Hindi Kavita
Sath Dena Hai To
थामने हम बढे, हाथ देना तो था
तुम मेरे हो,मेरा साथ देना तो था
हौसलों पर मेरे, यूँ गिरी ग़ाज़ क्यों
गीत गुमसुम रहे,खोये अलफ़ाज़ क्यों
साधने हम चले, आस देना तो था
तुम मेरे हो, मेरा साथ देना तो था
कोई राहत नहीं, कोई चाहत नहीं
है कहाँ वो ख़ुशी,कोई आहट नहीं
बेबसी को मेरी, मात देना तो था
तुम मेरे हो, मेरा साथ देना तो था
ख़ाब खो जाएंगे, ये तो सोचा न था
किस तरह ये कहें, दर्द होता न था
सूनी आँखें रहीं, ख़ाब देना तो था
तुम मेरे हो, मेरा साथ देना तो था
थामने हम बढे, हाथ देना तो था
तुम मेरे हो,मेरा साथ देना तो था
Ye Zindagi Bhi Ajeeb Hai
यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं ,
हर मोड़ पर अपना रंग बदल देती हैं
कोई अपने बेगाने हो जाते हैं ,
तो कोई पराया अपना हो जाता हैं
यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं ,
हर मोड़ पर कुछ नया सिखाती हैं
कभी खुशिया भर -भर के आती है,
तो कभी-कभी दुःख के
बादल हर रोज बरसते हैं
यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं ,
हर मोड़ पर एक नया मुकाम बनाती हैं
इस ज़िन्दगी से हर रोज
किसी न किसी को
शिकायत होती है ,तो कोई इसकी
प्रशंसा करता हैं
यें ज़िन्दगी कभी खामोश रहती हैं ,
और कभी-कभी बिन कहे
कुछ कह जाती हैं
यें ज़िन्दगी दुश्मनों के साथ रहकर,
अपनों को धोका दे जाती हैं
यें ज़िन्दगी भी अजीब सी हैं ,
हर मोड़ पर एक नया रंग दे जाती हैं
kavita Kosh कविता कोश
Aahista Chal Ae Zindagi
आहिस्ता चल जिंदगी,अभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज निभाना बाकी है
रफ़्तार में तेरे चलने से
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है
रोतों को हँसाना बाकी है
कुछ रिश्ते बनकर ,टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाकी है
कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं
कुछ काम भी और जरूरी हैं
जीवन की उलझ पहेली को
पूरा सुलझाना बाकी है
जब साँसों को थम जाना है
फिर क्या खोना ,क्या पाना है
पर मन के जिद्दी बच्चे को
यह बात बताना बाकी है
आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज निभाना बाकी है !
---------धन्यवाद --------
Kavita Kosh कविता कोश
Dastan Apni Kavita Kosh
मैं भी लिखूँगाी किसी रोज़, दास्तान अपनी
मैं भी किसी रोज़, तुझपे इक ग़ज़ल लिखूँगी
लिखूँगा कोई शख्स, तो शहजादा-सा लिखूँगी
ग़र गुलों का ज़िक्र आया तो, कमल लिखूँगी
बात ग़र इश्क़ की होगी, तो बे-इन्तहा है तू,
ज़िक्र ग़र तारीख का होगा, तो अज़ल लिखूँगी
मैं लिखूँगी तेरी रातों की, मासूम-सी नींद,
और अपनी बेचैन करवटों की, नक़ल लिखूँगी
हाँ ज़रा मुश्किल है, तुझे लफ़्ज़ों में बयां करना,
फिर भी यकीन मानो जान मुकम्मल तुझे ही अपनी जान लिखुगी
ये जानती हूँ मै कि तुझे झूठ से नफरत है,
इसलिए जो भी लिखूँगी, सब असल लिखूँगी
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Jis Roz
जिस रोज पैदा होते हैं हम,
उस रोज बहुत खुशियां मनाई जाती है..
बचपन से लेकर बुढ़ापे तक,
सपनो की एक दुनिया सजाई जाती है..
खुशी और ग़म की आँखों से,
ज़िन्दगी की तस्वीर दिखाई जाती है..
जिस रोज मरते हैं हम,
उस रोज हमारी खूबियां बताई जाती है ।
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