Sad Poetry in Urdu
Beshumar Aadmi
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी !!
Bikhar Kyu Nahi Jata
मैं अपनी ही उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते है जिधर सब मैं उधर क्यूँ नहीं जाता
वो नाम जो बरसों से ना चेहरा ना बदन है
वो ख्वाब नगर है तो बिखर क्यूँ नहीं जाता
Tujhe Pane Ke Liay
लडता रहा मे जिन्दगी से तूम्हे पाने के लिए
वो बहाना ढूढती रही मूझसे खफा होने के लिए
मेरा दिल मूझसे ही छूप कर रोता हे ये सोचकर जालिम
कि सिने मे जिसने पनाह दी मैनै उसके साथ
धोखा कर धडकता रहा बेवफा के लिए