कामवाली बाई...
सच्ची घटना पर आधारित यह बात कुछ दिनों पुरानी है, जब स्कूल बस की हड़ताल चल रही थी।
मेरे मिस्टर अपने व्यवसाय की एक आवश्यक मीटिंग में बिजी थे इसलिए मेरे 5 साल के बेटे को स्कूल से लाने के लिए मुझे टू-व्हीलर पर जाना पड़ा।
जब मैं टू व्हीलर से घर की ओर वापस आ रही थी, तब अचानक रास्ते में मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं एवं मेरा बेटा हम दोनों गाड़ी सहित नीचे गिर गए।
मेरे शरीर पर कई खरोंच आए लेकिन प्रभु की कृपा से मेरे बेटे को कहीं खरोंच तक नहीं आई ।
हमें नीचे गिरा देखकर आसपास के कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने हमारी मदद करना चाही।
तभी मेरी कामवाली बाई राधा ने मुझे दूर से ही देख लिया और वह दौड़ी चली आई ।
उसने मुझे सहारा देकर खड़ा किया, और अपने एक परिचित से मेरी गाड़ी एक दुकान पर खड़ी करवा दी।
वह मुझे कंधे का सहारा देकर अपने घर ले गई जो पास में ही था।
जैसे ही हम घर पहुंचे वैसे ही राधा के दोनों बच्चे हमारे पास आ गए।
राधा ने अपने पल्लू से बंधा हुआ 50 का नोट निकाला और अपने बेटे राजू को दूध ,बैंडेज एवं एंटीसेप्टिक क्रीम लेने के लिए भेजा तथा अपनी बेटी रानी को पानी गर्म करने का बोला। उसने मुझे कुर्सी पर बिठाया तथा मटके का ठंडा जल पिलाया। इतने में पानी गर्म हो गया था।
वह मुझे लेकर बाथरूम में गई और वहां पर उसने मेरे सारे जख्मों को गर्म पानी से अच्छी तरह से धोकर साफ किए और बाद में वह उठकर बाहर गई ।
वहां से वह एक नया टावेल और एक नया गाउन मेरे लिए लेकर आई।
उसने टावेल से मेरा पूरा बदन पोंछ तथा जहां आवश्यक था वहां बैंडेज लगाई। साथ ही जहां मामूली चोट पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाया।
अब मुझे कुछ राहत महसूस हो रही थी।
उसने मुझे पहनने के लिए नया गाउन दिया वह बोली "यह गाउन मैंने कुछ दिन पहले ही खरीदा था लेकिन आज तक नहीं पहना मैडम आप यही पहन लीजिए तथा थोड़ी देर आप रेस्ट कर लीजिए। "
"आपके कपड़े बहुत गंदे हो रहे हैं हम इन्हें धो कर सुखा देंगे फिर आप अपने कपड़े बदल लेना।"
मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी । मैं गाउन पहनकर बाथरुम से बाहर आई।
उसने झटपट अलमारी में से एक नया चद्दर निकाल और पलंग पर बिछाकर बोली आप थोड़ी देर यहीं आराम कीजिए।
इतने मैं बिटिया ने दूध भी गर्म कर दिया था।
राधा ने दूध में दो चम्मच हल्दी मिलाई और मुझे पीने को दिया और बड़े विश्वास से कहा मैडम आप यह दूध पी लीजिए आपके सारे जख्म भर जाएंगे।
लेकिन अब मेरा ध्यान तन पर था ही नहीं बल्कि मेरे अपने मन पर था।
मेरे मन के सारे जख्म एक एक कर के हरे हो रहे थे।।मैं सोच रही थी "कहां मैं और कहां यह राधा?"
जिस राधा को मैं फटे पुराने कपड़े देती थी, उसने आज मुझे नया टावेल दिया, नया गाउन दिया और मेरे लिए नई बेडशीट लगाई। धन्य है यह राधा।
एक तरफ मेरे दिमाग में यह सब चल रहा था तब दूसरी तरफ राधा गरम गरम चपाती और आलू की सब्जी बना रही थी।
थोड़ी देर मे वह थाली लगाकर ले आई। वह बोली "आप और बेटा दोनों खाना खा लीजिए।"
राधा को मालूम था कि मेरा बेटा आलू की सब्जी ही पसंद करता है और उसे गरम गरम रोटी चाहिए। इसलिए उसने रानी से तैयार करवा दी थी।
रानी बड़े प्यार से मेरे बेटे को आलू की सब्जी और रोटी खिला रही थी और मैं इधर प्रायश्चित की आग में जल रही थी ।
सोच रही थी कि जब भी इसका बेटा राजू मेरे घर आता था मैं उसे एक तरफ बिठा देती थी, उसको नफरत से देखती थी और इन लोगों के मन में हमारे प्रति कितना प्रेम है ।
यह सब सोच सोच कर मैं आत्मग्लानि से भरी जा रही थी। मेरा मन दुख और पश्चाताप से भर गया था।
तभी मेरी नज़र राजू के पैरों पर गई जो लंगड़ा कर चल रहा था।
मैंने राधा से पूछा "राधा इसके पैर को क्या हो गया तुमने इलाज नहीं करवाया ?"
राधा ने बड़े दुख भरे शब्दों में कहा मैडम इसके पैर का ऑपरेशन करवाना है जिसका खर्च करीबन ₹ 10000 रुपए है।
मैंने और राजू के पापा ने रात दिन मेहनत कर के ₹5000 तो जोड़ लिए हैं ₹5000 की और आवश्यकता है। हमने बहुत कोशिश की लेकिन कहीं से मिल नहीं सके ।
ठीक है, भगवान का भरोसा है, जब आएंगे तब इलाज हो जाएगा। फिर हम लोग कर ही क्या सकते हैं?
तभी मुझे ख्याल आया कि राधा ने एक बार मुझसे ₹5000 अग्रिम मांगे थे और मैंने बहाना बनाकर मना कर दिया था।
आज वही राधा अपने पल्लू में बंधे सारे रुपए हम पर खर्च कर के खुश थी और हम उसको, पैसे होते हुए भी मुकर गए थे और सोच रहे थे कि बला टली।
आज मुझे पता चला कि उस वक्त इन लोगों को पैसों की कितनी सख्त आवश्यकता थी।
मैं अपनी ही नजरों में गिरती ही चली जा रही थी।
अब मुझे अपने शारीरिक जख्मों की चिंता बिल्कुल नहीं थी बल्कि उन जख्मों की चिंता थी जो मेरी आत्मा को मैंने ही लगाए थे। मैंने दृढ़ निश्चय किया कि जो हुआ सो हुआ लेकिन आगे जो होगा वह सर्वश्रेष्ठ ही होगा।
मैंने उसी वक्त राधा के घर में जिन जिन चीजों का अभाव था उसकी एक लिस्ट अपने दिमाग में तैयार की। थोड़ी देर में मैं लगभग ठीक हो गई।
मैंने अपने कपड़े चेंज किए लेकिन वह गाउन मैंने अपने पास ही रखा और राधा को बोला "यह गाऊन अब तुम्हें कभी भी नहीं दूंगी यह गाऊन मेरी जिंदगी का सबसे अमूल्य तोहफा है।"
राधा बोली मैडम यह तो बहुत हल्की रेंज का है। राधा की बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं घर आ गई लेकिन रात भर सो नहीं पाई ।
मैंने अपनी सहेली के मिस्टर, जो की हड्डी रोग विशेषज्ञ थे, उनसे राजू के लिए अगले दिन का अपॉइंटमेंट लिया। दूसरे दिन मेरी किटी पार्टी भी थी । लेकिन मैंने वह पार्टी कैंसिल कर दी और राधा की जरूरत का सारा सामान खरीदा और वह सामान लेकर में राधा के घर पहुंच गई।
राधा समझ ही नहीं पा रही थी कि इतना सारा सामान एक साथ में उसके घर मै क्यों लेकर गई।
मैंने धीरे से उसको पास में बिठाया और बोला मुझे मैडम मत कहो मुझे अपनी बहन ही समझो यह सारा सामान मैं तुम्हारे लिए नहीं लाई हूं मेरे इन दोनों प्यारे बच्चों के लिए लाई हूं और हां मैंने राजू के लिए एक अच्छे डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है अपन को शाम 7:00 बजे उसको दिखाने चलना है उसका ऑपरेशन जल्द से जल्द करवा लेंगे और तब राजू भी अच्छी तरह से दोड़ने लग जाएगा। राधा यह बात सुनकर खुशी के मारे रो पड़ी लेकिन यह भी कहती रही कि "मैडम यह सब आप क्यों कर रहे हो?" हम बहुत छोटे लोग हैं हमारे यहां तो यह सब चलता ही रहता है। वह मेरे पैरों में गिरने लगी। यह सब सुनकर और देखकर मेरा मन भी द्रवित हो उठा और मेरी आंखों से भी आंसू के झरने फूट पड़े। मैंने उसको दोनों हाथों से ऊपर उठाया और गले लगा लिया मैंने बोला बहन रोने की जरूरत नहीं है अब इस घर की सारी जवाबदारी मेरी है। मैंने मन ही मन कहा राधा तुम क्या जानती हो कि मैं कितनी छोटी हूं और तुम कितने बड़ी हो आज तुम लोगों के कारण मेरी आंखे खुल सकीं। मेरे पास इतना सब कुछ होते हुए भी मैं भगवान से और अधिक की भीख मांगती रही मैंने कभी संतोष का अनुभव नहीं किया।
लेकिन आज मैंने जाना के असली खुशी पाने में नहीं देने में है ।
मैं परमपिता परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कि आज उन्होंने मेरी आंखें खोल दी। मेरे पास जो कुछ था वह बहुत अधिक था उसके लिए मैंने परमात्मा को बार-बार अपने ऊपर उपकार माना तथा उस धन को जरूरतमंद लोगों के बीच खर्च करने का पक्का निर्णय किया।
बहू नहीं बेटी घर लाओ...
नई बहू से बात करते हुए सासु माँ ने बोली आज मेरे पैरों में बहुत दर्द हैं तभी बेटा देखों माँ के पैरों में दर्द है दबा दो
बहुँ-: मैं सुबह से काम करके थक गई हूँ , मुझे नींद आ रही हैं मैं सोने जा रही हुँ ।
पति चिल्लाते हुए -: शिखाआआ....😡😡
तभी सासु -: हाय राम ! दो दिन की आयी हुई और ऐसे ज़ुबान चला रही है ।
कोई संस्कार है या नही तुमे
शिखा : मम्मी जी आप लोगों ने मांगा नही था ।
सासु : क्या मतलब
शिखा : हाँ मम्मी जी,
आपलोगों ने जो दहेज के समान का लिस्ट लिखा था उसमें संस्कार तो कही नही लिखा था । फ़्रीज, टी वी, AC,..अलमारी, कैश, गाड़ी, सोने के सभी जेवरात..बेड, सोफा, वाशिंग मशीन, डिनर सेट, और घर के जरूरत का सब समान लिखा था पर #संस्कार नहीं लिखा था, मम्मी जी औऱ से सब जुटाने में मेरे पापा ने घर गिरवी रख दिया माँ ने सभी जेवर बेच दिया, पापा के दोस्तों ने कुछ आर्थिक मदद की और कुछ कर्ज बैंक से हुआ है । बस इसी सब मे मैंने अपना संस्कार_भी_बेच_दिया । पति और सास की नज़र झुकी रह गयी ।
एक गृहणी वो रोज़ाना की तरह आज फिर इश्वर का नाम लेकर उठी थी ।
किचन में आई और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया।
फिर बच्चों को नींद से जगाया ताकि वे स्कूल के लिए तैयार हो सकें ।
कुछ ही पलों मे वो अपने सास ससुर को चाय देकर आयी फिर बच्चों का नाश्ता तैयार किया और इस बीच उसने बच्चों को ड्रेस भी पहनाई।
फिर बच्चों को नाश्ता कराया।
पति के लिए दोपहर का टिफीन बनाना भी जरूरी था।
इस बीच स्कूल का रिक्शा आ गया और वो बच्चों को रिक्शा तक छोड़ने चली गई ।
वापस आकर पति का टिफीन बनाया और फिर मेज़ से जूठे बर्तन इकठ्ठा किये ।
इस बीच पतिदेव की आवाज़ आई की मेरे कपङे निकाल दो ।
उनको ऑफिस जाने लिए कपङे निकाल कर दिए।
अभी पति के लिए उनकी पसंद का नाश्ता तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था की छोटी ननद आई और ये कहकर ये कहकर गई की भाभी आज मुझे भी कॉलेज जल्दी जाना, मेरा भी नाश्ता लगा देना।
तभी देवर की भी आवाज़ आई की भाभी नाश्ता तैयार हो गया क्या?
अभी लीजिये नाश्ता तैयार है।
पति और देवर ने नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने अपने ऑफिस के लिए निकल चले ।
उसने मेज़ से खाली बर्तन समेटे और सास ससुर के लिए उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी ।
दोनों को नाश्ता कराने के बाद फिर बर्तन इकट्ठे किये और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी ।
इस बीच सफाई वाली भी आ गयी ।
उसने बर्तन का काम सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगेरा इकट्ठा करने पहुँच गयी और फिर सफाई वाली के साथ मिलकर सफाई में जुट गयी ।
अब तक 11 बज चुके थे, अभी वो पूरी तरह काम समेट भी ना पायी थी की काल बेल बजी ।
दरवाज़ा खोला तो सामने बड़ी ननद और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे ।
उसने ख़ुशी ख़ुशी सभी को आदर के साथ घर में बुलाया और उनसे बाते करते करते उनके आने से हुई ख़ुशी का इज़हार करती रही ।
ननद की फ़रमाईश के मुताबिक़ नाश्ता तैयार करने के बाद अभी वो नन्द के पास बेठी ही थी की सास की आवाज़ आई की बहु खाने का क्या प्रोग्राम हे ।
उसने घडी पर नज़र डाली तो 12 बज रहे थे ।
उसकी फ़िक्र बढ़ गयी वो जल्दी से फ्रिज की तरफ लपकी और सब्ज़ी निकाली और फिर से दोपहर के खाने की तैयारी में जुट गयी ।
खाना बनाते बनाते अब दोपहर का दो बज चुके थे ।
बच्चे स्कूल से आने वाले थे, लो बच्चे आ गये ।
उसने जल्दी जल्दी बच्चों की ड्रेस उतारी और उनका मुंह हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया ।
इस बीच छोटी नन्द भी कॉलेज से आगयी और देवर भी आ चुके थे ।
उसने सभी के लिए मेज़ पर खाना लगाया और खुद रोटी बनाने में लग गयी ।
खाना खाकर सब लोग फ्री हुवे तो उसने मेज़ से फिर बर्तन जमा करने शुरू करदिये ।
इस वक़्त तीन बज रहे थे ।
अब उसको खुदको भी भूख का एहसास होने लगा था ।
उसने हॉट पॉट देखा तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी ।
उसने फिर से किचिन की और रुख किया तभी पतिदेव घर में दाखिल होते हुये बोले की आज देर होगयी भूख बहुत लगी हे जल्दी से खाना लगादो ।
उसने जल्दी जल्दी पति के लिए खाना बनाया और मेज़ पर खाना लगा कर पति को किचिन से गर्म रोटी बनाकर ला ला कर देने लगी ।
अब तक चार बज चुके थे ।
अभी वो खाना खिला ही रही थी की पतिदेव ने कहा की आजाओ तुमभी खालो ।
उसने हैरत से पति की तरफ देखा तो उसे ख्याल आया की आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं ।
इस ख्याल के आते ही वो पति के साथ खाना खाने बैठ गयी ।
अभी पहला निवाला उसने मुंह में डाला ही था की आँख से आंसू निकल आये
पति देव ने उसके आंसू देखे तो फ़ौरन पूछा की तुम क्यों रो रही हो ।
वो खामोश रही और सोचने लगी की इन्हें कैसे बताऊँ की ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता हे और लोग इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं ।
पति के बार बार पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा की कुछ नहीं बस ऐसे ही आंसू आगये ।
पति मुस्कुराये और बोले कि तुम औरते भी बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो, बिना वजह रोना शुरू करदेती हो।
आप इसे शेयर नहीं करेंगे, अगर आपको भी लगता है की गृहणी मुफ़्त की रोटियां तोड़ती है ।
सभी गृहणियों को सादर समर्पित..🙏🏼
कल मैं दुकान से जल्दी घर चला आया। आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूं, कल 8 बजे ही चला आया।
सोचा था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा, फिर कहूंगा कि कहीं बाहर खाना खाने चलते हैं। बहुत साल पहले, , हम ऐसा करते थे।
घर आया तो पत्नी टीवी देख रही थी। मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है, मैं कम्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा, कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई, तो मैं चाय पीता हुआ दुकान के काम करने लगा।
अब मन में था कि पत्नी के साथ बैठ कर बातें करूंगा, फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा, पर कब 8 से 11 बज गए, पता ही नहीं चला।
पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया, मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते हुए मैंने कहा कि खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे, गप करेंगे। पत्नी खुश हो गई।
हम खाना खाते रहे, इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा और मैं खाते-खाते सीरियल में डूब गया। सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था।
जब नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी।
बहुत अफसोस हुआ। मन में सोच कर घर आया था कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा। पर यहां तो शाम क्या आधी रात भी निकल गई।
ऐसा ही होता है, ज़िंदगी में। हम सोचते कुछ हैं, होता कुछ है। हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे, पर हम कभी नहीं जीते। हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे, पर नहीं कर पाते।
आधी रात को सोफे से उठा, हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा दिन के काम से थकी हुई सो गई थी। मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोच रहा था।
पच्चीस साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था। पीले रंग के शूट में मुझे मिली थी। फिर मैने इससे शादी की थी। मैंने वादा किया था कि सुख में, दुख में ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।
पर ये कैसा साथ? मैं सुबह जागता हूं अपने काम में व्यस्त हो जाता हूं। वो सुबह जागती है मेरे लिए चाय बनाती है। चाय पीकर मैं कम्यूटर पर संसार से जुड़ जाता हूं, वो नाश्ते की तैयारी करती है। फिर हम दोनों दुकान के काम में लग जाते हैं, मैं दुकान के लिए तैयार होता हूं, वो साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है। फिर हम दोनों भविष्य के काम में लग जाते हैं।
मैं एकबार दुकान चला गया, तो इसी बात में अपनी शान समझता हूं कि मेरे बिना मेरा दुकान का काम नहीं चलता, वो अपना काम करके डिनर की तैयारी करती है।
देर रात मैं घर आता हूं और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं। एक पूरा दिन खर्च हो जाता है, जीने की तैयारी में।
वो पंजाबी शूट वाली लड़की मुझ से कभी शिकायत नहीं करती। क्यों नहीं करती मैं नहीं जानता। पर मुझे खुद से शिकायत है। आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है, सबसे कम उसी की परवाह करता है। क्यों?
कई दफा लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते। हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए काम करते हैं। हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं।
कल से मैं सोच रहा हूं, वो कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे। क्या हम गाड़ी, टीवी, फोन, कम्यूटर, कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं?
मैं तो सोच ही रहा हूं, आप भी सोचिए
कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे यूं जाया मत कीजिए। अपने प्यार को पहचानिए। उसके साथ समय बिताइए। जो अपने माँ बाप भाई बहन सागे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश्ता जोड़ आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा किया उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही।
एक दिन अफसोस करने से बेहतर है, सच को आज ही समझ लेना कि ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है। कब मुट्ठी से वो निकल जाएगी, पता भी नहीं चलेगा।