बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।
भावार्थ :
निज यानी अपनी भाषा से ही उन्नति सम्भव है, क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूलाधार है। मातृभाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा का निवारण सम्भव नहीं है। विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान, सभी देशों से जरूर लेने चाहिये, परन्तु उनका प्रचार मातृभाषा में ही करना चाहिये।
जब पांच सेकंड की मुस्कान
से फोटो अच्छी आ सकती है
तो हमेशा मुस्कुराने से जिन्दगी
अच्छी क्यों नही हो सकती
किसी को कुरान में इमान न मिला
किसी को गीता में ज्ञान ना मिला
उस बन्दे को आसमान में क्या रब मिलेगा
जिसको इन्सान में इन्सान ना मिला