कविता माँ पर, माँ पर हिंदी कविता
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !
बीवी के आगे माँ रद्द हो गई !
बड़ी मेहनत से जिसने पाला !
आज वो मोहताज हो गई !
और कल की छोकरी
तेरी सरताज हो गई !
बीवी हमदर्द और माँ सरदर्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !!
पेट पर सुलाने वाली,
पैरों में सो रही !
बीवी के लिए लिम्का,
माँ पानी को रो रही !
सुनता नहीं कोई, वो आवाज देते सो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई.!!
माँ मॉजती बर्तन,वो सजती संवरती है !
अभी निपटी ना बुढ़िया तू , उस पर बरसती है !
अरे दुनिया को आई मौत,तेरी कहाँ गुम हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !!
अरे जिसकी कोख में पला,
अब उसकी छाया बुरी लगती !
बैठ होण्डा पे महबूबा,
कन्धे पर हाथ जो रखती !
वो यादें अतीत की,
वो मोहब्बतें माँ की, सब रद्द हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !!
बेबस हुई माँ अब,
दिए टुकड़ो पर पलती है !
अतीत को याद कर,
तेरा प्यार पाने को मचलती है !
मुसीबत जिसने उठाई, वो खुद मुसीबत हो गई !
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई !!
___ याद रखना ________
मां तो जन्नत का फूल है !
प्यार करना उसका उसूल है !
दुनिया की मोह्ब्बत फिजूल है !
मां की हर दुआ कबूल है !
मां को नाराज करना इंसान तेरी भूल है !
मां के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है !!
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