एक फ्लैट की पहली मंजिल में श्वेता नाम की लड़की रहती थी और दूसरी मंजिल में अंकुर नाम का लड़का। श्वेता B.Com फाइनल ईयर में थी और अंकुर ने इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में । श्वेता और अंकुर दोनों एक- दूसरे से बहुत प्यार करते थे। दोनों के परिवारों के बीच भी काफी अच्छा रिश्ता था। दोनों परिवार अक्सर एक- दूसरे के घर आया – जाया करते थे। हर सुख- दुख में दोनों के परिवार हमेशा एक – दूसरे के लिए खड़े होते। यही वजह थी कि श्वेता और अंकुर के रिश्ते भी काफी अच्छे थे, जो वक्त के साथ- साथ प्यार में तब्दील हो गए।
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अंकुर अक्सर किसी भी चीज के बहाने श्वेता के घर आया करता, तो वहीं श्वेता भी अंकुर की भाभी से मिलने के बहाने उनके घर चले जाती थी । दोनों के प्यार का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। एक दिन श्वेका का बड़ा भाई अंकुर के घर से लौटते हुए सीढ़ियों से उतर रहा था, तभी अचानक उसे एक पेपर नीचे गिरा दिखा। उसने उसे उठा लिया। लेकिन जब श्वेता के भाई ने उस पेपर को खोला और उसमें जो लिखा था, उसे पढ़ा तो उसके होश ही उड़ गए और वो गुस्से से लाल हो गया। घर आते ही सबसे पहले उसने श्वेता और अपने मां- पापा को बुलाया। मां के हाथ में वो पेपर देते हुए उसने श्वेता को एक चांटा मारा। वो पेपर पढ़ जैसे उसके मां – पापा के भी होश उड़ गए। उसके बाद श्वेता की मां ने भी उसे खूब चांटे मारा और बोला- ‘कलमुंही, हमने इसलिए तुम्हें इतनी आजादी दे रखी है। पढ़ाई के बदले यही करती है तू।‘....
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वो पेपर दरअसल एक लेटर था, जो अंकुर ने श्वेता को दिया था और आते वक्त श्वेता से सीढ़ियों पर गिर गया। फिर क्या था दोनों परिवारों में भी दूरियां आ गई। लेकिन अंकुर और श्वेता का प्यार कहां कम होने वाला था, दोनों कॉलेज के बहाने अब घर से बाहर मिलने लगे। ऐसा लगता मानों अब दोनों ज्यादा आजाद हो गए हो। दोनों कभी रेस्टोरेंट जाते तो कभी पार्क। धीरे- धीरे दोनों में प्यार भी बढ़ा और टकरार भी।..
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देखते ही देखते अंकुर ने अपनी इंजीनियरिंग पूरी कर ली और अब वो job के लिए शहर से बाहर जाने लगा। अंकुर के चले जाने के नाम से ही श्वेता बहुत अपसेट हो गई थी। लेकिन आखिरकार एक दिन अंकुर चला गया। अंकुर के जाने के बाद दोनों की बातें फोन पर ही अब हुआ करती। वक्त निकाल कर अंकुर और श्वेता दोनों एक- दूसरे से घंटों बातें करते। लेकिन अब धीरे- धीरे श्वेता के पास अंकुर का फोन कम आने लगा। श्वेता फोन करती तो वो कभी रिसीव कर के ये बोल देता कि मैं busy हूं तो कभी फोन रिसीव ही नहीं करता। ऐसे में श्वेता तो मानों अंकुर के लिए बिल्कुल पागल होने लगी थी। अब श्वेता का ना खाने का मन करता, ना पढ़ने का और ना और किसी काम में।
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फिर एक बार अंकुर अपने घर आया। श्वेता बहुत खुश थी, सोचा अंकुर तो उससे जरूर मिलेगा। लेकिन अंकुर तो ऐसा बर्ताव कर रहा था, मानों वो श्वेता को जानता ही ना हो। ये देख कर श्वेता टूट गई। उसे समझ आ गया था कि बाहर जाने के बाद अब अंकुर अपनी लाइफ में आगे बढ़ गया है। हो सकता है अंकुर को कोई और मिल गई हो या फिर वो अपने घरवालों के कहने पर मुझसे रिश्ता नहीं रखना चाहता हो। श्वेता ने अपने दिल को ये सारी बाते बोल कर समझाने की कोशिश तो की, लेकिन श्वेताᴄ अब भी अंकुर को भुल नहीं पाई थी। और अब तो श्वेता का मानों प्यार से विश्वास ही उठ गया।...
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अब श्वेता भी बहुत अच्छी कंपनी में जॉब कर रही है, उसके पास सब कुछ है लेकिन अक्सर रात को यही सोचती है कि सब मिला, बस इक तू ही नहीं मिला. अब वो अपनी ज़िन्दगी को जी नहीं रही बस काट रही है.
दोस्तों इस कहानी को पढ़ने के बाद ऐसा नहीं है कि लोग प्यार करना ही छोड़ दें, क्योंकि प्यार में कौन सच्चा है और कौन झूठा इसका पता आसानी से नहीं चल पाता। बल्कि जरुरत है कि अगर आप कभी ऐसी परिस्थिति से गुजरें तो खुद पर भरोसा रखें और जिंदगी में आगे बढ़े। क्योंकि जिंदगी बहुत खूबसूरत है और इसका सिर्फ एक ही रंग नहीं है, इसके तो हजारों रंग हैं।.????
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( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे