मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ
सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूँ
कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में
और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ
मैने देखा है ज़माने को शराबें पी कर
दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ
दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है
सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ
तेरे बारे में सुना ये है के तू सूरज है
मैं ज़रा देर तेरे साये में आ कर देखूँ
याद आता है के पहले भी कई बार यूं ही
मैने सोचा था के मैं तुझको भुला कर देखूँ !!
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दर्द-ए-बुज़ुर्ग बाप Poem Ocean
दो दिन से घर पर पूछने कोई नहीं आया
बीमार तूने खाना भी खाया नहीं खाया
भेजी थी ख़बर बेटे को,हैं आखरी साँसे
बीबी की कैद से वो निकल ही नहीं पाया
देखी थी खत की राह,मुकद्दर में कहाँ खत
शायद है व्यस्त होगा,तो लिख नहीं पाया
मिलता जो हाथ से लिक्खा कोई भी पर्चा
मैं दिल से लगा लेता मगर हो नहीं पाया
करने को प्यार उमड़ रहा सीने में मेरे
अहसास उसको इसका कभी हो नहीं पाया
जज़्बात मरते दम भी आँखों में बसे हैं
आँखों का नूर आँखें मिलाने नहीं आया !!
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मैं रूठा तुम भी रूठ गए फिर मनाएगा कौन
आज दरार है कल खाई होगी फिर भरेगा कौन
मैं चुप, तुम भी चुप इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन
हर छोटी मोटी बात को लगा लोगे दिल से
तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन
दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर
सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन
ना मैं राजी, ना तुम राजी
फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन
डूब जाएगा यादों में दिल कभी
तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन
एक अहम् मेरे, एक तेरे भीतर भी
इस अहम् को फिर हराएगा कौन
ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए
फिर इन लम्हों में अकेला रह जाएगा कौन
मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन एक ने भी आँखें
तो कल इस बात पर फिर पछतायेगा कौन
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