दर्द-ए-बुज़ुर्ग बाप Poem Ocean
दो दिन से घर पर पूछने कोई नहीं आया
बीमार तूने खाना भी खाया नहीं खाया
भेजी थी ख़बर बेटे को,हैं आखरी साँसे
बीबी की कैद से वो निकल ही नहीं पाया
देखी थी खत की राह,मुकद्दर में कहाँ खत
शायद है व्यस्त होगा,तो लिख नहीं पाया
मिलता जो हाथ से लिक्खा कोई भी पर्चा
मैं दिल से लगा लेता मगर हो नहीं पाया
करने को प्यार उमड़ रहा सीने में मेरे
अहसास उसको इसका कभी हो नहीं पाया
जज़्बात मरते दम भी आँखों में बसे हैं
आँखों का नूर आँखें मिलाने नहीं आया !!
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