रेंग रहे हैं साये अब वीराने में !
धूप उतर आई कैसे तहख़ाने में !
जाने कब तक गहराई में डूबूँगा !
तैर रहा है अक्स कोई पैमाने में !
उस मोती को दरिया में फेंक आया हूँ !
मैं ने सब कुछ खोया जिसको पाने में !
हम प्यासे हैं ख़ुद अपनी कोताही से !
देर लगाई हम ने हाथ बढ़ाने में !
क्या अपना हक़ है हमको मालूम नहीं !
उम्र गुज़ारी हम ने फ़र्ज़ निभाने में !
वो मुझ को आवारा कहकर हँसते हैं !
मैं भटका हूँ जिनको राह पे लाने में !
कब समझेगा मेरे दिल का चारागर !
वक़्त लगेगा ज़ख्मों को भर जाने में !
हँस कर कोई ज़ह्र नहीं पीता आलम !
किस को अच्छा लगता है मर जाने में !!
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