Hindi Kahaniyan
Aik Aurat Aur Uska Pati
पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे। सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे। बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे। लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे। " साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।" टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।" " आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा। " तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।" " ये लो साब, रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला। " नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी। ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही। चलो, जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।" इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला। आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो।
दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे ऐसे बैठे थे ,मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके शोक में जा रहे हो। कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए? क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा? नहीं-नहीं। आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।" " ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।"
पत्नी के कहा। " मगर मुन्ने के कम करना...."" और पति की आँख छलक पड़ी। " मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। " कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी। फिर आँख पोंछते हुए बोली- " अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-" इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।" उसकी आँख फिर छलक पड़ी। " अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत।

Aap Achchey Ho
'निभा, कहां है हमारी लाडली बिटिया। देखो। हम तुम्हारे लिए क्या लाए हैं।' घर में घुसते ही नीलेश ने बड़े प्यार से तेज आवाज में कहा। सामने विभा खड़ी थी। उसने इशारे से बताया कि निभा अपने कमरे में है। आज दोपहर में निभा की 12वीं का रिजल्ट आया था। उसका प्रतिशत सहपाठियों के मुकाबले काफी कम था। जब से रिजल्ट आया था, वहां आंखों में आंसू लिए बैठी थी। दिन का खाना भी नहीं खाया था उसने। उसकी मम्मी विभा ने नीलेश को फोन करके सब बातें बताईं। 'अरे, मेरी बिटिया कहां है' नीलेश ने बिल्कुल उसी अंदाज में कहा जैसे वह बचपन में बेटी के साथ खेला करता था और सामने देख कर भी ना देखने का नाटक किया करता था।
निभा ने अपना सिर ऊपर नहीं किया। वैसे ही मूर्तिवत बैठी रही। 'निभा, देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं' कहते हुए नीलेश ने नन्हा टेडी निकाला और सामने रख दिया। निभा ने उदास नजर टेडी पर डाली। पहले की बात रहती तो वह निलेश के गले लग जाती। 'निभा, देखो मैं पैटिज लाया हूं और आइसक्रीम भी वही फ्लेवर जो तुम्हें पसंद है।' यह कह कर उसने दोनों चीजें निभा के सामने रख दी।
'पापा, प्लीज, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैंने आपकी उम्मीदों को तोड़ा है। आपने मुझे हर सुविधा दी और देखिए मेरे कितने कम नंबर आए।' तुमने प्रयास किया वही हमारे लिए बहुत है.... अब चलो, हम लोग जश्न मनाते हैं। विभा, इधर आओ, कहते हुए नीलेश ने निभा के मुंह में आइसक्रीम वाला बड़ा-सा चम्मच डाल दिया।
एक साथ इतनी ठंडी आइसक्रीम मुंह में जाती ही वह उठकर पापा के गले लगकर जोर से रो पड़ी। नीलेश ने उसे रो लेने दिया। अब वह नन्ही बच्ची नहीं थी जो फुसल जाती। नमी निलेश की आंखों में भी उतरी पर वह खुशी बिटिया को वापस पा लेने की थी। अचानक निभा धीरे से बोली, 'आप बहुत अच्छे हैं पापा।' निभा की गंभीर आवाज ने निलेश को अंदर से रुला दिया।
{दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?}
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Rasm A Hindi Story
रस्म
बर्तन गिरने की आवाज़ से शिखा की आँख खुल गयी। घडी देखी तो आठ बज रहे थे , वह हड़बड़ा कर उठी। “उफ़्फ़ ! मम्मी जी ने कहा था कल सुबह जल्दी उठना है , ””””रसोई”””” की रस्म करनी है, हलवा-पूरी बनाना है… और मैं हूँ कि सोती ही रह गयी। अब क्या होगा…! पता नहीं, मम्मी जी, डैडी जी क्या सोचेंगे, कहीं मम्मी जी गुस्सा न हो जाएँ। हे भगवान!” उसे रोना आ रहा था। ””””ससुराल”””” और ””””सास”””” नाम का हौवा उसे बुरी तरह डरा रहा था। कहा था दादी ने- ””””””””ससुराल है, ज़रा संभल कर रहना। किसी को कुछ कहने मौका न देना, नहीं तो सारी उम्र ताने सुनने पड़ेंगे। सुबह-सुबह उठ जाना, नहा-धोकर साड़ी पहनकर तैयार हो जाना, अपने सास-ससुर के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लेना। कोई भी ऐसा काम न करना जिससे तुम्हें या तुम्हारे माँ-पापा को कोई उल्टा-सीधा बोले। ”
शिखा के मन में एक के बाद एक दादी की बातें गूँजने लगीं थीं। किसी तरह वह भागा-दौड़ी करके तैयार हुई। ऊँची-नीची साड़ी बाँध कर वह बाहर निकल ही रही थी कि आईने में अपना चेहरा देखकर वापस भागी-न बिंदी, न सिन्दूर -आदत नहीं थी तो सब लगाना भूल गयी थी। ढूँढकर बिंदी का पत्ता निकाला। फिर सिन्दूरदानी ढूँढने लगी…. जब नहीं मिली तो लिपस्टिक से माथे पर हल्की सी लकीर खींचकर कमरे से बाहर आई। जिस हड़बड़ी में शिखा कमरे से बाहर आई थी, वह उसके चेहरे से, उसकी चाल से साफ़ झलक रही थी। लगभग भागती हुई सी वह रसोई में दाख़िल हुई और वहाँ पहुँचकर ठिठक गयी। उसे इस तरह हड़बड़ाते हुए देखकर सासू माँ ने आश्चर्य से उसकी तरफ़ देखा। फिर ऊपर से नीचे तक उसे निहारकर धीरे से मुस्कुराकर बोलीं,
“आओ बेटा! नींद आई ठीक से या नहीं ?” अचकचाकर बोली,”जी मम्मी जी! नींद तो आई, मगर ज़रा देरी से आई, इसीलिए सुबह जल्दी आँख नहीं खुली …सॉरी…. ” बोलते हुए उसकी आवाज़ से डर साफ़ झलक रहा था। सासू माँ बोलीं, ” कोई बात नहीं बेटा! नई जगह है… हो जाता है !” शिखा हैरान होकर उनकी ओर देखने लगी, फिर बोली, “मगर…मम्मी जी, वो हलवा-पूरी?” सासू माँ ने प्यार से उसकी तरफ़ देखा और पास रखी हलवे की कड़ाही उठाकर शिखा के सामने रख दी, और शहद जैसे मीठे स्वर में बोलीं,
“हाँ! बेटा! ये लो! इसे हाथ से छू दो!” शिखा ने प्रश्नभरी निगाहों से उनकी ओर देखा। उन्होंने उसकी ठोड़ी को स्नेह से पकड़ कर कहा, “बनाने को तो पूरी उम्र पड़ी है! मेरी इतनी प्यारी, गुड़िया जैसी बहू के अभी हँसने-खेलने के दिन हैं, उसे मैं अभी से किचेन का काम थोड़ी न कराऊँगी। तुम बस अपनी प्यारी- सी, मीठी मुस्कान के साथ सर्व कर देना -आज की रस्म के लिए इतना ही काफ़ी है।” सुनकर शिखा की आँखों में आँसू भर आए। वह अपने-आप को रोक न सकी और लपक कर उनके गले से लग गई ! उसके रुँधे हुए गले से सिर्फ़ एक ही शब्द निकला – “#माँ 🙏

Bujurg Pati Patni
_*पत्नी*_ : _पर ठीक 5 बजकर 55 मिनट पर_ _मैं पानी का ग्लास लेकर_ _दरवाज़े पे आती और_ _आप आ पहुँचते..._ _*पति*_ : _मैंने तीस साल नौकरी की_ _पर आज तक मैं ये नहीं समझ_ _पाया कि_ _मैं आता इसलिए तुम_ _पानी लाती थी_ _या तुम पानी लेकर आती थी_ _इसलिये मैं आता था..._
_*पत्नी*_ : _हाँ... और याद है..._ _तुम्हारे रिटायर होने से पहले_ _जब तुम्हें डायबीटीज़ नहीं थी_ _और मैं तुम्हारी मनपसन्द खीर बनाती_ _तब तुम कहते कि_ _आज दोपहर में ही ख़्याल आया_ _कि खीर खाने को मिल जाए_ _तो मज़ा आ जाए..._
_*पति*_ : _हाँ... सच में..._ _ऑफ़िस से निकलते वक़्त_ _जो भी सोचता,_ _घर पर आकर देखता_ _कि तुमने वही बनाया है..._
_*पत्नी*_ : _और तुम्हें याद है_ _जब पहली डिलीवरी के वक़्त_ _मैं मैके गई थी और_ _जब दर्द शुरु हुआ_ _मुझे लगा काश..._ _तुम मेरे पास होते..._ _और घंटे भर में तो..._ _जैसे कोई ख़्वाब हो..._ _तुम मेरे पास थे..._
_*पति*_ : _हाँ... उस दिन यूँ ही ख़्याल_ _आया_ _कि ज़रा देख लूँ तुम्हें..._
_*पत्नी*_ : _और जब तुम_ _मेरी आँखों में आँखें डाल कर_ _कविता की दो लाइनें बोलते..._
_*पति*_ : _हाँ और तुम_ _शरमा के पलकें झुका देती_ _और मैं उसे_ _कविता की 'लाइक' समझता..._
_*पत्नी*_ : _और हाँ जब दोपहर को चाय_ _बनाते वक़्त_ _मैं थोड़ा जल गई थी और_ _उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब_ _अपनी ज़ेब से निकाल कर बोले.._ _इसे अलमारी में रख दो..._
_*पति*_ : _हाँ... पिछले दिन ही मैंने देखा था_ _कि ट्यूब ख़त्म हो गई है..._ _पता नहीं कब ज़रूरत पड़ जाए.._ _यही सोच कर मैं ट्यूब ले आया था..._
_*पत्नी*_ : _तुम कहते ..._ _आज ऑफ़िस के बाद_ _तुम वहीं आ जाना_ _सिनेमा देखेंगे और_ _खाना भी बाहर खा लेंगे..._
_*पति*_ : _और जब तुम आती तो_ _जो मैंने सोच रखा हो_ _तुम वही साड़ी पहन कर आती..._
_फिर नज़दीक जा कर_ _उसका हाथ थाम कर कहा :_ _हाँ, हमारे ज़माने में_ _मोबाइल नहीं थे..._
_पर..._ _हम दोनों थे!!!_
_*पत्नी*_ : _आज बेटा और उसकी बहू_ _साथ तो होते हैं पर..._ _बातें नहीं व्हाट्सएप होता है..._ _लगाव नहीं टैग होता है..._ _केमिस्ट्री नहीं कमेन्ट होता है..._ _लव नहीं लाइक होता है..._ _मीठी नोकझोंक नहीं_ _अनफ़्रेन्ड होता है..._ _उन्हें बच्चे नहीं कैन्डीक्रश सागा,_ _टैम्पल रन और सबवे सर्फ़र्स चाहिए..._
_*पति*_ : _छोड़ो ये सब बातें..._ _हम अब Vibrate Mode पर हैं..._ _हमारी Battery भी 1 लाइन पे है..._ _अरे!!! कहाँ चली?_
_*पत्नी*_ : _चाय बनाने..._
_*पति*_ : _अरे... मैं कहने ही वाला था_ _कि चाय बना दो ना..._
_*पत्नी*_ : _पता है..._ _मैं अभी भी कवरेज क्षेत्र में हूँ_ _और मैसेज भी आते हैं..._
_दोनों हँस पड़े..._
_*पति*_ : _हाँ, हमारे ज़माने में_ _मोबाइल नहीं था

Sas Bahu Hindi Story
शादी को कुछ ही समय हुआ था और आज कामवाली भी नही आई इसलिये शीलू बरतन धोने लगी। धोते धोते उसके हाथ से कॉच का कप नीचे गिरकर टूट गया। कप टूटते ही वह डरने लगी कि उसकी सास अब जली कटी सुनायेगी। आवाज से सास दौड़ती आई और बोली, बेटी क्या हुऑ? उसने रुआँसी होकर बोला- मॉ, पता नही ध्यान रखते हुये भी कैसे मेरे हाथ से कप नीचे गिरकर फूट गया।
सास बोली कि बेटी चिंता नही कर, कप ही तो फूटा है। तुम्हें चोट तो नहीं आयी और भले इसके कितने ही टुकड़े हो गये हो पर मेरी बेटी के दिल के टुकड़े ना हो। मेरी बहू से महँगा क्या ये कप है? और हॉ, तुझे अभी ये सब करने की क्या जरूरत, मेहंदी भी नही उतरी तेरे हाथो से। अभी तुम राज के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताओ और एक दूसरे को समझो तभी तो तुम दोनो की नींव मजबूत होगी। ज्योति इधर आना, अपनी भाभी का ख़्याल रख, अभी इस घर मे नई आई है । शीलू, तुम मुझे अपनी मॉ ही समझना। मुझे भी तुम्हारा दिल जीतना है सास बनकर नही मॉ बनकर।
शब्द क्या मानो अमृत के घूँट थे। देखते देखते शीलू की ऑंखो छलछला गई। वह सास के पैरों मे गिर गई और बोली कि मैंने एक मॉ छोड़ी तो दूसरी नई मॉ पाई, बल्कि आप मेरी मॉ से भी ज्यादा ममता मेरे लिये रखती हो। यदि घर मे कप टूट जाता तो मॉ भी दो बात कहे बिना नही रहती ।
रात को शीलू की नींद ही उड़ गई, रह रहकर शाम की घटना याद आ रही थी। सास के बारे मे उसकी जो सोच थी उससे विपरित सास का व्यवहार पाया। उसका भी क़सूर नही था ऐसा सोचना क्योंकि उसने लोगो के मुँह से बुरी सास के बारे मे ही सुना था और फिर वो अपने अतीत में खो गई।
उसे याद आया कि कुछ साल पहले इकलौते भइया की शादी हुई थी। भाभी की हाथो से मेहंदी का रंग उतरने से पहले ही मॉ ने भाभी पर घर के काम की पूरी ज़िम्मेदारी डाल दी और अपने ही नियम कानून के हिसाब से भाभी को चलने को विवश करती। मॉ ने भाभी को घर मे एडजस्ट होने मे ज़रा भी वक्त नही दिया। भइया भाभी को बाहर ले जाते तो मॉ का मुँह फूल जाता व बोलती कि हर समय भाभी को साथ ले जाने की कहॉ जरूरत है। कभी भी भाभी को खुली हँसी हँसते नही देखा। समय के साथ भाभी ने सहना छोड़ दिया फिर हर रोज घर में झगड़ा होने लगा।
एक दिन भाभी के हाथ से कॉच का गिलास नीचे गिरकर टूट गया। मॉ चिल्लाने लगी कि कितना कीमती गिलास फोड़ दिया, रोज इतना माल खाती हो उसकी शक्ति कहॉ गई। अपने मायके मे गिलास फूटा होता तो मालूम चलता। कोई भी काम ठीक से नही होता, ना जाने कहॉ ध्यान रहता। भाभी भी कड़क कर बोल दी कि हॉ, मै तो बैठी बैठी खाती हूँ, आप तो खड़ी खड़ी खाती है। जब से आई हूँ तब से रोज दो चार जली कटी ना सुना दो तब तक आपको चैन नही पड़ेगा। कभी मेरी मॉ को तो कभी मेरे बाप को हमेशा मेरे मायके वाले को कोसती रहती हो.. दोनो तरफ से तीर बरस कर एक दूसरे को छलनी कर रहे थे।
घर के अलावा उसने और भी जगह सास बहू के झगड़े सुनते सुनते डर गई व शादी से कतराने लगी। पर मॉ बाप के कारण शादी करनी पड़ी और एक अंजाने भय को लेकर ससुराल आ गई। पर आज की घटना से उसकी सोच ही बदल गई कि सब सास या बहू में ऐसा नही होता है।
नींद ना आने की वजह से उसने सोचा चलो थोड़ी देर मॉ से बात कर लूँ। मॉ ने इतनी रात को उसको फ़ोन करते देखकर बोला कि शीलू सब कुछ ठीक तो है ना ? कही जवाई राजा या सास ननद से तो झगड़ा नही हो गया। वह बोली नही, मॉ ऐसा कुछ नही। मालूम है मॉ आज मेरे हाथो से कप नीचे गिरकर टूट गया तभी सास आ गई और आगे बोलती उसके पहले ही मॉ ने बोलना शुरू कर दिया बेटा, फिर तेरी सास के चिल्लाने पर तूने अच्छा सा जवाब दे दिया ना, हॉ बेटा कभी भी दबकर नही रहना, तु भी पढीलिखी अच्छी लड़की है, तेरे मे कोई कमी थोड़े ही है जो सुनेगी।
तभी बात को काटते हुये तेज़ आवाज मे शीलू बोली कि मॉ अब बस करो, मैं अपनी दूसरी मॉ के ख़िलाफ़ कुछ नही सुन सकती। मॉ सहम गई और बोली तु ये क्या बोल रही है? हॉ मॉ आज मेरे हाथो से जब कप गिरा तो सासू मॉ ने.. सारी बात बता कर अंत मे बोली, अब तो आप समझ गई ना सारी बात। और हॉ, सास ने सिर्फ बोलने के लिये नही बोला, वह वाकई मे ज्योति की तरह मेरे से व्यवहार कर रही है।
मॉ एक बात कहूँगी आप बुरा तो नही मानेगी । हॉ बोल बेटा। मॉ काश आप भी मेरी नई मॉ की तरह भाभी के साथ व्यवहार करती तो शायद भइया भाभी अलग घर मे नही होते। मॉ मेरी सास ने शुरू से ही अपने प्रेम से नींव मजबूत कर ली तो उस पर टिका परिवार मे मज़बूती कैसे नही आयेगी। आज मॉ को महसूस हो रहा था कि वो नही बल्कि शीलू उसकी मॉ बनकर उसे अच्छी सीख दे रही है।
मॉ को गलती का एहसास हो गया, शीलू आगे कुछ बोलती उससे पहले ही मॉ ने कहा शीलू अब जब तु यहाँ आयेगी तो यहॉ पर भी पूरे परिवार की नींव मे मज़बूती पायेगी। अब फ़ोन रख, मुझे बेटाबहू के स्वागत की तैयारी करनी है।
शादी के बाद नई जिन्दगी की शुरूआत मे अगर आज सास समझदारी से काम नही लेती, अपनत्व नही जताती तो शायद शुरूआत की नींव ही कमज़ोर होने से पूरी जिन्दगी आपस मे दरार पड़ जाती। कप को फूटने से कोई नही रोक सकता, किन्तु प्रेम को टूटने से तो हम रोक सकते है। कॉच के टुकड़े हो जाए पर घर के टुकड़े ना होने दे।
घर मे प्रेम का वातावरण बनाये रखे, एक दूसरे के सम्मान को समझे, इज़्ज़त करे तो घर स्वर्ग बन जायेगा। घर नर्क से स्वर्ग मे बदल सकता है यदि बहू सास को मॉ मान ले व सास बहू को बेटी मान ले। दृष्टि बदलने से सृष्टि बदल जायेगी।... ......✒✒✒✒
