतर लम्बी सांस भर कर बोला, हम इसे पालेंगे पार्वती..! 🙏🙏🙏🙏🙏
Ladki Hui Hai

Janm Kya Hai

जन्म_क्या_है? जन्म वह भावनाओं का सैलाब होता है जो किसी के पैदा होते ही पैदा होने वाले से जुड़े लोगों को अपने भावनाओं में बहा कर ले जाता है,जन्म वो एकमात्र दिन है जब आप पैदा हुए तो आपके रोने पे माँ मुस्कुराई थी उसके बाद सृष्टि ने वो दिन नहीं देखा जब आपके रोने पे माँ मुस्कुराई हो! जन्म सबका शायद किसी मकसद के लिए होता है? पर इस मकसद का हर किसी जन्म लेने वाले को पता ही नहीं होता शायद जन्म लेने वाले जन्म लेते हैं निर्भर हो जाते हैं जन्म देने वालों के ऊपर और तब तक निर्भर रहते हैं,जब तक वह खुद आत्मनिर्भरता की अवस्था में नहीं पहुंचते। इस दुनिया के 99% लोग कभी यह नहीं सोच पाते कि तुम्हारा जन्म किस लिए हुआ है तुम किस मकसद से इस दुनिया में आए हो और किन कारणों से तुम्हारा जन्म सिद्ध होगा या तुम्हारा जन्म लेना सफल होगा? जन्म देकर किसी के जन्म को सफल करने वाली जननी कि प्रसव पीड़ा के दौरान उस का घुटता हुआ दम टूटती हुई सांसे शायद किसी मकसद के लिए किसी को जन्म देते समय जद्दोजहद कर रही होती हैं! और एक नन्ही सी किलकारी के साथ रोने की आवाज के साथ अपनी उखड़ी हुई सांसे भूल वह जननी नवजात के जन्मने पर उसके रोते समय मुस्कुराती है परंतु इस बात की साक्षी कुदरत होती है या कोई उनके सामने खड़ा हुआ इंसान इस बात को समझ पाता है और इस कठिन अनुभव से गुजरने वाली उस जननी से बेहतर जन्म देने के महत्व को शायद ही कोई और दूसरा समझ पाएगा कि एक मां जन्म देते समय कितनी पीड़ा में होती है । एक जननी का जन्म देना ही मकसद होता है और वह जन्म देती है परंतु जन्म लेने वाले को अपने मकसद का भान नहीं होता कि तुम्हारा जन्म किस लिए हुआ है जिस दिन जन्म देने वाली जननी की तरह जन्म लेने वाले भी अपने मकसद को समझने लगे तो शायद जन्म देने वाली और जन्म लेने वाले दोनों समकक्ष खड़े दिखेंगे और दुनिया मैं लोगों का नजरिया कुछ अलग ही होगा। जन्म को लेकर तमाम बातें या भ्रांतियां कह लो या कपोल कल्पना कह सकते हैं सुनने को मिलती है की लाख 84 योनियों के बाद इंसान के रूप में कोई जन्म लेता है इतनी कठिन दौड़ के बाद एक इंसानी रूप में पैदा होने वाले प्राणी अपने जन्म का महत्व नहीं समझ पाते इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है। जिस तरह से जन्म देने वाली ने अपने जन्म देने वाले मकसद से इंसानों को जन्म दिया है उस मकसद से इंसान रूबरू होकर अपने जन्म लेने के मकसद को जान ले तो बेहतर होगा नहीं तो जिस तरह से जन्म लिया है उसी तरह इस दुनिया से रवानगी भी होगी, इंसानों का खेल केवल ढाई किलो वजन पर ही टिका हुआ है पैदा होकर भी लोग ढाई किलो के इस दुनिया में लोग आते हैं, उसी तरह एक लोटे में ढाई किलो हस्तियों में ही सिमट कर चले जाते हैं। 😍✍ 🙏🙏
Janm Kya Hai

Ladke Ko Ladki Se Pyar

दिल छू लेगी ये Story एक बार जरूर पढें..................* . एक लड़के को अपनी ही क्लास की लड़की से प्यार हो गया पर वो कह नही पा रहा था क्योकि वो लड़की अमीर थी।.....वह लड़की बहुत ही खुबसूरत थी।.....वो कई बार अपने प्यार का इजहार करना चाहता था पर बार बार उसे अपनी गरीबी का एहसास हो जाता था तभी वो कभी कह ना सका।......लड़की के लिये उसके दिल मे प्यार और बढ़ता गया।.....दिन बीतते गये. स्कूल का आखिरी दिन आ गया।......लड़का अपने घर से स्कूल आ रहा था तभी उसे रास्ते मे उसी लड़की की फोटो मिली। लड़का बहुत खुश हुआ,और उसे अपने प्यार की आखिरी निशानी समझ कर रख लिया। समय बीतता गया लड़का बड़ा होकर उस लड़की को जिंदगी भर तलासता रहा पर वो ना मिली।.....कुछ दिनो बाद लड़के की शादी एक खुबसुरत लड़की से हो गयी। लकिन वो आज भी लड़की से प्यार करता था।......एक दिन वो उसी लड़की की फोटो देख रहा था तो उसकी पत्नी ने पुछा" कि ये कौन है और आपको कहां से मिली!?"लड़के ने कहा कि तुम इसे जानती हो? लड़की ने कहा "ये मेरी बचपन की फोटो है । मै इक लड़के से प्यार करती थी और उसे देने जा रही थी पर रास्ते मे खो गयी थी। शायद भगवान को मेरा प्यार मंजूर ना था।"लड़के ने उस लड़के का नाम पूछा और कहा कि तुम आज भी उससे प्यार करती हो?लड़की ने नाम बताया और कहा मै उसके सिवाय और किसी से प्यार नही करती".....लड़के ने नाम सुना और रोते हुये अपनी बचपन की फोटो दिखायी और कहा कि क्या ये ही वो लड़का हैँ....लड़की ने कहा हां तो क्या आप ही वो......???दोनो अपनी 2 किस्मत पे रोकर खुश होते है कि उन्हे अपना प्यार मिल गया..... अगर प्यार सच्चा हो तो खुदा को भी उसे मिलाना पड़ ता है...... 🙏 अगर आप को मेरी पोस्ट अच्छी लगी तो प्लीज़ कमेंट. Or follow jarur kre ....!😢😢😢😢😢 🙏 🙏
Ladke ko ladki se pyar

Do Roop

दो रूप शांति के तीनों बेटे बहू शहर में बस चुके थे लेकिन उसका गांव छोड़ने का मन नहीं हुआ इसलिए अकेले ही रहती थी वह प्रतिदिन अपने नियम अनुसार मंदिर दर्शन करके वापस आ रही थी की रास्ते मे उसका संतुलन बिगड़ा और गिर पड़ी गांव के लोगों ने उठाया, पानी पिलाया और समझाया 'अब इस अवस्था में अकेले रहना उचित नहीं ..तीन बेटे बहुए है किसी भी बेटे के पास चली जाओ ..शांति ने भी परिस्थिति को स्वीकार कर बेटे बहुओं को ले जाने के लिए कहने हेतु फोन करने का मन बना लिया शांति की तीन बहुएँ थी एक बड़ी सुमन अति आज्ञाकारी ,मंझली गीता थोड़ी आज्ञाकारी और छोटी सुधा जिसे वो कड़वी बहू कहती थी कारण शांति अति धार्मिक थी कोई व्रत त्यौहार आता पहले से ही तीनों बहुओं को सचेत कर देती बडी सुमन खुशी खुशी व्रत करती मंझली पहले नानुकर करती फिर मान जाती थी लेकिन सुधा जिसे वो कड़वी बहू कहती विरोध पर उतर जाती -मां जी आप हर त्योहार पर व्रत रखवा कर उसके आनंद को कष्ट में परिवर्तित कर देती हैं.. शांति -तेरी तो जुबान लड़ाने की आदत है कुछ व्रत तप कर ले आगे तक साथ जाऐगे समझी अक्सर दोनों की किसी न किसी बात पर बहस हो जाती गुस्से में एक दिन शांति ने कह दिया था -तू क्या समझती है बुढापे में मुझे तेरी जरूरत पड़ने वाली है तो अच्छी तरह समझ ले। सड़ जाउंगी लेकिन तेरे पास नहीं आउंगी... इसीलिए सबसे पहले उसने बडकी सुमन बहू को फोन किया -गिर गई हूं बहू आजकल कई बार ऐसा हो गया है। सोचती हूं तुम्हारे पाया ही आ जाऊं.. सुमन - कया...नवरात्र में.. अभी नहीं मांजी.. नंगे पांव रह रही हूं आजकल किसी का छुआ भी नहीं खाती...मे तो ..फिर मंझली गीता को भी फोन किया लेकिन उसने भी बहाना कर टाल दिया की वो मायके जा रही है पति बच्चो संग दो महीनों को..अब जब बडकी मंझली दोनों ही टाल चुकी तो कड़वी बहूको फोन करने का कोई फायदा नहीं था और अहम अभी टूटा था लेकिन खत्म नहीं हुआ था फोन पर हाथ रख आने वाले कठिन समय की कल्पना करने लगी थी तभी फोन की घंटी बजी -आवाज़ से ही समझ गई थी कड़वी है -गिर गये ना.. आपने तो बताया नहीं लेकिन मैंने भी जासूस छोड़ रखे हैं पोते को भेज रही हूं लेने...क्या तुझे मेरे शब्द याद नहीं.. "जिंदगी भर नहीं भूलूगी आपने कहा था सड़ जाउंगी तो भी तेरे पास नहीँ आउंगी तभी मैंने व्रत ले लिया था इस बुजुर्ग मां को कभी सड़ने नहीं देना है मेरा तप अब शुरू होगा..आखिर मां हो मेरी ओर मां को अब अपने बच्चो को आर्शिवाद देने अपने घर आना ही होगा ..यही तो असली व्रत है तप है अपने बुजुर्ग की सेवा और अब कोई बहाना नही आपका पोता पहुंचने वाला होगा ..शांति सोच रही थी सचमुच कितनी गलत थी वो पूजा पाठ को महत्व दिया मगर प्यार और सम्मान देनेवाली को हमेशा कडवी कहा ...दो रूप होते है बहुओ के एक केवल बहु का दूसरा बेटी का ...आज से वो भी मेरा दूसरा रुप देखेगी मां का ...ममतामयी मां का...कहकर पलके भीगने लगी.
Do roop

Pati Ka Anokha Pyaar

🌹🌿🌹🌿🌹पति का अनोखा प्यार🌹🌿🌹🌿🌹 एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की। शादी के बाद दोनो की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी। वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़ किया करता था। लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग (skinDisease) से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी। खुद को इस तरह देख उसके मन में डर समाने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई, तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी। इस बीच एकदिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसका accident हो गया। Accident में उसने अपनी दोनो आँखें खो दी। लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनो की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही। समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी। वह बदसूरत हो गई, लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा। एकदिन उस लड़की की मौत हो गई। पति अब अकेला हो गया था। वह बहुत दु:खी था. वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था। उसने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाविधि पूर्ण की और शहर छोड़कर जाने लगा. तभी एक आदमी ने पीछे से उसे पुकारा और पास आकर कहा, “अब तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे? इतने साल तो तुम्हारी पत्नितुम्हारी मदद किया करती थी.” पति ने जवाब दिया, “दोस्त! मैं अंधा नहीं हूँ। मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था। क्योंकि यदि मेरी पत्नि को पता चल जाता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूँ, तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता। इसलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया. वह बहुत अच्छी पत्नि थी. मैं बस उसे खुश रखना चाहता था। सीख-- खुश रहने के लिए हमें भी एक दूसरे की कमियों के प्रति आखे बंद कर लेनी चाहिए.. और उन कमियों को नजरन्दाज कर देना चाहिए। 🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
Pati Ka Anokha Pyaar

Maa Beti Ka Rishta

माँ-बेटी का रिश्ता . मेरे पड़ोस में एक बारह साल की बच्ची रहती है। . पहले उसके व्यवहार से मुझे लगता था कि वह बहुत जिद्दी और घमंडी है। . उसके पापा साधारण सी कोई नौकरी करते है, पर उसकी हर इच्छा को जरुर पूरी करते है। . काफी मन्नतो के बाद उनके घर संतान हुई थी। . एक बार उसने अपने घर में नई चप्पल के लिये बखेरा खड़ा कर दिया। . उसके पापा को आज ही सैलरी मिली थी। . पापा ने काफी खूबसूरत चप्पल लाकर उसे दी। . चप्पल लेकर वो काफी खुश थी। उस दिन उसने चप्पल पहन के खुब उछल-कुद की। . पर अगले दिन आश्चर्य चकित रह गया मैं, जब वो अपनी माँ से कह रही थी कि ये नई चप्पल मैँ नहीं पहनुंगी, मुझे अच्छी नहीं लग रही है। . पुराना वाली ज्यादा अच्छी है। . सुनकर थोड़ा गुस्सा आया मुझे, . फिर शाम को मेने उससे पूछा कि जब चप्पले नहीं पहननी थी, तो इतनी महँगी क्यों खरीदवाई .... . और एक दिन पूरा पहन के क्यों घूमी ?? . अब तो वापस भी नही हो सकती ये चप्पल...!!! . मेरी बात सुनकर वो हँसने लगी... . और बोली कि, भैया आप बुद्धु ही रह जाओगे.. . वो तो मम्मी की चप्पल घिस गई थी, नई चप्पल अपने लिये खरीदवा नहीं रही थी। . वो तो सारा प्यार मुझ पे लुटा देना चाहती है। . बस मै बहाने से चप्पल खरीदवा के पहन ली और इसलिये घूमी की दुकान वाले भैया को वापस ना की जा सके। . अब मम्मी उस चप्पल को पहन के कहीं भी आ जा सकेंगी। . इतनी कम उम्र मे माँ के लिये इतनी प्यारी सोच देख के मैं दंग रह गया। . सच में माँ-बेटी का रिश्ता अनमोल है.
Maa beti ka rishta

Ramlal Tum Apni Biwi

🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔 "रामलाल तुम अपनी बीबी से इतना क्यों डरते हो? "मैने अपने नौकर से पुछा।। "मै डरता नही साहब उसकी कद्र करता हूँ उसका सम्मान करता हूँ।"उसने जबाव दिया। मैं हंसा और बोला-" ऐसा क्या है उसमें। ना सुरत ना पढी लिखी।" जबाव मिला-" कोई फरक नही पडता साहब कि वो कैसी है पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है।" "जोरू का गुलाम।"मेरे मुँह से निकला।" और सारे रिश्ते कोई मायने नही रखते तेरे लिये।"मैने पुछा। उसने बहुत इत्मिनान से जबाव दिया- "साहब जी माँ बाप रिश्तेदार नही होते। वो भगवान होते हैं।उनसे रिश्ता नही निभाते उनकी पूजा करते हैं। भाई बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं , दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है। आपका मेरा रिश्ता भी दजरूरत और पैसे का है पर, पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिये हमारी हो जाती है अपने सारे रिश्ते को पीछे छोडकर। और हमारे हर सुख दुख की सहभागी बन जाती है आखिरी साँसो तक।" मै अचरज से उसकी बातें सुन रहा था। वह आगे बोला-"साहब जी, पत्नी अकेला रिश्ता नही है, बल्कि वो पुरा रिश्तों की भण्डार है। जब वो हमारी सेवा करती है हमारी देख भाल करती है , हमसे दुलार करती है तो एक माँ जैसी होती है। जब वो हमे जमाने के उतार चढाव से आगाह करती है,और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ क्योकि जानता हूँ वह हर हाल मे मेरे घर का भला करेगी तब पिता जैसी होती है। जब हमारा ख्याल रखती है हमसे लाड़ करती है, हमारी गलती पर डाँटती है, हमारे लिये खरीदारी करती है तब बहन जैसी होती है। जब हमसे नयी नयी फरमाईश करती है, नखरे करती है, रूठती है , अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब बेटी जैसी होती है। जब हमसे सलाह करती है मशवरा देती है ,परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है, झगडे करती है तब एक दोस्त जैसी होती है। जब वह सारे घर का लेन देन , खरीददारी , घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है। और जब वही सारी दुनिया को यहाँ तक कि अपने बच्चो को भी छोडकर हमारे बाहों मे आती है तब वह पत्नी, प्रेमिका, अर्धांगिनी , हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हमपर न्योछावर करती है।" मैं उसकी इज्जत करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ साहब ।" मैं उसकी बात सुनकर अकवका रह गया।। एक अनपढ़ और सीमित साधनो मे जीवन निर्वाह करनेवाले से जीवन का यह मुझे एक नया अनुभव हुआ ।👫👫👫👫🌹🌹 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ✅ बात अच्छी लगे तो शेयर करें।
Ramlal Tum Apni Biwi

Tyag Hindi Story

त्याग" मां की मृत्यु शोक मे इकट्ठा हुए लोगों के बीच पंडित जी ने घर की परांपरा को आगे बढाने के लिए घरवालों को बुलाया जिसमें मृत्यु के वंशज अपनी प्रिय वस्तु का त्याग करते थे ,सबसे पहले बडे बेटे ने कहा -वो अबसे लाल रंग के कपडे नही पहनेगा... सारी बिरादरी वाह वाह करने लगी वही गमगीन बुजुर्ग पिता सोचने लगे -बडा बेटा बडी कम्पनी के इतने बडे पद पर है जहां सिर्फ लाइट कलर पहने जाते है शायद ही उसे कभी लाल रंग के कपडे पहनने पडे, वाह मेरे बडे बेटे वाह... पंडित ने मंझले बेटे से तो वो बोला-मे आज से गुड नही खाऊंगा घरके सभी जानते है की उसे गुड से एलर्जी थी पर सबके आगे अपनी इज्जत बढाने का मौका मिल गया ऐसा कहकर और लगे हाथ त्याग भी हो गया ..बुजुर्ग पिता सोचने लगे जब मां बीमार थी तो तीनो बेटों मे से कोई उसके पास नही रहा ओर अब बिरादरी मे अपना रूतबा बना रहे है कितना खुश रहती थी कहती थी मुझे मरने पर चार कंधे मेरे अपने घर के होगे तीन मेरे बेटे के ओर चौथा मेरे पति का मगर ... सब काम मे व्यस्त मेरे बेटे उसके अंतिम दर्शनो के लिए भी नही आये ,कितने यत्न करके विदेश मे भेजा था काम करने की उनकी इच्छाओं के लिए ...तभी सबसे छोटे बेटे को पंडित ने आवाज दी तुम कया त्याग करोगे बेटा.. छोटा बेटा- पंडित जी मे अपने समय का त्याग करूंगा .....हां आजसे मे अपने समय का त्याग करूंगा वो जो वक्त मे office से आकर मोबाइल टीवी और अन्य मंनोरंजन को देता था आजसे वो मेरे पिता का हुआ... मे अपने पिता को अपने साथ रखूंगा मेरे दो भगवानो मे से एक को खो चुका हूं... लेकिन दूसरे भगवान की इतनी सेवा करूंगा ताकि मुझे देखकर ओर बच्चो को समझ आ जाए कि उनकी असली दौलत ये रूपये पैसे नही उनके माता पिता है ओर वो भी ये अनमोल दौलत कभी ना खोये सहजकर रखे..मे बदनसीब हूं जो अपनी अनमोल दौलत मे एक नायाब कोहिनूर हीरा अपनी मां को खो चुका हूं ओर रोते हुए छोटा बेटा अपने पिता के पैरों मे गिर गया, सभी कार्य निपटने के बाद छोटा बेटा पिता को अपने घर ले गया जहां पिता कुछ दिनों बाद खुश रहने लगे थे बस पत्नी कि कमी खलती मगर पोते पोतियो के प्यार मे सबकुछ भूल जाते office से आकर बेटा उनके पास बैठ घंटों बातें करता सलाह मशवरा करता वही बहू बेटी की तरह उनका भरपूर खयाल करती ... दोस्तों दुनिया कि सबसे अनमोल दौलत मां बाप है जो हमें दुनिया मे लाते हे वो हमारा नही, ब्लकि हम उनके शरीर का हिस्सा है दोस्तों ये दौलत कभी मत खोना।
Tyag Hindi Story

Aarti Ki Kahani

आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली। आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा। दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी. एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई। आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…” बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.” लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा …. अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !” कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?” “क्या करना होगा ?”, आरती ने पूछा. पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है। कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.” पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी। यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?” आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई. ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया। साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती। रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती। सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती। कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी। धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी। किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी। बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी। छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी। जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी। इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … ! वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!” पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा !!!” "बेटी को सही रास्ता दिखाये, माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे" पोस्ट अच्छा लगे तो प्लीज शेयर करना मत भूलना
Aarti Ki Kahani

Jaisey He Train

जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए। ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी। कह टीसी आगे चला गया। पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे। बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे। लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे। साब बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी। टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा। सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ। आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं जाने दो न साब। अबकि बार पत्नी ने कहा। तो फिर ऐसा करो चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ दोनों बैठे रहो। ये लो साब रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला। नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी।देश में बुलेट ट्रेन जो आ रही है।एक लाख करोड़ का खर्च है।कहाँ से आयेगा इतना पैसा ? रसीद बना-बनाकर ही तो जमा करना है।ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही। चलो जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ। इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला। आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो। पास ही खड़े दो यात्री बतिया रहे थे। ये बुलेट ट्रेन क्या बला है ? बला नहीं जादू है जादू।बिना पासपोर्ट के जापान की सैर। जमीन पर चलने वाला हवाई जहाज है और इसका किराया भी हबाई सफ़र के बराबर होगा बिना रिजर्वेशन उसे देख भी लो तो चालान हो जाएगा। एक लाख करोड़ का प्रोजेक्ट है। राजा हरिश्चंद्र को भी ठेका मिले तो बिना एक पैसा खाये खाते में करोड़ों जमा हो जाए। सुना है अच्छे दिन इसी ट्रेन में बैठकर आनेवाले हैं। उनकी इन बातों पर आसपास के लोग मजा ले रहे थे। मगर वे दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे ऐसे बैठे थे मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके सोग में जा रहे हो। कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए? क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा? नहीं-नहीं। आखिर में पति बोला- सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए। ऐसा करते हैं नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट। पत्नी के कहा। मगर मुन्ने के कम करना और पति की आँख छलक पड़ी। मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी। फिर आँख पोंछते हुए बोली- अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी- इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो। उसकी आँख फिर छलके पड़ी। अरी पगली हम गरीब आदमी हैं हमें मोदीजी को वोट देने का तो अधिकार है पर सलाह देने का नहीं। रो मत विनम्र प्राथना है जो भी इस कहानी को पढ चूका है उसने इस घटना से शायद ही इत्तिफ़ाक़ हो पर अगर ये कहानी शेयर करे कॉपी पेस्ट करे पर रुकने न दे शायद रेल मंत्रालय जनरल बोगी की भी परिस्थितियों को समझ सके। उसमे सफर करने वाला एक गरीब तबका है जिसका शोषण चिर कालीन से होता आया है।

Jaisey He Train

Rishtey Hindi Story

रिश्ते शादी के 19 साल बाद, एक बार पत्नी ने अपने पति के लिए बहुत ही खराब खाना पकाया,सब्जी कच्ची पकी थी, दाल में नमक और मिर्च कुछ ज्यादा ही था.. इधर सलाद में भी नमक कुछ कम नहीं था.. डिनर टेबल पर पति बिल्कुल खामोश था और चुपचाप खाना खा लिया,पत्नी माजरा समझ गई थी, लेकिन दुखी मन से किचन में खाने के बाद किचन में चीजों को जमा रही थी.. इसी बीच पति आया और पत्नी को देखकर मुस्कुराने लगा पत्नी सोचने लगी इतना सब होने के बाद भी मुस्कुराने की क्या वजह होगी पत्नी ने पति से पूछा- आज मुझसे पूरा खाना बिगड़ गया और आपके खाने का पूरा मजा खराब हो गया, फिर भी यह मुस्कुराहट पति- आज रात खाने ने मुझे अपनी शादी के पहले दिन की याद दिला दी, उस दिन भी तुम्हारे पकाए खाने का स्वाद ऐसा ही था, तो मैंने सोचा क्यों न आज 19 साल बात फिर से उसी दिन की तरह तुमसे बात की जाए पत्नी की आंखें भर आईं.. क्योंकि सच्चे रिश्ते कभी मरते नहीं है । रिश्ते में दरार उस पिघली हुई आइसक्रीम की तरह होती है जिसे आप लाख चाहने पर भी उसके मूल स्वरूप में नही ला सकते । रिश्तों को संजोईये,संभालिये,और आइसक्रीम की भांति कभी भी पिघलने मत दीजिये।
Rishtey Hindi Story

Patni Jab Swayan

पत्नी जब स्वयं माँ बनने का समाचार सुनाये और वो खबर सुन, आँखों में से h खुशी के आंसू टप टप गिरने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' नर्स द्वारा कपडे में लिपटा कुछ पाउण्ड का दिया जीव, जवाबदारी का प्रचण्ड बोझ का अहसास कराये तब ... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' रात - आधी रात, जागकर पत्नी के साथ, बेबी का डायपर बदलता है, और बच्चे को कमर में उठा कर घूमता है, उसे चुप कराता है, पत्नी को कहता है तू सो जा में इसे सुला दूँगा। तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' मित्रों के साथ घूमना, पार्टी करना जब नीरस लगने लगे और पैर घर की तरफ बरबस दौड़ लगाये तब ... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' 'हमने कभी लाईन में खड़ा होना नहीं सीखा' कह, हमेशा ब्लैक में टिकट लेने वाला, बच्चे के स्कूल Admission का फॉर्म लेने हेतु पूरी ईमानदारी से सुबह ८ बजे लाईन में खड़ा होने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' जिसे सुबह उठाते साक्षात कुम्भकरण की याद आती हो और वो जब रात को बार बार उठ कर ये देखने लगे की मेरा हाथ या पैर कही बच्चे के ऊपर तो नहीं आ गया एवम् सोने में पूरी सावधानी रखने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' असलियत में एक ही थप्पड़ से सामने वाले को चारो खाने चित करने वाला, जब बच्चे के साथ झूठमूठ की fighting में बच्चे की नाजुक थप्पड़ से जमीन पर गिरने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुद भले ही कम पढ़ा या अनपढ़ हो, काम से घर आकर बच्चों को 'पढ़ाई बराबर करना, होमवर्क पूरा किया या नहीं' बड़ी ही गंभीरता से कहे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुद ही की कल की मेहनत पर ऐश करने वाला, अचानक बच्चों के आने वाले कल के लिए आज comprises करने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' ऑफिस का बॉस, कईयों को आदेश देने वाला, स्कूल की पेरेंट्स मीटिंग में क्लास टीचर के सामने डरा सहमा सा, कान में तेल डाला हो ऐसे उनकी हर Instruction ध्यान से सुनने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुद की पदोन्नति से भी ज्यादा बच्चे की स्कूल की सादी यूनिट टेस्ट की ज्यादा चिंता करने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुद के जन्मदिन का उत्साह से ज्यादा बच्चों के Birthday पार्टी की तैयारी में मग्न रहे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनाता है' हमेशा अच्छी अच्छी गाडियो में घूमने वाला, जब बच्चे की सायकल की सीट पकड़ कर उसके पीछे भागने में खुश होने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुदने देखी दुनिया, और खुद ने की अगणित भूले बच्चे ना करे, इसलिये उन्हें टोकने की शुरुआत करे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' बच्चों को कॉलेज में प्रवेश के लिए, किसी भी तरह पैसे ला कर अथवा वर्चस्व वाले व्यक्ति के सामने दोनों हाथ जोड़े तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' 'आपका समय अलग था, अब ज़माना बदल गया है, आपको कुछ मालूम नहीं' 'This is generation gap' ये शब्द खुद ने कभी बोला ये याद आये और मन ही मन बाबूजी को याद कर माफी माँगने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' लड़का बाहर चला जाएगा, लड़की ससुराल, ये खबर होने के बावजूद, उनके लिए सतत प्रयत्नशील रहे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' बच्चों को बड़ा करते करते कब बुढापा आ गया, इस पर ध्यान ही नहीं जाता, और जब ध्यान आता है तब उसका कोइ अर्थ नहीं रहता तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है'
Patni Jab Swayan

Aasaan Nahin Aurat Hona

#आसान_नहीं_एक_औरत_होना" मैं जब पैदा हुई तो मुझसे बाप रूठ गया , ख़ानदान रूठ गया , जैसे तैसे चलना सीखा , फिर बोलना सीखा , फिर जैसे तैसे बड़ी हुई , स्कूल जाना शुरू किया , मेरी शिक्षा पर भी उंगलियां उठनी शुरू हुईं , स्कूल के लिए साइकिल से जब निकलती थी तो रास्ते में मनचले बाइक से पीछा करना शुरू कर देते थे , जो जी में आए कहते थे , बेहद गंदे और अश्लील शब्दों का प्रयोग कर मेरे ना चाहते हुए भी मुझे पुकारते थे , जैसे मैं उनकी जागीर हूँ । क्लास में जाती तो टीचर की गन्दी निगाह मेरे तन के अंगों पर पड़ती , उसकी भी अश्लील और ओछी हरकतें सहनी पड़ती । फिर कॉलेज का दौर शुरू हुआ , बस में सफ़र करती तो , मनचले किसी न किसी बहाने से मेरे जिस्म के अंगों पर स्पर्श करते , ब्रेक लगती तो मेरे ऊपर आ जाते , मैं अकेली , सहमी हुई सी बेबस लड़की , कुछ न कर पाती थी । कॉलेज के अंदर का माहौल स्कूल से भी ज़्यादा गंदा और अश्लील था , फिर शाम को जब कोचिंग से निकलती , तो मेरे बाप की उम्र के लोग मुझे खा जाने वाली नज़र से देखते , मुझे उस समाज में डर लगने लगा था , जहाँ पर स्त्री को देवी कहा जाता है । दिल में एक ख़ौफ़ होता था कि न जाने मेरे साथ कब और क्या हो जाए , मैं सहमी हुई सी घबराई हुई सी चुपचाप निकल जाती थी । जब शादी का वक़्त आया तो माँ बाप ने भी बोझ समझ कर विदा कर दिया , कुछ वक़्त ससुराल में बिताने के बाद पति का प्यार ख़त्म हो गया , मैं उनके लिए केवल उनकी हवस को शांत करने का सामान बन चुकी थी , सास-ससुर का दुर्व्यवहार , जहेज़ के ताने सहती रही । जब बच्चे हुए तो सारी जवानी अपने पति के लिए और बच्चों के पालन पोषण में कुर्बान कर दिया । और ज़िन्दगी का आख़री पड़ाव आया , जब आँखों में रौशनी ना रही , तो सोचा की अपने बच्चों के साए में जीवन काट लूंगी , लेकिन ऐसा न हुआ , बच्चों ने भी वृद्धाश्रम ( Old Home ) छोड़ दिया , अब जब अपने बच्चों की याद आती है तो कंपते हुए हाँथ आसमान की तरफ उठा कर बच्चों की ख़ुशी और सलामती के लिए दुआ कर , बिलख कर रो के अपना मन हल्का कर लेती हूँ । मैं एक बेटी थी , पत्नी थी , बहू थी , माँ भी थी , परंतु मुझे जीवन के किसी भी पड़ाव पर सम्मान न मिल सका । इस जीवन और इस समाज से बस इतना ही सीखा मैंने , इतना आसान नहीं है एक औरत होना । {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?} मेरा पूरा पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया इस तरह का पोस्ट पढ़ने के लिए आपको अच्छा लगता हो तो मुझे फेंड रिकवेस्ट भेजे या सिर्फ फौलो भी कर सकते हैं हम हमेशा कुछ ना कुछ पोस्ट लेकर ही आएंगे जो आपके दिल को छू जाएगा शुक्रिया आपका धन्यवाद दिल से आपका दोस्त..😭😭 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 . ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे
Aasaan Nahin aurat Hona

Aik Ladki Ki Shadi

एक लड़की की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ एक सिधे साधे लड़के से की जाती है जिसके घर मे एक मां के आलावा और कोई नहीं है। दहेज मे लड़के को बहुत सारे उपहार और पैसे मिले होते हैं । लड़की किसी और लड़के से बेहद प्यार करती थी और लड़का भी लड़की शादी होके आ गयी अपने ससुरालसुहागरात के वक्त लड़का दूध लेके आता है तो दुल्हन सवाल पूछती है अपने पति सेएक पत्नी की मर्जी के बिना पति उसको हाथ लगाये तो उसे बलात्कार कहते है या हक? पति - आपको इतनी लम्बी और गहरी जाने की कोई जरूरत नहीं है बस दूध लाया हूँ पी लिजीयेगा हम सिर्फ आपको शुभ रात्रि कहने आये थे कहके कमरे से निकल जाता है। लड़की मन मारकर रह जाती है क्योंकि लड़की चाहती थी की झगड़ा हो ताकी मैं इस गंवार से पिछा छुटा सकूँ । है तो दुल्हन मगर घर का कोई भी काम नहीं करती। बस दिनभर रहती और न जाने किस किस से बातें करती मगर उधर लड़के की माँ बिना शिकायत के दिन भर चुल्हा चौका से लेकर घर का सारा काम करती मगर हर पल अपने होंठों पर मुस्कुराहट लेके फिरती । लड़का एक कम्पनी मे छोटा सा मुलाजीम है और बेहद ही मेहनती और इमानदार। करीब महीने भर बित गये मगर पति पत्नी अब तक साथ नहीं सोये वैसे लड़का बहुत शांत स्वाभाव वाला था इसलिए वह ज्यादा बातें नहीं करता था बस खाने के वक्त अपनी पत्नी से पूछ लेता था कि कहा खाओगीअपने कमरे मे या हमारे साथ। और सोने से पहले डायरी लिखने की आदत थी जो वह हर रात को लिखता था। ऐसे लड़की के पास एक स्कूटी था वह हर रोज बाहर जाती थी पति के अफीस जाने के बाद और पति के वापस लौटते ही आ जाती थी। छुट्टी का दिन था लड़का भी घर पे ही था तो लड़की ने अच्छे भले खाने को भी गंदा कहके मा को अपशब्द बोलके खाना फेंक देती है मगर वह शांत रहने वाला उसका पति अपनी पत्नी पर हाथ उठा देता है मगर माँ अपने बेटे को बहुत डांटती है। इधर लड़की को बहाना चाहिए था झगड़े का जो उसे मिल गया था वह पैर पटकती हुई स्कूटी लेके निकल पड़ती है। लड़की जो रोज घर से बाहर जाती थी वह अपने प्यार से मिलने जाती थी लड़की भले टूटकर चाहती थी लड़के को मगर उसे पता था की हर लड़की की एक हद होती है जिसे इज्जत कहते है वह उसको बचाये रखी थी। इधर लड़की अपने प्यार के पास पहुँचकर कहती है। अब तो एक पल भी उस घर मे नहीं रहना है मुझे । आज गंवार ने मुझपर हाथ उठाके अच्छा नही किया । लड़का - अरे तुमसे तो मैं कब से कहता हूँ की भाग चलो मेरे साथ कहीं दूर मगर तुम हो की आज कल आज कल पे लगी रहती हो। लड़की - शादी के दिन मैं आई थी तो तुम्हारे पास। तुम ही ने तो लौटाया था मुझे । लड़का - खाली हाथ कहा तक भागोगे तुम ही बोलोमैंने तो कहा था कि कुछ पैसे और गहने साथ ले लो तुम तो खाली हाथ आई थी। आखिर दूर एक नयी जगह मे जिंदगी नये सिरे से शुरू करने के लिए पैसे तो चाहिए न? लड़की - तुम्हारे और मेरे प्यार के बारे मे जानकर मेरे घरवालो ने बैंक के पास बुक एटी एम और मेरे गहने तक रख लिये थे। तो मैं क्या लाती अपने साथ । हम दोनों मेहनत करके कमा भी तो सकते थे। लड़का - चलाकर इंसान पहले सोचता है और फिर काम करता है। खाली हाथ भागते तो ये इश्क का भूत दो दिन मे उतर जाता समझी? और जब भी तुम्हें छुना चाहता हूँ बहुत नखरे है तुम्हारे । बस कहती हो शादी के बाद । लड़की - हाँ शादी के बाद ही अच्छा होता है ये सब और सब तुम्हारा तो है। मैं आज भी एक कुवारी लड़की हूँ । शादी करके भी आज तक उस गंवार के साथ सो न सकी क्योंकि तुम्हें ही अपना पति मान चुकी हूँ बस तुम्हारे नाम की सिंदूर लगानी बाकी है। बस वह लगा दो सबकुछ तुम अपनी मर्जी से करना। लड़का - ठीक है मैं तैयार हूँ । मगर इस बार कुछ पैसे जरूर साथ लेके आना मत सोचना हम दौलत से प्यार करते हैं । हम सिर्फ तुमसे प्यार करते है बस कुछ छोटी मोटी बिजनेस के लिए पैसे चाहिए । लड़की - उस गंवार के पास कहा होगा पैसा मेरे बाप से 3 लाख रूपया उपर से मारूती कार लि है। बस कुछ गहने है वह लेके आउगी आज। लड़का लड़की को होटल का पता देकर चला जाता है । लड़की घर आके फिर से लड़ाई करती है। मगर अफसोस वह अकेली चिल्लाती रहती है उससे लड़ने वाला कोई नहीं था। रात 8 बजे लड़के का मैसेज आता है वाटसप पे की कब आ रही हो? लड़की जवाब देती है सब्र करो कोई सोया नहीं है। मैं 12 बजे से पहले पहुँच जाउगी क्योंकि यंहा तुम्हारे बिना मेरी सांसे घुटती है। लड़का -ओके जल्दी आना। मैं होटल के बाहर खड़ा रहूंगा लड़की अपने पति को बोल देती है की मुझे खाना नहीं चाहिए मैंने बाहर खा लिया है इसलिए मुझे कोई परेशान न करे इतना कहके दरवाजा बंद करके अंदर आती है कीपति बोलता है कीवह आलमारी से मेरी डायरी दे दो फिर बंद करना दरवाजा। हम परेशान नहीं करेंगे । लड़की दरवाजा खोले बिना कहती है की चाभीया दो अलमारी की लड़का - तुम्हारे बिस्तर के पैरों तले है चाबी । मगर लड़की दरवाजा नहीं खोलती वल्की जोर जोर से गाना सुनने लगती है। बाहर पति कुछ देर दरवाजा पिटता है फिर हारकर लौट जाता है। लड़की ने बड़े जोर से गाना बजा रखा था। फिर वह आलमारी खोलके देखती है जो उसने पहली बार खोला था क्योंकि वह अपना समान अलग आलमारी मे रखती थी। आलमारी खोलते ही हैरान रह जाती है। आलमारी मे उसके अपने पास बुक एटी एम कार्ड थे जो उसके घरवालो ने छीन के रखे थे खोलके चेक किया तो उसमें वह पैसे भी एड थे जो दहेज मे लड़के को मिले थे। और बहुत सारे गहने भी जो एक पेपर के साथ थे और उसकी मिल्कीयेत लड़की के नाम थी लड़की बेहद हैरान और परेशान थी। फिर उसकी नजर डायरी मे पड़ती है और वह जल्दी से वह डायरी निकालके पढ़ने लगती है। लिखा था तुम्हारे पापा ने एक दिन मेरी मां की जान बचाइ थी अपना खून देकर । मैं अपनी माँ से बेहद प्यार करता हूँ इसलिए मैंने झूककर आपके पापा को प्रणाम करके कहा कीआपका ये अनमोल एहसान कभी नही भूलूंगा कुछ दिन बाद आपके पापा हमारे घर आये हमारे तुम्हारे रिश्ते की बात लेकर मगर उन्होंने आपकी हर बात बताई हमें की आप एक लड़के से बेहद प्यार करती हो। आपके पापा आपकी खुशी चाहते थे इसलिए वह पहले लड़के को जानना चाहते थे। आखिर आप अपने पापा की जो थी और हर बाप अपने के लिए एक अच्छा इमानदार चाहता है। आपके पापा ने खोजकर के पता लगाया की वह लड़का बहुत सी लड़की को धोखा दे चुका है। और पहली शादी भी हो चुकी है पर आपको बता न सके क्योंकि उन्हें पता था की ये जो इश्क का नशा है वह हमेशा अपनों को गैर और गैर को अपना समझता है। ऐक बाप के मुँह से एक बेटी की कहानी सुनकर मै अचम्भीत हो गया। हर बाप यंहा तक शायद ही सोचे। मुझे यकीन हो गया था की एक अच्छा पति होने का सम्मान मिले न मिले मगर एक दामाद होने की इज्जत मैं हमेशा पा सकता हूँ। मुझे दहेज मे मिले सारे पैसे मैंने तुम्हारे ए काउण्ट मे कर दिए और तुम्हारे घर से मिली गाड़ी आज भी तुम्हारे घर पे है जो मैंने इसलिए भेजी ताकी जब तुम्हें मुझसे प्यार हो जाये तो साथ चलेंगे कही दूर घूमने। दहेजइस नाम से नफरत है मुझे क्योंकि मैंने इ दहेज मे अपनी बहन और बाप को खोया है। मेरे बाप के अंतिम शब्द भी येही थे कीकीसी बेटी के बाप से कभी एक रूपया न लेना। मर्द हो तो कमाके खिलाना तुम आजाद हो कहीं भी जा सकती हो। डायरी के बिच पन्नों पर तलाक की पेपर है जंहा मैंने पहले ही साईन कर दिया है । जब तुम्हें लगे की अब इस गंवार के साथ नही रखना है तो साईन करके कहीं भी अपनी सारी चिजे लेके जा सकती हो। लड़की हैरान थी परेशान थीन चाहते हुए भी गंवार के शब्दों ने दिल को छुआ था। न चाहते हुए भी गंवार के अनदेखे प्यार को महसूस करके पलके नम हुई थी। आगे लिखा था मैंने तुम्हें इसलिए मारा क्योंकि आपने मा को गाली दी और जो बेटा खुद के आगे मा की बेइज्जती होते सहन कर जायेफिर वह बेटा कैसा । कल आपके भी बच्चे होंगे । चाहे किसी के साथ भी हो तब महसूस होगी माँ की महानता और प्यार। आपको दुल्हन बनाके हमसफर बनाने लाया हूँ जबरजस्ती करने नहीं। जब प्यार हो जाये तो भरपूर वसूल कर लूँगा आपसेआपके हर गुस्ताखी का बदला हम शिद्दत से लेंगे हम आपसेगर आप मेरी हुई तो बेपनाह मोहब्बत करके किसी और की हुई तो आपके हक मे दुवाये माँग के लड़की का फोन बज रहा था जो भायब्रेशन मोड पे था लड़की अब दुल्हन बन चुकी थी। पलकों से आशू गिर रहे थे । सिसकते हुए मोबाइल से पहले सिम निकाल के तोड़ा फिर सारा सामान जैसा था वैसे रख के न जाने कब सो गई पता नहीं चला। सुबह देर से जागी तब तक गंवार अफीस जा चुका था पहले नहा धोकर साड़ी पहनी । लम्बी सी सिंदूर डाली अपनी माँग मे फिर मंगलसूत्र । जबकि पहले एक टीकी जैसी साईड पे सिंदूर लगाती थी ताकी कोई लड़का ध्यान न दे मगर आज 10 किलोमीटर से भी दिखाई दे ऐसी लम्बी और गाढी सिंदूर लगाई थी दुल्हन ने। फिर किचन मे जाके सासुमा को जबर्दस्ती कमरे मे लेके तैयार होने को कहती है। और अपने गंवार पति के लिए थोड़े नमकीन थोड़े हलुवे और चाय बनाके अपनी स्कूटी मे सासुमा को जबर्दस्ती बिठाकर (जबकी कुछ पता ही नहीं है उनको की बहू आज मुझे कहा ले जा रही है बस बैठ जाती है) फिर रास्ते मे सासुमा को पति के अफीस का पता पूछकर अफीस पहुँच जाती है। पति हैरान रह जाता है पत्नी को इस हालत मे देखकर। पति - सब ठीक तो है न मां? मगर माँ बोलती इससे पहले पत्नी गले लगाकर कहती है कीअब सब ठीक है अफीस के लोग सब खड़े हो जाते है तो दुल्हन कहती है कीमै इनकी धर्मपत्नी हूँ । बनवास गई थी सुबह लौटी हूँ अब एक महीने तक मेरे पतिदेव अफीस मे दिखाई नहीं देंगे अफीस के लोग? ????? दुल्हन - क्योंकि हम लम्बी छुट्टी पे जा रहे साथ साथ। पति- पागल दुल्हन - आपके सादगी और भोलेपन ने बनाया है। सभी लोग तालीया बजाते हैं और दुल्हन फिर से लिपट जाती है अपने गंवार से जंहा से वह दोबारा कभी भी छूटना नहीं चाहती। बड़े कड़े फैसले होते है कभी कभी हमारे अपनों की मगर हम समझ नहीं पाते कीहमारे अपने हमारी फिकर खुद से ज्यादा क्यों करते हैं मां बाप के फैसलों का सम्मान करे क्योंकि ये दो ऐसे शख्स है जो आपको हमेशा दुनियादारी से ज्यादा प्यार करते हैं । 🙏🙏

Aik Ladki ki shadi

Aap Achey Ho

आप अच्छे हो निभा कहां है हमारी लाडली बिटिया। देखो। हम तुम्हारे लिए क्या लाए हैं। घर में घुसते ही नीलेश ने बड़े प्यार से तेज आवाज में कहा। सामने विभा खड़ी थी। उसने इशारे से बताया कि निभा अपने कमरे में है। आज दोपहर में निभा की 12वीं का रिजल्ट आया था। उसका प्रतिशत सहपाठियों के मुकाबले काफी कम था। जब से रिजल्ट आया था वहां आंखों में आंसू लिए बैठी थी। दिन का खाना भी नहीं खाया था उसने। उसकी मम्मी विभा ने नीलेश को फोन करके सब बातें बताईं। अरे मेरी बिटिया कहां है नीलेश ने बिल्कुल उसी अंदाज में कहा जैसे वह बचपन में बेटी के साथ खेला करता था और सामने देख कर भी ना देखने का नाटक किया करता था। निभा ने अपना सिर ऊपर नहीं किया। वैसे ही मूर्तिवत बैठी रही। निभा देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं कहते हुए नीलेश ने नन्हा टेडी निकाला और सामने रख दिया। निभा ने उदास नजर टेडी पर डाली। पहले की बात रहती तो वह निलेश के गले लग जाती। निभा देखो मैं पैटिज लाया हूं और आइसक्रीम भी वही फ्लेवर जो तुम्हें पसंद है। यह कह कर उसने दोनों चीजें निभा के सामने रख दी। पापा प्लीज मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैंने आपकी उम्मीदों को तोड़ा है। आपने मुझे हर सुविधा दी और देखिए मेरे कितने कम नंबर आए। तुमने प्रयास किया वही हमारे लिए बहुत है अब चलो हम लोग जश्न मनाते हैं। विभा इधर आओ कहते हुए नीलेश ने निभा के मुंह में आइसक्रीम वाला बड़ा-सा चम्मच डाल दिया। एक साथ इतनी ठंडी आइसक्रीम मुंह में जाती ही वह उठकर पापा के गले लगकर जोर से रो पड़ी। नीलेश ने उसे रो लेने दिया। अब वह नन्ही बच्ची नहीं थी जो फुसल जाती। नमी निलेश की आंखों में भी उतरी पर वह खुशी बिटिया को वापस पा लेने की थी। अचानक निभा धीरे से बोली आप बहुत अच्छे हैं पापा। निभा की गंभीर आवाज ने निलेश को अंदर से रुला दिया। {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी ?} ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे या फिर मूजे मेसेज() कर के बता बताइएे

Aap achey Ho

Bandar Chaal

एक बार कुछ बंदरों को एक बड़े से पिंजरे में डाला गया और वहां पर एक सीढी लगाई गई| सीढी के ऊपरी भाग पर कुछ केले लटका दिए गए| उन केलों को खाने के लिए एक बन्दर सीढी के पास पहुंचा| जैसे ही वह बन्दर सीढी पर चढ़ने लगा, उस पर बहुत सारा ठंडा पानी गिरा दिया गया और उसके साथ-साथ बाकी बंदरों पर भी पानी गिरा दिया गया| पानी डालने पर वह बन्दर भाग कर एक कोने में चला गया| थोड़ी देर बाद एक दूसरा बन्दर सीढी के पास पहुंचा| वह जैसे ही सीढी के ऊपर चढ़ने लगा, फिर से बन्दर पर ठंडा पानी गिरा दिया गया और इसकी सजा बाकि बंदरों को भी मिली और साथ-साथ दूसरे बंदरो पर भी ठंडा पानी गिरा दिया गया | ठन्डे पानी के कारण सारे बन्दर भाग कर एक कोने में चले गए| यह प्रक्रिया चलती रही और जैसे ही कोई बन्दर सीढी पर केले खाने के लिए चढ़ता, उस पर और साथ-साथ बाकि बंदरों को इसकी सजा मिलती और उन पर ठंडा पानी डाल दिया जाता| बहुत बार ठन्डे पानी की सजा मिलने पर बन्दर समझ गए कि अगर कोई भी उस सीढी पर चढ़ने की कोशिश करेगा तो इसकी सजा सभी को मिलेगी और उन सभी पर ठंडा पानी डाल दिया जाएगा| अब जैसे ही कोई बन्दर सीढी के पास जाने की कोशिश करता तो बाकी सारे बन्दर उसकी पिटाई कर देते और उसे सीढी के पास जाने से रोक देते| थोड़ी देर बाद उस बड़े से पिंजरे में से एक बन्दर को निकाल दिया गया और उसकी जगह एक नए बन्दर को डाला गया| नए बन्दर की नजर केलों पर पड़ी| नया बन्दर वहां की परिस्थिति के बारे में नहीं जानता था इसलिए वह केले खाने के लिए सीढी की तरफ भागा| जैसे ही वह बन्दर उस सीढी की तरफ भागा, बाकि सारे बंदरों ने उसकी पिटाई कर दी| नया बन्दर यह समझ नहीं पा रहा था कि उसकी पिटाई क्यों हुई | लेकिन जोरदार पिटाई से डरकर उसने केले खाने का विचार छोड़ दिया| अब फिर एक पुराने बन्दर को उस पिंजरे से निकाला गया और उसकी जगह एक नए बन्दर को पिंजरे में डाला गया| नया बन्दर बेचारा वहां की परिस्थिति को नहीं जनता था इसलिए वह केले खाने के लिए सीढी की तरफ जाने लगा और यह देखकर बाकी सारे बंदरों ने उसकी पिटाई कर दी| पिटाई करने वालों में पिछली बार आया नया बन्दर भी शामिल था जबकि उसे यह भी नहीं पता था कि यह पिटाई क्यों हो रही है| यह प्रक्रिया चलती रही और एक-एक करके पुराने बंदरों की जगह नए बंदरों को पिंजरे में डाला जाने लगा| जैसे ही कोई नया बन्दर पिंजरे में आता और केले खाने के लिए सीढी के पास जाने लगता तो बाकी सारे बन्दर उसकी पिटाई कर देते| अब पिंजरे में सारे नए बन्दर थे जिनके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था| उनमें से किसी को यह नहीं पता था कि केले खाने के लिए सीढी के पास जाने वाले की पिटाई क्यों होती है लेकिन उन सबकी एक-एक बार पिटाई हो चुकी थी| अब एक और बन्दर को पिंजरे में डाला गया और आश्चर्य कि फिर से वही हुआ| सारे बंदरों ने उस नए बन्दर को सीढी के पास जाने से रोक दिया और उसकी पिटाई कर दी जबकि पिटाई करने वालों में से किसी को भी यह नहीं पता था कि वह पिटाई क्यों कर रहे है| हमारे जीवन भी ऐसा ही कुछ होता है| अन्धविश्वास और कुप्रथाओं का चलन भी कुछ इसी तरह होता है क्योंकि उन हम लोग प्रथाओं और रीति-रिवाजों के पीछे का कारण जाने बिना ही उनका पालन करते रहते है और नए कदम उठाने की हिम्मत कोई नहीं करता क्योंकि ऐसा करने पर समाज के विरोध करने का डर बना रहता है| कोई भी कुछ नया करने की सोचता है तो उसे कहीं न कहीं लोगों के विरोध का सामना करना ही पड़ता है| भारत की जनसँख्या 121 करोड़ से ऊपर है लेकिन भारत खेलों में बहुत पीछे है क्योंकि ज्यादातर अभिवावक अपने बच्चों को खेल के क्षेत्र में जाने से रोकते है क्योंकि बाकी सारा समाज भी ऐसा ही कर रहा है| उन्हें असफलता का डर लगा रहता है| ये बड़ी अजीब बात है कि अभी हाल ही में उतरप्रदेश में चपरासी के सिर्फ 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आए थे और उसमें से भी 1.5 लाख ग्रेजुएट्स, 25000 पोस्ट ग्रेजुएट्स थे और 250 आवेदक ऐसे थे जिन्होंने पीएचडी की हुई थी| दूसरी तरफ भारत को आज भी विदेशों से लाखों करोड़ का सामान इम्पोर्ट करना पड़ता है और खेल जैसे क्षेत्र में भारत बहुत पीछे है| संभावनाएं बहुत है लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाते क्योंकि हम भीड़चाल में चलते है| ये हमारी मानसिकता ही है जो हमें पीछे धकेल रही है| हम चाहें तो बन्दर की तरह लोगों की देखा देखी कर सकते या फिर खुद की स्वतन्त्र सोच के बल पर सफलता की सीढी चढ़ सकते है
Bandar Chaal

Aaj Jab Dophar Ko

आज हम जब दोपहर को खाना खाने घर गया तो देखा कि हमारी बिटिया ने अपना गुल्लक तोड़ दिया था और पैसे अपने दुप्पटे मे इकट्ठा कर रही थी मैने पूंछा यह गुल्लक क्यों तोड़ दिया तो रोने लगी और दौड कर हमारे पास आकर हमसे लिपट कर रोने लगी और बोली। पापा हमारी चाची बीमार है चाचा काम करने गये हैं चाची को तेज बुखार है चाची दर्द से कराह रहीं है मै एक छण अपनी बिटिया को देखता रहा और मेरी आंखों में आँसू आ गये। हमने कहा कि चाची के साथ तो तुम्हारी मां का झगड़ा है । तुम यह सब क्यों कर रही हो । बिटिया ने धीरे से कहा कि मम्मी और चाची का झगड़ा है हमारा नही हमने अपने छोटे भाई को फोन किया और पूंछा कहां हो बो बोला काम मे बिजी हू। साम तक आ पाऊगा हमने डाक्टर साहब को बुलाया बहू का इलाज कराया हम अपने जेब से पैसे निकाल कर देने लगा तो बिटिया बोली डाक्टर अंकल बो पैसे ना लो । यह हमारी गुल्लक बाले पैसे ले लीजिए डाक्टर साहब एक छण हमारी तरफ देखते हुए बोले माजरा क्या है हमने पूरा बाक्या सुनाया डाक्टर साहब नम आंखों से हमसे बोले देखलो किशनपाल ऐसी होतीं हैं बिटियां। ।।।।।। डाक्टर जी ने कुछ दवाइयां लिख कर पर्चा देते हुए कहा हमे फीस नही चाहिए इन्ही पैसे से आपकी बिटिया की सादी में हमारी तरफ से एक तोहफ़ा दे देना मै हैरान था ➕ कि हम जिन बेटों के लिए बेटियों का गर्भपात करवा देते है । और बाद मे बो ही बेटे हमको घर से बाहर आश्रम में रहने भेज देते है ।। इसलिए भाइयो बेटी की रक्षा देश की रक्षा आप सभी को बेटी बचाओ बेटी पढाओ का अनुसरण देता हूँ। शेयर जरूर करें
Aaj Jab Dophar Ko

Tum Bahot Achey Ho

तुम बहुत अच्छे हो . ठंड अपने पूरे यौवन पर थी। अभी रात के आठ बजे थे, लेकिन ऐसा लगता था कि आधी रात हो गई है। मैं अम्बाला छावनी बस स्टैंड पर शहर आने के लिए लोकल बस की इंतज़ार कर रहा था। जहां मैं खड़ा था उससे कुछ ही दूरी पर दो-तीन ऑटो रिक्शा वाले एवं टैक्सी वाले खड़े थे। मुझे वहां खड़े हुए लगभग बीस-पच्चीस मिनट हो चुके थे, लेकिन बस थी कि आ ही नहीं रही थी। खड़े-खड़े ठंड के कारण मेरी देह अकड़ने लगी थी। ऑटो-रिक्शा वाले से बात की तो उसने शहर जाने के लिए चालीस रुपये मांगे थे। बस में जाने से चार रुपये और ऑटो-रिक्शा में जाने से चालीस रुपये। घर जल्दी पहुंच कर भी क्या करना है? मैंने मन को समझाया। ख़ामख़ाह में छत्तीस रुपये की नक़द चपत लगेगी। जबकि इन छत्तीस रुपये से मुझ जैसे नौकरीपेशा युक्त व्यक्ति की बहुत-सी ज़रूरतें पूरी हो सकती थीं। बहुत-सी समस्याएं सुलझ सकती थीं। मैं इसी उधेड़बुन में था कि जाऊं या नहीं, तभी दूर से एक बस की ‘हैड-लाइट’ नज़र आई थी। बस नज़दीक आई। मेरी नज़रें गिद्ध समान बस से चिपकी थी। बस देहरादून से आई थी और चंडीगढ़ जानी थी। बस स्टैंड पर बस रुकी। उतरने वाली तीन-चार सवारियां ही थीं। उन सवारियों में एक युवा लड़की भी थी। कंधे पर सामान का एक बैग झूलता हुआ। उतरने वाली अन्य सवारियां रिक्शा करके जा चुकी थीं। वह युवा लड़की भी किसी अन्य वाहन की तलाश में थी। तभी वह लड़की ऑटो-रिक्शा वाले के पास गई, बोली, “भैया! अम्बाला शहर के लिए कोई बस…..?” वाक्य उसने अधूरा छोड़ दिया था। ऑटो-रिक्शा वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारने के बाद कहा, “इस समय कोई बस नहीं मिलेगी। ऑटो रिक्शा में चलना है तो…..?” “कितने पैसे लोगे? उसने पूछा।” “40 रुपये।” “यहां से कितनी दूर है?” उसने फिर पूछा। “यही कोई 10-11 किलोमीटर!” वह चुप हो गई। सोचती रही। ‘चार्जेज़’ बहुत ज़्यादा हैं। दूसरी वह अकेली…..? कहीं रास्ते में…..? वह सिहर उठी थी। उसके चेहरे पर घबराहट और भय के मिले-जुले भाव थे। तभी वहां दो युवक आ गए। शक्ल से वे ‘शरीफ़’ नहीं लग रहे थे। पान चबाते हुए उनमें से एक ने उस लड़की को देख कर मुस्कुरा कर पूछा, “कहां जाओगी?” “मुझे शहर जाना है।” स्वर में हल्का-सा कंपन था। पैर लरज़ रहे थे। “हम छोड़ देंगे।” दाढ़ी वाला दूसरा युवक मुस्कुराया आंखों में अजीब-सी चमक लिए हुए। ठंड और भी बढ़ गई थी। लेकिन उस युवा लड़की की ‘पेशानी’ पर पसीने की बूंदे झिलमिलाने लगी थीं। आंखों में भय के साथ-साथ नमी भी झलकने लगी थी। मैं उनके बीच ‘बिन बादल बरसात’ की तरह टपक पड़ा। “सुनिये!” मैं लड़की का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए धीरे से बड़बड़ाया। सवालिया निगाहें उस युवा लड़की के साथ-साथ उन दोनों युवकों व पास ही खड़े ऑटो-रिक्शा चालक की मुझ पर उठी थीं। “आप शहर जा रही हैं न?” जानते-बूझते हुए भी मैंने एक प्रश्न किया था। उस लड़की ने गर्दन ‘हां’ में हिलाई। चेहरे पर अब भी ख़ौफ़ था। “मुझे भी शहर जाना है। अगर आप मेरे साथ चलना चाहो तो…..?” न जाने कैसे ये शब्द मैं उससे कह गया था? मन में डर भी था कि कहीं वह लड़की मुझे ग़लत न समझ ले। डर उन ‘तीनों’ से भी था जो वहां खड़े थे। मुझे उस युवा लड़की से बातें करते देख वे तीनों वहां से सटके थे। मैंने भी राहत की सांस ली। मेरे प्रश्न के उत्तर में वह मेरे पास खिसक आई। उसका पास आना उसकी स्वीकृति का सूचक था कि उसे मुझ पर विश्वास था। बस अभी भी दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही थी। “आप कहां से आ रही हैं?” मैंने पूछा। “मेरठ से!” संक्षिप्त-सा उसने उत्तर दिया। “शहर कहां जाना है?” मैंने फिर प्रश्न किया। “मैं ‘मेडिकल होस्टल’ में रहती हूं।” वह बोली। कुछ देर मैं चुप रहा। क्या बात करूं यही सोचता रहा। फिर मैंने कहा, “आप को दिन में आना चाहिए था या फिर किसी को साथ लेकर?” “वैसे पापा ने आना था, मगर उनकी तबीयत अचानक ख़राब हो गई।” वह मजबूरी बताते हुए बोली। “तो किसी और को साथ….. मतलब भाई…..?” “घर में छोटा भाई व छोटी बहन ही है। इसीलिए…..? फिर भी मैं समय से ही चली थी। लेकिन सहारनपुर में बस स्टैंड पर चालकों ने पहिया जाम कर दिया था। शायद किसी पैसेंजर से झगड़ा हो गया था। अन्यथा मैं सायं को ही यहां पहुंच जाती।” उसने अपनी बेबसी व मजबूरी झलकाई थी। “बस तो आ नहीं रही, क्या आप मेरे साथ ऑटो-रिक्शा में चलना पसंद करोगी? किराया आधा-आधा कर लेंगे।” मैंने व्यावहारिक बनने की कोशिश की। इससे पूर्व कि वह कोई जवाब देती, वही दोनों युवक एक मारुति में नज़र आये। उनमें से एक उस लड़की को देख कर चिल्लाया, “अम्बाला शहर…… अम्बाला शहर।” मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा था और शायद यही हाल उसका भी था। उसकी हालत देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वह किस क़दर भयभीत हो उठी थी। मैं कोई फ़िल्मी हीरो नहीं था कि उन दोनों का मुक़ाबला कर सकता। पर साथ ही मुझे साथ खड़ी लड़की का ख़्याल आया। आज निस्संदेह इस लड़की के सितारे गर्दिश में हैं। इसके साथ आज कुछ भी हो सकता है। अगर मैं न होता तो शायद यह उनके साथ चली जाती? और फिर…..? मैं कल्पना-मात्र से ही सिहर उठा। तभी बस आती नज़र आई। “लगता है बस आ रही है!” मैंने उस युवा लड़की से कहा। नज़रें, आ रही बस पर टिकी थीं। बस आकर रुकी थी। मैं बस में चढ़ा। मेरे पीछे वह भी चढ़ी थी। मैंने दो टिकट शहर की ली। उसने टिकट के पैसे देने चाहे थे। मैंने मना कर दिया। अजनबियत की पारदर्शी दीवार हम दोनों के बीच गिर चुकी थी। हम दोनों साथ-साथ बस में बैठे थे। मैं उससे इस क़दर हट कर बैठा था, मानों मुझे या उसे छूत की बीमारी हो या फिर उसके कोमल मन पर इस धारणा को पक्की करने की ललक में था कि मैं कोई ग़लत युवक नहीं हूं। मैं ऐसा क्यों कर रहा था, यह मेरी समझ से बाहर था। क्या मैं उसकी ओर आकर्षित हो रहा हूं? मेरे पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं था। “आप क्या करते हैं?” उसने अचानक मुझ से सवाल किया। “मैं…..?” मैं उसकी ओर देखते हुए चौंका, बोला, “सरकारी नौकरी में हूं….. साथ ही लेखन से जुड़ा हूं।” बेवजह मैंने अपने लेखन की बात कही। शायद उसे प्रभावित करने के लिए। “किस नाम से?” उसने खिड़की से बाहर झिलमिलाती रौशनियों की ओर देखते हुए पूछा। “दीपांकर नाम से। वैसे मेरा नाम भी ‘दीपांकर’ है।” मैं सोच रहा था कि नाम सुन कर वह कहेगी, “हां! मैंने इस नाम को पढ़ा है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं कोई बड़ा लेखक नहीं था उसकी नज़र में।” “वह ख़ामोश हो गई थी। मैंने कनखियों से उसकी तरफ़ देखा। वह सुन्दर थी- बेहद सुन्दर। उसकी सादगी दिल में उतर जाने वाली थी, सीधे ही। एक सुकून पहुंचाने वाली।” “आप मेडिकल होस्टल में…..?” मेरी बात का आशय समझ वह बोली, “जी! मैं नर्स की ‘ट्रेनिंग’ ले रही हूं।” तब तक हमारी मंज़िल तक बस पहुंच चुकी थी। मैंने उससे धीमे स्वर में कहा, “आओ! दरवाज़े के पास चलें।” हम दोनों बस से उतरे थे। वहां से मेडिकल होस्टल का पैदल रास्ता 5-7 मिनट का था। इस वक़्त वहां गहन अंधेरा फैला था। “कहो तो ‘तुम्हें’ मेडिकल होस्टल तक छोड़ आऊं?” मैंने उससे पूछा। “अगर आपको तकलीफ़ न हो तो…..?” उसने वाक्य अधूरा छोड़ कर मेरी तरफ़ देखा। “नहीं….. नहीं, तकलीफ़ कैसी? मैं आपको छोड़ देता हूं।” मैंने कलाई की ओर बंधी घड़ी की ओर देखते हुए कहा। होस्टल तक का सफ़र हमने चुपचाप पैदल पार किया। होस्टल पहुंच कर वॉर्डन से सामना हुआ। वॉर्डन ने कुछेक प्रश्न मुझसे पूछे और कुछ उससे। वॉर्डन के सामने ही उसने मुझसे मेरा पता पूछा था। मैंने उसे पता लिख कर दिया। वॉर्डन ने मुझे घूरा था, बोली, “आप इसे पत्र लिखेंगे?” मैं चुप रहा। वॉर्डन की ओर देखते हुए उसके कहने का मतलब समझने की कोशिश करता रहा। “देखिए! आप पत्र सोच-समझ कर डालना।” “मतलब?” मैंने पूछा। “यहां पत्र खोले जाते हैं। कहीं ऐसा-वैसा पत्र…..?” मैं मुस्कुराया था। फिर उस युवा लड़की की ओर देखा, फिर बोला, “आप मुझे ग़लत समझ रही हैं। पता इन्होंने मुझसे लिया है। मैं न तो इनका नाम जानता हूं, न ही पता। ये पत्र लिखना चाहें तो इनकी मर्ज़ी।” इतना कह कर मैं चलने के लिए उठा। उस युवा लड़की की ओर देखा। कृतज्ञता के भाव उसके चेहरे पर फैले थे। वह बाहर छोड़ने को आई थी। आंखों में नमी फैल गई थी उसकी। बोली, “आपका यह एहसान मैं ज़िन्दगी भर न भूल पाऊंगी।” मैं कुछ नहीं बोला। वहां से चला आया। घर पहुंचता हूं। रात के लगभग दस बज रहे हैं। पत्नी मेरे इंतज़ार में खाने के लिए बैठी हुई थी। “आज बहुत देर कर दी।” मेरी आंखों में प्यार से झांकते हुए पत्नी ने कहा। पत्नी को सारा क़िस्सा सुनाता हूं। वह ख़ामोशी से टकटकी बांधे ग़ौर से मेरी बात सुनती रही। क़िस्सा सुनाने के बाद पूछता हूं, “ऐसे क्या देख रही हो मुझे?” मन ही मन सोचता हूं कि पत्नी कहीं शक तो नहीं कर रही। वह उठती है। मेरे समीप आकर मेरी नाक अपने दांए हाथ के अंगूठे व सांकेतिक उंगली से दबा कर चहकते हुए कहती है, “तुम….. तुम बहुत अच्छे हो।” पत्नी की आंखों में छाया विश्वास मन को गुदगुदा गया। पत्नी को बांहों में भर कर धीमे से उसके कानों में गुनगुना उठता हूं, “और….. तुम….. भी तो…..!”
Tum bahot achey ho

Shauteli Maa

"मां...सौतेली मां" रीता बडी खूबसुरत लड़की थी जोकि शादी लायक हो चली थी उसकी शादी की बात घर मे चलने लगी और तय दिन लड़के वालो का घर मे आना तय हुआ तो बुआजी ओर रीता ने अपनी मां से कहा - जब लड़के वाले आये तो तुम अंदर ही रहना ...हम नहीं चाहते की तुम उनके सामने आओ ..एक तो तुम सौतेली ऊपर से बदसूरत... असल मे रीता की मां का चेहरा काफी हद तक जला हुआ था मां ने कुछ नहीं कहा और बस मुस्करा दिया की -ठीक हैं मैं उनके सामने नहीं आउंगी.. हालांकि पिता ने बहन ओर बेटी को समझाने की कोशिश की तो बडी बहन नाराज हो गई लड़के वाले आये और रिश्ता भी पक्का हो गया उसके पिता ने शादी की तारीख भी तय कर दी तब रीता ने अपनी मां से कहा की -देखा तुम्हारे सामने नहीं आने से मेरा रिश्ता तय हो गया बस कुछ ही दिन की बात है फिर तुम्हारा ये मनहुस चेहरा मैं कभी नहीं देखूंगी..मां फिर से मुसकुरा दी रीता अपनी शादी की तैयारी मे मां को कभी सामने नहीं रखती ना ही अपने सामान को हाथ लगाने देती तब भी मां ने उसे कभी कुछ नहीं कहा कुछ दिनो बाद शादी का वो वक़्त भी आ गया..शादी होते वक़्त जब लड़के वालो ने रीता की मां के बारे मे पूछते तो बुआजी बहाना बनाकर टाल देती....लेकिन आखिर विदाई के वक़्त लड़के वाले रीता की मां से मिलने की बात पर अड़ गए.. और गुस्से मे रीता की मां बुरा भला कहने लगे की -कैसी मां है ये जो अपनी इकलौती बेटी की विदाई मे नहीं है अपनी पत्नी के बारे मे अपशब्द सुनकर रीता के पिता से ना रहा गया और उसने कहा की -बस कीजिए आप लोग मैं बताता हूं की आखिर कयो वो सामने क्यो नहीं आई...रीता की पहली मां तो उसे जन्म देकर भगवान को प्यारी हो गई उसकी परवरिश को मैने दूसरी शादी की एक बेहद खूबसूरत लडकी से रीता की परवरिश अच्छे से हो इसीलिए उसने अपनी औलाद की कभी इच्छा नही की लेकिन उस दिन...-जब रीता 3 साल की थी तब हमारे घर मे अचानक आग लग गयी थी और रीता उस समय अकेली सो रही थी, तब मेरी खूबसुरत पत्नी ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए अपनी बेटी को बचाया, ज़िसकी वजह से उसका पूरा चेहरा जल गया अगर उस दिन इसकी मां इसे ना बचाती तो शायद आज ये इस दुनिया मे ना होती और मेरी पत्नी आज भी सुन्दर होती ये सुनकर दुल्हन बनी रीता की आँखो से झर-झर आंसू बहने लगे और वो अपनी मां को पुकारती उसके कमरे की और दौड़ पड़ी जहां उसकी मां रीता की बचपन की एक छोटी सी गुडिया को अपनी बाहो मे पकड़े फूट फूट कर रो रही थी रीता दौड़ कर अपनी मां के पास गई और अपने किए की माफी मांगने लगी... दोस्तो ऐसा सिर्फ एक मां ही कर सकती है मां के प्यार को बताने की एक छोटी सी कोशिश..
Shauteli Maa

दिल को छू जाने वाली एक मार्मिक प्रेम कहानी

एक लड़की थी। बहुत ही खूबसूरत। जितनी वह सुंदर थी उतनी ही ईमानदार। न किसे से झूठ बोलना न फालतू की बातें करना। अब अपने काम से काम। उसी क्लास में एक लड़का था। वह मन ही मन उससे बहुत प्यार करता था। लड़का अक्सर उसके छोटे-मोटे काम कर दिया करता था। बदले में जब लड़की मुस्करा कर थैंक्यू कहती थी तो लड़के की खुशी की सीमा नहीं रहती थी। एक बार की बात है। दोनों लोग साथ-साथ घर जा रहे थे। तभी जोरदार बारिश होने लगी। दोनों ने एक पेड़ के नीचे शरण ली। पेड़ बहुत छोटा था बूंदू छन-छन कर उससे नीचे आ रही थीं। ऐसे में बारिश से बचने के लिए दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आ गये। लड़की को इतने करीब पाकर लड़का अपने जज्बातों पर काबू न रख सका। उसके लड़की को प्रजोज कर दिया। लड़की भी मन ही मन चाहती थी इसलिए वह भी राजी हो गयी। और इस तरह दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा। एक बार की बात है लड़की उसी पेड़ ने नीचे लड़के का इंतजार कर रही थी। लड़का बहुत देर से आया। उसे देखकर लड़की नाराजगी से बोली तुम इतनी देर से क्यों आए? मेरी तो जान ही निकल गयी थी। यह सुनकर लडका बोला जानेमन मैं तुमसे दूर कहां गया था मैं तो तुम्हारे दिल में ही रहता हूं। तुम्हें यकीन न हो तो अपने दिन से पूछ लो। लड़के की इस प्यारी सी बात को सुनकर अपना सारा गुस्सा भुल गयी और वह दौड़ कर लड़के से लिपट गयी। एक दिन दोनों लोग उसी पेड़ के नीचे बैठे बातें कर रहे थें। लड़की पेड़ के सहारे बैठी थी अैर लड़का उसकी गोद में सर रख कर लेटा हुआ था। तभी लड़की बोली जानू अब तुम्हारी जुदाई मुझसे बर्दाश्त नहीं होती। तुम्हारे बिना एक पल भी मुझे 100 साल के बराबर लगता है। तुम मुझसे शादी कर लो नहीं तो मैं मर जाऊंगी। लडके ने झट से लड़की के मुंह पर अपना हाथ रख दिया और बोला मेरी जान ऐसी बात मत किया करो अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं कैसे जिंदा रहूंगा। फिर वह कुछ सोचता हुआ बोला तुम चिंता मत करो मैं जल्द ही अपने घर वालों से बात करूंगा। धीरे-धीरे काफी समय बीत गया। एक दिन की बात है। दोनों लोग उसी पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। उस समय लड़के का चेहरा उतरा हुआ था। लड़की के पूछने पर वह रूआंसा होकर बोला जान मैंने अपने घर वालों को बहुत समझाया पर वे हमारी शादी के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने मेरी शादी कहीं और तक कर दी है। यह सुन कर लड़की का कलेजा फट पड़ा। उसका मन हुआ कि वह जोर-जोर से रोए। लेकिन उसने अपने जज्बात पर काबू पा लिये और बोली मैं तुमसे सच्चा प्यार किया है मैं तुम्हें कभी भुला नहीं सकती। प्लीज मुझे माफ कर देना! लड़का धीरे से बाेला वैसे अगर तुम चाहो तो हम हम हमेशा अच्छे दोस्त रह सकते हैं। लडकी यह सुन कर ज़ार-ज़ार रोने लगी। लड़के ने उसे समझाया और फिर दोनों लोग रोते हुए अपने-अपने घर चले गये। देखते ही देखते लड़के की शादी का दिन आ गया। लड़के को यकीन था कि उसकी शादी में उसकी दोस्त जरूर आएगी। पर ऐसा नहीं हुआ। हां लड़की का भेजा हुआ एक गिफ्ट पैक उसे ज़रूर मिला। लड़के ने कांपते हांथों से उसे खोला। उसे देखते ही वह बेहोश हो गया। गिफ्ट पैक में और कुछ नहीं खून से लथपथ लड़की का दिल रखा हुआ था। और साथ ही में थी एक चिट्ठी जिसमें लिखा हुआ था- अरे पागल अपना दिल तो लेते जा वरना अपनी पत्नि को क्या देगा। दोस्तो किसी के लिए मोहब्बत टाइमपास होती है और किसी के लिए जिंदगी से बढ़कर। अगर किसी से मोहब्बत करना तो उसे ताे उसे ताउम्र निभाना भी। वर्ना क्या पता आपका हाल भी ऐसा ही हो जाए जो उस दिन के बाद न तो जी सका और न ही मर सका। उसकी सारी जिंदगी पछतावे और अफसोस में घुट-घुटकर कटती रही।

दिल को छू जाने वाली एक मार्मिक प्रेम कहानी

Aik Baar Aik Ladke

एक बार एक लडके को अपनी ही कॉलेज कि एक लडकी से प्यार हो गया था लडके ने लडकी को दोस्त बनाया पर अपने प्यार का इजहार ना कर सका क्योँकी वो डरता था कि कहीँ लडकी ने मना कर दिया तो दोस्ती भी टुट जाऐगी और वो ऊससे कभी बात तक नही करेगी ईसी वजह से वो लडका परपोज करनै से डरता था उनकी दोस्ती जितनी गहरी हो रही थी लडके का प्यार भी उतना ही गहरा होता गया धीरे धीरे कॉलेज भी खतम हौ गया पर लडके ने अपने प्यार का इजहार नही किया वो डर उसे प्यार का इजहार करने से रोक लेता था कॉलेज पुरा हो गया था इसलिए वो बाहर ही मिलते थे! एक दिन लडके ने हिम्मत करके लडकी को कॉल किया और कहॉ कि मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है लडकी ने कहॉ कि मुझे भी तुमसे कुछ जरुरी बात करनी ह ै होटल मै मिलते है लडका शाम को ये ठान कर गया कि आज मै अपने प्यार का इजहार करकै हि रहुँगा चाहै कुछ भी हो लडकी कहती है कि पहले तुम अपनी बात कहोगे या मै अपनी बात कहुँ लडका कहता है कि पहले तुम ही कहो लडकी कहती ह ै कि अगले हप्ते मैरी शादी हौ रही है और खासकर तुमे जरुर आना है लडका ने ये शुनते ही जैसै दिल कै अन्दर से आशमान कि टुटने कि आवाज आई फिर लडकी बोली कि अब तुम कहो लडके ने कहाँ कि मैनै देर करदी शायद पहलै मै अपनी बात करता इतना कह कर लडका चला जाता ह ै और लडकी अपनै घर चली जाती है दुसरै दिन लडका लडकी को कॉल करके एक पार्क मै बुलाता है और कहता ह ै कि मै पढाई कै लिए अमेरीका जा रहा हूँ मै तुम्हारी शादी मै नही आ पाऊगाँ इतना कह कर लडका रोते हुऐ जाता है तो लडकी बस इतना कहती ह ै कि जिससे मै शादी करने जा रहुँ उसका यहाँ होना भी तो जरुरी है लडका कहता कि पर वो तो यहॉ है ना लडकी कहती कि पागल मै तुमसे शादी कर रही हू तेरे दोस्त ने मुझे 1 महीने पहले सब कुछ बता दिया है!! अगर अच्छी लगी कमेंट जरूर बताना

Aik baar aik ladke

Kagaz Ka Tukda

😢कागज का एक टुकड़ा✍️ राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था। दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे। चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए। राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे। साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा। राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे। दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी। इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर। सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन राधिका और राधिका की माता जी। नवीन घर मे अकेला ही रहता था। मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं। राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है। घर मे परिवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने। सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था। नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई। वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे। प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है। बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी। फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया। न राधिका लोटी और न नवीन लाने गया। राधिका की माँ बोली कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ? चुप रहो माँ राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा। फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया। बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया। राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही। फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया। नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया रखलो मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में । गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी। क्यूँ कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है। सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई। नही चाहिए। वो दस लाख भी नही चाहिए क्यूँ? कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया। बस यूँ ही राधिका ने मुँह फेर लिया। इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ काम आएगें। इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था। राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी। राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई। वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर। जैसे भीतर के सैलाब को दबाने दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला। मग़र ज्यादा भावुक नही हुई। सधे अंदाज में बोली इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक? मैंने नही तलाक तुमने दिया दस्तखत तो तुमने भी किए माफी नही माँग सकते थे? मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया। घर भी आ सकते थे? हिम्मत नही थी? राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी। राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था। फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई। घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है। उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं। कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से? फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी। कितने सुनहरे दिन थे वो। इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई। बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया। अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया। बोला-- मत जाओ माफ कर दो शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया । और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे। दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही। काश उनको पहले मिलने दिया होता?

Kagaz Ka Tukda

Sundar Si Beti

एक गरीब परिवार में एक सुंदर सी बेटी ने जन्म लिया, बाप दुखी हो गया बेटा पैदा होता तो कम से कम काम में तो हाथ बटाता, उसने बेटी को पाला जरूर, मगर दिल से नही वो पढने जाती थी तो ना ही स्कूल की फीस टाइम से जमा करता, और ना ही कापी किताबों पर ध्यान देता था, अक्सर दारू पी कर घर में कोहराम मचाता था। उस लड़की की माँ बहुत अच्छी व बहुत भोली भाली थी वो अपनी बेटी को बडे लाड प्यार से रखती थी, वो पति से छुपा-छुपा कर बेटी की फीस जमा करती और कापी किताबों का खर्चा देती थी। अपना पेट काटकर फटे पुराने कपडे पहन कर गुजारा कर लेती थी, मगर बेटी का पूरा खयाल रखती थी पति अक्सर घर से कई कई दिनों के लिये गायब हो जाता था। जितना कमाता था दारू मे ही फूक देता था !! वक्त का पहिया घूमता गया… बेटी धीरे-धीरे समझदार हो गयी, दसवीं क्लास में उसका एडमिशन होना था, मॉ के पास इतने पैसै ना थे जो बेटी का स्कूल में दाखिला करा पाती.. बेटी डरडराते हुये पापा से बोली पापा मैं पढना चाहती हूं मेरा हाईस्कूल में एडमिशन करा दीजिए मम्मी के पास पैसै नही है! बेटी की बात सुनते ही बाप आग बबूला हो गया और चिल्लाने लगा बोला:- तू कितनी भी पढ़ लिख जाये तुझे तो चौका चूल्हा ही सम्भालना है क्या करेगी तू ज्यादा पढ़ लिख कर, उस दिन उसने घर में आतंक मचाया व सबको मारा पीटा। बाप का व्यहार देखकर बेटी ने मन ही मन में सोच लिया कि अब वो आगे की पढाई नही करेगी, एक दिन उसकी मॉ बाजार गयी। बेटी ने पूछा मॉ कहॉ गयी थी, मॉ ने उसकी बात को अनसुना करते हुये कहा:- बेटी कल मै तेरा स्कूल में दाखिला कराउगी। बेटी ने कहा: नही़ं मॉ मै अब नही पडूगी मेरी वजह से तुम्हे कितनी परेशानी उठानी पडती है पापा भी तुमको मारते पीटते हैं कहते कहते रोने लगी। मॉ ने उसे सीने से लगाते हुये कहा:- बेटी मै बाजार से कुछ रुपये लेकर आयी हूं। मै कराउगी तेरा दखिला.. बेटी ने मॉ की ओर देखते हुये पूछा: मॉ तुम इतने पैसै कहॉ से लायी हो?? मॉ ने उसकी बात को फिर अनसुना कर दिया… वक्त बीतता गया… मॉ ने जी तोड मेहनत करके बेटी को पढ़ाया लिखाया बेटी ने भी मॉ की मेहनत को देखते हुये मन लगा कर दिन रात पढाई की और आगे बडती चली गयी… इधर बाप दारू पी पीकर बीमार पड गया डाक्टर के पास ले गये डाक्टर ने कहा इनको टी.बी. है, एक दिन तबियत ज्यादा गम्भीर होने पर बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराया। दो दिन बाद उस जबे होश आया तो डाक्टरनी का चेहरा देखकर उसके होश उड गये! वो डाक्टरनी कोई और नही वल्कि उसकी अपनी बेटी थी.. शर्म से पानी पानी बाप कपडे से अपना चेहरा छुपाने लगा और रोने लगा हाथ जोडकर बोला: बेटी मुझे माफ करना मैं तुझे समझ ना सका… दोस्तों बेटी आखिर बेटी होती है बाप को रोते देखकर बेटी ने बाप को गले लगा लिया.. दोस्तों गरीबी और अमीरी से कोई फर्क नहीं पडता, अगर इन्सान का इरादा हो तो आसमान में भी छेद हो सकता है! किसी ने खूब कहा:- “कौन कहता है कि आसमान मे छेद नही हो सकता, अरे एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों” एक दिन बेटी माँ से बोली: माँ तुमने मुझे आज तक नहीं बताया कि मेरे हाईस्कूल के एडमीसन के लिये पैसै कहाँ से लायी थी?? बेटी के बार बार पूछने पर माँ ने जो बात बतायी उसे सुनकर बेटी की रूह काँप गयी, माँ ने अपने शरीर का खून बेच कर बेटी का एडमीसन कराया था! दोस्तों तभी तो मॉ को भगवान का दर्जा दिया गया है, माँ जितना औलाद के लिये त्याग कर सकती है, उतना दुनियाँ में कोई और नही.!! दोस्तो ऐसी ही अच्छी कहानियां और किस्सों को हम आप तक पहुंचाते रहेंगे इसके लिए आप हमारे पेज को फॉलो या लाइक करो आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Sundar Si Beti

Aik Yuvti

एक युवती बगीचे में बहुत गुस्से में बैठी थी, पास ही एक बुजुर्ग बैठे थे उन्होने उस परेशान युवती से पूछा क्या हुआ बेटी? क्यूं इतना परेशान हो युवती ने गुस्से में अपने पति की गल्तीयों के बारे में बताया, बुजुर्ग ने मंद मंद मुस्कराते हुए युवती से पूछा बेटी क्या तुम बता सकती हो तुम्हारे घर का नौकर कौन है? युवती ने हैरानी से पूछा क्या मतलब? बुजुर्ग ने कहा- तुम्हारे घर की सारी जरूरतों का ध्यान रख कर उनको पूरा कौन करता है ? युवती - मेरे पति बुजुर्ग ने पूछा :- तुम्हारे खाने पीने की और पहनने ओढ़ने की जरूरतों को कौन पूरा करता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- तुम्हें और बच्चों को किसी बात की कमी ना हो और तुम सबका भविष्य सुरक्षित रहे इसके लिए हमेशा चिंतित कौन रहता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग ने फिर पूछा- सुबह से शाम तक कुछ रुपयों के लिए बाहर वालों की और अपने अधिकारियों की खरी खोटी हमेशा कौन सुनता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- परेशानी ऒर गम में कॊन साथ देता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- तुम लोगोँ के अच्छे जीवन और रहन सहन के लिए दूरदराज जाकर, सारे सगे संबंधियों को यहां तक अपने माँ बाप को भी छोड़कर जंगलों में भी नौकरी करने को कौन तैयार होता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- घर के गैस,बिजली, पानी, मकान, मरम्मत एवं रखरखाव, सुख सुविधाओं, दवाईयों, किराना, मनोरंजन भविष्य के लिए बचत, बैंक, बीमा, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, पास पड़ोस, ऑफिस और ऐसी ही ना जाने कितनी सारी जिम्मेदारियों को एक साथ लेकर कौन चलता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- बीमारी में तुम्हारा ध्यान ऒर सेवा कॊन करता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग बोले :- एक बात ऒर बताओ तुम्हारे पति इतना काम ऒर सबका ध्यान रखते है क्या कभी उसने तुमसे इस बात के पैसे लिए ? युवती :- कभी नहीं इस बात पर बुजुर्ग बोले कि पति की एक कमी तुम्हें नजर आ गई मगर उसकी इतनी सारी खुबियां तुम्हें कभी नजर नही आई ? आखिर पत्नी के लिए पति क्यों जरूरी है ? मानो न मानो जब तुम दुःखी हो तो वो तुम्हे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। वो अपने दुःख अपने ही मन में रखता है लेकिन तुम्हें नहीं बताता ताकि तुम दुखी ना हो। हर वक्त, हर दिन तुम्हे कुछ अच्छी बातें सिखाने की कोशिश करता रहता है ताकि वो कुछ समय शान्ति के साथ घर पर व्यतीत कर सके और दिन भर की परेशानियों को भूला सके। हर छोटी छोटी बात पर तुमसे झगड़ा तो कर सकता है, तुम्हें दो बातें बोल भी लेगा परंतु किसी और को तुम्हारे लिए कभी कुछ नहीं बोलने देगा। तुम्हें आर्थिक मजबूती देगा और तुम्हारा भविष्य भी सुरक्षित करेगा। कुछ भी अच्छा ना हो फिर भी तुम्हें यही कहेगा- चिन्ता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।। माँ बाप के बाद तुम्हारा पूरा ध्यान रखना और तुम्हे हर प्रकार की सुविधा और सुरक्षा देने का काम करेगा। तुम्हें समय का पाबंद बनाएगा। तुम्हे चिंता ना हो इसलिए दिन भर परेशानियों में घिरे होने पर भी तुम्हारे 15 बार फ़ोन करने पर भी सुनेगा और हर समस्या का समाधान करेगा। चूंकि पति ईश्वर का दिया एक स्पेशल उपहार है, इसलिए उसकी उपयोगिता जानो और उसकी देखभाल करो।...
Aik Yuvti

Chatur Patni

चतुर पत्नी एक गांव में एक दरजी रहता था जो बड़े छोटे सब के कपडे सिलता था और उस कमाई से दो टंक का खाना अपनी पत्नी को खिलाता था। कपडे वो एसे लबाबदार सिलता की सालों तक चलते। उसी गाँव का राजा बड़ा दयालु था । एक बार राजा ने खुश होकर उसको महल बुलाया। राजकुमारी का कुछ दिन में विवाह था । राजा ने दरजी को राजकुमारी के लिए अच्छे से अच्छे कपडे बनाने का आदेश दिया । राजकुमारी का विवाह उसकी मर्जी के खिलाफ हो रहा था । राजकुमारी किसी और को चाहती थी । उसका कपडे सिलवाने का जरा भी मन न था । दरजी दुसरे दिन सुबह राजकुमारी के कपडों की सिलाई के लिए माप लेने आ गया । राजकुमारी ने विवाह से बचने के लिए एक योजना बना ली । उसने दरजी को अपने शयनकक्ष में बुलाया । दासियों को कमरे से बाहर चले जाने का आदेश दे दिया । जैसे ही दरजी ने माप लेना शुरू किया कुछ ही क्षणों में राजकुमारी जोर जोर से रोने लगी । पूरे महल को सुनाई दे वैसे वह चिल्लाना शुरू कर दी । दरजी डर के मारे स्तब्ध हो गया । उसको कुछ समझ में आये उससे पहले ही राजकुमारी के शयन में सब दौड़े चले आए। सिपाही दासियाँ एवं राजा खुद भागते हुए इकठ्ठे हो गए । राजकुमारी ने दरजी पर उसकी छेड़ती का आरोप लगा दिया । दरजी खड़ा खड़ा कांप रहा था । उसने रोते रोते राजा को बताया की उसने एसा कुछ भी नहीं किया है । लेकिन राजा ने एक न सुनी । दरजी को कैद कर लिया और मौत की सजा सुना दी । राजा ने एलान कर दिया की जब तक राजकुमारी पूर्णतया स्वस्थ नहीं हो जाती उसका विवाह नहीं होगा । इस बात का पता दरजी की पत्नी को चला । वो भागते हुए राजमहल पहुंची । उसने अपने पति के अच्छे चरित्र के कई पुरावे दिए लेकिन राजा को अपनी बेटी के अपमान के सामने और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । दरजी की पत्नी पर दया खा कर राजा ने उसको दरजी के जाने के बाद का आजीवन भरण पोषण भी दे दिया । दरजी की पत्नी ने राजा का वह प्रस्ताव ठुकरा दिया और एक वचन माग लिया । राजा ने दरजी की जिंदगी को छोड़कर जो मांगे देने का वचन दिया । तब दरजी की पत्नी ने बताया की वह जो भी मांगेगी राजा से अकेले में मांगेगी उसको दरबार के लोगों पर भरोसा नहीं है । राजा ने उसकी बात मान ली और उसको अपने कक्ष में बात करने बुलाया । तभी कुछ क्षणों में राजा के कक्ष से जोर जोर से रोने की आवाजे आने लगी । सब इकठ्ठे हो गए । राजा क्रोध्ध से तिलमिला उठा । तभी दरजी की पत्नी ने सबको बताया की राजा ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया है । बुजुर्ग राज दरबारी सब राजा को गुनाह की नजरों से देखने लगे । अब राजा को पूरी बात समझ में आयी । उसने तुरंत दरजी को रिहा करने का आदेश दे दिया । उसने दरजी और उसकी पत्नी से अनजाने में हुए अपराध की माफ़ी मांगी । दरजी की पत्नी ने भी राजा पर लगाये गलत गुनाहों की माफ़ी मांगी । दोनों सन्मान के साथ घर पहुंचे और अपनी जिंदगी साथ में हसी ख़ुशी बीता दी । बोध : अक्सर दो व्यक्तिओ के बीच अकेले में घटी घटनाओ में कुछ बाते अनकही रह जाती है । दोनों में से जिसके शुभचिंतक अधिक होते है उसकी बात का भरोसा किया जाता है और दुसरे व्यक्ति को बोलने का मौका तक नहीं दिया जाता है । एसे में निर्दोष व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक सजाओ का भोगी बनता है ।🙏🙏

Chatur Patni

Kaam Wali Bai

कामवाली बाई... सच्ची घटना पर आधारित यह बात कुछ दिनों पुरानी है, जब स्कूल बस की हड़ताल चल रही थी। मेरे मिस्टर अपने व्यवसाय की एक आवश्यक मीटिंग में बिजी थे इसलिए मेरे 5 साल के बेटे को स्कूल से लाने के लिए मुझे टू-व्हीलर पर जाना पड़ा। जब मैं टू व्हीलर से घर की ओर वापस आ रही थी, तब अचानक रास्ते में मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं एवं मेरा बेटा हम दोनों गाड़ी सहित नीचे गिर गए। मेरे शरीर पर कई खरोंच आए लेकिन प्रभु की कृपा से मेरे बेटे को कहीं खरोंच तक नहीं आई । हमें नीचे गिरा देखकर आसपास के कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने हमारी मदद करना चाही। तभी मेरी कामवाली बाई राधा ने मुझे दूर से ही देख लिया और वह दौड़ी चली आई । उसने मुझे सहारा देकर खड़ा किया, और अपने एक परिचित से मेरी गाड़ी एक दुकान पर खड़ी करवा दी। वह मुझे कंधे का सहारा देकर अपने घर ले गई जो पास में ही था। जैसे ही हम घर पहुंचे वैसे ही राधा के दोनों बच्चे हमारे पास आ गए। राधा ने अपने पल्लू से बंधा हुआ 50 का नोट निकाला और अपने बेटे राजू को दूध ,बैंडेज एवं एंटीसेप्टिक क्रीम लेने के लिए भेजा तथा अपनी बेटी रानी को पानी गर्म करने का बोला। उसने मुझे कुर्सी पर बिठाया तथा मटके का ठंडा जल पिलाया। इतने में पानी गर्म हो गया था। वह मुझे लेकर बाथरूम में गई और वहां पर उसने मेरे सारे जख्मों को गर्म पानी से अच्छी तरह से धोकर साफ किए और बाद में वह उठकर बाहर गई । वहां से वह एक नया टावेल और एक नया गाउन मेरे लिए लेकर आई। उसने टावेल से मेरा पूरा बदन पोंछ तथा जहां आवश्यक था वहां बैंडेज लगाई। साथ ही जहां मामूली चोट पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाया। अब मुझे कुछ राहत महसूस हो रही थी। उसने मुझे पहनने के लिए नया गाउन दिया वह बोली "यह गाउन मैंने कुछ दिन पहले ही खरीदा था लेकिन आज तक नहीं पहना मैडम आप यही पहन लीजिए तथा थोड़ी देर आप रेस्ट कर लीजिए। " "आपके कपड़े बहुत गंदे हो रहे हैं हम इन्हें धो कर सुखा देंगे फिर आप अपने कपड़े बदल लेना।" मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी । मैं गाउन पहनकर बाथरुम से बाहर आई। उसने झटपट अलमारी में से एक नया चद्दर निकाल और पलंग पर बिछाकर बोली आप थोड़ी देर यहीं आराम कीजिए। इतने मैं बिटिया ने दूध भी गर्म कर दिया था। राधा ने दूध में दो चम्मच हल्दी मिलाई और मुझे पीने को दिया और बड़े विश्वास से कहा मैडम आप यह दूध पी लीजिए आपके सारे जख्म भर जाएंगे। लेकिन अब मेरा ध्यान तन पर था ही नहीं बल्कि मेरे अपने मन पर था। मेरे मन के सारे जख्म एक एक कर के हरे हो रहे थे।।मैं सोच रही थी "कहां मैं और कहां यह राधा?" जिस राधा को मैं फटे पुराने कपड़े देती थी, उसने आज मुझे नया टावेल दिया, नया गाउन दिया और मेरे लिए नई बेडशीट लगाई। धन्य है यह राधा। एक तरफ मेरे दिमाग में यह सब चल रहा था तब दूसरी तरफ राधा गरम गरम चपाती और आलू की सब्जी बना रही थी। थोड़ी देर मे वह थाली लगाकर ले आई। वह बोली "आप और बेटा दोनों खाना खा लीजिए।" राधा को मालूम था कि मेरा बेटा आलू की सब्जी ही पसंद करता है और उसे गरम गरम रोटी चाहिए। इसलिए उसने रानी से तैयार करवा दी थी। रानी बड़े प्यार से मेरे बेटे को आलू की सब्जी और रोटी खिला रही थी और मैं इधर प्रायश्चित की आग में जल रही थी । सोच रही थी कि जब भी इसका बेटा राजू मेरे घर आता था मैं उसे एक तरफ बिठा देती थी, उसको नफरत से देखती थी और इन लोगों के मन में हमारे प्रति कितना प्रेम है । यह सब सोच सोच कर मैं आत्मग्लानि से भरी जा रही थी। मेरा मन दुख और पश्चाताप से भर गया था। तभी मेरी नज़र राजू के पैरों पर गई जो लंगड़ा कर चल रहा था। मैंने राधा से पूछा "राधा इसके पैर को क्या हो गया तुमने इलाज नहीं करवाया ?" राधा ने बड़े दुख भरे शब्दों में कहा मैडम इसके पैर का ऑपरेशन करवाना है जिसका खर्च करीबन ₹ 10000 रुपए है। मैंने और राजू के पापा ने रात दिन मेहनत कर के ₹5000 तो जोड़ लिए हैं ₹5000 की और आवश्यकता है। हमने बहुत कोशिश की लेकिन कहीं से मिल नहीं सके । ठीक है, भगवान का भरोसा है, जब आएंगे तब इलाज हो जाएगा। फिर हम लोग कर ही क्या सकते हैं? तभी मुझे ख्याल आया कि राधा ने एक बार मुझसे ₹5000 अग्रिम मांगे थे और मैंने बहाना बनाकर मना कर दिया था। आज वही राधा अपने पल्लू में बंधे सारे रुपए हम पर खर्च कर के खुश थी और हम उसको, पैसे होते हुए भी मुकर गए थे और सोच रहे थे कि बला टली। आज मुझे पता चला कि उस वक्त इन लोगों को पैसों की कितनी सख्त आवश्यकता थी। मैं अपनी ही नजरों में गिरती ही चली जा रही थी। अब मुझे अपने शारीरिक जख्मों की चिंता बिल्कुल नहीं थी बल्कि उन जख्मों की चिंता थी जो मेरी आत्मा को मैंने ही लगाए थे। मैंने दृढ़ निश्चय किया कि जो हुआ सो हुआ लेकिन आगे जो होगा वह सर्वश्रेष्ठ ही होगा। मैंने उसी वक्त राधा के घर में जिन जिन चीजों का अभाव था उसकी एक लिस्ट अपने दिमाग में तैयार की। थोड़ी देर में मैं लगभग ठीक हो गई। मैंने अपने कपड़े चेंज किए लेकिन वह गाउन मैंने अपने पास ही रखा और राधा को बोला "यह गाऊन अब तुम्हें कभी भी नहीं दूंगी यह गाऊन मेरी जिंदगी का सबसे अमूल्य तोहफा है।" राधा बोली मैडम यह तो बहुत हल्की रेंज का है। राधा की बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं घर आ गई लेकिन रात भर सो नहीं पाई । मैंने अपनी सहेली के मिस्टर, जो की हड्डी रोग विशेषज्ञ थे, उनसे राजू के लिए अगले दिन का अपॉइंटमेंट लिया। दूसरे दिन मेरी किटी पार्टी भी थी । लेकिन मैंने वह पार्टी कैंसिल कर दी और राधा की जरूरत का सारा सामान खरीदा और वह सामान लेकर में राधा के घर पहुंच गई। राधा समझ ही नहीं पा रही थी कि इतना सारा सामान एक साथ में उसके घर मै क्यों लेकर गई। मैंने धीरे से उसको पास में बिठाया और बोला मुझे मैडम मत कहो मुझे अपनी बहन ही समझो यह सारा सामान मैं तुम्हारे लिए नहीं लाई हूं मेरे इन दोनों प्यारे बच्चों के लिए लाई हूं और हां मैंने राजू के लिए एक अच्छे डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है अपन को शाम 7:00 बजे उसको दिखाने चलना है उसका ऑपरेशन जल्द से जल्द करवा लेंगे और तब राजू भी अच्छी तरह से दोड़ने लग जाएगा। राधा यह बात सुनकर खुशी के मारे रो पड़ी लेकिन यह भी कहती रही कि "मैडम यह सब आप क्यों कर रहे हो?" हम बहुत छोटे लोग हैं हमारे यहां तो यह सब चलता ही रहता है। वह मेरे पैरों में गिरने लगी। यह सब सुनकर और देखकर मेरा मन भी द्रवित हो उठा और मेरी आंखों से भी आंसू के झरने फूट पड़े। मैंने उसको दोनों हाथों से ऊपर उठाया और गले लगा लिया मैंने बोला बहन रोने की जरूरत नहीं है अब इस घर की सारी जवाबदारी मेरी है। मैंने मन ही मन कहा राधा तुम क्या जानती हो कि मैं कितनी छोटी हूं और तुम कितने बड़ी हो आज तुम लोगों के कारण मेरी आंखे खुल सकीं। मेरे पास इतना सब कुछ होते हुए भी मैं भगवान से और अधिक की भीख मांगती रही मैंने कभी संतोष का अनुभव नहीं किया। लेकिन आज मैंने जाना के असली खुशी पाने में नहीं देने में है । मैं परमपिता परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कि आज उन्होंने मेरी आंखें खोल दी। मेरे पास जो कुछ था वह बहुत अधिक था उसके लिए मैंने परमात्मा को बार-बार अपने ऊपर उपकार माना तथा उस धन को जरूरतमंद लोगों के बीच खर्च करने का पक्का निर्णय किया।
Kaam Wali Bai

Bahoo Nahin Beti

बहू नहीं बेटी घर लाओ नई बहू से बात करते हुए सासु माँ ने बोली आज मेरे पैरों में बहुत दर्द हैं तभी बेटा देखों माँ के पैरों में दर्द है दबा दो बहुँ-: मैं सुबह से काम करके थक गई हूँ मुझे नींद आ रही हैं मैं सोने जा रही हुँ । पति चिल्लाते हुए -: शिखाआआ😡😡 तभी सासु -: हाय राम ! दो दिन की आयी हुई और ऐसे ज़ुबान चला रही है । कोई संस्कार है या नही तुमे शिखा : मम्मी जी आप लोगों ने मांगा नही था । सासु : क्या मतलब शिखा : हाँ मम्मी जी आपलोगों ने जो दहेज के समान का लिस्ट लिखा था उसमें संस्कार तो कही नही लिखा था । फ़्रीज टी वी अलमारी कैश गाड़ी सोने के सभी जेवरातबेड सोफा वाशिंग मशीन डिनर सेट और घर के जरूरत का सब समान लिखा था पर #संस्कार नहीं लिखा था मम्मी जी औऱ से सब जुटाने में मेरे पापा ने घर गिरवी रख दिया माँ ने सभी जेवर बेच दिया पापा के दोस्तों ने कुछ आर्थिक मदद की और कुछ कर्ज बैंक से हुआ है । बस इसी सब मे मैंने अपना संस्कार_भी_बेच_दिया । पति और सास की नज़र झुकी रह गयी ।

Bahoo Nahin Beti

Aik Grihni

एक गृहणी वो रोज़ाना की तरह आज फिर इश्वर का नाम लेकर उठी थी । किचन में आई और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया। फिर बच्चों को नींद से जगाया ताकि वे स्कूल के लिए तैयार हो सकें । कुछ ही पलों मे वो अपने सास ससुर को चाय देकर आयी फिर बच्चों का नाश्ता तैयार किया और इस बीच उसने बच्चों को ड्रेस भी पहनाई। फिर बच्चों को नाश्ता कराया। पति के लिए दोपहर का टिफीन बनाना भी जरूरी था। इस बीच स्कूल का रिक्शा आ गया और वो बच्चों को रिक्शा तक छोड़ने चली गई । वापस आकर पति का टिफीन बनाया और फिर मेज़ से जूठे बर्तन इकठ्ठा किये । इस बीच पतिदेव की आवाज़ आई की मेरे कपङे निकाल दो । उनको ऑफिस जाने लिए कपङे निकाल कर दिए। अभी पति के लिए उनकी पसंद का नाश्ता तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था की छोटी ननद आई और ये कहकर ये कहकर गई की भाभी आज मुझे भी कॉलेज जल्दी जाना, मेरा भी नाश्ता लगा देना। तभी देवर की भी आवाज़ आई की भाभी नाश्ता तैयार हो गया क्या? अभी लीजिये नाश्ता तैयार है। पति और देवर ने नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने अपने ऑफिस के लिए निकल चले । उसने मेज़ से खाली बर्तन समेटे और सास ससुर के लिए उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी । दोनों को नाश्ता कराने के बाद फिर बर्तन इकट्ठे किये और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी । इस बीच सफाई वाली भी आ गयी । उसने बर्तन का काम सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगेरा इकट्ठा करने पहुँच गयी और फिर सफाई वाली के साथ मिलकर सफाई में जुट गयी । अब तक 11 बज चुके थे, अभी वो पूरी तरह काम समेट भी ना पायी थी की काल बेल बजी । दरवाज़ा खोला तो सामने बड़ी ननद और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे । उसने ख़ुशी ख़ुशी सभी को आदर के साथ घर में बुलाया और उनसे बाते करते करते उनके आने से हुई ख़ुशी का इज़हार करती रही । ननद की फ़रमाईश के मुताबिक़ नाश्ता तैयार करने के बाद अभी वो नन्द के पास बेठी ही थी की सास की आवाज़ आई की बहु खाने का क्या प्रोग्राम हे । उसने घडी पर नज़र डाली तो 12 बज रहे थे । उसकी फ़िक्र बढ़ गयी वो जल्दी से फ्रिज की तरफ लपकी और सब्ज़ी निकाली और फिर से दोपहर के खाने की तैयारी में जुट गयी । खाना बनाते बनाते अब दोपहर का दो बज चुके थे । बच्चे स्कूल से आने वाले थे, लो बच्चे आ गये । उसने जल्दी जल्दी बच्चों की ड्रेस उतारी और उनका मुंह हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया । इस बीच छोटी नन्द भी कॉलेज से आगयी और देवर भी आ चुके थे । उसने सभी के लिए मेज़ पर खाना लगाया और खुद रोटी बनाने में लग गयी । खाना खाकर सब लोग फ्री हुवे तो उसने मेज़ से फिर बर्तन जमा करने शुरू करदिये । इस वक़्त तीन बज रहे थे । अब उसको खुदको भी भूख का एहसास होने लगा था । उसने हॉट पॉट देखा तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी । उसने फिर से किचिन की और रुख किया तभी पतिदेव घर में दाखिल होते हुये बोले की आज देर होगयी भूख बहुत लगी हे जल्दी से खाना लगादो । उसने जल्दी जल्दी पति के लिए खाना बनाया और मेज़ पर खाना लगा कर पति को किचिन से गर्म रोटी बनाकर ला ला कर देने लगी । अब तक चार बज चुके थे । अभी वो खाना खिला ही रही थी की पतिदेव ने कहा की आजाओ तुमभी खालो । उसने हैरत से पति की तरफ देखा तो उसे ख्याल आया की आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं । इस ख्याल के आते ही वो पति के साथ खाना खाने बैठ गयी । अभी पहला निवाला उसने मुंह में डाला ही था की आँख से आंसू निकल आये पति देव ने उसके आंसू देखे तो फ़ौरन पूछा की तुम क्यों रो रही हो । वो खामोश रही और सोचने लगी की इन्हें कैसे बताऊँ की ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता हे और लोग इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं । पति के बार बार पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा की कुछ नहीं बस ऐसे ही आंसू आगये । पति मुस्कुराये और बोले कि तुम औरते भी बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो, बिना वजह रोना शुरू करदेती हो। आप इसे शेयर नहीं करेंगे, अगर आपको भी लगता है की गृहणी मुफ़्त की रोटियां तोड़ती है । सभी गृहणियों को सादर समर्पित..🙏🏼
Aik Grihni

Kal Mai Dukan Se Jaldi

कल मैं दुकान से जल्दी घर चला आया। आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूं, कल 8 बजे ही चला आया। सोचा था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा, फिर कहूंगा कि कहीं बाहर खाना खाने चलते हैं। बहुत साल पहले, , हम ऐसा करते थे। घर आया तो पत्नी टीवी देख रही थी। मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है, मैं कम्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा, कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई, तो मैं चाय पीता हुआ दुकान के काम करने लगा। अब मन में था कि पत्नी के साथ बैठ कर बातें करूंगा, फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा, पर कब 8 से 11 बज गए, पता ही नहीं चला। पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया, मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते हुए मैंने कहा कि खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे, गप करेंगे। पत्नी खुश हो गई। हम खाना खाते रहे, इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा और मैं खाते-खाते सीरियल में डूब गया। सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था। जब नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी। बहुत अफसोस हुआ। मन में सोच कर घर आया था कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा। पर यहां तो शाम क्या आधी रात भी निकल गई। ऐसा ही होता है, ज़िंदगी में। हम सोचते कुछ हैं, होता कुछ है। हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे, पर हम कभी नहीं जीते। हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे, पर नहीं कर पाते। आधी रात को सोफे से उठा, हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा दिन के काम से थकी हुई सो गई थी। मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोच रहा था। पच्चीस साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था। पीले रंग के शूट में मुझे मिली थी। फिर मैने इससे शादी की थी। मैंने वादा किया था कि सुख में, दुख में ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा। पर ये कैसा साथ? मैं सुबह जागता हूं अपने काम में व्यस्त हो जाता हूं। वो सुबह जागती है मेरे लिए चाय बनाती है। चाय पीकर मैं कम्यूटर पर संसार से जुड़ जाता हूं, वो नाश्ते की तैयारी करती है। फिर हम दोनों दुकान के काम में लग जाते हैं, मैं दुकान के लिए तैयार होता हूं, वो साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है। फिर हम दोनों भविष्य के काम में लग जाते हैं। मैं एकबार दुकान चला गया, तो इसी बात में अपनी शान समझता हूं कि मेरे बिना मेरा दुकान का काम नहीं चलता, वो अपना काम करके डिनर की तैयारी करती है। देर रात मैं घर आता हूं और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं। एक पूरा दिन खर्च हो जाता है, जीने की तैयारी में। वो पंजाबी शूट वाली लड़की मुझ से कभी शिकायत नहीं करती। क्यों नहीं करती मैं नहीं जानता। पर मुझे खुद से शिकायत है। आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है, सबसे कम उसी की परवाह करता है। क्यों? कई दफा लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते। हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए काम करते हैं। हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं। कल से मैं सोच रहा हूं, वो कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे। क्या हम गाड़ी, टीवी, फोन, कम्यूटर, कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं? मैं तो सोच ही रहा हूं, आप भी सोचिए कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे यूं जाया मत कीजिए। अपने प्यार को पहचानिए। उसके साथ समय बिताइए। जो अपने माँ बाप भाई बहन सागे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश्ता जोड़ आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा किया उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही। एक दिन अफसोस करने से बेहतर है, सच को आज ही समझ लेना कि ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है। कब मुट्ठी से वो निकल जाएगी, पता भी नहीं चलेगा।
Kal Mai Dukan se Jaldi

Sharma Ji Office Se

दिल को छू जाने वाली कहानी ऑफिस से निकल कर शर्मा जी ने स्कूटर स्टार्ट किया ही था कि उन्हें याद आया पत्नी ने कहा था 1 किलो जामुन लेते आना। तभी उन्हें सड़क किनारे बड़े और ताज़ा जामुन बेचते हुए एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गयी। वैसे तो वह फल हमेशा राम आसरे फ्रूट भण्डार से ही लेते थे पर आज उन्हें लगा कि क्यों न बुढ़िया से ही खरीद लूँ ? उन्होंने बुढ़िया से पूछा माई जामुन कैसे दिए बुढ़िया बोली बाबूजी 40 रूपये किलो शर्माजी बोले माई 30 रूपये दूंगा। बुढ़िया ने कहा 35 रूपये दे देना दो पैसे मै भी कमा लूंगी। शर्मा जी बोले 30 रूपये लेने हैं तो बोल बुझे चेहरे से बुढ़िया नेन मे गर्दन हिला दी। शर्माजी बिना कुछ कहे चल पड़े और राम आसरे फ्रूट भण्डार पर आकर जामुन का भाव पूछा तो वह बोला 50 रूपये किलो हैं बाबूजी कितने दूँ ? शर्माजी बोले 5 साल से फल तुमसे ही ले रहा हूँ ठीक भाव लगाओ। तो उसने सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया। बोर्ड पर लिखा था- मोल भाव करने वाले माफ़ करें शर्माजी को उसका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा उन्होंने कुछ सोचकर स्कूटर को वापस ऑफिस की ओर मोड़ दिया। सोचते सोचते वह बुढ़िया के पास पहुँच गए। बुढ़िया ने उन्हें पहचान लिया और बोली बाबूजी जामुन दे दूँ पर भाव 35 रूपये से कम नही लगाउंगी। शर्माजी ने मुस्कराकर कहा माई एक नही दो किलो दे दो और भाव की चिंता मत करो। बुढ़िया का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा। जामुन देते हुए बोली। बाबूजी मेरे पास थैली नही है । फिर बोली एक टाइम था जब मेरा आदमी जिन्दा था तो मेरी भी छोटी सी दुकान थी। सब्ज़ी फल सब बिकता था उस पर। आदमी की बीमारी मे दुकान चली गयी आदमी भी नही रहा। अब खाने के भी लाले पड़े हैं। किसी तरह पेट पाल रही हूँ। कोई औलाद भी नही है जिसकी ओर मदद के लिए देखूं। इतना कहते कहते बुढ़िया रुआंसी हो गयी और उसकी आंखों मे आंसू आ गए । शर्माजी ने 100 रूपये का नोट बुढ़िया को दिया तो वो बोली बाबूजी मेरे पास छुट्टे नही हैं। शर्माजी बोले माई चिंता मत करो रख लो अब मै तुमसे ही फल खरीदूंगा और कल मै तुम्हें 1000 रूपये दूंगा। धीरे धीरे चुका देना और परसों से बेचने के लिए मंडी से दूसरे फल भी ले आना। बुढ़िया कुछ कह पाती उसके पहले ही शर्माजी घर की ओर रवाना हो गए। घर पहुंचकर उन्होंने पत्नी से कहा न जाने क्यों हम हमेशा मुश्किल से पेट पालने वाले थड़ी लगा कर सामान बेचने वालों से मोल भाव करते हैं किन्तु बड़ी दुकानों पर मुंह मांगे पैसे दे आते हैं। शायद हमारी मानसिकता ही बिगड़ गयी है। गुणवत्ता के स्थान पर हम चकाचौंध पर अधिक ध्यान देने लगे हैं। अगले दिन शर्माजी ने बुढ़िया को 500 रूपये देते हुए कहा माई लौटाने की चिंता मत करना। जो फल खरीदूंगा उनकी कीमत से ही चुक जाएंगे। जब शर्माजी ने ऑफिस मे ये किस्सा बताया तो सबने बुढ़िया से ही फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया। तीन महीने बाद ऑफिस के लोगों ने स्टाफ क्लब की ओर से बुढ़िया को एक हाथ ठेला भेंट कर दिया। बुढ़िया अब बहुत खुश है। उचित खान पान के कारण उसका स्वास्थ्य भी पहले से बहुत अच्छा है । हर दिन शर्माजी और ऑफिस के दूसरे लोगों को दुआ देती नही थकती। शर्माजी के मन में भी अपनी बदली सोच और एक असहाय निर्बल महिला की सहायता करने की संतुष्टि का भाव रहता है! @जीवन मे किसी बेसहारा की मदद करके देखो यारों अपनी पूरी जिंदगी मे किये गए सभी कार्यों से ज्यादा संतोष मिलेगा 🙏🙏🙏🙏

Sharma Ji Office se

Rishtey Ki Seemayen

हर रिश्ते की कुछ सीमाएं होती हैंउसे ना तोड़े जब भी रमेश की पत्नी गीता रमेश के साथ मायके जाने की बातें करती थी तो रमेश भी रोमांचित हो जाता रोमांचित होने का कारण था जवानी की दहलीज पे पैर रखती हुई उसकी खुबसुरत साली निशा साली के साथ होने वाले रोमान्टिक बातें और उसकी मुस्कान उसे बेहद पसंद थे रमेश और गीता ससुराल पहुँच गए गीता जहां रिश्तेदारों से बातचीत के लिए कहीं निकल पड़ी वही रमेश अकेलेपन का फायदा लेते हुए साली के पास पहुँच गया और उसके साथ बतियाने लगा वह साली के मंद मुस्कान और खुबसुरत चेहरे पर फिदा हो चुका था खुद को संभाल नहीं पाया और मौका देखते ही निशा के गाल पे एक चुम्बन जड़ दिया जबाब मे निशा ने मुस्कुराते हुए कहा- जीजू बहुत दिनों से आप को कुछ बोलना चाहती थी आज मौका मिल गया कह दूं रमेश उत्साहित दिख रहा था उसे लगा शायद निशा भी वही चाहती होगी जो वह चाहता है तो खुश होते हुए बोला- बताओ क्या बात है निशा ने कहा- जीजू अगर आपकी ये हरकत दीदी देख लेती तो उसे कैसा लगता वह कितना टूट जाती कभी सोचा है आपने इस बारे में रमेश ने किंचित भी डगमगाए बिना बोल दिया- अरी पगली तुम तो मेरी साली हो - वह कहते हैं ना कि साली आधी घरवाली होती है यह सब तो तुम्हारी दीदी के साथ होते हुए थोड़े ही होगा निशा -जी बोलते तो है वैसे कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि साली को फुसलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती निशा ने नजरें चुराते हुए कहा रमेश रोमांचित हो रहा था निशा ने फिर से उस से अनुरोध की- सुनिए जीजू एक और बात भी बोलना चाहती थी पर हिम्मत नहीं जुटा पाई आज शायद मौका हाथ में है बोलो नारमेश सुनने को आतुर था निशा ने नजदीक आते हुए कहा- मैं ठहरी आपकी इकलौती सालीऔर आप मेरे इकलौते जीजू मगर सोचती हूं जब मुझे सिर्फ एक जीजू को झेलना इतना कठिन है तो बारी-बारी से घर में आने वाले पाँच-पाँच जीजाओं को झेलना आपकी सब से छोटी बहन मीनू को कितना कठिन लगता होगा क्यो जीजू? निशा के मुंह से ये सुनकर रमेश का सिर शर्म से झुक गया दोस्तों साली से हंसी मजाक एक सीमा तक ही कीजिए याद रखिए वो भी किसी की बेटी है बहन है जैसे आपकी बहन है बेटी है दोस्तों स्त्री कोई खिलौना नही है उसे सम्मान दीजिए एक अच्छा इंसान बनकर।।

Rishtey ki seemayen

Patni Ho To Aisi

पत्नि_हो_तो_ऐैसी बेटा अब खुद कमाने वाला हो गया था ...इसलिए बात-बात पर अपनी माँ से झगड़ पड़ता था .... ये वही माँ थी जो बेटे के लिए पति से भी लड़ जाती थी।मगर अब फाइनेसिअली इंडिपेंडेंट बेटा पिता के कई बार समझाने पर भी इग्नोर कर देता और कहता, "यही तो उम्र है शौक की, खाने पहनने की, जब आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी तो क्या करूँगा।" * बहू खुशबू भी भरे पूरे परिवार से आई थी, इसलिए बेटे की गृहस्थी की खुशबू में रम गई थी। बेटे की नौकरी अच्छी थी तो फ्रेंड सर्किल उसी हिसाब से मॉडर्न थी । बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर मॉडर्न बनने को कहता, मगर बहू मना कर देती .....वो कहता "कमाल करती हो तुम, आजकल सारा ज़माना ऐसा करता है, मैं क्या कुछ नया कर रहा हूँ। तुम्हारे सुख के लिए सब कर रहा हूँ और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो। क्वालिटी लाइफ क्या होती है तुम्हें मालूम ही नहीं।" * और बहू कहती "क्वालिटी लाइफ क्या होती है, ये मुझे जानना भी नहीं है, क्योकि लाइफ की क्वालिटी क्या हो, मैं इस बात में विश्वास रखती हूँ।" * आज अचानक पापा आई. सी. यू. में एडमिट हुए थे। हार्ट अटेक आया था। डॉक्टर ने पर्चा पकड़ाया, तीन लाख और जमा करने थे। डेढ़ लाख का बिल तो पहले ही भर दिया था मगर अब ये तीन लाख भारी लग रहे थे। वह बाहर बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करे..... उसने कई दोस्तों को फ़ोन लगाया कि उसे मदद की जरुरत है, मगर किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ बहाना कर दिया। आँखों में आँसू थे और वह उदास था।.....तभी खुशबू खाने का टिफिन लेकर आई और बोली, "अपना ख्याल रखना भी जरुरी है। ऐसे उदास होने से क्या होगा? हिम्मत से काम लो, बाबू जी को कुछ नहीं होगा आप चिन्ता मत करो । कुछ खा लो फिर पैसों का इंतजाम भी तो करना है आपको।.... मैं यहाँ बाबूजी के पास रूकती हूँ आप खाना खाकर पैसों का इंतजाम कीजिये। ".......पति की आँखों से टप-टप आँसू झरने लगे। * "कहा न आप चिन्ता मत कीजिये। जिन दोस्तों के साथ आप मॉडर्न पार्टियां करते हैं आप उनको फ़ोन कीजिये , देखिए तो सही, कौन कौन मदद को आता हैं।"......पति खामोश और सूनी निगाहों से जमीन की तरफ़ देख रहा था। कि खुशबू का का हाथ उसकी पीठ पर आ गया। और वह पीठ को सहलाने लगी। * "सबने मना कर दिया। सबने कोई न कोई बहाना बना दिया खुशबू ।आज पता चला कि ऐसी दोस्ती तब तक की है जब तक जेब में पैसा है। किसी ने भी हाँ नहीं कहा जबकि उनकी पार्टियों पर मैंने लाखों उड़ा दिये।" * "इसी दिन के लिए बचाने को तो माँ-बाबा कहते थे। खैर, कोई बात नहीं, आप चिंता न करो, हो जाएगा सब ठीक। कितना जमा कराना है?" * "अभी तो तनख्वाह मिलने में भी समय है, आखिर चिन्ता कैसे न करूँ खुशबू ?" * "तुम्हारी ख्वाहिशों को मैंने सम्हाल रखा है।" * "क्या मतलब?" * "तुम जो नई नई तरह के कपड़ो और दूसरी चीजों के लिए मुझे पैसे देते थे वो सब मैंने सम्हाल रखे हैं। माँ जी ने फ़ोन पर बताया था, तीन लाख जमा करने हैं। मेरे पास दो लाख थे। बाकी मैंने अपने भैया से मंगवा लिए हैं। टिफिन में सिर्फ़ एक ही डिब्बे में खाना है बाकी में पैसे हैं।" खुशबू ने थैला टिफिन सहित उसके हाथों में थमा दिया। * "खुशबू ! तुम सचमुच अर्धांगिनी हो, मैं तुम्हें मॉडर्न बनाना चाहता था, हवा में उड़ रहा था। मगर तुमने अपने संस्कार नहीं छोड़े.... आज वही काम आए हैं। " * सामने बैठी माँ के आँखो में आंसू थे उसे आज खुद के नहीं बल्कि पराई माँ के संस्कारो पर नाज था और वो बहु के सर पर हाथ फेरती हुई ऊपरवाले का शुक्रिया अदा कर रही थी। {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?} ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे
Patni Ho to Aisi

Tera Tujhko Appan

तेरा तुझ को अर्पण 🙏🙏 एक पुरानी सी इमारत में वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपनी तंत्रिकाओं पर नियंत्रण पा लिया। आटे-दाल-चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था, *"बेटी का विवाह 20 तारीख़ को है, उसके दहेज का सामान।"* कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की क़ीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा, '' *यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।*'' एक-दो रोगी आए थे। उन्हें वैद्यजी दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दवाखाने के सामने आकर रुकी। वैद्यजी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके पास आते रहते थे। दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह सूटेड-बूटेड साहब कार से बाहर निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैद्यजी ने कहा कि अगर आपको अपने लिए दवा लेनी है तो इधर स्टूल पर आएँ ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करें। वह साहब कहने लगे "वैद्यजी! आपने मुझे पहचाना नहीं। मेरा नाम कृष्णलाल है लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आपके दवाखाने पर आया हूँ। आप को पिछली मुलाकात का हाल सुनाता हूँ, फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो मैं खुद नहीं आया था अपितु ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि मैं कार से अपने पैतृक घर जा रहा था। बिल्कुल आपके दवाखाने के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर लगवाने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा था तो आप मेरे पास आए और दवाखाने की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें और कुर्सी पर आकर बैठ गया। ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी। एक छोटी-सी बच्ची भी यहाँ आपकी मेज़ के पास खड़ी थी और बार-बार कह रही थी, '' चलो न बाबा, मुझे भूख लगी है। आप उससे कह रहे थे कि बेटी थोड़ा धीरज धरो, चलते हैं। मैं यह सोच कर कि इतनी देर से आप के पास बैठा था और मेरे ही कारण आप खाना खाने भी नहीं जा रहे थे। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें। मैंने कहा वैद्यजी मैं पिछले 5-6 साल से इंग्लैंड में रहकर कारोबार कर रहा हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चे के सुख से वंचित हूँ। यहाँ भी इलाज कराया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत ने निराशा के सिवा और कुछ नहीं दिया।" आपने कहा था, "मेरे भाई! भगवान से निराश न होओ। याद रखो कि उसके कोष में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। आस-औलाद, धन-इज्जत, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। यह किसी वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहीं होता और न ही किसी दवा में होता है। जो कुछ होना होता है वह सब भगवान के आदेश से होता है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे थे और साथ-साथ पुड़िया भी बनाते जा रहे थे। सभी दवा आपने दो भागों में विभाजित कर दो अलग-अलग लिफ़ाफ़ों में डाली थीं और फिर मुझसे पूछकर आप ने एक लिफ़ाफ़े पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखकर दवा उपयोग करने का तरीका बताया था। मैंने तब बेदिली से वह दवाई ले ली थी क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पैसे पूछे तो आपने कहा था, बस ठीक है। मैंने जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है। मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने हमारी चर्चा सुनकर मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी राशि वैद्यजी ने भगवान से माँगी थी वह ईश्वर ने उन्हें दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते। मैं कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में लज्जित भी कि मेरे विचार कितने निम्न थे और यह सरलचित्त वैद्य कितना महान है। मैंने जब घर जा कर पत्नी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। आज मेरे घर में दो फूल खिले हुए हैं। हम दोनों पति-पत्नी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। इतने साल तक कारोबार ने फ़ुरसत ही न दी कि स्वयं आकर आपसे धन्यवाद के दो शब्द ही कह जाता। इतने बरसों बाद आज भारत आया हूँ और कार केवल यहीं रोकी है। वैद्यजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड में सेटल हो चुका है। केवल मेरी एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ भारत में रहती है। हमारी भान्जी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी है। न जाने क्यों जब-जब मैं अपनी भान्जी के भात के लिए कोई सामान खरीदता था तो मेरी आँखों के सामने आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी और हर सामान मैं दोहरा खरीद लेता था। मैं आपके विचारों को जानता था कि संभवतः आप वह सामान न लें किन्तु मुझे लगता था कि मेरी अपनी सगी भान्जी के साथ जो चेहरा मुझे बार-बार दिख रहा है वह भी मेरी भान्जी ही है। मुझे लगता था कि ईश्वर ने इस भान्जी के विवाह में भी मुझे भात भरने की ज़िम्मेदारी दी है। वैद्यजी की आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं और बहुत धीमी आवाज़ में बोले, '' कृष्णलाल जी, आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा कि ईश्वर की यह क्या माया है। आप मेरी श्रीमती के हाथ की लिखी हुई यह चिठ्ठी देखिये।" और वैद्यजी ने चिट्ठी खोलकर कृष्णलाल जी को पकड़ा दी। वहाँ उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि ''दहेज का सामान'' के सामने लिखा हुआ था '' यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।'' काँपती-सी आवाज़ में वैद्यजी बोले, "कृष्णलाल जी, विश्वास कीजिये कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि पत्नी ने चिठ्ठी पर आवश्यकता लिखी हो और भगवान ने उसी दिन उसकी व्यवस्था न कर दी हो। आपकी बातें सुनकर तो लगता है कि भगवान को पता होता है कि किस दिन मेरी श्रीमती क्या लिखने वाली हैं अन्यथा आपसे इतने दिन पहले ही सामान ख़रीदना आरम्भ न करवा दिया होता परमात्मा ने। वाह भगवान वाह! तू महान है तू दयावान है। मैं हैरान हूँ कि वह कैसे अपने रंग दिखाता है।" वैद्यजी ने आगे कहा,सँभाला है, एक ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का आभार करो, शाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करो, खाते समय उसका आभार करो, सोते समय उसका आभार करो। अगर यह पोस्ट आप लोगों को अच्छा लगा हो तो ज्यादा से ज्यादा शेयर कर अपने प्रिय जनों तक पहुंचाने का कष्ट करे।🌷🌷🌷🌷
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Three Brothers And Sister

एक घर मे तीन भाई और एक बहन थी...बड़ा और छोटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके माँ बाप उन चारो से बेहद प्यार करते थे मगर मंझले बेटे से थोड़ा परेशान से थे। बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डाक्टर बन गया। छोटा भी पढ लिखकर इंजीनियर बन गया। मगर मंझला बिलकुल अवारा और गंवार बनके ही रह गया। सबकी शादी हो गई । बहन और मंझले को छोड़ दोनों भाईयो ने Love मैरेज की थी। बहन की शादी भी अच्छे घराने मे हुई थी। आख़िर भाई सब डाक्टर इंजीनियर जो थे। अब मंझले को कोई लड़की नहीं मिल रही थी। बाप भी परेशान मां भी। बहन जब भी मायके आती सबसे पहले छोटे भाई और बड़े भैया से मिलती। मगर मझले से कम ही मिलती थी। क्योंकि वह न तो कुछ दे सकता था और न ही वह जल्दी घर पे मिलता था। वैसे वह दिहाडी मजदूरी करता था। पढ़ नहीं सका तो...नौकरी कौन देता। मझले की शादी कीये बिना बाप गुजर गये । माँ ने सोचा कहीं अब बँटवारे की बात न निकले इसलिए अपने ही गाँव से एक सीधी साधी लड़की से मझले की शादी करवा दी। शादी होते ही न जाने क्या हुआ की मझला बड़े लगन से काम करने लगा । दोस्तों ने कहा... ए चन्दू आज अड्डे पे आना। चंदू - आज नहीं फिर कभी दोस्त - अरे तू शादी के बाद तो जैसे बीबी का गुलाम ही हो गया? चंदू - अरे ऐसी बात नहीं । कल मैं अकेला एक पेट था तो अपने रोटी के हिस्से कमा लेता था। अब दो पेट है आज । कल और होगा। घरवाले नालायक कहते हैं मेरे लिए चलता है। मगर मेरी पत्नी मुझे कभी नालायक कहे तो मेरी मर्दानगी पर एक भद्दा गाली है। क्योंकि एक पत्नी के लिए उसका पति उसका घमंड इज्जत और उम्मीद होता है। उसके घरवालो ने भी तो मुझपर भरोसा करके ही तो अपनी बेटी दी होगी...फिर उनका भरोसा कैसे तोड़ सकता हूँ । कालेज मे नौकरी की डिग्री मिलती है और ऐसे संस्कार मा बाप से मिलते हैं । इधर घरपे बड़ा और छोटा भाई और उनकी पत्नियां मिलकर आपस मे फैसला करते हैं की...जायदाद का बंटवारा हो जाये क्योंकि हम दोनों लाखों कमाते है मगर मझला ना के बराबर कमाता है। ऐसा नहीं होगा। मां के लाख मना करने पर भी...बंटवारा की तारीख तय होती है। बहन भी आ जाती है मगर चंदू है की काम पे निकलने के बाहर आता है। उसके दोनों भाई उसको पकड़कर भीतर लाकर बोलते हैं की आज तो रूक जा? बंटवारा कर ही लेते हैं । वकील कहता है ऐसा नहीं होता। साईन करना पड़ता है। चंदू - तुम लोग बंटवारा करो मेरे हिस्से मे जो देना है दे देना। मैं शाम को आकर अपना बड़ा सा अगूंठा चिपका दूंगा पेपर पर। बहन- अरे बेवकूफ ...तू गंवार का गंवार ही रहेगा। तेरी किस्मत अच्छी है की तू इतनी अच्छे भाई और भैया मिलें मां- अरे चंदू आज रूक जा। बंटवारे में कुल दस विघा जमीन मे दोनों भाई 5- 5 रख लेते हैं । और चंदू को पुस्तैनी घर छोड़ देते है तभी चंदू जोर से चिल्लाता है। अरे???? फिर हमारी छुटकी का हिस्सा कौन सा है? दोनों भाई हंसकर बोलते हैं अरे मूरख...बंटवारा भाईयो मे होता है और बहनों के हिस्से मे सिर्फ उसका मायका ही है। चंदू - ओह... शायद पढ़ा लिखा न होना भी मूर्खता ही है। ठीक है आप दोनों ऐसा करो। मेरे हिस्से की वसीएत मेरी बहन छुटकी के नाम कर दो। दोनों भाई चकितहोकर बोलते हैं । और तू? चंदू मां की और देखके मुस्कुराके बोलता है मेरे हिस्से में माँ है न...... फिर अपनी बिबी की ओर देखकर बोलता है..मुस्कुराके. ..क्यों चंदूनी जी...क्या मैंने गलत कहा? चंदूनी अपनी सास से लिपटकर कहती है। इससे बड़ी वसीएत क्या होगी मेरे लिए की मुझे मां जैसी सासु मिली और बाप जैसा ख्याल रखना वाला पति। बस येही शब्द थे जो बँटवारे को सन्नाटा मे बदल दिया । बहन दौड़कर अपने गंवार भैया से गले लगकर रोते हुए कहती है की..मांफ कर दो भैया मुझे क्योंकि मैं समझ न सकी आपको। चंदू - इस घर मे तेरा भी उतना ही अधिकार है जीतना हम सभी का। बहुओं को जलाने की हिम्मत किसी मे नहीं होती मगर फिर भी जलाई जाती है क्योंकि शादी के बाद हर भाई हर बाप उसे पराया समझने लगते हैं । मगर मेरे लिए तुम सब बहुत अजीज हो चाहे पास रहो या दुर। माँ का चुनाव इसलिए कीया ताकी तुम सब हमेशा मुझे याद आओ। क्योंकि ये वही कोख है जंहा हमने साथ साथ 9 - 9 महीने गुजारे। मां के साथ तुम्हारी यादों को भी मैं रख रहा हूँ। दोनों भाई दौड़कर मझले से गले मिलकर रोते रोते कहते हैं आज तो तू सचमुच का बाबा लग रहा है। सबकी पलको पे पानी ही पानी। सब एक साथ फिर से रहने लगते है। {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?} मेरा पूरा पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया इस तरह का पोस्ट पढ़ने के लिए आपको अच्छा लगता हो तो मुझे फेंड रिकवेस्ट भेजे या सिर्फ फौलो भी कर सकते हैं हम हमेशा कुछ ना कुछ पोस्ट लेकर ही आएंगे जो आपके दिल को छू जाएगा शुक्रिया आपका धन्यवाद दिल से आपका दोस्त..😭😭 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 . ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे
Three brothers and sister

Pita A Hindi Story

😭😭😭😭----- पिता -----😭😭😭😭 पांच साल ससुराल रहने के बाद बेटी पीहर लौट आई थी ससुराल कभी वापस ना जाने के लिए। पिता की आँखों में सवाल थे। माँ के पास तमाम सवालों के जवाब।पर पिता बेटी से ही सुनना चाहते थे। बेटी ने पिता का पर्दा किया और तमाम सवालों के जवाब दिये। "किस तरह ससुराल में दूधमुहि बेटी को छोड़ खेतों में काम करने के बाद भी बेटी को गले नहीं लगा सकती।काम का बोझ, उस पर भी ढोर डंगर की जिम्मेदारी भी उसी की। उस पर भी सासू जी के ताने छलनी करते हैं। उपेक्षा का दंश झेलने के बावजूद प्यार के दो बोल के लिए तरस जाती है वो।" "इसमें नया क्या है बेटा, हमने भी यही सब किया है, हर औरत यही करती है। तुम कोई नवेली तो हो नही जो तुम्हारे साथ कुछ अलग होगा?" माँ ने घूँघट की ओट से कहा। पिता कुछ पल सोचते रहे। फिर बेटी के ससुराल फ़ोन लगाया। " आपसे बात करनी है, जितनी जल्दी आ सकें जवाई जी के साथ पधारिये।" बेटी का पति, सास और ससुर हाजिर थे। "बहू अगर घर का काम न करे, खेत पर न जाए, ढोर डंगर की देखभाल, दूध निकलना ना करे तो क्या उसे आलिये में बैठा के पूजा करें उसकी।" सास का सवाल था। "ऐसा तो नहीं कहा उसने कि पूजा कीजिये उसकी। मगर कम से कम उसे इंसान तो समझिए। उसकी बच्ची से पूरा दिन उसे दूर रहना पड़ता है, आखिर दूध पीती बच्ची है अभी उसकी। पर आप लोग उसे बहू कम नौकरानी ज्यादा समझ रहे हैं।" कमरे में क्षण भर चुप्पी छा गई। "अब मेरी बेटी आपके साथ नहीं जाएगी। उसके नाम से जमीन का चौथा हिस्सा और मकान कीजिये। और आप चाहें तो दूसरी शादी करने को स्वतंत्र हैं।" पिता ने फैसला सुनाया। "खाना खाकर पधारें आप..." पिता ने हाथ जोड़े और दरवाजे से निकल गए। बेटी दरवाजे की ओट से सब सुन रही थी। पिता ने बेटी के सर पर हाथ रखा। "शादी ही की है, इसका ये मतलब नहीं कि तुझे अकेला छोड़ दिया है। अब भी मेरा गुरुर है तू।" पिता ने बेटी के सर पर हाथ फेरा। आँखे दोनों की छलछला रहीं थी 😢😢😢 ----
Pita A hindi Story

Two Old Man

एक पार्क मे दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे.... पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BE किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है कोई लडका नजर मे हो तो बताइएगा..v दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...?? पहला :- कुछ खास नही.. बस लडका ME /M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो... दूसरा :- और कुछ... पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए.. मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए.. वो क्या है लडाई झगड़े होते है... दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नही है, मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है.. पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का.. दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है की लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो... कहते कहते उनका गला भर आया.. फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी.... पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा... दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही... मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बडे ,घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है... वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी... पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नही बोल पाए... दोस्तों परिवार है तो जीवन मे हर खुशी, खुशी लगती है अगर परिवार नही तो किससे अपनी खुशियाँ और गम बांटोगे.
Two Old Man

Sanskaar Hindi Story

------------ संस्कार ------------ मिसेज शर्मा के घर किट्टी पार्टी में हाई क्लास घर की औरतें अंग्रेजी में मेल मिलाप करते हुए हाय शोना हाय स्वीटहार्ट हे डार्लिंगव्हाट्स आप फाइन बेबी ह्ह्ह्ह्हम्म्म्म्म ओह कम ऑन उम्मम्मम्मह्ह्ह्ह्हाआ ये सभी पार्टी का आनंद ले ही रही थीं कि मिसेज शर्मा की भतीजी सृष्टि जो बिलकुल सादे कपड़ों में नीचे हॉल में आई। मिसेज शर्मा ये कौन है नई नौकरानी रखी है क्या ? मिसेज गुप्ता ने सृष्टि की तरफ इशारा करते हुए पूछा। मिसेज शर्मा ने कहा नहीं ये मेरी भतीजी है आज ही गाँव से आई है उन्होंने सृष्टि को अपने पास बुलाया सृष्टि ने नमस्ते से सबका अभिवादन किया ही था कि सभी खिलखिला कर हँस पड़ीं मिसेज सैनी तो बोल ही पड़ी गाँव से आई है इस से अधिक उम्मीद भी नहीं थी। सृष्टि बोली :- माफ करना आँटी लेकिन शुक्र है गाँव वालों से कम से कम आपको इतनी उम्मीद तो है कि वो अपने संस्कार सहेज कर रखते हैं जो उन्हें हर किसी की इज्जत करना सिखाता है और छोटे हों या बड़े हों सभी के मान और प्रतिष्ठा का पूरा ख्याल रखते हैं वरना शहर के शो कॉल्ड हाई क्लास दिखावे से तो मुझे इतनी भी उम्मीद नहीं है कि वो मातृभाषा में किए अभिवादन का प्रतिउत्तर देने के काबिल भी होंगे आप लोगों का ये बनावटी दिखावापन है और खोखला घमंड है बाकि कुछ नहीं है इतना कहकर सृष्टि वहाँ से चली गई। मिसेज शर्मा गरम पड़ गईं और तुनकते हुए बोलीं कि आप सब जानती भी हैं वो यूक्रेन से डॉक्टर की पढ़ाई करके आई है दो साल कैनेडा के रिसर्च सेंटर में काम किया है और अभी अपने गाँव में अपने खुद के पैसों से हॉस्पिटल खोलने की तैयारी कर रही है ताकि अपने गाँव के गरीबों की सेवा कर सके वैसे कैनेडा में ही उसको अच्छा खासा पैकेज मिल रहा था मगर अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करने का जज्बा उसे अपने गाँव तक खींच लाया है। मिसेज शर्मा की बात सुनने के बाद किट्टी पार्टी के दिखावे वाली रौनक शर्म और ग्लानि के नीचे दबी हुई सी महसूस कर रही थी सभी एक दूसरे से नज़र तक नहीं मिला पा रहीं थीं चारों तरफ सन्नाटा मानो मातम पसर गया हो।। अगर ये संदेश पसंद आया हो तो कृपया काँमेट जरूर करें (((धन्यवाद))) 🙏🙏🙏

Sanskaar hindi story

Mai Jab Ghar Me Aai

मै .....जब से इस घर मे आई आपको अपनी बड़ी बहन माना, मेरी कोई बहन नही थी तो मै बहुत खुश थी कि मुझे जेठानी के रुप मे दीदी मिल गई है। मैने कितना सोचा था, कि हम साथ मे मिलकर रहेगे ,आप से ढेर सारी बाते करुगी कुछ पूछना होगा तो पूछ लूंगी,पर मेरे सारे अरमान धरे के धरे रह गए । पर...... आप ने मेरी भावनाओ को कभी समझा ही नहीं। आप आई थी इस घर मे तो सब उतना ही खुश रहे होगे जितना मेरे आने से, लेकिन आप को तकलीफ होने लगी कि मेरे आने से आपका मान सम्मान कम हो गया है। पर ये आपकी गलतफ़हमी थी। आज भी आपका वही ओहदा है जो कल था बस फर्क ये है कि कल आप अकेली बहु थी और आज मै भी हूँ। जब......... भी मै कुछ नया बनाती थी आप कितनी खुशी से खिलाने के लिये ले जाती थी पर आप कभी टेस्ट नही करती थी। कि मेरे बनाये का सब लोग तारीफ़ कर रहे है, इस बात से भी आपको तकलीफ होती थी। जब .........भी मै रात का खाना बनाती आप अपने हिस्से की शब्जी धीरे से जूठे मे डाल देती, और घरवालो के सामने ये जताती कि मै आपके लिए शब्जी नही रखती आपको आचार से खाना पड़ता।हमेशा आप मुझे हर जगह नीचा दिखाने की कोशिश करती है। अगर कुछ मुझसे बिगड़ जाता तो आप बताने की जगह घुम घुम कर दिखाने लगती मै ......हमेशा कोशिश करती कि आप की छोटी बहन बनू पर आप हमेशा अपना मुझे प्रतिद्वन्दी ही समझा। उस...... दिन मैने कितनी उम्मीद से कहा था कि दीदी आप मेरे साथ मार्केट चल चलिए पर आपने तुरंत मना कर दिया। और बाद मे आप अकेले चल गई। जब कभी आप खाली नही रहती थी तो आप के बच्चे को मै देख लेती थी ,उसका नैपकिन भी बदल देती थी। पर जब मेरा बच्चा हुआ तो, आप तो उसकी बड़ी मम्मी थी। पर एक बार भी उसको गोद नही लिया। मैने आपको बड़ी बहन समझा था पर आप तो जेठानी भी नहीं बन पाई। अक्सर घर मे दो बहु रहती है।घर के सदस्य किसी एक की तारीफ करते है तो कभी बड़ी को छोटी के प्रति तो कभी छोटी के बड़ी के प्रति द्वेष की भावना उत्पन्न होने लगती है। पर एक दूसरे के भावनाओ को समझने लगे तो ऐसी स्थिति कभी उत्पन्न नही होगी। पोस्ट पसंद आये तो लाइक ,कमेंट जरूर करे। धन्यवाद॥
Mai Jab Ghar Me Aai

Paraya Ghar

एक बार पढ़ कर देखो ☺ शादी के तीसरे दिन ही बीएड का इम्तेहान देने जाना था उसे। रात भर ठीक से सो भी नहीं पायी थी। किताब के पन्नों को पलटते हुए कब भोर हुई पता भी नहीं चला। हल्का उजाला हुआ तो रितु जगाने के लिए आ गयी। बहुत मेहमान थे तो सबके जागने से पहले ही दुल्हन नहा ले। नहीं तो फिर आंगन में भीड़ बढ़ जाएगी। सबके सामने सब गीले बाल सिर पर पल्लू लिए बिना थोड़े निकलेगी। नहा कर रूम मे बैठ कर फिर किताब में खो गयी। मुँह-दिखाई के लिए दो-चार औरतें आयी थी। सब मुँह देख कर हाथों में मुड़े-तुड़े कुछ पचास के नोट और सिक्के दे कर बैठ गयी ओसारा पर। घड़ी में देखा तो साढ़े आठ बज़ रहे थे। नौ बजे निकलना था। तैयार होने के लिए आईने के सामने साड़ी ले कर खड़ी हो गयी। चार-पाँच बार बांधने की कोशिश की मगर ऊपर-नीचे होते हुए वो बंध न पाया। साड़ी पकड़ कर रुआंसी सी हो कर बैठ गयी। जीजी को बोला था शादी नहीं करो मेरी अभी। इम्तेहान दे देने दो। मेरा साल बर्बाद हो जायेगा मगर मेरी एक न सुनी। नौकरी वाला दूल्हा मिला नहीं की बोझ समझ कर मुझे भेज दिया। आंसू पोछतें हुए बुदबुदा रही थी। तैयार नहीं हुई। बाहर गाड़ी आ गयी है। जल्दी करो न। दूल्हे साहब कमरे में आते हुए बोले। वो चुप-चाप बिना कुछ बोले साड़ी लपेटने लगी। इतने में पीछे से सासु माँ कमरे में कुछ लेने आयी। दुल्हन को यूँ साड़ी लिए खड़ी देख कर माज़रा समझ में आ गया। वो कमरे से बाहर आ कर रितु को आवाज लगा कर कुछ लाने को बोली। सुनो बेटा ये पहन कर जाओ परीक्षा देने माथे पर ओढ़नी रख लेना आज हमें कोई कुछ बोलेगा तो कल को तुम मास्टरनी बन जाओगी तो सब का मुंह बन्द हो जाएगा । अपनी बेटी वाला सूट-सलवार बहू को देते हुए बोली। उसने भीगी नज़रों से सास को देखा। सासु माँ सिर पर हाथ फेरते हुए कमरे से निकल गयी। पीछे से आईने में मुस्कुराते हुए दूल्हे मियाँ अपनी दुल्हन को देखने लगे। ऐसी रीति-रिवाज ही क्या जो हमारे बेटी-बहुओं को आगे न बढ़ने दे ✍🙏🙏

Paraya Ghar

Bete Ka Rishta

एक_वकील_साहब ने अपने बेटे का रिश्ता तय किया__! कुछ दिनों बाद, वकील साहब होने वाले समधी के घर गए तो देखा कि होने वाली समधन खाना बना रही थीं। सभी बच्चे और होने वाली बहू टी वी देख रहे थे। वकील साहब ने चाय पी, कुशल जाना और चले आये। 👉__एक माह बाद, वकील साहब समधी जी के घर, फिर गए। देखा, भावी समधन जी झाड़ू लगा रहीं थी, बच्चे पढ़ रहे थे और होने वाली बहू सो रही थी। वकील साहब ने खाना खाया और चले आये। 👉___कुछ दिन बाद, वकील साहब किसी काम से फिर होने वाले समधी जी के घर गए !! घर में जाकर देखा, होने वाली समधन बर्तन साफ़ कर रही थी, बच्चे टीवी देख रहे थे और होने वाली बहू खुद के हाथों में नेलपेंट लगा रही थी। वकील साहब ने घर आकर, गहन सोच-विचार कर लड़की वालों के यहाँ खबर पहुचाई, कि हमें ये रिश्ता मंजूर नहीं है" 👉__कारण पूछने पर वकील साहब ने कहा कि, "मैं होने वाले समधी के घर तीन बार गया !! तीनों बार, सिर्फ समधन जी ही घर के काम काज में व्यस्त दिखीं। एक भी बार भी मुझे होने वाली बहू घर का काम काज करते हुए नहीं दिखी। जो बेटी अपने सगी माँ को हर समय काम में व्यस्त पा कर भी उन की मदद करने का न सोचे, उम्र दराज माँ से कम उम्र की, जवान हो कर भी स्वयं की माँ का हाथ बटाने का जज्बा न रखे,,, वो किसी और की माँ और किसी अपरिचित परिवार के बारे में क्या सोचेगी। 👉__मुझे अपने बेटे के लिए एक बहू की आवश्यकता है, किसी गुलदस्ते की नहीं, जो किसी फ्लावर पाटॅ में सजाया जाये !! 👉इसलिये सभी माता-पिता को चाहिये, कि वे इन छोटी छोटी बातों पर अवश्य ध्यान दें । 👉__बेटी कितनी भी प्यारी क्यों न हो, उससे घर का काम काज अवश्य कराना चाहिए। समय-समय पर डांटना भी चाहिए, जिससे ससुराल में ज्यादा काम पड़ने या डांट पड़ने पर उसके द्वारा गलत करने की कोशिश ना की जाये। हमारे घर बेटी पैदा होती है, हमारी जिम्मेदारी, बेटी से "बहू", बनाने की है। 👉अगर हमने, अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से नहीं निभाई, बेटी में बहू के संस्कार नहीं डाले तो इसकी सज़ा, बेटी को तो मिलती है और माँ बाप को मिलती हैं, "जिन्दगी भर गालियाँ"। हर किसी को सुन्दर, सुशील बहू चाहिए। लेकिन भाइयो, जब हम अपनी बेटियों में, एक अच्छी बहु के संस्कार, डालेंगे तभी तो हमें संस्कारित बहू मिलेगी? ? 👉👏ये # कड़वा_सच , शायद कुछ लोग न बर्दाश्त कर पाएं ....लेकिन पढ़ें और समझें, बस इतनी इलतिजा.. वृद्धाआश्रम में माँ बाप को देखकर सब लोग बेटो को ही कोसते हैं, लेकिन ये कैसे भूल जाते हैं कि उन्हें वहां भेजने में किसी की बेटी का भी अहम रोल होता है। वरना बेटे अपने माँ बाप को शादी के पहले वृद्धाश्रम क्यों नही भेजते.
Bete Ka Rishta

Suno Kal Mammi Papa

"सुनो..कल मम्मी पापा आ रहे हैं दस दिन रूकेंगे.. एडजस्ट कर लेना.. "मयंक ने स्वाति को बैड पर लेटते हुए कहा। "..कोई बात नही आने दिजिए आपको शिकायत का कोई मौका नही मिलेगा.." स्वाति ने भी प्रति उत्तर में कहा और स्वाति ने लाइट बन्द कर दी और दोनो सो गए। सुबह जब मयंक की आंख खुली तो स्वाति बिस्तर छोड़ चुकी थी। "चाय ले लो..स्वाति ने मयंक की तरफ चाय की प्याली को बढाते हुए कहा.. अरे तुम आज इतनी जल्दी नहा ली.. हां तुमने रात को बताया था कि आज मम्मी पापा आने वाले हैं तो सोचा घर को कुछ व्यवस्थित कर लूं..स्वाति ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा..वैसे..किस वक्त तक आ जाएंगे वो लोग.. "दोपहर वाली गाड़ी से पहुंचेंगे चार तो बज ही जाऐंगे.. मयंक ने चाय का कप खत्म करते हुए जवाब दिया.. "स्वाति..देखना कभी पिछली बार की तरह.."नही नही..पिछली बार जैसा कुछ भी नही होगा..स्वाति ने भी कप खत्म करते हुए मयंक को कहा और उठकर रसोई की तरफ बढ गई। मयंक भी आफिस जाने के लिए तैयार होने के लिए बाथरूम की तरफ बढ गया। नाश्ता करने के बाद मयंक ने स्वाति से पूछा "..तुम तैयार नही हुई..क्या बात..आज स्कूल की छुट्टी है..??.. " नही..आज तुम निकलो मैं आटो से पहुंच जाऊंगी..थोड़ा लेट निकलूंगी..स्वाति ने लंच बाक्स थमाते हुए मयंक को कहा। "..बाय बाय..कहकर मयंक बाइक से आफिस के लिए निकल गया। और स्वाति घर के काम में लग गई.. "..मुझे तो बहुत डर लग रहा है मैं तुम्हारे कहने से वहां चल तो रहा हूं लेकिन पिछली बार बहू से जिस तरह खटपट हुई थी मेरा तो मन ही भर गया था। ना जाने ये दस दिन कैसे जाने वाले हैं.. मयंक के पिताजी मयंक की मम्मी से कह रहे थे। "..अजी..भूल भी जाइये..बच्ची है.. कुछ हमारी भी तो गलती थी। हम भी तो उससे कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगाए बैठे थे। उन बातों को सालभर बीत गया है.. क्या पता कुछ बदलाव आ गया हो। इंसान हर पल कुछ नया सीखता है.. क्या पता कौन सी ठोकर किस को क्या सिखा दे.. मयंक की मां ने पिताजी को हौंसला देते हुए कहा.. मयंक की मां यह कहकर चुप हो गई और याद करने लगी.. दो भाइयों में मयंक बड़ा था और विवेक छोटा। मयंक गांव से दसवीं करके शहर आ गया.. आगे पढने और विवेक पढाई में कमजोर था इसलिए गांव में ही पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ बंटाने लगा। मयंक बी_टेक करके शहर में ही बीस हजार रू की नौकरी करने लगा। स्वाति से कोचिंग सेन्टर में ही मयंक की जान पहचान हुई थी यह बात मयंक ने स्वाति से शादी के कुछ दिन पहले बताई। पिताजी कितने दिन तक नही माने थे इस रिश्ते के लिए.. वो तो मैने ही समझा बुझाकर रिश्ते के लिए मनाया था वरना ये तो पड़ौस के गांव के अपने दोस्त की बेटी माला से ही रिश्ता करने की जिद लगाए बैठे थे। गांव आकर स्वाति के घर वालों ने शादी की थी.. दो साल होने को आए उस दिन को भी। शादी करके दोनो शहर में ही रहने लगे। स्वाति भी प्राइवेट स्कूल में टीचर की जाॅब करने लगी। पिछली बार जब गांव से आए थे तो मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही बहू के तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ हो लिए। कई बार मयंक को फोन करकर बोला भी की बेटा गांव आ जा..पर वो हर बार कह देता.. मां छुट्टी ही नही मिलती कैसे आऊं.. लेकिन मैं ठहरी एक मां..आखिर मां का तो मन करता है ना अपने बच्चे से मिलने का..बहू चाहे कैसा भी बर्ताव करे.. काट लेंगे किसी तरह ये दस दिन.. पर बच्चे को जी भरकर देख तो लेंगे.. "अरे भागवान..उठ जाओ.. स्टेशन आ गया उतरना नही है क्या.. मयंक के पिताजी की आवाज मयंक की मां को यादों की दुनियां से वापस खींच लाई.. सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ गए और आटो में बैठकर दोनो मयंक के घर के लिए रवाना हो गए.. घर पहुंचे तो बहू घर पर ही थी। जाते ही बहू ने दोनो के पैर छुए.. हम दोनो को ड्राइंगरूम में बिठाकर हम दोनो के लिए ठण्डा ठण्डा शरबत लाई हम लोगों ने जैसे ही शरबत खत्म किया बहू ने कहा "पिता जी... आप सफर से थक गए होंगे..नहा लिजिए.. सफर की थकान उतर जाएगी फिर मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं। पिताजी नहाने चले गए। बहू रसोई में घुसकर खाना बनाने लगी। थोड़ी देर में मयंक भी आ गया। फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और फिर सबने खाना खाया। मयंक और बहू सोने चले गए और हम भी सो गए। सुबह पांच बजे पिताजी उठे तो तो बहू उठ चुकी थी पिताजी को उठते ही गरम पानी पीने की आदत थी बहू ने पहले से ही पिताजी के लिए पानी गरम कर रखा था नहा धोकर पिताजी को मंदिर जाने की आदत थी.. बहू ने उनको जल से भरकर लौटा दे दिया.. नाश्ता भी पिताजी की पसंद का तैयार था.. सबको नाश्ता करवाकर बहू मयंक के साथ चली गई पिताजी ने भी चैन की सांस ली.. चलो अब चार पांच घण्टे तो सूकून से निकलेंगे। दिन के खाने की तैयारी बहू करकर गई थी सो मैने चार पांच रोटियां हम दोनो की बनाई और खा ली। स्कूल से आते ही बहू फिर से रसोई में घुस गई और हम दोनों के लिए चाय बना लाई.. शाम को हम दोनों को लेकर बहू पास के पार्क में गई वहां उसने हमारा परिचय वहां बैठे बुजुर्गों से करवाया.. वो अपनी सहेलियों से बात करने लगी और हम अपने नए परिचितों से परिचय में व्यस्त हो गए। शाम के सात बज चुके थे..हम घर वापस आ गए। मयंक भी थोड़ी देर में घर आ गया। बैठकर खूब सारी बातें हुई। बहू भी हमारी बातों में खूब दिलचस्पी ले रही थी थोड़ी देर बाद सब सोने चले गए। अगले दिन सण्डे था बहू, मयंक और हम दोनो चिड़ियाघर देखने गए.. हमारे लिए ताज्जुब की बात ये थी की प्रोग्राम बहू ने बनाया था..बहू ने खूब अच्छे से चिड़ियाघर दिखाया और शाम को इण्डिया गेट की सैर भी करवाई.. खाना पीना भी हम सबने बाहर ही किया.. फिर हम सब घर आ गए और सो गए.. इस खुशमिजाज रूटीन से पता ही नही चला वक्त कब पंख लगाकर उड़ गया.. कहां तो हम सोच रहे थे कि दस दिन कैसे गुजरेंगे और कहां पन्द्रह दिन बीत चुके थे। आखिर कल जब विवेक का फोन आया कि फसल तैयार हो गई है और काटने के लिए तैयार है तो हमें अगले ही दिन गांव वापसी का प्रोग्राम बनाना पड़ा। रात का खाना खाने के बाद हम कमरे में सोने चले गए तो बहू हमारे कमरे में आ गई बहू की आंखों से आंसू बह रहे थे। मैने पूछा.."क्या बात है बहू..रो क्यों रही हो.? तो बहू ने पूछा "..पिताजी, मां जी.. पहले आप लोग एक बात बताइये.. पिछले पन्द्रह दिनों में कभी आपको यह महसूस हुआ की आप अपनी बहू के पास है या बेटी के पास.. "नही बेटा सच कहूं तो तुमने हमारा मन जीत लिया.. हमें किसी भी पल यह नही लगा की हम अपनी बहू के पास रह रहें हैं तुमने हमारा बहुत ख्याल रखा लेकिन एक बात बताओ बेटा.. "तुम्हारे अंदर इतना बदलाव आया कैसे..?? "पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई थी। मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा बढिया नही है। इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए तरसते देखा.. बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत होते देखा.. मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर सकता था। मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत दुखी थी। उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही थी.. कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ किया था। ""किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे।"" मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी होंगे... बहू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई। मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया.. "हां बेटा अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा... ठोकर सबको लगती है लेकिन सम्भलता कोई कोई ही है "लेकिन हम दुआ करेंगे कि तुम्हारी भाभी भी सम्भल जाए.. बहू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के प्रायश्चित के आंसू थे..
Suno Kal Mammi Papa

Sundar Ladki Jyoti

ज्योति एक सुंदर, पढ़ी लिखी, समझदार लड़की थी। कॉलेज में उसने दो -तीन गोल्ड मेडल अपने नाम किए थे ।पुरस्कार वितरण के लिए शहर के प्रतिष्ठित बिजनेसमैन अरुण कुमार जी को बुलाया गया। पुरस्कार देते हुए उन्हें ज्योति अपने बेटे रोहित के लिए पसंद आ गई। उन्होंने घर जाकर अपनी पत्नी रीमा जी और राहुल से इस विषय पर बात की। पिता की बात मानकर रोहित माता- पिता के साथ ज्योति को देखने उसके घर गया। ज्योति की सुंदरता पर रोहित पहली नजर में ही मोहित हो गया। रीमा जी ने भी सोचा कि, छोटे घर की लड़की है दबकर रहेगी। ज्योति के पिता बचपन में ही गुजर गए थे । माँं ने ही सिलाई करके और दूसरों के घर खाना बनाकर ज्योति और उसके भाई की परवरिश की थी। इतने बड़े घर का रिश्ता आया था ,इसलिए ज्योति की मां का मना करने का कोई सवाल ही नहीं उठता था। शादी बहुत अच्छे से हुई ,लगभग सारा खर्चा अरुण जी ने ही किया। रोहित ने एक नया बिजनेस शुरू किया। उसके उद्घाटन समारोह में ज्योति ने अपनी मां और भाई को भी बुलाया फंक्शन खत्म होने पर ज्योति ने मां को कुछ दिनों के लिए रोक लिया। एक बार ज्योति के ससुर जी से मिलने उनके खास दोस्त आए। जो शहर के प्रसिद्ध वकील और उनकी पत्नी आरती जी ,एक एनजीओ चलाती थी ।वह जमीन से जुड़े व्यक्ति थे ।ज्योति की मां ने ही सारा खाना बनाया था ।साधारण रहन-सहन के कारण ज्योति की सास ने उन्हें सब के साथ खाना खाने के लिए आमंत्रित नहीं किया। इससे ज्योति को बहुत बुरा लगा। मेहमानों ने खाने की तारीफ की तो, ज्योति ने कहा कि यह खाना उसकी मां ने बनाया हैं। तब उसकी सास बोली की " जिंदगी भर उन्होंने खाना ही तो बनाया है"। आरती जी ने उनसे मिलने की इच्छा जताई तो, ज्योति अपनी मां को बाहर लाई और सबसे मिलवाया। ज्योति बोली "यह मेरी मां है ,पापा के गुजर जाने के बाद इन्होंने सिलाई और दूसरों के घर खाना बनाकर हमे इस लायक बनाया है"। सबके जाने के बाद रोहित बोला" क्या जरूरत थी सबके सामने सिलाई और खाना बनाने की बात कहने की "। ज्योति ने कहा "मुझे उन पर गर्व है , जिस मेहनत से उन्होंने हमें बड़ा किया "।हम आपके दरवाजे नहीं आए थे। हमारी इतनी हैसियत नहीं थी। आप लोग आए थे रिश्ते के लिए तो अब क्यों शर्मिंदा होते हैं। आप लोग इस तरह मेरी मां का अपमान नहीं कर सकते। रोहित और उसकी मां चुपचाप सुनते रह गए।
Sundar Ladki Jyoti

Beta Ka Zanmdin

👉बेटे_के_जन्मदिन_पर ...🍀🌹🍀 रात के 1:30 बजे फोन आता है, बेटा फोन उठाता है तो माँ बोलती है:- "जन्म दिन मुबारक लल्ला" बेटा गुस्सा हो जाता है और माँ से कहता है: - सुबह फोन करती। इतनी रात को नींद खराब क्यों की? कह कर फोन रख देता है। थोडी देर बाद पिता का फोन आता है। बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता बल्कि कहता है:- सुबह फोन करते। फिर पिता ने कहा: - मैनें तुम्हे इसलिए फोन किया है कि तुम्हारी माँ पागल है जो तुम्हे इतनी रात को फोन किया। वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी। जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था। वो मरने के लिए तैयार हो गई पर ऑपरेशन नहीं करवाया। रात के 1:30 को तुम्हारा जन्म हुआ। शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी । लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो सारी पीड़ा भूल गयी ।उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । तुम्हारे जन्म से पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाये थे कि अगर कुछ हो जाये तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे। तुम्हे साल में एक दिन फोन किया तो तुम्हारी नींद खराब हो गई......मुझे तो रोज रात को 25 साल से रात के 1:30 बजे उठाती है और कहती है देखो हमारे लल्ला का जन्म इसी वक्त हुआ था। बस यही कहने के लिए तुम्हे फोन किया था। इतना कहके पिता फोन रख देते हैं। बेटा सुन्न हो जाता है। सुबह माँ के घर जा कर माँ के पैर पकड़कर माफी मांगता है....तब माँ कहती है, देखो जी मेरा लाल आ गया। फिर पिता से माफी मांगता है तब पिता कहते हैं:- आज तक ये कहती थी कि हमे कोई चिन्ता नहीं हमारी चिन्ता करने वाला हमारा लाल है। पर अब तुम चले जाओ मैं तुम्हारी माँ से कहूंगा कि चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारा हमेशा की तरह आगे भी ध्यान रखुंगा। तब माँ कहती है:- माफ कर दो बेटा है। सब जानते हैं दुनियाँ में एक माँ ही है जिसे जैसा चाहे कहो फिर भी वो गाल पर प्यार से हाथ फेरेगी। पिता अगर तमाचा न मारे तो बेटा सर पर बैठ जाये। इसलिए पिता का सख्त होना भी जरुरी है। माता पिता को आपकी दौलत नही बल्कि आपका प्यार और वक्त चाहिए। उन्हें प्यार दीजिए। माँ की ममता तो अनमोल है। निवेदन:- इसको पढ़ कर अगर आँखों में आंसू बहने लगें तो रोकिये मत, बह जाने दीजिये। मन हल्का हो जायेगा!*
Beta Ka Zanmdin

Aik Dhaba Par

एक ढाबा पर एक छोटा सा लडका था जो ग्राहको को खाना खिला रहा था कोई ऎ छोटू कह कर बुलाता तो कोई ओए छोटू वो नन्ही सी जान ग्राहको के बीच जैसे उलझ कर रह गयी हो । यह सब मन को काट रहा था । मैने छोटू को छोटू जी कहकर अपनी तरफ बुलाया । वह भी प्यारी सी मुस्कान लिये मेरे पास आकर बोला साहब जी क्या खाओगे ? मैने कहा साहब नही; भाईयाँ जी बोल ! तब ही बताऊगाँ । वो भी मुस्कुराया और आदर के साथ बोला भाईयाँ जी आप क्या खाओगे? मैने खाना आर्डर किया और खाने लगा । छोटू जी के लिये अब मे ग्राहक से जैसे मेहमान बन चुका था । वो मेरी एक आवाज पर दौडा चला आता और प्यार से पूछता भाईयाँ जी और क्या लाये खाना अच्छा तो लगा ना आपको??? और मै कहता हाँ छोटू जी ! आपके इस प्यार ने खाना और स्वादिष्ट कर दिया । खाना खाने के बाद मैने बिल चुकाया और 100रू छोटू जी की हाथ पर रख कहा ये तुम्हारे है रख लो और मलिक से मत कहना । वो खुश होकर बोला जी भईया फिर मैने पुछा क्या करोगो ये पैसो का । वो खुशी से बोला आज माँ के लिये चप्पल ले जाऊगाँ 4 दिन से माँ के पास चप्पल नही है नग्गे पैर ही चली जाती है साहब लोग के यहाँ बर्तन माझने । उसकी ये बात सुन मेरी आँखे भर आयी ।मैने पुछा घर पर कौन कौन है । तो बोला माँ है मै और छोटी बहन है पापा भगवान के पास चले गये । मेरे पास कहने को अब कुछ नही रह गया था।मैने उसको कुछ पैसे और दिये और बोलाआज आम ले जाना माँ के लिये और माँ के लिये अच्छी सी चप्पल लाकर देना और बहन और अपने लिये आईसक्रिम ले जाना और अगर माँ पुछे किस ने दिया तो कह देना पापा ने एक भइया को भेजा था वो दे गये । इतना सुन छोटू मुझसे लिपट गया और मैने भी उसको अपने सीने से लगा लिया । वास्तव ने छोटू अपने घर का बडा निकला ।पढाई की उम्र मे घर का बोझ उठा रहा है । ऎसी ही ना जाने कितने ही छोटू आपको होटल ढाबो या चाय की दुकान पर काम करते मिल जायेगे । आप सभी से इतना निवेदन है उनको नौकर की तरह ना बुलाये थोडा प्यार से क पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया आपका ऐसी और भी पोस्ट पढ़ने के लिए हमे मित्र अनुरोध जरूर भेजे। ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे

Aik Dhaba par

Pati Patni Ka Prem

पति पत्नी का प्रेम एक सेठ जी थे उनके घर में एक गरीब आदमी काम करता था जिसका नाम था रामलाल जैसे ही राम लाल के फ़ोन की घंटी बजी रामलाल डर गया। तब सेठ जी ने पूछ लिया ?? "रामलाल तुम अपनी बीबी से इतना क्यों डरते हो?" "मै डरता नही सर् उसकी कद्र करता हूँ उसका सम्मान करता हूँ।"उसने जबाव दिया। मैं हँसा और बोला-" ऐसा कया है उसमें।ना सुरत ना पढी लिखी।" जबाव मिला-" कोई फरक नही पडता सर् कि वो कैसी है पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है।" "जोरू का गुलाम।"मेरे मुँह से निकला।"और सारे रिश्ते कोई मायने नही रखते तेरे लिये।"मैने पुछा। उसने बहुत इत्मिनान से जबाव दिया- "सर् जी माँ बाप रिश्तेदार नही होते। वो भगवान होते हैं। उनसे रिश्ता नही निभाते उनकी पूजा करते हैं। भाई बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं , दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है। आपका मेरा रिश्ता भी जरूरत और पैसे का है पर, पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिये हमारी हो जाती है अपने सारे रिश्ते को पीछे छोडकर। और हमारे हर सुख दुख की सहभागी बन जाती है आखिरी साँसो तक।" मै अचरज से उसकी बातें सुन रहा था। वह आगे बोला-"सर् जी, पत्नी अकेला रिश्ता नही है, बल्कि वो पुरा रिश्तों की भण्डार है। जब वो हमारी सेवा करती है हमारी देख भाल करती है , हमसे दुलार करती है तो एक माँ जैसी होती है। जब वो हमे जमाने के उतार चढाव से आगाह करती है, और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ क्योकि जानता हूँ वह हर हाल मे मेरे घर का भला करेगी तब पिता जैसी होती है। जब हमारा ख्याल रखती है हमसे लाड़ करती है, हमारी गलती पर डाँटती है, हमारे लिये खरीदारी करती है तब बहन जैसी होती है। जब हमसे नयी नयी फरमाईश करती है, नखरे करती है, रूठती है , अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब बेटी जैसी होती है। जब हमसे सलाह करती है मशवरा देती है , परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है, झगडे करती है तब एक दोस्त जैसी होती है। जब वह सारे घर का लेन देन , खरीददारी , घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है। और जब वही सारी दुनिमा को यहाँ तक कि अपने बच्चो को भी छोडकर हमारे पास मे आती है तब वह पत्नी, प्रेमिका, प्रेयसी, अर्धांगिनी , हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हम पर न्योछावर करती है।" मैं उसकी इज्जत करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ सर्।" उसकी बाते सुनकर सेठ जी के आखों में पानी आ गया इसे कहते है पति पत्नी का प्रेम। 👈 ना की जोरू का गुलाम। ?? ✍
Pati Patni Ka Prem

Aik Beta Aisa Bhi

"एक बेटा ऐसा भी" • "माँ, मुझे कुछ महीने के लिये विदेश जाना पड़ रहा है। तेरे रहने का इन्तजाम मैंने करा दिया है।" तक़रीबन ३२ साल के, अविवाहित डॉक्टर सुदीप ने देर रात घर में घुसते ही कहा। • "बेटा, तेरा विदेश जाना ज़रूरी है क्या?" माँ की आवाज़ में चिन्ता और घबराहट झलक रही थी। "माँ, मुझे इंग्लैंड जाकर कुछ रिसर्च करनी है। वैसे भी कुछ ही महीनों की तो बात है।" सुदीप ने कहा। • " जैसी तेरी इच्छा।" मरी से आवाज़ में माँ बोली। और छोड़ आया सुदीप अपनी माँ 'प्रभा देवी' को पड़ोस वाले शहर में स्थित एक वृद्धा-आश्रम में। • वृद्धा-आश्रम में आने पर शुरू-शुरू में हर बुजुर्ग के चेहरे पर जिन्दगी के प्रति हताशा और निराशा साफ झलकती थी। पर प्रभा देवी के चेहरे पर वृद्धा-आश्रम में आने के बावजूद कोई शिकन तक न थी। • एक दिन आश्रम में बैठे कुछ बुजुर्ग आपस में बात कर रहे थे। उनमें दो-तीन महिलायें भी थीं। उनमें से एक ने कहा, "डॉक्टर का कोई सगा-सम्बन्धी नहीं था जो अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया।" • तो वहाँ बैठी एक महिला बोली, "प्रभा देवी के पति की मौत जवानी में ही हो गयी थी। तब सुदीप कुल चार साल का था। पति की मौत के बाद, प्रभा देवी और उसके बेटे को रहने और खाने के लाले पड़ गये। तब किसी भी रिश्तेदार ने उनकी मदद नहीं की। प्रभा देवी ने लोगों के कपड़े सिल-सिल कर अपने बेटे को पढ़ाया। बेटा भी पढ़ने में बहुत तेज था, तभी तो वो डॉक्टर बन सका।" • वृद्धा-आश्रम में करीब ६ महीने गुज़र जाने के बाद एक दिन प्रभा देवी ने आश्रम के संचालक राम किशन शर्मा जी के ऑफिस के फोन से अपने बेटे के मोबाईल नम्बर पर फोन किया, और कहा, "सुदीप तुम हिंदुस्तान आ गये हो या अभी इंग्लैंड में ही हो?" • "माँ, अभी तो मैं इंग्लैंड में ही हूँ।" सुदीप का जवाब था। • तीन-तीन, चार-चार महीने के अंतराल पर प्रभा देवी सुदीप को फ़ोन करती उसका एक ही जवाब होता, "मैं अभी वहीं हूँ, जैसे ही अपने देश आऊँगा तुझे बता दूँगा।"इस तरह तक़रीबन दो साल गुजर गये। अब तो वृद्धा-आश्रम के लोग भी कहने लगे कि देखो कैसा चालाक बेटा निकला, कितने धोखे से अपनी माँ को यहाँ छोड़ गया। आश्रम के ही किसी बुजुर्ग ने कहा, "मुझे तो लगता नहीं कि डॉक्टर विदेश-पिदेश गया होगा, वो तो बुढ़िया से छुटकारा पाना चाह रहा था।" • तभी किसी और बुजुर्ग ने कहा, " मगर वो तो शादी-शुदा भी नहीं था।" अरे होगी उसकी कोई 'गर्ल-फ्रेण्ड, जिसने कहा होगा पहले माँ के रहने का अलग इंतजाम करो, तभी मैं तुमसे शादी करुँगी।" • दो साल आश्रम में रहने के बाद अब प्रभा देवी को भी अपनी नियति का पता चल गया। बेटे का गम उसे अंदर ही अंदर खाने लगा। वो बुरी तरह टूट गयी। • दो साल आश्रम में और रहने के बाद एक दिन प्रभा देवी की मौत हो गयी। उसकी मौत पर आश्रम के लोगों ने आश्रम के संचालक शर्मा जी से कहा, "इसकी मौत की खबर इसके बेटे को तो दे दो। हमें तो लगता नहीं कि वो विदेश में होगा, वो होगा यहीं कहीं अपने देश में।" • "इसके बेटे को मैं कैसे खबर करूँ। उसे मरे तो तीन साल हो गये।" शर्मा जी की यह बात सुन वहाँ पर उपस्थित लोग सनाका खा गये। उनमें से एक बोला, "अगर उसे मरे तीन साल हो गये तो प्रभा देवी से मोबाईल पर कौन बात करता था।" • "वो मोबाईल तो मेरे पास है, जिसमें उसके बेटे की रिकॉर्डेड आवाज़ है।" शर्मा जी बोले। "पर ऐसा क्यों?" किसी ने पूछा। • तब शर्मा जी बोले कि करीब चार साल पहले जब सुदीप अपनी माँ को यहाँ छोड़ने आया तो उसने मुझसे कहा, "शर्मा जी मुझे 'ब्लड कैंसर' हो गया है। और डॉक्टर होने के नाते मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि इसकी आखिरी स्टेज में मुझे बहुत तकलीफ होगी। मेरे मुँह से और मसूड़ों आदि से खून भी आयेगा। मेरी यह तकलीफ़ माँ से देखी न जा सकेगी। वो तो जीते जी ही मर जायेगी। मुझे तो मरना ही है पर मैं नहीं चाहता कि मेरे कारण मेरे से पहले मेरी माँ मरे। मेरे मरने के बाद दो कमरे का हमारा छोटा सा 'फ्लेट' और जो भी घर का सामान आदि है वो मैं आश्रम को दान कर दूँगा।" • यह दास्ताँ सुन वहाँ पर उपस्थित लोगों की आँखें झलझला आयीं। प्रभा देवी का अन्तिम संस्कार आश्रम के ही एक हिस्से में कर दिया गया। उनके अन्तिम संस्कार में शर्मा जी ने आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के परिवार वालों को भी बुलाया। • माँ-बेटे की अनमोल और अटूट प्यार की दास्ताँ का ही असर था कि कुछ बेटे अपने बूढ़े माँ/बाप को वापस अपने घर ले गये।
Aik Beta Aisa Bhi

Masoom Si Ladki

एक आठ दस साल की मासूम सी गरीब लड़कीं बुक स्टोर पर जाती है और एक पेंसिल और एक दस रुपए वाली कापी खरीदती है और फिर वही खड़ी होकर दूकानदार से कहती है की अंकल एक काम कहूँ करोगे ? जी बेटा बोलो क्या काम है ? अंकल वह कलर पेंसिल का पैकेट कितने का है मुझे चाहिए ड्रॉइंग टीचर बहुत मारती है मगर मेरे पास इतने पैसे नही है ना ही मेरे पापा के पास है में अहिस्ता-अहिस्ता करके पैसे दे दूंगी। शॉप कीपर की आंखे नम हो जाती है बोलता है बेटाजी कोई बात नही ये कलर पेंसिल का पैकेट ले जाओ लेकिन आइंदा किसी भी दुकानदार से इस तरह कोई चीज़ मत मांगना लोग बहुत बुरे है किसी पर भरोसा मत किया करो। जी अंकल बहुत बहुत शुक्रिया में आप के पैसे जल्द दे दूंगी और बच्ची चली जाती है। इधर शॉप कीपर ये सोच रहा होता है कि अगर ऐसी बच्चियां किसी हवस के भूखे दुकानदार के हत्ते चढ़ गई तो ? सभी शिक्षको से हाथ जोड़ कर गुजारिश हैकी अगर कोई बच्चा कापी पेंसिल कलर पेंसिल वगैराह नही ला पाता है तो कारण जानने की कोशिश कीजिये के कही उसके माता पिता की गरीबी उसके आड़े तो नही आ रही। और अगर हो सके तो ऐसे मासूम बच्चों की पढ़ाई के खातिर आप शिक्षक लोग मिल कर उठा लिया करें। यक़ीन जानिए साहब हज़ारों की तनख्वाह में से चंद रुपए किसी की जिंदगी ना सिर्फ बचा सकते है बल्कि संवार भी सकते है। विचार जरूर कीजियेगा धन्यवाद 🙏🙏 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Masoom si ladki

Flat Ki Pahli Manzil

एक फ्लैट की पहली मंजिल में श्वेता नाम की लड़की रहती थी और दूसरी मंजिल में अंकुर नाम का लड़का। श्वेता फाइनल ईयर में थी और अंकुर ने इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में । श्वेता और अंकुर दोनों एक- दूसरे से बहुत प्यार करते थे। दोनों के परिवारों के बीच भी काफी अच्छा रिश्ता था। दोनों परिवार अक्सर एक- दूसरे के घर आया जाया करते थे। हर सुख- दुख में दोनों के परिवार हमेशा एक दूसरे के लिए खड़े होते। यही वजह थी कि श्वेता और अंकुर के रिश्ते भी काफी अच्छे थे जो वक्त के साथ- साथ प्यार में तब्दील हो गए। --------------------------------💕 अंकुर अक्सर किसी भी चीज के बहाने श्वेता के घर आया करता तो वहीं श्वेता भी अंकुर की भाभी से मिलने के बहाने उनके घर चले जाती थी । दोनों के प्यार का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। एक दिन श्वेका का बड़ा भाई अंकुर के घर से लौटते हुए सीढ़ियों से उतर रहा था तभी अचानक उसे एक पेपर नीचे गिरा दिखा। उसने उसे उठा लिया। लेकिन जब श्वेता के भाई ने उस पेपर को खोला और उसमें जो लिखा था उसे पढ़ा तो उसके होश ही उड़ गए और वो गुस्से से लाल हो गया। घर आते ही सबसे पहले उसने श्वेता और अपने मां- पापा को बुलाया। मां के हाथ में वो पेपर देते हुए उसने श्वेता को एक चांटा मारा। वो पेपर पढ़ जैसे उसके मां पापा के भी होश उड़ गए। उसके बाद श्वेता की मां ने भी उसे खूब चांटे मारा और बोला- कलमुंही हमने इसलिए तुम्हें इतनी आजादी दे रखी है। पढ़ाई के बदले यही करती है तू। _____________________________________________❤ वो पेपर दरअसल एक लेटर था जो अंकुर ने श्वेता को दिया था और आते वक्त श्वेता से सीढ़ियों पर गिर गया। फिर क्या था दोनों परिवारों में भी दूरियां आ गई। लेकिन अंकुर और श्वेता का प्यार कहां कम होने वाला था दोनों कॉलेज के बहाने अब घर से बाहर मिलने लगे। ऐसा लगता मानों अब दोनों ज्यादा आजाद हो गए हो। दोनों कभी रेस्टोरेंट जाते तो कभी पार्क। धीरे- धीरे दोनों में प्यार भी बढ़ा और टकरार भी। _____________________________________________💚 देखते ही देखते अंकुर ने अपनी इंजीनियरिंग पूरी कर ली और अब वो के लिए शहर से बाहर जाने लगा। अंकुर के चले जाने के नाम से ही श्वेता बहुत अपसेट हो गई थी। लेकिन आखिरकार एक दिन अंकुर चला गया। अंकुर के जाने के बाद दोनों की बातें फोन पर ही अब हुआ करती। वक्त निकाल कर अंकुर और श्वेता दोनों एक- दूसरे से घंटों बातें करते। लेकिन अब धीरे- धीरे श्वेता के पास अंकुर का फोन कम आने लगा। श्वेता फोन करती तो वो कभी रिसीव कर के ये बोल देता कि मैं हूं तो कभी फोन रिसीव ही नहीं करता। ऐसे में श्वेता तो मानों अंकुर के लिए बिल्कुल पागल होने लगी थी। अब श्वेता का ना खाने का मन करता ना पढ़ने का और ना और किसी काम में। _____________________________________________💙 फिर एक बार अंकुर अपने घर आया। श्वेता बहुत खुश थी सोचा अंकुर तो उससे जरूर मिलेगा। लेकिन अंकुर तो ऐसा बर्ताव कर रहा था मानों वो श्वेता को जानता ही ना हो। ये देख कर श्वेता टूट गई। उसे समझ आ गया था कि बाहर जाने के बाद अब अंकुर अपनी लाइफ में आगे बढ़ गया है। हो सकता है अंकुर को कोई और मिल गई हो या फिर वो अपने घरवालों के कहने पर मुझसे रिश्ता नहीं रखना चाहता हो। श्वेता ने अपने दिल को ये सारी बाते बोल कर समझाने की कोशिश तो की लेकिन श्वेताᴄ अब भी अंकुर को भुल नहीं पाई थी। और अब तो श्वेता का मानों प्यार से विश्वास ही उठ गया। _____________________________________________💜 अब श्वेता भी बहुत अच्छी कंपनी में जॉब कर रही है उसके पास सब कुछ है लेकिन अक्सर रात को यही सोचती है कि सब मिला बस इक तू ही नहीं मिला अब वो अपनी ज़िन्दगी को जी नहीं रही बस काट रही है दोस्तों इस कहानी को पढ़ने के बाद ऐसा नहीं है कि लोग प्यार करना ही छोड़ दें क्योंकि प्यार में कौन सच्चा है और कौन झूठा इसका पता आसानी से नहीं चल पाता। बल्कि जरुरत है कि अगर आप कभी ऐसी परिस्थिति से गुजरें तो खुद पर भरोसा रखें और जिंदगी में आगे बढ़े। क्योंकि जिंदगी बहुत खूबसूरत है और इसका सिर्फ एक ही रंग नहीं है इसके तो हजारों रंग हैं।???? 🙏🙏🙏🙏 ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे

Flat Ki Pahli Manzil

Karz Wali Laxmi

*#कर्ज_वाली_लक्ष्मी* 🙏एक बार जरूर पढ़े 🙏 एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है अभी जीजाजी ने फोन पर बताया। दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी। दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले हां बेटा उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं बोले दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ? कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीलड़की भी उदास हो गयी खैर अगले दिन समधी समधिन आए उनकी खूब आवभगत की गयी कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी बोले हां हां समधी जी जो आप हुकुम करें लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है! दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जीजो आप को उचित लगे मैं पूरी कोशिश करूंगा समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे मुझे सब स्वीकार है पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना वो मुझे स्वीकार नहीं क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी कर्ज वाली लक्ष्मी मुझे स्वीकार नही मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी दीनदयाल जी हैरान हो गए उनसे गले मिलकर बोले समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा शिक्षा- *कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे* 🙏🙏🙏

Karz Wali Laxmi

Maan Sammaan

मान-सम्मान🙏 एक मॉं अपने बच्चे को ढूँढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला, तो वह रोने लगी और ज़ोर-जो़र से बच्चे का नाम लेकर पुकारने लगी। कुछ समय पश्चात् बच्चा दौड़ता हुआ उसके पास आ गया। मॉं ने पहले तो उसे गले लगाया, मन भर कर प्यार किया और फिर उसे डॉंटने लगी। उससे पूछा कि इतनी देर तक वह कहॉं छुपा हुआ था। बच्चे ने बताया, “मॉं, मैं छुपा हुआ नहीं था, मैं तो बाहर की दुकान से गोंद लेने गया था।” मॉं ने पूछा कि गोंद से क्या करना है? इस पर बच्चे ने बड़े भोलेपन से बोला, “मैं उससे चाय के प्याले को जोड़ूँगा जो टूट गया है।” मॉं ने फिर पूछा, “टूटा प्याला जोड़ कर क्या करोगे? जुड़ने के बाद तो वह बहुत ख़राब दिखेगा।” तब बच्चे ने भोलेपन से कहा, “जब तुम बूढ़ी हो जाओगी तो उस प्याले में तुम्हें चाय पिलाया करूँगा।” यह सुन कर मॉं पसीने-पसीने हो गई। कुछ पल तक तो उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे? फिर होश संभालते ही उसने बच्चे को गोद में बिठाया और प्यार से कहा, “बेटा, ऐसी बातें नहीं करते। बड़ों का सम्मान करते हैं। उनसे ऐसा व्यवहार नहीं करते। देखो, तुम्हारे पापा कितनी महनत करते हैं ताकि तुम अच्छे विद्यालय में जा सको। मम्मी तुम्हारे लिए भॉंति-भॉंति के भोजन बनाती है। सब लोग तुम्हारा ध्यान रखते हैं ताकि जब वे बूढ़े हो जॉंए तब तुम उनका सहारा बनो।” बच्चे ने मॉं की बात बीच में काटते हुए कहा, “लेकिन मॉं, क्या दादा-दादी ने भी यही नहीं सोचा होगा, जब वे पापा को पढ़ाते होंगे? आज जब दादी से ग़लती से चाय का प्याला टूट गया तब तुम कितनी ज़ोर से चिल्लाईं थीं। इतना ग़ुस्सा किया था आपने कि दादाजी को दादी के लिए आपसे माफ़ी मॉंगनी पड़ी। पता है मॉं, आप तो कमरे में जाकर सो गईं, लेकिन दादी बहुत देर तक रोती रहीं। मैंने वह प्याला संभाल कर रख लिया है और अब मैं उसे जोड़ दूँगा। माँ को अब कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या कहे? बच्चे को पुचकारते हुए बोली, “मैं भी तब से अशांत ही हूँ।” यह स्थिति आजकल प्रायः घर-घर में पाई जाती है। हमारे संत भविष्यदर्शी थे। तभी संत कबीरदास जी ने कहा है, “ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए, औरों को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए।” धारदार अस्त्र का घाव भर जाता है, किंतु वाणी द्वारा दिया हुआ घाव नहीं भरता। लेकिन हम सब का कैसा विचित्र व्यवहार होता जा रहा कि हम दूसरों का सम्मान करना ही भूल गए हैं। रुपया-पैसा आवश्यक है परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि आप धन के लिए आप दूसरों का आदर करना ही छोड़ दें। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इन्हीं माता-पिता के कारण आज हम समाज में सम्मान से रह रहे हैं। यह वही पिता हैं जो हमारे द्वार किए गए कई तरह के नुक़सान को हँस कर टाल देते थे। यही वे माता हैं जो हमारे आँसू रोकने के लिए औरों से भिड़ जाती थीं। आज जब वे वृद्ध हो गए हैं तो हमारा कर्तव्य बनता है कि उनके साथ नम्रता से व्यवहार करें, उनका आदर करें। बड़ों के आशीर्वाद से हमारे बल, धन, आयु और यश में वृद्धि होती है। यदि बड़े हमारे से अप्रसन्न हो गए तो न जाने हम किस-किस से वंचित रह जाएँगे। एक साधारण सिद्धांत है कि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं, बड़े जैसा करेंगे बच्चे भी वैसा ही करेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें बच्चों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कि हम उनसे अपेक्षा करते हैं।
Maan Sammaan

Koi Baanjh Nahin Kahega

🙏🙏🙏Dilwale🙏🙏🙏 कोई बांझ नी कहेगा आधी रात का समय था रोज की तरह एक बुजुर्ग शराब के नशे में अपने घर की तरफ जाने वाली गली से झूमता हुआ जा रहा था, रास्ते में एक खंभे की लाइट जल रही थी, उस खंभे के ठीक नीचे एक 15 से 16 साल की लड़की पुराने फटे कपड़े में डरी सहमी सी अपने आँसू पोछते हुए खड़ी थी जैसे ही उस बुजुर्ग की नजर उस लड़की पर पड़ी वह रूक सा गया, लड़की शायद उजाले की चाह में लाइट के खंभे से लगभग चिपकी हुई सी थी, वह बुजुर्ग उसके करीब गया और उससे लड़खड़ाती जबान से पूछा तेरा नाम क्या है, तू कौन है और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है...? लड़की चुपचाप डरी सहमी नजरों से दूर किसी को देखे जा रही थी उस बुजुर्ग ने जब उस तरफ देखा जहाँ लड़की देख रही थी तो वहाँ चार लड़के उस लड़की को घूर रहे थे, उनमें से एक को वो बुजुर्ग जानता था, लड़का उस बुजुर्ग को देखकर झेप गया और अपने साथियों के साथ वहाँ से चला गया लड़की उस शराब के नशे में बुजुर्ग से भी सशंकित थी फिर भी उसने हिम्मत करके बताया मेरा नाम रूपा है मैं अनाथाश्रम से भाग आई हूँ, वो लोग मुझे आज रात के लिए कहीं भेजने वाले थे, दबी जुबान से बड़ी मुश्किल से वो कह पाई...! बुजुर्ग:- क्या बात करती है.......तू अब कहाँ जाएगी...! लड़की:- नहीं मालूम.....! बुजुर्ग:- मेरे घर चलेगी.....? लड़की मन ही मन सोच रही थी कि ये शराब के नशे में है और आधी रात का समय है ऊपर से ये शरीफ भी नहीं लगता है, और भी कई सवाल उसके मन में धमाचौकड़ी मचाए हुए थे! बुजुर्ग:- अब आखिरी बार पूछता हूँ मेरे घर चलोगी हमेशा के लिए...? बदनसीबी को अपना मुकद्दर मान बैठी गहरे घुप्प अँधेरे से घबराई हुई सबकुछ भगवान के भरोसे छोड़कर लड़की ने दबी कुचली जुबान से कहा जी हाँ उस बुजुर्ग ने झट से लड़की का हाथ कसकर पकड़ा और तेज कदमों से लगभग उसे घसीटते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चला वो नशे में इतना धुत था कि अच्छे से चल भी नहीं पा रहा था किसी तरह लड़खड़ाता हुआ अपने मिट्टी से बने कच्चे घर तक पहुँचा और कुंडी खटखटाई थोड़ी ही देर में उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और पत्नी कुछ बोल पाती कि उससे पहले ही उस बुजुर्ग ने कहा ये लो सम्भालो इसको "बेटी लेकर आया हूँ हमारे लिए" अब हम बाँझ नहीं कहलाएंगे आज से हम भी औलाद वाले हो गए, पत्नी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे और उसने उस लड़की को अपने सीने से लगा लिया।।
Koi baanjh nahin kahega

Wastwik Dard

वास्तविक दर्द स्कूल प्रिंसिपल ने बहुत ही कड़े शब्दों मे जब किसान की बेटी ख़ुशी से पिछले एक साल की स्कूल फीस मांगी तो ख़ुशी ने कहा मैडम मे घर जाकर आज पिता जी से कह दूंगी घर जाते ही बेटी ने माँ से पूछा पिता जी कहाँ है ? तो माँ ने कहा तुम्हारे पिता जी तो रात से ही खेत मे है बेटी दौड़ती हुई खेत मे जाती है और सारी बात अपने पिता को बताती है ! ख़ुशी का पिता बेटी को गोद मे उठाकर प्यार करते हुए कहता है की इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है अपनी मैडम को कहना अगले हफ्ता सारी फीस आजाएगी क्या हम मेला भी जाएंगे ?? ख़ुशी पूछती है हाँ हम मेला भी जाएंगे और पकोड़े बर्फी भी खाएंगे ख़ुशी के पिता कहते है ख़ुशी इस बात को सुनकर नाचने लगती है और घर आते वक्त रस्ते मे अपनी सहेलियों को बताती है की मै अपने माँ पापा के साथ मेला देखने जाउंगीपकोड़े बर्फी भी खाउंगी ये बात सुनकर पास ही खड़ी एक बजुर्ग कहती है बेटा ख़ुशी मेरे लिए क्या लाओगी मेले से ?? काकी हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है मे आपके लिए नए कपडे लाऊंगी ख़ुशी कहती हुई घर दौड़ जाती है ! अगली सुबह ख़ुशी स्कूल जाकर अपनी मैडम को बताती है की मैडम इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है अगले हफ्ते सब फसल बिक जाएगी और पिता जी आकर सारी फीस भर देंगें प्रिंसिपल : चुप करो तुम एक साल से तुम बहाने बाजी कर रही हो ख़ुशी चुप चाप क्लास मे जाकर बैठ जाती है और मेला घूमने के सपने देखने लगती है तभी ओले पड़ने लगते है तेज बारिश आने लगती है बिजली कड़कने लगती है पेड़ ऐसे हिलते है मानो अभी गिर जाएंगे ख़ुशी एकदम घबरा जाती है ख़ुशी की आँखों मे आंसू आने लगते है वोही डर फिर सताने लगता है डर सब खत्म होने का डर फसल बर्बाद होने का डर फीस ना दे पाने का स्कूल खत्म होने के बाद वो धीरे धीरे कांपती हुई घर की तरफ बढ़ने लगती है। हुआ भी ऐसा कि सभी फसल बर्बाद हो गई और खुशी स्कूल में फीस जमा नही करने के कारण ताना सुनने लगी। उस छोटी सी बच्ची को मेला घुमने और बर्फी खाने की शौक मन में ही रह गई। छोटे किसान और मजदूरों के परिवार में जो दर्द है उसे समझने में पूरी उम्र भी गुजर जाएगी तो भी शायद वास्तविक दर्द को महसूस नही कर सकते आप।।। कहानी इतनी अच्छी लगी कि #शेयर करने से नहीं रोक पायाआपको भी अच्छी लगे तो #शेयर_जरूर_करना 🙏

Wastwik Dard

Aik Baar Maa Chatai

हो सकता है इसे पढ़ने से आपकी आँखों में पानी आ जाये.... एक बार माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी.... मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थी.... तभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये पास आया.... माँ के तन को छूकर हल्के हल्के से हिलाया..... माँ अलसाई सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी.... तभी उस नन्हें बच्चे ने हलवा खाने की जिद कर दी... माँ ने उसे पुचकारा और अपनी गोदी में ले लिया..... फिर पास ही रखे ईटों के चूल्हे का रुख किया.... फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी सी कढाई रख दी... और आग जलाकर कुछ देर मुन्ने को ताकती रही.... फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी.... क्या सुनोगे तब तक कोई परियों वाली कहानी... मुन्ने की आंखें अचानक खुशी से थी खिल गयी.... जैसे उसको कोई मुँह मांगी मुराद मिल गयी... माँ उबलते हुये पानी में कल्छी चलाती रही.... परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही.... फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया.... चटाई पर बैठे बैठे ही लेटा और फिर वहीं सो गया..... माँ ने उसे गोद में ले लिया और धीरे से मुस्कायी..... फिर न जाने क्यूँ उसकी आंख भर आयी..... जैसा दिख रहा था वहां पर, सब वैसा नहीं था..... घर में रोटी की खातिर एक पैसा भी नहीं था.... राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था.... कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था.... फिर मुन्ने को वो बेचारी हलवा कहां से खिलाती.... लेकिन अपने जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती..... अपनी मजबूरी उसके नन्हें मन को मां कैसे समझाती.... या फिर फालतू में ही मुन्नें पर क्यों झुंझलाती..... हलवे की बात वो कहानी में टालती रही..... जब तक वो सोया नहीं बस पानी उबालती रही..... ऐसी होती है माँ... आँख में पानी आये तो चाहे माफ़ ना करना लेकिन अपनी माँ का सभी ध्यान रखना !
Aik baar maa chatai

Bhai Apne Papa Se Kaha

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया। दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी। दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले... हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है.. बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?" कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं.. घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी... खैर.. अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी.. कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए.. दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें.. लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!... दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा.. समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा..... आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं.. क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही... मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी.. दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा.. शिक्षा- *कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे* अगर ये पोस्ट पसंद आई तो हर ग्रुप में शेयर करें
Bhai apne papa se kaha

Andhi Maa Ka Beta

अंधी माँ का बेटा ----------------------- एक विधवा अंधी औरत का एक बेटा था जिसे वह बहुत प्यार करती थी वह चाहती थी कि पढ़-लिखकर उसका बेटा एक बड़ा आदमी बने इसलिए गरीबी के बाद भी उसने कस्बे के सबसे अच्छे स्कूल में उसका दाखिला करवाया लड़का पढ़ाई में तो अच्छा था लेकिन एक बात से हमेशा परेशान रहा करता था उसे स्कूल में दूसरे बच्चे अंधी का बेटा कहकर चिढ़ाते थे वह जहाँ भी दिख जाता सब उसे देखो अंधी का बेटा आ गया कहकर चिढ़ाने लगते इसका उस पर बहुत विपरीत असर हुआ और उसके मन में अपनी माँ के प्रति शर्म की भावना घर करने लगी धीरे-धीरे ये शर्म चिढ़ में बदल गई वह अपनी माँ के साथ कहीं भी आने-जाने से कतराने लगा समय बीता और लड़का पढ़-लिखकर एक अच्छी नौकरी करने लगा उसकी नौकरी शहर में थी वह अपनी माँ को कस्बे में ही छोड़ गया उसने अपनी माँ से वादा तो किया कि शहर में रहने की व्यवस्था करने के बाद वह उसे भी अपने साथ ले जायेगा लेकिन उसने अपना वादा नहीं निभाया शहर जाने के बाद उसने अपनी माँ से कोई संपर्क नहीं किया कुछ महीनों तक अंधी औरत अपने बेटे का इंतज़ार करती रही लेकिन जब वह नहीं आया तो एक दिन वह उससे मिलने शहर पहुँच गई इधर-उधर पूछते-पूछते किसी तरह वह अपने बेटे के घर पहुँची बाहर गार्ड खड़ा हुआ था उसने गार्ड से कहा कि उसे उसके मालिक से मिलना है गार्ड ने अंदर जाकर जब अपने मालिक को बताया तो जवाब मिला बाहर जाकर बोल दो कि मैं अभी घर पर नहीं हूँ गार्ड ने वैसा ही किया अंधी औरत दु:खी होकर वहाँ से चली गई कुछ देर बाद लड़का अपनी कार में ऑफिस जाने के लिए निकला रास्ते में उसने देखा कि एक जगह पर भीड़ लगी हुई है भीड़ का कारण जानने के लिए जब वह कार से उतरा तो बीच रास्ते में अपनी बूढ़ी माँ को मरा हुआ पाया उसकी माँ की लाश की मुठ्ठी में कुछ था मुठ्ठी खोलने पर उसने देखा कि उसमें एक ख़त है वह ख़त खोलकर पढ़ने लगा बेटा बहुत खुश हूँ कि तू बड़ा आदमी बन गया है तुझसे मिलने का मन किया तो शहर चली आई इसके लिये मुझे माफ़ करना क्या करूं तेरी बहुत याद आ रही थी सालों से मेरी इच्छा थी कि एक दिन तुझे बड़ा आदमी बना हुआ देखूं मेरा सपना तो पूरा हुआ लेकिन तुझे मैं देख नहीं सकती काश कि बचपन में तेरे साथ वो घटना नहीं हुई होती काश तेरी आँखों में सरिया न घुसा होता और मैंने तुझे अपनी आँखें न दी होती तो आज मैं तुझे इस ओहदे पर देख पाती तेरी बदकिस्मत माँ ख़त पढ़ने के बाद लड़का फूट-फूट कर रोने लगा वह आत्मग्लानि से भर उठा जिस माँ के अंधी होने के कारण वह उससे दूर हो गया था उसने अपनी ही ऑंखें उसके लिए ही बलिदान कर दी थी वह ताउम्र खुद को माफ़ नहीं कर सका दोस्तों माता-पिता का प्रेम असीम है ये वो अनमोल प्रेम है जिसकी कोई कीमत नहीं वे हमारे सुख लिए अपना सर्वस्य न्यौछावर कर देते हैं हमें सदा उनका सम्मान और उनसे प्रेम करना चाहिए

Andhi maa ka beta

Merath Se Vimla Chachi Ka Phone

निशा काम निपटा कर बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजने लगी। मेरठ से विमला चाची का फोन था ,”बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से। बीमार रहने लगे है , बहुत कमजोर हो गए हैं। हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। *वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।”* निशा बोली,”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।” फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया। बाबूजी तीन भाई है , पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं। निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था, कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर। दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए। निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था। दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी। दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी। रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का। निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है, मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार। विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका , इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं। रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम सा बैठा है। वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।” विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो। अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।” निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए। और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।” विवेक उत्तेजित हो गया , बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें। रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं , करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है। आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है। तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है ,जिजाजी की लाखों की कमाई है?” निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा। पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा। बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने। निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।” सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं। बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता। वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।” रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे। खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं। विवेक का घर बहुत छोटा है, उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा❓ तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है। मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था , अपने रहने के लिए लिया है। जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी। रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।” पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।” अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है। बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।” निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं। क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया? क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा? अच्छी खासी नौकरी करती थी , पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है। तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो। आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती। कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी। भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे। कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे। पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे। लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे। सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं। अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे। उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर। पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं। मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है। ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ , और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।” निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं। दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा। क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था। बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है। मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।” तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए। निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का। फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं? इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे। दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है। किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना। विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी। रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी। तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती। वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की। वह बोल रहे थे,” इनके बहू , बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता। वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद। बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।” सन्चालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।” निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे *कोई किसी का नहीं होता,* फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’ *” हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें | “* ये पैसा ही है जो एक हर रिश्ते की रिश्तेदारी निभा रहा है। मैं भी एक बेटी हूँ मगर एक बात कहना चाहती हूँ कि हर इंसान को अपने हाथ नहीं काट देने चाहिए ममता मे हो के ........ अपने भाविष्य के लिए कुछ न कुछ रख लेना चाहिए .......बाद में तो उनका ही हैं मगर जीते जी मरने से तो अच्छा है .... शायद ही कोई इसे पढ़े फिर भी एक उम्मीद के साथ..🙏🙏
Merath Se Vimla Chachi ka phone

A Farmer Hindi Story

सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है। बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में एक किसान रहता था. वह रोज़ भोर में उठकर दूर झरनों से स्वच्छ पानी लेने जाया करता था. इस काम के लिए वह अपने साथ दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वो डंडे में बाँध कर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था. उनमे से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एक दम सही था. इस वजह से रोज़ घर पहुँचते - पहुचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था. ऐसा दो सालों से चल रहा था. सही घड़े को इस बात का घमंड था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पंहुचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार चली जाती है. फूटा घड़ा ये सब सोच कर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया, उसने किसान से कहा, “मैं खुद पर शर्मिंदा हूँ और आपसे क्षमा मांगना चाहता हूँ ?” क्यों ? किसान ने पूछा, “तुम किस बात से शर्मिंदा हो ?” “शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूँ, और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुँचाना चाहिए था बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूँ, मेरे अन्दर ये बहुत बड़ी कमी है, और इस वजह से आपकी मेहनत बर्वाद होती रही है.” फूटे घड़े ने दुखी होते हुए कहा. किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुःख हुआ और वह बोला, “कोई बात नहीं, मैं चाहता हूँ कि आज लौटते वक़्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों को देखो.” घड़े ने वैसा ही किया, वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया, ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुँचते – पहुँचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था, वो मायूस हो गया और किसान से क्षमा मांगने लगा| किसान बोला,” शायद तुमने ध्यान नहीं दिया पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे वो बस तुम्हारी तरफ ही थे, सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अन्दर की कमी को जानता था, और मैंने उसका लाभ उठाया. मैंने तुम्हारे तरफ वाले रास्ते पर रंग -बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे, तुम रोज़ थोडा-थोडा कर के उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत बना दिया. आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान को अर्पित कर पाता हूँ और अपना घर सुन्दर बना पाता हूँ. तुम्ही सोचो अगरतुम जैसे हो वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सबकुछ कर पाता ?” दोस्तों हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी होती है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं. उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वो जैसा है वैसे ही स्वीकारना चाहिए और उसकी अच्छाई की तरफ ध्यान देना चाहिए, और जब हम ऐसा करेंगे तब “फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान हो जायेगा|
A farmer Hindi Story

Mukhya Athithi

*मुख्य अतिथि*👇🏻 *शहर के एक अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बग़ीचे में तेज़ धूप और गर्मी की परवाह किये बिना, बड़ी लग्न से पेड़ - पौधों की काट छाँट में लगा था कि तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज़ सुनाई दी, "गंगादास! तुझे प्रधानाचार्या जी तुरंत बुला रही हैं।"* गंगादास को आख़िरी के पांँच शब्दों में काफ़ी तेज़ी महसूस हुई और उसे लगा कि कोई महत्त्वपूर्ण बात हुई है जिसकी वज़ह से प्रधानाचार्या जी ने उसे तुरंत ही बुलाया है। शीघ्रता से उठा, अपने हाथों को धोकर साफ़ किया और चल दिया, द्रुत गति से प्रधानाचार्या के कार्यालय की ओर। उसे प्रधानाचार्या महोदया के कार्यालय की दूरी मीलों की लग रही थी जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी हृदयगति बढ़ गई थी। सोच रहा था कि उससे क्या ग़लत हो गया जो आज उसको प्रधानाचार्या महोदया ने तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा। वह एक ईमानदार कर्मचारी था और अपने कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण करता था। पता नहीं क्या ग़लती हो गयी। वह इसी चिंता के साथ प्रधानाचार्या के कार्यालय पहुँचा...... "मैडम, क्या मैं अंदर आ जाऊँ? आपने मुझे बुलाया था।" "हाँ। आओ और यह देखो" प्रधानाचार्या महोदया की आवाज़ में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रही थी। "पढ़ो इसे" प्रधानाचार्या ने आदेश दिया। "मैं, मैं, मैडम! मैं तो इंग्लिश पढ़ना नहीं जानता मैडम!" गंगादास ने घबरा कर उत्तर दिया। *"मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ मैडम यदि कोई गलती हो गयी हो तो।* मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ। क्योंकि आपने मेरी बिटिया को इस विद्यालय में निःशुल्क पढ़ने की इज़ाज़त दी। मुझे कृपया एक और मौक़ा दें मेरी कोई ग़लती हुई है तो सुधारने का। मैं आप का सदैव ऋणी रहूंँगा।" गंगादास बिना रुके घबरा कर बोलता चला जा रहा था। उसे प्रधानाचार्या ने टोका "तुम बिना वज़ह अनुमान लगा रहे हो। थोड़ा इंतज़ार करो, मैं तुम्हारी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका को बुलाती हूँ।" वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका प्रधानाचार्या के कार्यालय में पहुँची बहुत ही लंबे हो गए थे गंगादास के लिए। सोच रहा था कि क्या उसकी बिटिया से कोई ग़लती हो गयी, कहीं मैडम उसे विद्यालय से निकाल तो नहीं रहीं। उसकी चिंता और बढ़ गयी थी। कक्षा-अध्यापिका के पहुँचते ही प्रधानाचार्या महोदया ने कहा, "हमने तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी। अब ये मैडम इस पेपर में जो लिखा है उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हें सुनाएँगी, ग़ौर से सुनो।" कक्षा-अध्यापिका ने पेपर को पढ़ना शुरू करने से पहले बताया, "आज मातृ दिवस था और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में एक लेख लिखने को कहा। तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।" उसके बाद कक्षा- अध्यापिका ने पेपर पढ़ना शुरू किया। "मैं एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही माँयें दम तोड़ देती हैं बच्चों के जन्म के समय। मेरी माँ भी उनमें से एक थीं। उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं कि चल बसीं। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति थे मेरे परिवार के जिन्होंने मुझे गोद में लिया। पर सच कहूँ तो मेरे परिवार के वे अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाक़ी की नज़र में तो मैं अपनी माँ को खा गई थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा - दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लायें ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिताजी ने उनकी एक न सुनी और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वज़ह से मेरे दादा - दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ, ज़मीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये और इसी विद्यालय में माली का कार्य करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी ज़रूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है।" "आज मुझे समझ आता है कि वे क्यों हर उस चीज़ को जो मुझे पसंद थी ये कह कर खाने से मना कर देते थे कि वह उन्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह आख़िरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्त्व पता चला।" "मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख - सुविधाओं का ध्यान रखा और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था।" "यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है तो मेरी माँ मेरे पिताजी हैं।" "यदि दयाभाव, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ हैं।" "यदि त्याग, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं।" "यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग माँ की पहचान है तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ हैं।" आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामनाएँ दूँगी और कहूँगी कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक हैं। बहुत गर्व से कहूँगी कि ये जो हमारे विद्यालय के परिश्रमी माली हैं, मेरे पिता हैं।" "मैं जानती हूँ कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊँगी। क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था और मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी क़ीमत होगी उस सब की जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया। धन्यवाद"। आख़िरी शब्द पढ़ते - पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था और प्रधानाचार्या के कार्यालय में शांति छा गयी थी। इस शांति में केवल गंगादास के सिसकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। बग़ीचे में धूप की गर्मी उसकी कमीज़ को गीला न कर सकी पर उस पेपर पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज़ को पिता के आँसुओं से गीला कर दिया था। वह केवल हाथ जोड़ कर वहाँ खड़ा था। उसने उस पेपर को अध्यापिका से लिया और अपने हृदय से लगाया और रो पड़ा। प्रधानाचार्या ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा, "गंगादास तुम्हारी बिटिया को इस लेख के लिए पूरे 10/10 नम्बर दिए गए है। यह लेख मेरे अब तक के पूरे विद्यालय जीवन का सबसे अच्छा मातृ दिवस का लेख है। हम कल मातृ दिवस अपने विद्यालय में बड़े ज़ोर - शोर से मना रहे हैं। इस दिवस पर विद्यालय एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। विद्यालय की प्रबंधक कमेटी ने आपको इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया है। यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव और त्याग का जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है। यह सिद्ध करता है कि आपको एक औरत होना आवश्यक नहीं है एक पालक बनने के लिए। साथ ही यह अनुशंषा करता है उस विश्वाश का जो विश्वास आपकी बेटी ने आप पर दिखाया। हमें गर्व है कि संसार का सबसे अच्छा पिता हमारे विद्यालय में पढ़ने वाली बच्ची का पिता है जैसा कि आपकी बिटिया ने अपने लेख में लिखा। गंगादास हमें गर्व है कि आप एक माली हैं और सच्चे अर्थों में माली की तरह न केवल विद्यालय के बग़ीचे के फूलों की देखभाल की बल्कि अपने इस घर के फूल को भी सदा ख़ुशबूदार बनाकर रखा जिसकी ख़ुशबू से हमारा विद्यालय महक उठा। तो क्या आप हमारे विद्यालय के इस मातृ दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनेंगे?" रो पड़ा गंगादास और दौड़ कर बिटिया की कक्षा के बाहर से आँसू भरी आँखों से निहारता रहा , अपनी प्यारी बिटिया को। *संसार की समस्त प्यारी - प्यारी बेटियों को समर्पित l* 🌷🍃⛳😊💐
Mukhya Athithi

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विदाई . नीरज 3 महीने की टे्रनिंग के लिए दिल्ली से मुंबई गया था पर उसे 2 माह बाद ही वापस दिल्ली लौटना पड़ा था. ‘‘कविता की तबीयत बहुत खराब है. डा. विनिता कहती हैं कि उसे स्तन कैंसर है. तुम फौरन यहां आओ,’’ टेलीफोन पर अपने पिता से पिछली शाम हुए इस वार्त्तालाप पर नीरज को विश्वास नहीं हो रहा था. कविता और उस की शादी हुए अभी 6 महीने भी पूरे नहीं हुए थे. सिर्फ 25-26 साल की कम उम्र में कैंसर कैसे हो गया? इस सवाल से जूझते हुए नीरज का सिर दर्द से फटने लगा था. एअरपोर्ट से घर न जा कर नीरज सीधे डा. विनिता से मिलने पहुंचा. इस समय उस का दिल भय और चिंता से बैठा जा रहा था. डा. विनिता ने जो बताया उसे सुन कर नीरज की आंखों से आंसू झरने लगे. ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि कविता गर्भवती थी. उसे जिस तरह का स्तन कैंसर हुआ है, उस का गर्भ धारण करने से गहरा रिश्ता है. इस तरह का कैंसर कविता की उम्र वाली स्त्रियों को हो जाता है,’’ डा. विनिता ने गंभीर लहजे में उसे जानकारी दी. ‘‘अब उस का क्या इलाज करेंगे आप लोग?’’ अपने आंसू पोंछ कर नीरज ने कांपते स्वर में पूछा. बेचैनी से पहलू बदलने के बाद डा. विनिता ने जवाब दिया, ‘‘नीरज, कविता का कैंसर बहुत तेजी से फैलने वाला कैंसर है. वह मेरे पास पहुंची भी देर से थी. दवाइयों और रेडियोथेरैपी से मैं उस के कैंसर के और ज्यादा फैलने की गति को ही कम कर सकती हूं, पर उसे कैंसरमुक्त करना अब संभव नहीं है.’’ ‘‘यह आप क्या कह रही हैं? मेरी कविता क्या बचेगी नहीं?’’ नीरज रोंआसा हो कर बोला. ‘‘वह कुछ हफ्तों या महीनों से ज्यादा हमारे साथ नहीं रहेगी. अपनी प्यार भरी देखभाल व सेवा से तुम्हें उस के बाकी बचे दिनों को ज्यादा से ज्यादा सुखद और आरामदायक बनाने की कोशिश करनी होगी. कविता को ले कर तुम्हारे घर वालों का आपस में झगड़ना उसे बहुत दुख देगा.’’ ‘‘यह लोग आपस में किस बात पर झगड़े, डाक्टर?’’ नीरज चौंका और फिर ज्यादा दुखी नजर आने लगा. ‘‘कैंसर की काली छाया ने तुम्हारे परिवार में सभी को विचलित कर दिया है. कविता इस समय अपने मायके में है. वहां पहुंचते ही तुम्हें दोनों परिवारों के बीच टकराव के कारण समझ में आ जाएंगे. तुम्हें तो इस वक्त बेहद समझदारी से काम लेना है. मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं,’’ नीरज की पीठ अपनेपन से थपथपा कर डा. विनिता ने उसे विदा किया. ससुराल में कविता से मुलाकात करने से पहले नीरज को अपने सासससुर व साले के कड़वे, तीखे और अपमानित करने वाले शब्दों को सुनना पड़ा. ‘‘कैंसर की बीमारी से पीडि़त अपनी बेटी को मैं ने धोखे से तुम्हारे साथ बांध दिया, तुम्हारे मातापिता के इस घटिया आरोप ने मुझे बुरी तरह आहत किया है. नीरज, मैं तुम लोगों से अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता हूं,’’ गुस्से में उस के ससुर ने अपना फैसला सुनाया. ‘‘इस कठिन समय में उन की मूर्खतापूर्ण बातों को आप दिल से मत लगाइए,’’ थकेहारे अंदाज में नीरज ने अपने ससुर से प्रार्थना की. ‘‘इस कठिन समय को गुजारने के लिए तुम सब हमें अकेले छोड़ने की कृपा करो. बस,’’ उस के साले ने नाटकीय अंदाज में अपने हाथ जोड़े. ‘‘तुम भूल रहे हो कि कविता मेरी पत्नी है.’’ ‘‘आप जा कर अपने मातापिता से कह दें कि हमें उन से कैसी भी सहायता की जरूरत नहीं है. अपनी बहन का इलाज मैं अपना सबकुछ बेच कर भी कराऊंगा.’’ ‘‘देखिए, आप लोगों ने आपस में एकदूसरे से झगड़ते हुए क्याक्या कहा, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं. मेरी गृहस्थी उजड़ने की कगार पर आ खड़ी हुई है. कविता से मिलने को मेरा दिल तड़प रहा है…उसे मेरी…मेरे सहारे की जरूरत है. प्लीज, उसे यहां बुलाइए,’’ नीरज की आंखों से आंसू बहने लगे. नीरज के दुख ने उन के गुस्से के उफान पर पानी के छींटे मारने का काम किया. उस की सास पास आ कर स्नेह से उस के सिर पर हाथ फेरने लगीं. अब उन सभी की आंखों में आंसू छलक उठे. ‘‘कविता की मौसी उसे अपने साथ ले कर गई हैं. वह रात तक लौटेंगी. तुम तब तक यहां आराम कर लो,’’ उस की सास ने बताया. अपने हाथों से मुंह कई बार पोंछ कर नीरज ने मन के बोझिलपन को दूर करने की कोशिश की. फिर उठ कर बोला, ‘‘मैं अभी घर जाता हूं. रात को लौटूंगा. कविता से कहना कि मेरे साथ घर लौटने की तैयारी कर के रखे.’’ आटोरिकशा पकड़ कर नीरज घर पहुंचा. उस का मन बुझाबुझा सा था. अपने मातापिता के रूखे स्वभाव को वह अच्छी तरह जानता था इसलिए उन्हें समझाने की उस ने कोई कोशिश भी नहीं की. कविता की जानलेवा बीमारी की चर्चा छिड़ते ही उस की मां ने गुस्से में अपने मन की बात कही, ‘‘तेरी ससुराल वालों ने हमें ठग कर अपनी सिरदर्दी हमारे सिर पर लाद दी है, नीरज. कविता के इलाज की भागदौड़ और उस की दिनरात की सेवा हम से नहीं होगी. अब उसे अपने मायके में ही रहने दे, बेटे.’’ ‘‘तेरे सासससुर ने शादी में अच्छा दहेज देने का मुझे ताना दिया है. सुन, अपनी मां से कविता के सारे जेवर ले जा कर उन्हें दे देना,’’ नीरज के पिता भी तेज गुस्से का शिकार बने हुए थे. नीरज की छोटी बहन वंदना ने जरूर उस के साथ कुछ देर बैठ कर अपनी आंखों से आंसू बहाए पर कविता को घर लाने की बात उस ने भी अपने मुंह से नहीं निकाली. अपने कमरे में नीरज बिना कपड़े बदले औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ा. इस समय वह अपने को बेहद अकेला महसूस कर रहा था. अपने घर व ससुराल वालों के रूखे व झगड़ालू व्यवहार से उसे गहरी शिकायत थी. उस के अपने घर वाले बीमार कविता को घर में रखना नहीं चाहते थे और ससुराल में रहने पर नीरज का अपना दिल नहीं लगता. वह कविता के साथ रह कर कैसे यह कठिन दिन गुजारे, इस समस्या का हल खोजने को उसे काफी माथापच्ची करनी पड़ी. उस रात कविता से नीरज करीब 2 माह बाद मिला. उसे देख कर नीरज को मन ही मन जबरदस्त झटका लगा. उस की खूबसूरत पत्नी का रंगरूप मुरझा गया था. उस ने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया. कविता अचानक हिचकियां ले कर रोने लगी. नीरज की आंखों से भी आंसू बह रहे थे. कविता के शरीर ने जब कांपना बंद कर दिया तब नीरज ने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त किया. अब तक अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का सहारा ले कर उस ने खुद को काफी संभाल भी लिया था. ‘‘मेरे सामने यह रोनाधोना नहीं चलेगा, जानेमन,’’ उस ने मुसकरा कर कविता के गाल पर चुटकी भरी, ‘‘इन मुसीबत के क्षणों को भी हम उत्साह, हंसीखुशी और प्रेम के साथ गुजारेंगे. यह वादा इसी वक्त तुम्हें मुझ से करना होगा, कविता.’’ नीरज ने अपना हाथ कविता के सामने कर दिया. कविता शरमाते हुए पहली बार सहज ढंग से मुसकराई और उस ने हाथ बढ़ा कर नीरज का हाथ पकड़ लिया. उस रात नीरज अपनी ससुराल में रुका. दोनों ने साथसाथ खाना खाया. फिर देर रात तक हाथों में हाथ ले कर बातें करते रहे. भविष्य के बारे में कैसी भी योजना बनाने का अवसर तो नियति ने उन से छीन ही लिया था. अतीत की खट्टीमीठी यादों को ही उन दोनों ने खूब याद किया. सुहागरात, शिमला में बिताया हनीमून, साथ की गई खरीदारी, देखी हुई जगहें, आपसी तकरार, प्यार में बिताए क्षण, प्रशंसा, नाराजगी, रूठनामनाना और अन्य ढेर सारी यादों को उन्होंने उस रात शब्दों के माध्यम से जिआ. हंसतेमुसकराते, आंसू बहाते वे दोनों देर रात तक जागते रहे. कविता उसे यौन सुख देने की इच्छुक भी थी पर कैंसर ने इतना तेज दर्द पैदा किया कि उन का मिलन संभव न था. अपनी बेबसी पर कविता की रुलाई फूट पड़ी. नीरज ने बड़े सहज अंदाज में पूरी बात को लिया. वह तब तक कविता के सिर को सहलाता रहा जब तक वह सो नहीं गई. ‘‘मैं तुम्हारी अंतिम सांस तक तुम्हारे पास हूं, कविता. इस दुनिया से तुम्हारी विदाई मायूसी व शिकायत के साथ नहीं बल्कि प्रेम व अपनेपन के एहसास के साथ होगी, यह वादा है मेरा तुम से,’’ नींद में डूबी कविता से यह वादा कर के ही नीरज ने सोने के लिए अपनी आंखें बंद कीं. अगले दिन सुबह नीरज और कविता 2 कमरों वाले एक फ्लैट में रहने चले आए. यह खाली पड़ा फ्लैट नीरज के एक पक्के दोस्त रवि का था. रवि ने फ्लैट दिया तो अन्य दोस्तों व आफिस के सहयोगियों ने जरूरत के दूसरे सामान भी फ्लैट में पहुंचा दिए. नीरज ने आफिस से लंबी छुट्टी ले ली. जहां तक संभव होता अपना हर पल वह कविता के साथ गुजारने की कोशिश करता. उन से मिलने रोज ही कोई न कोई घर का सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त आ जाते. सभी अपनेअपने ढंग से सहानुभूति जाहिर कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करते. नीरज की समझ में एक बात जल्दी ही आ गई कि हर सहानुभूतिपूर्ण बातचीत के बाद वह दोनों ही उदासी और निराशा का शिकार हो जाते थे. शब्दों के माध्यम से शरीर या मन की पीड़ा को कम करना संभव नहीं था. इस समझ ने नीरज को बदल दिया. कविता का ध्यान उस की घातक बीमारी पर से हटा रहे, इस के लिए उस ने ज्यादा सक्रिय उपायों को इस्तेमाल में लाने का निर्णय किया. उसी शाम वह बाजार से लूडो और कैरमबोर्ड खरीद लाया. कविता को ये दोनों ही खेल पसंद थे. जब भी समय मिलता दोनों के बीच लूडो की बाजी जम जाती. एक सुबह रसोई में जा कर नीरज ने कविता से कहा, ‘‘मुझे भी खाना बनाना सिखाओ, मैं चाय बनाने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं.’’ ‘‘अच्छा, खाना बनाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जनाब,’’ कविता उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए मुसकराई. ‘‘मैडमजी, मैं पूरी लगन से सीखूंगा.’’ ‘‘मेरी डांट भी सुननी पड़ेगी.’’ ‘‘मुझे मंजूर है.’’ ‘‘तब पहले सब्जी काटना सीखो,’’ कविता ने 4 आलू मजाकमजाक में नीरज को पकड़ा दिए. नीरज तो सचमुच आलुओं को धो कर उन्हें काटने को तैयार हो गया. कविता ने उसे रोकना भी चाहा, पर वह नहीं माना. उसे ढंग से चाकू पकड़ना भी कविता को सिखाना पड़ा. नीरज ने आलू के आड़ेतिरछे टुकड़े बड़े ध्यान से काटे. दोनों ने ही इस काम में खूब मजा लिया. ‘‘अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा आलू के पकौड़े,’’ नीरज की इस घोषणा को सुन कर कविता ने इतनी तरह की अजीबो- गरीब शक्लें बनाईं कि उस का हंसतेहंसते पेट दुखने लगा. नीरज ने बेसन खुद घोला. तेल की कड़ाही के सामने खुद ही जमा रहा. कविता की सहायता व सलाह लेना उसे मंजूर था, पर पकौड़े बनाने का काम उसी ने किया. उस दिन के बाद से नीरज भोजन बनाने के काम में कविता का बराबर हाथ बंटाता. कविता को भी उसे सिखाने में बहुत मजा आता. रसोई में साथसाथ बिताए समय के दौरान वह अपना दुखदर्द पूरी तरह भूल जाती. ‘‘मैं नहीं रहूंगी, तब भी आप कभी भूखे नहीं रहोगे. बहुत कुछ बनाना सीख गए हो अब आप,’’ एक रात सोने के समय कविता ने उसे छेड़ा. ‘‘तुम से मैं ने यह जो खाना बनाना सीखा है, शायद इसी की वजह से ऐसा समय कभी नहीं आएगा, जो तुम मेरे साथ मेरे दिल में कभी न रहो,’’ नीरज ने उस के होंठों को चूम लिया. नीरज से लिपट कर बहुत देर तक खामोश रहने के बाद कविता ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आप के प्यार के कारण अब मुझे मौत से डर नहीं लगता है. ‘‘जिस से जानपहचान नहीं उस से डरना क्या. जीवन प्रेम से भरा हो तो मौत के बारे में सोचने की फुरसत किसे है,’’ नीरज ने इस बार उस की आंखों को बारीबारी से चूमा. ‘‘आप बहुत अच्छे हो,’’ कविता की आंखें नम होने लगीं. ‘‘थैंक यू. देखो, अगर मैं तुम्हारी तारीफ करने लगा तो सुबह हो जाएगी. कल अस्पताल जाना है. अब तुम आराम करो,’’ अपनी हथेली से नीरज ने कविता की आंखें मूंद दीं. कुछ ही देर में कविता गहरी नींद के आगोश में पहुंच गई. नीरज देर तक उस के कमजोर पर शांत चेहरे को प्यार से निहारता रहा. हर दूसरे दिन नीरज अपने किसी दोस्त की कार मांग लाता और कविता को उस की सहेलियों व मनपसंद रिश्तेदारों से मिलाने ले जाता. कभीकभी दोनों अकेले किसी उद्यान में जा कर हरियाली व रंगबिरंगे फूलों के बीच समय गुजारते. एकदूसरे का हाथ थाम कर अपने दिलों की बात कहते हुए समय कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता. नीरज कितनी लगन व प्रेम से कविता की देखभाल कर रहा है, यह किसी की नजरों से छिपा नहीं रहा. कविता के मातापिता व भाई हर किसी के सामने नीरज की प्रशंसा करते न थकते. नीरज के अपने मातापिता को उस का व्यवहार समझ में नहीं आता. वे उस के फ्लैट से हमेशा चिंतित व परेशान से हो कर लौटते. ‘‘दुनिया छोड़ कर जल्दी जाने वाली कविता के साथ इतना मोह रखना ठीक नहीं है नीरज,’’ उस की मां, अकसर अकेले में उसे समझातीं, ‘‘तुम्हारी जिंदगी अभी आगे भी चलेगी, बेटे. कोई ऐसा तेज सदमा दिमाग में मत बैठा लेना कि अपने भविष्य के प्रति तुम्हारी कोई दिलचस्पी ही न रहे.’’ नीरज हमेशा हलकेफुलके अंदाज में उन्हें जवाब देता, ‘‘मां, कविता इतने कम समय के लिए हमारे साथ है कि हम उसे अपना मेहमान ही कहेंगे और मेहमान की विदाई तक उस की देखभाल, सेवा व आवभगत में कोई कमी न रहे, मेरी यही इच्छा है.’’ वक्त का पहिया अपनी धुरी पर निरंतर घूमता रहा. कविता की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी. नीरज ने अगर उस के होंठों पर मुसकान बनाए रखने को जी जान से ताकत न लगा रखी होती तो अपनी तेजी से करीब आ रही मौत का भय उस के वजूद को कब का तोड़ कर बिखेर देता. एक दिन चाह कर भी वह घर से बाहर जाने की शक्ति अपने अंदर नहीं जुटा पाई. उस दिन उस की खामोशी में उदासी और निराशा का अंश बहुत ज्यादा बढ़ गया. उस रात सोने से पहले कविता नीरज की छाती से लग कर सुबक उठी. नीरज उसे किसी भी प्रकार की तसल्ली देने में नाकाम रहा. ‘‘मुझे इस एक बात का सब से ज्यादा मलाल है कि हमारे प्रेम की निशानी के तौर पर मैं तुम्हें एक बेटा या बेटी नहीं दे पाई… मैं एक बहू की तरह से…एक पत्नी के रूप में असफल हो कर इस दुनिया से जा रही हूं…मेरी मौत क्या 2-3 साल बाद नहीं आ सकती थी?’’ कविता ने रोंआसी हो कर नीरज से सवाल पूछा. ‘‘कविता, फालतू की बातें सोच कर अपने मन को परेशान मत करो,’’ नीरज ने प्यार से उस की नाक पकड़ कर इधरउधर हिलाई, ‘‘मौत का सामना आगेपीछे हम सब को करना ही है. इस शरीर का खो जाना मौत का एक पहलू है. देखो, मौत की प्रक्रिया पूरी तब होती है जब दुनिया को छोड़ कर चले गए इनसान को याद करने वाला कोई न बचे. मैं इसी नजरिए से मौत को देखता हूं. और इसीलिए कहता हूं कि मेरी अंतिम सांस तक तुम्हारा अस्तित्व मेरे लिए कायम रहेगा…मेरे लिए तुम मेरी सांसों में रहोगी… मेरे साथ जिंदा रहोगी.’’ कविता ने उस की बातों को बड़े ध्यान से सुना था. अचानक वह सहज ढंग से मुसकराई और उस की आंखों में छाए उदासी के बादल छंट गए. ‘‘आप ने जो कहा है उसे मैं याद रखूंगी. मेरी कोशिश रहेगी कि बचे हुए हर पल को जी लूं… बची हुई जिंदगी का कोई पल मौत के बारे में सोचते हुए नष्ट न करूं. थैंक यू, सर,’’ नीरज के होंठों का चुंबन ले कर कविता ने बेहद संतुष्ट भाव से आंखें मूंद ली थीं. आगामी दिनों में कविता का स्वास्थ्य तेजी से गिरा. उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी. शरीर सूख कर कांटा हो गया. खानापीना मुश्किल से पेट में जाता. शरीर में जगहजगह फैल चुके कैंसर की पीड़ा से कोई दवा जरा सी देर को भी मुक्ति नहीं दिला पाती. अपनी जिंदगी के आखिरी 3 दिन उस ने अस्पताल के कैंसर वार्ड में गुजारे. नीरज की कोशिश रही कि वह वहां हर पल उस के साथ बना रहे. ‘‘मेरे जाने के बाद आप जल्दी ही शादी जरूर कर लेना,’’ अस्पताल पहुंचने के पहले दिन नीरज का हाथ अपने हाथों में ले कर कविता ने धीमी आवाज में उस से अपने दिल की बात कही. ‘‘मुझे मुसीबत में फंसाने वाली मांग मुझ से क्यों कर रही हो?’’ नीरज ने जानबूझ कर उसे छेड़ा. ‘‘तो क्या आप मुझे अपने लिए मुसीबत समझते रहे हो?’’ कविता ने नाराज होने का अभिनय किया. ‘‘बिलकुल नहीं,’’ नीरज ने प्यार से उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘तुम तो सोने का दिल रखने वाली एक साहसी स्त्री हो. बहुत कुछ सीखा है मैं ने तुम से.’’ ‘‘झूठी तारीफ करना तो कोई आप से सीखे,’’ इन शब्दों को मुंह से निकालते समय कविता की खुशी देखते ही बनती थी. कविता का सिर सहलाते हुए नीरज मन ही मन सोचता रहा, ‘मैं झूठ नहीं कह रहा हूं, कविता. तुम्हारी मौत को सामने खड़ी देख हमारी साथसाथ जीने की गुणवत्ता पूरी तरह बदल गई. हमारी जीवन ज्योति पूरी ताकत से जलने लगी… तुम्हारी ज्योति सदा के लिए बुझने से पहले अपनी पूरी गरिमा व शक्ति से जलना चाहती होगी…मेरी ज्योति तुम्हें खो देने से पहले तुम्हारे साथ बीतने वाले एकएक पल को पूरी तरह से रोशन करना चाहती है. जीने की सही कला…सही अंदाज सीखा है मैं ने तुम्हारे साथ पिछले कुछ हफ्तों में. तुम्हारे साथ की यादें मुझे आगे भी सही ढंग से जीने को सदा उत्साहित करती रहेंगी, यह मेरा वादा रहा तुम से…भविष्य में किसी अपने को विदाई देने के लिए नहीं, बल्कि हमसफर बन कर जिंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए मैं जिऊंगा क्योंकि जिंदगी के सफर का कोई भरोसा नहीं.’ जब 3 दिन बाद कविता ने आखिरी सांस ली तब नीरज का हाथ उस के हाथ में था. उस ने कठिनाई से आंखें खोल कर नीरज को प्रेम से निहारा. नीरज ने अपने हाथ पर उस का प्यार भरा दबाव साफ महसूस किया. नीरज ने झुक कर उस का माथा प्यार से चूम लिया. कविता के होंठों पर छोटी सी प्यार भरी मुसकान उभरी. एक बार नीरज के हाथ को फिर प्यार से दबाने के बाद कविता ने बड़े संतोष व शांति भरे अंदाज में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं. नीरज ने देखा कि इस क्षण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का बोझ नहीं था. इस मेहमान को विदा कहने से पहले उस की सुखसुविधा व मन की शांति के लिए जो भी कर सकता था, उस ने खुशीखुशी व प्रेम से किया. तभी तो उस के मन में कोई टीस या कसक नहीं उठी. विदाई के इन क्षणों में उस की आंखों से जो आंसुओं की धारा लगातार बह रही थी उस का उसे कतई एहसास नहीं था.
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Aik Beti Ka Pita

💜 एक बेटी का पिता 💜 एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई लड़का बड़े अच्छे घर से था तो पिता बहुत खुश हुए। 💜 लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव बड़ा अच्छा था तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया।💝 एक दिन शादी से पहले लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया। पिता की तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी वह ना न कह सके। 💝 लड़के वालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया। फ़िर लडकी के पिता के लिए चाय आई शुगर कि वजह से लडकी के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था। लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली। चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चोक से गये चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी 💜 और इलायची भी डली हुई थी। 💜 वो सोच मे पड़ गये की ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं। दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये पतली चादर।उठते ही सोंफ का पानी पीने को दिया गया।💜 वहाँ से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे - मुझे क्या खाना है क्या पीना है मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है ? ये परफेक्टली आपको कैसे पता है ? तो बेटी कि सास ने धीरे से कहा कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था। ओर उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं 💜 बोलेंगे कुछ नहीं प्लीज अगर हो सके तो आप उनका ध्यान रखियेगा। 💜💜 पिता की आंखों मे वहीँ पानी आ गया था। लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया। जब पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो ? ? तो लडकी का पिता बोले - मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से कहीं नहीं गयी है 💜💜 बल्कि वो तो मेरी बेटी के रुप में इस घर में ही रहती है। 💜💜 और फिर पिता की आंखों से आंसू झलक गये ओर वो फफक कर रो पड़े। 💜 दुनिया में सब कहते हैं ना ! कि बेटी है एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी। 😢 मगर मैं दुनिया के सभी माँ-बाप से ये कहना चाहता हूँ की बेटी कभी भी अपने माँ-बाप के घर से नहीं जाती। बल्कि वो हमेशा उनके दिल में रहती है।

Aik Beti Ka Pita

Rona Ho To Padhen

रोना_हो_तो_पढ़े निशा काम निपटा कर बैठी ही थी की फोन की घंटी बजने लगी।मेरठ से विमला चाची का फोन था ,”बिटिया अपने बाबू जी को आकर ले जाओ यहां से। बीमार रहने लगे है , बहुत कमजोर हो गए हैं। हम भी कोई जवान तो हो नहीं रहें है,अब उनका करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। वैसे भी आखिरी समय अपने बच्चों के साथ बिताना चाहिए।” निशा बोली,”ठीक है चाची जी इस रविवार को आतें हैं, बाबू जी को हम दिल्ली ले आएंगे।” फिर इधर उधर की बातें करके फोन काट दिया। बाबूजी तीन भाई है , पुश्तैनी मकान है तीनों वहीं रहते हैं। निशा और उसका छोटा भाई विवेक दिल्ली में रहते हैं अपने अपने परिवार के साथ। तीन चार साल पहले विवेक को फ्लैट खरीदने की लिए पैसे की आवश्यकता पड़ी तो बाबूजी ने भाईयों से मकान के अपने एक तिहाई हिस्से का पैसा लेकर विवेक को दे दिया था, कुछ खाने पहनने के लिए अपने लायक रखकर। दिल्ली आना नहीं चाहते थे इसलिए एक छोटा सा कमरा रख लिया था जब तक जीवित थे तब तक के लिए। निशा को लगता था कि अम्मा के जाने के बाद बिल्कुल अकेले पड़ गए होंगे बाबूजी लेकिन वहां पुराने परिचितों के बीच उनका मन लगता था। दोनों चाचियां भी ध्यान रखती थी। दिल्ली में दोनों भाई बहन की गृहस्थी भी मज़े से चल रही थी। रविवार को निशा और विवेक का ही कार्यक्रम बन पाया मेरठ जाने का। निशा के पति अमित एक व्यस्त डाक्टर है महिने की लाखों की कमाई है उनका इस तरह से छुट्टी लेकर निकलना बहुत मुश्किल है, मरीजों की बिमारी न रविवार देखती है न सोमवार। विवेक की पत्नी रेनू की अपनी जिंदगी है उच्च वर्गीय परिवारों में उठना बैठना है उसका , इस तरह के छोटे मोटे पारिवारिक पचड़ों में पड़ना उसे पसंद नहीं। रास्ते भर निशा को लगा विवेक कुछ अनमना , गुमसुम सा बैठा है। वह बोली,”इतना परेशान मत हो, ऐसी कोई चिंता की बात नहीं है, उम्र हो रही है, थोड़े कमजोर हो गए हैं ठीक हो जाएंगे।” विवेक झींकते हुए बोला,”अच्छा खासा चल रहा था,पता नहीं चाचाजी को एसी क्या मुसीबत आ गई दो चार साल और रख लेते तो। अब तो मकानों के दाम आसमान छू रहे हैं,तब कितने कम पैसों में अपने नाम करवा लिया तीसरा हिस्सा।” निशा शान्त करने की मन्शा से बोली,”ठीक है न उस समय जितने भाव थे बाजार में उस हिसाब से दे दिए। और बाबूजी आखरी समय अपने बच्चों के बीच बिताएंगे तो उन्हें अच्छा लगेगा।” विवेक उत्तेजित हो गया , बोला,”दीदी तेरे लिए यह सब कहना बहुत आसान है। तीन कमरों के फ्लैट में कहां रखूंगा उन्हें। रेनू से किट किट रहेगी सो अलग, उसने तो साफ़ मना कर दिया है वह बाबूजी का कोई काम नहीं करेंगी | वैसे तो दीदी लड़कियां हक़ मांग ने तो बडी जल्दी खड़ी हो जाती हैं , करने के नाम पर क्यों पीछे हट जाती है। आज कल लड़कियों की शिक्षा और शादी के समय में अच्छा खासा खर्च हो जाता है।तू क्यों नहीं ले जाती बाबूजी को अपने घर, इतनी बड़ी कोठी है ,जिजाजी की लाखों की कमाई है?” निशा को विवेक का इस तरह बोलना ठीक नहीं लगा। पैसे लेते हुए कैसे वादा कर रहा था बाबूजी से,”आपको किसी भी वस्तु की आवश्यकता हो आप निसंकोच फोन कर देना मैं तुरंत लेकर आ जाऊंगा। बस इस समय हाथ थोड़ा तन्ग है।” नाममात्र पैसे छोडे थे बाबूजी के पास, और फिर कभी फटका भी नहीं उनकी सुध लेने। निशा:”तू चिंता मत कर मैं ले जाऊंगी बाबूजी को अपने घर।” सही है उसे क्या परेशानी, इतना बड़ा घर फिर पति रात दिन मरीजों की सेवा करते है, एक पिता तुल्य ससुर को आश्रय तो दे ही सकते हैं। बाबूजी को देख कर उसकी आंखें भर आईं। इतने दुबले और बेबस दिख रहे थे,गले लगते हुए बोली,”पहले फोन करवा देते पहले लेने आ जाती।” बाबूजी बोलें,” तुम्हारी अपनी जिंदगी है क्या परेशान करता। वैसे भी दिल्ली में बिल्कुल तुम लोगों पर आश्रित हो जाऊंगा।” रात को डाक्टर साहब बहुत देर से आएं,तब तक पिता और बच्चे सो चुके थे। खाना खाने के बाद सुकून से बैठते हुएं निशा ने डाक्टर साहब से कहा,” बाबूजी को मैं यहां ले आईं हूं। विवेक का घर बहुत छोटा है, उसे उन्हें रखने में थोड़ी परेशानी होती।” अमित के एक दम तेवर बदल गए,वह सख्त लहजे में बोला,” यहां ले आईं हूं से क्या मतलब है तुम्हारा? तुम्हारे पिताजी तुम्हारे भाई की जिम्मेदारी है। मैंने बड़ा घर वृद्धाश्रम खोलने के लिए नहीं लिया था , अपने रहने के लिए लिया है। जायदाद के पैसे हड़पते हुए नहीं सोचा था साले साहब ने कि पिता की करनी भी पड़ेगी। रात दिन मेहनत करके पैसा कमाता हूं फालतू लुटाने के लिए नहीं है मेरे पास।” पति के इस रूप से अनभिज्ञ थी निशा। “रात दिन मरीजों की सेवा करते हो मेरे पिता के लिए क्या आपके घर और दिल में इतना सा स्थान भी नहीं है।” अमित के चेहरे की नसें तनीं हुईं थीं,वह लगभग चीखते हुए बोला,” मरीज़ बिमार पड़ता है पैसे देता है ठीक होने के लिए, मैं इलाज करता हूं पैसे लेता हूं। यह व्यापारिक समझोता है इसमें सेवा जैसा कुछ नहीं है।यह मेरा काम है मेरी रोजी-रोटी है। बेहतर होगा तुम एक दो दिन में अपने पिता को विवेक के घर छोड़ आओ।” निशा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिस पति की वह इतनी इज्जत करती है वें ऐसा बोल सकते हैं। क्यों उसने अपने भाई और पति पर इतना विश्वास किया? क्यों उसने शुरू से ही एक एक पैसा का हिसाब नहीं रखा? अच्छी खासी नौकरी करती थी , पहले पुत्र के जन्म पर अमित ने यह कह कर छुड़वा दी कि मैं इतना कमाता हूं तुम्हें नौकरी करने की क्या आवश्यकता है। तुम्हें किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी आराम से घर रहकर बच्चों की देखभाल करो। आज अगर नौकरी कर रही होती तो अलग से कुछ पैसे होते उसके पास या दस साल से घर में सारा दिन काम करने के बदले में पैसे की मांग करती तो इतने तो हो ही जाते की पिता जी की देखभाल अपने दम पर कर पाती। कहने को तो हर महीने बैंक में उसके नाम के खाते में पैसे जमा होते हैं लेकिन उन्हें खर्च करने की बिना पूछे उसे इजाज़त नहीं थी।भाई से भी मन कर रहा था कह दे शादी में जो खर्च हुआ था वह निकाल कर जो बचता है उसका आधा आधा कर दे।कम से कम पिता इज्जत से तो जी पाएंगे। पति और भाई दोनों को पंक्ति में खड़ा कर के बहुत से सवाल करने का मन कर रहा था, जानती थी जवाब कुछ न कुछ तो अवश्य होंगे। लेकिन इन सवाल जवाब में रिश्तों की परतें दर परतें उखड़ जाएंगी और जो नग्नता सामने आएगी उसके बाद रिश्ते ढोने मुश्किल हो जाएंगे। सामने तस्वीर में से झांकती दो जोड़ी आंखें जिव्हा पर ताला डाल रहीं थीं। अगले दिन अमित के हस्पताल जाने के बाद जब नाश्ता लेकर निशा बाबूजी के पास पहुंची तो वे समान बांधे बैठें थे।उदासी भरे स्वर में बोले,” मेरे कारण अपनी गृहस्थी मत ख़राब कर।पता नहीं कितने दिन है मेरे पास कितने नहीं। मैंने इस वृद्धाश्रम में बात कर ली है जितने पैसे मेरे पास है, उसमें मुझे वे लोग रखने को तैयार है। ये ले पता तू मुझे वहां छोड़ आ , और निश्चित होकर अपनी गृहस्थी सम्भाल।” निशा समझ गई बाबूजी की देह कमजोर हो गई है दिमाग नहीं।दमाद काम पर जाने से पहले मिलने भी नहीं आया साफ़ बात है ससुर का आना उसे अच्छा नहीं लगा। क्या सफाई देती चुप चाप टैक्सी बुलाकर उनके दिए पते पर उन्हें छोड़ने चल दी। नजरें नहीं मिला पा रही थी,न कुछ बोलते बन रहा था। बाबूजी ने ही उसका हाथ दबाते हुए कहा,” परेशान मत हो बिटिया, परिस्थितियों पर कब हमारा बस चलता है। मैं यहां अपने हम उम्र लोगों के बीच खुश रहूंगा।” तीन दिन हो गए थे बाबूजी को वृद्धाश्रम छोड़कर आए हुए। निशा का न किसी से बोलने का मन कर रहा था न कुछ खाने का। फोन करके पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी वे कैसे हैं? इतनी ग्लानि हो रही थी कि किस मुंह से पूछे। वृद्धाश्रम से ही फोन आ गया कि बाबूजी अब इस दुनिया में नहीं रहे।दस बजे थे बच्चे पिकनिक पर गए थे आठ नौ बजे तक आएंगे, अमित तो आतें ही दस बजे तक है। किसी की भी दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ेगा, किसी को सूचना भी क्या देना। विवेक आफिस चला गया होगा बेकार छुट्टी लेनी पड़ेगी। रास्ते भर अविरल अश्रु धारा बहती रही कहना मुश्किल था पिता के जाने के ग़म में या अपनी बेबसी पर आखिरी समय पर पिता के लिए कुछ नहीं कर पायी। तीन दिन केवल तीन दिन अमित ने उसके पिता को मान और आश्रय दे दिया होता तो वह हृदय से अमित को परमेश्वर का मान लेती। वृद्धाश्रम के सन्चालक महोदय के साथ मिलकर उसने औपचारिकताएं पूर्ण की। वह बोल रहे थे,” इनके बहू , बेटा और दमाद भी है रिकॉर्ड के हिसाब से।उनको भी सूचना दे देते तो अच्छा रहता।वह कुछ सम्भल चुकी थी बोली, नहीं इनका कोई नहीं है न बहू न बेटा और न दामाद।बस एक बेटी है वह भी नाम के लिए ।” सन्चालक महोदय अपनी ही धुन में बोल रहे थे,” परिवार वालों को सांत्वना और बाबूजी की आत्मा को शांति मिले।” निशा सोच रही थी ‘ बाबूजी की आत्मा को शांति मिल ही गई होगी। जाने से पहले सबसे मोह भंग हो गया था। समझ गये होंगे कोई किसी का नहीं होता, फिर क्यों आत्मा अशान्त होगी।’ ” हां, परमात्मा उसको इतनी शक्ति दें कि किसी तरह वह बहन और पत्नी का रिश्ता निभा सकें | “ शायद ही कोई इसे पढ़े । फिर भी एक उम्मीद के साथ । बच्चो से प्यार खुब करो पर अपना हमैशा सोच कर चले
Rona Ho to padhen

Main Kanpur Me Rahti Hun

मेरा नाम सुधा है और मैं कानपूर में रहती हूँ मैं एक कास्मेटिक की दुकान चलती हूँ मेरे पति ने ये दुकान शुरू की थी लेकिन 4 साल पहले उनका देहांत हो गया था इसलिए अब मैं ही ये दूकान चलाती हूँ दुकान पर एक सेल्स गर्ल भी है जो काफी अच्छा काम करती है और मैं भी उसे बेटी की तरह ही मानती हूँ शाम के 7 बजे का वक़्त था कि दूकान पर पति पत्नी आये और वो सेल्स गर्ल से कुछ बाते कर रहे थे मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। तभी सेल्स गर्ल ने ऊंची आवाज़ में कहा आप सुबह भी आये थे मैंने तब भी कहा था कि ये कंगन 1000 रुपये से कम नहीं मिलेंगे चले जाईये अब मैंने जब ये सुना तो मुझे कुछ याद आ गया मुझे वही वक्त याद आ गया जब मेरी नयी नयी इनके साथ शादी हुई थी उस वक़्त हमारी फाइनेंसियल हालत ज़्यादा अच्छी नहीं थी आज भी मुझे याद है मैं और मेरे पति पहली बार घर से बाहर घूमने गए थे और एक दुकान पर मुझे चूडियो का सेट पसंद आ गया था वो इतनी प्यारी चूडिया थी कि देखते ही मैंने अपने पति को कहा था कितनी प्यारी चूडिया है ये ले लू उस वक़्त वो चूडियो का सेट 10 रुपये का था मेरे पति ने दुकान वाले से पुछा भाई साहब कितने का है ये चूड़ियों का सेट? दुकानदार ने कहा 10 रुपये का मेरे पति ने अपना पर्स देखा और कहा भाई साहब 5 रुपये का दे दो दूकानदार ने मना कर दिया था मैं समझ गयी थी कि इनके पास इतने पैसे नहीं है इसलिए मैंने भी कह दिया चलिए रहने दीजिये ये महंगा लगा रहा है लेकिन मेरे की आँखों में मेरी इच्छा पूरी ना करने का अफ़सोस मैं साफ़ देख रही थी मेरे पति ने 3 4 बार दुकानदार से मिन्नतें की लेकिन वह नहीं माना उस दिन मेरे पति की आँखों में मैंने पढ़ लिया था कि ये मुझसे बहुत प्यार करते है और मेरे लिए कुछ भी कर सकते है उस दिन के ठीक 2 महीने बाद मेरे पति ने उसी दुकान से मुझे वही चूड़ियों का सेट खरीद का दिया था मैं समझ सकती थी कि वो इन चूड़ियों को कभी भूले ही नहीं थे बस उन्हें इस बात का अफ़सोस था कि उस दिन नहीं ले सके उस दिन के बाद मेरे पति ने दिन रात इतनी मेहनत की और बहुत जल्द खुद की अपनी दुकान खड़ी कर दी उस दिन के बाद मुझे कभी अपने पति से कुछ माँगना नहीं पड़ा मैं जिस चीज़ पर भी हाथ रख देती थी उसी वक़्त वो मुझे ले देते थे आज जब मैंने इन पति पत्नी को कंगन खरीदते हुए देखा तो मुझे फिर से अपने वही दिन याद आ गए और आँखे नम हो गयी इस आदमी की आँखों में भी अपनी पत्नी को कंगन दिलवाने की वैसी ही ललक मैं साफ़ देख रही थी मैं अपने ही खयालो में खोयी हुई थी कि मेरा ध्यान टूटा जब मेरी दुकान की सेल्स गर्ल ने ऊंची आवाज़ में कहा जी नहीं 1000 से कम नहीं हो सकते उस आदमी के पास पैसे कम थे इसलिए वो बार बार बोल रहा था कि ये कंगन 600 के दे दीजिये लेकिन पत्नी बार बार मना कर रही थी खरीदने के लिए

Main kanpur me rahti hun

Mai Chup Nahin Rahungi

मैं चुप नहीं रहूंगी.. मोनिका की जब आंख खुली तब उसका शरीर बुरी तरह टूट रहा था । कुछ अजीब सा एहसास होने पर उसने अपने शरीर पर पड़ी चादर हटायी । वह पूरी तरह र्निवस्त्र थी । उसके कपड़े डबल-बेड के एक कोने में पड़े थे । यह सब कैसे हो गया ? वह यहां कैसे आ गयी ? वह तो....वह तो...अमन को अपने नोट्स दिखाने उसके घर आयी थी । अमन ! अमन कहां गया ? क्या उसे नहीं मालूम कि उसके साथ यह सब क्या हो गया ? कहीं इस सबके पीछे उसी का हाथ तो नहीं ? नहीं - नहीं अमन ऐसा नहीं कर सकता । वह तो उससे प्यार करता है । फिर, यह सब किसने और कैसे किया ? मोनिका का दिमाग चकरा कर रह गया । उसके सोचने समझने की शक्ति समाप्त होती जा रही थी । किसी तरह अपने टूटते शरीर को संभालते हुये वह बिस्तर से उतरी । कपड़े पहनने के बाद उसने बेड-रूम का दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन वह बाहर से बंद था । उसने कई बार दरवाजा थपथपाया लेकिन कोई आहट नहीं मिली । परेशान मोनिका लस्त-पस्त सी वहीं रखे सोफे पर गिर पड़ी । अमन एक प्रभावशाली मंत्री दीनानाथ चैधरी का एकलौता बेटा और उसका सहपाठी था । दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे । अमन तो कई बार उससे अपने प्यार का इजहार कर चुका था । वह उसे मंहगे होटलों में घुमाने ले जाना चाहता था लेकिन मोनिका अभी अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर केन्द्रित किये हुये थी । उसका लक्ष्य सिविल - सर्विस में जाने का था । इसलिये कैरियर बनने के बाद ही वह इन सब बातों के बारे में सोचना चाहती थी । अमन अक्सर कालेज नहीं आता था तब मोनिका उसे अपने नोट्स दे देती थी । इस बार अमन एक सप्ताह तक कालेज नहीं आया । मोनिका ने फोन किया तो पता चला कि उसे वायरल है । वह आज ही कालेज आया था । मोनिका ने जब उसे अपने नोट्स दिये तो उसने कहा,‘‘मोनिका, मुझे बहुत कमजोरी लग रही है । प्लीज़ आज मेरे घर चल कर मेरे नोट्स तैयार करवा दो । इसी बहाने मम्मी से भी तुम्हारी मुलाकात हो जायेगी ।’’ मोनिका तैयार हो गयी । अमन की कार में जब वह उसके घर पहुंची तो अमन ने बताया कि मम्मी मंदिर गयीं है । दस-पांच मिनट मे आती होंगी । उसने फ्रिज से निकाल कर उसे कोल्ड-ड्रिंक्स दी जिसको पीने के बाद उसका सिर चकराने लगा था । उसके बाद क्या कुछ हुआ मोनिका को याद नहीं आ रहा था । किंतु तस्वीर अब बिल्कुल साफ हो चुकी थी । उसकी अस्मत से खिलवाड़ अमन ने ही किया था । उस अमन ने जिससे वह प्यार करती थी । मोनिका की आंखो से आंसू बह निकले । अपने शरीर को संभालते हुये वह एक बार फिर उठी और पूरी शक्ति से दरवाजा पीटने लगी । इस बार दरवाजा खुल गया । सामने ही अमन खड़ा था । उसकी आंखे नशे से लाल थीं । उसे देखते ही मोनिका उसके सीने पर घूंसे बरसाते हुये फफक पड़ी,‘‘अमन, यह क्या किया तुमने ?’’ ‘‘प्यार किया है । जी भर कर तुम्हें प्यार किया है ’’ अमन मुस्कराया । ‘‘यह प्यार नहीं है । यह पाप है ’’ मोनिका ने सिसकी भरी । ‘‘अरे पगली, यही सच्चा प्यार है जो एक लड़का एक लड़की से करता है ’’ अमन ने मोनिका की ठुढ्ढी को उपर उठाये हुये उसकी कोपलों को चूमा । मोनिका ने अपनी अश्रुपूरित पलकों को उठा कर अमन के चेहरे की ओर देखा फिर उसके चौड़े सीने पर सिर टिकाते हुये बोली,‘‘अमन, अब मुझसे शादी कर लो ।’’ जैसी बिजली का झटका लगा हो । अमन ने मोनिका को अपने सीने से अलग कर दिया और उसकी दोनों बाहों को पकड़ते हुये बोला,‘‘मैं तुमसे प्यार करता हूं और करता रहूंगा । मेरे पास इतने पैसे है कि तुम्हें हमेशा खुश भी रखूंगा लेकिन यह शादी - वादी का ख्वाब देखना छोड़ दो । यह संभव नहीं है ।’’ जैसे तुषार-पात हुआ हो । मोनिका ने अपने को अमन की बाहों से छुड़ा लिया और भर्राये स्वर में बोली,‘‘इसका मतलब तुम पैसे के बल पर मुझे अपनी रखैल बनाना चाहते हो ।’’ ‘‘छी...छी...यह तो बहुत गंदा शब्द है । मैं तुम्हें रखैल नहीं बल्कि तुम्हारा कैरियर बनाना चाहता हूं । मेरे डैडी के इतने कान्टैक्ट हैं कि मैं तुम्हें जमीन से उठा कर आसमान पर पहुंचा दूंगा ’’ अमन ने मोनिका का हाथ थाम लिया । ‘‘बहुत बड़ी गलतफहमी है तुम्हें अपने बाप के पैसे और उनके कान्टैक्ट के बारे में ’’ मोनिका ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और फुंफकारती हुयी बोली,‘‘तुमने गलत जगह हाथ डाल दिया है । मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं । पुलिस में तुम्हारे खिलाफ रिर्पोट लिखवाउंगी ।’’ ‘‘फिर वही मिडिल क्लास मेंटेलेटी ’’ रमन बेशर्मी से मुस्कराया फिर बोला,‘‘ मुझे यकीन था कि तुम कुछ ऐसा ही कर सकती हो इसलिये मैनें उसका भी प्रबंध कर रखा है ।’’ इतना कह कर उसने अपना मोबाईल निकाला और उसे मोनिका की ओर बढ़ाते हुये बोला,‘‘इत्मिनान से देख लो । इसमें सारे कांड की वीडियो क्लिपिंग मौजूद है । अगर तुमने कोई भी मूर्खता की तो इसकी कापी सबसे पहले तुम्हारे घर वालों के पास पहुंचेगी फिर पूरे शहर में । उसके बाद अपनी बर्बादी की जिम्मेदार तुम स्वयं होगी ।’’ मोनिका ने उस वीडियो क्लिपिंग की एक झलक देखी तो उसके पैरों तले से जमीन खिसक गयी । उसे अपनी टांगे कांपती हुयी महसूस हुयी और वह एक बार फिर उस कमरे में रखे सोफे पर गिर पड़ी । ‘‘कोई जल्दी नहीं है । इत्मिनान से इसे देख लो फिर अपना फैसला सुनाना । मैं इंतजार करूंगा ’’ रमन मोबाईल मोनिका के हाथों में थमा कर बाहर चला गया । मोनिका के अंतर्मन में हाहाकर मचा था । उसका रोम-रोम कांप रहा था । अपनी बेबसी पर एक बार फिर उसके आंसू निकल आये । वह समझ गयी थी कि अब इस अंधेरी सुरंग से बाहर निकल पाना संभव नहीं था । उसे अमन के ईशारों पर नाचना ही होगा । उसे अमन की ‘सैक्स-स्लेव’ बनना ही पड़ेगा । ‘सैक्स-स्लेव’! मोनिका की सोच को झटका लगा । वह देश की सबसे शक्तिशाली सेवा सिविल-सर्विसेज़ की तैयारी कर रही थी । एक दिन प्रशासन की बागडोर थामना उसका सपना था और वह एक गुंडे के सामने हार मान ले ? नहीं वह इतनी कमजोर नहीं है । वह इसका मुकाबला करेगी । उसके साथ जो अन्याय हुआ है उसका प्रतिकार करेगी । मोनिका की धमनियों का खून खौलने सा लगा । उसके जबड़े भिंच गये । अपने आंसू पोंछते हुये वह दूसरे कमरे में पहुंची । वहां अमन बहुत इत्मिनान से मेज पर टांगे फैलाये बियर पी रहा था । ‘‘स्वीट हार्ट, क्या फैसला लिया ?’’ अमन ने मुस्कराते हुये पूछा । ‘‘फैसला लेना इतना आसान नहीं है ’’ मोनिका ने शांत स्वर में कहा फिर बोली,‘‘अगर हो सके तो इस वीडियो की एक कापी मुझे भी दे दो । उसे घर पर इत्मिनान से देखने के बाद ही मैं कोई फैसला ले सकूंगी ।’’ ‘‘वीडियो की कापी क्या , मेरी तरफ से तोहफा समझ कर तुम यह खूबसूरत मोबाईल ही रख लो । वीडियो की मेरे पास दूसरी कापी मौजूद है ’’ अमन ने कंधे उचकाये फिर एक-एक शब्द पर जोर देते हुये बोला,‘‘तुम्हारी इज्जत अब तुम्हारे ही हाथ में है । मुझे विश्वाश है कि तुम सही फैसला ही लोगी ।’’ मोनिका ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और मोबाईल लेकर बाहर निकल आयी । घर पर मम्मी-पापा उसकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे । उसे देखते ही मम्मी ने घबराये स्वर में कहा,‘‘बेटी, बहुत देर कर दी । कहां रह गयी थी ?’’ ‘‘मम्मी, अमन ने मेरे साथ रेप कर दिया है ’’ मोनिका ने बताया । उसका चेहरा इस समय भावना शून्य हो रहा था । ‘‘क्या कर दिया ?’’मम्मी को अपने सुने पर विश्वाश नहीं हुआ । ‘‘मेरा रेप कर दिया है ’’ मोनिका के होंठ यंत्रवत हिले । ‘‘क्या कहा तूने ? क्या कर दिया है ?’’ मम्मी को अभी भी अपने सुने पर विश्वाश नहीं हो रहा था। ‘‘कितनी बार बताउं कि अमन ने मेरा रेप कर दिया है । रेप...रेप यानि बलात्कार ’’ मोनिका झल्ला सी उठी । ‘‘हाय, बेहया, बेशर्म, बेगैरत । मुंह काला करके आ रही है और बता ऐसे रही है जैसे बहुत बड़ा ईनाम जीत कर आ रही है । यह सब बताते हुये तुझे लज्जा नहीं आयी ’’ मम्मी ने रोते हुये मोनिका पर थप्पड़ो की बरसात कर दी । ‘‘मम्मी, मुंह मैनें नहीं बल्कि अमन ने काला किया है । लज्जा मुझे नहीं बल्कि उसे अपने कुकर्मो पर आनी चाहिये ’’मोनिका ने पीछे हट मम्मी के वार से अपने को बचाया फिर बोली,‘‘मुझे ब्लैक-मेल करने के लिये उसने वीडियो भी बनायी है । मैं उसकी एक कापी ले आयी हूं। वही उसके खिलाफ सबसे बड़ा सबूत होगा । मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलिये । मुझे उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखवानी है ।’’ ‘‘बेटा, जो हुआ है उसे भूल जा । रिपोर्ट लिखवाने से पूरे खानदान की नाक कट जायेगी । हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगें ’’ मम्मी ने रोते हुये मोनिका को अपने सीने से लिपटा लिया और उसकी पीठ सहलानी लगीं । ‘‘मम्मी, अगर रिपोर्ट लिखवायी तो हम लोग नहीं बल्कि वे लोग किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगें । नाक हमारी नहीं बल्कि उनकी कटेगी’’ मोनिका ने अपने को अलग किया फिर बोली,‘‘अगर रिपोर्ट नहीं लिखवायी तो मैं घुट-घुट कर जीती रहूंगी । सोते-जागते उस अपराध की सजा भुगतूंगी जो मैने नहीं बल्कि किसी और ने किया है ।’’ ‘‘तू समझती क्यूं नहीं । हम लड़की वाले हैं । बदनामी हमेशा लड़की की ही होती है’’ इतना कह कर मम्मी अपने पति किशोर दयाल की ओर मुड़ीं और तड़पते हुये बोलीं,‘‘आप मौन क्यूं खड़े हैं ? इसको समझाते क्यूं नहीं ?’’ किशोर दयाल अब तक हतप्रभ से खड़े थे । अचानक वे चैंक से पड़े और मोनिका के सिर पर हाथ फेरते हुये बोले,‘‘ बेटा, जो हुआ उसे भूल जा । पुलिस-वुलिस तक जाना ठीक नहीं है ।’’ ‘‘पापा, यह आप कह रहे है जिन्होंने मुझे हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ना सिखलाया है ’’ मोनिका तड़प उठी फिर बोली,‘‘छै महीने पहले उचक्कों ने मम्मी की चेन खींच ली थी तब आप पुलिस के पास गये थे या नहीं ? ’’ ‘‘बेटा, चेन लुटने और इज्जत लुटने में फर्क होता है ’’ पापा का दर्द उनके स्वर में छलक आया । ‘‘क्या फर्क है ?’’मोनिका का स्वर उत्तेजना से कांप उठा,‘‘ मेरा शील भंग हुआ है । अगर मेरा कोई और अंग भंग हुआ होता, हाथ-पैर टूटे टूटे होते तो क्या आप मुझे डाक्टर और पुलिस के पास नहीं ले जाते ?’’ ‘‘जो तू कह रही है, वह सब सच है । मगर वे सब बहुत प्रभावशाली लोग हैं । अमन का बाप कैबनिट मंत्री है’’ पापा ने बेबसी से हाथ मले । ‘‘इसका मतलब आप उनसे डर रहे हैं ?’’ ‘‘मैं उनसे नहीं बल्कि तेरी इज्जत को डर रहा हूं ’’ पापा ने कहा । ‘‘कौन सी इज्जत ! जिसे देखा नहीं जा सकता, जिसे नापा नहीं जा सकता, उसे बचाने की खातिर मैं हार नहीं मानूंगी । अगर आप लोग मेरा साथ नहीं दे सकते तो मैं अकेले पुलिस स्टेशन जा रही हूं । मैं हर हाल में अमन को उसके किये की सजा दिलवाउंगी । मैं लड़की हूं यह सोच कर चुप नहीं रहूंगी ’’ मोनिका ने कहा और दरवाजे की ओर मुड़ पड़ी । किशोर दयाल ने दरवाजे तक पहुंच चुकी मोनिका को देखा फिर लड़खड़ाते कदमों से उसके पीछे आते हुये बोले,‘‘रूक जा बेटी, मैं तेरे साथ हूं ।’’ पुलिस इंस्पेक्टर ने ध्यान से उनकी बात सुनी फिर किशोर दयाल की ओर मुड़ते हुये बोला,‘‘ये आज कल की पीढ़ी बहुत जल्दी में है । सोचती है कि दुनिया को बदल देने की सारी जिम्मेदारी उनके कंधो पर ही है । भले ही मंुह के बल क्यूं न गिरें लेकिन रीति-रिवाजों को जरूर तोड़ेगें मगर आप तो पढ़े-लिखे और समझदार आदमी है । क्या आपको अंदाजा नहीं है कि आप कितनी बड़ी गल्ती करने जा रहे हैं ।’’ ‘‘इंस्पेक्टर साहब, गल्ती हमने नहीं बल्कि अमन ने की है और उसे इसकी सजा मिलनी ही चाहिये । इसलिये आप उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखिये ’’ मोनिका ने कहा । ‘‘मैडम, समझने की कोशिश करिये । रिपोर्ट-विपोर्ट लिखवाने से कुछ नहीं होगा । वह बहुत बड़े बाप का बेटा है । आप साबित नहीं कर पायेंगी कि उसने आपके साथ रेप किया है ’’ इंस्पेक्टर ने समझाने की मुद्रा में कहा । ‘‘इसका सबूत तो यह वीडियो है जिसे उसने मुझे ब्लैक-मेल करने के लिये बनाया है ’’ मोनिका ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुये कहा । ‘‘अदालत में ऐसे सबूत चुटकियों में उड़ जायेंगे । उनका वकील साबित कर देगा कि यह ट्रिक फोटोग्राफी से बनायी गयी नकली वीडियो है जिसे माननीय मंत्री को बदनाम करने के लिये बनाया गया है । इसलिये मेरी राय मानिये, चुपचाप घर जाईये । बेकार में अपनी बदनामी करवाने से आपको कोई फायदा नहीं मिलने वाला ’’ इंस्पेक्टर ने समझाने की कोशिश की । ‘‘इसका मतलब मंत्री जी के डर के कारण आप रिपोर्ट नहीं लिखेगें जबकि उसे लिखना आपकी ड्यूटी है’’ मोनिका का स्वर तेज हो गया । ‘‘देख लड़की , तेरे साथ कुछ उल्टा-सीधा हुआ है इसलिये उतनी देर से समझा रहा हूं । चुपचाप घर चली जा । ज्यादा उछलेगी-कूदेगी तो हो सकता है कि कल की तारीख में तेरे ही खिलाफ रिपोर्ट लिख जाये कि मंत्री जी को ब्लैक-मेल करने के लिये तूने खुद उनके बेटे को फांस कर यह वीडियो बनवायी है । उसकी बाद तू न घर की रहेगी न घाट की ’’ इंस्पेक्टर का लहजा अचानक ही सख्त हो गया । ‘‘आप इतना बड़ा अन्याय कैसे कर सकते हैं ?’’ मोनिका की आंखे एक बार फिर छलछला आयीं । ‘‘मैं और भी बहुत कुछ कर सकता हूं जिसके बारे में तू सोच भी नहीं सकती’’ इंस्पेक्टर ने एक बार फिर सख्त स्वर में कहा फिर अचानक ही अपने स्वर को मुलायम बनाता हुआ बोला,‘‘तुम अभी बहुत छोटी हो इसलिये तुम्हें मालूम नहीं कि ये दुनिया कितनी जालिम है । मैं भी बीबी-बच्चों वाला हूं । उन्हें पालने के लिये मुझे भी नौकरी करनी है । इसलिये मंत्री के बेटे के खिलाफ मैं तो क्या कोई भी रिपोर्ट नहीं लिखेगा ।’’ सच्चाई से रूबरू हो मोनिका और किशोर दयाल पुलिस स्टेशन से निकल पड़े । वे दोनों पुलिस-कप्तान के पास भी गये मगर वे भी कोरी सहानभूति जताते रहे । सरकार के सबसे प्रभावशाली मंत्री के बेटे के खिलाफ रिपोर्ट लिखने का निर्देश देने का साहस उनमें भी न था । किशोर दयाल निराश हो चुके थे । मगर मोनिका हार मानने को तैयार न थी । कुछ सोच कर उसने कहा,‘‘पापा, आज-कल मीडिया सबसे सशक्त हथियार है । हम किसी बड़े अखबार के सम्पादक से मिलते हैं । अगर एक बार यह खबर छप जाये तो अमन का बाप उसे चाह कर भी नहीं बचा पायेगा ।’’ ‘‘ठीक है ’’ किशोर दयाल ने सहमति जतायी । दोनों राजधानी के एक प्रमुख समचार-पत्र के सम्पादक के पास पहुंचे । पूरी बात सुन उसने बिना किसी लाग-लपेट के कहा,‘‘माफ कीजयेगा मैं इस आग में अपने हाथ नहीं जला सकता ।’’ ‘‘यह आप क्या कर रहे हैं, सर । प्रेस और मीडिया को तो लोकतंत्र का चैथा खंभा कहा जाता है । अगर अन्याय के खिलाफ आप आवाज नहीं उठायेगंे तो और कौन उठायेगा ?’’ मोनिका ने विनती की । ‘‘मैडम, हम चैथा खंभा जरूर हैं लेकिन हर खंभे को एक छत की जरूरत होती है । बिना छत के किसी खंभे का कोई वजूद नहीं होता है । आप लोगों को तीन या चार रूपये में जो अखबार मिलता है वह विज्ञापनों के दम पर ही इतना सस्ता पड़ता है । मैं इस स्कैंडल को उछाल कर अपने अखबार को बिना किसी छत के नहीं कर सकता । अखबार चलाने के लिये मुझे भी सरकारी विज्ञापनों की उतनी ही जरूरत है जितना जीवित रहने के लिये आक्सीजन की ’’ सम्पादक ने सत्य से परिचय करवाया । ‘‘एक सीधी-सादी लड़की की इज्जत लुट गयी और आप इसे स्कैंडल कह रहे हैं ?’’ मोनिका का स्वर दर्द से भर उठा । ‘‘एक बार तो आपकी इज्जत लुट चुकी है उसे और लुटाने पर क्यूं तुली है ? अगर ज्यादा शौक है तो किसी और अखबार को पकड़ लीजये और मुझे माफ कर दीजये’’ सम्पादक ने उन्हें बिदा करने के दृष्टि से हाथ जोड़ दिये । धीरे-धीरे शाम हो गयी थी । अंधेरा घिरने लगा था । एक ही दिन में जितने सत्य से परिचय हुआ था उसने मोनिका को बुरी तरह झकझोर दिया था । उसका शरीर बुरी तरह थक गया था । उसमें कम से कम आज किसी और के दरवाजे पर जाने की हिम्मत शेष नहीं बची थी । पापा का हाथ थामे वह चुपचाप घर लौट आयी । मम्मी अंधेरे में ही बैठी थी । किशोर दयाल ने आगे बढ़ कर लाईट जलायी तो मम्मी ने पूछा,‘‘क्या हुआ ?’’ प्रत्युत्तर में किशोर दयाल ने पूरी बात बतायी जिसे सुन मम्मी सिसकारी भर कर रह गयीं । काफी देर तक कमरे में मौन पसरा रहा फिर मम्मी ने पूछा,‘‘कुछ खाओगी ? ले आउं ?’’ ‘‘हां मम्मी, खाउंगी । मुझे बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है और भूखे पेट ज्यादा देर नहीं लड़ा जा सकता । इसलिये मैं खाउंगी । भर-पेट खाउंगी । जिस पाप में मेरी कोई गल्ती नहीं है उसके लिये शोक मना कर मैं खुद को नहीं जलाउंगी’’ मोनिका ने कहा । मम्मी ने कुछ नहीं कहा लेकिन उनकी आंखो से आंसू छलक आये जिन्हें पोंछते हुये वे किचन की ओर चली गयीं । किशोर दयाल चुपचाप ही बैठे रहे । ऐसा लग रहा था जैसे उनके पास शब्द ही समाप्त हो गये हों । मम्मी थोड़ी ही देर में पराठे सेंक लायीं । उन्हें खाकर मोनिका ने प्लेट रखी ही थी कि उसके मोबाईल की घंटी बज उठी । उसने देखा कोई अन्जान नंबर था । उसने मोबाईल आन करते हुये कहा,‘‘हैलो ।’’ ‘‘मिस मोनिका चैधरी बोल रही हैं ?’’उधर से एक गंभीर स्वर सुनायी पड़ा । ‘‘जी, आप कौन ?’’ ‘‘मैं अमन का बदनसीब बाप चैधरी दीनानाथ बोल रहा हूं ।’’ अचानक मोनिका की छठी इंद्रिय जागृत हो गयी । उसने तुरन्त मोबाईल का रिकार्डिंग मोड आन कर दिया और बोली,‘‘इसका मतलब आपके कुत्तों ने आप तक खबर पहुंचा दी ।’’ ‘‘बेटी, तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ उसके लिये मुझे अफसोस है लेकिन जो बीत गया वह वापस नहीं आ सकता । इसलिये बीस लाख रूपये ले लो और इस मामले को यहीं समाप्त कर दो ’’मंत्री जी ने शांत स्वर में कहा । ‘‘जरूर समाप्त कर दूंगी बस मेरे एक प्रश्न का उत्तर दे दीजये ।’’ ‘‘कैसा प्रश्न ?’’ ‘‘अगर यही घटना आपकी बेटी के साथ हुयी होती तो आप कितने रूपये लेकर यह मामला समाप्त करते ?’’ ‘‘गुस्ताख लड़की , तुझे मालूम नहीं कि तू किसके साथ बात कर रही है ?’’ मंत्री महोदय चीख पड़े । ‘‘अच्छी तरह से जानती हूं कि मैं एक बलात्कारी के बेईमान बाप से बात कर रही हूं ’’ मोनिका का भी स्वर तेज हो गया । ‘‘तो यह भी जानती होगी कि अगर मैं एक ईशारा कर दूं तो तेरी लाश भी ढूढे नहीं मिलेगी । इसलिये जो दे रहा हूं उसे चुपचाप रख ले और अपना मुंह बंद कर । कल सुबह तक बीस लाख रूपये तेरे घर पहुंच जायेगें ’’ मंत्री जी दांत पीसते हुये बोले । मोनिका ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया । किशोर दयाल पूरी बात समझ गये थे । अतः समझाते हुये बोले,‘‘बेटा, वे बहुत प्रभावशाली लोग हैं । उनके खिलाफ कुछ नहीं हो सकता ।’’ ‘‘पापा, मेरे खिलाफ अन्याय हुआ है । मैं चुप नहीं बैठूंगी ’’ मोनिका ने मुट्ठियां । ‘‘तो तुम क्या करोगी ?’’ ‘‘नहीं जानती, मगर मैं चुप नहीं रहूंगी ’’ मोनिका ने कहा और अपने कमरे में चली गयी । बिस्तर पर लेटे-लेटे वह काफी देर तक सोचती रही मगर तय नहीं कर पा रही थी कि क्या करे । पुलिस-प्रशासन-मीडिया कोई भी उसका साथ देने के लिये नहीं तैयार था । तो क्या उसे हार मान लेनी चाहिये ? नहीं वह हार नहीं मानेगी । तो फिर क्या करोगी ? इस प्रश्न का उत्तर उसके पास न था । सोशल मीडिया ! अचानक एक बिजली सी कौंधी । सोशल मीडिया की शक्ति असीमित है । उसे सोशल मीडिया का सहारा लेना चाहिये । किंतु क्या यह आत्मघाती कदम नहीं होगा ? क्या इससे उसकी अपनी आबरू तार-तार नहीं हो जायेगी ? कहीं वह लोगों के मनोरंजन का पात्र तो नहीं बन जायेगी ? पूरी रात मोनिका बिस्तर पर करवटें बदलती रही मगर सुबह की किरणें फूटते-फूटते उसके मन में उजियाले की किरण फूट पड़ीं । उसे चोट पहुंची थी, उसकी अन्र्तआत्मा तक में घाव लगे थे और अपने घाव दूसरों को दिखलाने में कोई बुराई नहीं थी । एक कठोर निर्णय लेते हुये वह बिस्तर से उठ बैठी । लैपटाप पर उसने अपना फेसबुक एकाउन्ट खोला और लिखने लगी । ‘सभी साथियों और शुभचिन्तकों को अबला कही जाने वाली स्त्री जाति की एक प्रतिनिधि का नमस्कार । मुझे क्षमा करियेगा । आज मैं वह दुसाहस करने जा रही हूं जो बहुत पहले किया जाना चाहिये था लेकिन आज तक किसी ने नहीं किया किन्तु किसी न किसी को कभी न कभी तो पहल करनी ही थी । इज्जत ! इज्जत क्या होती है ? इसका परिभाषा क्या है ? यह एक-पक्षीय क्यूं होती है ? यह हमेशा स्त्री की ही क्यूं लुटती है ? लुटेरे की इज्जत अखंडित क्यूं रहती है ? इस इज्जत की शुचिता और अखंडता की जिम्मेदारी केवल स्त्री के ही जिम्मे क्यूं ? क्या पुरूष के कौमार्य और उसकी मर्यादा को अच्छुण रखना आवश्यक नहीं ? यदि बलात्कार से स्त्री का शरीर अपवित्र हो जाता है तो उसे अपवित्र करने वाले पुरूष का शरीर पवित्र कैसे रह सकता है ? अपराधी के बजाय अपराध की सजा वह भुगते जिसके साथ अन्याय हुआ है यह कहां का न्याय है ? यह वे प्रश्न हैं जिनके उत्तर बहुत पहले ही दिये जाने चाहिये थे । किन्तु ये प्रश्न अनुत्तरित रह गये इसीलिये पुरूष को जन्म देने वाली स्त्री आज भी पुरूषों के जुल्म सहने के लिये मजबूर है । कल मेरे साथ एक प्रभावशाली मंत्री के बेटे ने रेप किया । मैं हमेशा के लिये उसकी ‘सैक्स-स्लेव’ बन जाउं इसलिये उसने उस कुकर्म की वीडियो भी बना ली । ऐसी स्थित में एक स्त्री के पास दो ही रास्ते बचते हैं । पहला यह कि वह कुकर्मियों के ईशारे पर नाचे और दूसरा यह कि वह आत्महत्या कर ले । मगर मैनें तीसरा रास्ता चुना है । अपने बलात्कार का वीडियो मैं खुद अपलोड कर रही हूं । क्योंकि मंत्री के भय से पुलिस-प्रशासन-मीडिया कोई भी मेरी मदद करने के लिये तैयार नही है । हो सकता है कि इसके बाद दुनिया मेरी नग्नता पर चटखारे ले लेकिन अपने बलात्कारियों के सामने नित्य र्निवस्त्र होकर जिल्लत भरी जिंदगी जीने से शायद यह कम शर्मनाक होगा । कोई भी निर्णय लेने से पहले आप लोग इतना अवश्य सोचियेगा कि अगर मेरे साथ बलात्कार हुआ है तो इसमें मेरा दोष क्या है ? मैं मुंह छुपाती क्यूं फिरू ? मैं आत्महत्या क्यूं करूं ? मैने तय किया है कि मैं चुप नहीं रहूंगी । अगर आपको मेरी बात जायज लगे तो मेरी आवाज के साथ आप अपनी आवाज जरूर मिलाईयेगा । वरना मुझे बेहया और बेशर्म ठहराने के लिये आप सब हमेशा की तरह स्वतंत्र है ।’’ इतना लिखने के बाद मोनिका ने अमन से मिले वीडियो क्लिपिंग और मंत्री दीनानाथ चैधरी की आडियो क्लिपिंग को फेसबुक पर अपलोड कर दिया । उसके बाद वहीं से उसे व्हाट्सअप के कई ग्रुपों पर फारवर्ड कर दिया । जैसे बहुत बड़ा बोझ सिर से उतर गया हो । मोनिका राहत की सांस लेते हुये बिस्तर पर लेट गयी । चंद पलों बाद ही वह किसी बच्चे की भांति नींद के आगोश में समा गयी । ऐसा भी भला कभी हो सकता है ? अकल्पनीय सत्य ! अविश्वनीय यथार्थ ! किसी ने सोचा भी न था कि बलात्कार का शिकार होने वाली लड़की मुंह छुपाने के बजाय अपने ही बलात्कार का वीडियो आन-लाईन कर देगी । चंद पलों में मोनिका का वीडियो और आडियो दोनों ही वायरल हो गये । हर गली, हर मोड़, हर दुकान, हर मकान, हर आफिस और हर फोरम पर उसके ही चर्चे हो रहे थे । पक्ष और विपक्ष में तर्क दिये जा रहे थे । एक इसे बेशर्मी करार देता तो दस लोग अद्म्य साहस । नारियों और नारी संगठनों के तो जैसे सब्र का बांध ही टूट गया हो । ‘मैं चुप नहीं रहूंगीं’ के बैनर और तख्ती लिये हर गली-कूचे से महिलाओं के जत्थे बाहर निकलने लगे । हजारों की भीड़ ने दीनानाथ चैधरी के बंगले को घेर लिया । दूसरे शहरों से भी महिलाओं की भीड़ मोनिका के समर्थन में उसके घर के बाहर जमा होने लगी । हर जुबान पर बस एक ही आवाज थी ‘मैं चुप नहीं रहूंगी ।’’ सहमते हुये चला हवा का एक झोंका देखते ही देखते प्रचंड तूफान का रूप धारण कर चुका था जिसके आगे सरकार के भी पैर उखड़ने लगे थे । दोपहर होते-होते दीनानाथ चैधरी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने और अमन को जेल भेजने की खबर आ गयी । ‘‘साथियों, अगर किसी लड़की के साथ बलात्कार हुआ है तो उसे मुंह नहीं छुपाना चाहिये । उसे अपनी आत्मा पर लगे घाव को वैसे ही दिखाना चाहिये जैसे शरीर पर लगे दूसरे घावों को दिखाया जाता है । शर्मसार उसे नहीं बल्कि उसे होना चाहिये जिसने यह अपराध किया है । इसलिये जिस दिन आप सब चुप न रहने का निर्णय ले लेंगी उस दिन ये अपराध अपने आप रूक जायेगें ’’ मोनिका अपने घर के सामने जtमा स्त्रियों की भीड़ को संबोधित कर रही थी और सभी की आखों में उसके लिये प्रसंशा के भाव थे । उसने जो दिशा दिखलायी थी उसका अनुसरण करना ही अपनी सुरक्षा का सबसे सुरक्षित मार्ग था
Mai Chup Nahin Rahungi

Dono Bahut Khush The

शादी हुई ... दोनों बहुत खुश थे..! स्टेज पर #फोटो सेशन शुरू हुआ..! दूल्हे ने अपने दोस्तों का परिचय साथ खड़ी अपनी साली से करवाया ~ "ये है मेरी साली, आधी घरवाली" दोस्त ठहाका मारकर हंस दिए ! दुल्हन मुस्कुराई और अपने देवर का परिचय अपनी सहेलियो से करवाया ~ "ये हैं मेरे देवर.. आधे पति परमेश्वर" ये क्या हुआ..? अविश्वसनीय... अकल्पनीय…! भाई समान देवर के कान सुन्न हो गए…! पति बेहोश होते होते बचा…! दूल्हे, दूल्हे के दोस्तों, रिश्तेदारों सहित सबके चेहरे से मुस्कान गायब हो गयी…! लक्ष्मन रेखा नाम का एक गमला अचानक स्टेज से नीचे टपक कर फूट गया…! स्त्री की मर्यादा नाम की हेलोजन लाईट भक्क से फ्यूज़ हो गयी…! थोड़ी देर बाद एक एम्बुलेंस तेज़ी से सड़कों पर भागती जा रही थी…! जिसमे दो स्ट्रेचर थे…! एक स्ट्रेचर पर भारतीय संस्कृति कोमा में पड़ी थी... शायद उसे हार्ट अटैक पड़ गया था…! दुसरे स्ट्रेचर पर पुरुषवाद घायल अवस्था में पड़ा था...! उसे किसी ने सर पर गहरी चोट मारी थी…! ये व्यंग उस ख़ास पुरुष वर्ग के लिए है जो खुद तो अश्लील व्यंग करना पसंद करते हैँ पर जहाँ महिलाओं कि बात आती हैं वहाँ संस्कृति कि दुहाई देते फिरते हैं…! 😔 आदर पाने के लिए आदर दीजिये महिलाओं का मजाक बनाना बंद कीजिए । 🙏
Dono bahut khush the

Aik Din Mai Paidal

एक दिन मैं पैदल घर आ रही थी । रास्ते में एक बिजली के खंभे पर एक कागज लगा हुआ था। पास जाकर देखा, लिखा था: कृपया पढ़ें *"इस रास्ते पर मैंने कल एक 50 का नोट गंवा दिया है । मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता । जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं ।" ...* यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस पते पर जाने की इच्छा हुई । पता याद रखा । यह उस गली के आखिरी में एक घऱ था । वहाँ जाकर आवाज लगाई तो *एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई ।* मुझे मालूम हुआ कि वह अकेली रहती है । उसे ठीक से दिखाई नहीं देता । "माँ जी", *मैंने कहा -* "आपका खोया हुआ 50 मुझे मिला है उसे देने आई हूँ ।" *यह सुन वह वृद्धा रोने लगी ।* *"बेटा, अभी तक करीब 50-60 व्यक्ति मुझे 50-50 दे चुके हैं।* मै पढ़ी-लिखी नहीं हूँ। ठीक से दिखाई नहीं देता। पता नहीं कौन मेरी इस हालत को देख मेरी मदद करने के उद्देश्य से लिख गया है ।" बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख लिए । पर एक *विनती की - बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'* मैनें हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन 50-60 लोगों से भी "माँ" ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा । मेरा हृदय उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया। जिसने इस वृद्धा की सेवा का उपाय ढूँढा । सहायता के तो बहुत से मार्ग हैं , पर इस तरह की सेवा मेरे हृदय को छू गई । और मैंने भी उस कागज को फाड़ा नहीं। *मदद के तरीके कई हैं सिर्फ कर्म करने की तीव्र इच्छा मन मॆ होनी चाहिए।* (सत्य घटना पर आधारित) 🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸
Aik Din Mai Paidal

Aik Beti Ka Baap

🙏एक बेटी का बाप कैसा होता है🙏 . "पापा मैंने आपके लिए हलवा बनाया है" 11साल की बेटी अपने पिता से बोली जो कि अभी office से घर आये ही थे! पिता "वाह क्या बात है, ला कर खिलाओ फिर पापा को," बेटी दौड़ती रसोई मे गई और बडा कटोरा भरकर हलवा लेकर आई .. पिता ने खाना शुरू किया और बेटी को देखा .. पिता की आँखों मे आँसू थे... -क्या हुआ पापा हलवा अच्छा नही लगा पिता- नही मेरी बेटी बहुत अच्छा बना है, और देखते देखते पूरा कटोरा खाली कर दिया; इतने मे माँ बाथरूम से नहाकर बाहर आई और बोली- "ला मुझे भी खिला तेरा हलवा" पिता ने बेटी को 50 रु इनाम मे दिए, बेटी खुशी से मम्मी के लिए रसोई से हलवा लेकर आई मगर ये क्या जैसे ही उसने हलवा की पहली चम्मच मुंह मे डाली तो तुरंत थूक दिया और बोली- "ये क्या बनाया है, ये कोई हलवा है, इसमें तो चीनी नही नमक भरा है , और आप इसे कैसे खा गये ये तो जहर हैं, मेरे बनाये खाने मे तो कभी नमक मिर्च कम है तेज है कहते रहते हो ओर बेटी को बजाय कुछ कहने के इनाम देते हो...." पिता-(हंसते हुए)- "पगली तेरा मेरा तो जीवन भर का साथ है, रिश्ता है पति पत्नी का जिसमें नौकझौक रूठना मनाना सब चलता है; मगर ये तो बेटी है कल चली जाएगी, मगर आज इसे वो एहसास वो अपनापन महसूस हुआ जो मुझे इसके जन्म के समय हुआ था। आज इसने बडे प्यार से पहली बार मेरे लिए कुछ बनाया है, फिर वो जैसा भी हो मेरे लिए सबसे बेहतर और सबसे स्वादिष्ट है; ये बेटियां अपने पापा की परियां और राजकुमारी होती है जैसे तुम अपने पापा की हो ..." वो रोते हुए पति के सीने से लग गई और सोच रही थी इसीलिए हर लडकी अपने पति मे अपने पापा की छवि ढूंढती है.. दोस्तों यही सच है हर बेटी अपने पिता के बडे करीब होती है या यूं कहे कलेजे का टुकड़ा इसीलिए शादी मे विदाई के समय सबसे ज्यादा पिता ही रोता है .... इसीलिए हर पिता हर समय अपनी बेटी की फिक्र करता रहता है! 🙏एक बेटी का #बाप ऐसा होता है🙏 यही सच्चाई है......🌹🌹🌹🌹🌹🌹
Aik Beti Ka Baap

Aik Ghoont Ki Pyas

-----💧एक-घूँट-की-प्यास💧----- पल्लवी जल्दी-जल्दी सूप तैयार करने में लग गयी। माँ को ठीक ग्यारह बजे सूप के साथ, दवाई भी देनी थी। आज चालीस दिन हो चले थे। डाॅक्टरों ने जवाब दे दिया था । इसलिए वह उसे अस्पताल से घर ले आई थी। और आनन फानन घर को ही उसने, आई सी यू बना डाला। सोचा ही न था कि माँ कभी इतनी गम्भीर रूप से बीमार भी पड़ सकती है। अब वह एक-एक पल माँ के साथ गुजारना चाहती थी। अगर माँ को कुछ हो गया तो … ! वह फफक कर रो पड़ी। कभी माँ के कहे शब्द आज उसके कानों में गूँजने लगे। बचपन में जब भी वह दूध पीने से इंकार करती, माँ यही कहती, “मैं न रहूँगी तब तुझे माँ की कदर मालूम पड़ेगी। मुझे तो कोई पूछने वाला ही नहीं था कि तूने दूध पिया या नहीं।” आँसू पोंछ कर वह सूप का कप लिए माँ के कमरे की ओर चल दी। जैसे ही आवाज दी, “माँ !” माँ ने आँखें खोल दीं। “उठो माँ, सूप लाई हूँ।” देखकर वह मुस्कुरा दी, “तूने नाश्ता कर लिया?” “हाँ, कर लिया।” “सच-सच बता !” “हाँ सच। मेरा कोई भी झूठ, आजतक तुमसे छुप सका है क्या?” माँ ने उठने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ा दिए। उसने झट उसका हाथ थामकर उसे अपने सहारे से उठा कर बिठाल दिया और उसके पीछे गाव तकिया लगा दिया। सूप का एक घूँट भरते ही माँ ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया। “क्या हुआ?” “कड़वा है।” “माँ, ये सूप नहीं, बल्कि दवाई की वजह से तुम्हारा स्वाद बिगड़ गया है।” “देख, तू मेरे पीछे मत पड़ । चैन से अब मुझे सोने दे।” “क्यों ना पड़ूँ? तुम भी तो मुझे बचपन में, पीछे पड़-पड़ कर दूध पिलाया करती थी । सूप पी लो, फिर सो जाना।” “अच्छा तो तू उसका बदला ले रही है अब मुझसे !” हाँफते हुए माँ ने दवाई के साथ सूप का एक घूँट और मुँह में भर लिया। “बदला थोड़ी न ले रही हूँ माँ। तब तुम मेरी माँ थी और अब, मैं तुम्हारी माँ हूँ।” वह दुलार करते हुए बोली। माँ की आँखों में प्यार का सागर लहरा उठा। और उसका गाल पर चूमते हुए बोली, ”सचमुच ! अब इस उम्र में जान पाई हूँ, कि माँ क्या होती है? मेरी माँ तो बचपन में ही मुझे छोड़ कर चली गयी थी।” पल्लवी ने अपनी रुलाई रोकते हुए, माँ को गले से लगा लिया। और उसकी पीठ पर थपकती रही। माँ थककर सो गई थी। उसने धीरे से उसके पीछे का गाव तकिया हटा कर, उसे उसके तकिये पर लिटा दिया । उसके गालों को चूमने के लिए झुकी ही थी कि धक्क से रह गयी! माँ सचमुच में सो गयी थी, हमेशा के लिए ...। वह माँ से लिपट कर बिलख-बिलख कर रो पड़ी और रोते हुए बोली, “भगवान ! अगर मेरी माँ को अगला जनम देना, तो फिर उसे उसकी माँ से कभी बिछुड़ने मत देना ...।” -----
Aik Ghoont Ki Pyas

A Old Man Hindi Story

एक वृद्ध ट्रेन में सफर कर रहा था, संयोग से वह कोच खाली था। तभी 8-10 लड़के उस कोच में आये और बैठ कर मस्ती करने लगे। एक ने कहा - "चलो, जंजीर खीचते है". दूसरे ने कहा - "यहां लिखा है 500 रु जुर्माना ओर 6 माह की कैद." तीसरे ने कहा - "इतने लोग है चंदा कर के 500 रु जमा कर देंगे." चन्दा इकट्ठा किया गया तो 500 की जगह 1200 रु जमा हो गए. जिसमे 200 के तीन नोट, 2 नोट पचास के बांकी सब 100 के थे चंदा पहले लड़के के जेब मे रख दिया गया। तीसरे ने कहा, "जंजीर खीचते है, अगर कोई पूछता है, तो कह देंगे बूढ़े ने खीचा है। पैसे भी नही देने पड़ेंगे तब।" बूढ़े ने हाथ जोड़ के कहा, "बच्चो, मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, मुझे क्यो फंसा रहे हो?" लेकिन नही । जंजीर खीची गई। टीटीई आया सिपाही के साथ, लड़कों ने एक स्वर से कहा, "बूढे ने जंजीर खीची है।" टी टी बूढ़े से बोला, "शर्म नही आती इस उम्र में ऐसी हरकत करते हुए?" बूढ़े ने हाथ जोड़ कर कहा, "साहब" मैंने जंजीर खींची है, लेकिन मेरी बहुत मजबूरी थी।" उसने पूछा, "क्या मजबूरी थी?" बूढ़े ने कहा, "मेरे पास केवल 1200 रु थे, जिसे इन लड़को ने छीन लिए और इस पहले लड़के ने अपनी जेब मे रखे है।" जिसमे 200 के तीन नोट, 2 नोट पचास के बांकी सब 100 के हैं अब टीटी ने सिपाही से कहा, "इसकी तलाशी लो". जैसा बूढ़े ने कहा नोट मिलाये गए लड़के के जेब से 1200रु बरामद हुए, जिनको वृद्ध को वापस कर दिया गया और लड़कों को अगले स्टेशन में पुलिस के हवाले कर दिया गया। पुलिस के साथ जाते समय लड़के ने वृद्ध की ओर घूर के देखा तो वृद्ध ने सफेद दाढ़ी में हाथ फेरते हुए कहा - "बेटा, ये बाल यूँ ही सफेद नही हुए है!" 😂😂
A old man hindi story

Mayke Ka Saamaan

----- मायके का सामान ----- "दम घुटता है मेरा इस घर मे"इस वाक्य को रोज रात सोने से पहिले कहना अवनी का नियम बन गया था। शादी को कुल जमा चार माह ही हुए थे। "ये मुर्गी के दड़बे जैसा घर," "मायके से दहेज मे आया मेरा कीमती समान कबाड़ की तरह ठुँसा है" "तुम्हारी माँ की अल्सुबह से खट पटर " "गुड्डी और देवर जी आधी रात तक पढ़ते है लाईट जलती है तो नींद नही आती" "कितना छोटा है पांच लोगो के लिये ये टू बी एच के।" और फिर वही--दम घुटता है मेरा इस घर मे---- "सुनो पापा ने वहीं,अपनी कालोनी मे हमारे लिये फ्लैट ले लिया है। हम वहाँ शिफ्ट हो जाते है, नये घर मे" "अम्मा से पूछ लिया तुमने" "अब पूछना क्या,समान पैक करे।" "सुनो ,समान की पैकिंग हो गई है" "अम्मा को बता दिया,क्या क्या ले जा रही हो" "अब इसमे बताना क्या,जो समान हम अपने मायके से लाये थे,वही ले जा रहे है। वैसे भी तुम्हारे घर का कोई सामान ले जाने लायक है क्या?" "सुनो समान का ट्रक निकल गया है,पापा ने वहाँ नौकर भेज दिया है हैल्प के लिये" "चलिये न,ड्राईवर इन्तजार कर रहा है" "अवनी, तुम जाओ, मै नहीं चलूंगा। मै दहेज मे आया तुम्हारे मायके का समान तो हूँ नही। मै इसी घर का हूँ और यहीं रहूँगा।"
Mayke Ka Saamaan

Sas Se Bahoo Tak Ka Safar

***** सास से बहू बनने तक का सफर ***** बाहर सब बारात के आने की तैयारियों में लगे हुए थे और मैं तीस साल पहले की यादों में खो गई.... तीस साल पहले मैं इसी घर मे बहु बन कर आई थी। मन मे हजारों रंग के सपने सजाए, थोड़ा सा डर भी था अंजान लोंगो के बीच कैसे रहूंगी मैं, उनके विचार व्यवहार सब से अनभिज्ञ थी। दरवाजे पर पहुचते ही मेरी सास ने आ कर आरती उतारी, मेरे गले तक गिरे हुए घूँघट के अंदर भी लोगो की चीरती हुई आँखे पहुच रही थी, दहलीज पार करते ही सारी भीड़ ने मुझे घेर लिया। ससुराल में नई बहू की हालत और चिड़ियाघर में नए जानवर ही हालत एक जैसी ही हो जाती है, सब के आकर्षण का केंद्र वही रहते है। जैसे ही मैं कमरे में गई सारे रिश्तेदारों की टोली भी मेरे साथ पहुँच गई, मैं अपने आप को सामान्य करने के लिए एकांत खोज रही थी लेकिन भीड़ ने मेरा पीछा ना छोड़ा। सब के बीच मैं सहमी सी बैठी हुई थी। मुझे ब्याह कर लाने वाला पति मुझे कही दिखाई नही दे रहा था जिसकी मुझे उस वक्त जरूरत थी, वो आते भी कैसे ये जानते हुए की सब वहाँ तरह-तरह के मजाक बनाना शुरू कर देंगे। सब मुझे घूर रहे थे और मैं उनकी नज़रो से असहज महसूस कर रही थी, इनकी बुआ नज़रो से ही मेरे गहने तौल रही थी। इतने में मेरी सास भी आ गई, मैं चुप-चाप बैठी उनकी बातें सुनने लगी। बुआ ने कहा "बहु के मायके के गहने बड़े हल्के लग रहे है" तभी मेरी सास ने जवाब दिया "हमने तो कुछ ज्यादा मांगा नही था सोचा अपने मन से ज्यादा दे देंगे, नंदनी (मेरी बड़ी ननद) की शादी में हमने कितने भारी-भारी गहने बनवाये थे ससुराल वाले आज तक तारीफ करते है" उनकी वार्तालाप सुन के मैं अंदर तक हिल गई, ये कैसे लोग है जो नई बहू के सामने ही उसे नीचा दिखा रहे है, जितने सुनहरे सपने सजाई थी सब एक साथ टूटते नज़र आने लगे। मैं कुछ भी नही बोल पाई सिर्फ अपने परिवार वालो के लिए ऐसे शब्द सुन कर आँखों मे आँसू आ गए। नए घर के नए माहौल में ढलने की कोशिश करने लगी मैं, रसोई में जब पहली बार खाना बनाने गई तब कोई भी मदद के लिए नही आया, मुझे खाना बनाना आता था पर यहां के लोग कैसा खाना पसंद करते थे ये नही पता था, इसका नतीजा ये हुआ कि जो खाना मैंने बनाया उसे खाते ही सबके मुँह बन गए. "इतना मसालेदार खाना हम नही खाते, बाप रे मिर्ची की ही सब्जी बना दिये हो क्या, अरे रिफाइंड तेल में नही सरसों के तेल में सब्जी बनाना था, ये लो घी की जगह तेल से तड़का लगा दिया दाल को" मेरी सास भी सब की हां में हां मिला रही थी। मुझे यहाँ के तौर-तरीके सिखाने की बजाए मुझे ताने मिल रहे थे। सास से कुछ कहती तो वो अपनी सास के बारे में बताने लग जाती "अरे हमारे सास जैसी सास मिलती तब पता चलता तुमको, मेरी सास ने भी ऐसे ही अपना शासन चलाया था। तुम जब सास बनोगी तब तुम्हे पता चलेगा" "रेशमा कहाँ हो जल्दी आओ पूजा की थाली ले कर बारात आ गई" बड़ी ननद की आवाज ने मेरी तंद्रा तोड़ी, मैं तीस साल पहले की यादों से बाहर आ कर अपने बेटे सूरज और बहू ज्योति के लिए पूजा की थाली ले कर आने लगी। दरवाजे पर खड़ी बहू को देख कर मुझे उसमे तीस साल पहले की रेशमा दिखने लगी। मैंने दोनो की आरती उतारी बेटे बहू ने मेरे पैर छुए, मेरा दिल भर आया मैंने दोनो को गले से लगा लिया। अंदर आते ही मैंने बहू और बेटे को कमरे में आराम करने के लिए भेज दिया ताकी दोनों को थोड़ा अपने लिए समय मिल जाए। मैं ऐसा कोई भी गलत काम नही करना चाहती थी जो तीस साल पहले मेरी सास ने मेरे साथ किया था। सब रिश्तेदार बहू के घर से आये समान में मीन-मेख निकाल रहे थे तो मैंने भी कह दिया "समान से ज्यादा कीमती तो मेरी बहू है, हमने तो कुछ मांगा नही था पर उन्होंने बहुत-कुछ दे दिया" मेरे इस जवाब से रिश्तेदारों पर क्या फर्क पड़ा मुझे नही पता पर मेरी बहू ने जब मेरी बात सुनी तो उसके मन मे मेरे लिए प्यार और सम्मान बढ़ गया। रसोई पूजा के समय बहू ने खीर बनाई मैं वही खड़ी हो कर उसकी मदद करने लगी। उसे ये एहसास नही होने देना चाहती थी कि ये उसका ससुराल है जहाँ सास सिर्फ शासन करती है। ज्योति पहले दिन से ही मुझसे ज्यादाुल-मिलई थी, वो मजाक मजाक में कहती भी कि मम्मी मैंने सोचा कि आप भी बाकी लोंगो की सास के जैसे ही होंगे लेकिन आप तो मेरी मम्मा से भी अच्छे हो। मैं प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर कहती "बेटा मैंने बहू से सास बनने तक का सफर किया है इसलिए मुझे पता है कि बहू की क्या ख्वाहिश होती है और सास के क्या कर्तव्य होते है।" आज मैं और मेरी बहू दोंनो मिल कर काम करते है, कोई कहता ही नही हमे देख कर की हम सास बहू है, सब कहते है कि ये दोनों तो बिल्कुल माँ-बेटी लगते है। ये सुन कर मुझे बहुत खुशी होती है। ये कहानी पढ़ कर बहुत से लोगों के मन मे विचार आ रहे होंगे कि वो बहू बहुत ही किस्मत वाली है जिसे मीनू जैसी सास मिली.... लेकिन मैं बस इतना ही कहूँगा कि क्यों ना हम ही आगे चल कर एक अच्छी सास बन जाये, अगर आप एक बेटे की माँ है तो अभी से एक अच्छी सास बनने की शुरुवात कर दीजिए.... क्योंकि सास भी कभी बहू थी और हर बहू कभी ना कभी सास बनेगी। बदलाव हम खुद से ही करेंगे ताकी आगे चल कर हर सास को एक अच्छी बहू मिले और हर बहू को एक अच्छी सास।
Sas se bahoo tak ka safar

Anokha Muqdama

💢एकअनोखा मुकदमा💢 *न्यायालय में एक मुकद्दमा आया ,जिसने सभी को झकझोर दिया !अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद व अन्य पारिवारिक विवाद के केस आते ही रहते हैं| मगर ये मामला बहुत ही अलग किस्म का था!* *एक 60 साल के व्यक्ति ने ,अपने 75 साल के बूढ़े भाई पर मुकद्दमा किया था!* *मुकदमा कुछ यूं था कि "मेरा 75 साल का बड़ा भाई ,अब बूढ़ा हो चला है ,इसलिए वह खुद अपना ख्याल भी ठीक से नहीं रख सकता मगर मेरे मना करने पर भी वह हमारी 95 साल की मां की देखभाल कर रहा है !* *मैं अभी ठीक हूं, सक्षम हू। इसलिए अब मुझे मां की सेवा करने का मौका दिया जाय और मां को मुझे सौंप दिया जाय"।* *न्यायाधीश महोदय का दिमाग घूम गया और मुक़दमा भी चर्चा में आ गया| न्यायाधीश महोदय ने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की कि आप लोग 15-15 दिन रख लो!* *मगर कोई टस से मस नहीं हुआ,बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने स्वर्ग को खुद से दूर क्यों होने दूँ ! अगर मां कह दे कि उसको मेरे पास कोई परेशानी है या मैं उसकी देखभाल ठीक से नहीं करता, तो अवश्य छोटे भाई को दे दो।* *छोटा भाई कहता कि पिछले 35 साल से,जब से मै नौकरी मे बाहर हू अकेले ये सेवा किये जा रहा है, आखिर मैं अपना कर्तव्य कब पूरा करूँगा।जबकि आज मै स्थायी हूं,बेटा बहू सब है,तो मां भी चाहिए।* *परेशान न्यायाधीश महोदय ने सभी प्रयास कर लिये ,मगर कोई हल नहीं निकला!* *आखिर उन्होंने मां की राय जानने के लिए उसको बुलवाया और पूंछा कि वह किसके साथ रहना चाहती है!* *मां कुल 30-35 किलो की बेहद कमजोर सी औरत थी |उसने दुखी दिल से कहा कि मेरे लिए दोनों संतान बराबर हैं| मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर ,दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती!* *आप न्यायाधीश हैं , निर्णय करना आपका काम है |जो आपका निर्णय होगा मैं उसको ही मान लूंगी।* *आखिर न्यायाधीश महोदय ने भारी मन से निर्णय दिया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई वाकई बूढ़ा और कमजोर है| ऐसे में मां की सेवा की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है।* *फैसला सुनकर बड़े भाई ने छोटे को गले लगाकर रोने लगा !* *यह सब देख अदालत में मौजूद न्यायाधीश समेत सभी के आंसू छलक पडे।* *कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भाई बहनों में वाद विवाद हो ,तो इस स्तर का हो!* *ये क्या बात है कि 'माँ तेरी है' की लड़ाई हो,और पता चले कि माता पिता ओल्ड एज होम में रह रहे हैं यह पाप है।* *धन दौलत गाडी बंगला सब होकर भी यदि मा बाप सुखी नही तो आप से बडा कोई जीरो(0)नही।* *निवेदन है इस पोस्ट को शेयर जरूर करें,ताकि मां बाप को हर जगह सम्मान मिले ....🙏💐*
Anokha Muqdama

Maa Ka Tohfa

माँ का तोहफा एक दंपती दीपावली की ख़रीदारी करने को हड़बड़ी में था। पति ने पत्नी से कहा ज़ल्दी करो मेरे पास टाईम नहीं है। कह कर कमरे से बाहर निकल गया। तभी बाहर लॉन में बैठी *माँ* पर उसकी नज़र पड़ी। कुछ सोचते हुए वापस कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला शालू तुमने माँ से भी पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए? शालिनी बोली नहीं पूछा। अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा यार दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े इसमें पूछने वाली क्या बात है? यह बात नहीं है शालू माँ पहली बार दिवाली पर हमारे घर में रुकी हुई है। वरना तो हर बार गाँव में ही रहती हैं। तो औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती। अरे इतना ही माँ पर प्यार उमड़ रहा है तो ख़ुद क्यों नहीं पूछ लेते? झल्लाकर चीखी थी शालू और कंधे पर हैंड बैग लटकाते हुए तेज़ी से बाहर निकल गयी। सूरज माँ के पास जाकर बोला माँ हम लोग दिवाली की ख़रीदारी के लिए बाज़ार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो माँ बीच में ही बोल पड़ी मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा। सोच लो माँ अगर कुछ चाहिये तो बता दीजिए सूरज के बहुत ज़ोर देने पर माँ बोली ठीक है तुम रुको मैं लिख कर देती हूँ। तुम्हें और बहू को बहुत ख़रीदारी करनी है कहीं भूल न जाओ। कहकर सूरज की माँ अपने कमरे में चली गईं। कुछ देर बाद बाहर आईं और लिस्ट सूरज को थमा दी। सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला देखा शालू माँ को भी कुछ चाहिए था पर बोल नहीं रही थीं। मेरे ज़िद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक ज़िंदा रहता है रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिये होता है। अच्छा बाबा ठीक है पर पहले मैं अपनी ज़रूरत का सारा सामान लूँगी। बाद में आप अपनी माँ की लिस्ट देखते रहना। कहकर शालिनी कार से बाहर निकल गयी। पूरी ख़रीदारी करने के बाद शालिनी बोली अब मैं बहुत थक गयी हूँ मैं कार में / चालू करके बैठती हूँ आप अपनी माँ का सामान देख लो। अरे शालू तुम भी रुको फिर साथ चलते हैं मुझे भी ज़ल्दी है। देखता हूँ माँ ने इस दिवाली पर क्या मँगाया है? कहकर माँ की लिखी पर्ची ज़ेब से निकालता है। बाप रे! इतनी लंबी लिस्ट पता नहीं क्या - क्या मँगाया होगा? ज़रूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मँगाये होंगे। और बनो *श्रवण कुमार* कहते हुए शालिनी गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी। पर ये क्या? सूरज की आँखों में आँसू और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था पूरा शरीर काँप रहा था। शालिनी बहुत घबरा गयी। क्या हुआ ऐसा क्या माँग लिया है तुम्हारी माँ ने? कहकर सूरज के हाथ से पर्ची झपट ली हैरान थी शालिनी भी। इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे *पर्ची में लिखा था* बेटा सूरज मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम ज़िद कर रहे हो तो तुम्हारे शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो *फ़ुरसत के कुछ पल* मेरे लिए लेते आना ढलती हुई साँझ हूँ अब मैं। सूरज मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है बहुत डर लगता है। पल - पल मेरी तरफ़ बढ़ रही मौत को देखकर जानती हूँ टाला नहीं जा सकता शाश्वत सत्य है पर अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है सूरज। तो जब तक तुम्हारे घर पर हूँ कुछ पल बैठा कर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन। बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ कितने साल हो गए बेटा तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से आ मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हथेली से सहलाऊँ तेरे सर को। एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को क़रीब बहुत क़रीब पा करऔर मुस्कुरा कर मिलूँ मौत के गले। क्या पता अगली दिवाली तक रहूँ ना रहूँ पर्ची की आख़िरी लाइन पढ़ते - पढ़ते शालिनी फफक-फफक कर रो पड़ी *ऐसी ही होती हैं माँ* दोस्तो अपने घर के उन विशाल हृदय वाले लोगों जिनको आप बूढ़े और बुढ़िया की श्रेणी में रखते हैं वे आपके जीवन के कल्पतरु हैं। उनका यथोचित आदर-सम्मान सेवा-सुश्रुषा और देखभाल करें। यक़ीन मानिए आपके भी बूढ़े होने के दिन नज़दीक ही हैं।उसकी तैयारी आज से ही कर लें। इसमें कोई शक़ नहीं आपके अच्छे-बुरे कृत्य देर-सवेर आप ही के पास लौट कर आने हैं। अगर आपको ये कहानी पसंद आईं हो तो में माँ लिखें

Maa Ka Tohfa

Apna Ghar Hindi Story

अपना घर 🏣 एक सब्जी की दुकान पर जहाँ से मैं अक्सर सब्जियाँ लेती हूँ जब मैं पहुँची तो सब्जी वाली फोन पर बात कर रही थी अत: कुछ क्षण रुकना ठीक समझा और उसने रुकने का संकेत भी किया तो रुक गयी और उसकी बात मेरे कान में भी पड़ रही थी। वह अपनी उस बेटी से बात कर रही थी जिसकी शादी तीन चार दिन पहले हुई थी। वह कह रही थी "देखो बेटी घर की याद आती है ठीक है लेकिन वह घर अब तुम्हारा है।तुम्हें अब अपना सारा ध्यान अपने घर के लिया लगाना है और बार बार फोन मत किया करो और छिपकर तो बिलकुल भी नहीं। जब भी यहाँ फोन करना तो सास या पति के सामने करना। तुम अपने फोन पर मेरे फोन का इंतजार कभी मत करना। मुझे जब बात करना होगा तो मैं तुम्हारी सास के नंबर पर लगाऊँगी।तब तुम भी बात करना और बेटी अब ससुराल में हो जरा जरा सी बात पर तुनकना छोड़ दो सहनशक्ति रखो। अपना घर कैसे चलाना है ये सब अपनी सास से सीखो। एक बात ध्यान रखो इज्जत दोगी इज्जत पाओगी।ठीक है । सुखी रहो" मैंने प्रशंसा के भाव में कहा "बहुत सुंदर समझाया आपने" उसने कहा बहन माँ को बेटी के परिवार में अनावश्यक दखल नहीं देनी चाहिये। उन्हें अपने घर की बातों को भी बिना मतलब इधर उधर नहीं करना चाहिये। वहाँ हो तो समस्या का हल खुद ढूँढ़ो। मैं उस देवी का मुँह देखती रह गयी। सभी माँ को इसी तरह से सोचना चाहिए ताकि बेटी अपने घर को खुद का घर समझे।
Apna Ghar Hindi Story

Aik Sakhs Hindi Story

जब एक शख्स लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी। पुत्र जब वयस्क हुआ तो पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी अपने तो कभी दोस्तों के आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे। पुत्र की शादी के बाद वह ओर अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया। पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दोहपर में खाना खा रहे थे पुत्र भी लंच करने ऑफिस से आ गया था और हाथमुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था। उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये। थोडी देर बाद पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया। कुछ दिन बाद पुत्र ने अपने पिताजी से कहा- पापा आज आपको कोर्ट चलना है आज आपका विवाह होने जा रहा है। पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा-बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूँ कि शायद तुझे भी माँ की जरूरत नहीं है फिर दूसरा विवाह क्यों? पुत्र ने कहा पिता जी न तो मै अपने लिए माँ ला रहा हूँ न आपके लिए पत्नी *मैं तो केवल आपके लिये दही का इन्तजाम कर रहा हूँ।* कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा आपके ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि *आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।* *-माँ-बाप हमारे लिये** कार्ड बन सकते है* *तो हम उनके लिए** तो बन ही सकते है

Aik Sakhs Hindi Story

Maa A Hindi Story

माँ अपने पिता की मृत्यु के बाद बेटे ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया और कभी कभार उनसे मिलने चला जाता था । एक शाम उसे वृद्धाश्रम से फ़ोन आया कि तुम्हारी माता जी की तबियत बहुत ख़राब है, एक बार आकर मिल लो । पुत्र वहाँ गया तो उसने देखा कि माँ कि हालत बहुत गंभीर और मरणासन्न है । उसने पूछा :- माँ मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ ? माँ ने जवाब दिया :- कृपा करके वृद्धाश्रम में पंखे लगवा दे यहाँ एक भी नहीं है । और हाँ एक फ्रिज भी रखना देना ताकि खाना ख़राब ना हो क्योंकि कई बार मुझे बिना खाए ही सोना पड़ा । पुत्र ने आश्चर्यचकित होकर पूछा :- माँ, आपको यहाँ इतना समय हो गया आपने कभी शिकायत नहीं करी, अब जब आपके जीवन का कुछ ही समय बचा है तब आप मुझे यह सब बता रही हो ।क्यों ? माँ ने जवाब दिया :- ठीक है बेटा, मैंने तो गर्मी, भूख और दर्द सब बर्दाश्त तर लिया, लेकिन....... जब तुम्हारी औलाद तुम्हें यहाँ भेजेगी तो मुझे डर है कि तुम ये सब सह नहीं पाओगे
Maa a hindi story

Girih Laxmia Hindi Story

*गृहलक्ष्मी*🙏🏼 एक अंकल को दोस्त के बेटे की शादी के रिसेप्शन में जाने का मौका मिला. स्टेज पर खड़ी खुबसूरत नयी जोड़ी को आशीर्वाद देकर नीचे उतर ही रहे थे कि दोस्त ने आवाज देकर वापस स्टेज पर बुलाया और कहा कि "नवदंपति को आशीर्वाद के साथ अच्छी शिक्षा देते जाओ" महानुभाव ने पर्स में से 100 रुपये का नोट निकालकर दुल्हे के हाथ में देते हुए कहा कि "मसलकर नोट को फेंक दे". दुल्हे ने कहा "अंकल, ऐसी सलाह? पैसे को तो हम लक्ष्मी मानते हैं. महानुभाव ने जबाब मे कहा कि "जब कागज की लक्ष्मी का इतना मान सम्मान करते हो तो आज से तुम्हारे साथ खड़ी कंधे से कंधा मिलाकर पुरी जिंदगी दुख सुख में साथ देने के लिए तैयार गृहलक्ष्मी को कितना मान सम्मान देना है वो तुम खुद तय कर लेना"। क्योंकी ये किसी मॉं-बाप की सबसे अनमोल मोती हैं. जो कि इस कागज़ की लक्ष्मी से बहुत ऊपर है।। 🙏🙏🙏🙏
Girih Laxmia Hindi Story

Postman Hindi Story

एक Postman ने एक घर के दरवाजे पर दस्तक देते हुए कहा,”चिट्ठी ले लीजिये।”अंदर से एक Ladki की आवाज आई,”आ रही हूँ।” लेकिन तीन-चार मिनट तक कोई न आया तो Postman ने फिर कहा,”अरे भाई!मकान में कोई है क्या,अपनी चिट्ठी ले लो।”लड़की की फिर आवाज आई,”Postman साहब,दरवाजे के नीचे से चिट्ठी अंदर डाल दीजिए,मैं आ रही हूँ।”Postman ने कहा,”नहीं, मैं खड़ा हूँ, रजिस्टर्ड चिट्ठी है, पावती पर तुम्हारे साइन चाहिये।” करीबन छह-सात मिनट बाद दरवाजा खुला। Postman इस देरी के लिए झल्लाया हुआ तो था ही और उस पर चिल्लाने वाला था ही, लेकिन दरवाजा खुलते ही वह चौंक गया, सामने एक अपाहिज कन्या जिसके पांव नहीं थे, सामने खड़ी थी। Postman चुपचाप पत्र देकर और उसके साइन लेकर चला गया। हफ़्ते, दो हफ़्ते में जब कभी उस लड़की के लिए डाक आती, एक आवाज देता और जब तक वह कन्या न आती तब तक खड़ा रहता। एक दिन उसने Postman को नंगे पाँव देखा। दीपावली नजदीक आ रही थी। उसने सोचा Postman को क्या ईनाम दूँ। एक दिन जब Postmanडाक देकर चला गया,तब उस लड़की ने,जहां मिट्टी में पोस्टमैन के पाँव के निशान बने थे, उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया। अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवा लिये। दीपावली आई और उसके अगले दिन Postman ने गली के सब लोगों से तो ईनाम माँगा और सोचा कि अब इस बिटिया से क्या इनाम लेना? पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ। उसने दरवाजा खटखटाया। अंदर से आवाज आई,”कौन?”पोस्टमैन, उत्तर मिला। लड़की हाथ में एक गिफ्ट पैक लेकर आई और कहा,”अंकल, मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।” Postman ने कहा,”तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो, तुमसे मैं गिफ्ट कैसे लूँ?” कन्या ने आग्रह किया कि मेरी इस गिफ्ट के लिए मना नहीं करें।”ठीक है कहते हुए Postman ने पैकेट ले लिया। बालिका ने कहा,”अंकल इस पैकेट को घर ले जाकर खोलना। घर जाकर जब उसने पैकेट खोला तो विस्मित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे।उसकी आँखें भर आई। अगले दिन वह ऑफिस पहुंचा और पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन कर दिया जाए। पोस्टमास्टर ने कारण पूछा,तो Postman ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुंधे कंठ से कहा,”आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस अपाहिज बच्ची ने तो मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा?” ” संवेदनशीलता यानि,दूसरों के दुःख-दर्द को समझना, अनुभव करना और उसके दुःख-दर्द में भागीदारी करना,उसमें शरीक होना। यह ऐसा मानवीय गुण है जिसके बिना इंसान अधूरा है। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमें संवेदनशीलता रूपी आभूषण प्रदान करें ताकि हम दूसरों के दुःख-दर्द को कम करने में योगदान कर सकें।संकट की घड़ी में कोई यह नहीं समझे कि वह अकेला है, अपितु उसे महसूस हो कि सारी मानवता उसके साथ है।
Postman Hindi Story

Asambhav Kuch Bhi Nahin

एक समय की बात है किसी राज्य में एक राजा का शासन था। उस राजा के दो बेटे थे, अवधेश और विक्रम। . एक बार दोनों राजकुमार जंगल में शिकार करने गए। रास्ते में एक विशाल नदी थी। दोनों राजकुमारों का मन हुआ कि क्यों ना नदी में नहाया जाये। . यही सोचकर दोनों राजकुमार नदी में नहाने चल दिए। लेकिन नदी उनकी अपेक्षा से कहीं ज्यादा गहरी थी। . विक्रम तैरते तैरते थोड़ा दूर निकल गया, अभी थोड़ा तैरना शुरू ही किया था कि एक तेज लहर आई और विक्रम को दूर तक अपने साथ ले गयी। . विक्रम डर से अपनी सुध बुध खो बैठा गहरे पानी में उससे तैरा नहीं जा रहा था अब वो डूबने लगा था। . अपने भाई को बुरी तरह फँसा देख के अवधेश जल्दी से नदी से बाहर निकला और एक लड़की का बड़ा लट्ठा लिया और अपने भाई विक्रम की ओर उछाला। . लेकिन दुर्भागयवश विक्रम इतना दूर था कि लकड़ी का लट्ठा उसके हाथ में नहीं आ पा रहा था। . इतने में सैनिक वहां पहुँचे और राजकुमार को देखकर सब यही बोलने लगे – अब ये नहीं बच पाएंगे , यहाँ से निकलना नामुनकिन है। . यहाँ तक कि अवधेश को भी ये अहसास हो चुका था कि अब विक्रम नहीं बच सकता, तेज बहाव में बचना नामुनकिन है, . यही सोचकर सबने हथियार डाल दिए और कोई बचाव को आगे नहीं आ रहा था। काफी समय बीत चुका था, विक्रम अब दिखाई भी नही दे रहा था. . अभी सभी लोग किनारे पर बैठ कर विक्रम का शोक मना रहे थे कि दूर से एक सन्यासी आते हुए नजर आये उनके साथ एक नौजवान भी था। थोड़ा पास आये तो पता चला वो नौजवान विक्रम ही था। . अब तो सारे लोग खुश हो गए लेकिन हैरानी से वो सब लोग विक्रम से पूछने लगे कि तुम तेज बहाव से बचे कैसे ? . सन्यासी ने कहा कि आपके इस सवाल का जवाब मैं देता हूँ, ये बालक तेज बहाव से इसलिए बाहर निकल आया क्यूंकि इसे वहां कोई ये कहने वाला नहीं था कि “यहाँ से निकलना नामुनकिन है”, . इसे कोई हताश करने वाला नहीं था, इसे कोई हतोत्साहित करने वाला नहीं था। इसके सामने केवल लकड़ी का लट्ठा था और मन में बचने की एक उम्मीद बस इसीलिए ये बच निकला। . दोस्तों हमारी जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही होता है, जब दूसरे लोग किसी काम को असम्भव कहने लगते हैं तो हम भी अपने हथियार डाल देते हैं . क्यूंकि हम भी मान लेते हैं कि ये असम्भव है। हम अपनी क्षमता का आंकलन दूसरों के कहने से करते हैं। . आपके अंदर अपार क्षमताएं हैं, किसी के कहने से खुद को कमजोर मत बनाइये। . सोचिये विक्रम से अगर बार बार कोई बोलता रहता कि यहाँ से निकलना नामुनकिन है, तुम नहीं निकल सकते, ये असम्भव है तो क्या वो कभी बाहर निकल पाता ? कभी नहीं.. . उसने खुद पे विश्वास रखा, खुद पे उम्मीद थी बस इसी उम्मीद ने उसे बचाया। . मेरे दोस्त असंम्भव भी खुद कहता है कि मैं संम्भव हूँ , और ये बात हम हजारों बार पढ़ चुके हैं लेकिन मानने को तैयार नहीं। . सब कुछ जानते हुए भी हम इस असंम्भव से हमेशा डरे रहते हैं और इसी की सीमा में रहकर जिंदगी गुजार देते हैं। . तो आज से ही अपने मन के शब्दकोश से ये असंम्भव शब्द निकाल फेंकिए और दूसरों की बातों पर ध्यान ना देकर अपनी पूरी क्षमता से आगे बढ़िए , ईश्वर आपके साथ है...
Asambhav Kuch Bhi Nahin

Rishtey Me Daraar

रिश्ता_में_दरार 😢कागज का एक टुकड़ा✍️ राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था। दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे। चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए। राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे। साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा। राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे। दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी। इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर। सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन राधिका और राधिका की माता जी। नवीन घर मे अकेला ही रहता था। मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं। राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है। घर मे प्रवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने। सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था। नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई। वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे। प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है। बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी। फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया। न राधिका लौटी और न नवीन लाने गया। राधिका की माँ बोली कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ? चुप रहो माँ राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा। फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया। बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया। राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही। फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया। नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया रखलो मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में । गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी। क्यूँ कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है। सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई। नही चाहिए। वो दस लाख भी नही चाहिए क्यूँ? कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया। बस यूँ ही राधिका ने मुँह फेर लिया। इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ काम आएगें। इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था। राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी। राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई। वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर। जैसे भीतर के सैलाब को दबाने दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला। मग़र ज्यादा भावुक नही हुई। सधे अंदाज में बोली इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक? मैंने नही तलाक तुमने दिया दस्तखत तो तुमने भी किए माफी नही माँग सकते थे? मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया। घर भी आ सकते थे? हिम्मत नही थी? राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी। राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था। फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई। घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है। उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं। कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से? फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी। कितने सुनहरे दिन थे वो। इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई। बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया। अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया। बोला-- मत जाओ माफ कर दो शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया । और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे। दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही। काश उनको पहले मिलने दिया होता? 🙏🙏🙏

Rishtey Me Daraar

Aik Aurat Aur Uska Pati

जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई, एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़। दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था। जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है। टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए। " ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।" कह टीसी आगे चला गया। पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे। सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे। बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे। लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे। " साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।" टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा। " सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।" " आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा। " तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।" " ये लो साब, रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला। " नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी। ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही। चलो, जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।" इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला। आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो। दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे ऐसे बैठे थे ,मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके शोक में जा रहे हो। कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए? क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा? नहीं-नहीं। आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।" " ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।" पत्नी के कहा। " मगर मुन्ने के कम करना...."" और पति की आँख छलक पड़ी। " मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। " कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी। फिर आँख पोंछते हुए बोली- " अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-" इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।" उसकी आँख फिर छलक पड़ी। " अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत।
Aik Aurat Aur Uska Pati

Aap Achchey Ho

----- आप_अच्छे_हो ----- 'निभा, कहां है हमारी लाडली बिटिया। देखो। हम तुम्हारे लिए क्या लाए हैं।' घर में घुसते ही नीलेश ने बड़े प्यार से तेज आवाज में कहा। सामने विभा खड़ी थी। उसने इशारे से बताया कि निभा अपने कमरे में है। आज दोपहर में निभा की 12वीं का रिजल्ट आया था। उसका प्रतिशत सहपाठियों के मुकाबले काफी कम था। जब से रिजल्ट आया था, वहां आंखों में आंसू लिए बैठी थी। दिन का खाना भी नहीं खाया था उसने। उसकी मम्मी विभा ने नीलेश को फोन करके सब बातें बताईं। 'अरे, मेरी बिटिया कहां है' नीलेश ने बिल्कुल उसी अंदाज में कहा जैसे वह बचपन में बेटी के साथ खेला करता था और सामने देख कर भी ना देखने का नाटक किया करता था। निभा ने अपना सिर ऊपर नहीं किया। वैसे ही मूर्तिवत बैठी रही। 'निभा, देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं' कहते हुए नीलेश ने नन्हा टेडी निकाला और सामने रख दिया। निभा ने उदास नजर टेडी पर डाली। पहले की बात रहती तो वह निलेश के गले लग जाती। 'निभा, देखो मैं पैटिज लाया हूं और आइसक्रीम भी वही फ्लेवर जो तुम्हें पसंद है।' यह कह कर उसने दोनों चीजें निभा के सामने रख दी। 'पापा, प्लीज, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैंने आपकी उम्मीदों को तोड़ा है। आपने मुझे हर सुविधा दी और देखिए मेरे कितने कम नंबर आए।' तुमने प्रयास किया वही हमारे लिए बहुत है.... अब चलो, हम लोग जश्न मनाते हैं। विभा, इधर आओ, कहते हुए नीलेश ने निभा के मुंह में आइसक्रीम वाला बड़ा-सा चम्मच डाल दिया। एक साथ इतनी ठंडी आइसक्रीम मुंह में जाती ही वह उठकर पापा के गले लगकर जोर से रो पड़ी। नीलेश ने उसे रो लेने दिया। अब वह नन्ही बच्ची नहीं थी जो फुसल जाती। नमी निलेश की आंखों में भी उतरी पर वह खुशी बिटिया को वापस पा लेने की थी। अचानक निभा धीरे से बोली, 'आप बहुत अच्छे हैं पापा।' निभा की गंभीर आवाज ने निलेश को अंदर से रुला दिया। {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?} ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे या फिर मूजे मेसेज(Msg) कर के बता बताइएे
Aap Achchey Ho

Rasm A Hindi Story

रस्म बर्तन गिरने की आवाज़ से शिखा की आँख खुल गयी। घडी देखी तो आठ बज रहे थे वह हड़बड़ा कर उठी। उफ़्फ़ ! मम्मी जी ने कहा था कल सुबह जल्दी उठना है रसोई की रस्म करनी है हलवा-पूरी बनाना है और मैं हूँ कि सोती ही रह गयी। अब क्या होगा! पता नहीं मम्मी जी डैडी जी क्या सोचेंगे कहीं मम्मी जी गुस्सा न हो जाएँ। हे भगवान! उसे रोना आ रहा था। ससुराल और सास नाम का हौवा उसे बुरी तरह डरा रहा था। कहा था दादी ने- ससुराल है ज़रा संभल कर रहना। किसी को कुछ कहने मौका न देना नहीं तो सारी उम्र ताने सुनने पड़ेंगे। सुबह-सुबह उठ जाना नहा-धोकर साड़ी पहनकर तैयार हो जाना अपने सास-ससुर के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लेना। कोई भी ऐसा काम न करना जिससे तुम्हें या तुम्हारे माँ-पापा को कोई उल्टा-सीधा बोले। शिखा के मन में एक के बाद एक दादी की बातें गूँजने लगीं थीं। किसी तरह वह भागा-दौड़ी करके तैयार हुई। ऊँची-नीची साड़ी बाँध कर वह बाहर निकल ही रही थी कि आईने में अपना चेहरा देखकर वापस भागी-न बिंदी न सिन्दूर -आदत नहीं थी तो सब लगाना भूल गयी थी। ढूँढकर बिंदी का पत्ता निकाला। फिर सिन्दूरदानी ढूँढने लगी जब नहीं मिली तो लिपस्टिक से माथे पर हल्की सी लकीर खींचकर कमरे से बाहर आई। जिस हड़बड़ी में शिखा कमरे से बाहर आई थी वह उसके चेहरे से उसकी चाल से साफ़ झलक रही थी। लगभग भागती हुई सी वह रसोई में दाख़िल हुई और वहाँ पहुँचकर ठिठक गयी। उसे इस तरह हड़बड़ाते हुए देखकर सासू माँ ने आश्चर्य से उसकी तरफ़ देखा। फिर ऊपर से नीचे तक उसे निहारकर धीरे से मुस्कुराकर बोलीं आओ बेटा! नींद आई ठीक से या नहीं ? अचकचाकर बोलीजी मम्मी जी! नींद तो आई मगर ज़रा देरी से आई इसीलिए सुबह जल्दी आँख नहीं खुली सॉरी बोलते हुए उसकी आवाज़ से डर साफ़ झलक रहा था। सासू माँ बोलीं कोई बात नहीं बेटा! नई जगह है हो जाता है ! शिखा हैरान होकर उनकी ओर देखने लगी फिर बोली मगरमम्मी जी वो हलवा-पूरी? सासू माँ ने प्यार से उसकी तरफ़ देखा और पास रखी हलवे की कड़ाही उठाकर शिखा के सामने रख दी और शहद जैसे मीठे स्वर में बोलीं हाँ! बेटा! ये लो! इसे हाथ से छू दो! शिखा ने प्रश्नभरी निगाहों से उनकी ओर देखा। उन्होंने उसकी ठोड़ी को स्नेह से पकड़ कर कहा बनाने को तो पूरी उम्र पड़ी है! मेरी इतनी प्यारी गुड़िया जैसी बहू के अभी हँसने-खेलने के दिन हैं उसे मैं अभी से किचेन का काम थोड़ी न कराऊँगी। तुम बस अपनी प्यारी- सी मीठी मुस्कान के साथ सर्व कर देना -आज की रस्म के लिए इतना ही काफ़ी है। सुनकर शिखा की आँखों में आँसू भर आए। वह अपने-आप को रोक न सकी और लपक कर उनके गले से लग गई ! उसके रुँधे हुए गले से सिर्फ़ एक ही शब्द निकला #माँ 🙏

Rasm a Hindi Story

Bujurg Pati Patni

एक बुजुर्ग पति पत्नी चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने_ _अपनी पत्नी से कहा : हमारे ज़माने में_ _मोबाइल नहीं थे..._ _*पत्नी*_ : _पर ठीक 5 बजकर 55 मिनट पर_ _मैं पानी का ग्लास लेकर_ _दरवाज़े पे आती और_ _आप आ पहुँचते..._ _*पति*_ : _मैंने तीस साल नौकरी की_ _पर आज तक मैं ये नहीं समझ_ _पाया कि_ _मैं आता इसलिए तुम_ _पानी लाती थी_ _या तुम पानी लेकर आती थी_ _इसलिये मैं आता था..._ _*पत्नी*_ : _हाँ... और याद है..._ _तुम्हारे रिटायर होने से पहले_ _जब तुम्हें डायबीटीज़ नहीं थी_ _और मैं तुम्हारी मनपसन्द खीर बनाती_ _तब तुम कहते कि_ _आज दोपहर में ही ख़्याल आया_ _कि खीर खाने को मिल जाए_ _तो मज़ा आ जाए..._ _*पति*_ : _हाँ... सच में..._ _ऑफ़िस से निकलते वक़्त_ _जो भी सोचता,_ _घर पर आकर देखता_ _कि तुमने वही बनाया है..._ _*पत्नी*_ : _और तुम्हें याद है_ _जब पहली डिलीवरी के वक़्त_ _मैं मैके गई थी और_ _जब दर्द शुरु हुआ_ _मुझे लगा काश..._ _तुम मेरे पास होते..._ _और घंटे भर में तो..._ _जैसे कोई ख़्वाब हो..._ _तुम मेरे पास थे..._ _*पति*_ : _हाँ... उस दिन यूँ ही ख़्याल_ _आया_ _कि ज़रा देख लूँ तुम्हें..._ _*पत्नी*_ : _और जब तुम_ _मेरी आँखों में आँखें डाल कर_ _कविता की दो लाइनें बोलते..._ _*पति*_ : _हाँ और तुम_ _शरमा के पलकें झुका देती_ _और मैं उसे_ _कविता की 'लाइक' समझता..._ _*पत्नी*_ : _और हाँ जब दोपहर को चाय_ _बनाते वक़्त_ _मैं थोड़ा जल गई थी और_ _उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब_ _अपनी ज़ेब से निकाल कर बोले.._ _इसे अलमारी में रख दो..._ _*पति*_ : _हाँ... पिछले दिन ही मैंने देखा था_ _कि ट्यूब ख़त्म हो गई है..._ _पता नहीं कब ज़रूरत पड़ जाए.._ _यही सोच कर मैं ट्यूब ले आया था..._ _*पत्नी*_ : _तुम कहते ..._ _आज ऑफ़िस के बाद_ _तुम वहीं आ जाना_ _सिनेमा देखेंगे और_ _खाना भी बाहर खा लेंगे..._ _*पति*_ : _और जब तुम आती तो_ _जो मैंने सोच रखा हो_ _तुम वही साड़ी पहन कर आती..._ _फिर नज़दीक जा कर_ _उसका हाथ थाम कर कहा :_ _हाँ, हमारे ज़माने में_ _मोबाइल नहीं थे..._ _पर..._ _हम दोनों थे!!!_ _*पत्नी*_ : _आज बेटा और उसकी बहू_ _साथ तो होते हैं पर..._ _बातें नहीं व्हाट्सएप होता है..._ _लगाव नहीं टैग होता है..._ _केमिस्ट्री नहीं कमेन्ट होता है..._ _लव नहीं लाइक होता है..._ _मीठी नोकझोंक नहीं_ _अनफ़्रेन्ड होता है..._ _उन्हें बच्चे नहीं कैन्डीक्रश सागा,_ _टैम्पल रन और सबवे सर्फ़र्स चाहिए..._ _*पति*_ : _छोड़ो ये सब बातें..._ _हम अब Vibrate Mode पर हैं..._ _हमारी Battery भी 1 लाइन पे है..._ _अरे!!! कहाँ चली?_ _*पत्नी*_ : _चाय बनाने..._ _*पति*_ : _अरे... मैं कहने ही वाला था_ _कि चाय बना दो ना..._ _*पत्नी*_ : _पता है..._ _मैं अभी भी कवरेज क्षेत्र में हूँ_ _और मैसेज भी आते हैं..._ _दोनों हँस पड़े..._ _*पति*_ : _हाँ, हमारे ज़माने में_ _मोबाइल नहीं था
Bujurg Pati Patni

Sas Bahu Hindi Story

सास बहू की जुबानी ..... शादी को कुछ ही समय हुआ था और आज कामवाली भी नही आई इसलिये शीलू बरतन धोने लगी। धोते धोते उसके हाथ से कॉच का कप नीचे गिरकर टूट गया। कप टूटते ही वह डरने लगी कि उसकी सास अब जली कटी सुनायेगी। आवाज से सास दौड़ती आई और बोली, बेटी क्या हुऑ? उसने रुआँसी होकर बोला- मॉ, पता नही ध्यान रखते हुये भी कैसे मेरे हाथ से कप नीचे गिरकर फूट गया। सास बोली कि बेटी चिंता नही कर, कप ही तो फूटा है। तुम्हें चोट तो नहीं आयी और भले इसके कितने ही टुकड़े हो गये हो पर मेरी बेटी के दिल के टुकड़े ना हो। मेरी बहू से महँगा क्या ये कप है? और हॉ, तुझे अभी ये सब करने की क्या जरूरत, मेहंदी भी नही उतरी तेरे हाथो से। अभी तुम राज के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताओ और एक दूसरे को समझो तभी तो तुम दोनो की नींव मजबूत होगी। ज्योति इधर आना, अपनी भाभी का ख़्याल रख, अभी इस घर मे नई आई है । शीलू, तुम मुझे अपनी मॉ ही समझना। मुझे भी तुम्हारा दिल जीतना है सास बनकर नही मॉ बनकर। शब्द क्या मानो अमृत के घूँट थे। देखते देखते शीलू की ऑंखो छलछला गई। वह सास के पैरों मे गिर गई और बोली कि मैंने एक मॉ छोड़ी तो दूसरी नई मॉ पाई, बल्कि आप मेरी मॉ से भी ज्यादा ममता मेरे लिये रखती हो। यदि घर मे कप टूट जाता तो मॉ भी दो बात कहे बिना नही रहती । रात को शीलू की नींद ही उड़ गई, रह रहकर शाम की घटना याद आ रही थी। सास के बारे मे उसकी जो सोच थी उससे विपरित सास का व्यवहार पाया। उसका भी क़सूर नही था ऐसा सोचना क्योंकि उसने लोगो के मुँह से बुरी सास के बारे मे ही सुना था और फिर वो अपने अतीत में खो गई। उसे याद आया कि कुछ साल पहले इकलौते भइया की शादी हुई थी। भाभी की हाथो से मेहंदी का रंग उतरने से पहले ही मॉ ने भाभी पर घर के काम की पूरी ज़िम्मेदारी डाल दी और अपने ही नियम कानून के हिसाब से भाभी को चलने को विवश करती। मॉ ने भाभी को घर मे एडजस्ट होने मे ज़रा भी वक्त नही दिया। भइया भाभी को बाहर ले जाते तो मॉ का मुँह फूल जाता व बोलती कि हर समय भाभी को साथ ले जाने की कहॉ जरूरत है। कभी भी भाभी को खुली हँसी हँसते नही देखा। समय के साथ भाभी ने सहना छोड़ दिया फिर हर रोज घर में झगड़ा होने लगा। एक दिन भाभी के हाथ से कॉच का गिलास नीचे गिरकर टूट गया। मॉ चिल्लाने लगी कि कितना कीमती गिलास फोड़ दिया, रोज इतना माल खाती हो उसकी शक्ति कहॉ गई। अपने मायके मे गिलास फूटा होता तो मालूम चलता। कोई भी काम ठीक से नही होता, ना जाने कहॉ ध्यान रहता। भाभी भी कड़क कर बोल दी कि हॉ, मै तो बैठी बैठी खाती हूँ, आप तो खड़ी खड़ी खाती है। जब से आई हूँ तब से रोज दो चार जली कटी ना सुना दो तब तक आपको चैन नही पड़ेगा। कभी मेरी मॉ को तो कभी मेरे बाप को हमेशा मेरे मायके वाले को कोसती रहती हो.. दोनो तरफ से तीर बरस कर एक दूसरे को छलनी कर रहे थे। घर के अलावा उसने और भी जगह सास बहू के झगड़े सुनते सुनते डर गई व शादी से कतराने लगी। पर मॉ बाप के कारण शादी करनी पड़ी और एक अंजाने भय को लेकर ससुराल आ गई। पर आज की घटना से उसकी सोच ही बदल गई कि सब सास या बहू में ऐसा नही होता है। नींद ना आने की वजह से उसने सोचा चलो थोड़ी देर मॉ से बात कर लूँ। मॉ ने इतनी रात को उसको फ़ोन करते देखकर बोला कि शीलू सब कुछ ठीक तो है ना ? कही जवाई राजा या सास ननद से तो झगड़ा नही हो गया। वह बोली नही, मॉ ऐसा कुछ नही। मालूम है मॉ आज मेरे हाथो से कप नीचे गिरकर टूट गया तभी सास आ गई और आगे बोलती उसके पहले ही मॉ ने बोलना शुरू कर दिया बेटा, फिर तेरी सास के चिल्लाने पर तूने अच्छा सा जवाब दे दिया ना, हॉ बेटा कभी भी दबकर नही रहना, तु भी पढीलिखी अच्छी लड़की है, तेरे मे कोई कमी थोड़े ही है जो सुनेगी। तभी बात को काटते हुये तेज़ आवाज मे शीलू बोली कि मॉ अब बस करो, मैं अपनी दूसरी मॉ के ख़िलाफ़ कुछ नही सुन सकती। मॉ सहम गई और बोली तु ये क्या बोल रही है? हॉ मॉ आज मेरे हाथो से जब कप गिरा तो सासू मॉ ने.. सारी बात बता कर अंत मे बोली, अब तो आप समझ गई ना सारी बात। और हॉ, सास ने सिर्फ बोलने के लिये नही बोला, वह वाकई मे ज्योति की तरह मेरे से व्यवहार कर रही है। मॉ एक बात कहूँगी आप बुरा तो नही मानेगी । हॉ बोल बेटा। मॉ काश आप भी मेरी नई मॉ की तरह भाभी के साथ व्यवहार करती तो शायद भइया भाभी अलग घर मे नही होते। मॉ मेरी सास ने शुरू से ही अपने प्रेम से नींव मजबूत कर ली तो उस पर टिका परिवार मे मज़बूती कैसे नही आयेगी। आज मॉ को महसूस हो रहा था कि वो नही बल्कि शीलू उसकी मॉ बनकर उसे अच्छी सीख दे रही है। मॉ को गलती का एहसास हो गया, शीलू आगे कुछ बोलती उससे पहले ही मॉ ने कहा शीलू अब जब तु यहाँ आयेगी तो यहॉ पर भी पूरे परिवार की नींव मे मज़बूती पायेगी। अब फ़ोन रख, मुझे बेटाबहू के स्वागत की तैयारी करनी है। शादी के बाद नई जिन्दगी की शुरूआत मे अगर आज सास समझदारी से काम नही लेती, अपनत्व नही जताती तो शायद शुरूआत की नींव ही कमज़ोर होने से पूरी जिन्दगी आपस मे दरार पड़ जाती। कप को फूटने से कोई नही रोक सकता, किन्तु प्रेम को टूटने से तो हम रोक सकते है। कॉच के टुकड़े हो जाए पर घर के टुकड़े ना होने दे। घर मे प्रेम का वातावरण बनाये रखे, एक दूसरे के सम्मान को समझे, इज़्ज़त करे तो घर स्वर्ग बन जायेगा। घर नर्क से स्वर्ग मे बदल सकता है यदि बहू सास को मॉ मान ले व सास बहू को बेटी मान ले। दृष्टि बदलने से सृष्टि बदल जायेगी।... ......✒✒✒✒
Sas Bahu hindi story

A Village Hindi Story

बात एक गाव की है। जहा पर एक लडकी रहती थी। उसका पढाई करने मे मन भी लगता था वे दो बहने और एक उन दोनो बहनो से छोटा उनका एक भाई था।लेकिन उसके माता पिता को तो बस एक ही डर हमेशा लगा रहता था ।कि कल कदे कोई थारी लडकी के साथ कुछ गलत न हो जाए। इसी डर के कारण उसके माता पिता और उसकी बुआ ने मिलकर जल्दी जल्दी मे उस लडकी की शादी कर दी। जिस लडके के साथ उसकी शादी हुई ।वह उससे दस साल बडा था। उसे उसके बारे मे काफी कुछ बताया गया था कि इसके पास तो काफी पैसे है तू शादी के बाद मौज करेगी। अब शादी के बाद जो सभी लडकियो के साथ होता है ऐसा ही उस लडकी ने भी सोचा था कि तेरे साथ भी ऐसा ही होगा।पर जैसे ही वह अपने ससुराल गयी ।वहा पर उसने पाया की उसके ससुर की तो शादी से पहले ही मौत हो चूकी थी।अब केवल उसके घर मे उसकी सास और उसका पति रहते थे।लडकी के घर वालो ने ये सोच के शादी की थी की हमारी लडकी आराम से मजे मे रहेगी। लडकी के माता पिता ने ब्याज पर भी पैसे लेकर उसकी शादी मे बढ चढ कर खर्च किया।पर उन्हे कया पता था कि उन्होने अपनी लडकी को एक दहेजी घर मे बेच दिया था। अब तो दहेज कहानी शुरु होनी ही थी। शादी के दस ही दिन बाद उसकी सास और पति ने उस लडकी को कहा की मेरी सरकारी नौकरी लाग जा गी जो तू अपने घर से 70 हजार रुपये ला के दे दे तो ।वह अगले दिन अपने घर आई तो उसने ये बात अपनी मां को बताई ।तब धीरे से उसकी मा ने यही बात उसके पिता को भी बताई।उसके पिता ने सोचा कोई बात नही अपनी बेटी से तो देने है उसके पिता ने कहा कि बेटी ले जा ।कोई बात नही। अब पैसे लडके के घर पहुचने पर कुछ दिन तो वे सभी उससे प्यार करने लगे।जैसे ही वे पैसे खत्म हुए।तभी उन्होने अपना गिरगिट की तरह फिर से रुप बदलना शुरु किया।अब कि बार तो उनकी हद ही हो गयी कि वे सभी उसे गंदी और बदचलन कहने लगे।उसको घर से बाहर तक नही जाने देते। अभी तीन ही महीने हुए थे उसकी शादी को तो तभी उसकी सास भी चल बसी।बस फिर कया था अब तो और भी उसकी लडकी के साथ ज्यादा गलत होना शुरू हो गया।उसका पति जब भी घर से बाहर जाता तो वह हर घर की चीज को ताला लगा के और उसके एक कमरे मे बंद करके जाने लगा। वह जब भी कुछ बात करती तो तभी वह उसकी पिटाई भी कर देता।जिसके कारण वह डरती नही बोलती थी।और न ही उसे कभी फोन मिलता कि वह अपने घर वालो से तो बात कर ले ।जब भी वह कहती तो उसे यही बात सुनने को मिलती कि मेरे फोन मे पैसे नही है। अभी उसकी शादी को छह ही महिने हुए थे तो एक दिन उस लडकी का पिता उसके गाव से कही जा रहा था।तो उसने सोचा कयो न अपनी बेटी से मिलता चलू।तो तब उसे सच्चाई का पता चला।तो वह उसी समय अपनी बेटी की यह दशा देखकर रोता हुए उसे वापस अपने घर ले आया।घर पर आने के बाद उसने अपनी बेटी से सारी बाते पुछी । उसने फिर वहा पर लडके के गाव मे पंचायत भी की ।पचायत मे फैसला आया कि तू भाई इस लडकी ने जब तलाक ही दे दे जो या तने नाहे पसंद है तो।उसने वो भी मानने से इंकार कर दिया। अब वह लडकी अपने माता पिता के पास रहकर बारहवी कलास मे पढाई के साथ साथ कम्पयूटर भी सीख रही है।और अपनी पिछली जिदंगी को भूलने की कोशिश करती है पर लेकिन कोई न कोई उसे फिर से उस जिदगी की याद दिला देता है जिससे उसकी रू भी काप उठती है। अब मै आप सभी से ये कुछ बाते पुछना चाहूगा 1अगर उस लडकी के पिता आप होते तो आप कया करते। 2जिसकी लडकी के साथ ऐसा हुआ है तो अब उस लडकी को आगे कया करना चाहिए।

A village hindi story

Sundar Mahila

एक अती सुन्दर महिला ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं। उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है। जिसके दोनों ही हाथ नहीं है। महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई। उस सुंदर महिला ने एयरहोस्टेस से बोला मै इस सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पाऊँगी। क्योंकि साथ की सीट पर जो व्यक्ति बैठा हुआ है उसके दोनों हाथ नहीं हैं। उस सुन्दर महिला ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया। असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा मैम क्या मुझे कारण बता सकती है? सुंदर महिला ने जवाब दिया मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाउंगी। दिखने में पढी लिखी और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला की यह बात सुनकर एयरहोस्टेस अचंभित हो गई। महिला ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती। अतः मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए। एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी। एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट खाली नहीं है किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है। अतः मैं विमान के कप्तान से बात करती हूँ। कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें। ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई। कुछ समय बाद लोटने के बाद उसने महिला को बताया मैडम! आपको जो असुविधा हुई उसके लिए बहुत खेद है | इस पूरे विमान में केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है। सुंदर महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा सर क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा कर के परेशान हों। यह बात सुनकर सभी यात्रियों ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अति सुन्दर दिखने वाली महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी। तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ। और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे। सबसे पहले जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी तब मैं सोच रहा था। की मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये? लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी तो अब अपने आप पर गर्व हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों के लिए अपने दोनों हाथ खोये। और इतना कह कर वह प्रथम श्रेणी में चले गए। सुंदर महिला पूरी तरह से अपमानित होकर सर झुकाए सीट पर बैठ गई। अगर विचारों में उदारता नहीं है तो ऐसी सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है। मैरे पास ये कहानी आई थी। मैंने इसे पढ़ा तो हृदय को छू गई इसलिये पोस्ट कर रहा हु । उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों भी बहुत पसंद आएगी। 🇮🇳🇮🇳🙏🏻जय हिन्द🙏🇮🇳🇮🇳

Sundar Mahila

Jati Ki Aurat

*जाति औरत की*??? एक आदमी ने महिला से पूछा तेरी जाति क्या है? महिला ने पूछा *एक मां की या एक महिला की* ? उसने कहा चल दोनों की बता *और मुस्कान बिखेरी* *महिला ने भी पूरे धैर्य से बताया* *एक महिला जब माँ बनती है तो वो जाति विहीन हो जाती है* उसने फिर आश्चर्य चकित होकर पूछा वो कैसे? जबाब मिला कि जब एक मां अपने बच्चे का लालन पालन करती हैअपने बच्चे की गंदगी साफ करती है तो वो *शूद्र* हो जाती है वो ही बच्चा बड़ा होता है तो मां बाहरी नकारात्मक ताकतों से उसकी रक्षा करती है तो वो *क्षत्रिय* हो जाती है जब बच्चा और बड़ा होता है तो मां उसे शिक्षित करती है तब वो *ब्राह्मण* हो जाती है और अंत में जब बच्चा और बड़ा होता है तो मां उसके आय और व्यय में उसका उचित मार्गदर्शन कर अपना *वैश्य* धर्म निभाती है तो हुई ना एक महिला या मां जाति विहीन उत्तर सुनकर वो अवाक् रह गया । उसकी आँखों में महिलाओं या माताओं के लिए सम्मान व आदर का भाव था और महिला को अपने मां और महिला होने पर पर गर्व का अनुभव हो रहा था। *जिन्दगी दो पल की*_❣खुश रहिये मुस्कुराते रहिये* !! 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Jati Ki Aurat

Do Saal Baad

एक युवक ने विवाह के दो साल बाद परदेस जाकर व्यापार करने की इच्छा पिता से कही । पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी गर्भवती पत्नी को माँ-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार करने चला गया । परदेश में मेहनत से बहुत धन कमाया और वह धनी सेठ बन गया । सत्रह वर्ष धन कमाने में बीत गए तो सन्तुष्टि हुई और वापस घर लौटने की इच्छा हुई । पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में बैठ गया । उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी मन से बैठा था । सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नही है । मैं यहाँ ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर कोई लेने को तैयार नहीं है । सेठ ने सोचा 'इस देश में मैने बहुत धन कमाया है, और यह मेरी कर्मभूमि है, इसका मान रखना चाहिए !' उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई । उस व्यक्ति ने कहा- मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है । सेठ को सौदा तो महंगा लग रहा था.. लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए 500 स्वर्ण मुद्राएं दे दी । व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया- कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रूककर सोच लेना । सेठ ने सूत्र अपनी किताब में लिख लिया । कई दिनों की यात्रा के बाद रात्रि के समय सेठ अपने नगर को पहुँचा । उसने सोचा इतने सालों बाद घर लौटा हूँ तो क्यों न चुपके से बिना खबर दिए सीधे पत्नी के पास पहुँच कर उसे आश्चर्य उपहार दूँ । घर के द्वारपालों को मौन रहने का इशारा करके सीधे अपने पत्नी के कक्ष में गया तो वहाँ का नजारा देखकर उसके पांवों के नीचे की जमीन खिसक गई । पलंग पर उसकी पत्नी के पास एक युवक सोया हुआ था । अत्यंत क्रोध में सोचने लगा कि मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा और ये यहां अन्य पुरुष के साथ है । दोनों को जिन्दा नही छोड़ूगाँ । क्रोध में तलवार निकाल ली । वार करने ही जा रहा था कि उतने में ही उसे 500 स्वर्ण मुद्राओं से प्राप्त ज्ञान सूत्र याद आया- कि कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट सोच लेना । सोचने के लिए रूका । तलवार पीछे खींची तो एक बर्तन से टकरा गई । बर्तन गिरा तो पत्नी की नींद खुल गई । जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी वह ख़ुश हो गई और बोली- आपके बिना जीवन सूना सूना था । इन्तजार में इतने वर्ष कैसे निकाले यह मैं ही जानती हूँ । सेठ तो पलंग पर सोए पुरुष को देखकर कुपित था । पत्नी ने युवक को उठाने के लिए कहा- बेटा जाग । तेरे पिता आए हैं । युवक उठकर जैसे ही पिता को प्रणाम करने झुका माथे की पगड़ी गिर गई । उसके लम्बे बाल बिखर गए । सेठ की पत्नी ने कहा- स्वामी ये आपकी बेटी है । पिता के बिना इसके मान को कोई आंच न आए इसलिए मैंने इसे बचपन से ही पुत्र के समान ही पालन पोषण और संस्कार दिए हैं । यह सुनकर सेठ की आँखों से अश्रुधारा बह निकली । पत्नी और बेटी को गले लगाकर सोचने लगा कि यदि आज मैने उस ज्ञानसूत्र को नहीं अपनाया होता तो जल्दबाजी में कितना अनर्थ हो जाता । मेरे ही हाथों मेरा निर्दोष परिवार खत्म हो जाता । ज्ञान का यह सूत्र उस दिन तो मुझे महंगा लग रहा था लेकिन ऐसे सूत्र के लिए तो 500 स्वर्ण मुद्राएं बहुत कम हैं । 'ज्ञान तो अनमोल है ' इस कहानी का सार यह है कि जीवन के दो मिनट जो दुःखों से बचाकर सुख की बरसात कर सकते हैं । वे हैं - 'क्रोध के दो मिनट' इस कहानी को शेयर जरूर करें क्योंकि आपका एक शेयर किसी व्यक्ति को उसके क्रोध पर अंकुश रखने के लिए प्रेरित कर सकता है ।
Do saal baad

Greebi A Hindi Story

गरीबी दोस्तों जरूर पढे एक परिवार मे 5 लोग थे मां बाप एक भाई दो बहनेगरीब पिता रिक्शा चलाता था कमजोर था रिक्शा खींचना कभी मोटे तो कभी अधिक भारवाला बोझा ढोने से ज्यादातर बीमार रहता था कम कमाई ओर अधिक भूखे रहने से बीमार पिता एक दिन मर गया घर का इकलौता कमाने वाला का यूं चले जाना परिवार पर भारी पडा परिवार भूखमरी पर था सो ये देख कुछ पडोसियो दया भाव से उनकी दयनीय स्थिति देखते उन्हें तीन चार दिन खाना भेज दिया फिर उनहोने भी बंद कर दिया आखिर कौन कबतक मदद करता है मां ने कुछ दिन जैसे तैसे भीख मांगकर बच्चो का पेट भरा मगर कबतक कभी भीख मिलती कभी नही ऐसे भूखे रहने से उसका बडा बेटा भी बीमार हो गया दो तीन बीमार भाई को देखती उसकी छोटी बहन एक दिन मां के पास आई ओर कान मे बोली- मां भाई कब मरेगा मांं की आत्मा तडप उठी ओर बोली- कया बोल रही है पागल भाई हे तेरा लोग भाई के सही होने की दुआ करते हे ओर तू उसके मरने के सपने देख रही है लडकी बोली- मां भाई मरेगा तो फिर से पडोसी खाना भेजेंगे ऐसे भूखे मरने से तो खाकर मरना अच्छा वैसे भी कोई गरीब की बिना वजह मदद नही करता मां बच्चो को देखती कभी अपनी लाचारी को देखती रोती दोस्तों ये एक कडवा सच हे बिना वजह कोई किसी कि मदद नही करता शादी मे हजारों का खाना बनता हे कुछ 4 से 5 सौ लोग खाते हे बाकी नालियों मे फेंका जाता हे एक अमीर आदमी होटल मे रेस्टोरेंट मे इतना खाने मे जूठा छोड़ देता है जितना किसी गरीब का पेट भरने के लिए काफी होता है दोस्तों अगर भगवान ने आपको समपंन्न बनाया है तो पहले तो अन्न का निरादर ना करें दोस्तों आप मे अक्सर अपने घरों मे कई बनने वाली खाने की चीजों को नापसंद करके छोड़ देते है की मुझे ये खाना वो नही खाना और फिर बचा हुआ खाना बाहर कूडे मे ओर फिर से अन्न का निरादरवैसे दोस्तों अगर शादी पार्टी मे ज्यादा खाना बनवाते हे तो बचा खाना पास की झुग्गी बस्ती मे बंटवा दे या मंदिर धार्मिक स्थलों के आसपास इकट्ठा रहनेवाले गरीबों मे बांट दे तो ऐसे ना तो आप खाने का निरादर करने से बच जाएगे बल्कि कई भूखो की भूख मिटाने मे सहयोगी बन पाएगे सोचिएगा दोस्तों सोचने वाली बात हैवैसे नीचे दी गई भी आपको इसी कहानी का एक पहलू समझाती नजर आयेगी अगर आप भी मेरे विचारों से सहमत हो तो मे / लिखिएगा आपके जबाब के इंतजार मे आपका दोस्त

Greebi a Hindi Story

Striyon Ko Samarpit

स्त्रियों को समर्पित 👵🏻👱🏻‍♀👵🏻 एक स्त्री द्वारा लिखित बेहद संवेदनशील और अन्दर तक झकझोरने वाला लेख..😢 मुझे याद नहीं कि बचपन में कभी सिर्फ इस वजह से स्‍कूल में देर तक रुकी रही होऊं कि बाहर बारिश हो रही है ना। भीगते हुए ही घर पहुंच जाती थी और तब बारिश में भीगने का मतलब होता था, घर पर अजवाइन वाले गर्म सरसों के तेल की मालिश और ये विदाउट फेल हर बार होता ही था। मौज में भीगूं तो डांट के साथ-साथ सरसों का तेल हाजिर। फिर जब घर से दूर रहने लगी तो धीरे-धीरे बारिश में भीगना कम होते-होते बंद ही हो गया। यूं नहीं कि बाद में जिंदगी में लोग नहीं थे। लेकिन किसी के दिमाग में कभी नहीं आया कि बारिश में भीगी लड़की के तलवों पर गर्म सरसों का तेल मल दिया जाए। कभी नहीं। ऐसी सैकड़ों चीजें, जो माँ हमेशा करती थीं, माँ से दूर होने के बाद किसी ने नहीं की। किसी ने कभी बालों में तेल नहीं लगाया। माँ आज भी एक दिन के लिए भी मिले तो बालों में तेल जरूर लगाएं। बचपन में खाना मनपसंद न हो तो माँ दस और ऑप्‍शन देती। अच्‍छा घी-गुड़ रोटी खा लो, अच्‍छा आलू की भुजिया बना देती हूं। माँ नखरे सहती थी, इसलिए उनसे लडि़याते भी थे। लेकिन बाद में किसी ने इस तरह लाड़ नहीं दिखाया। मैं भी अपने आप सारी सब्जियां खाने लगीं। मेरी जिंदगी में मां सिर्फ एक ही है। दोबारा कभी कोई माँ नहीं आई, हालांकि बड़ी होकर मैं जरूर मां बन गई। लड़कियां हो जाती हैं न माँ अपने आप। प्रेमी, पति कब छोटा बच्‍चा हो जाता है, कब उस पर मुहब्‍बत से ज्‍यादा दुलार बरसने लगता है, पता ही नहीं चलता। उनके सिर में तेल भी लग जाता है, ये परवाह भी होने लगती है कि उसका फेवरेट खाना बनाऊं, उसके नखरे भी उठाए जाने लगते हैं। लड़कों की जिंदगी में कई माएं आती हैं। बहन भी माँ हो जाती है, पत्‍नी तो होती ही है, बेटियां भी एक उम्र के बाद बूढ़े पिता की माँ ही बन जाती हैं, लेकिन लड़कियों के पास सिर्फ एक ही माँ है। बड़े होने के बाद उसे दोबारा कोई माँ नहीं मिलती। वो लाड़-दुलार, नखरे, दोबारा कभी नहीं आते। लड़कियों को जिंदगी में सिर्फ एक ही बार मिलती है ........माँ.👵🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻😢😢😢
Striyon Ko Samarpit

Nonk Jhonk A Hindi Story

नोंक_झोंक🤔 . इन 75-80 साल के अंकल आंटी का झगड़ा ही ख़त्म नहीं होता..... . एक बार के लिए मैंने सोचा अंकल और आंटी से बात करू क्यों लड़ते हैं, हर वक़्त आख़िर बात क्या है..... . फिर सोचा मुझे क्या मैं तो यहाँ दो दिन के लिए आया हूँ ..... . मगर थोड़ी देर बाद आंटी की जोर-जोर से बड़बड़ाने की आवाज़ें आयी तो मुझसे रहा नहीं गया ..... . ग्राउंड फ्लोर पर गया मैं तो देखा अंकल हाथ में वाइपर और पोछा लिए खड़े थे ..... . मुझे देखकर मुस्कराये और फिर फर्श की सफाई में लग गए..... . अंदर किचन से आंटी के बड़बड़ाने की आवाज़ें अब भी रही थी..... . कितनी बार मना किया है ..... फर्श की धुलाई मत करो..... पर नहीं मानता बुड्ढा..... . मैंने पूछा अंकल क्यों करते हैं आप फर्श की धुलाई जब आंटी मना करती हैं तो"....... . अंकल बोले " बेटा, फर्श धोने का शौक मुझे नहीं इसे है। मैं तो इसीलिए करता हूं ताकि इसे न करना पड़े। . ये सुबह उठकर ही फर्श धोने लगेगी इसलिए इसके उठने से पहले ही मै धो देता हूं..... . क्या.....मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। . अंदर जाकर देखा आंटी किचन में थीं।" अब इस उम्र में बुढ़ऊ की हड्डी पसली कुछ हो गई तो क्या होगा। मुझसे नहीं होगी खिदमत।"आंटी झुंझला रही थीं। . परांठे बना कर आंटी सिल बट्टे से चटनी पीसने लगीं....... . मैंने पूछा "आंटी मिक्सी है तो फिर....." . "तेरे अंकल को बड़ी पसंद है सिल बट्टे की पिसी चटनी। बड़े शौक से खाते हैं। दिखाते यही हैं कि उन्हें पसंद नहीं।" . उधर अंकल भी नहा धो कर फ़्री हो गए थे। उनकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी," . बेटा, इस बुढ़िया से पूछ रोज़ाना मेरे सैंडल कहां छिपा देती है, मैं ढूंढ़ता हूं और इसको बड़ा मज़ा आता है मुझे ऐसे देखकर।" . मैंने आंटी को देखा वो कप में चाय उड़ेलते हुए मुस्कुराईं और बोलीं, . "हां मैं ही छिपाती हूं सैंडल, ताकि सर्दी में ये जूते पहनकर ही बाहर जाएं, देखा नहीं कैसे उंगलियां सूज जाती हैं इनकी। . "हम तीनो साथ में नाश्ता करने लगे ....... इस नोक झोंक के पीछे छिपे प्यार को देख कर मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था। . नाश्ते के दौरान भी बहस चली दोनों की। . अंकल बोले .... "थैला दे दो मुझे , सब्ज़ी ले आऊं"...... . "नहीं कोई ज़रूरत नहीं, थैला भर भर कर सड़ी गली सब्ज़ी लाने की"। आंटी गुस्से से बोलीं। . अब क्या हुआ आंटी ....... मैंने आंटी की ओर सवालिया नज़रों से देखा, और उनके पीछे-पीछे किचन में आ गया।.... . "दो कदम चलने मे सांस फूल जाती है इनकी, थैला भर सब्ज़ी लाने की जान है क्या इनमें..... . बहादुर से कह दिया है वह भेज देगा सब्ज़ी वाले को।" . " मॉर्निंग वॉक का शौक चर्राया है बुढ़‌ऊ को"...... तू पूछ उनसे क्यों नहीं ले जाते मुझे भी साथ में। . चुपके से चोरों की तरह क्यों निकल जाते हैं.... "आंटी ने जोर से मुझसे कहा। "मुझे मज़ा आता है इसीलिए जाता हूं अकेले।"..... अंकल ने भी जोर से जवाब दिया । . अब मैं ड्राइंग रूम मे था, अंकल धीरे से बोले ....., रात में नींद नहीं आती तेरी आंटी को , सुबह ही आंख लगती है कैसे जगा दूं चैन की गहरी नींद से इसे ।"इसीलिए चला जाता हूं गेट बाहर से बंद कर के।" . इस नोक झोंक पर मुस्कराता मे वापिस फर्स्ट फ्लोर पे आ गया..... . कुछ देर बाद बालकनी से देखा अंकल आंटी के पीछे दौड़ रहे हैं।..... . "अरे कहां भागी जा रही हो मेरे स्कूटर की चाबी ले कर..... इधर दो चाबी।" . "हां नज़र आता नहीं पर स्कूटर चलाएंगे। कोई ज़रूरत नहीं। ओला कैब कर लेंगे हम।" आंटी चिल्ला रही थीं। . "ओला कैब वाला किडनैप कर लेगा तुझे बुढ़िया।"। . "हां कर ले, तुम्हें तो सुकून हो जाएगा।" . अंकल और आंटी की ये बेहिसाब नोंक-झोंक तो कभी ख़त्म नहीं होने वाली थी..... . मगर मैंने आज समझा था कि इस तकरार के पीछे छिपी थी इनकी एक दूसरे के लिए बेशुमार मोहब्बत और फ़िक्र...... . मैंने आज समझा था कि प्यार वो नहीं जो कोई "कर" रहा है ...... प्यार वो है जो कोई "निभा" रहा है ☺🙂☺
Nonk Jhonk a hindi story

Jeewan Ki Haqeeqat

*जीवन की हकीकत दर्शाती पोस्ट* मेरी माँ का ब्लड प्रेशर और शुगर बढ़ा हुआ था, सो सवेरे सवेरे उन्हें लेकर उनके पुराने डॉक्टर के पास गया, क्लिनिक से बाहर उनके गार्डन का नज़ारा दिख रहा था जहां डॉक्टर साहब योग और व्यायाम कर रहे थे मुझे करीब 45 मिनिट इंतज़ार करना पड़ा। कुछ देर में डॉक्टर साहब अपना नींबू पानी लेकर क्लिनिक आये और माँ का चेकअप करने लगे। उन्होंने मम्मी से कहा आपकी दवाइयां बढ़ानी पड़ेंगी और एक पर्चे पर करीब 5 या 6 दवाइयों के नाम लिखे। उन्होंने माँ को दवाइयां रेगुलर रूप से खाने की हिदायत दी। बाद में मैंने उत्सुकता वश उनसे पूछा कि क्या आप बहुत समय से योग कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि पिछले 15 साल से वो योग कर रहे हैं और ब्लड प्रेशर व अन्य बहुत सी बीमारियों से बचे हुए हैं! मैं अपने हाथ मे लिए हुए माँ के उस पर्चे को देख रहा था जिसमे उन्होंने BP और शुगर कम करने की कई दवाइयां लिख रखी थी? 🌷🌷 *सर में भयंकर दर्द था सो अपने परिचित केमिस्ट की दुकान से सर दर्द की गोली लेने रुका। दुकान पर नौकर था ,उसने मुझे गोली का पत्ता दिया तो उससे मैंने पूछा गोयल साहब कहाँ गए हैं, तो उसने कहा साहब के सर में दर्द था सो सामने वाले कैफ़े में काफी पीने गये हैं अभी आते होंगे*!! मैं अपने हाथ मे लिए उस दवाई के पत्ते को देख रहा था ? 🌹🌹 अपनी बीवी के साथ एक ब्यूटी पार्लर गया। मेरी बीवी को हेयर ट्रीटमेंट कराना था क्योंकी उनके बाल काफी खराब हो रहे थे। रिसेप्शन में बैठी लड़की ने उन्हें कई पैकेज बताये और उनके फायदे भी। पैकेज 1200 से लेकर 3000 तक थे कुछ डिस्काउंट के बाद मेरी बीवी को उन्होंने 3000 रु वाला पैकेज 2400रु में कर दिया। हेयर ट्रीटमेंट के समय उनका ट्रीटमेंट करने वाली लड़की के बालों से अजीब सी खुशबू आ रही थी मैंने उससे पूछा कि आपने क्या लगा रखा है कुछ अजीब सी खुशबू आ रही है, तो उसने कहा उसने तेल में मेथी और कपूर मिला कर लगा रखा है इससे बाल सॉफ्ट हो जाते हैं और जल्दी बढ़ते हैं। मैं अपनी बीवी की शक्ल देख रहा था जो 2400 रु में अपने बाल अच्छे कराने आई थी। 🌷🌷🌷 *मेरी रईस कज़िन जिनका बड़ा डेयरी फार्म है उनके फार्म पर गया* । *फार्म में करीब 150 विदेशी गाय थी जिनका दूध मशीनों द्वारा निकाल कर प्रोसेस किया जा रहा था*। *एक अलग हिस्से में 2 देसी गैया हरा चारा खा रही थी।* *पूछने पर बताया घर उन गायों का दूध नही आता जिनका दुध उनके डेयरी फार्म से सप्लाई होता है बल्कि परिवार के इस्तेमाल के लिए इन 2 गायों का दूध,दही व घी इस्लेमाल होता है।* *मै उन लोगों के बारे में सोच रहा था जो ब्रांडेड दूध को बेस्ट मानकर खरीदते हैं* 🌷🌷 *एक प्रसिद्ध रेस्टुरेंट जो कि अपनी विशिष्ट थाली और शुद्ध खाने के लिए प्रसिद्ध है हम खाना खाने गये*। *निकलते वक्त वहां के मैनेजर ने बडी विनम्रता से पूछा सर, खाना कैसा लगा, हम बिल्कुल शुद्ध घी तेल और मसाले यूज़ करते हैं, हम कोशिश करते हैं बिल्कुल घर जैसा खाना लगे।* *मैंने खाने की तारीफ़ की तो उन्होंने अपना विजिटिंग कार्ड देने को अपने केबिन में गये।* *काउंटर पर एक 3 खण्ड का स्टील का टिफिन रखा था।* *एक वेटर ने दूसरे से कहा"सुनील सर का खाना अंदर केबिन में रख दे ,बाद में खाएंगे" मैंने वेटर से पूछा क्या सुनील जी यहां नही खाते तो उसने जवाब दिया" सुनील सर कभी बाहर नही खाते, हमेशा घर से आया हुआ खाना ही खाते हैं*" *मैं अपने हाथ मे 670 रु के बिल को देख रहा था* 🌷🌷 ये कुछ वाकये हैं जिनसे मुझे समझ आया कि हम जिसे सही जीवन शैली समझते हैं वो हमें भृमित करने का जरिया मात्र है। हम मार्केटिंग के बैंक का ATM हैं जिसमें से कुशल मार्केटिंग वाले लोग मोटा पैसा निकाल लेते हैं। अक्सर जिन चीजों को हमे बेचा जाता है उन्हें बेचने वाले खुद इस्तेमाल नही करते। *हम फार्वड पोस्ट पर खूब हंसते हैं लेकिन अपनो के लिखे विचार चाहे कविता या लेख हों, महत्वहीन समझ इग्नोर करते हैं। कृपया इसे एक बार पढें और समझे.?* *शायद विचारणीय हो*। 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏
Jeewan Ki Haqeeqat

Sachcha Kissa

*आजकल की नालायक औलाद का इलाज*. अब 50+की पीढ़ी को बहुत समझदार होने की जरूरत है। इस तरह के केस हर दूसरे घर की कहानी हो गई है। *एक ऐसा ही सच्चा किस्सा आप को बताता हूं क्रपया पढें व अन्य बुजुर्गों को अवश्य भेजें* मेरे एक दोस्त के माता-पिता बहुत ही शान्त स्वभाव के थे मेरा मित्र उनकी इकलौती संतान था उसकी शादी हो चुकी थी। व उसके दो बच्चे थे। अचानक मां का देहांत हो जाता है। एक दिन मेरा मित्र अंकल को कहता है कि पापा आप गैरेज में शिफ्ट हो जाओ क्योंकि आपकी वजह से आपकी बहू को परेशानी होती है। माताजी के गुजरने के बाद घर के सारे काम उसे करने पड़ते हैं। और आपके सामने उसे साड़ी पहन कर कार्य करने में परेशानी होती है। अंकल बिना कोई बात किये गैरेज में शिफ्ट हो जाते हैं। करीब पन्द्रह दिन बाद बेटे को बुलाकर दस दिन का उसके पूरे परिवार के लिए विदेश ट्रिप का पास देते हैं और कहते हैं कि जा बेटा सभी को घुमा ला सभी का मन हल्का हो जाएगा। पुत्र के जाने के बाद अंकल ने अपना छः करोड़ का मकान तुरंत तीन करोड़ में बेच दिया। अपने लिए एक अपार्टमेंट में अच्छा फ्लैट लिया। तथा बेटे का सारा सामान एक दूसरा फ्लैट किराये पर ले कर उसमें शिफ्ट कर दिया। जब बेटा घूम कर वापस आया तो घर पर एक दरबान बैठा था उसने बेटे को बताया कि यह मकान तो बिक चुका है। जब बेटे ने पिता को फोन लगाया तो वह बन्द आ रहा था। उसे परेशानी में देख गार्ड बोला क्या पुराने मालिक को फोन कर रहे हो। उसके हां कहने पर वह बोला भाई उन्होंने अपना नंबर बदल लिया है आपके आने पर आपसे बात कराने की बोल कर गये थे। और गार्ड ने अपने फोन से नंबर लगा कर मेरे मित्र की अंकल से बात कराई फोन पर अंकल ने उसे वहीं रुकने के लिए कहा। थोड़ी देर में वहां एक कार आकर रुकी उसमें से अंकल नीचे उतरे उन्होंने मेरे मित्र को उसके किराये वाले फ्लैट की चाबी देते हुए कहा कि यह रही तेरे फ्लैट की चाबी एक साल का किराया मैंने दे दिया है अब तेरी मर्जी हो वैसे अपनी पत्नी को रख। और यह कह कर अंकल जी वहां से चले गए। और मेरा मित्र देखता रह गया। *यह एक नितांत सत्य जयपुर की ही घटना है* अतः अब बुजुर्गों को ऐसे नालायक बच्चों से साफ कह देना चाहिए कि हम तुम्हारे साथ नहीं रह रहे हैं तुम्हें हमारे साथ रहना है तो रहो अन्यथा अपना ठिकाना ढूंढ लो।
Sachcha Kissa

Bartanon Ki Aawaz

बर्तनों की आवाज़ देर रात तक आ रही थी, रसोई का नल चल रहा है, माँ रसोई में है.... तीनों बहुऐं अपने-अपने कमरे में सोने जा चुकी, माँ रसोई में है... माँ का काम बकाया रह गया था,पर काम तो सबका था; पर माँ तो अब भी सबका काम अपना ही मानती है.. दूध गर्म करके, ठण्ड़ा करके, जावण देना है, ताकि सुबह बेटों को ताजा दही मिल सके; सिंक में रखे बर्तन माँ को कचोटते हैं, चाहे तारीख बदल जाये,सिंक साफ होना चाहिये.... बर्तनों की आवाज़ से बहू-बेटों की नींद खराब हो रही है; बड़ी बहू ने बड़े बेटे से कहा; "तुम्हारी माँ को नींद नहीं आती क्या? ना खुद सोती है और ना ही हमें सोने देती है" मंझली ने मंझले बेटे से कहा; "अब देखना सुबह चार बजे फिर खटर-पटर चालू हो जायेगी, तुम्हारी माँ को चैन नहीं है क्या?" छोटी ने छोटे बेटे से कहा; "प्लीज़ जाकर ये ढ़ोंग बन्द करवाओ कि रात को सिंक खाली रहना चाहिये" माँ अब तक बर्तन माँज चुकी थी झुकी कमर, कठोर हथेलियां, लटकी सी त्वचा, जोड़ों में तकलीफ, आँख में पका मोतियाबिन्द, माथे पर टपकता पसीना, पैरों में उम्र की लड़खडाहट मगर, दूध का गर्म पतीला वो आज भी अपने पल्लू से उठा लेती है, और... उसकी अंगुलियां जलती नहीं है, क्योंकि वो माँ है । दूध ठण्ड़ा हो चुका, जावण भी लग चुका, घड़ी की सुईयां थक गई, मगर... माँ ने फ्रिज में से भिण्ड़ी निकाल ली और काटने लगी; उसको नींद नहीं आती है, क्योंकि वो माँ है! कभी-कभी सोचता हूं कि माँ जैसे विषय पर लिखना,बोलना,बताना,जताना क़ानूनन बन्द होना चाहिये; क्योंकि यह विषय निर्विवाद है, क्योंकि यह रिश्ता स्वयं कसौटी है! रात के बारह बजे सुबह की भिण्ड़ी कट गई, अचानक याद आया कि गोली तो ली ही नहीं; बिस्तर पर तकिये के नीचे रखी थैली निकाली, मूनलाईट की रोशनी में गोली के रंग के हिसाब से मुंह में रखी और गटक कर पानी पी लिया... बगल में एक नींद ले चुके बाबूजी ने कहा;"आ गई" "हाँ,आज तो कोई काम ही नहीं था" -माँ ने जवाब दिया, और लेट गई,कल की चिन्ता में पता नहीं नींद आती होगी या नहीं पर सुबह वो थकान रहित होती हैं, क्योंकि वो माँ है! सुबह का अलार्म बाद में बजता है, माँ की नींद पहले खुलती है; याद नहीं कि कभी भरी सर्दियों में भी, माँ गर्म पानी से नहायी हो उन्हे सर्दी नहीं लगती, क्योंकि वो माँ है! अखबार पढ़ती नहीं,मगर उठा कर लाती है; चाय पीती नहीं,मगर बना कर लाती है; जल्दी खाना खाती नहीं,मगर बना देती है, क्योंकि वो माँ है! माँ पर बात जीवनभर खत्म ना होगी, शेष अगली बार... और हाँ,अगर पढ़ते पढ़ते आँखों में आँसु आ जाये तो कृपया खुलकर रोइये और आंसू पोछ कर एक बार अपनी माँ को जादू की झप्पी जरूर दीजिये, क्योंकि वो किसी और की नही,आपकी ही माँ है! 🙂 माँ एक #share माँ के नाम जरूर कीजियेगा
Bartanon Ki Aawaz

A Older Mother Hindi Story

*वृद्ध माँ* रात को 11:30 बजे रसोई में बर्तन साफ कर रही है घर मे *#दो_बहुएँ* हैं। बर्तनों की आवाज से परेशान होकर वो पतियों को सास को *उल्हाना* देने को कहती है। वो कहती है *आपकी माँ को मना करो इतनी रात को बर्तन धोने के लिये हमारी नींद खराब होती है*। साथ ही *सुबह 4 बजे* उठकर फिर खट्टर पट्टर शुरू कर देती है *सुबह 5 बजे पूजा-आरती*, करके हमे सोने नही देती ना रात को ना ही सुबह। जाओ सोच क्या रहे हो जाकर माँ को मना करो । बड़ा बेटा खड़ा होता है और रसोई की तरफ जाता है रास्ते मे छोटे भाई के कमरे में से भी वो ही बाते सुनाई पड़ती जो उसके कमरे हो रही थी वो छोटे भाई के कमरे को खटखटा देता है छोटा भाई बाहर आता है, *दोनो भाई रसोई में जाते है और माँ को बर्तन साफ करने में मदद करने लगते है* , माँ मना करती पर वो नही मानते बर्तन साफ हो जाने के बाद *दोनों भाई माँ को बड़े प्यार से उसके कमरे में ले जाते है , तो देखते है पिताजी भी जग रहे है* । दोनो भाई माँ को बिस्तर पर बैठा कर कहते है *माँ सुबह जल्दी उठा देना हमे भी पूजा करनी है और सुबह पिताजी के साथ योगा करेंगे* , माँ बोलती ठीक है । दोनो बेटे सुबह जल्दी उठने लगे रात को 9:30 पर ही बर्तन मांजने लगे तो पत्नियां बोली माता जी करती है आप क्यु कर रहे हो बर्तन साफ तो *बेटे बोले हम लोगो की शादी करने के पीछे एक कारण यह भी था कि माँ की सहायता हो जायेगी* पर तुम लोग ये कार्य नही कर रही हो कोई बात नही हम अपनी माँ की सहायता कर देते है । *हमारी तो माँ है इसमें क्या बुराई है*। अगले तीन दिनों में घर मे पूरा बदलाव आ गया बहुवे जल्दी बर्तन इसलिये साफ करने लगी की नही तो उनके पति बर्तन साफ करने लगेंगे साथ ही सुबह भी वो भी पतियों के साथ ही उठने लगी और पूजा आरती में शामिल होने लगी । कुछ दिनों में पूरे घर के वातावरण में पूरा बदलाव आ गया बहुवे सास ससुर को पूरा सम्मान देने लगी । *माँ का सम्मान तब कम नही होता जब बहुऐं उनका सम्मान नही करती , माँ का सम्मान तब कम होता है जब बेटे माँ का सम्मान नही करे या माँ के कार्य मे सहयोग ना करे* । एक शेयर माँ के नाम...
A Older mother hindi story

Wah Khana Kha Night

वह खाना खा नाइट-सूट पहन बैड पर जा बैठी। आदत के अनुसार सोने से पहले पढ़ने के लिए किताब उठाई ही थी कि उसके मोबाइल-फोन पर एसएमएस की ट्यून बजी। जिस तरह हम दिन भर इकट्ठे घूमे-फिरे एक टेबल पर बैठ कर खाया। कितना मज़ा आया। इसी तरह एक ही बैड पर सोने में भी खुशी मिलती है। इंतज़ार कर रहा हूँ। उसने कुछ दिन पहले ही एक नई कंपनी में नौकरी शुरू की थी। एक सीनियर अफसर के साथ कंपनी के काम से दूसरे शहर में आई थी। दिन का काम निपटाकर वे एक होटल में ठहरे हुए थे। ऐसा बेहूदा मैसेज! सीनियर की तरफ से। उसने पल भर सोचा नहीं नहीं इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। बात अभी ही सँभालनी चाहिए। मैं एमडी से बात करती हूँ। उसे गुस्सा आ रहा था। इसी दौरान फिर मैसेज आया। तुम शिकायत करने के बारे में सोच रही हो। तुम जिससे भी शिकायत करोगी उसे भी यही इच्छा ज़ाहिर करनी है। तुम्हारे संपर्क में जो भी आएगा वह ऐसा कहे बिना नहीं रह सकेगा। तुम चीज ही ऐसी हो। मैं चीज हूँ एक वस्तु। मुझे लगता है इसका किसी लड़की के साथ पाला नहीं पड़ा। उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था। एक बार फिर एसएमएस आया। देखो! जिन हाथों को छूने से खुशी मिलती है उन हाथों से थप्पड़ भी पड़ जाए तो कोई बात नहीं। इंतज़ार कर रहा हूँ। इसकी हिम्मत देखोइंतज़ार कर रहा हूँ। फिर उसके मन में एक ख़्याल आया अगर वह आ गया तो?डरने की क्या बात है। उसने अपने आप को सहज करने की कोशिश की। यह एक अच्छा होटल है। ऐसे ही थोड़ा कुछ घट जाएगा। वह ख़्यालों में डूबी थी कि बैल बजी। उसने सोचा वेटर होगा। उसने चाय का आर्डर दे रखा था। दरवाजा खोला तो अफसर सामने था। वह अंदर आ गया। कल्पना ने भी कुछ न कहा। वह बैड के आगे से घूमता हुआ दूसरी तरफ बैड पर सिरहाने के सहारे बैठ गया। सर! आप कुर्सी पर बैठो आराम से। कल्पना ने सुझाया। यहाँ से टीवी ठीक दिखता है। अफसर ने अपनी दलील दी। सर! अभी वेटर आएगा। अजीब सा लगता है। कल्पना ने मन की बात रखी। नहीं नहीं कोई बात नहीं। ये सब मेरे जानकार हैं। बी कम्फर्टेबल। वेटर ने दरवाजा खटखटाया और यैस कहने पर भीतर आ गया। वेटर ने चाय की ट्रे रखी और पूछा मैम! चाय बना दूँ? और हाँ सुनकर चाय बनाने लगा। कल्पना ने फिर कहा सर ! आप इधर आ जाओ चाय पीने के लिए। कुर्सी पर आराम से पी जाएगी। वह कुर्सी पर आने के लिए उठा। कल्पना भी उठी। वेटर ने चाय का कप सर को पकड़ाने के लिए आगे किया ही था कि कल्पना ने खींच कर एक तमाचा अफसर के गाल पर मारते हुए कहा गैट आउट फ्राम माई रूम। और फिर एक पल रुककर बोली आपका ऐसा स्वागत मैं दरवाजे पर भी कर सकती थी। पर सोचा इस होटल के सारे वेटर आपके जानकार हैं उन्हें तो भी पता चलना चाहिए।

Wah Khana Kha Night

Prathna Ka Mol

🙏🙏 #प्रार्थना #का #मोल 🙏🙏 एक वृद्ध महिला एक सब्जी की दुकान पर जाती है उसके पास सब्जी खरीदने के पैसे नहीं होते है। वो दुकानदार से प्रार्थना करती है कि उसे सब्जी उधार दे दे पर दुकानदार मना कर देता है। उसके बार-बार आग्रह करने पर दुकानदार खीज कर कहता है तुम्हारे पास कुछ ऐसा है जिसकी कोई कीमत हो तो उसे इस तराजू पर रख दो मैं उसके वज़न के बराबर सब्जी तुम्हे दे दूंगा। वृद्ध महिला कुछ देर सोच में पड़ जाती है। क्योंकि उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं था। कुछ देर सोचने के बाद वह एक मुड़ा-तुड़ा कागज़ का टुकड़ा निकलती है और उस पर कुछ लिख कर तराजू पर रख देती है। दुकानदार ये देख कर हंसने लगता है। फिर भी वह थोड़ी सब्जी उठाकर तराजू पर रखता है। आश्चर्य!!! कागज़ वाला पलड़ा नीचे रहता है और सब्जी वाला ऊपर उठ जाता है। इस तरह वो और सब्जी रखता जाता है पर कागज़ वाला पलड़ा नीचे नहीं होता। तंग आकर दुकानदार उस कागज़ को उठा कर पढता है और हैरान रह जाता है कागज़ पर लिख था की परमात्त्मा आप सर्वज्ञ हो अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है दुकानदार को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। वो उतनी सब्जी वृद्ध महिला को दे देता है। पास खड़ा एक अन्य ग्राहक दुकानदार को समझाता है कि दोस्त आश्चर्य मत करो। केवल परमात्मा ही जानते हैं की प्रार्थना का क्या मोल होता है। वास्तव में प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है। चाहे वो एक घंटे की हो या एक मिनट की। यदि सच्चे मन से की जाये तो ईश्वर अवश्य सहायता करते हैं!! अक्सर लोगों के पास ये बहाना होता है की हमारे पास वक्त नहीं। मगर सच तो ये है कि परमात्मा को याद करने का कोई समय नहीं होता!! प्रार्थना के द्वारा मन के विकार दूर होते हैं और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का बल मिलता है। ज़रूरी नहीं की कुछ मांगने के लिए ही प्रार्थना की जाये। जो आपके पास है उसका धन्यवाद करना चाहिए। इससे आपके अन्दर का अहम् नष्ट होगा और एक कहीं अधिक समर्थ व्यक्तित्व का निर्माण होगा। प्रार्थना करते समय मन को ईर्ष्या द्वेष क्रोध घृणा जैसे विकारों से मुक्त रखें

Prathna ka mol

Yamraz Aur Bujurg Mahila

एक बुजुर्ग औरत मर गई, यमराज लेने आये। औरत ने यमराज से पूछा, आप मुझे स्वर्ग ले जायेगें या नरक। यमराज बोले दोनों में से कहीं नहीं। तुमनें इस जन्म में बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं, इसलिये मैं तुम्हें सिधे प्रभु के धाम ले जा रहा हूं। बुजुर्ग औरत खुश हो गई, बोली धन्यवाद, पर मेरी आपसे एक विनती है। मैनें यहां धरती पर सबसे बहुत स्वर्ग - नरक के बारे में सुना है मैं एक बार इन दोनों जगाहो को देखना चाहती हूं। यमराज बोले तुम्हारे कर्म अच्छे हैं, इसलिये मैं तुम्हारी ये इच्छा पूरी करता हूं। चलो हम स्वर्ग और नरक के रसते से होते हुए प्रभु के धाम चलेगें। दोनों चल पडें, सबसे पहले नरक आया। नरक में बुजुर्ग औरत ने जो़र जो़र से लोगो के रोने कि आवाज़ सुनी। वहां नरक में सभी लोग दुबले पतले और बीमार दिखाई दे रहे थे। औरत ने एक आदमी से पूछा यहां आप सब लोगों कि ऐसी हालत क्यों है। आदमी बोला तो और कैसी हालत होगी, मरने के बाद जबसे यहां आये हैं, हमने एक दिन भी खाना नहीं खाया। भूख से हमारी आतमायें तड़प रही हैं बुजुर्ग औरत कि नज़र एक वीशाल पतिले पर पडी़, जो कि लोगों के कद से करीब 300 फूट ऊंचा होगा, उस पतिले के ऊपर एक वीशाल चम्मच लटका हुआ था। उस पतिले में से बहुत ही शानदार खुशबु आ रही थी। बुजुर्ग औरत ने उस आदमी से पूछा इस पतिले में कया है। आदमी मायूस होकर बोला ये पतिला बहुत ही स्वादीशट खीर से हर समय भरा रहता है। बुजुर्ग औरत ने हैरानी से पूछा, इसमें खीर है तो आप लोग पेट भरके ये खीर खाते क्यों नहीं, भूख से क्यों तड़प रहें हैं। आदमी रो रो कर बोलने लगा, कैसे खायें ये पतिला 300 फीट ऊंचा है हममें से कोई भी उस पतिले तक नहीं पहुँच पाता। बुजुर्ग औरत को उन पर तरस आ गया सोचने लगी बेचारे, खीर का पतिला होते हुए भी भूख से बेहाल हैं। शायद ईश्वर नें इन्हें ये ही दंड दिया होगा यमराज बुजुर्ग औरत से बोले चलो हमें देर हो रही है। दोनों चल पडे़, कुछ दूर चलने पर स्वरग आया। वहां पर बुजुर्ग औरत को सबकी हंसने,खिलखिलाने कि आवाज़ सुनाई दी। सब लोग बहुत खुश दिखाई दे रहे थे। उनको खुश देखकर बुजुर्ग औरत भी बहुत खुश हो गई। पर वहां स्वरग में भी बुजुर्ग औरत कि नज़र वैसे ही 300 फूट उचें पतिले पर पडी़ जैसा नरक में था, उसके ऊपर भी वैसा ही चम्मच लटका हुआ था। बुजुर्ग औरत ने वहां लोगो से पूछा इस पतिले में कया है। स्वर्ग के लोग बोले के इसमें बहुत टेस्टी खीर है। बुजुर्ग औरत हैरान हो गई उनसे बोली पर ये पतीला तो 300 फीट ऊंचा है आप लोग तो इस तक पहुँच ही नहीं पाते होगें उस हिसाब से तो आप लोगों को खाना मिलता ही नहीं होगा, आप लोग भूख से बेहाल होगें पर मुझे तो आप सभी इतने खुश लग रहे हो, ऐसे कैसे लोग बोले हम तो सभी लोग इस पतिले में से पेट भर के खीर खाते हैं औरत बोली पर कैसे,पतिला तो बहुत ऊंचा है। लोग बोले तो क्या हो गया पतिला ऊंचा है तो यहां पर कितने सारे पेड़ हैं, ईश्वर ने ये पेड़ पौधे, नदी, झरने हम मनुष्यों के उपयोग के लिये तो बनाईं हैं हमनें इन पेडो़ कि लकडी़ ली, उसको काटा, फिर लकड़ीयों के तुकडो़ को जोड़ के विशाल सिढी़ का निर्माण किया उस लकडी़ की सिढी़ के सहारे हम पतिले तक पहुंचते हैं और सब मिलकर खीर का आंनद लेते हैं बुजुर्ग औरत यमराज कि तरफ देखने लगी यमराज मुसकाये बोले *ईशवर ने स्वर्ग और नरक मनुष्यों के हाथों में ही सौंप रखा है,चाहें तो अपने लिये नरक बना लें, चाहे तो अपने लिये स्वरग, ईशवर ने सबको एक समान हालातो में डाला हैं* *उसके लिए उसके सभी बच्चें एक समान हैं, वो किसी से भेदभाव नहीं करता* *वहां नरक में भी पेेड़ पौधे सब थे, पर वो लोग खुद ही आलसी हैं, उन्हें खीर हाथ में चाहीये,वो कोई कर्म नहीं करना चाहते, कोई मेहनत नहीं करना चाहते, इसलिये भूख से बेहाल हैं* *कयोकिं ये ही तो ईश्वर कि बनाई इस दुनिया का नियम है,जो कर्म करेगा, मेहनत करेगा, उसी को मीठा फल खाने को मिलेगा* दोस्तों ये ही आज का सुविचार है, स्वर्ग और नरक आपके हाथ में है मेहनत करें, अच्छे कर्म करें और अपने जीवन को स्वर्ग बनाएं। और हां, ये पोस्ट अगर आपको ज़रा सी भी पसंद आई हो तो आगे शेयर करना मत भुलियेगा।
Yamraz aur bujurg mahila

Bejan Rakhi A Hindi Story

बेजान राखी! आज साक्षी की खुशी का ठिकाना नहीं था। सुबह-सुबह सूरज की किरणें उसके कमरे में पड़ते ही वो हर्षोल्लास के साथ अपने बिस्तर से उठी और बिस्तर के पास रखी हुई चप्पल को पहनकर नींद से भरी आँखें मलती हुई वो कमरे से बाहर आयी। अम्मा ने उसको आते देखा तो वो मुस्कुरा पड़ीं और साक्षी को ज़ोर से गले लगाया। नींद से भरी थीं उसकी आँखें अब भी पर उस दिन के महत्व के आगे उसकी नींद बहुत छोटी मालूम होती थी। "अम्मा! चल ना बाज़ार चलते हैं।" "नाश्ता करके चलते हैं। इतनी जल्दी क्या है?" "नहीं, अम्मा चलो ना," साक्षी ने बच्चों वाली ज़िद्द करी। "अरे लड़की थम जा, खाले कुछ, पहले। बाज़ार भागा थोड़ी जा रहा है," अम्मा हँसते हुए बोली। साक्षी अपना मुँह फुला के कुर्सी पर बैठ गई मानो किसी ने उसके मुँह में दो लड्डू डाल दिए हों। उसका मुँह बिल्कुल गेंद की तरह गोल और गुस्से में लाल हो गया था। अम्मा रसोईघर में खाना पका रही थी और उस खाने की खुशबू ने साक्षी के टमाटर जैसे मुँह को थोड़ा शांत किया। "अम्मा! आज भैये के पसंद के पकवान बना रही हो?" साक्षी का उत्सुकता भरी आवाज़ में सवाल आया। "हाँ, क्यों? तुझे कुछ और खाना है?" "बस हमेशा अपनी चलाता है वो। आज उसका दिन है तो अपने पसंद के ही सारे पकवान खाएगा क्या? ख़ैर, छोड़ो ! माफ़ किया उसे, उसका दिन है आज।" अम्मा बातें सुनकर थोड़ा हँस पड़ी और पकवान बनाने में लग गई। नाश्ता करके दोनों माँ-बेटी तैयार हुए और बाज़ार की ओर रवाना हो गए। हर तरफ मिठाई , कपड़े और राखियों का जमावड़ा लगा हुआ था। छोटे-छोटे बच्चे बड़ी खुशी से बाज़ार देख रहे थे, उनकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। ऊपर आसमान में कुछ पतंगें भी दिख रही थीं, और हर तरफ दुकान के बैनर लटके हुए थे। हर जगह ऑफ़र्स के नाम पर भीड़ को आकर्षित किया जा रहा था। भीड़ बहुत थी पर कोई परेशानी में नहीं दिख रहा था। राखियों की बिक्री तो ऐसे हो रही थी मानो कोई मुफ़्त में बाँट रहा हो। ऐसे ही किसी दुकान पर साक्षी और अम्मा राखी देखने गए। साक्षी उत्साह से भरी उछल-कूद रही थी। इतनी राखियाँ देख कर उसका सब लेने का मन कर रहा था। अम्मा को उम्मीद भरी आँखों से देख रही थी मानो कह रही हो कि सबसे अच्छी राखी लेना भैया के लिए। साक्षी हमेशा से एक राखी और एक धागा लिया करती थी मानो अपने भैया को कहना चाहती हो की मेरी डबल रक्षा करना। उस दिन भी उसने यही किया। "चाचा ! ये राखी और ये धागा, दोनों पैक कर दो। आज मेरे भैया घर आने वाले हैं। कल उन्हें राखी बाँधूँगी और बहुत सारे पैसे लूटूंगी।" ये बात सुनकर अम्मा और दुकान वाला चाचा ज़ोर से हँस पड़े। अम्मा ने चाचा को पैसे दिए और दोनों घर की तरफ बढ़ चले। थोड़ी दूर चलते ही एक पुलिस का दस्ता बाज़ार पर कड़ी निगरानी करता दिखा। "अम्मा! ये लोग इतनी छानबीन क्यों कर रहे हैं?" साक्षी के माथे पर एक अजीब सी शिकन थी। "पता नहीं बेटा! फिर से कुछ हुआ होगा!" साक्षी से रहा नहीं गया, उसने पुलिस वाले अंकल से जाकर पूछा, "अंकल इतनी छानबीन क्यों?" "अभी-अभी आतंकी हमला हुआ है, तो सारा शहर हाई अलर्ट पर है, आप लोग जल्दी से घर पर जाइए।" साक्षी का दिल धड़कने लगा। घर जाते ही उसने टीवी चलाया तो पता लगा कि कुछ जवान एक हमले में शहीद हो गए हैं। एक-एक करके शहीदों के नाम स्क्रीन पर दिखने लगे। "शहीद मेज़र अनूप सिंह अपने देश की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।" वो नाम और तस्वीर देख कर साक्षी के हाथ से राखी का पैकेट नीचे गिर गया और वो राखी बेजान हो गई। अम्मा घुटने के बल नीचे बैठ गई और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। "ऐ मेरे वतन के लोगों! जरा आँख में भर लो पानी। जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो क़ुर्बानी।" ये गाना टीवी पर गूँजने लगा और साक्षी ने अपने अम्मा के कंधे पर हाथ रखा और बड़े ज़ोर से बोला, "जय हिन्द!" सिर्फ़ 14 साल की साक्षी उठी और उस बेजान पड़ी राखी को उठाया और उस धागे को भी और उन्हें लेकर अकेले ही बाहर निकल पड़ी। उसके घर के पास मिलिट्री कैंप था। उसने मंदिर से 10-10 रुपए के धागे खरीदे और कैंप में जाकर हर फौजी के हाथ में वो धागे बाँधे। एक वो आज था और एक ये आज है। साक्षी 22 बरस की हो गई है और वो 8 साल से इसी कैंप में जाकर हर फौजी भाई को राखी बाँधती है। पर वो 8 साल पहले खरीदी हुई राखी आज भी घर में उसके कमरे में रखी अलमारी के बक्से में बंद पड़ी है, बिल्कुल बेजान। ~राहुल छाबड़ा Credit : The Anonymous Writer हिंदी
Bejan Rakhi a Hindi Story

Charitraheen Hindi Story

#चरित्रहीन स्त्री और पुरूष के लिए बहुत ही सुन्दर रचना दो मिनट का समय निकालकर एक बार आवश्य पढ़े ! स्त्री तबतक 'चरित्रहीन' नहीं हो सकती जबतक कि पुरुष चरित्रहीन न हो। संन्यास लेने के बाद गौतमबुद्ध ने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की। एक बार वे एक गांव गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई और बोली आप तो कोई राजकुमार लगते हैं। क्या मैं जान सकती हूँ कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र पहनने का क्या कारण है ? बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि तीन प्रश्नों के हल ढूंढने के लिए उन्होंने संन्यास लिया। बुद्ध ने कहा- हमारा यह शरीर जो युवा व आकर्षक है वह जल्दी ही वृद्ध होगा फिर बीमार व अंत में मृत्यु के मुंह में चला जाएगा। मुझे वृद्धावस्था, बीमारी व मृत्यु के कारण का ज्ञान प्राप्त करना है। बुद्ध के विचारो से प्रभावित होकर उस स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। शीघ्र ही यह बात पूरे गांव में फैल गई। गांववासी बुद्ध के पास आए और आग्रह किया कि वे इस स्त्री के घर भोजन करने न जाएं क्योंकि वह चरित्रहीन है। बुद्ध ने गांव के मुखिया से पूछा- क्या आप भी मानते हैं कि वह स्त्री चरित्रहीन है ? मुखिया ने कहा कि मैं शपथ लेकर कहता हूं कि वह बुरे चरित्र वाली स्त्री है।आप उसके घर न जाएं। बुद्ध ने मुखिया का दायां हाथ पकड़ा और उसे ताली बजाने को कहा। मुखिया ने कहा- मैं एक हाथ से ताली नहीं बजा सकता क्योंकि मेरा दूसरा हाथ आपके द्वारा पकड़ लिया गया है। बुद्ध बोले इसी प्रकार यह स्वयं चरित्रहीन कैसे हो सकती है जबतक कि इस गांव के पुरुष चरित्रहीन न हो। अगर गांव के सभी पुरुष अच्छे होते तो यह औरत ऐसी न होती इसलिए इसके चरित्र के लिए यहाँ के पुरुष जिम्मेदार हैं l यह सुनकर सभी लज्जित हो गये लेकिन आजकल हमारे समाज के पुरूष लज्जित नहीं गौरवान्वित महसूस करते है क्योंकि यही हमारे "पुरूष प्रधान" समाज की रीति एवं नीति है l ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे या फिर मूजे मेसेज(Msg) कर के बता बताइएे और अगर कहानी अछि लगे तो शेयर ज़रूर करें
Charitraheen hindi story

Husband Wife Hindi Story

सुबह सुबह मिया बीवी के झगड़ा हो गया, बीवी गुस्से मे बोली - बस, बहुत कर लिया बरदाश्त, अब एक मिनट भी तुम्हारे साथ नही रह सकती। पति भी गुस्से मे था, बोला "मैं भी तुम्हे झेलते झेलते तंग आ चुका हुं। पति गुस्से मे ही दफ्तर चले गया पत्नी ने अपनी मां को फ़ोन किया और बताया के वो सब छोड़ छाड़ कर बच्चो समेत मायके आ रही है, अब और ज़्यादा नही रह सकती इस जहन्नुम मे। मां ने कहा - बेटी बहु बन के आराम से वही बैठ, तेरी बड़ी बहन भी अपने पति से लड़कर आई थी, और इसी ज़िद्द मे तलाक लेकर बैठी हुई है, अब तुने वही ड्रामा शुरू कर दिया है, ख़बरदार जो तुने इधर कदम भी रखा तो... सुलह कर ले पति से, वो इतना बुरा भी नही है। मां ने लाल झंडी दिखाई तो बेटी के होश ठिकाने आ गए और वो फूट फूट कर रो दी, जब रोकर थकी तो दिल हल्का हो चुका था, पति के साथ लड़ाई का सीन सोचा तो अपनी खुद की भी काफ़ी गलतियां नज़र आई। मुहं हाथ धोकर फ्रेश हुई और पति के पसंद की डीश बनाना शुरू कर दी, और साथ स्पेशल खीर भी बना ली, सोचा कि शाम को पति से माफ़ी मांग लुंगी, अपना घर फिर भी अपना ही होता है पति शाम को जब घर आया तो पत्नी ने उसका अच्छे से स्वागत किया, जैसे सुबह कुछ हुआ ही ना हो पति को भी हैरत हुई। खाना खाने के बाद पति जब खीर खा रहा था तो बोला डिअर, कभी कभार मैं भी ज़्यादती कर जाता हुं, तुम दिल पर मत लिया करो, इंसान हुं, गुस्सा आ ही जाता है"। पति पत्नी का शुक्रिया अदा कर रहा था, और पत्नी दिल ही दिल मे अपनी मां को दुआएं दे रही थी, जिसकी सख़्ती ने उसको अपना फैसला बदलने पर मजबूर किया था, वरना तो जज़्बाती फैसला घर तबाह कर देता। अगर माँ-बाप अपनी शादीशुदा बेटी की हर जायज़ नाजायज़ बात को सपोर्ट करना बंद कर दे तो रिश्ते बच जाते है। . प्लीज़ शेयर जरूर करना।
Husband wife Hindi story

Vivah Ke Do Vars

विवाह के दो वर्ष हुए थे जब सुहानी गर्भवती होने पर अपने घर पंजाब जा रही थी ...पति शहर से बाहर थे ... जिस रिश्ते के भाई को स्टेशन से ट्रेन मे बिठाने को कहा था वो लेट होती ट्रेन की वजह से रुकने में मूड में नहीं था इसीलिए समान सहित प्लेटफॉर्म पर बनी बेंच पर बिठा कर चला गया .... गाड़ी को पांचवे प्लेटफार्म पर आना था ... गर्भवती सुहानी को सातवाँ माह चल रहा था. सामान अधिक होने से एक कुली से बात कर ली.... बेहद दुबला पतला बुजुर्ग...पेट पालने की विवशता उसकी आँखों में थी ...एक याचना के साथ सामान उठाने को आतुर .... सुहानी ने उसे पंद्रह रुपये में तय कर लिया और टेक लगा कर बैठ गई.... तकरीबन डेढ़ घंटे बाद गाडी आने की घोषणा हुई ...लेकिन वो बुजुर्ग कुली कहीं नहीं दिखा ... कोई दूसरा कुली भी खाली नज़र नही आ रहा था.....ट्रेन छूटने पर वापस घर जाना भी संभव नही था ... रात के साढ़े बारह बज चुके थे ..सुहानी का मन घबराने लगा ... तभी वो बुजुर्ग दूर से भाग कर आता हुआ दिखाई दिया .... बोला चिंता न करो बिटिया हम चढ़ा देंगे गाडी में ...भागने से उसकी साँस फूल रही थी ..उसने लपक कर सामान उठाया ...और आने का इशारा किया सीढ़ी चढ़ कर पुल से पार जाना था कयोकि अचानक ट्रेन ने प्लेटफार्म चेंज करा था जो अब नौ नम्बर पर आ रही थी वो साँस फूलने से धीरे धीरे चल रहा था और सुहानी भी तेज चलने हालत में न थी गाडी ने सीटी दे दी भाग कर अपना स्लीपर कोच का डब्बा ढूंढा .... डिब्बा प्लेटफार्म खत्म होने के बाद इंजिन के पास था। वहां प्लेटफार्म की लाईट भी नहीं थी और वहां से चढ़ना भी बहुत मुश्किल था .... सुहानी पलटकर उसे आते हुए देख ट्रेन मे चढ़ गई...तुरंत ट्रेन रेंगने लगी ...कुली अभी दौड़ ही रहा था ... हिम्मत करके उसने एक एक सामान रेलगाड़ी के पायदान के पास रख दिया । अब आगे बिलकुल अन्धेरा था .. जब तक सुहानी ने हडबडाये कांपते हाथों से दस का और पांच का का नोट निकाला ... तब तक कुली की हथेली दूर हो चुकी थी... उसकी दौड़ने की रफ़्तार तेज हुई .. मगर साथ ही ट्रेन की रफ़्तार भी .... वो बेबसी से उसकी दूर होती खाली हथेली देखती रही ... और फिर उसका हाथ जोड़ना नमस्ते और आशीर्वाद की मुद्रा में .... उसकी गरीबी ... उसका पेट .... उसकी मेहनत ... उसका सहयोग ... सब एक साथ सुहानी की आँखों में कौंध गए .. उस घटना के बाद सुहानी डिलीवरी के बाद दुबारा स्टेशन पर उस बुजुर्ग कुली को खोजती रही मगर वो कभी दुबारा नही मिला ... आज वो जगह जगह दान आदि करती है मगर आज तक कोई भी दान वो कर्जा नहीं उतार पाया उस रात उस बुजुर्ग की कर्मठ हथेली ने किया था ... सच है कुछ कर्ज कभी नही उतारे जा सकते......!
Vivah ke do vars

Ghar Ghar Ki Kahani

कल मैं आफिस से जल्दी घर चला आया। आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूं कल 8 बजे ही चला आया। सोचा था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा फिर कहूंगा कि कहीं बाहर खाना खाने चलते हैं। बहुत साल पहले हम ऐसा करते थे। घर आया तो पत्नी टीवी देख रही थी। मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है मैं कम्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई तो मैं चाय पीता हुआ आफिस के काम करने लगा। अब मन में था कि पत्नी के साथ बैठ कर बातें करूंगा फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा पर कब 8 से 11 बज गए पता ही नहीं चला। पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते हुए मैंने कहा कि खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे गप करेंगे। पत्नी खुश हो गई। हम खाना खाते रहे इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा और मैं खाते-खाते सीरियल में डूब गया। सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था। जब नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी। बहुत अफसोस हुआ। मन में सोच कर घर आया था कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा। पर यहां तो शाम क्या आधी रात भी निकल गई। ऐसा ही होता है ज़िंदगी में। हम सोचते कुछ हैं होता कुछ है। हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे पर हम कभी नहीं जीते। हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे पर नहीं कर पाते। आधी रात को सोफे से उठा हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा दिन के काम से थकी हुई सो गई थी। मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोच रहा था। पच्चीस साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था। पीले रंग के शूट में मुझे मिली थी। फिर मैने इससे शादी की थी। मैंने वादा किया था कि सुख में दुख में ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा। पर ये कैसा साथ? मैं सुबह जागता हूं अपने काम में व्यस्त हो जाता हूं। वो सुबह जागती है मेरे लिए चाय बनाती है। चाय पीकर मैं कम्यूटर पर संसार से जुड़ जाता हूं वो नाश्ते की तैयारी करती है। फिर हम दोनों आफिस के काम में लग जाते हैं मैं आफिस के लिए तैयार होता हूं वो साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है। फिर हम दोनों भविष्य के काम में लग जाते हैं। मैं एकबार आफिस चला गया तो इसी बात में अपनी शान समझता हूं कि मेरे बिना मेरा आफिस का काम नहीं चलता वो अपना काम करके डिनर की तैयारी करती है। देर रात मैं घर आता हूं और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं। एक पूरा दिन खर्च हो जाता है जीने की तैयारी में। वो पंजाबी शूट वाली लड़की मुझ से कभी शिकायत नहीं करती। क्यों नहीं करती मैं नहीं जानता। पर मुझे खुद से शिकायत है। आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है सबसे कम उसी की परवाह करता है। क्यों? कई दफा लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते। हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए काम करते हैं। हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं। कल से मैं सोच रहा हूं वो कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे। क्या हम गाड़ी टीवी फोन कम्यूटर कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं? मैं तो सोच ही रहा हूं आप भी सोचिए कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे यूं जाया मत कीजिए। अपने प्यार को पहचानिए। उसके साथ समय बिताइए। जो अपने माँ बाप भाई बहन सागे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश्ता जोड़ आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा किया उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही। एक दिन अफसोस करने से बेहतर है सच को आज ही समझ लेना कि ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है। कब मुट्ठी से वो निकल जाएगी पता भी नहीं चलेगा।

Ghar Ghar Ki Kahani

Meri Kahani Meri Zabani

प्यार की कहानी आज अकस्मात् जब यूं ही फ़ोन के कॉन्टेक्ट्स चेक कर रहा था तभी अचानक तुम्हारे नाम पर मेरी थिरकती हुई उंगलियां रुक-सी गयीं दिल की धड़कनों के साथ... तुम्हारा नंबर आज भी सेव्ड है मेरे फ़ोन लिस्ट में, कभी-कभी देखकर दिल को सुकून से भरने देता हूँ... तुम्हारी तस्वीरों को तो डिलीट कर दिया था मैंने… कमज़ोर कर रही थी मुझे, जकड़ रही थी मुझे तुम्हारी यादों में । दर्द बढ़ता ही जाता था तुम्हें सिर्फ तस्वीर में देखकर, तुम्हारा पास न होना बहुत कचोटता है मुझे कल ही मैंने तुम्हारा फेसबुक टाइमलाइन चेक किया था ख़ुद से बचाकर, तुम्हारी हर पोस्ट के कमेंट्स पढे थे मैंने, न जाने कितनों ने तारीफ़ में न जाने क्या-क्या लिख़ रखा था… ग़ुरूर सा हो रहा था अपनी पसन्द पर; डर था तुम्हारे भोलेपन पर और जलन सी भी हो रही थी... मगर तसल्ली सी है की तुम्हारी आदत आज भी वैसी ही, ठीक वैसी जैसे पहले थी.... ”किसी को भाव नहीं देती तुम… किसी को भी नहीं शायद याद हो तुम्हें लगभग दो साल पहले या यूं कहूं तो आने वाले साल में दो साल हो ही जाएंगे । मैं रात के आठ बजे ठिठुरते हुए सड़क से मेसेज करता था तुम्हें.. कभी बायां हाथ पॉकेट में तो कभी दायां, बड़ी ठण्ड थी उन दिनों… मैं ठीक से टाइप भी नहीं कर पा रहा था और तुम घर में बैठी मुझे लेट रिप्लाई दिया करती थी । मैं रात-रात भर ठण्ड में छत की सीढ़ियों पर बैठा तुमसे बातें करता था गिरती हुई ओस से जैसे दोस्ती हो गई थी मेरी । मैं रात भर जगा हूँ पहले तुम्हारे सोने के इंतज़ार में… जब तुम असाइनमेंट लिखा करती थी तब सुना है मैंने तुम्हारे पलटते हुए पन्ने की आवाज़ों को, उसपर चलती और घिसती हुई कलम को फिर तुम्हारे सो जाने के बाद तुम्हारी साँसे सुनी हैं मैंने, तुम्हारी करवटों को महसूस किया है, तुम्हारी चादर पर पड़ी सिलवटों को अपनी चादर पर डाल कर उससे तुम्हारे अक़्स बनाएं हैं मैंने… कभी फ़ोन नहीं काटा............ फिर तुम्हारे उठने से पहले अपनी नींद से लड़कर तुमको मेसेज भी तो किया है ” Good Morning ” ताकि जब उठो तो सबसे पहले मेरा प्यार रहे तुम्हारे मोबाइल स्क्रीन पर । “चाय” बनाते वक़्त सिर और कंधे के बीच में फ़ोन रखकर तुमसे बातें की हैं की तुम्हें मेरी हैडफ़ोन से आती हुई शोरगुल से ऐतराज़ था ख़ैर.... सोच रहा था तुम्हारा व्हाट्सप्प स्टेटस भी चेक कर लूं,लास्ट सीन भी चेक किये तो बहुत दिन हो गएं हैं,शायद तुम्हें याद नहीं होगा पिछली बार हमारी आखिरी बात भी इसी पर हुई थी मेरे लगातर मेसेज से तुम नाराज़ सी थी मगर अब तो खुश होगी ही तुम एक साल होने को हैं और मैंने तुम्हे तंग नहीं किया है और न कोई कोशिश की है… तुम्हें समझ में नहीं आता,क्या बार-बार मेसेज करते रहते हो… कोई काम-वाम है या नहीं, कोई मतलब हो तभी मेसेज किया करो” इस बार मैंने तुम्हें खुदको ब्लॉक करने का कोई मौका भी नहीं दिया, अपनी ख़ुद्दार मोहब्बत को और कितना ज़लील होने देता... कितना.... ? अब मैं तुम्हें कैसे समझाउं की जो मतलब से होता है वो व्यापार होता है प्यार नहीं, मैंने तो बस प्यार का मतलब जाना है किसी मतलब से प्यार नहीं किया तुम्हें..... तुम्हें कॉल नहीं करूंगा मैं… न ही तुमसे मिलने की कोई चाहत सी है, बस यूं ही आज तुम्हारे नाम का दीदार हुआ तो आँखों से दर्द सा कुछ रिसने लगा था… सो लिख़ दिया और ये भी किसी मेसेंजर के मेसेज की तरह क्रॉस-सर्किल में डाल दिया जाएगा, क्यों ...ऐसा ही होगा न (तुम्हारे लिए) आख़िरी बार अलविदा
Meri Kahani Meri Zabani

Hindi Story Baap Beta

एक व्यक्ति आफिस में देर रात तक काम

करने के बाद थका-हारा घर पहुंचा दरवाजा

खोलते ही उसने देखा कि उसका छोटा सा

बेटा सोने की बजाय उसका इंतज़ार कर रहा

है अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा पापा क्या

मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ

हाँ -हाँ पूछो क्या पूछना है पिता ने कहा

बेटा पापा आप एक घंटे में कितना कमा

लेते हैं इससे तुम्हारा क्या लेना देना

तुम ऐसे बेकार के सवाल क्यों कर रहे

हो पिता ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया

बेटा मैं बस यूँ ही जाननाचाहता हूँ

प्लीज बताइए कि आप एक घंटे में कितना

कमाते हैं पिता ने गुस्से से उसकी तरफ

देखते हुए कहा नहीं बताऊंगा तुम जाकर

सो जाओ यह सुन बेटा दुखी हो गया

और वह अपने कमरे में चला गया

व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोच

रहा था कि आखिर उसके बेटे ने ऐसा क्यों

पूछा पर एक -आध घंटा बीतने के बाद वह

थोडा शांत हुआ फिर वह उठ कर बेटे

के कमरे में गया और बोला क्या तुम सो

रहे हो नहीं जवाब आया मैं सोच रहा

था कि शायद मैंने बेकार में ही तुम्हे डांट

दिया।दरअसल दिन भर के काम से मैं

बहुत थक गया था व्यक्ति ने कहा

सारी बेटा मै एक घंटे में १०० रूपया कमा

लेता हूँ थैंक यूं पापा बेटे ने ख़ुशी से बोला

और तेजी से उठकर अपनी आलमारी की

तरफ गया वहां से उसने अपने गोल्लक

तोड़े और ढेर सारे सिक्के निकाले और

धीरे -धीरे उन्हें गिनने लगा

पापा मेरे पास 100 रूपये हैं क्या

मैं आपसे आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ

प्लीज आप ये पैसे ले लोजिये और

कल घर जल्दी आ जाइये मैं आपके

साथ बैठकर खाना खाना चाहता हूँ

दोस्तों इस तेज रफ़्तार जीवन में

हम कई बार खुद को इतना व्यस्त

कर लेते हैं कि उन लोगो के

लिए ही समय नहीं निकाल पाते

जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा

अहमयित रखते हैं इसलिए हमें ध्यान

रखना होगा कि इस आपा-धापी भरी

जिंदगी में भी हम अपने माँ-बाप जीवन

साथी बच्चों और अभिन्न मित्रों के

लिए समय निकालें वरना एक दिन हमें

अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें

पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया !!

Do Bhai Ki Kahani

दो भाई समुद्र के किनारे टहल रहे थे

दोनों के बीच किसी बात को लेकर कोई

बहस हो गई ! बड़े भाई ने छोटे भाई की

थप्पड़ मार दिया ! छोटे भाई ने कुछ नहीं

कहा ! फिर रेत पर लिखा -आज मेरे भाई

ने मुझे मारा ! अगले दोनों फिर से समुंदर

किनारे घुमने के लिए निकले ! छोटा भाई

समुन्द्र में नहाने लगा ! और अचानक डूबने

लगा ! बड़े भाई ने उसे बचाया ! छोटे भाई ने

पत्थर पे लिखा ! आज मेरे भाई ने मुझे बचाया !

बड़े भाई ने पुचा ! जब मेने तुझे मारा था !

तब तुमने रेत पर लिखा ! और आज तुम्हे बचाया

तो पत्थर पे लिखा क्यों ! रोते हुए छोटे भाई ने

कहा -जब कोई हमे दुःख दे तो हमे रेत पर

लिखना चाहिए ! ताकि वो जल्दी मिट जाए !

लेकिन जब कोई हमारे लिए अच्छा करता है

तो पत्थर पर लिखना चाहिए !जो मिट ना पाए !

मतलब ये है की हमे अपने साथ हुई बुरी घटना

को भूल जाना चाहिए ! जब की अच्छी चाटना को

सदेव {हमेशा} याद रखना चाहिए !!

आदमी गुस्से हो तो उसे प्यार की जरूरत होती है

अगर हम भी अपना गुस्सा दिखाए तो बुरा अंजाम होता है !!

Ek Dard Bhari Prem Kahaani

!!एक प्रेमी की दर्द भरी बेवफाई की कहानी!!

एक अंधी लड़की हमेशा इस सोच में डूबी रहती थी

की कोई मुझे प्यार करेगा की नहीं

मुझे किसी का प्यार मिलेगा की नहीं

एक बार राह चलते चलते वह कहीं गिर पड़ी

उसे एक लड़के ने उठाया सहारा दिया और उसे

लेकर उसकी घर की तरफ चल पड़ा

इस दरम्यान उनके मध्य बहुत सी बातें होती है

घर छोड़ते वक्त लड़का लड़की से कहता है अगर

मैं तुम्हारी ज़िन्दगी का हिस्सा बनना चाहूँ तो

क्या तुम स्वीकार करोगीमैं तुम्हे बहुत प्यार दूंगा

और बहुत प्यार से रखूँगा(22) साल से लड़की जिस

दो लफ्ज़ को वो सुनना चाहती थीवो लफ्ज़ इस लड़के

से सुन बरबस उसकी आँखों में आंसू आ गए

और कहा ये जानते हुए भी की मेरी आँखें नहीं हैं

फिर भीलड़के ने कहा : हाँ मैं तुम्हे

तुम्हारे अस्तित्व चाहने लगा हूँ

इस पर लड़की रोने लगी और बोली :

काश ! अगर मै तुम्हे देख पाती तो तुम्ही से

शादी करतीकुछ साल बीत गए और उस

लड़के ने उस लड़कीकी आँखों का ओपरेशन कराया

ओपरेशन कामयाब हुआ।

डॉक्टर जब उसकी आँखों से पट्टी उतारने लगते है

तो लड़की कहती है की सबसे पहले मुझे उस

इंसान को चेहरा दिखाइये जिसकी वजह

से मै अब दुनिया को देखने जा रही हु

डॉक्टर उस लड़के को उस लड़की के सामने

लाते है और लड़की की आँखों की पट्टी उतारते है

लड़की देखती है की वो लड़का भी अँधा है

तब लड़का कहता है क्या तुम मुझसे शादी करोगी

लड़की जवाब देती है मैंने मेरी ज़िन्दगी अँधेरे में

गुजारी हैमुझे पता है अँधापन कैसा होता है

मै फिर से मेरीज़िन्दगी को अंधेपन में नहीं

डाल सकतीमै तुमसे शादी नहीं कर सकती

तब लड़का उस लड़की को एक पत्र देकर चला जाता है।

जब लड़की उस पत्र को देखती है तो उसमे लिखा होता है

________ऐ बेवफा ________

तुम अपना ख्याल रखने के साथ साथ मेरी इन आँखों

का भी ख्याल रखना" तुम्हारा प्रेमी

Ek Dard Bhari Prem Kahaani

Best Story

स्टेशन से एक 18-19 वर्षीय खूबसूरत लड़की चढ़ी जिसका

मेरे सामने वाली बर्थ पर रिजर्वेशन था उसके पापा उसे छोड़ने आये थे।

अपनी सीट पर वैठ जाने के बादउसने अपने पिता से कहा

डैडी आप जाइये अबट्रेन तो दस मिनटखड़ी रहेगी यहाँ दस

मिनटका स्टॉपेज है।उसके पिता ने उदासी भरे शब्दों केसाथ

कहा "कोई बात नहीं बेटा10 मिनट और तेरे साथ बिता लूँगा

अब तो तुम्हारे क्लासेज सुरु हो रहेहै काफी दिन बाद आओगी तुम।

लड़की शायद दिल्ली में अध्ययन कर रही होगी क्योंकि उम्र

और वेशभूषा से विवाहित नहीं लग रही थी ।ट्रेन चलने लगी

तो उसने खिड़की से बाहर प्लेटफार्म पर खड़े पिता कोहाथ हिलाकर बाय कहा।

बाय डैडी अरे ये क्या हुआ आपको !अरे नहीं प्लीज"पिता की आँखों

में आंसू थे।ट्रेन अपनी रफ्तार पकडती जारहीथी और पिता रुमाल से

आंसू पोंछतेहुए स्टेशन से बाहर जा रहे थे।लड़की ने फोन लगाया"

हेलो मम्मीये क्या है यार!जैसे ही ट्रेन स्टार्ट हुई डैडी तो रोने लग गये

अब मैं नेक्स्ट टाइम कभी भी उनको स्टेसन आने के लिए नहीं कहूँगी

भले अकेली आजाउंगी ऑटो से अच्छा बायपहुँचते ही कॉल करुँगी

डैडी का खयाल रखना ओके।"मैं कुछ देर तक लड़की को सिर्फ

इसआशा से देखता रहा कि पारदर्शी चश्मे से झांकती उन आँखों

से मुझे अश्रुधारा दिख जाए परमुझे निराशा ही हाथ लगीउन आँखों

में नमी भी नहीं थी।कुछ देर बाद लड़की ने फिर किसीको फोन लगाया-

"हेलो जानू कैसे होमैं ट्रेन में बैठ गई हूँहाँ अभी चली है

यहाँ सेकल अर्ली-मोर्निंग दिल्ली पहुँचजाउंगी लेने आजाना लव यूटू यार

मैंने भी बहुत मिस किया तुम्हे बस कुछ घंटेऔर सब्र करलो कल तो पहुँच हीजाऊँगी।"

मैं मानता हूँ कि आज के युगमें बच्चों को उच्चशिक्षा हेतु बाहर भेजना आवश्यक है

पर इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि इसके कई दुष्परिणाम भी हैं।

मैं यह नहीं कह रहा कि बाहर पढने वाले सारे लड़के लड़कियां ऐंसे होते हैं।

मैं सिर्फ उनकी बात कर रहा हूँजो पाश्चात्य संस्कृति की इस हवामें अपने

कदम बहकने से नहीं रोकपाते और उनको माता- पिताभाई-बहन किसी का प्यार

याद नहीं रह जाता सिर्फ एक प्यार ही याद रहता है!!!वो ये भी भूल जाते है

कि उनकेमाता- पिता ने कैसे-कैसे साधनों कोजुटा कर और किन सपनों

कोसंजो कर अपने दिल के टुकड़े को अपने से दूर पड़ने भेजा है।

लेकिन बच्चे के कदम बहकने से उसकी परिणति क्या होती है !!

Dahej Ki Bimaari

Dahej ki bimaari

Anajaane Mein Ham Use Hee Thes Pahunchate Hain Jo Hamaaree Madad

एक डॉक्टर बड़ी ही तेजी से हॉस्पिटल में घुसा

उसे किसी एक्सीडेंट के मामले में तुरंत बुलाया गया था !

अंदर घुसते ही उसने देखा कि जिस लड़के का एक्सीडेंट हुआ है !

उसके परिजन बड़ी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहे हैं !

डॉक्टर को देखते ही लड़के का पिता बोला !

आप लोग अपनी ड्यूटी ठीक से क्यों नहीं करते !

आपने आने में इतनी देर क्यों लगा दी !

अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ तो इसके जिम्मेदार आप होंगे!

डॉक्टर ने विनम्रता कहा -आई ऍम सॉरी -

मैं हॉस्पिटल में नहीं था और कॉल आने के बाद जितना

तेजी से हो सका मैं यहाँ आया हूँ कृपया अब आप लोग शांत

हो जाइये ताकि मैं इलाज कर सकूँ !शांत हो जाइये लड़के का

पिता गुस्से में बोला क्या इस समय अगर आपका बेटा होता

तो आप शांत रहते अगर किसी की लापरवाही की वजह से

आपका अपना बेटा मर जाए तो आप क्या करेंगे पिता बोले ही जा रहा था !

भगवान चाहेगा तो सब ठीक हो जाएगा आप लोग दुआ कीजिये

मैं इलाज के लिए जा रहा हूँ !और ऐसा कहते हुए डॉक्टर

ऑपरेशन थिएटर में प्रवेश कर गया !

बाहर लड़के का पिता अभी भी बुदबुदा रहा था !

सलाह देना आसान होता है जिस पर बीतती है वही जानता है !

करीब डेढ़ घंटे बाद डॉक्टर बाहर निकला और मुस्कुराते हुए बोला

भगवान् का शुक्र है आपका बेटा अब खतरे से बाहर है !

यह सुनते ही लड़के के परिजन खुश हो गए और

डॉक्टर से सवाल पर सवाल पूछने लगे !

वो कब तक पूरी तरह से ठीक हो जायेगा उसे डिस्चार्ज कब करेंगे !

पर डॉक्टर जिस तेजी से आया था उसी तेजी से

वापस जाने लगा और लोगों से अपने सवाल नर्स से पूछने को कहा !

ये डॉक्टर इतना घमंडी क्यों है ऐसी क्या जल्दी है कि वो दो

मिनट हमारे सवालों का जवाब नहीं दे सकता लड़के के पिता ने नर्स से कहा !

नर्स रोटी हुई बोली आज सुबह डॉक्टर साहब के लड़के की मौत हो गयी

और जब हमने उन्हें फ़ोन किया था तब वे उसका

अंतिम संस्कार करने जा रहे थे ! और बेचारे अब आपके

बच्चे की जान बचाने के बाद अपने लाडले का अंतिम

संस्कार करने के लिए वापस लौट रहे हैं !

यह सुन लड़के के परिजन और पिता स्तब्ध रह गए

और उन्हें अपनी गलती का ऐहसास हो गया !

फ्रेंड्सदोस्तों बहुत बार हम किसी सिचुएशन के बारे में अच्छी

तरह जाने बिना ही उसपर रियेक्ट कर देते हैं ! पर हमें चाहिए कि हम

खुद पर नियंत्रण रखें और पूरी स्थिति को समझे बिना कोई

नकारात्मक प्रतिक्रिया न दें। वर्ना अनजाने में हम उसे ही

ठेस पहुंचा सकते हैं जो हमारा ही भला सोच रहा हो !!

Kabuliwala By Rabindranath Tagore

मेरी पाँच बरस की बेटी मिनी से घड़ीभर भी बोले बिना नहीं रहा जाता। एक दिन वह सवेरे-सवेरे ही बोली "बाबूजी रामदयाल दरबान है न वह 'काक' को 'कौआ' कहता है। वह कुछ जानता नहीं न बाबूजी।" मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने दूसरी बात छेड़ दी। "देखो बाबूजी भोला कहता है - आकाश में हाथी सूँड से पानी फेंकता है इसी से वर्षा होती है। अच्छा बाबूजी भोला झूठ बोलता है है न?" और फिर वह खेल में लग गई।

मेरा घर सड़क के किनारे है। एक दिन मिनी मेरे कमरे में खेल रही थी। अचानक वह खेल छोड़कर खिड़की के पास दौड़ी गई और बड़े ज़ोर से चिल्लाने लगी "काबुलीवाले ओ काबुलीवाले!"

कँधे पर मेवों की झोली लटकाए हाथ में अँगूर की पिटारी लिए एक लंबा सा काबुली धीमी चाल से सड़क पर जा रहा था। जैसे ही वह मकान की ओर आने लगा मिनी जान लेकर भीतर भाग गई। उसे डर लगा कि कहीं वह उसे पकड़ न ले जाए। उसके मन में यह बात बैठ गई थी कि काबुलीवाले की झोली के अंदर तलाश करने पर उस जैसे और भी दो-चार बच्चे मिल सकते हैं।

काबुली ने मुसकराते हुए मुझे सलाम किया। मैंने उससे कुछ सौदा खरीदा। फिर वह बोला "बाबू साहब आप की बेटी कहाँ गई?"

मैंने मिनी के मन से डर दूर करने के लिए उसे बुलवा लिया। काबुली ने झोली से किशमिश और बादाम निकालकर मिनी को देना चाहा पर उसने कुछ न लिया। डरकर वह मेरे घुटनों से चिपट गई। काबुली से उसका पहला परिचय इस तरह हुआ। कुछ दिन बाद किसी ज़रुरी काम से मैं बाहर जा रहा था। देखा कि मिनी काबुली से खूब बातें कर रही है और काबुली मुसकराता हुआ सुन रहा है। मिनी की झोली बादाम-किशमिश से भरी हुई थी। मैंने काबुली को अठन्नी देते हुए कहा "इसे यह सब क्यों दे दिया? अब मत देना।" फिर मैं बाहर चला गया।

कुछ देर तक काबुली मिनी से बातें करता रहा। जाते समय वह अठन्नी मिनी की झोली में डालता गया। जब मैं घर लौटा तो देखा कि मिनी की माँ काबुली से अठन्नी लेने के कारण उस पर खूब गुस्सा हो रही है।

काबुली प्रतिदिन आता रहा। उसने किशमिश बादाम दे-देकर मिनी के छोटे से ह्रदय पर काफ़ी अधिकार जमा लिया था। दोनों में बहुत-बहुत बातें होतीं और वे खूब हँसते। रहमत काबुली को देखते ही मेरी बेटी हँसती हुई पूछती "काबुलीवाले ओ काबुलीवाले! तुम्हारी झोली में क्या है?"

रहमत हँसता हुआ कहता "हाथी।" फिर वह मिनी से कहता "तुम ससुराल कब जाओगी?"

इस पर उलटे वह रहमत से पूछती "तुम ससुराल कब जाओगे?"

रहमत अपना मोटा घूँसा तानकर कहता "हम ससुर को मारेगा।" इस पर मिनी खूब हँसती।

हर साल सरदियों के अंत में काबुली अपने देश चला जाता। जाने से पहले वह सब लोगों से पैसा वसूल करने में लगा रहता। उसे घर-घर घूमना पड़ता मगर फिर भी प्रतिदिन वह मिनी से एक बार मिल जाता।

एक दिन सवेरे मैं अपने कमरे में बैठा कुछ काम कर रहा था। ठीक उसी समय सड़क पर बड़े ज़ोर का शोर सुनाई दिया। देखा तो अपने उस रहमत को दो सिपाही बाँधे लिए जा रहे हैं। रहमत के कुर्ते पर खून के दाग हैं और सिपाही के हाथ में खून से सना हुआ छुरा।

कुछ सिपाही से और कुछ रहमत के मुँह से सुना कि हमारे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने रहमत से एक चादर खरीदी। उसके कुछ रुपए उस पर बाकी थे जिन्हें देने से उसने इनकार कर दिया था। बस इसी पर दोनों में बात बढ़ गई और काबुली ने उसे छुरा मार दिया।

इतने में "काबुलीवाले काबुलीवाले" कहती हुई मिनी घर से निकल आई। रहमत का चेहरा क्षणभर के लिए खिल उठा। मिनी ने आते ही पूछा ''तुम ससुराल जाओगे?" रहमत ने हँसकर कहा "हाँ वहीं तो जा रहा हूँ।"

रहमत को लगा कि मिनी उसके उत्तर से प्रसन्न नहीं हुई। तब उसने घूँसा दिखाकर कहा "ससुर को मारता पर क्या करुँ हाथ बँधे हुए हैं।"

छुरा चलाने के अपराध में रहमत को कई साल की सज़ा हो गई।

काबुली का ख्याल धीरे-धीरे मेरे मन से बिलकुल उतर गया और मिनी भी उसे भूल गई।

कई साल बीत गए।

आज मेरी मिनी का विवाह है। लोग आ-जा रहे हैं। मैं अपने कमरे में बैठा हुआ खर्च का हिसाब लिख रहा था। इतने में रहमत सलाम करके एक ओर खड़ा हो गया।

पहले तो मैं उसे पहचान ही न सका। उसके पास न तो झोली थी और न चेहरे पर पहले जैसी खुशी। अंत में उसकी ओर ध्यान से देखकर पहचाना कि यह तो रहमत है।

मैंने पूछा "क्यों रहमत कब आए?"

"कल ही शाम को जेल से छूटा हूँ" उसने बताया।

मैंने उससे कहा "आज हमारे घर में एक जरुरी काम है मैं उसमें लगा हुआ हूँ। आज तुम जाओ फिर आना।"

वह उदास होकर जाने लगा। दरवाजे़ के पास रुककर बोला "ज़रा बच्ची को नहीं देख सकता?"

शायद उसे यही विश्वास था कि मिनी अब भी वैसी ही बच्ची बनी हुई है। वह अब भी पहले की तरह "काबुलीवाले ओ काबुलीवाले" चिल्लाती हुई दौड़ी चली आएगी। उन दोनों की उस पुरानी हँसी और बातचीत में किसी तरह की रुकावट न होगी। मैंने कहा "आज घर में बहुत काम है। आज उससे मिलना न हो सकेगा।"

वह कुछ उदास हो गया और सलाम करके दरवाज़े से बाहर निकल गया।

मैं सोच ही रहा था कि उसे वापस बुलाऊँ। इतने मे वह स्वयं ही लौट आया और बोला "'यह थोड़ा सा मेवा बच्ची के लिए लाया था। उसको दे दीजिएगा।"

मैने उसे पैसे देने चाहे पर उसने कहा 'आपकी बहुत मेहरबानी है बाबू साहब! पैसे रहने दीजिए।' फिर ज़रा ठहरकर बोला "आपकी जैसी मेरी भी एक बेटी हैं। मैं उसकी याद कर-करके आपकी बच्ची के लिए थोड़ा-सा मेवा ले आया करता हूँ। मैं यहाँ सौदा बेचने नहीं आता।"

उसने अपने कुरते की जेब में हाथ डालकर एक मैला-कुचैला मुड़ा हुआ कागज का टुकड़ा निकला औऱ बड़े जतन से उसकी चारों तह खोलकर दोनो हाथों से उसे फैलाकर मेरी मेज पर रख दिया। देखा कि कागज के उस टुकड़े पर एक नन्हें से हाथ के छोटे-से पंजे की छाप हैं। हाथ में थोड़ी-सी कालिख लगाकर कागज़ पर उसी की छाप ले ली गई थी। अपनी बेटी इस याद को छाती से लगाकर रहमत हर साल कलकत्ते के गली-कूचों में सौदा बेचने के लिए आता है।

देखकर मेरी आँखें भर आईं। सबकुछ भूलकर मैने उसी समय मिनी को बाहर बुलाया। विवाह की पूरी पोशाक और गहनें पहने मिनी शरम से सिकुड़ी मेरे पास आकर खड़ी हो गई।

उसे देखकर रहमत काबुली पहले तो सकपका गया। उससे पहले जैसी बातचीत न करते बना। बाद में वह हँसते हुए बोला "लल्ली! सास के घर जा रही हैं क्या?"

मिनी अब सास का अर्थ समझने लगी थी। मारे शरम के उसका मुँह लाल हो उठा।

मिनी के चले जाने पर एक गहरी साँस भरकर रहमत ज़मीन पर बैठ गया। उसकी समझ में यह बात एकाएक स्पष्ट हो उठी कि उसकी बेटी भी इतने दिनों में बड़ी हो गई होगी। इन आठ वर्षों में उसका क्या हुआ होगा कौन जाने? वह उसकी याद में खो गया।

मैने कुछ रुपए निकालकर उसके हाथ में रख दिए और कहा "रहमत! तुम अपनी बेटी के पास देश चले जाओ।"

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Spiritual Story Of Inspiration In Hindi

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई।

आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।

राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है । अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा।

इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी।

राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं। दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला।

मित्रों जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा

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Best Hindi Story

एक राजमहल में कामवाली और उसका बेटा काम करते थे

एक दिन राजमहल में कामवाली के बेटे को हीरा मिलता है

वो माँ को बताता हैकामवाली होशियारी से वो हीरा बाहर

फेककर कहती है ये कांच है हीरा नहीं

कामवाली घर जाते वक्त चुपके से वो हीरा उठाके ले जाती है

वह सुनार के पास जाती है

सुनार समझ जाता है इसको कही मिला होगा

ये असली या नकली पता नही इसलिए पुछने आ गई

सुनार भी होशियारीसें वो हीरा बाहर फेंक कर कहता है

ये कांच है हीरा नहींकामवाली लौट जाती है

सुनार वो हीरा चुपके सेे उठाकर जौहरी के पास ले जाता है

जौहरी हीरा पहचान लेता है

अनमोल हीरा देखकर उसकी नियत बदल जाती है

वो भी हीरा बाहर फेंक कर कहता है ये कांच है हीरा नहीं

जैसे ही जौहरी हीरा बाहर फेंकता है

उसके टुकडे टुकडे हो जाते है

🌹यह सब एक राहगीर निहार रहा था

वह हीरे के पास जाकर पूछता है

कामवाली और सुनार ने दो बार तुम्हे फेंका

तब तो तूम नही टूटे फिर अब कैसे टूटे?

हीरा बोला

कामवाली और सुनार ने दो बार मुझे फेंका

क्योंकि

वो मेरी असलियत से अनजान थे

लेकिन

जौहरी तो मेरी असलियत जानता था

तब भी उसने मुझे बाहर फेंक दिया

यह दुःख मै सहन न कर सका

इसलिए मै टूट गया

ऐसा ही

हम मनुष्यों के साथ भी होता है !!!

जो लोग आपको जानते है

उसके बावजुत भी आपका दिल दुःखाते है

तब यह बात आप सहन नही कर पाते!

इसलिए

कभी भी अपने स्वार्थ के लिए करीबियों का दिल ना तोड़ें!!!

हमारे आसपास भी

बहुत से लोग हीरे जैसे होते है !

उनकी दिल और भावनाओं को

कभी भी मत दुखाएंऔर ना ही

उनके अच्छे गूणों के टुकड़े करिये!!!

Best hindi story

Do Bhaiyon Ka Pyar

दो भाई थे ।आपस में बहुत प्यार था। खेत अलग अलग थे आजु बाजू।बड़े भाई शादीशुदा था । छोटा अकेला ।एक बार खेती बहुत अच्छी हुई अनाज बहुत हुआ ।खेत में काम करते करते बड़े भाई ने बगल के खेत में छोटे भाई से खेत देखने का कहकर खाना खाने चला गया।उसके जाते ही छोटा भाई सोचने लगा । खेती तो अच्छी हुई इस बार आनाज भी बहुत हुआ । मैं तो अकेला हूँ । बड़े भाई की तो गृहस्थी है । मेरे लिए तो ये अनाज जरुरत से ज्यादा है ।

भैया के साथ तो भाभी बच्चे है ।उन्हें जरुरत ज्यादा है।ऐसा विचारकर वह 10 बोरे अनाज बड़े भाई के अनाज में डाल देता है।बड़ा भाई भोजन करके आता है । उसके आते छोटा भाई भोजन के लिए चला जाता है।

भाई के जाते ही वह विचरता है ।मेरा गृहस्थ जीवन तो अच्छे से चल रहा हैभाई को तो अभी गृहस्थी जमाना हैउसे अभी जिम्मेदारिया सम्हालना है मै इतने अनाज का क्या करूँगाऐसा विचारकर वो 10 बोरे अनाज छोटे भाई के खेत में डाल दिया। दोनों भाई के मन में हर्ष थाअनाज उतना का उतना ही था और हर्ष स्नेह वात्सल्य बढ़ा हुआ था। सोच अच्छी रखो प्रेम बढेंगा !!दुनिया बदल जायेंगी !!

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Ek Ladka Aur Ek Ladki Ki Love Story

Full Heart Touching Love Story Of The Day In Hindi. Ek Ladka Aur Ek Ladki Ek Dusre Se Bahut Pyar Karte The… Wo Humesha Ek Saath Jeene Marne Ki Kasme Khaya Karte The…. Par Wo Dono Alg Jati Ke They. Ladki Janti Thi Ki Uske Mummy Papa (Mom Dad) Kabhi Uske Pyar Ko Kabul Nahi Karengre…. Isliye Usne Us Ladke Se Baat Kar KUsko Bhul Jane Ko Kaha…. Ladke Ne Usko Bahut Samjhane KiKoshish Ki, Par Wo Ladki Nahi Mani.. Wo Apne Dil Par Pattar Rakh Kar Us Ladke Se Alag Ho Gayi… Par Usko Bhul Jana Uss Ladki K BasMai Nahi Tha… Kyuki Wo Uss Ladke Ko Apni Jaan Se Bhi Jayada Pyar Karti Thi… Par Wo Majbur Thi Kyuki Wo Dono Alag Jati Ke They. Aise Hi Kuchh Mahine Beet Gaye… Ek Din Achanak, Wo Ladka Us Ladki K Ghar ParAaya Or Usko Bola Ki, Tum Mujhe Bhul Gayi, Par Mai Tumko Nahi Bhula Paya….. Please Ye Latter Padho…. Ladki Ne Wo Latter Hath Mai Lete Hue Us Ladke Ko Kaha Ki, Jaan KyaMain Tumko Hug Kar Sakti Hu….??? Please (Aur Uski Aankho Me Aasu Aa Gaye) Ladka Muskurate Hue Bola Ki Kyu Nahi…. Ladki Ne Usko Rote Rote Gale Lagaya Aur Boli Ki Please Mujhe Maaf Kar Do…. I LOVE YOU, Ladke Ne Mukurate Hue Usko Bola, I LOVe YOU TOO, Mujhe Der Ho Rahi H Take Care… Aur Wo Ladka Waha Se Chala Gaya, Us Ladki Ne Wo Letter KholaAur Padhrne Lagi… Usme Likha Tha…. “Jaan Main Tumhe Pagalo Ki TarahMiss Karta Hu, Aur Kal MujheMare Hue Pura Ek Saal Ho Jayega, ILOVEYOU MY SWEET GIRL. Please Kal Meri Kabar Par Phool Dalne Aa Jana… Ye Sub Padh Kar Ladki Rone Lagi… Wo Puri Raat So Nahi Payi… Aru Agle Din Wo Uske Kabar Pe Phool Dal K Kabristan Se Rote Hue BaharAayi, Usko Aapne Par Bahut Pachhtawa Ho Raha Tha…Ke Uski Wajah Se Us Ladke Ki Jaan Gayi , Kash Wo Us Waqt Us Ladke Se Breakup Na Kati, To Sayad Aaj WoLadka Jinda Hota… Ye Sochte Sochte Wo Ladki Nadi(River) K Pass Jaa Rahi Thi Ki Tabhi Usko Wo Ladka Wapas Muskurata Huaa Dikha, Wo Ladki Pagalo Ki Tarah Rote Rote Uske Pass Bhaagi… Aur Uska Hath Pakad Lati H.. Aas Pass K Log Us Ladki Ko Dekh KChilla Rahe The, Lakin Ladki Ne Pichhe Nahi Dekha, Wo To Us Ki Aanko Mai Kho Chuki Thi Aur Log Chilla Chilla Kar Kah Rahe The Are Koi Roko Is Ladki Ko, Pani Bahut Tez H Aur Ye Doob K Mar Jayegi…. Shayad Kuchh Mohabbatein Aisi Bhi Hoti H…..........
Ek Ladka Aur Ek Ladki ki love story

Hindi Story On Envy

एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े - बड़े आलू साथ लेकर आएं। उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। जो शिष्य जितने व्यक्तियों से ईर्ष्या करता है वह उतने ज्यादा आलू लेकर आए।
अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए किसी के पास 4 आलू थे तो किसी के पास 6 तो किसी के पास 8 आलू थे । गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी जाएं खाते-पीते सोते-जागते ये आलू सदैव साथ रहने चाहिए। शिष्यों को कुछ भी समझ में नहीं आया लेकिन वे क्या करते गुरु का आदेश था। दो-चार दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए। जैसे - तैसे उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु के पास पहुंचे।
गुरु ने कहा यह सब मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था। जब मात्र सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगने लगे तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं उनका कितना बोझ आपके मन पर रहता होगा। यह ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है जिसके कारण आपके मन में भी बदबू भर जाती है ठीक इन आलूओं की तरह इसलिए अपने मन से गलत भावनाओं को निकाल दो यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो मत करो।
इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा। यह सुनकर सभी शिष्यों ने आलुओं के साथ - साथ अपने मन से ईर्ष्या को भी निकाल फेंका। अतः आप सब भी इस ईर्ष्या रूपी दानव को अपने मन से निकाल फेंके और अपने मन को साफ़ सुथरा और हल्का कर दे फिर देखिएगा मन में अच्छे अच्छे ख्याल ही आयेंगे और सभी काम खुद ब खुद अच्छे होने लगेंगे ।

Hindi Stori Ek Ladka

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए कुछ सामान बेचा करता थाएक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थीउसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा उससे खाना मांग लेगापहला दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला जिसे देखकर वह घबरा गयाऔर बजाय खाने के उसनेपानी का एक गिलास माँगा लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है इसलिए वह एक बड़ा गिलास दूध का ले आई लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया कितने पैसे दूं लड़के ने पूछा पैसे किस बात के लड़की ने जवाव में कहामाँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिएतो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँजैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा उसे न केवल शारीरिक तौर परशक्ति भी मिल चुकी थी बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयीलोकलडॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दियाबड़े डाक्टर को मरीज देखने के लिए बुलाया गयाजैसे ही उसने लड़की के कस्बे का नाम सुना उसकी आँखों में चमक आ गयीवह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गयाउसने उस लड़की को देखा एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वहउसकी जान बचाने के लिएजमीन-आसमान एक कर देगाउसकी मेहनत और लग्न रंग लायीऔर उस लड़की कि जान बच गयीडॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उसलड़की के इलाज का बिल लियाउस बिल के कौने में एक नोट लिखा औरउसे उस लड़की के पास भिजवा दिया लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरागयीउसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगीफिर भी उसने धीरे से बिल खोला रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पैन से लिखे नोट पर गयीजहाँ लिखा था एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका हैनीचे उस नेक डॉक्टर के हस्ताक्षर थेख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू टपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा हे भगवान! आपका बहुत-बहुत धन्यवादआपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों के द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका हैअगर आप दूसरों परअच्छाई करोगे तो आपके साथ भी अच्छा ही होगा !!

Dil Ko Chhoo Jane Wali Hindi Kahani

दिल छू लेने वाली कहानी

एक बार जरूर पढे

एक बेरोजगार बेटे की माँ

उसकी जेब रोज टटोलती थी

बेटा चोरी से कभी कभी देख लेता

और सोचता काश नौकरी मिल जाती

माँ की पैसो की प्यास बुझा पता।

पर माँ तो जेब में सल्फास की

गोलिया ढूँढती थी कही बेटा तंग

हो कर खा न ले।

बेटा सोचता था बेरोजगार होना भी

एक अभिशाप है।

शायद दुनिया में नौकरी न

करना भी सब से बड़ा पाप है।

माँ की भावनाओ को वो न समझ

पाया और एक दिन बेरोजगारी से तंग

होकर सल्फास की गोली ले आया वो

सोचा माँ रोज जेब टटोलती है

पैसा नहीं पाती है और शर्म से

कुछ नहीं बोलती है।

शाम को बेटे ने जो ही गोली को

होठो से लगाया

तो दोस्तों माँ का दिल बड़े जोर से

धड्का माँ का दिल जल उठा और

ऊबाल खाया

माँ दौड़ी दौडी गई बेटे के पास

और बोली

क्या हुआ बेटा क्यों उदास है

तू आज बहुत दुखी

है मुझे ये अहसास है।

मेरा सब कुछ तू ही है

बेटा ये याद रखना तू

मेरा अनमोल धन है

तेरा कोई मोल नहीं

इस दुनिया में तेरे से बढ़ कर

मेरे लिए कुछ और नहीं

माँ रो कर बोली

जिस दिन तुम हमसे

रिश्ता तोड़ दोगे उस दिन

हम भी दुनिया छोड़ देगे।

बेटा भी इतने पर रो पड़ा और

बोला माँ आप हमें इतना प्यार

करती हो तो सच बोलना आप

मेरे जेब में क्या देखती थी।

माँ और जोर से रो पड़ी बोली

बेरोजगारी क्या है ये बेटा मै

जानती हूँ तेरे रग रग को

पहचानती हूँ कही

नादानी में कुछ कर न ले

कही खा कर कुछ

गोलिया अपनी जान ना देना दे

तेरे जेब में मै

रोज उन गोलियों को ढूढ़टी थी

बेटा और जोर से रो पड़ा।

माँ बोली आज तेरा जेब देखना

भूल गई बेटा

मेरा दिल अभी बहुत जोर से

भपका इस लिए तेरे

पास आई हूँ और जेब की तरफ

जैसे ही माँ ने हाथ बढाया

बेटा रोते हुए बोला

माँ तू जो ढूढ़ रही है

यहाँ है मेरे मुठी में

आज जो थोडा सा देर कर देती

तो मुझे शायद नहीं पाती

मै भी कितना पागल हूँ

मै सोचता था माँ जेब मै पैसे देखती है

और वो ख़ुशी मै आप को 1 महीना

हो गया नहीं दे पाया इस लिए

माँ मैंने ये कदम उठाया।

माँ तो माँ ही होती है दोस्तों

ये बात याद रखना अगर वो कुछ

गलत भी आप के साथ कर रही है

तो उसमे भी आप की भलाई ही होगी

ये मेरा विश्वास है दोस्तो

आपकी माँ से ज्यादा आपकी परेशानी

कोई और नही समझ सकता

अगर आप के जीवन मे कोई भी

परेशानी है तो प्लीज कोई गलत कदम

उठाने से पहले माँ को अपनी परेशानी

बताये

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Heart Touching

एक छोटा सा बच्चा अपने दोनों हाथों में एक एक एप्पल लेकर खड़ा था. ☺ . उसके पापा ने मुस्कराते हुए कहा कि"बेटा एक एप्पल मुझे दे दो"😇. . इतना सुनते ही उस बच्चे ने एक एप्पल को दांतो से कुतर लिया.😑.. . उसके पापा कुछ बोल पाते उसके पहले ही उसने अपने दूसरे एप्पल को भी दांतों से कुतर लिया. ☺ . अपने छोटे से बेटे की इस हरकत को देखकर 😢 बाप ठगा सा रह गया और उसके चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई थी.... 😱 . तभी उसके बेटे ने अपने नन्हे हाथ आगे की ओर बढाते हुए पापा को कहा.... 😊 . "पापा ये लो ये वाला ज्यादा मीठा है... 😃 . शायद हम कभी कभी पूरी बात जाने बिना निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं.... ☺ . किसी ने क्या खूब लिखा है: नजर का आपरेशन तो सम्भव है, पर नजरिये का नही..!!! 😉 . फर्क सिर्फ सोच का होता है...... 😢 . वरना , 😃 वही सीढ़ियां ऊपर भी जाती है , और निचे भी आती हैं ☺
Heart Touching

Hindi Kahaniyan

एक सेठ जी थे -

जिनके पास काफी दौलत थी

सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी

परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी शराबी निकल गया

जिससे सब धन समाप्त हो गया

बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो

मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?

सेठ जी कहते कि

"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे"

एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि तभी उनका दामाद घर आ गया

सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू जिनमे अर्शफिया थी दिये

दामाद लड्डू लेकर घर से चला

दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया

उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगेमिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया

सेठ जी लड्डू लेकर घर आये सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया

सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली

सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा

देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में

इसलिये कहते हैं कि भाग्य से

ज्यादा

और

समय

से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो

झूला जितना पीछे जाता है उतना ही आगे आता है।एकदम बराबर।

सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।

जिंदगी का झूला पीछे जाए तो डरो मत वह आगे भी आएगा।

बहुत ही खूबसूरत लाईनें

किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये

कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता!

डरिये वक़्त की मार सेबुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता!

अकल कितनी भी तेज ह़ोनसीब के बिना नही जीत सकती!

बीरबल अकलमंद होने के बावजूदकभी बादशाह नही बन सका!!

""ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है!

इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!

रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है !!! "

Ek Maa Ki Kahani

एक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थी तभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये समीप आया माँ के तन को छूकर हल्के हल्के से हिलाया माँ अलसाई सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी तभी उस नन्हें ने हलवा खाने की जिद कर दी माँ ने उसे पुचकारा और अपनी गोदी में ले लिया फिर पास ही रखे ईटों के चूल्हे का रुख किया फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी सी कढाई रख दी और आग जलाकर कुछ देर मुन्ने को ताकती रही फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी क्या सुनोगे तब तक कोई परियों बाली कहानी मुन्ने की आंखें अचानक खुशी से थी खिल गयी जैसे उसको कोई मुँह मांगी मुराद ही मिल गयी माँ उबलते हुये पानी में कल्छी ही चलती रही परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया चटाई पर बैठे बैठे ही लेटा और फिर वहीं सो गया माँ ने उसे गोद में ले लिया और धीरे से मुस्कायी फिर न जाने क्यूँ उसकी आंख भर आयी जैसा दिख रहा था वहां पर सब वैसा नहीं था घर में रोटी की खातिर एक पैसा भी नहीं था राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था? न जाने कब से घर में चूल्हा ही नहीं जला था चूल्हा भी तो माँ के आंसुओं से ही बुझा था फिर मुन्ने को वो बेचारी हलवा कहां से खिलाती अपने जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती अपनी मजबूरी उस नन्हें मन को मां कैसे समझाती या फिर फालतू में ही मुन्नें पर क्यों झुंझलाती? हलवे की बात वो कहानी में टालती रही जब तक वो सोया नहीं बस पानी उबालती रही

Story Of The Day In Hindi

मेरे एक बहुत अच्छ दोस्त हैे जो एक स्कूल के प्रिंसिपल हैं शिक्षा के क्षेत्र में उनका नाम है और वो एक बहुत काबिल प्रशासक हैं उन्होंने अपनी एक टीचर को सबके बीच में बहुत जोर से डांटा दो घंटे बाद स्टाफ रूम में फिर डाँटा छठे पीरियड में फिर एक बार सभी टीचर्स के बीच में डांट दिया लड़की बेचारी वहीं सबके बीच फफक के रो पड़ी फिर आया आखिरी पीरियड

उसमें उस दिन पूरे स्टाफ की एक मीटिंग थी सब बैठे प्रिंसिपल ने उनसे पूछा क्यों ? आया मज़ा ? सबके बीच में यूँ डांट खा के कैसा लगता है ? बुरा लगा न ?

उन बच्चों को भी बुरा लगता होगा जिन्हें तुम रोजाना डांटती हो अपनी खीज उतारने के लिए मार देती हो उन्हें गधा नालायककामचोर और न जाने क्या क्या बोलती हो कितना होते होंगे वो मैं इतने दिन से तुम्हे समझा रहा हूँ तुम्हे समझ नहीं आ रहा था आज मैं तुमसे नाराज नही था मैंने तुम्हे सिर्फ ये अहसास दिलाने के लिए कि सार्वजनिक प्रताड़ना कितनी कष्ट दायी होती है तुम्हें जान बूझ के डांटा लड़की फिर रोने लगी

एक दिन फिर मीटिंग हो रही थी सबके काम काज की समीक्षा हो रही थी काम के मामले में उस लड़की की खूब तारीफ हुई दस मिनट बाद उसे खड़ा किया पूछा कैसा लगा ? अच्छा लगा न ? सबके बीच में तारीफ हुई कैसा फील हुआ

उस मीटिंग के बाद प्रिंसिपल साहिब ने योजनाबद्ध तरीके से उस लड़की की सबके सामने तारीफ करनी शुरू की तुम्हारा ये ये काम बहुत अच्छा है इस इस में सुधार करो ये ये गलतियां सुधारो तुम जिंदगी में बहुत ऊपर जाओगी कहना न होगा आज वो लड़की उनके स्कूल की सबसे काबिल टीचर है

मैं ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ जो ये बताते हैं कि हमारे बाप ने कभी जिंदगी में हमारी तारीफ न की हमेशा नालायक ही बताया मेरे एक मित्र आज भी उस टीचर को याद करके भावुक हो जाते हैं जो हमेशा स्कूल में उनकी तारीफ करते थे

नालायक से नालायक आदमी में भी कुछ गुण तो होते ही हैं क्यों न उन्हें ही किया जाए दुनिया भर में तिरस्कृत बच्चे को तारीफ का एक शब्द जलते अंगारे पे पड़ी पानी की शीतल बूँद सा लगता है

समाज में प्रोत्साहन से जो मिल सकते हैं वो से कभी नहीं मिल सकते

अपने बच्चों की और अपने आसपास के लोगो की तारीफ करना सीखिए

Spiritual Story Dad And Daughter

एक बार एक व्यक्ति अपनी नयी कार को बड़े प्यार से पालिश करके चमका रहा था। तभी उसकी 4साल की बेटी पथ्थर से कार पर कुछ लिखने लगी। कार पर खरोच लगती देखकर पिता को इतना गुस्सा आया की वह बेटी का हाथ जोर से मरोड़ दिया। इतना ज़ोर से की बेटी की ऊँगली टूट गई।

बाद में अस्पताल में दर्द से कराह रहीबेटीपूछती है पापा मेरी ऊँगली कब ठीक होगी???????????????

गलती पे पछता रहा पिता कोई जवाब नहीं दे पता। वह वापस जाता है और कार पर लातें बरसाकर गुस्सा निकलता है। कुछ देर बाद उसकी नज़र उसी खरोच पर पड़ती है जिसकी वजह से उसने बेटी का हाथ तोडा था। बेटी ने पत्थर से लिखा था " "

दोश्तों गुस्सा और प्यार की कोई सीमा नहीं होती। याद रखें चीजें इस्तेमाल के लिए होती हैं और इंसान प्यार करने के लिए। लेकिन होता इसका उलट है।

आजकल लोग चीजों से प्यार करते हैं और इंसान को इस्तेमाल करते हैं।

Hindi Story Valentine Day Story In Hindi

एक सेठ जी थे -

जिनके पास काफी दौलत थी

सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में की थी

परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण उसका पति जुआरी शराबी निकल गया

जिससे सब धन समाप्त हो गया

बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते हो

मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी मदद क्यों नहीं करते हो?

सेठ जी कहते कि

"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद करने को तैयार हो जायेंगे"

एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि तभी उनका दामाद घर आ गया

सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख दी जाये

यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी घी के लड्डू जिनमे अर्शफिया थी दिये

दामाद लड्डू लेकर घर से चला

दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में डालकर चला गया

उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगेमिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ जी को वापिस बेच दिया

सेठ जी लड्डू लेकर घर आये सेठानी ने जब लड्डूओ का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू फोडकर देखे अर्शफिया देख कर अपना माथा पीट लिया

सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की बात कह डाली

सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं जागा

देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी और न ही मिठाई वाले के भाग्य में

इसलिये कहते हैं कि भाग्य से

ज्यादा

और

समय

से पहले न किसी को कुछ मिला है और न मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै संतोष करो

झूला जितना पीछे जाता है उतना ही आगे आता है।एकदम बराबर।

सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।

जिंदगी का झूला पीछे जाए तो डरो मत वह आगे भी आएगा।

बहुत ही खूबसूरत लाईनें

किसी की मजबूरियाँ पे न हँसिये

कोई मजबूरियाँ ख़रीद कर नहीं लाता!

डरिये वक़्त की मार सेबुरा वक़्त किसीको बताकर नही आता!

अकल कितनी भी तेज ह़ोनसीब के बिना नही जीत सकती!

बीरबल अकलमंद होने के बावजूदकभी बादशाह नही बन सका!!

""ना तुम अपने आप को गले लगा सकते हो ना ही तुम अपने कंधे पर सर रखकर रो सकते हो एक दूसरे के लिये जीने का नाम ही जिंदगी है!

इसलिये वक़्त उन्हें दो जो तुम्हे चाहते हों दिल से!

रिश्ते पैसो के मोहताज़ नहीं होते क्योकि कुछ रिश्ते मुनाफा नहीं देते पर जीवन अमीर जरूर बना देते है !!! "