Poetry Tadka

Hindi Kahaniyan

Sas Se Bahoo Tak Ka Safar

***** सास से बहू बनने तक का सफर *****

बाहर सब बारात के आने की तैयारियों में लगे हुए थे और मैं तीस साल पहले की यादों में खो गई.... तीस साल पहले मैं इसी घर मे बहु बन कर आई थी। मन मे हजारों रंग के सपने सजाए, थोड़ा सा डर भी था अंजान लोंगो के बीच कैसे रहूंगी मैं, उनके विचार व्यवहार सब से अनभिज्ञ थी। दरवाजे पर पहुचते ही मेरी सास ने आ कर आरती उतारी, मेरे गले तक गिरे हुए घूँघट के अंदर भी लोगो की चीरती हुई आँखे पहुच रही थी, दहलीज पार करते ही सारी भीड़ ने मुझे घेर लिया। ससुराल में नई बहू की हालत और चिड़ियाघर में नए जानवर ही हालत एक जैसी ही हो जाती है, सब के आकर्षण का केंद्र वही रहते है। जैसे ही मैं कमरे में गई सारे रिश्तेदारों की टोली भी मेरे साथ पहुँच गई, मैं अपने आप को सामान्य करने के लिए एकांत खोज रही थी लेकिन भीड़ ने मेरा पीछा ना छोड़ा। सब के बीच मैं सहमी सी बैठी हुई थी। मुझे ब्याह कर लाने वाला पति मुझे कही दिखाई नही दे रहा था जिसकी मुझे उस वक्त जरूरत थी, वो आते भी कैसे ये जानते हुए की सब वहाँ तरह-तरह के मजाक बनाना शुरू कर देंगे। सब मुझे घूर रहे थे और मैं उनकी नज़रो से असहज महसूस कर रही थी, इनकी बुआ नज़रो से ही मेरे गहने तौल रही थी। इतने में मेरी सास भी आ गई, मैं चुप-चाप बैठी उनकी बातें सुनने लगी। बुआ ने कहा "बहु के मायके के गहने बड़े हल्के लग रहे है" तभी मेरी सास ने जवाब दिया "हमने तो कुछ ज्यादा मांगा नही था सोचा अपने मन से ज्यादा दे देंगे, नंदनी (मेरी बड़ी ननद) की शादी में हमने कितने भारी-भारी गहने बनवाये थे ससुराल वाले आज तक तारीफ करते है" उनकी वार्तालाप सुन के मैं अंदर तक हिल गई, ये कैसे लोग है जो नई बहू के सामने ही उसे नीचा दिखा रहे है, जितने सुनहरे सपने सजाई थी सब एक साथ टूटते नज़र आने लगे। मैं कुछ भी नही बोल पाई सिर्फ अपने परिवार वालो के लिए ऐसे शब्द सुन कर आँखों मे आँसू आ गए।

नए घर के नए माहौल में ढलने की कोशिश करने लगी मैं, रसोई में जब पहली बार खाना बनाने गई तब कोई भी मदद के लिए नही आया, मुझे खाना बनाना आता था पर यहां के लोग कैसा खाना पसंद करते थे ये नही पता था, इसका नतीजा ये हुआ कि जो खाना मैंने बनाया उसे खाते ही सबके मुँह बन गए. "इतना मसालेदार खाना हम नही खाते, बाप रे मिर्ची की ही सब्जी बना दिये हो क्या, अरे रिफाइंड तेल में नही सरसों के तेल में सब्जी बनाना था, ये लो घी की जगह तेल से तड़का लगा दिया दाल को" मेरी सास भी सब की हां में हां मिला रही थी। मुझे यहाँ के तौर-तरीके सिखाने की बजाए मुझे ताने मिल रहे थे। सास से कुछ कहती तो वो अपनी सास के बारे में बताने लग जाती "अरे हमारे सास जैसी सास मिलती तब पता चलता तुमको, मेरी सास ने भी ऐसे ही अपना शासन चलाया था। तुम जब सास बनोगी तब तुम्हे पता चलेगा" "रेशमा कहाँ हो जल्दी आओ पूजा की थाली ले कर बारात आ गई" बड़ी ननद की आवाज ने मेरी तंद्रा तोड़ी, मैं तीस साल पहले की यादों से बाहर आ कर अपने बेटे सूरज और बहू ज्योति के लिए पूजा की थाली ले कर आने लगी। दरवाजे पर खड़ी बहू को देख कर मुझे उसमे तीस साल पहले की रेशमा दिखने लगी। मैंने दोनो की आरती उतारी बेटे बहू ने मेरे पैर छुए, मेरा दिल भर आया मैंने दोनो को गले से लगा लिया। अंदर आते ही मैंने बहू और बेटे को कमरे में आराम करने के लिए भेज दिया ताकी दोनों को थोड़ा अपने लिए समय मिल जाए। मैं ऐसा कोई भी गलत काम नही करना चाहती थी जो तीस साल पहले मेरी सास ने मेरे साथ किया था। सब रिश्तेदार बहू के घर से आये समान में मीन-मेख निकाल रहे थे तो मैंने भी कह दिया "समान से ज्यादा कीमती तो मेरी बहू है, हमने तो कुछ मांगा नही था पर उन्होंने बहुत-कुछ दे दिया" मेरे इस जवाब से रिश्तेदारों पर क्या फर्क पड़ा मुझे नही पता पर मेरी बहू ने जब मेरी बात सुनी तो उसके मन मे मेरे लिए प्यार और सम्मान बढ़ गया।

रसोई पूजा के समय बहू ने खीर बनाई मैं वही खड़ी हो कर उसकी मदद करने लगी। उसे ये एहसास नही होने देना चाहती थी कि ये उसका ससुराल है जहाँ सास सिर्फ शासन करती है। ज्योति पहले दिन से ही मुझसे ज्यादाुल-मिलई थी, वो मजाक मजाक में कहती भी कि मम्मी मैंने सोचा कि आप भी बाकी लोंगो की सास के जैसे ही होंगे लेकिन आप तो मेरी मम्मा से भी अच्छे हो। मैं प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर कहती "बेटा मैंने बहू से सास बनने तक का सफर किया है इसलिए मुझे पता है कि बहू की क्या ख्वाहिश होती है और सास के क्या कर्तव्य होते है।" आज मैं और मेरी बहू दोंनो मिल कर काम करते है, कोई कहता ही नही हमे देख कर की हम सास बहू है, सब कहते है कि ये दोनों तो बिल्कुल माँ-बेटी लगते है। ये सुन कर मुझे बहुत खुशी होती है।

ये कहानी पढ़ कर बहुत से लोगों के मन मे विचार आ रहे होंगे कि वो बहू बहुत ही किस्मत वाली है जिसे मीनू जैसी सास मिली.... लेकिन मैं बस इतना ही कहूँगा कि क्यों ना हम ही आगे चल कर एक अच्छी सास बन जाये, अगर आप एक बेटे की माँ है तो अभी से एक अच्छी सास बनने की शुरुवात कर दीजिए.... क्योंकि सास भी कभी बहू थी और हर बहू कभी ना कभी सास बनेगी। बदलाव हम खुद से ही करेंगे ताकी आगे चल कर हर सास को एक अच्छी बहू मिले और हर बहू को एक अच्छी सास। Sas se bahoo tak ka safar

Anokha Muqdama

💢एकअनोखा मुकदमा💢
*न्यायालय में एक मुकद्दमा आया ,जिसने सभी को झकझोर दिया !अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद व अन्य पारिवारिक विवाद के केस आते ही रहते हैं| मगर ये मामला बहुत ही अलग किस्म का था!*
*एक 60 साल के व्यक्ति ने ,अपने 75 साल के बूढ़े भाई पर मुकद्दमा किया था!* *मुकदमा कुछ यूं था कि "मेरा 75 साल का बड़ा भाई ,अब बूढ़ा हो चला है ,इसलिए वह खुद अपना ख्याल भी ठीक से नहीं रख सकता मगर मेरे मना करने पर भी वह हमारी 95 साल की मां की देखभाल कर रहा है !* *मैं अभी ठीक हूं, सक्षम हू। इसलिए अब मुझे मां की सेवा करने का मौका दिया जाय और मां को मुझे सौंप दिया जाय"।* *न्यायाधीश महोदय का दिमाग घूम गया और मुक़दमा भी चर्चा में आ गया| न्यायाधीश महोदय ने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की कि आप लोग 15-15 दिन रख लो!*

*मगर कोई टस से मस नहीं हुआ,बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने स्वर्ग को खुद से दूर क्यों होने दूँ ! अगर मां कह दे कि उसको मेरे पास कोई परेशानी है या मैं उसकी देखभाल ठीक से नहीं करता, तो अवश्य छोटे भाई को दे दो।* *छोटा भाई कहता कि पिछले 35 साल से,जब से मै नौकरी मे बाहर हू अकेले ये सेवा किये जा रहा है, आखिर मैं अपना कर्तव्य कब पूरा करूँगा।जबकि आज मै स्थायी हूं,बेटा बहू सब है,तो मां भी चाहिए।* *परेशान न्यायाधीश महोदय ने सभी प्रयास कर लिये ,मगर कोई हल नहीं निकला!* *आखिर उन्होंने मां की राय जानने के लिए उसको बुलवाया और पूंछा कि वह किसके साथ रहना चाहती है!* *मां कुल 30-35 किलो की बेहद कमजोर सी औरत थी |उसने दुखी दिल से कहा कि मेरे लिए दोनों संतान बराबर हैं| मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर ,दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती!*

*आप न्यायाधीश हैं , निर्णय करना आपका काम है |जो आपका निर्णय होगा मैं उसको ही मान लूंगी।* *आखिर न्यायाधीश महोदय ने भारी मन से निर्णय दिया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई वाकई बूढ़ा और कमजोर है| ऐसे में मां की सेवा की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है।* *फैसला सुनकर बड़े भाई ने छोटे को गले लगाकर रोने लगा !* *यह सब देख अदालत में मौजूद न्यायाधीश समेत सभी के आंसू छलक पडे।* *कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भाई बहनों में वाद विवाद हो ,तो इस स्तर का हो!* *ये क्या बात है कि 'माँ तेरी है' की लड़ाई हो,और पता चले कि माता पिता ओल्ड एज होम में रह रहे हैं यह पाप है।* *धन दौलत गाडी बंगला सब होकर भी यदि मा बाप सुखी नही तो आप से बडा कोई जीरो(0)नही।* *निवेदन है इस पोस्ट को शेयर जरूर करें,ताकि मां बाप को हर जगह सम्मान मिले ....🙏💐* Anokha Muqdama

Maa Ka Tohfa

माँ का तोहफा

एक दंपती दीपावली की ख़रीदारी करने को हड़बड़ी में था। पति ने पत्नी से कहा, "ज़ल्दी करो, मेरे पास टाईम नहीं है।" कह कर कमरे से बाहर निकल गया। तभी बाहर लॉन में बैठी *माँ* पर उसकी नज़र पड़ी।

कुछ सोचते हुए वापस कमरे में आया और अपनी पत्नी से बोला, "शालू, तुमने माँ से भी पूछा कि उनको दिवाली पर क्या चाहिए?
शालिनी बोली, "नहीं पूछा। अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा यार, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े....... इसमें पूछने वाली क्या बात है?

यह बात नहीं है शालू...... माँ पहली बार दिवाली पर हमारे घर में रुकी हुई है। वरना तो हर बार गाँव में ही रहती हैं। तो... औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती।
अरे इतना ही माँ पर प्यार उमड़ रहा है तो ख़ुद क्यों नहीं पूछ लेते? झल्लाकर चीखी थी शालू ...और कंधे पर हैंड बैग लटकाते हुए तेज़ी से बाहर निकल गयी।
सूरज माँ के पास जाकर बोला, "माँ, हम लोग दिवाली की ख़रीदारी के लिए बाज़ार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो.. माँ बीच में ही बोल पड़ी, "मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा।" सोच लो माँ, अगर कुछ चाहिये तो बता दीजिए.....
सूरज के बहुत ज़ोर देने पर माँ बोली, "ठीक है, तुम रुको, मैं लिख कर देती हूँ। तुम्हें और बहू को बहुत ख़रीदारी करनी है, कहीं भूल न जाओ।" कहकर सूरज की माँ अपने कमरे में चली गईं। कुछ देर बाद बाहर आईं और लिस्ट सूरज को थमा दी।...... सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, "देखा शालू, माँ को भी कुछ चाहिए था, पर बोल नहीं रही थीं। मेरे ज़िद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक ज़िंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिये होता है।" अच्छा बाबा ठीक है, पर पहले मैं अपनी ज़रूरत का सारा सामान लूँगी। बाद में आप अपनी माँ की लिस्ट देखते रहना। कहकर शालिनी कार से बाहर निकल गयी।
पूरी ख़रीदारी करने के बाद शालिनी बोली, "अब मैं बहुत थक गयी हूँ, मैं कार में A/C चालू करके बैठती हूँ, आप अपनी माँ का सामान देख लो।"

अरे शालू, तुम भी रुको, फिर साथ चलते हैं, मुझे भी ज़ल्दी है। देखता हूँ माँ ने इस दिवाली पर क्या मँगाया है? कहकर माँ की लिखी पर्ची ज़ेब से निकालता है। बाप रे! इतनी लंबी लिस्ट, ..... पता नहीं क्या - क्या मँगाया होगा? ज़रूर अपने गाँव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मँगाये होंगे। और बनो *श्रवण कुमार*, कहते हुए शालिनी गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी। पर ये क्या? सूरज की आँखों में आँसू........ और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था..... पूरा शरीर काँप रहा था। शालिनी बहुत घबरा गयी। क्या हुआ, ऐसा क्या माँग लिया है तुम्हारी माँ ने? कहकर सूरज के हाथ से पर्ची झपट ली.... हैरान थी शालिनी भी। इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे.....

*पर्ची में लिखा था....* "बेटा सूरज मुझे दिवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम ज़िद कर रहे हो तो...... तुम्हारे शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो *फ़ुरसत के कुछ पल* मेरे लिए लेते आना.... ढलती हुई साँझ हूँ अब मैं। सूरज, मुझे गहराते अँधियारे से डर लगने लगा है, बहुत डर लगता है। पल - पल मेरी तरफ़ बढ़ रही मौत को देखकर.... जानती हूँ टाला नहीं जा सकता, शाश्वत सत्‍य है..... पर अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है सूरज।...... तो जब तक तुम्हारे घर पर हूँ, कुछ पल बैठा कर मेरे पास, कुछ देर के लिए ही सही बाँट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन।.... बिन दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की साँझ.... कितने साल हो गए बेटा तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से, आ मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हथेली से सहलाऊँ तेरे सर को। एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय मेरे अपनों को क़रीब, बहुत क़रीब पा कर....और मुस्कुरा कर मिलूँ मौत के गले। क्या पता अगली दिवाली तक रहूँ ना रहूँ.....

पर्ची की आख़िरी लाइन पढ़ते - पढ़ते शालिनी फफक-फफक कर रो पड़ी..... *ऐसी ही होती हैं माँ.....* दोस्तो, अपने घर के उन विशाल हृदय वाले लोगों, जिनको आप बूढ़े और बुढ़िया की श्रेणी में रखते हैं, वे आपके जीवन के कल्पतरु हैं। उनका यथोचित आदर-सम्मान, सेवा-सुश्रुषा और देखभाल करें। यक़ीन मानिए, आपके भी बूढ़े होने के दिन नज़दीक ही हैं।...उसकी तैयारी आज से ही कर लें। इसमें कोई शक़ नहीं, आपके अच्छे-बुरे कृत्य देर-सवेर आप ही के पास लौट कर आने हैं। अगर आपको ये कहानी पसंद आईं हो तो Comment में माँ लिखें...

Maa Ka Tohfa

Apna Ghar Hindi Story

अपना घर 🏣

एक सब्जी की दुकान पर जहाँ से मैं अक्सर सब्जियाँ लेती हूँ जब मैं पहुँची तो सब्जी वाली फोन पर बात कर रही थी अत: कुछ क्षण रुकना ठीक समझा और उसने रुकने का संकेत भी किया तो रुक गयी और उसकी बात मेरे कान में भी पड़ रही थी।

वह अपनी उस बेटी से बात कर रही थी जिसकी शादी तीन चार दिन पहले हुई थी। वह कह रही थी "देखो बेटी घर की याद आती है ठीक है लेकिन वह घर अब तुम्हारा है।तुम्हें अब अपना सारा ध्यान अपने घर के लिया लगाना है और बार बार फोन मत किया करो और छिपकर तो बिलकुल भी नहीं।

जब भी यहाँ फोन करना तो सास या पति के सामने करना।
तुम अपने फोन पर मेरे फोन का इंतजार कभी मत करना। मुझे जब बात करना होगा तो मैं तुम्हारी सास के नंबर पर लगाऊँगी।तब तुम भी बात करना और बेटी अब ससुराल में हो जरा जरा सी बात पर तुनकना छोड़ दो सहनशक्ति रखो।

अपना घर कैसे चलाना है ये सब अपनी सास से सीखो। एक बात ध्यान रखो इज्जत दोगी इज्जत पाओगी।ठीक है । सुखी रहो" मैंने प्रशंसा के भाव में कहा "बहुत सुंदर समझाया आपने" उसने कहा बहन माँ को बेटी के परिवार में अनावश्यक दखल नहीं देनी चाहिये। उन्हें अपने घर की बातों को भी बिना मतलब इधर उधर नहीं करना चाहिये। वहाँ हो तो समस्या का हल खुद ढूँढ़ो।
मैं उस देवी का मुँह देखती रह गयी। सभी माँ को इसी तरह से सोचना चाहिए ताकि बेटी अपने घर को खुद का घर समझे। Apna Ghar Hindi Story

Aik Sakhs Hindi Story

जब एक शख्स लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी।

पुत्र जब वयस्क हुआ तो पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी अपने तो कभी दोस्तों के आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे।

पुत्र की शादी के बाद वह ओर अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया।

पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दोहपर में खाना खा रहे थे, पुत्र भी लंच करने ऑफिस से आ गया था और हाथ–मुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था।

उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये।

थोडी देर बाद पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया। कुछ दिन बाद पुत्र ने अपने पिताजी से कहा- ‘‘पापा आज आपको कोर्ट चलना है, आज आपका विवाह होने जा रहा है।’’ पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा-‘‘बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूँ कि शायद तुझे भी माँ की जरूरत नहीं है, फिर दूसरा विवाह क्यों?’’

पुत्र ने कहा ‘‘ पिता जी, न तो मै अपने लिए माँ ला रहा हूँ न आपके लिए पत्नी, *मैं तो केवल आपके लिये दही का इन्तजाम कर रहा हूँ।*
कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा आपके ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि *आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।’’*

*-माँ-बाप हमारे लिये**ATM कार्ड बन सकते है,*
*तो ,हम उनके लिए**Aadhar Card तो बन ही सकते है

Aik Sakhs Hindi Story