हादसे इतने हैं हमारे शहर में,
अखबारों को निचोडूं तो खून टपकता है
तेरी बाहों में घुल रही मंद साँसों की कश्मकश,
रुक कर के ज़िंदा रह लूँ या चल के मर जाऊँ
भीगी भीगी सी ये जो मेरी लिखावट है..
स्याही में थोड़ी सी, मेरे अश्कों की मिलावट है
तुम्हारी यादों के सिलसिले कभी रुकते नही..
एक हम हारते नही एक तुम हो कि, मानते नही