ye saal bhi aakhir beet gaya
कोई हार गया कोई जीत गया,
ये साल भी आखिर बीत गया
whi mujhko akele
वही मुझको अकेला कर गयी,
जो कभी दुआओ में मांगती थी
soya huaa hai
सोया हुआ है मुझमें कोई शख्स आज रात
लगता है अपने जिस्म से बाहर खड़ा हूँ मैं.
dhaga hi samajh
धागा ही समझ, तू अपनी "मन्नत" का मुझे
तेरी दुआओ के मुकम्मल होने का दस्तूर हूँ मैं
ajeeb se hain
इस शहर के अंदाज़ भी अजीब से हैं,
गूँगों से कहा जाता है बहरों को पुकारो.