बेशक तू बदल ले अपने आप को
लेकिन ये याद रखना
तेरे हर झूठ को मेरे सिवा
कोई समझ नहीं सकता
बहके बहके ही, अँदाज-ए-बयां होते है..
आप होते है तो, होश कहाँ होते है
लिपट लिपट कर कह रही है
ये दिसम्बर की आख़िरी शामें.,
अलविदा कहने से पहले
एक बार गले से तो लगा लो
दबे होंठों को बनाया है सहारा अपना
सुना है कम बोलने से बहुत कुछ सुलझ जाता है