मिलो ना कभी के तुमसे दो बात बोल दूं
खुद से जो कहता हूं
वह राज में खोल दूं।
यह इश्क है, मोहब्बत है, ना जाने और क्या है
ख्यालों में, इन राहों में, बस उनका चेहरा है ।
मिलो ना,
मिलो ना के खुद को हम अब
खोते जा रहे हैं
तन्हा इन रातों में, रफ्ता रफ्ता
तेरे होते जा रहे हैं
कातिलाना नजरे तेरी
करती है घायल मुझको,
रातों में नींद उड़ादे
इस कदर चाहता हूँ मैं बेहद तुमको।
ख्वाबों में है तेरा बसेरा
कब्जा कर रखा है ख्वाबों ने इस दिल पे
देखूं हर घड़ी सपनो में तुझको,
इस कदर मैं चाहता हु तुमको।
बेकरारी है तुमसे मिलने की
तुम्हे मुस्कुराता देखूं तो मिल जाती राहत दिल को,
प्यासी है मेरी निगाहें नसीली है तेरी आंखें
हर वक्त ख्वाब में मैं देखूं तुझको,
जब भी कहीं देखूं तुझे में
तो ठंडक मिल जाती मुझको,
राहत हो इस दिल की तुम
अपनी जान से जाड़ा चाहा है तुमको।
दिल में बसाया है
प्यार करता हूं हद्द से जाड़ा मैं तुझको,
इस दिल की ख्वाइश हो तुम
हर दुआ में मैं मांगू तुमको,
कातिलाना नजरे तेरी करती है घायल मुझको।
जिस पल तुम्हारी गली से गूजर कर जाऊं,
वहाँ सन्नाटे की तरह छा जाऊं
मेरे आने का जिकर भी न करू,
बस तुम से मिलने का सन्देश छोड़ आऊं,
वहाँ सोंधी-सोंधी खुशबू छोड़,
कब तुम्हारे जहन में एक पहेली सी बन जाऊं,
बिन कुछ कहे,
कब तुम्हारे आशियां पे कब्जा कर जाऊं
तुमसे इस गुसताखी की इज्जाजत भी न लाऊं
तुम्हारे इनकार करने पर भी,
बस !
तुमसे हाँ की उम्मीद लगाए जाऊं.......
दिमाग के सौ तर्क क्यों
दिल के एक बहाने से हार जाता है?
तुमसे दूर जाकर भी क्यों
तेरे ही इंतजार में पलकें बिछाता है?
तू मेरा नहीं ये जान कर भी क्यों
ये तेरी ही यादों में सुकून पाता है?
मोहब्बत में दर्द पाकर भी क्यों
ये हरपल मुस्कुराता है?
स्वंय को सुलझाता हुआ इंसान क्यों
प्रेम में उलझ सा जाता है?