एक बार कुछ बंदरों को एक बड़े से पिंजरे में डाला गया और वहां पर एक सीढी लगाई गई| सीढी के ऊपरी भाग पर कुछ केले लटका दिए गए|
उन केलों को खाने के लिए एक बन्दर सीढी के पास पहुंचा| जैसे ही वह बन्दर सीढी पर चढ़ने लगा, उस पर बहुत सारा ठंडा पानी गिरा दिया गया और उसके साथ-साथ बाकी बंदरों पर भी पानी गिरा दिया गया| पानी डालने पर वह बन्दर भाग कर एक कोने में चला गया|
थोड़ी देर बाद एक दूसरा बन्दर सीढी के पास पहुंचा| वह जैसे ही सीढी के ऊपर चढ़ने लगा, फिर से बन्दर पर ठंडा पानी गिरा दिया गया और इसकी सजा बाकि बंदरों को भी मिली और साथ-साथ दूसरे बंदरो पर भी ठंडा पानी गिरा दिया गया | ठन्डे पानी के कारण सारे बन्दर भाग कर एक कोने में चले गए|
यह प्रक्रिया चलती रही और जैसे ही कोई बन्दर सीढी पर केले खाने के लिए चढ़ता, उस पर और साथ-साथ बाकि बंदरों को इसकी सजा मिलती और उन पर ठंडा पानी डाल दिया जाता|
बहुत बार ठन्डे पानी की सजा मिलने पर बन्दर समझ गए कि अगर कोई भी उस सीढी पर चढ़ने की कोशिश करेगा तो इसकी सजा सभी को मिलेगी और उन सभी पर ठंडा पानी डाल दिया जाएगा|
अब जैसे ही कोई बन्दर सीढी के पास जाने की कोशिश करता तो बाकी सारे बन्दर उसकी पिटाई कर देते और उसे सीढी के पास जाने से रोक देते|
थोड़ी देर बाद उस बड़े से पिंजरे में से एक बन्दर को निकाल दिया गया और उसकी जगह एक नए बन्दर को डाला गया|
नए बन्दर की नजर केलों पर पड़ी| नया बन्दर वहां की परिस्थिति के बारे में नहीं जानता था इसलिए वह केले खाने के लिए सीढी की तरफ भागा| जैसे ही वह बन्दर उस सीढी की तरफ भागा, बाकि सारे बंदरों ने उसकी पिटाई कर दी|
नया बन्दर यह समझ नहीं पा रहा था कि उसकी पिटाई क्यों हुई | लेकिन जोरदार पिटाई से डरकर उसने केले खाने का विचार छोड़ दिया|
अब फिर एक पुराने बन्दर को उस पिंजरे से निकाला गया और उसकी जगह एक नए बन्दर को पिंजरे में डाला गया| नया बन्दर बेचारा वहां की परिस्थिति को नहीं जनता था इसलिए वह केले खाने के लिए सीढी की तरफ जाने लगा और यह देखकर बाकी सारे बंदरों ने उसकी पिटाई कर दी| पिटाई करने वालों में पिछली बार आया नया बन्दर भी शामिल था जबकि उसे यह भी नहीं पता था कि यह पिटाई क्यों हो रही है|
यह प्रक्रिया चलती रही और एक-एक करके पुराने बंदरों की जगह नए बंदरों को पिंजरे में डाला जाने लगा| जैसे ही कोई नया बन्दर पिंजरे में आता और केले खाने के लिए सीढी के पास जाने लगता तो बाकी सारे बन्दर उसकी पिटाई कर देते|
अब पिंजरे में सारे नए बन्दर थे जिनके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था| उनमें से किसी को यह नहीं पता था कि केले खाने के लिए सीढी के पास जाने वाले की पिटाई क्यों होती है लेकिन उन सबकी एक-एक बार पिटाई हो चुकी थी|
अब एक और बन्दर को पिंजरे में डाला गया और आश्चर्य कि फिर से वही हुआ| सारे बंदरों ने उस नए बन्दर को सीढी के पास जाने से रोक दिया और उसकी पिटाई कर दी जबकि पिटाई करने वालों में से किसी को भी यह नहीं पता था कि वह पिटाई क्यों कर रहे है|
हमारे जीवन भी ऐसा ही कुछ होता है| अन्धविश्वास और कुप्रथाओं का चलन भी कुछ इसी तरह होता है क्योंकि उन हम लोग प्रथाओं और रीति-रिवाजों के पीछे का कारण जाने बिना ही उनका पालन करते रहते है और नए कदम उठाने की हिम्मत कोई नहीं करता क्योंकि ऐसा करने पर समाज के विरोध करने का डर बना रहता है|
कोई भी कुछ नया करने की सोचता है तो उसे कहीं न कहीं लोगों के विरोध का सामना करना ही पड़ता है|
भारत की जनसँख्या 121 करोड़ से ऊपर है लेकिन भारत खेलों में बहुत पीछे है क्योंकि ज्यादातर अभिवावक अपने बच्चों को खेल के क्षेत्र में जाने से रोकते है क्योंकि बाकी सारा समाज भी ऐसा ही कर रहा है| उन्हें असफलता का डर लगा रहता है|
ये बड़ी अजीब बात है कि अभी हाल ही में उतरप्रदेश में चपरासी के सिर्फ 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आए थे और उसमें से भी 1.5 लाख ग्रेजुएट्स, 25000 पोस्ट ग्रेजुएट्स थे और 250 आवेदक ऐसे थे जिन्होंने पीएचडी की हुई थी|
दूसरी तरफ भारत को आज भी विदेशों से लाखों करोड़ का सामान इम्पोर्ट करना पड़ता है और खेल जैसे क्षेत्र में भारत बहुत पीछे है|
संभावनाएं बहुत है लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाते क्योंकि हम भीड़चाल में चलते है|
ये हमारी मानसिकता ही है जो हमें पीछे धकेल रही है| हम चाहें तो बन्दर की तरह लोगों की देखा देखी कर सकते या फिर खुद की स्वतन्त्र सोच के बल पर सफलता की सीढी चढ़ सकते है
आज हम जब दोपहर को खाना खाने घर गया तो देखा कि हमारी बिटिया ने अपना गुल्लक तोड़ दिया था और पैसे अपने दुप्पटे मे इकट्ठा कर रही थी
मैने पूंछा यह गुल्लक क्यों तोड़ दिया
तो रोने लगी और दौड कर हमारे पास आकर हमसे लिपट कर रोने लगी
और बोली। पापा हमारी चाची बीमार है चाचा काम करने गये हैं चाची को तेज बुखार है चाची दर्द से कराह रहीं है
मै एक छण अपनी बिटिया को देखता रहा और मेरी आंखों में आँसू आ गये। हमने कहा कि चाची के साथ तो तुम्हारी मां का झगड़ा है । तुम यह सब क्यों कर रही हो ।
बिटिया ने धीरे से कहा कि मम्मी और चाची का झगड़ा है हमारा नही
हमने अपने छोटे भाई को फोन किया और पूंछा कहां हो
बो बोला काम मे बिजी हू। साम तक आ पाऊगा
हमने डाक्टर साहब को बुलाया बहू का इलाज कराया
हम अपने जेब से पैसे निकाल कर देने लगा तो बिटिया बोली
डाक्टर अंकल बो पैसे ना लो । यह हमारी गुल्लक बाले पैसे ले लीजिए
डाक्टर साहब एक छण हमारी तरफ देखते हुए बोले माजरा क्या है
हमने पूरा बाक्या सुनाया
डाक्टर साहब नम आंखों से हमसे बोले
देखलो किशनपाल ऐसी होतीं हैं बिटियां। ।।।।।।
डाक्टर जी ने कुछ दवाइयां लिख कर पर्चा देते हुए कहा हमे फीस नही चाहिए
इन्ही पैसे से आपकी बिटिया की सादी में हमारी तरफ से एक तोहफ़ा दे देना
मै हैरान था ➕ कि हम जिन बेटों के लिए बेटियों का गर्भपात करवा देते है । और बाद मे बो ही बेटे हमको घर से बाहर आश्रम में रहने भेज देते है ।।
इसलिए भाइयो
बेटी की रक्षा
देश की रक्षा
आप सभी को बेटी बचाओ बेटी पढाओ का अनुसरण देता हूँ। शेयर जरूर करें
तुम बहुत अच्छे हो
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ठंड अपने पूरे यौवन पर थी। अभी रात के आठ बजे थे, लेकिन ऐसा लगता था कि आधी रात हो गई है। मैं अम्बाला छावनी बस स्टैंड पर शहर आने के लिए लोकल बस की इंतज़ार कर रहा था। जहां मैं खड़ा था उससे कुछ ही दूरी पर दो-तीन ऑटो रिक्शा वाले एवं टैक्सी वाले खड़े थे। मुझे वहां खड़े हुए लगभग बीस-पच्चीस मिनट हो चुके थे, लेकिन बस थी कि आ ही नहीं रही थी। खड़े-खड़े ठंड के कारण मेरी देह अकड़ने लगी थी।
ऑटो-रिक्शा वाले से बात की तो उसने शहर जाने के लिए चालीस रुपये मांगे थे। बस में जाने से चार रुपये और ऑटो-रिक्शा में जाने से चालीस रुपये। घर जल्दी पहुंच कर भी क्या करना है? मैंने मन को समझाया। ख़ामख़ाह में छत्तीस रुपये की नक़द चपत लगेगी। जबकि इन छत्तीस रुपये से मुझ जैसे नौकरीपेशा युक्त व्यक्ति की बहुत-सी ज़रूरतें पूरी हो सकती थीं। बहुत-सी समस्याएं सुलझ सकती थीं।
मैं इसी उधेड़बुन में था कि जाऊं या नहीं, तभी दूर से एक बस की ‘हैड-लाइट’ नज़र आई थी। बस नज़दीक आई। मेरी नज़रें गिद्ध समान बस से चिपकी थी। बस देहरादून से आई थी और चंडीगढ़ जानी थी। बस स्टैंड पर बस रुकी। उतरने वाली तीन-चार सवारियां ही थीं। उन सवारियों में एक युवा लड़की भी थी। कंधे पर सामान का एक बैग झूलता हुआ। उतरने वाली अन्य सवारियां रिक्शा करके जा चुकी थीं। वह युवा लड़की भी किसी अन्य वाहन की तलाश में थी।
तभी वह लड़की ऑटो-रिक्शा वाले के पास गई, बोली, “भैया! अम्बाला शहर के लिए कोई बस…..?” वाक्य उसने अधूरा छोड़ दिया था।
ऑटो-रिक्शा वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारने के बाद कहा, “इस समय कोई बस नहीं मिलेगी। ऑटो रिक्शा में चलना है तो…..?”
“कितने पैसे लोगे? उसने पूछा।”
“40 रुपये।”
“यहां से कितनी दूर है?” उसने फिर पूछा।
“यही कोई 10-11 किलोमीटर!”
वह चुप हो गई। सोचती रही। ‘चार्जेज़’ बहुत ज़्यादा हैं। दूसरी वह अकेली…..? कहीं रास्ते में…..? वह सिहर उठी थी।
उसके चेहरे पर घबराहट और भय के मिले-जुले भाव थे।
तभी वहां दो युवक आ गए। शक्ल से वे ‘शरीफ़’ नहीं लग रहे थे। पान चबाते हुए उनमें से एक ने उस लड़की को देख कर मुस्कुरा कर पूछा, “कहां जाओगी?”
“मुझे शहर जाना है।” स्वर में हल्का-सा कंपन था। पैर लरज़ रहे थे।
“हम छोड़ देंगे।” दाढ़ी वाला दूसरा युवक मुस्कुराया आंखों में अजीब-सी चमक लिए हुए।
ठंड और भी बढ़ गई थी। लेकिन उस युवा लड़की की ‘पेशानी’ पर पसीने की बूंदे झिलमिलाने लगी थीं। आंखों में भय के साथ-साथ नमी भी झलकने लगी थी।
मैं उनके बीच ‘बिन बादल बरसात’ की तरह टपक पड़ा।
“सुनिये!” मैं लड़की का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए धीरे से बड़बड़ाया।
सवालिया निगाहें उस युवा लड़की के साथ-साथ उन दोनों युवकों व पास ही खड़े ऑटो-रिक्शा चालक की मुझ पर उठी थीं।
“आप शहर जा रही हैं न?” जानते-बूझते हुए भी मैंने एक प्रश्न किया था।
उस लड़की ने गर्दन ‘हां’ में हिलाई। चेहरे पर अब भी ख़ौफ़ था।
“मुझे भी शहर जाना है। अगर आप मेरे साथ चलना चाहो तो…..?” न जाने कैसे ये शब्द मैं उससे कह गया था? मन में डर भी था कि कहीं वह लड़की मुझे ग़लत न समझ ले। डर उन ‘तीनों’ से भी था जो वहां खड़े थे।
मुझे उस युवा लड़की से बातें करते देख वे तीनों वहां से सटके थे। मैंने भी राहत की सांस ली।
मेरे प्रश्न के उत्तर में वह मेरे पास खिसक आई। उसका पास आना उसकी स्वीकृति का सूचक था कि उसे मुझ पर विश्वास था। बस अभी भी दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही थी।
“आप कहां से आ रही हैं?” मैंने पूछा।
“मेरठ से!” संक्षिप्त-सा उसने उत्तर दिया।
“शहर कहां जाना है?” मैंने फिर प्रश्न किया।
“मैं ‘मेडिकल होस्टल’ में रहती हूं।” वह बोली।
कुछ देर मैं चुप रहा। क्या बात करूं यही सोचता रहा। फिर मैंने कहा, “आप को दिन में आना चाहिए था या फिर किसी को साथ लेकर?”
“वैसे पापा ने आना था, मगर उनकी तबीयत अचानक ख़राब हो गई।” वह मजबूरी बताते हुए बोली।
“तो किसी और को साथ….. मतलब भाई…..?”
“घर में छोटा भाई व छोटी बहन ही है। इसीलिए…..? फिर भी मैं समय से ही चली थी। लेकिन सहारनपुर में बस स्टैंड पर चालकों ने पहिया जाम कर दिया था। शायद किसी पैसेंजर से झगड़ा हो गया था। अन्यथा मैं सायं को ही यहां पहुंच जाती।” उसने अपनी बेबसी व मजबूरी झलकाई थी।
“बस तो आ नहीं रही, क्या आप मेरे साथ ऑटो-रिक्शा में चलना पसंद करोगी? किराया आधा-आधा कर लेंगे।” मैंने व्यावहारिक बनने की कोशिश की।
इससे पूर्व कि वह कोई जवाब देती, वही दोनों युवक एक मारुति में नज़र आये। उनमें से एक उस लड़की को देख कर चिल्लाया, “अम्बाला शहर…… अम्बाला शहर।”
मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा था और शायद यही हाल उसका भी था। उसकी हालत देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वह किस क़दर भयभीत हो उठी थी। मैं कोई फ़िल्मी हीरो नहीं था कि उन दोनों का मुक़ाबला कर सकता। पर साथ ही मुझे साथ खड़ी लड़की का ख़्याल आया। आज निस्संदेह इस लड़की के सितारे गर्दिश में हैं। इसके साथ आज कुछ भी हो सकता है। अगर मैं न होता तो शायद यह उनके साथ चली जाती? और फिर…..? मैं कल्पना-मात्र से ही सिहर उठा।
तभी बस आती नज़र आई। “लगता है बस आ रही है!” मैंने उस युवा लड़की से कहा। नज़रें, आ रही बस पर टिकी थीं। बस आकर रुकी थी। मैं बस में चढ़ा। मेरे पीछे वह भी चढ़ी थी। मैंने दो टिकट शहर की ली। उसने टिकट के पैसे देने चाहे थे। मैंने मना कर दिया। अजनबियत की पारदर्शी दीवार हम दोनों के बीच गिर चुकी थी।
हम दोनों साथ-साथ बस में बैठे थे। मैं उससे इस क़दर हट कर बैठा था, मानों मुझे या उसे छूत की बीमारी हो या फिर उसके कोमल मन पर इस धारणा को पक्की करने की ललक में था कि मैं कोई ग़लत युवक नहीं हूं। मैं ऐसा क्यों कर रहा था, यह मेरी समझ से बाहर था। क्या मैं उसकी ओर आकर्षित हो रहा हूं? मेरे पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं था।
“आप क्या करते हैं?” उसने अचानक मुझ से सवाल किया।
“मैं…..?” मैं उसकी ओर देखते हुए चौंका, बोला, “सरकारी नौकरी में हूं….. साथ ही लेखन से जुड़ा हूं।” बेवजह मैंने अपने लेखन की बात कही। शायद उसे प्रभावित करने के लिए।
“किस नाम से?” उसने खिड़की से बाहर झिलमिलाती रौशनियों की ओर देखते हुए पूछा।
“दीपांकर नाम से। वैसे मेरा नाम भी ‘दीपांकर’ है।” मैं सोच रहा था कि नाम सुन कर वह कहेगी, “हां! मैंने इस नाम को पढ़ा है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं कोई बड़ा लेखक नहीं था उसकी नज़र में।”
“वह ख़ामोश हो गई थी। मैंने कनखियों से उसकी तरफ़ देखा। वह सुन्दर थी- बेहद सुन्दर। उसकी सादगी दिल में उतर जाने वाली थी, सीधे ही। एक सुकून पहुंचाने वाली।”
“आप मेडिकल होस्टल में…..?”
मेरी बात का आशय समझ वह बोली, “जी! मैं नर्स की ‘ट्रेनिंग’ ले रही हूं।”
तब तक हमारी मंज़िल तक बस पहुंच चुकी थी। मैंने उससे धीमे स्वर में कहा, “आओ! दरवाज़े के पास चलें।”
हम दोनों बस से उतरे थे। वहां से मेडिकल होस्टल का पैदल रास्ता 5-7 मिनट का था। इस वक़्त वहां गहन अंधेरा फैला था।
“कहो तो ‘तुम्हें’ मेडिकल होस्टल तक छोड़ आऊं?” मैंने उससे पूछा।
“अगर आपको तकलीफ़ न हो तो…..?” उसने वाक्य अधूरा छोड़ कर मेरी तरफ़ देखा।
“नहीं….. नहीं, तकलीफ़ कैसी? मैं आपको छोड़ देता हूं।” मैंने कलाई की ओर बंधी घड़ी की ओर देखते हुए कहा।
होस्टल तक का सफ़र हमने चुपचाप पैदल पार किया। होस्टल पहुंच कर वॉर्डन से सामना हुआ। वॉर्डन ने कुछेक प्रश्न मुझसे पूछे और कुछ उससे।
वॉर्डन के सामने ही उसने मुझसे मेरा पता पूछा था। मैंने उसे पता लिख कर दिया।
वॉर्डन ने मुझे घूरा था, बोली, “आप इसे पत्र लिखेंगे?”
मैं चुप रहा। वॉर्डन की ओर देखते हुए उसके कहने का मतलब समझने की कोशिश करता रहा।
“देखिए! आप पत्र सोच-समझ कर डालना।”
“मतलब?” मैंने पूछा।
“यहां पत्र खोले जाते हैं। कहीं ऐसा-वैसा पत्र…..?”
मैं मुस्कुराया था। फिर उस युवा लड़की की ओर देखा, फिर बोला, “आप मुझे ग़लत समझ रही हैं। पता इन्होंने मुझसे लिया है। मैं न तो इनका नाम जानता हूं, न ही पता। ये पत्र लिखना चाहें तो इनकी मर्ज़ी।”
इतना कह कर मैं चलने के लिए उठा। उस युवा लड़की की ओर देखा। कृतज्ञता के भाव उसके चेहरे पर फैले थे।
वह बाहर छोड़ने को आई थी। आंखों में नमी फैल गई थी उसकी। बोली, “आपका यह एहसान मैं ज़िन्दगी भर न भूल पाऊंगी।”
मैं कुछ नहीं बोला। वहां से चला आया। घर पहुंचता हूं। रात के लगभग दस बज रहे हैं। पत्नी मेरे इंतज़ार में खाने के लिए बैठी हुई थी।
“आज बहुत देर कर दी।” मेरी आंखों में प्यार से झांकते हुए पत्नी ने कहा।
पत्नी को सारा क़िस्सा सुनाता हूं। वह ख़ामोशी से टकटकी बांधे ग़ौर से मेरी बात सुनती रही।
क़िस्सा सुनाने के बाद पूछता हूं, “ऐसे क्या देख रही हो मुझे?” मन ही मन सोचता हूं कि पत्नी कहीं शक तो नहीं कर रही।
वह उठती है। मेरे समीप आकर मेरी नाक अपने दांए हाथ के अंगूठे व सांकेतिक उंगली से दबा कर चहकते हुए कहती है, “तुम….. तुम बहुत अच्छे हो।”
पत्नी की आंखों में छाया विश्वास मन को गुदगुदा गया। पत्नी को बांहों में भर कर धीमे से उसके कानों में गुनगुना उठता हूं, “और….. तुम….. भी तो…..!”
"मां...सौतेली मां"
रीता बडी खूबसुरत लड़की थी जोकि शादी लायक हो चली थी उसकी शादी की बात घर मे चलने लगी और तय दिन लड़के वालो का घर मे आना तय हुआ तो बुआजी ओर रीता ने अपनी मां से कहा - जब लड़के वाले आये तो तुम अंदर ही रहना ...हम नहीं चाहते की तुम उनके सामने आओ ..एक तो तुम सौतेली ऊपर से बदसूरत... असल मे रीता की मां का चेहरा काफी हद तक जला हुआ था मां ने कुछ नहीं कहा और बस मुस्करा दिया की -ठीक हैं मैं उनके सामने नहीं आउंगी.. हालांकि पिता ने बहन ओर बेटी को समझाने की कोशिश की तो बडी बहन नाराज हो गई
लड़के वाले आये और रिश्ता भी पक्का हो गया उसके पिता ने शादी की तारीख भी तय कर दी तब रीता ने अपनी मां से कहा की -देखा तुम्हारे सामने नहीं आने से मेरा रिश्ता तय हो गया
बस कुछ ही दिन की बात है फिर तुम्हारा ये मनहुस चेहरा मैं कभी नहीं देखूंगी..मां फिर से मुसकुरा दी रीता अपनी शादी की तैयारी मे मां को कभी सामने नहीं रखती ना ही अपने सामान को हाथ लगाने देती तब भी मां ने उसे कभी कुछ नहीं कहा कुछ दिनो बाद शादी का वो वक़्त भी आ गया..शादी होते वक़्त जब लड़के वालो ने रीता की मां के बारे मे पूछते तो बुआजी बहाना बनाकर टाल देती....लेकिन आखिर विदाई के वक़्त लड़के वाले रीता की मां से मिलने की बात पर अड़ गए.. और गुस्से मे रीता की मां बुरा भला कहने लगे की -कैसी मां है ये जो अपनी इकलौती बेटी की विदाई मे नहीं है अपनी पत्नी के बारे मे अपशब्द सुनकर रीता के पिता से ना रहा गया और उसने कहा की -बस कीजिए आप लोग
मैं बताता हूं की आखिर कयो वो सामने क्यो नहीं आई...रीता की पहली मां तो उसे जन्म देकर भगवान को प्यारी हो गई उसकी परवरिश को मैने दूसरी शादी की एक बेहद खूबसूरत लडकी से रीता की परवरिश अच्छे से हो इसीलिए उसने अपनी औलाद की कभी इच्छा नही की लेकिन उस दिन...-जब रीता 3 साल की थी तब हमारे घर मे अचानक आग लग गयी थी और रीता उस समय अकेली सो रही थी, तब मेरी खूबसुरत पत्नी ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए अपनी बेटी को बचाया, ज़िसकी वजह से उसका पूरा चेहरा जल गया अगर उस दिन इसकी मां इसे ना बचाती तो शायद आज ये इस दुनिया मे ना होती और मेरी पत्नी आज भी सुन्दर होती
ये सुनकर दुल्हन बनी रीता की आँखो से झर-झर आंसू बहने लगे और वो अपनी मां को पुकारती उसके कमरे की और दौड़ पड़ी जहां उसकी मां रीता की बचपन की एक छोटी सी गुडिया को अपनी बाहो मे पकड़े फूट फूट कर रो रही थी रीता दौड़ कर अपनी मां के पास गई और अपने किए की माफी मांगने लगी...
दोस्तो ऐसा सिर्फ एक मां ही कर सकती है मां के प्यार को बताने की एक छोटी सी कोशिश..