Poetry Tadka

Hindi Kavita

Kavita Kosh

बेटी बनकर आई हु माँ-बाप के जीवन में 

बसेरा होगा कल मेरा किसी और के आँगन में

क्यों ये रीत "रब" ने बनाई होगी,

 कहते है आज नहीं तो कल तू पराई होगी,

देके जनम पाल-पोसकर जिसने हमें बड़ा किया

और वक़्त आया तो उन्ही हाथो ने हमें विदा किया

टूट के बिखर जाती हे हमारी ज़िन्दगी वही

पर फिर भी उस बंधन में प्यार मिले ज़रूरी तो नहीं

क्यों रिश्ता हमारा इतना अजीब होता है

क्या बस यही बेटियो का नसीब होता है !!

Kavita Kosh कविता कोश

Kavita Kosh Wo Bhi Kya Zamana Tha

एक बचपन का जमाना था !

जिसमें खुशियों का खजाना था !

चाहत चाँद को पाने की थी !

पर दिल तितली का दीवाना था !!

 

खबर ना थी कुछ सुबह की !

ना शाम का ठिकाना था !

थक हार के आना स्कूल से !

पर खेलने भी जाना था !!

 

परियों का फसाना था !

बारिश में कागज की कश्ती थी !

हर मौसम सुहाना था !

हर खेल में साथी थे  !

हर रिश्ता निभाना था !!

 

गम की जुबां ना होती थी !

ना जख्मों का पैमाना था !

रोने की वजह ना थी !

ना हँसने का बहाना था !!

 

क्यूँ हो गये हम इतने बड़े 

इससे अच्छा तो वो 

"बचपन का जमाना था !!

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kavita kosh wo bhi kya zamana tha

Rahat Indori Kavita Kosh

मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ

सोचता हूँ के तुझे हाथ लगा कर देखूँ

कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में

और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ

मैने देखा है ज़माने को शराबें पी कर

दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ

दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है

सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ

तेरे बारे में सुना ये है के तू सूरज है

मैं ज़रा देर तेरे साये में आ कर देखूँ

याद आता है के पहले भी कई बार यूं ही

मैने सोचा था के मैं तुझको भुला कर देखूँ !!

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Poem Ocean

दर्द-ए-बुज़ुर्ग बाप  Poem Ocean

दो दिन से घर पर पूछने कोई नहीं आया 

बीमार तूने खाना भी खाया नहीं खाया 

भेजी थी ख़बर बेटे को,हैं आखरी साँसे

बीबी की कैद से वो निकल ही नहीं पाया 

देखी थी खत की राह,मुकद्दर में कहाँ खत 

शायद है व्यस्त होगा,तो लिख नहीं पाया 

मिलता जो हाथ से लिक्खा कोई भी पर्चा 

मैं दिल से लगा लेता मगर हो नहीं पाया  

करने को प्यार उमड़ रहा सीने में मेरे 

अहसास उसको इसका कभी हो नहीं पाया 

जज़्बात मरते दम भी आँखों में बसे हैं 

आँखों का नूर आँखें मिलाने नहीं आया !!

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Mai Rotha Tu Rothi Fir Mnayga Koun

मैं रूठा तुम भी रूठ गए फिर मनाएगा कौन

आज दरार है कल खाई होगी फिर भरेगा कौन  

मैं चुप, तुम भी चुप इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन 

हर छोटी मोटी बात को लगा लोगे दिल से 

तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन 

दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर 

सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन  

ना मैं राजी, ना तुम राजी 

फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन 

डूब जाएगा यादों में दिल कभी 

तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन  

एक अहम् मेरे, एक तेरे भीतर भी 

इस अहम् को फिर हराएगा कौन  

ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए 

फिर इन लम्हों में अकेला रह जाएगा कौन  

मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन एक ने भी आँखें 

तो कल इस बात पर फिर पछतायेगा कौन 

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