Poetry Tadka

Hindi Kahaniyan

Maan Sammaan

मान-सम्मान🙏

एक मॉं अपने बच्चे को ढूँढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला, तो वह रोने लगी और ज़ोर-जो़र से बच्चे का नाम लेकर पुकारने लगी। कुछ समय पश्चात् बच्चा दौड़ता हुआ उसके पास आ गया। मॉं ने पहले तो उसे गले लगाया, मन भर कर प्यार किया और फिर उसे डॉंटने लगी। उससे पूछा कि इतनी देर तक वह कहॉं छुपा हुआ था। बच्चे ने बताया, “मॉं, मैं छुपा हुआ नहीं था, मैं तो बाहर की दुकान से गोंद लेने गया था।” मॉं ने पूछा कि गोंद से क्या करना है? इस पर बच्चे ने बड़े भोलेपन से बोला, “मैं उससे चाय के प्याले को जोड़ूँगा जो टूट गया है।”

मॉं ने फिर पूछा, “टूटा प्याला जोड़ कर क्या करोगे? जुड़ने के बाद तो वह बहुत ख़राब दिखेगा।” तब बच्चे ने भोलेपन से कहा, “जब तुम बूढ़ी हो जाओगी तो उस प्याले में तुम्हें चाय पिलाया करूँगा।” यह सुन कर मॉं पसीने-पसीने हो गई। कुछ पल तक तो उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे? फिर होश संभालते ही उसने बच्चे को गोद में बिठाया और प्यार से कहा, “बेटा, ऐसी बातें नहीं करते। बड़ों का सम्मान करते हैं। उनसे ऐसा व्यवहार नहीं करते। देखो, तुम्हारे पापा कितनी महनत करते हैं ताकि तुम अच्छे विद्यालय में जा सको। मम्मी तुम्हारे लिए भॉंति-भॉंति के भोजन बनाती है। सब लोग तुम्हारा ध्यान रखते हैं ताकि जब वे बूढ़े हो जॉंए तब तुम उनका सहारा बनो।”

बच्चे ने मॉं की बात बीच में काटते हुए कहा, “लेकिन मॉं, क्या दादा-दादी ने भी यही नहीं सोचा होगा, जब वे पापा को पढ़ाते होंगे? आज जब दादी से ग़लती से चाय का प्याला टूट गया तब तुम कितनी ज़ोर से चिल्लाईं थीं। इतना ग़ुस्सा किया था आपने कि दादाजी को दादी के लिए आपसे माफ़ी मॉंगनी पड़ी। पता है मॉं, आप तो कमरे में जाकर सो गईं, लेकिन दादी बहुत देर तक रोती रहीं। मैंने वह प्याला संभाल कर रख लिया है और अब मैं उसे जोड़ दूँगा। माँ को अब कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या कहे? बच्चे को पुचकारते हुए बोली, “मैं भी तब से अशांत ही हूँ।”

यह स्थिति आजकल प्रायः घर-घर में पाई जाती है। हमारे संत भविष्यदर्शी थे। तभी संत कबीरदास जी ने कहा है, “ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए, औरों को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए।” धारदार अस्त्र का घाव भर जाता है, किंतु वाणी द्वारा दिया हुआ घाव नहीं भरता। लेकिन हम सब का कैसा विचित्र व्यवहार होता जा रहा कि हम दूसरों का सम्मान करना ही भूल गए हैं। रुपया-पैसा आवश्यक है परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि आप धन के लिए आप दूसरों का आदर करना ही छोड़ दें। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इन्हीं माता-पिता के कारण आज हम समाज में सम्मान से रह रहे हैं। यह वही पिता हैं जो हमारे द्वार किए गए कई तरह के नुक़सान को हँस कर टाल देते थे। यही वे माता हैं जो हमारे आँसू रोकने के लिए औरों से भिड़ जाती थीं। आज जब वे वृद्ध हो गए हैं तो हमारा कर्तव्य बनता है कि उनके साथ नम्रता से व्यवहार करें, उनका आदर करें। बड़ों के आशीर्वाद से हमारे बल, धन, आयु और यश में वृद्धि होती है। यदि बड़े हमारे से अप्रसन्न हो गए तो न जाने हम किस-किस से वंचित रह जाएँगे।

एक साधारण सिद्धांत है कि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं, बड़े जैसा करेंगे बच्चे भी वैसा ही करेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें बच्चों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा कि हम उनसे अपेक्षा करते हैं। Maan Sammaan

Koi Baanjh Nahin Kahega

🙏🙏🙏Dilwale🙏🙏🙏

कोई बांझ नी कहेगा

आधी रात का समय था रोज की तरह एक बुजुर्ग शराब के नशे में अपने घर की तरफ जाने वाली गली से झूमता हुआ जा रहा था, रास्ते में एक खंभे की लाइट जल रही थी, उस खंभे के ठीक नीचे एक 15 से 16 साल की लड़की पुराने फटे कपड़े में डरी सहमी सी अपने आँसू पोछते हुए खड़ी थी जैसे ही उस बुजुर्ग की नजर उस लड़की पर पड़ी वह रूक सा गया, लड़की शायद उजाले की चाह में लाइट के खंभे से लगभग चिपकी हुई सी थी, वह बुजुर्ग उसके करीब गया और उससे लड़खड़ाती जबान से पूछा तेरा नाम क्या है, तू कौन है और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है...?

लड़की चुपचाप डरी सहमी नजरों से दूर किसी को देखे जा रही थी उस बुजुर्ग ने जब उस तरफ देखा जहाँ लड़की देख रही थी तो वहाँ चार लड़के उस लड़की को घूर रहे थे, उनमें से एक को वो बुजुर्ग जानता था, लड़का उस बुजुर्ग को देखकर झेप गया और अपने साथियों के साथ वहाँ से चला गया लड़की उस शराब के नशे में बुजुर्ग से भी सशंकित थी फिर भी उसने हिम्मत करके बताया मेरा नाम रूपा है मैं अनाथाश्रम से भाग आई हूँ, वो लोग मुझे आज रात के लिए कहीं भेजने वाले थे, दबी जुबान से बड़ी मुश्किल से वो कह पाई...!

बुजुर्ग:- क्या बात करती है.......तू अब कहाँ जाएगी...!
लड़की:- नहीं मालूम.....!
बुजुर्ग:- मेरे घर चलेगी.....?
लड़की मन ही मन सोच रही थी कि ये शराब के नशे में है और आधी रात का समय है ऊपर से ये शरीफ भी नहीं लगता है, और भी कई सवाल उसके मन में धमाचौकड़ी मचाए हुए थे!
बुजुर्ग:- अब आखिरी बार पूछता हूँ मेरे घर चलोगी हमेशा के लिए...?
बदनसीबी को अपना मुकद्दर मान बैठी गहरे घुप्प अँधेरे से घबराई हुई सबकुछ भगवान के भरोसे छोड़कर लड़की ने दबी कुचली जुबान से कहा जी हाँ

उस बुजुर्ग ने झट से लड़की का हाथ कसकर पकड़ा और तेज कदमों से लगभग उसे घसीटते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चला वो नशे में इतना धुत था कि अच्छे से चल भी नहीं पा रहा था किसी तरह लड़खड़ाता हुआ अपने मिट्टी से बने कच्चे घर तक पहुँचा और कुंडी खटखटाई थोड़ी ही देर में उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और पत्नी कुछ बोल पाती कि उससे पहले ही उस बुजुर्ग ने कहा ये लो सम्भालो इसको "बेटी लेकर आया हूँ हमारे लिए" अब हम बाँझ नहीं कहलाएंगे आज से हम भी औलाद वाले हो गए, पत्नी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे और उसने उस लड़की को अपने सीने से लगा लिया।। Koi baanjh nahin kahega

Wastwik Dard

वास्तविक दर्द...

स्कूल प्रिंसिपल ने बहुत ही कड़े शब्दों मे जब किसान की बेटी ख़ुशी से पिछले एक साल की स्कूल फीस मांगी ,तो ख़ुशी ने कहा मैडम मे घर जाकर आज पिता जी से कह दूंगी , घर जाते ही बेटी ने माँ से पूछा पिता जी कहाँ है ? तो माँ ने कहा तुम्हारे पिता जी तो रात से ही खेत मे है बेटी दौड़ती हुई खेत मे जाती है और सारी बात अपने पिता को बताती है ! ख़ुशी का पिता बेटी को गोद मे उठाकर प्यार करते हुए कहता है की इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है अपनी मैडम को कहना अगले हफ्ता सारी फीस आजाएगी, क्या हम मेला भी जाएंगे ?? ख़ुशी पूछती है

हाँ हम मेला भी जाएंगे और पकोड़े, बर्फी भी खाएंगे ख़ुशी के पिता कहते है ख़ुशी इस बात को सुनकर नाचने लगती है और घर आते वक्त रस्ते मे अपनी सहेलियों को बताती है की मै अपने माँ पापा के साथ मेला देखने जाउंगी,पकोड़े बर्फी भी खाउंगी ये बात सुनकर पास ही खड़ी एक बजुर्ग कहती है ,बेटा ख़ुशी मेरे लिए क्या लाओगी मेले से ?? काकी हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है मे आपके लिए नए कपडे लाऊंगी ख़ुशी कहती हुई घर दौड़ जाती है !

अगली सुबह ख़ुशी स्कूल जाकर अपनी मैडम को बताती है की मैडम इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है ,अगले हफ्ते सब फसल बिक जाएगी और पिता जी आकर सारी फीस भर देंगें प्रिंसिपल : चुप करो तुम, एक साल से तुम बहाने बाजी कर रही हो ख़ुशी चुप चाप क्लास मे जाकर बैठ जाती है और मेला घूमने के सपने देखने लगती है तभी ओले पड़ने लगते है तेज बारिश आने लगती है बिजली कड़कने लगती है पेड़ ऐसे हिलते है मानो अभी गिर जाएंगे ख़ुशी एकदम घबरा जाती है

ख़ुशी की आँखों मे आंसू आने लगते है वोही डर फिर सताने लगता है डर सब खत्म होने का , डर फसल बर्बाद होने का ,डर फीस ना दे पाने का ,स्कूल खत्म होने के बाद वो धीरे धीरे कांपती हुई घर की तरफ बढ़ने लगती है। हुआ भी ऐसा कि सभी फसल बर्बाद हो गई और खुशी स्कूल में फीस जमा नही करने के कारण ताना सुनने लगी। उस छोटी सी बच्ची को मेला घुमने और बर्फी खाने की शौक मन में ही रह गई। छोटे किसान और मजदूरों के परिवार में जो दर्द है उसे समझने में पूरी उम्र भी गुजर जाएगी तो भी शायद वास्तविक दर्द को महसूस नही कर सकते आप।।।

कहानी इतनी अच्छी लगी कि #शेयर करने से नहीं रोक पाया...आपको भी अच्छी लगे तो #शेयर_जरूर_करना... 🙏

Wastwik Dard

Aik Baar Maa Chatai

हो सकता है इसे पढ़ने से आपकी आँखों में पानी आ जाये....
एक बार माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी....
मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थी....
तभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये पास आया....
माँ के तन को छूकर हल्के हल्के से हिलाया.....
माँ अलसाई सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी....
तभी उस नन्हें बच्चे ने हलवा खाने की जिद कर दी...
माँ ने उसे पुचकारा और अपनी गोदी में ले लिया.....
फिर पास ही रखे ईटों के चूल्हे का रुख किया....
फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी सी कढाई रख दी...
और आग जलाकर कुछ देर मुन्ने को ताकती रही....
फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी....
क्या सुनोगे तब तक कोई परियों वाली कहानी...
मुन्ने की आंखें अचानक खुशी से थी खिल गयी....
जैसे उसको कोई मुँह मांगी मुराद मिल गयी...
माँ उबलते हुये पानी में कल्छी चलाती रही....
परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही....
फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया....

चटाई पर बैठे बैठे ही लेटा और फिर वहीं सो गया.....
माँ ने उसे गोद में ले लिया और धीरे से मुस्कायी.....
फिर न जाने क्यूँ उसकी आंख भर आयी.....
जैसा दिख रहा था वहां पर, सब वैसा नहीं था.....
घर में रोटी की खातिर एक पैसा भी नहीं था....
राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था....
कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था....
फिर मुन्ने को वो बेचारी हलवा कहां से खिलाती....
लेकिन अपने जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती.....
अपनी मजबूरी उसके नन्हें मन को मां कैसे समझाती....
या फिर फालतू में ही मुन्नें पर क्यों झुंझलाती.....
हलवे की बात वो कहानी में टालती रही.....
जब तक वो सोया नहीं बस पानी उबालती रही.....
ऐसी होती है माँ...
आँख में पानी आये तो चाहे माफ़ ना करना
लेकिन अपनी माँ का सभी ध्यान रखना !
Aik baar maa chatai

Bhai Apne Papa Se Kaha

एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया। दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी। दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले... हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है.. बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?" कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं..

घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी... खैर.. अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी.. कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए.. दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें.. लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!...

दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा.. समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा..... आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं..

क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही... मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी.. दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा..
शिक्षा- *कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें नही कोई स्वीकार करे*

अगर ये पोस्ट पसंद आई तो हर ग्रुप में शेयर करें Bhai apne papa se kaha