एक माँ चटाई पर लेटी आराम से सो रही थी, मीठे सपनों से अपने मन को भिगो रही थी... . . तभी उसका बच्चा यूँ ही घूमते हुये समीप आया, माँ के तन को छूकर हल्के हल्के से हिलाया... . . माँ अलसाई सी चटाई से बस थोड़ा उठी ही थी, तभी उस नन्हें ने हलवा खाने की जिद कर दी... . . माँ ने उसे पुचकारा और अपनी गोदी में ले लिया, फिर पास ही रखे ईटों के चूल्हे का रुख किया... . . फिर उसने चूल्हे पर एक छोटी सी कढाई रख दी, और आग जलाकर कुछ देर मुन्ने को ताकती रही... . . फिर बोली बेटा जब तक उबल रहा है ये पानी, क्या सुनोगे तब तक कोई परियों बाली कहानी... . . मुन्ने की आंखें अचानक खुशी से थी खिल गयी, जैसे उसको कोई मुँह मांगी मुराद ही मिल गयी... . . माँ उबलते हुये पानी में कल्छी ही चलती रही, परियों का कोई किस्सा मुन्ने को सुनाती रही... . . फिर वो बच्चा उन परियों में ही जैसे खो गया, चटाई पर बैठे बैठे ही लेटा और फिर वहीं सो गया... . . माँ ने उसे गोद में ले लिया और धीरे से मुस्कायी, फिर न जाने क्यूँ उसकी आंख भर आयी... . . जैसा दिख रहा था वहां पर, सब वैसा नहीं था, घर में रोटी की खातिर एक पैसा भी नहीं था... . . राशन के डिब्बों में तो बस सन्नाटा पसरा था, कुछ बनाने के लिए घर में कहाँ कुछ धरा था...? . . न जाने कब से घर में चूल्हा ही नहीं जला था, चूल्हा भी तो माँ के आंसुओं से ही बुझा था... . . फिर मुन्ने को वो बेचारी हलवा कहां से खिलाती, अपने जिगर के टुकड़े को रोता भी कैसे देख पाती... . . अपनी मजबूरी उस नन्हें मन को मां कैसे समझाती, या फिर फालतू में ही मुन्नें पर क्यों झुंझलाती...? . . हलवे की बात वो कहानी में टालती रही, जब तक वो सोया नहीं बस पानी उबालती रही...