Poetry Tadka

Hindi Kavita

Zindagi Ka Har Khwab Pura Nahi Hota

जिंदगी का हर ख्वाब पूरा नहीं होता !

होता अगर तो शख्स अधूरा नहीं होता !

ख्वाहिशों की प्यास कभी बुझ नहीं पाती !

कभी रेतों में समंदर का बसेरा नहीं होता !

आंखों में जल रही है जबसे तेरी शमा !

मेरे रूह की गलियों में अंधेरा नहीं होता !

अश्कों से भीगो देता है हर रात जमीं को !

आसमा रोता ही रहता जो सबेरा नहीं होता !! 

Kavita Kosh कविता कोश

 

 

Ladki Nahi Pri Hai Woh

पूरी दुनिया जब बुरा-भला कह रही थी मुझे

तो I Love You कहा था उसने मुझे

जब दुनिया ने तोड़-मरोड़ कर रख दिया था मुझे

तो उसने सहारा देकर फिर से 

आगे बढ़ना सिखाया था मुझे

न जाने क्या देखा था उस पगली ने मुझमें 

जब परछाई ने भी साथ छोड़ दिया था मेरा, 

वो मेरे साथ पल-पल खड़ी थी न जाने क्यों 

मैं पूरी दुनिया से अलग लगा था उसे

जब सबकुछ हार गया था मैं, 

तो वो जीत बनकर साथ खड़ी थी मेरे

और देखते-देखते मेरे पूरे अस्तित्व में हीं समा गई वो

मैं उसका बन गया था, और मेरी बन गई थी वो

मुझे प्यार करते-करते खुद प्यार बन गई थी वो

तभी तो कहता हूँ, लड़की नहीं परी है वो

अब उसे बहुत प्यार करता हूँ मैं, 

वो जान है मेरी ये इकरार करता हूँ मैं

तभी तो कहता हूँ, लड़की नहीं परी है वो !!

Kavita Kosh कविता कोश

 

ladki nahi pri hai woh

Ye Manzar Kyu Hai Kavita Kosh

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है

ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है

जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है

फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है

अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी

अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है

ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब 

वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है

आँख से आँख मिला बात बनाता क्यूँ है

तू अगर मुझसे ख़फ़ा है तो छुपाता क्यूँ है

ग़ैर लगता है न अपनों की तरह मिलता है

तू ज़माने की तरह मुझको सताता क्यूँ है

वक़्त के साथ ख़यालात बदल जाते हैं

ये हक़ीक़त है मगर मुझको सुनाता क्यूँ है

एक मुद्दत से जहां काफ़िले गुज़रे ही नहीं

ऐसी राहों पे चराग़ों को जलाता क्यूँ है !!

Kavita Kosh कविता कोश

Ab Verano Me Kavita Kosh

रेंग रहे हैं साये अब वीराने में !

धूप उतर आई कैसे तहख़ाने में !

जाने कब तक गहराई में डूबूँगा !

तैर रहा है अक्स कोई पैमाने में !

उस मोती को दरिया में फेंक आया हूँ !

मैं ने सब कुछ खोया जिसको पाने में !

हम प्यासे हैं ख़ुद अपनी कोताही से !

देर लगाई हम ने हाथ बढ़ाने में !

क्या अपना हक़ है हमको मालूम नहीं !

उम्र गुज़ारी हम ने फ़र्ज़ निभाने में !

वो मुझ को आवारा कहकर हँसते हैं !

मैं भटका हूँ जिनको राह पे लाने में !

कब समझेगा मेरे दिल का चारागर !

वक़्त लगेगा ज़ख्मों को भर जाने में !

हँस कर कोई ज़ह्र नहीं पीता आलम !

किस को अच्छा लगता है मर जाने में !! 

Kavita Kosh कविता कोश

Ab Kisi Ka Koi Kavita Kosh

हुस्न जब इश्क़ से मन्सूब नहीं होता है

कोई तालिब कोई मतलूब नहीं होता है

अब तो पहली सी वह तहज़ीब की क़दरें न रहीं

अब किसी से कोई मरऊब नहीं होता है

अब गरज़ चारों तरफ पाँव पसारे है खड़ी

अब किसी का कोई महबूब नहीं होता है

कितने ईसा हैं मगर अम्न-व-मुहब्बत के लिये

अब कहीं भी कोई मस्लूब नहीं होता है

पहले खा लेता है वह दिल से लड़ाई में शिकस्त

वरना यूँ ही कोई मजज़ूब नहीं होता है !!

Kavita Kosh कविता कोश