दो रूप
शांति के तीनों बेटे बहू शहर में बस चुके थे लेकिन उसका गांव छोड़ने का मन नहीं हुआ इसलिए अकेले ही रहती थी वह प्रतिदिन अपने नियम अनुसार मंदिर दर्शन करके वापस आ रही थी की रास्ते मे उसका संतुलन बिगड़ा और गिर पड़ी गांव के लोगों ने उठाया, पानी पिलाया और समझाया 'अब इस अवस्था में अकेले रहना उचित नहीं ..तीन बेटे बहुए है किसी भी बेटे के पास चली जाओ ..शांति ने भी परिस्थिति को स्वीकार कर बेटे बहुओं को ले जाने के लिए कहने हेतु फोन करने का मन बना लिया शांति की तीन बहुएँ थी एक बड़ी सुमन अति आज्ञाकारी ,मंझली गीता थोड़ी आज्ञाकारी और छोटी सुधा जिसे वो कड़वी बहू कहती थी कारण शांति अति धार्मिक थी कोई व्रत त्यौहार आता पहले से ही तीनों बहुओं को सचेत कर देती बडी सुमन खुशी खुशी व्रत करती मंझली पहले नानुकर करती फिर मान जाती थी लेकिन सुधा जिसे वो कड़वी बहू कहती विरोध पर उतर जाती -मां जी आप हर त्योहार पर व्रत रखवा कर उसके आनंद को कष्ट में परिवर्तित कर देती हैं..
शांति -तेरी तो जुबान लड़ाने की आदत है कुछ व्रत तप कर ले आगे तक साथ जाऐगे समझी अक्सर दोनों की किसी न किसी बात पर बहस हो जाती गुस्से में एक दिन शांति ने कह दिया था -तू क्या समझती है बुढापे में मुझे तेरी जरूरत पड़ने वाली है तो अच्छी तरह समझ ले। सड़ जाउंगी लेकिन तेरे पास नहीं आउंगी... इसीलिए
सबसे पहले उसने बडकी सुमन बहू को फोन किया
-गिर गई हूं बहू आजकल कई बार ऐसा हो गया है। सोचती हूं तुम्हारे पाया ही आ जाऊं..
सुमन - कया...नवरात्र में.. अभी नहीं मांजी.. नंगे पांव रह रही हूं आजकल किसी का छुआ भी नहीं खाती...मे तो ..फिर मंझली गीता को भी फोन किया लेकिन उसने भी बहाना कर टाल दिया की वो मायके जा रही है पति बच्चो संग दो महीनों को..अब जब बडकी मंझली दोनों ही टाल चुकी तो कड़वी बहूको फोन करने का कोई फायदा नहीं था और अहम अभी टूटा था लेकिन खत्म नहीं हुआ था फोन पर हाथ रख आने वाले कठिन समय की कल्पना करने लगी थी तभी फोन की घंटी बजी -आवाज़ से ही समझ गई थी कड़वी है -गिर गये ना.. आपने तो बताया नहीं लेकिन मैंने भी जासूस छोड़ रखे हैं पोते को भेज रही हूं लेने...क्या तुझे मेरे शब्द याद नहीं..
"जिंदगी भर नहीं भूलूगी आपने कहा था सड़ जाउंगी तो भी तेरे पास नहीँ आउंगी तभी मैंने व्रत ले लिया था इस बुजुर्ग मां को कभी सड़ने नहीं देना है मेरा तप अब शुरू होगा..आखिर मां हो मेरी ओर मां को अब अपने बच्चो को आर्शिवाद देने अपने घर आना ही होगा ..यही तो असली व्रत है तप है अपने बुजुर्ग की सेवा और अब कोई बहाना नही आपका पोता पहुंचने वाला होगा ..शांति सोच रही थी सचमुच कितनी गलत थी वो पूजा पाठ को महत्व दिया मगर प्यार और सम्मान देनेवाली को हमेशा कडवी कहा ...दो रूप होते है बहुओ के एक केवल बहु का दूसरा बेटी का ...आज से वो भी मेरा दूसरा रुप देखेगी मां का ...ममतामयी मां का...कहकर पलके भीगने लगी.
from : Hindi Kahaniyan