Hindi Kavita
Daman Me Ky Kuch Hai Kavita Kosh
सुनी सुनाई बात नहीं है अपने ऊपर बीती है
फूल निकलते है शोलों से चाहत आग लगाए तो
झूठ है सब तारीख़ हमेशा अपने को दोहराती है
अच्छा मेरा ख्व़ाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो
देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आये तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
शफ़क़, धनुक, महताब, घटाएँ, तारे, नग़मे, बिजली, फूल
उस दामन में क्या कुछ है, वो दामन हाथ में आए तो !!
Kavita Kosh कविता कोश
Wah Re Jamane Teri Had Ho Gayi
कविता माँ पर, माँ पर हिंदी कविता
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !
बीवी के आगे माँ रद्द हो गई !
बड़ी मेहनत से जिसने पाला !
आज वो मोहताज हो गई !
और कल की छोकरी
तेरी सरताज हो गई !
बीवी हमदर्द और माँ सरदर्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !!
पेट पर सुलाने वाली,
पैरों में सो रही !
बीवी के लिए लिम्का,
माँ पानी को रो रही !
सुनता नहीं कोई, वो आवाज देते सो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई.!!
माँ मॉजती बर्तन,वो सजती संवरती है !
अभी निपटी ना बुढ़िया तू , उस पर बरसती है !
अरे दुनिया को आई मौत,तेरी कहाँ गुम हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !!
अरे जिसकी कोख में पला,
अब उसकी छाया बुरी लगती !
बैठ होण्डा पे महबूबा,
कन्धे पर हाथ जो रखती !
वो यादें अतीत की,
वो मोहब्बतें माँ की, सब रद्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !!
बेबस हुई माँ अब,
दिए टुकड़ो पर पलती है !
अतीत को याद कर,
तेरा प्यार पाने को मचलती है !
मुसीबत जिसने उठाई, वो खुद मुसीबत हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !!
___ याद रखना ________
मां तो जन्नत का फूल है !
प्यार करना उसका उसूल है !
दुनिया की मोह्ब्बत फिजूल है !
मां की हर दुआ कबूल है !
मां को नाराज करना इंसान तेरी भूल है !
मां के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है !!
Kavita Kosh कविता कोश
Wo Mila Nahi Kavita Kosh
वो नही मिला तो मलाल क्या !
जो गुज़र गया सो गुज़र गया !
उसे याद करके ना दिल दुखा !
जो गुज़र गया सो गुज़र गया !
ना गिला किया ना ख़फ़ा हुए !
युँ ही रास्ते में जुदा हुए !
ना तू बेवफ़ा ना मैं बेवफ़ा !
जो गुज़र गया सो गुज़र गया !
तुझे एतबार-ओ-यकीं नहीं !
नहीं दुनिया इतनी बुरी नहीं !
ना मलाल कर, मेरे साथ आ !
जो गुज़र गया सो गुज़र गया !
वो वफ़ाएँ थीं, के जफ़ाएँ थीं !
ये ना सोच किस की ख़ताएँ थीं !
वो तेरा हैं, उसको गले लगा !
जो गुज़र गया सो गुज़र गया !!
Kavita Kosh कविता कोश
Kavita Kosh Hindi Language
तू शर्मीली सिमटी सी,है शोख़ तितली सी तू !
रेशम की नरमी सी,,जाड़ो की गर्मी सी तू !
रातो की काजल सी,तारों के आँचल सी तू !
तू बादल के बालो सी,दिन के उजालो सी तू !
दिलकश खयालो सी,रंगी ख्वाबो सी तू !
तेरे सवालो सी,मेरे जवाबो सी तू !
ओस में जैसे नहाईं,लबो पे खिली है मुस्कान !
तू हैं फ़रिश्तों के जैसी,रूह की है जैसे तू जान !
तुझ को जो पा जाऊं,होश में ना मैं आऊ !
तू झिलमिल बहारो सी,रिमझिम फ़ुहारों सी तू !
अनजाने यादो सी,पहचाने वादो सी तू !
वन की गुफ़ाओं सी,सातो शमाओं सी तू !
तू शर्मीली सिमटी सी,है शोख़ तितली सी तू !
रेशम की नरमी सी,जाड़ो की गर्मी सी तू !!
Kavita Kosh कविता कोश
Hindi Prem Kavita
वो मुझे मेहंदी लगे हाथ दिखाकर रोयी
मैं किसी और की हूँ,बस इतना बता कर रोयीं
शायद उम्र भर की जुदाई का ख्याल आया था उसे
वो मुझे पास अपने बिठाकर रोयीं,
दुःख का एहसास दिला कर रोयीं
कभी कहती थी मैं न जी पाऊँगी बिन तुम्हारे
और आज ये बात दोहरा कर रोयीं
मुझ से ज्यादा बिछुड़ने का गम था उसे
वक्त-ए-रुक्शांत,वो मुझे सीने से लगा कर रोयीं
मैं बेकसूर हूँ, कुदरत का फैसला हो ये
लिपट कर मुझसे बस वो इतना बता कर रोयीं
मुझ पर दुःख का पहाड़ एक और टुटा
जब वो मेरे सामने मेरे ख़त जलाकर रोयीं
मेरी नफरत और अदावत पिघल गयी एक पल में
वो बेवफा है तो, क्यों मुझे रुलाकर रोयीं ?
सब गिले-शिकवे मेरे एक पल में बदल गए
झील सी आँखों में जब आंसू सजाकर रोयीं
कैसे उसकी मोहब्बत पर शक करे ये दोस्तों
भरी महफ़िल में वो मुझे गले लगा कर रोयीं !!
Kavita Kosh कविता कोश