Poetry Tadka

Hindi Kahaniyan

Sammanit Nazar

निशा घर की छोटी बहु थी मोहन के साथ उसकी शादी को अभी सालभर ही हुआ था की मोहन के भाइयों ने मां को अपने साथ रखने से साफ इंकार कर दिया मोहन और निशा तो रहना ही मां के साथ चाहते थे मगर कुछ प्रोपटी के चलते बडे भैया ने ऐसा नही करने दिया मगर जब सबकुछ अपने नाम करवा लिया तो मां के लिए उनके घरमे कमरा नही बचा था कारण बच्चे बडे हो गए अलग अलग कमरों मे रहकर पढाई करेंगे वगैरह वगैरह खैर तबसे मां मोहन और निशा के पास आकर रहने लगी मोहन और निशा मां का भरपूर ख्याल रखते घरमे सबसे पहले बनने वाली सब्जी रोटी हो या बाहर से आनेवाली मिठाई या फल सबसे पहले वो मां को दिया जाता उसके बाद मोहन निशा और उनकी बेटी आराध्या खाते आराध्या अक्सर अपने पापा से पूछती -पापा आप हर चीज पहले दादी को कयो देते हो तो मोहन मुसकराते कहता-बेटा ये हमारे बडो का सम्मान है देखो कल जब तुम बडी हो जाओगी तो सबसे पहले तुम अपने मम्मी पापा को प्यार करोगी सम्मान दोगी कयोंकि आज हम तुम्हें प्यार करते है सम्मान से रहना खाना सीखाते है वैसे ही आराध्या मुसकराते रह जाती ऐसे ही अक्सर कितनी बार मेहमान और दोस्त आते तो वो बुजुर्ग माता जी से पूछते -आपका बेटा बहु आपका ख्याल तो रखते है ना बहु ठीक से खिलाती हे या नही ये सब सुनकर निशा उदास हो जाती मोहन उसे समझाता-निशा हमें लोगों को दिखाने के लिए नही बल्कि अपनी मां के सम्मान और सेहत की फ्रिक करनी चाहिए जिसको देखना है ये सब यकीन जानो वो देख रहा है और निशा कहती-आप नही समझते लोगों को करने के बाद भी सुनना पडे तो कैसा लगता है खैर एकदिन मोहन और निशा बेटी आराध्या सहित निशा की एक सहेली के घर खाने पर गए वहां निशा की सहेली ने मोहन और निशा सहित आराध्या के लिए तमाम बढिया स्वादिष्ट व्यंजनों का ढेर लगा दिया मगर मोहन और निशा से कुछ खाते नही बन रहा था कारण निशा की सहेली की बुजुर्ग सासवहीं पास ही बैठी थी मगर निशा की सहेली ने उन्हें कुछ खाने को देना तो दूर पूछना तक मुनासिब नही समझा ये सब आराध्या बडे गौर से देख रही थी उसने तुंरत टोकते हुए कहा-मौसी जी आप दादी को कुछ नही दे रही कया आप उनसे प्यार नही करती उनका सम्मान नही करती ये शब्द अचानक सुनकर निशा की सहेली और उसके पति की नजरें झुक गई तब आराध्या फिर बोली-मौसी जी हमारे घर मे तो मम्मी दादी को बहुत प्यार करती है बहुत सम्मान करती है सबसे उन्हें खिलाती है फिर हम खाते है यही तो आपके बच्चे यानि मेरे बहन भाई सीखेगे हे ना मौसी जीनिशा की सहेली और उसके पति कि आँखें शर्म से झुकी थी वहीं बुजुर्ग दादी आराध्या को मन ही मन मे दुआएं दे रही थी और आज सचमुच निशा को उसके सवाल का जबाब मोहन की कही बातो मे मिल गया था जिसे देखना चाहिए वो देख रहा है वो लगातार मोहन को सम्मानित नजरों से निहार रही थी

Sammanit Nazar

Aik Raja Hathi Par

एक राजा हाथी पर बैठकर अपने राज्य का भ्रमण कर रहा था।अचानक वह एक दुकान के सामने रुका और अपने मंत्री से कहा- *"मुझे नहीं पता क्यों, पर मैं इस दुकान के स्वामी को फाँसी देना चाहता हूँ।"* यह सुनकर मंत्री को बहुत दु:ख हुआ। लेकिन जब तक वह राजा से कोई कारण पूछता, तब तक राजा आगे बढ़ गया। अगले दिन, *मंत्री* उस दुकानदार से मिलने के लिए एक साधारण नागरिक के वेष में उसकी दुकान पर पहुँचा। उसने दुकानदार से ऐसे ही पूछ लिया कि उसका व्यापार कैसा चल रहा है? दुकानदार चंदन की लकड़ी बेचता था। उसने बहुत दुखी होकर बताया कि मुश्किल से ही उसे कोई ग्राहक मिलता है। लोग उसकी दुकान पर आते हैं, चंदन को सूँघते हैं और चले जाते हैं। वे चंदन कि गुणवत्ता की प्रशंसा भी करते हैं, पर ख़रीदते कुछ नहीं। *अब उसकी आशा केवल इस बात पर टिकी है कि राजा जल्दी ही मर जाए। उसकी अन्त्येष्टि के लिए बड़ी मात्रा में चंदन की लकड़ी खरीदी जाएगी। वह आसपास अकेला चंदन की लकड़ी का दुकानदार था, इसलिए उसे पक्का विश्वास था कि राजा के मरने पर उसके दिन बदलेंगे।* अब मंत्री की समझ में आ गया कि राजा उसकी दुकान के सामने क्यों रुका था और क्यों दुकानदार को मार डालने की इच्छा व्यक्त की थी। शायद *दुकानदार के नकारात्मक विचारों की तरंगों ने राजा पर वैसा प्रभाव डाला था, जिसने उसके बदले में दुकानदार के प्रति अपने अन्दर उसी तरह के नकारात्मक विचारों का अनुभव किया था।* बुद्धिमान मंत्री ने इस विषय पर कुछ क्षण तक विचार किया। फिर उसने अपनी पहचान और पिछले दिन की घटना बताये बिना कुछ चन्दन की लकड़ी ख़रीदने की इच्छा व्यक्त की। दुकानदार बहुत खुश हुआ। उसने चंदन को अच्छी तरह कागज में लपेटकर मंत्री को दे दिया। जब मंत्री महल में लौटा तो वह सीधा दरबार में गया जहाँ राजा बैठा हुआ था और सूचना दी कि *चंदन की लकड़ी के दुकानदार ने उसे एक भेंट भेजी है। राजा को आश्चर्य हुआ। जब उसने बंडल को खोला तो उसमें सुनहरे रंग के श्रेष्ठ चंदन की लकड़ी और उसकी सुगंध को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। प्रसन्न होकर उसने चंदन के व्यापारी के लिए कुछ सोने के सिक्के भिजवा दिये।* राजा को यह सोचकर अपने हृदय में बहुत खेद हुआ कि उसे दुकानदार को मारने का अवांछित विचार आया था। *जब दुकानदार को राजा से सोने के सिक्के प्राप्त हुए, तो वह भी आश्चर्यचकित हो गया। वह राजा के गुण गाने लगा जिसने सोने के सिक्के भेजकर उसे ग़रीबी के अभिशाप से बचा लिया था। कुछ समय बाद उसे अपने उन कलुषित विचारों की याद आयी जो वह राजा के प्रति सोचा करता था। उसे अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए ऐसे नकारात्मक विचार करने पर बहुत पश्चात्ताप हुआ।* यदि हम दूसरे व्यक्तियों के प्रति अच्छे और दयालु विचार रखेंगे, तो वे सकारात्मक विचार हमारे पास अनुकूल रूप में ही लौटेंगे। लेकिन यदि हम बुरे विचारों को पालेंगे, तो वे विचार हमारे पास उसी रूप में लौटेंगे। *"कर्म क्या है?"* *"हमारे शब्द, हमारे कार्य, हमारी भावनायें, हमारी गतिविधियाँ.।"* *हमारे सोच विचारों से ही हमारे कर्म बनते हैं।*
Aik raja hathi par

Mammi Mammi Mai

"मम्मी , मम्मी ! मैं उस बुढिया के साथ स्कुल नही जाउँगा ना ही उसके साथ वापस आउँगा।"मेरे दस वर्ष के बेटे ने गुस्से से अपना स्कुल बैग फेकतै हुए कहा तो मैं बुरी तरह से चौंक गई। यह क्या कह रहा है? अपनी दादी को बुढिया क्यों कह रहा है? कहाँ से सीख रहा है इतनी बदतमीजी? मैं सोच ही रही थी कि बगल के कमरे से उसके चाचा बाहर निकले और पुछा-"क्या हुआ बेटा?" उसने फिर कहा -"चाहे कुछ भी हो जाए मैं उस बुढिया के साथ स्कुल नहीं जाउँगा। हमेशा डाँटती है और मेरे दोस्त भी मुझे चिढाते हैं।" घर के सारे लोग उसकी बात पर चकित थे। घर मे बहुत सारे लोग थे। मैं और मेरे पति,दो देवर और देवरानी , एक ननद , ससुर और नौकर भी। फिर भी मेरे बेटे को स्कुल छोडने और लाने की जिम्मेदारी उसके दादी की थी। पैरों मे दर्द रहता था पर पोते के प्रेम मे कभी शिकायता नही करती थी।बहुत प्यार करती थी उसको क्योंकि घर का पहला पोता था। पर अचानक बेटे के मुँह से उनके लिए ऐसे शब्द सुन कर सबको बहुत आश्चर्य हो रहा था। शाम को खाने पर उसे बहुत समझाया गया पर बह अपनी जिद पर अडा रहा पति ने तो गुस्से मे उसे थप्पड़ भी मार दिया। तब सबने तय किया कि कल से उसे स्कुल छोडने और लेने माँजी नही जाएँगी । अगले दिन से कोई और उसे लाने ले जाने लगा पर मेरा मन विचलित रहने लगा कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया? मै उससे कुछ नाराज भी थी। शाम का समय था ।मैने दुध गर्म किया और बेटे को देने के लिए उसने ढुँढने लगी।मैं छत पर पहुँची तो बेटे के मुँह से मेरे बारे मे बात करते सुन कर मेरे पैर ठिठक गये । मैं छुपकर उसकी बात सुनने लगी।वह अपनी दादी के गोद मे सर रख कर कह रहा था- "मैं जानता हूँ दादी कि मम्मी मुझसे नाराज है।पर मैं क्या करता? इतनी ज्यादा गरमी मे भी वो आपको मुझे लेने भेज देते थे।आपके पैरों मे दर्द भी तो रहता है।मैने मम्मी से कहा तो उन्होंने कहा कि दादी अपनी मरजी से जाती हैं। दादी मैंने झुठ बोला।बहुत गलत किया पर आपको परेशानी से बचाने के लिये मुझे यही सुझा। आप मम्मी को बोल दो मुझे माफ कर दे।" वह कहता जा रहा था और मेरे पैर तथा मन सुन्न पड़ गये थे। मुझे अपने बेटे के झुठ बोलने के पीछे के बड़प्पन को महसुस कर गर्व हो रहा था। मैने दौड कर उसे गले लगा लिया और बोली-"नहीं , बेटे तुमने कुछ गलत नही किया। हम सभी पढे लिखे नासमझो को समझाने का यही तरीका था। धन्यवाद बेटा।
Mammi Mammi Mai

Do Bhai

भैया, परसों नये मकान पे हवन है। छुट्टी (इतवार) का दिन है। आप सभी को आना है, मैं गाड़ी भेज दूँगा।" छोटे भाई लक्ष्मण ने बड़े भाई भरत से मोबाईल पर बात करते हुए कहा।* "क्या छोटे, किराये के किसी दूसरे मकान में शिफ्ट हो रहे हो?" *" नहीं भैया, ये अपना मकान है, किराये का नहीं । "* अपना मकान", भरपूर आश्चर्य के साथ भरत के मुँह से निकला। *"छोटे तूने बताया भी नहीं कि तूने अपना मकान ले लिया है।"* " बस भैया", कहते हुए लक्ष्मण ने फोन काट दिया। "अपना मकान", " बस भैया " ये शब्द भरत के दिमाग़ में हथौड़े की तरह बज रहे थे। *भरत और लक्ष्मण दो सगे भाई और उन दोनों में उम्र का अंतर था करीब पन्द्रह साल।* लक्ष्मण जब करीब सात साल का था तभी उनके माँ-बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। अब लक्ष्मण के पालन-पोषण की सारी जिम्मेदारी भरत पर थी। *इस चक्कर में उसने जल्द ही शादी कर ली कि जिससे लक्ष्मण की देख-रेख ठीक से हो जाये।* प्राईवेट कम्पनी में क्लर्क का काम करते भरत की तनख़्वाह का बड़ा हिस्सा दो कमरे के किराये के मकान और लक्ष्मण की पढ़ाई व रहन-सहन में खर्च हो जाता। इस चक्कर में शादी के कई साल बाद तक भी भरत ने बच्चे पैदा नहीं किये। जितना बड़ा परिवार उतना ज्यादा खर्चा। *पढ़ाई पूरी होते ही लक्ष्मण की नौकरी एक अच्छी कम्पनी में लग गयी और फिर जल्द शादी भी हो गयी। बड़े भाई के साथ रहने की जगह कम पड़ने के कारण उसने एक दूसरा किराये का मकान ले लिया। वैसे भी अब भरत के पास भी दो बच्चे थे, लड़की बड़ी और लड़का छोटा।* *मकान लेने की बात जब भरत ने अपनी बीबी को बताई तो उसकी आँखों में आँसू आ गये।* वो बोली, " देवर जी के लिये हमने क्या नहीं किया। कभी अपने बच्चों को बढ़िया नहीं पहनाया। कभी घर में महँगी सब्जी या महँगे फल नहीं आये। *दुःख इस बात का नहीं कि उन्होंने अपना मकान ले लिया, दुःख इस बात का है कि ये बात उन्होंने हम से छिपा के रखी।"* इतवार की सुबह लक्ष्मण द्वारा भेजी गाड़ी, भरत के परिवार को लेकर एक सुन्दर से मकान के आगे खड़ी हो गयी। *मकान को देखकर भरत के मन में एक हूक सी उठी। मकान बाहर से जितना सुन्दर था अन्दर उससे भी ज्यादा सुन्दर।* हर तरह की सुख-सुविधा का पूरा इन्तजाम। उस मकान के दो एक जैसे हिस्से देखकर भरत ने मन ही मन कहा, " देखो छोटे को अपने दोनों लड़कों की कितनी चिन्ता है। दोनों के लिये अभी से एक जैसे दो हिस्से (portion) तैयार कराये हैं। पूरा मकान सवा-डेढ़ करोड़ रूपयों से कम नहीं होगा। और एक मैं हूँ, जिसके पास जवान बेटी की शादी के लिये लाख-दो लाख रूपयों का इन्तजाम भी नहीं है।" *मकान देखते समय भरत की आँखों में आँसू थे जिन्हें उन्होंने बड़ी मुश्किल से बाहर आने से रोका।* तभी पण्डित जी ने आवाज लगाई, " हवन का समय हो रहा है, मकान के स्वामी हवन के लिये अग्नि-कुण्ड के सामने बैठें।" *लक्ष्मण के दोस्तों ने कहा, " पण्डित जी तुम्हें बुला रहे हैं।" यह सुन लक्ष्मण बोले, " इस मकान का स्वामी मैं अकेला नहीं, मेरे बड़े भाई भरत भी हैं। आज मैं जो भी हूँ सिर्फ और सिर्फ इनकी बदौलत। इस मकान के दो हिस्से हैं, एक उनका और एक मेरा।"* हवन कुण्ड के सामने बैठते समय लक्ष्मण ने भरत के कान में फुसफुसाते हुए कहा, *" भैया, बिटिया की शादी की चिन्ता बिल्कुल न करना। उसकी शादी हम दोनों मिलकर करेंगे।"* *पूरे हवन के दौरान भरत अपनी आँखों से बहते पानी को पोंछ रहे थे, जबकि हवन की अग्नि में धुँए का नामोनिशान न था।*
Do Bhai

Pati Patni Ki Baat Cheet

*पति-पत्नी का खूबसूरत संवाद...✍👌👍* *मैंने एक दिन अपनी पत्नी से पूछा- क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि मैं बार-बार तुमको कुछ भी बोल देता हूँ, और डाँटता भी राहत हूँ, फिर भी तुम पति भक्ति में ही लगी रहती हो, जबकि मैं कभी पत्नी भक्त बनने का प्रयास नहीं करता..??* *मैं भारतीय संस्कृति के तहत वेद का विद्यार्थी रहा हूँ और मेरी पत्नी विज्ञान की, परन्तु उसकी आध्यात्मिक शक्तियाँ मुझसे कई गुना ज्यादा हैं, क्योकि मैं केवल पढता हूँ और वो जीवन में उसका अक्षरतः पालन भी करती है।* *मेरे प्रश्न पर जरा वह हँसी और गिलास में पानी देते हुए बोली- यह बताइए कि एक पुत्र यदि माता की भक्ति करता है तो उसे मातृ भक्त कहा जाता है, परन्तु माता यदि पुत्र की कितनी भी सेवा करे उसे पुत्र भक्त तो नहीं कहा जा सकता ना!!!* *मैं सोच रहा था, आज पुनः ये मुझे निरुत्तर करेगी। मैंने फिर प्रश्न किया कि ये बताओ, जब जीवन का प्रारम्भ हुआ तो पुरुष और स्त्री समान थे, फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया, जबकि स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है..?* *मुस्कुरातें हुए उसने कहा- आपको थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी...* *मैं झेंप गया और उसने कहना प्रारम्भ किया...दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है...ऊर्जा और पदार्थ।* *पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और स्त्री पदार्थ की। पदार्थ को यदि विकसित होना हो तो वह ऊर्जा का आधान करता है, ना की ऊर्जा पदार्थ का। ठीक इसी प्रकार जब एक स्त्री एक पुरुष का आधान करती है तो शक्ति स्वरूप हो जाती है और आने वाले पीढ़ियों अर्थात् अपने संतानों के लिए प्रथम पूज्या हो जाती है, क्योंकि वह पदार्थ और ऊर्जा दोनों की स्वामिनी होती है जबकि पुरुष मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है।* *मैंने पुनः कहा- तब तो तुम मेरी भी पूज्य हो गई ना, क्योंकि तुम तो ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो..?* *अब उसने झेंपते हुए कहा- आप भी पढ़े लिखे मूर्खो जैसे बात करते हैं। आपकी ऊर्जा का अंश मैंने ग्रहण किया और शक्तिशाली हो गई तो क्या उस शक्ति का प्रयोग आप पर ही करूँ...ये तो सम्पूर्णतया कृतघ्नता हो जाएगी।* *मैंने कहा- मैं तो तुम पर शक्ति का प्रयोग करता हूँ फिर तुम क्यों नहीं..?* *उसका उत्तर सुन मेरे आँखों में आँसू आ गए...उसने कहा- जिसके साथ संसर्ग करने मात्र से मुझमें जीवन उत्पन्न करने की क्षमता आ गई और ईश्वर से भी ऊँचा जो पद आपने मुझे प्रदान किया जिसे माता कहते हैं, उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती। फिर मुझे चिढ़ाते हुए उसने कहा कि यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा तो मुझे क्या आवश्यकता...मैं तो माता सीता की भाँति लव-कुश तैयार कर दूँगी, जो आपसे मेरा हिसाब किताब कर लेंगे।* *🙏सहस्त्रों नमन है सभी मातृ शक्तियों को, जिन्होंने अपने प्रेम और मर्यादा में समस्त सृष्टि को बाँध रखा है...🙏*
Pati Patni Ki Baat Cheet

Aa Gayi Tum

दोस्त " खट खट... आ गई तुम ... आओ अंदर आओ नितिन ने सुधा से कहा ..... सकुचाती घबराती सुधा अपने बांस के कहने पर उससे मिलने एक होटल रूम में पहुँची थी दिल और दिमाग के बीच झूलती सुधा अपने बेटे रेहान की जान बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थी उसे अपने बेटे के कैंसर के इलाज के लिए 10लाख रुपए का कर्ज चाहिए था पति रहा नही था एक विधवा office मे काम करके जैसे तैसे गुजर बसर कर रही थी की बेटे को कैंसर जैसी बीमारी ने घेर लिया सब जगह से निराश हो चुकी सुधा बस office का एक साथी दोस्त मोहन कुछ कोशिश कर रहा था मगर अबतक वो भी नाकाम था आखिर सुधा ने बांस से विनती की तो उसने एक शर्त रखी मदद की.. और शर्त थी वो होटल का कमरा था जहां सुधा को अपने बांस के साथ कुछ वक्त बिताना था दिमाग कहता यह गलत है पर बेटे का बीमार चेहरा आँखों के सामने आते ही दिल उसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाता अजीब से कशमकश में उलझी सुधा के कदम कब उसे उस रूम तक ले आए उसे पता ही नहीं चला जैसे ही बांस ने उसके असंतुलित मन मस्तिष्क का फायदा उठाना चाहा ,उसी वक्त अचानक से सुधा को एक call आई -मैडम आपकी किडनी मैच हो गई है "यू कैन डोनेट दैट..उस callके बाद सुधा के विचारों पर पड़ी धूल छट गई और अब उसे सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा था अब उसके मन और मस्तिष्क से एक ही आवाज आ रही थी कि अस्मिता को बेचने से बेहतर है कि किडनी को ही ... और तेज कदमों से बाहर जाने को हुई तो नितिन ने उसका रास्ता रोककर कहा -हाथ आया शिकार कैसे जाने दूं भले ही तुमहारी प्रोब्लम सोल्व हो गई हो मगर मे प्यासा हूं ओर इतना खर्चा किया देखो जरा कमरे को..... सुधा गिडगिडाने लगी मगर नितिन ने उसपर हमला कर दिया तभी कमरे की बेल फिर से बजी ..सुधा खुदको सिमेटती दूर हुई नितिन ने दरवाजा खोला तो सामने मोहन खडा था वो भी उसीके office मे काम करता था नितिन मोहन को देखकर बोला-तुम... तुम यहां कैसे .. सुधा मोहन को देखकर भागकर रोती उससे लिपट गई मोहन ने उसे चुप कराते कहा -सप्राइज सर..नितिन मोहन को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था तभी नितिन की पत्नी आकृति वहां आ गई मोहन ने आकृति से कहा-देखिए भाभीजी सुधा और मैने कैसे सजावट की आप दोनों के लिए ..आकृति नितिन से आकर लिपट गई और सप्राइज के लिए थैंकयू कहने लगी घबराहट भरे नितिन ने भी हां मे हां मिलाते मोहन सुधा को थैंकयू कहा ओर दोनों ने बांय कहकर कमरे से रवानगी कर ली ..सुधा बोली-मोहन तुम.... यहां कैसे .... मोहन-रेहान के इलाज के लिए अपनी बाइक और मां की आखिरी निशानी उनका घर बेचकर..... लेकिन जब अस्पताल पहुंचा तो तुम्हें आटो से होटल आता देख ओर यहां नितिन सर को देखकर सब समझ गया.. बस मैने तुम्हें बचाने को पहले फोन किया ओर भाभी को नितिन सर सप्राइज देने का कहकर यहां बुला लिया ..आखिर हम दोनों दोस्त है ओर दोस्त ही दोस्त के काम आता है कहकर दोनों अस्पताल को चल दिए..
Aa Gayi Tum

Ladki Hui Hai

लड़की हुई है ----- लड़की हुई है? पति ने पूछा... पत्नी को इसी प्रश्न की उम्मीद थी, उसने उम्मीद नहीं की थी कि पति सबसे पहले उसका हाल चाल जानेगा। पत्नी ने सिर्फ पलके झुका दी, पति इसे हाँ समझे या हाँ से ज्यादा कुछ और, लेकिन पत्नी के पलके झुका देने भर में इतनी दृढ़ता थी कि वह कह देना चाहती है कि हाँ लड़की हुई है और वह इसे पालेगी, पढ़ाएगी ! अब क्या करेगी तू? पति ने पूछा... पालूंगी, और क्या करुँगी.... शादी कैसे करेगी ? , अभी तो पैदा हुई है जी , शादी के नाम पर अभी क्यों सूखने पढ़ गये आप.... तू जैसे जानती नहीं, तीन तीन बेटिया हो गयी हैं, हाथ पहले से टाइट है, शादी कोई ऐसे ही तो हो नहीं जाती ! कहा था टेस्ट करा लेते है, लेकिन सरकार भी जीने नहीं देती साली, मन क्यों छोटा करते हैं जी आप ,भगवान् ने भेजी है, अपने आप करेगा इंतजाम, पत्नी ने दिलासा दिया... भगवान! हा हा। भगवान ने ही कुछ करना होता तो लड़का न दे देता ! कुछ जीने का मकसद तो रहता, साले ने काम धंधे में भी ऐसी पनोती डाली है की रोटी तक पूरी नहीं होती! ऊपर से तीन तीन बेटिया और ये नंगा समाज ! पत्नी प्रसव पीड़ा भूल गयी थी, पति की पीड़ा उसे बड़ी लगने लगी एकाएक ! उसने पति की झोली में बेटी डाल दी ! कंधे पर हाथ रख कर रुंधे गले से बोली! गला घोंट देते हैं ! अभी किसी को नहीं पता की जिन्दा हुई है या मरी हुई, दाई को मैं निबट लूंगी ! पति का बदन एक दम से सन्न पड़ गया, वह कभी पत्नी के कठोर पड़ चुके चेहरे की ओर देखता तो कभी नवजात बेटी के चेहरे को ! उसने एकाएक बेटी को सीने से लगा लिया! भीतर प्रकाश का बड़ा सूरज चमकने लगा! बेटी ने पिता के कान में कह दिया था पापा आप चिंता न करें मैं आपके टाइट हाथ खोलने के लिए ही आई हूं। पिता के सीने से लगी बेटी को देखकर पत्नी की आँखे आंसुओ से टिमटिमाने लगी, पति ने आगे बढ़कर पत्नी के आंसू पोंछे और भीतर लम्बी सांस भर कर बोला, हम इसे पालेंगे पार्वती..! 🙏🙏🙏🙏🙏
Ladki Hui Hai

Janm Kya Hai

जन्म_क्या_है? जन्म वह भावनाओं का सैलाब होता है जो किसी के पैदा होते ही पैदा होने वाले से जुड़े लोगों को अपने भावनाओं में बहा कर ले जाता है,जन्म वो एकमात्र दिन है जब आप पैदा हुए तो आपके रोने पे माँ मुस्कुराई थी उसके बाद सृष्टि ने वो दिन नहीं देखा जब आपके रोने पे माँ मुस्कुराई हो! जन्म सबका शायद किसी मकसद के लिए होता है? पर इस मकसद का हर किसी जन्म लेने वाले को पता ही नहीं होता शायद जन्म लेने वाले जन्म लेते हैं निर्भर हो जाते हैं जन्म देने वालों के ऊपर और तब तक निर्भर रहते हैं,जब तक वह खुद आत्मनिर्भरता की अवस्था में नहीं पहुंचते। इस दुनिया के 99% लोग कभी यह नहीं सोच पाते कि तुम्हारा जन्म किस लिए हुआ है तुम किस मकसद से इस दुनिया में आए हो और किन कारणों से तुम्हारा जन्म सिद्ध होगा या तुम्हारा जन्म लेना सफल होगा? जन्म देकर किसी के जन्म को सफल करने वाली जननी कि प्रसव पीड़ा के दौरान उस का घुटता हुआ दम टूटती हुई सांसे शायद किसी मकसद के लिए किसी को जन्म देते समय जद्दोजहद कर रही होती हैं! और एक नन्ही सी किलकारी के साथ रोने की आवाज के साथ अपनी उखड़ी हुई सांसे भूल वह जननी नवजात के जन्मने पर उसके रोते समय मुस्कुराती है परंतु इस बात की साक्षी कुदरत होती है या कोई उनके सामने खड़ा हुआ इंसान इस बात को समझ पाता है और इस कठिन अनुभव से गुजरने वाली उस जननी से बेहतर जन्म देने के महत्व को शायद ही कोई और दूसरा समझ पाएगा कि एक मां जन्म देते समय कितनी पीड़ा में होती है । एक जननी का जन्म देना ही मकसद होता है और वह जन्म देती है परंतु जन्म लेने वाले को अपने मकसद का भान नहीं होता कि तुम्हारा जन्म किस लिए हुआ है जिस दिन जन्म देने वाली जननी की तरह जन्म लेने वाले भी अपने मकसद को समझने लगे तो शायद जन्म देने वाली और जन्म लेने वाले दोनों समकक्ष खड़े दिखेंगे और दुनिया मैं लोगों का नजरिया कुछ अलग ही होगा। जन्म को लेकर तमाम बातें या भ्रांतियां कह लो या कपोल कल्पना कह सकते हैं सुनने को मिलती है की लाख 84 योनियों के बाद इंसान के रूप में कोई जन्म लेता है इतनी कठिन दौड़ के बाद एक इंसानी रूप में पैदा होने वाले प्राणी अपने जन्म का महत्व नहीं समझ पाते इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है। जिस तरह से जन्म देने वाली ने अपने जन्म देने वाले मकसद से इंसानों को जन्म दिया है उस मकसद से इंसान रूबरू होकर अपने जन्म लेने के मकसद को जान ले तो बेहतर होगा नहीं तो जिस तरह से जन्म लिया है उसी तरह इस दुनिया से रवानगी भी होगी, इंसानों का खेल केवल ढाई किलो वजन पर ही टिका हुआ है पैदा होकर भी लोग ढाई किलो के इस दुनिया में लोग आते हैं, उसी तरह एक लोटे में ढाई किलो हस्तियों में ही सिमट कर चले जाते हैं। 😍✍ 🙏🙏
Janm Kya Hai

Ladke Ko Ladki Se Pyar

दिल छू लेगी ये Story एक बार जरूर पढें..................* . एक लड़के को अपनी ही क्लास की लड़की से प्यार हो गया पर वो कह नही पा रहा था क्योकि वो लड़की अमीर थी।.....वह लड़की बहुत ही खुबसूरत थी।.....वो कई बार अपने प्यार का इजहार करना चाहता था पर बार बार उसे अपनी गरीबी का एहसास हो जाता था तभी वो कभी कह ना सका।......लड़की के लिये उसके दिल मे प्यार और बढ़ता गया।.....दिन बीतते गये. स्कूल का आखिरी दिन आ गया।......लड़का अपने घर से स्कूल आ रहा था तभी उसे रास्ते मे उसी लड़की की फोटो मिली। लड़का बहुत खुश हुआ,और उसे अपने प्यार की आखिरी निशानी समझ कर रख लिया। समय बीतता गया लड़का बड़ा होकर उस लड़की को जिंदगी भर तलासता रहा पर वो ना मिली।.....कुछ दिनो बाद लड़के की शादी एक खुबसुरत लड़की से हो गयी। लकिन वो आज भी लड़की से प्यार करता था।......एक दिन वो उसी लड़की की फोटो देख रहा था तो उसकी पत्नी ने पुछा" कि ये कौन है और आपको कहां से मिली!?"लड़के ने कहा कि तुम इसे जानती हो? लड़की ने कहा "ये मेरी बचपन की फोटो है । मै इक लड़के से प्यार करती थी और उसे देने जा रही थी पर रास्ते मे खो गयी थी। शायद भगवान को मेरा प्यार मंजूर ना था।"लड़के ने उस लड़के का नाम पूछा और कहा कि तुम आज भी उससे प्यार करती हो?लड़की ने नाम बताया और कहा मै उसके सिवाय और किसी से प्यार नही करती".....लड़के ने नाम सुना और रोते हुये अपनी बचपन की फोटो दिखायी और कहा कि क्या ये ही वो लड़का हैँ....लड़की ने कहा हां तो क्या आप ही वो......???दोनो अपनी 2 किस्मत पे रोकर खुश होते है कि उन्हे अपना प्यार मिल गया..... अगर प्यार सच्चा हो तो खुदा को भी उसे मिलाना पड़ ता है...... 🙏 अगर आप को मेरी पोस्ट अच्छी लगी तो प्लीज़ कमेंट. Or follow jarur kre ....!😢😢😢😢😢 🙏 🙏
Ladke ko ladki se pyar

Do Roop

दो रूप शांति के तीनों बेटे बहू शहर में बस चुके थे लेकिन उसका गांव छोड़ने का मन नहीं हुआ इसलिए अकेले ही रहती थी वह प्रतिदिन अपने नियम अनुसार मंदिर दर्शन करके वापस आ रही थी की रास्ते मे उसका संतुलन बिगड़ा और गिर पड़ी गांव के लोगों ने उठाया, पानी पिलाया और समझाया 'अब इस अवस्था में अकेले रहना उचित नहीं ..तीन बेटे बहुए है किसी भी बेटे के पास चली जाओ ..शांति ने भी परिस्थिति को स्वीकार कर बेटे बहुओं को ले जाने के लिए कहने हेतु फोन करने का मन बना लिया शांति की तीन बहुएँ थी एक बड़ी सुमन अति आज्ञाकारी ,मंझली गीता थोड़ी आज्ञाकारी और छोटी सुधा जिसे वो कड़वी बहू कहती थी कारण शांति अति धार्मिक थी कोई व्रत त्यौहार आता पहले से ही तीनों बहुओं को सचेत कर देती बडी सुमन खुशी खुशी व्रत करती मंझली पहले नानुकर करती फिर मान जाती थी लेकिन सुधा जिसे वो कड़वी बहू कहती विरोध पर उतर जाती -मां जी आप हर त्योहार पर व्रत रखवा कर उसके आनंद को कष्ट में परिवर्तित कर देती हैं.. शांति -तेरी तो जुबान लड़ाने की आदत है कुछ व्रत तप कर ले आगे तक साथ जाऐगे समझी अक्सर दोनों की किसी न किसी बात पर बहस हो जाती गुस्से में एक दिन शांति ने कह दिया था -तू क्या समझती है बुढापे में मुझे तेरी जरूरत पड़ने वाली है तो अच्छी तरह समझ ले। सड़ जाउंगी लेकिन तेरे पास नहीं आउंगी... इसीलिए सबसे पहले उसने बडकी सुमन बहू को फोन किया -गिर गई हूं बहू आजकल कई बार ऐसा हो गया है। सोचती हूं तुम्हारे पाया ही आ जाऊं.. सुमन - कया...नवरात्र में.. अभी नहीं मांजी.. नंगे पांव रह रही हूं आजकल किसी का छुआ भी नहीं खाती...मे तो ..फिर मंझली गीता को भी फोन किया लेकिन उसने भी बहाना कर टाल दिया की वो मायके जा रही है पति बच्चो संग दो महीनों को..अब जब बडकी मंझली दोनों ही टाल चुकी तो कड़वी बहूको फोन करने का कोई फायदा नहीं था और अहम अभी टूटा था लेकिन खत्म नहीं हुआ था फोन पर हाथ रख आने वाले कठिन समय की कल्पना करने लगी थी तभी फोन की घंटी बजी -आवाज़ से ही समझ गई थी कड़वी है -गिर गये ना.. आपने तो बताया नहीं लेकिन मैंने भी जासूस छोड़ रखे हैं पोते को भेज रही हूं लेने...क्या तुझे मेरे शब्द याद नहीं.. "जिंदगी भर नहीं भूलूगी आपने कहा था सड़ जाउंगी तो भी तेरे पास नहीँ आउंगी तभी मैंने व्रत ले लिया था इस बुजुर्ग मां को कभी सड़ने नहीं देना है मेरा तप अब शुरू होगा..आखिर मां हो मेरी ओर मां को अब अपने बच्चो को आर्शिवाद देने अपने घर आना ही होगा ..यही तो असली व्रत है तप है अपने बुजुर्ग की सेवा और अब कोई बहाना नही आपका पोता पहुंचने वाला होगा ..शांति सोच रही थी सचमुच कितनी गलत थी वो पूजा पाठ को महत्व दिया मगर प्यार और सम्मान देनेवाली को हमेशा कडवी कहा ...दो रूप होते है बहुओ के एक केवल बहु का दूसरा बेटी का ...आज से वो भी मेरा दूसरा रुप देखेगी मां का ...ममतामयी मां का...कहकर पलके भीगने लगी.
Do roop

Pati Ka Anokha Pyaar

🌹🌿🌹🌿🌹पति का अनोखा प्यार🌹🌿🌹🌿🌹 एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की। शादी के बाद दोनो की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी। वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़ किया करता था। लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग (skinDisease) से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी। खुद को इस तरह देख उसके मन में डर समाने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई, तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी। इस बीच एकदिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा। काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसका accident हो गया। Accident में उसने अपनी दोनो आँखें खो दी। लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनो की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही। समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी। वह बदसूरत हो गई, लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा। एकदिन उस लड़की की मौत हो गई। पति अब अकेला हो गया था। वह बहुत दु:खी था. वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था। उसने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाविधि पूर्ण की और शहर छोड़कर जाने लगा. तभी एक आदमी ने पीछे से उसे पुकारा और पास आकर कहा, “अब तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे? इतने साल तो तुम्हारी पत्नितुम्हारी मदद किया करती थी.” पति ने जवाब दिया, “दोस्त! मैं अंधा नहीं हूँ। मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था। क्योंकि यदि मेरी पत्नि को पता चल जाता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूँ, तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता। इसलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया. वह बहुत अच्छी पत्नि थी. मैं बस उसे खुश रखना चाहता था। सीख-- खुश रहने के लिए हमें भी एक दूसरे की कमियों के प्रति आखे बंद कर लेनी चाहिए.. और उन कमियों को नजरन्दाज कर देना चाहिए। 🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
Pati Ka Anokha Pyaar

Maa Beti Ka Rishta

माँ-बेटी का रिश्ता . मेरे पड़ोस में एक बारह साल की बच्ची रहती है। . पहले उसके व्यवहार से मुझे लगता था कि वह बहुत जिद्दी और घमंडी है। . उसके पापा साधारण सी कोई नौकरी करते है, पर उसकी हर इच्छा को जरुर पूरी करते है। . काफी मन्नतो के बाद उनके घर संतान हुई थी। . एक बार उसने अपने घर में नई चप्पल के लिये बखेरा खड़ा कर दिया। . उसके पापा को आज ही सैलरी मिली थी। . पापा ने काफी खूबसूरत चप्पल लाकर उसे दी। . चप्पल लेकर वो काफी खुश थी। उस दिन उसने चप्पल पहन के खुब उछल-कुद की। . पर अगले दिन आश्चर्य चकित रह गया मैं, जब वो अपनी माँ से कह रही थी कि ये नई चप्पल मैँ नहीं पहनुंगी, मुझे अच्छी नहीं लग रही है। . पुराना वाली ज्यादा अच्छी है। . सुनकर थोड़ा गुस्सा आया मुझे, . फिर शाम को मेने उससे पूछा कि जब चप्पले नहीं पहननी थी, तो इतनी महँगी क्यों खरीदवाई .... . और एक दिन पूरा पहन के क्यों घूमी ?? . अब तो वापस भी नही हो सकती ये चप्पल...!!! . मेरी बात सुनकर वो हँसने लगी... . और बोली कि, भैया आप बुद्धु ही रह जाओगे.. . वो तो मम्मी की चप्पल घिस गई थी, नई चप्पल अपने लिये खरीदवा नहीं रही थी। . वो तो सारा प्यार मुझ पे लुटा देना चाहती है। . बस मै बहाने से चप्पल खरीदवा के पहन ली और इसलिये घूमी की दुकान वाले भैया को वापस ना की जा सके। . अब मम्मी उस चप्पल को पहन के कहीं भी आ जा सकेंगी। . इतनी कम उम्र मे माँ के लिये इतनी प्यारी सोच देख के मैं दंग रह गया। . सच में माँ-बेटी का रिश्ता अनमोल है.
Maa beti ka rishta

Ramlal Tum Apni Biwi

🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔 "रामलाल तुम अपनी बीबी से इतना क्यों डरते हो? "मैने अपने नौकर से पुछा।। "मै डरता नही साहब उसकी कद्र करता हूँ उसका सम्मान करता हूँ।"उसने जबाव दिया। मैं हंसा और बोला-" ऐसा क्या है उसमें। ना सुरत ना पढी लिखी।" जबाव मिला-" कोई फरक नही पडता साहब कि वो कैसी है पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है।" "जोरू का गुलाम।"मेरे मुँह से निकला।" और सारे रिश्ते कोई मायने नही रखते तेरे लिये।"मैने पुछा। उसने बहुत इत्मिनान से जबाव दिया- "साहब जी माँ बाप रिश्तेदार नही होते। वो भगवान होते हैं।उनसे रिश्ता नही निभाते उनकी पूजा करते हैं। भाई बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं , दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है। आपका मेरा रिश्ता भी दजरूरत और पैसे का है पर, पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिये हमारी हो जाती है अपने सारे रिश्ते को पीछे छोडकर। और हमारे हर सुख दुख की सहभागी बन जाती है आखिरी साँसो तक।" मै अचरज से उसकी बातें सुन रहा था। वह आगे बोला-"साहब जी, पत्नी अकेला रिश्ता नही है, बल्कि वो पुरा रिश्तों की भण्डार है। जब वो हमारी सेवा करती है हमारी देख भाल करती है , हमसे दुलार करती है तो एक माँ जैसी होती है। जब वो हमे जमाने के उतार चढाव से आगाह करती है,और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ क्योकि जानता हूँ वह हर हाल मे मेरे घर का भला करेगी तब पिता जैसी होती है। जब हमारा ख्याल रखती है हमसे लाड़ करती है, हमारी गलती पर डाँटती है, हमारे लिये खरीदारी करती है तब बहन जैसी होती है। जब हमसे नयी नयी फरमाईश करती है, नखरे करती है, रूठती है , अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब बेटी जैसी होती है। जब हमसे सलाह करती है मशवरा देती है ,परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है, झगडे करती है तब एक दोस्त जैसी होती है। जब वह सारे घर का लेन देन , खरीददारी , घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है। और जब वही सारी दुनिया को यहाँ तक कि अपने बच्चो को भी छोडकर हमारे बाहों मे आती है तब वह पत्नी, प्रेमिका, अर्धांगिनी , हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हमपर न्योछावर करती है।" मैं उसकी इज्जत करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ साहब ।" मैं उसकी बात सुनकर अकवका रह गया।। एक अनपढ़ और सीमित साधनो मे जीवन निर्वाह करनेवाले से जीवन का यह मुझे एक नया अनुभव हुआ ।👫👫👫👫🌹🌹 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ✅ बात अच्छी लगे तो शेयर करें।
Ramlal Tum Apni Biwi

Tyag Hindi Story

त्याग" मां की मृत्यु शोक मे इकट्ठा हुए लोगों के बीच पंडित जी ने घर की परांपरा को आगे बढाने के लिए घरवालों को बुलाया जिसमें मृत्यु के वंशज अपनी प्रिय वस्तु का त्याग करते थे ,सबसे पहले बडे बेटे ने कहा -वो अबसे लाल रंग के कपडे नही पहनेगा... सारी बिरादरी वाह वाह करने लगी वही गमगीन बुजुर्ग पिता सोचने लगे -बडा बेटा बडी कम्पनी के इतने बडे पद पर है जहां सिर्फ लाइट कलर पहने जाते है शायद ही उसे कभी लाल रंग के कपडे पहनने पडे, वाह मेरे बडे बेटे वाह... पंडित ने मंझले बेटे से तो वो बोला-मे आज से गुड नही खाऊंगा घरके सभी जानते है की उसे गुड से एलर्जी थी पर सबके आगे अपनी इज्जत बढाने का मौका मिल गया ऐसा कहकर और लगे हाथ त्याग भी हो गया ..बुजुर्ग पिता सोचने लगे जब मां बीमार थी तो तीनो बेटों मे से कोई उसके पास नही रहा ओर अब बिरादरी मे अपना रूतबा बना रहे है कितना खुश रहती थी कहती थी मुझे मरने पर चार कंधे मेरे अपने घर के होगे तीन मेरे बेटे के ओर चौथा मेरे पति का मगर ... सब काम मे व्यस्त मेरे बेटे उसके अंतिम दर्शनो के लिए भी नही आये ,कितने यत्न करके विदेश मे भेजा था काम करने की उनकी इच्छाओं के लिए ...तभी सबसे छोटे बेटे को पंडित ने आवाज दी तुम कया त्याग करोगे बेटा.. छोटा बेटा- पंडित जी मे अपने समय का त्याग करूंगा .....हां आजसे मे अपने समय का त्याग करूंगा वो जो वक्त मे office से आकर मोबाइल टीवी और अन्य मंनोरंजन को देता था आजसे वो मेरे पिता का हुआ... मे अपने पिता को अपने साथ रखूंगा मेरे दो भगवानो मे से एक को खो चुका हूं... लेकिन दूसरे भगवान की इतनी सेवा करूंगा ताकि मुझे देखकर ओर बच्चो को समझ आ जाए कि उनकी असली दौलत ये रूपये पैसे नही उनके माता पिता है ओर वो भी ये अनमोल दौलत कभी ना खोये सहजकर रखे..मे बदनसीब हूं जो अपनी अनमोल दौलत मे एक नायाब कोहिनूर हीरा अपनी मां को खो चुका हूं ओर रोते हुए छोटा बेटा अपने पिता के पैरों मे गिर गया, सभी कार्य निपटने के बाद छोटा बेटा पिता को अपने घर ले गया जहां पिता कुछ दिनों बाद खुश रहने लगे थे बस पत्नी कि कमी खलती मगर पोते पोतियो के प्यार मे सबकुछ भूल जाते office से आकर बेटा उनके पास बैठ घंटों बातें करता सलाह मशवरा करता वही बहू बेटी की तरह उनका भरपूर खयाल करती ... दोस्तों दुनिया कि सबसे अनमोल दौलत मां बाप है जो हमें दुनिया मे लाते हे वो हमारा नही, ब्लकि हम उनके शरीर का हिस्सा है दोस्तों ये दौलत कभी मत खोना।
Tyag Hindi Story

Aarti Ki Kahani

आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली। आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा। दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी. एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई। आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…” बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.” लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा …. अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !” कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?” “क्या करना होगा ?”, आरती ने पूछा. पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है। कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.” पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी। यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?” आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई. ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया। साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती। रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती। सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती। कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी। धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी। किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी। बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी। छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी। जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी। इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … ! वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!” पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा !!!” "बेटी को सही रास्ता दिखाये, माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे" पोस्ट अच्छा लगे तो प्लीज शेयर करना मत भूलना
Aarti Ki Kahani

Jaisey He Train

जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए। " ये जनरल टिकट है।अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना।वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।" कह टीसी आगे चला गया। पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे। बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे। लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे। " साब बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते।हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे।बड़ी मेहरबानी होगी।" टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा। " सौ में कुछ नहीं होता।आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।" " आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब।नाती को देखने जा रहे हैं।गरीब लोग हैं जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा। " तो फिर ऐसा करो चार सौ निकालो।एक की रसीद बना देता हूँ दोनों बैठे रहो।" " ये लो साब रसीद रहने दो।दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला। " नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी।देश में बुलेट ट्रेन जो आ रही है।एक लाख करोड़ का खर्च है।कहाँ से आयेगा इतना पैसा ? रसीद बना-बनाकर ही तो जमा करना है।ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही। चलो जल्दी चार सौ निकालो।वरना स्टेशन आ रहा है उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।" इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला। आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो। पास ही खड़े दो यात्री बतिया रहे थे।" ये बुलेट ट्रेन क्या बला है ? " " बला नहीं जादू है जादू।बिना पासपोर्ट के जापान की सैर। जमीन पर चलने वाला हवाई जहाज है और इसका किराया भी हबाई सफ़र के बराबर होगा बिना रिजर्वेशन उसे देख भी लो तो चालान हो जाएगा। एक लाख करोड़ का प्रोजेक्ट है। राजा हरिश्चंद्र को भी ठेका मिले तो बिना एक पैसा खाये खाते में करोड़ों जमा हो जाए। सुना है "अच्छे दिन " इसी ट्रेन में बैठकर आनेवाले हैं। " उनकी इन बातों पर आसपास के लोग मजा ले रहे थे। मगर वे दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे ऐसे बैठे थे मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके सोग में जा रहे हो। कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए? क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा? नहीं-नहीं। आखिर में पति बोला- " सौ- डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।" " ऐसा करते हैं नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।" पत्नी के कहा। " मगर मुन्ने के कम करना"" और पति की आँख छलक पड़ी। " मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी। फिर आँख पोंछते हुए बोली-" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-" इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।" उसकी आँख फिर छलके पड़ी। " अरी पगली हम गरीब आदमी हैं हमें मोदीजी को वोट देने का तो अधिकार है पर सलाह देने का नहीं। रो मत विनम्र प्राथना है जो भी इस कहानी को पढ चूका है उसने इस घटना से शायद ही इत्तिफ़ाक़ हो पर अगर ये कहानी शेयर करे कॉपी पेस्ट करे पर रुकने न दे शायद रेल मंत्रालय जनरल बोगी की भी परिस्थितियों को समझ सके। उसमे सफर करने वाला एक गरीब तबका है जिसका शोषण चिर कालीन से होता आया है।

Jaisey He Train

Rishtey Hindi Story

रिश्ते शादी के 19 साल बाद, एक बार पत्नी ने अपने पति के लिए बहुत ही खराब खाना पकाया,सब्जी कच्ची पकी थी, दाल में नमक और मिर्च कुछ ज्यादा ही था.. इधर सलाद में भी नमक कुछ कम नहीं था.. डिनर टेबल पर पति बिल्कुल खामोश था और चुपचाप खाना खा लिया,पत्नी माजरा समझ गई थी, लेकिन दुखी मन से किचन में खाने के बाद किचन में चीजों को जमा रही थी.. इसी बीच पति आया और पत्नी को देखकर मुस्कुराने लगा पत्नी सोचने लगी इतना सब होने के बाद भी मुस्कुराने की क्या वजह होगी पत्नी ने पति से पूछा- आज मुझसे पूरा खाना बिगड़ गया और आपके खाने का पूरा मजा खराब हो गया, फिर भी यह मुस्कुराहट पति- आज रात खाने ने मुझे अपनी शादी के पहले दिन की याद दिला दी, उस दिन भी तुम्हारे पकाए खाने का स्वाद ऐसा ही था, तो मैंने सोचा क्यों न आज 19 साल बात फिर से उसी दिन की तरह तुमसे बात की जाए पत्नी की आंखें भर आईं.. क्योंकि सच्चे रिश्ते कभी मरते नहीं है । रिश्ते में दरार उस पिघली हुई आइसक्रीम की तरह होती है जिसे आप लाख चाहने पर भी उसके मूल स्वरूप में नही ला सकते । रिश्तों को संजोईये,संभालिये,और आइसक्रीम की भांति कभी भी पिघलने मत दीजिये।
Rishtey Hindi Story

Patni Jab Swayan

पत्नी जब स्वयं माँ बनने का समाचार सुनाये और वो खबर सुन, आँखों में से h खुशी के आंसू टप टप गिरने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' नर्स द्वारा कपडे में लिपटा कुछ पाउण्ड का दिया जीव, जवाबदारी का प्रचण्ड बोझ का अहसास कराये तब ... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' रात - आधी रात, जागकर पत्नी के साथ, बेबी का डायपर बदलता है, और बच्चे को कमर में उठा कर घूमता है, उसे चुप कराता है, पत्नी को कहता है तू सो जा में इसे सुला दूँगा। तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' मित्रों के साथ घूमना, पार्टी करना जब नीरस लगने लगे और पैर घर की तरफ बरबस दौड़ लगाये तब ... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' 'हमने कभी लाईन में खड़ा होना नहीं सीखा' कह, हमेशा ब्लैक में टिकट लेने वाला, बच्चे के स्कूल Admission का फॉर्म लेने हेतु पूरी ईमानदारी से सुबह ८ बजे लाईन में खड़ा होने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' जिसे सुबह उठाते साक्षात कुम्भकरण की याद आती हो और वो जब रात को बार बार उठ कर ये देखने लगे की मेरा हाथ या पैर कही बच्चे के ऊपर तो नहीं आ गया एवम् सोने में पूरी सावधानी रखने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' असलियत में एक ही थप्पड़ से सामने वाले को चारो खाने चित करने वाला, जब बच्चे के साथ झूठमूठ की fighting में बच्चे की नाजुक थप्पड़ से जमीन पर गिरने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुद भले ही कम पढ़ा या अनपढ़ हो, काम से घर आकर बच्चों को 'पढ़ाई बराबर करना, होमवर्क पूरा किया या नहीं' बड़ी ही गंभीरता से कहे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुद ही की कल की मेहनत पर ऐश करने वाला, अचानक बच्चों के आने वाले कल के लिए आज comprises करने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' ऑफिस का बॉस, कईयों को आदेश देने वाला, स्कूल की पेरेंट्स मीटिंग में क्लास टीचर के सामने डरा सहमा सा, कान में तेल डाला हो ऐसे उनकी हर Instruction ध्यान से सुनने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुद की पदोन्नति से भी ज्यादा बच्चे की स्कूल की सादी यूनिट टेस्ट की ज्यादा चिंता करने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुद के जन्मदिन का उत्साह से ज्यादा बच्चों के Birthday पार्टी की तैयारी में मग्न रहे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनाता है' हमेशा अच्छी अच्छी गाडियो में घूमने वाला, जब बच्चे की सायकल की सीट पकड़ कर उसके पीछे भागने में खुश होने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' खुदने देखी दुनिया, और खुद ने की अगणित भूले बच्चे ना करे, इसलिये उन्हें टोकने की शुरुआत करे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' बच्चों को कॉलेज में प्रवेश के लिए, किसी भी तरह पैसे ला कर अथवा वर्चस्व वाले व्यक्ति के सामने दोनों हाथ जोड़े तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' 'आपका समय अलग था, अब ज़माना बदल गया है, आपको कुछ मालूम नहीं' 'This is generation gap' ये शब्द खुद ने कभी बोला ये याद आये और मन ही मन बाबूजी को याद कर माफी माँगने लगे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' लड़का बाहर चला जाएगा, लड़की ससुराल, ये खबर होने के बावजूद, उनके लिए सतत प्रयत्नशील रहे तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है' बच्चों को बड़ा करते करते कब बुढापा आ गया, इस पर ध्यान ही नहीं जाता, और जब ध्यान आता है तब उसका कोइ अर्थ नहीं रहता तब... आदमी... 'पुरुष से पिता बनता है'
Patni Jab Swayan

Aasaan Nahin Aurat Hona

#आसान_नहीं_एक_औरत_होना" मैं जब पैदा हुई तो मुझसे बाप रूठ गया , ख़ानदान रूठ गया , जैसे तैसे चलना सीखा , फिर बोलना सीखा , फिर जैसे तैसे बड़ी हुई , स्कूल जाना शुरू किया , मेरी शिक्षा पर भी उंगलियां उठनी शुरू हुईं , स्कूल के लिए साइकिल से जब निकलती थी तो रास्ते में मनचले बाइक से पीछा करना शुरू कर देते थे , जो जी में आए कहते थे , बेहद गंदे और अश्लील शब्दों का प्रयोग कर मेरे ना चाहते हुए भी मुझे पुकारते थे , जैसे मैं उनकी जागीर हूँ । क्लास में जाती तो टीचर की गन्दी निगाह मेरे तन के अंगों पर पड़ती , उसकी भी अश्लील और ओछी हरकतें सहनी पड़ती । फिर कॉलेज का दौर शुरू हुआ , बस में सफ़र करती तो , मनचले किसी न किसी बहाने से मेरे जिस्म के अंगों पर स्पर्श करते , ब्रेक लगती तो मेरे ऊपर आ जाते , मैं अकेली , सहमी हुई सी बेबस लड़की , कुछ न कर पाती थी । कॉलेज के अंदर का माहौल स्कूल से भी ज़्यादा गंदा और अश्लील था , फिर शाम को जब कोचिंग से निकलती , तो मेरे बाप की उम्र के लोग मुझे खा जाने वाली नज़र से देखते , मुझे उस समाज में डर लगने लगा था , जहाँ पर स्त्री को देवी कहा जाता है । दिल में एक ख़ौफ़ होता था कि न जाने मेरे साथ कब और क्या हो जाए , मैं सहमी हुई सी घबराई हुई सी चुपचाप निकल जाती थी । जब शादी का वक़्त आया तो माँ बाप ने भी बोझ समझ कर विदा कर दिया , कुछ वक़्त ससुराल में बिताने के बाद पति का प्यार ख़त्म हो गया , मैं उनके लिए केवल उनकी हवस को शांत करने का सामान बन चुकी थी , सास-ससुर का दुर्व्यवहार , जहेज़ के ताने सहती रही । जब बच्चे हुए तो सारी जवानी अपने पति के लिए और बच्चों के पालन पोषण में कुर्बान कर दिया । और ज़िन्दगी का आख़री पड़ाव आया , जब आँखों में रौशनी ना रही , तो सोचा की अपने बच्चों के साए में जीवन काट लूंगी , लेकिन ऐसा न हुआ , बच्चों ने भी वृद्धाश्रम ( Old Home ) छोड़ दिया , अब जब अपने बच्चों की याद आती है तो कंपते हुए हाँथ आसमान की तरफ उठा कर बच्चों की ख़ुशी और सलामती के लिए दुआ कर , बिलख कर रो के अपना मन हल्का कर लेती हूँ । मैं एक बेटी थी , पत्नी थी , बहू थी , माँ भी थी , परंतु मुझे जीवन के किसी भी पड़ाव पर सम्मान न मिल सका । इस जीवन और इस समाज से बस इतना ही सीखा मैंने , इतना आसान नहीं है एक औरत होना । {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?} मेरा पूरा पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया इस तरह का पोस्ट पढ़ने के लिए आपको अच्छा लगता हो तो मुझे फेंड रिकवेस्ट भेजे या सिर्फ फौलो भी कर सकते हैं हम हमेशा कुछ ना कुछ पोस्ट लेकर ही आएंगे जो आपके दिल को छू जाएगा शुक्रिया आपका धन्यवाद दिल से आपका दोस्त..😭😭 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 . ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे
Aasaan Nahin aurat Hona

Aik Ladki Ki Shadi

एक लड़की की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ एक सिधे साधे लड़के से की जाती है जिसके घर मे एक मां के आलावा और कोई नहीं है। दहेज मे लड़के को बहुत सारे उपहार और पैसे मिले होते हैं । लड़की किसी और लड़के से बेहद प्यार करती थी और लड़का भी लड़की शादी होके आ गयी अपने ससुरालसुहागरात के वक्त लड़का दूध लेके आता है तो दुल्हन सवाल पूछती है अपने पति सेएक पत्नी की मर्जी के बिना पति उसको हाथ लगाये तो उसे बलात्कार कहते है या हक? पति - आपको इतनी लम्बी और गहरी जाने की कोई जरूरत नहीं है बस दूध लाया हूँ पी लिजीयेगा हम सिर्फ आपको शुभ रात्रि कहने आये थे कहके कमरे से निकल जाता है। लड़की मन मारकर रह जाती है क्योंकि लड़की चाहती थी की झगड़ा हो ताकी मैं इस गंवार से पिछा छुटा सकूँ । है तो दुल्हन मगर घर का कोई भी काम नहीं करती। बस दिनभर रहती और न जाने किस किस से बातें करती मगर उधर लड़के की माँ बिना शिकायत के दिन भर चुल्हा चौका से लेकर घर का सारा काम करती मगर हर पल अपने होंठों पर मुस्कुराहट लेके फिरती । लड़का एक कम्पनी मे छोटा सा मुलाजीम है और बेहद ही मेहनती और इमानदार। करीब महीने भर बित गये मगर पति पत्नी अब तक साथ नहीं सोये वैसे लड़का बहुत शांत स्वाभाव वाला था इसलिए वह ज्यादा बातें नहीं करता था बस खाने के वक्त अपनी पत्नी से पूछ लेता था कि कहा खाओगीअपने कमरे मे या हमारे साथ। और सोने से पहले डायरी लिखने की आदत थी जो वह हर रात को लिखता था। ऐसे लड़की के पास एक स्कूटी था वह हर रोज बाहर जाती थी पति के अफीस जाने के बाद और पति के वापस लौटते ही आ जाती थी। छुट्टी का दिन था लड़का भी घर पे ही था तो लड़की ने अच्छे भले खाने को भी गंदा कहके मा को अपशब्द बोलके खाना फेंक देती है मगर वह शांत रहने वाला उसका पति अपनी पत्नी पर हाथ उठा देता है मगर माँ अपने बेटे को बहुत डांटती है। इधर लड़की को बहाना चाहिए था झगड़े का जो उसे मिल गया था वह पैर पटकती हुई स्कूटी लेके निकल पड़ती है। लड़की जो रोज घर से बाहर जाती थी वह अपने प्यार से मिलने जाती थी लड़की भले टूटकर चाहती थी लड़के को मगर उसे पता था की हर लड़की की एक हद होती है जिसे इज्जत कहते है वह उसको बचाये रखी थी। इधर लड़की अपने प्यार के पास पहुँचकर कहती है। अब तो एक पल भी उस घर मे नहीं रहना है मुझे । आज गंवार ने मुझपर हाथ उठाके अच्छा नही किया । लड़का - अरे तुमसे तो मैं कब से कहता हूँ की भाग चलो मेरे साथ कहीं दूर मगर तुम हो की आज कल आज कल पे लगी रहती हो। लड़की - शादी के दिन मैं आई थी तो तुम्हारे पास। तुम ही ने तो लौटाया था मुझे । लड़का - खाली हाथ कहा तक भागोगे तुम ही बोलोमैंने तो कहा था कि कुछ पैसे और गहने साथ ले लो तुम तो खाली हाथ आई थी। आखिर दूर एक नयी जगह मे जिंदगी नये सिरे से शुरू करने के लिए पैसे तो चाहिए न? लड़की - तुम्हारे और मेरे प्यार के बारे मे जानकर मेरे घरवालो ने बैंक के पास बुक एटी एम और मेरे गहने तक रख लिये थे। तो मैं क्या लाती अपने साथ । हम दोनों मेहनत करके कमा भी तो सकते थे। लड़का - चलाकर इंसान पहले सोचता है और फिर काम करता है। खाली हाथ भागते तो ये इश्क का भूत दो दिन मे उतर जाता समझी? और जब भी तुम्हें छुना चाहता हूँ बहुत नखरे है तुम्हारे । बस कहती हो शादी के बाद । लड़की - हाँ शादी के बाद ही अच्छा होता है ये सब और सब तुम्हारा तो है। मैं आज भी एक कुवारी लड़की हूँ । शादी करके भी आज तक उस गंवार के साथ सो न सकी क्योंकि तुम्हें ही अपना पति मान चुकी हूँ बस तुम्हारे नाम की सिंदूर लगानी बाकी है। बस वह लगा दो सबकुछ तुम अपनी मर्जी से करना। लड़का - ठीक है मैं तैयार हूँ । मगर इस बार कुछ पैसे जरूर साथ लेके आना मत सोचना हम दौलत से प्यार करते हैं । हम सिर्फ तुमसे प्यार करते है बस कुछ छोटी मोटी बिजनेस के लिए पैसे चाहिए । लड़की - उस गंवार के पास कहा होगा पैसा मेरे बाप से 3 लाख रूपया उपर से मारूती कार लि है। बस कुछ गहने है वह लेके आउगी आज। लड़का लड़की को होटल का पता देकर चला जाता है । लड़की घर आके फिर से लड़ाई करती है। मगर अफसोस वह अकेली चिल्लाती रहती है उससे लड़ने वाला कोई नहीं था। रात 8 बजे लड़के का मैसेज आता है वाटसप पे की कब आ रही हो? लड़की जवाब देती है सब्र करो कोई सोया नहीं है। मैं 12 बजे से पहले पहुँच जाउगी क्योंकि यंहा तुम्हारे बिना मेरी सांसे घुटती है। लड़का -ओके जल्दी आना। मैं होटल के बाहर खड़ा रहूंगा लड़की अपने पति को बोल देती है की मुझे खाना नहीं चाहिए मैंने बाहर खा लिया है इसलिए मुझे कोई परेशान न करे इतना कहके दरवाजा बंद करके अंदर आती है कीपति बोलता है कीवह आलमारी से मेरी डायरी दे दो फिर बंद करना दरवाजा। हम परेशान नहीं करेंगे । लड़की दरवाजा खोले बिना कहती है की चाभीया दो अलमारी की लड़का - तुम्हारे बिस्तर के पैरों तले है चाबी । मगर लड़की दरवाजा नहीं खोलती वल्की जोर जोर से गाना सुनने लगती है। बाहर पति कुछ देर दरवाजा पिटता है फिर हारकर लौट जाता है। लड़की ने बड़े जोर से गाना बजा रखा था। फिर वह आलमारी खोलके देखती है जो उसने पहली बार खोला था क्योंकि वह अपना समान अलग आलमारी मे रखती थी। आलमारी खोलते ही हैरान रह जाती है। आलमारी मे उसके अपने पास बुक एटी एम कार्ड थे जो उसके घरवालो ने छीन के रखे थे खोलके चेक किया तो उसमें वह पैसे भी एड थे जो दहेज मे लड़के को मिले थे। और बहुत सारे गहने भी जो एक पेपर के साथ थे और उसकी मिल्कीयेत लड़की के नाम थी लड़की बेहद हैरान और परेशान थी। फिर उसकी नजर डायरी मे पड़ती है और वह जल्दी से वह डायरी निकालके पढ़ने लगती है। लिखा था तुम्हारे पापा ने एक दिन मेरी मां की जान बचाइ थी अपना खून देकर । मैं अपनी माँ से बेहद प्यार करता हूँ इसलिए मैंने झूककर आपके पापा को प्रणाम करके कहा कीआपका ये अनमोल एहसान कभी नही भूलूंगा कुछ दिन बाद आपके पापा हमारे घर आये हमारे तुम्हारे रिश्ते की बात लेकर मगर उन्होंने आपकी हर बात बताई हमें की आप एक लड़के से बेहद प्यार करती हो। आपके पापा आपकी खुशी चाहते थे इसलिए वह पहले लड़के को जानना चाहते थे। आखिर आप अपने पापा की जो थी और हर बाप अपने के लिए एक अच्छा इमानदार चाहता है। आपके पापा ने खोजकर के पता लगाया की वह लड़का बहुत सी लड़की को धोखा दे चुका है। और पहली शादी भी हो चुकी है पर आपको बता न सके क्योंकि उन्हें पता था की ये जो इश्क का नशा है वह हमेशा अपनों को गैर और गैर को अपना समझता है। ऐक बाप के मुँह से एक बेटी की कहानी सुनकर मै अचम्भीत हो गया। हर बाप यंहा तक शायद ही सोचे। मुझे यकीन हो गया था की एक अच्छा पति होने का सम्मान मिले न मिले मगर एक दामाद होने की इज्जत मैं हमेशा पा सकता हूँ। मुझे दहेज मे मिले सारे पैसे मैंने तुम्हारे ए काउण्ट मे कर दिए और तुम्हारे घर से मिली गाड़ी आज भी तुम्हारे घर पे है जो मैंने इसलिए भेजी ताकी जब तुम्हें मुझसे प्यार हो जाये तो साथ चलेंगे कही दूर घूमने। दहेजइस नाम से नफरत है मुझे क्योंकि मैंने इ दहेज मे अपनी बहन और बाप को खोया है। मेरे बाप के अंतिम शब्द भी येही थे कीकीसी बेटी के बाप से कभी एक रूपया न लेना। मर्द हो तो कमाके खिलाना तुम आजाद हो कहीं भी जा सकती हो। डायरी के बिच पन्नों पर तलाक की पेपर है जंहा मैंने पहले ही साईन कर दिया है । जब तुम्हें लगे की अब इस गंवार के साथ नही रखना है तो साईन करके कहीं भी अपनी सारी चिजे लेके जा सकती हो। लड़की हैरान थी परेशान थीन चाहते हुए भी गंवार के शब्दों ने दिल को छुआ था। न चाहते हुए भी गंवार के अनदेखे प्यार को महसूस करके पलके नम हुई थी। आगे लिखा था मैंने तुम्हें इसलिए मारा क्योंकि आपने मा को गाली दी और जो बेटा खुद के आगे मा की बेइज्जती होते सहन कर जायेफिर वह बेटा कैसा । कल आपके भी बच्चे होंगे । चाहे किसी के साथ भी हो तब महसूस होगी माँ की महानता और प्यार। आपको दुल्हन बनाके हमसफर बनाने लाया हूँ जबरजस्ती करने नहीं। जब प्यार हो जाये तो भरपूर वसूल कर लूँगा आपसेआपके हर गुस्ताखी का बदला हम शिद्दत से लेंगे हम आपसेगर आप मेरी हुई तो बेपनाह मोहब्बत करके किसी और की हुई तो आपके हक मे दुवाये माँग के लड़की का फोन बज रहा था जो भायब्रेशन मोड पे था लड़की अब दुल्हन बन चुकी थी। पलकों से आशू गिर रहे थे । सिसकते हुए मोबाइल से पहले सिम निकाल के तोड़ा फिर सारा सामान जैसा था वैसे रख के न जाने कब सो गई पता नहीं चला। सुबह देर से जागी तब तक गंवार अफीस जा चुका था पहले नहा धोकर साड़ी पहनी । लम्बी सी सिंदूर डाली अपनी माँग मे फिर मंगलसूत्र । जबकि पहले एक टीकी जैसी साईड पे सिंदूर लगाती थी ताकी कोई लड़का ध्यान न दे मगर आज 10 किलोमीटर से भी दिखाई दे ऐसी लम्बी और गाढी सिंदूर लगाई थी दुल्हन ने। फिर किचन मे जाके सासुमा को जबर्दस्ती कमरे मे लेके तैयार होने को कहती है। और अपने गंवार पति के लिए थोड़े नमकीन थोड़े हलुवे और चाय बनाके अपनी स्कूटी मे सासुमा को जबर्दस्ती बिठाकर (जबकी कुछ पता ही नहीं है उनको की बहू आज मुझे कहा ले जा रही है बस बैठ जाती है) फिर रास्ते मे सासुमा को पति के अफीस का पता पूछकर अफीस पहुँच जाती है। पति हैरान रह जाता है पत्नी को इस हालत मे देखकर। पति - सब ठीक तो है न मां? मगर माँ बोलती इससे पहले पत्नी गले लगाकर कहती है कीअब सब ठीक है अफीस के लोग सब खड़े हो जाते है तो दुल्हन कहती है कीमै इनकी धर्मपत्नी हूँ । बनवास गई थी सुबह लौटी हूँ अब एक महीने तक मेरे पतिदेव अफीस मे दिखाई नहीं देंगे अफीस के लोग? ????? दुल्हन - क्योंकि हम लम्बी छुट्टी पे जा रहे साथ साथ। पति- पागल दुल्हन - आपके सादगी और भोलेपन ने बनाया है। सभी लोग तालीया बजाते हैं और दुल्हन फिर से लिपट जाती है अपने गंवार से जंहा से वह दोबारा कभी भी छूटना नहीं चाहती। बड़े कड़े फैसले होते है कभी कभी हमारे अपनों की मगर हम समझ नहीं पाते कीहमारे अपने हमारी फिकर खुद से ज्यादा क्यों करते हैं मां बाप के फैसलों का सम्मान करे क्योंकि ये दो ऐसे शख्स है जो आपको हमेशा दुनियादारी से ज्यादा प्यार करते हैं । 🙏🙏

Aik Ladki ki shadi

Aap Achey Ho

आप अच्छे हो 'निभा कहां है हमारी लाडली बिटिया। देखो। हम तुम्हारे लिए क्या लाए हैं।' घर में घुसते ही नीलेश ने बड़े प्यार से तेज आवाज में कहा। सामने विभा खड़ी थी। उसने इशारे से बताया कि निभा अपने कमरे में है। आज दोपहर में निभा की 12वीं का रिजल्ट आया था। उसका प्रतिशत सहपाठियों के मुकाबले काफी कम था। जब से रिजल्ट आया था वहां आंखों में आंसू लिए बैठी थी। दिन का खाना भी नहीं खाया था उसने। उसकी मम्मी विभा ने नीलेश को फोन करके सब बातें बताईं। 'अरे मेरी बिटिया कहां है' नीलेश ने बिल्कुल उसी अंदाज में कहा जैसे वह बचपन में बेटी के साथ खेला करता था और सामने देख कर भी ना देखने का नाटक किया करता था। निभा ने अपना सिर ऊपर नहीं किया। वैसे ही मूर्तिवत बैठी रही। 'निभा देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं' कहते हुए नीलेश ने नन्हा टेडी निकाला और सामने रख दिया। निभा ने उदास नजर टेडी पर डाली। पहले की बात रहती तो वह निलेश के गले लग जाती। 'निभा देखो मैं पैटिज लाया हूं और आइसक्रीम भी वही फ्लेवर जो तुम्हें पसंद है।' यह कह कर उसने दोनों चीजें निभा के सामने रख दी। 'पापा प्लीज मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैंने आपकी उम्मीदों को तोड़ा है। आपने मुझे हर सुविधा दी और देखिए मेरे कितने कम नंबर आए।' तुमने प्रयास किया वही हमारे लिए बहुत है अब चलो हम लोग जश्न मनाते हैं। विभा इधर आओ कहते हुए नीलेश ने निभा के मुंह में आइसक्रीम वाला बड़ा-सा चम्मच डाल दिया। एक साथ इतनी ठंडी आइसक्रीम मुंह में जाती ही वह उठकर पापा के गले लगकर जोर से रो पड़ी। नीलेश ने उसे रो लेने दिया। अब वह नन्ही बच्ची नहीं थी जो फुसल जाती। नमी निलेश की आंखों में भी उतरी पर वह खुशी बिटिया को वापस पा लेने की थी। अचानक निभा धीरे से बोली 'आप बहुत अच्छे हैं पापा।' निभा की गंभीर आवाज ने निलेश को अंदर से रुला दिया। {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी ?} ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे या फिर मूजे मेसेज() कर के बता बताइएे

Aap achey Ho

Bandar Chaal

एक बार कुछ बंदरों को एक बड़े से पिंजरे में डाला गया और वहां पर एक सीढी लगाई गई| सीढी के ऊपरी भाग पर कुछ केले लटका दिए गए| उन केलों को खाने के लिए एक बन्दर सीढी के पास पहुंचा| जैसे ही वह बन्दर सीढी पर चढ़ने लगा, उस पर बहुत सारा ठंडा पानी गिरा दिया गया और उसके साथ-साथ बाकी बंदरों पर भी पानी गिरा दिया गया| पानी डालने पर वह बन्दर भाग कर एक कोने में चला गया| थोड़ी देर बाद एक दूसरा बन्दर सीढी के पास पहुंचा| वह जैसे ही सीढी के ऊपर चढ़ने लगा, फिर से बन्दर पर ठंडा पानी गिरा दिया गया और इसकी सजा बाकि बंदरों को भी मिली और साथ-साथ दूसरे बंदरो पर भी ठंडा पानी गिरा दिया गया | ठन्डे पानी के कारण सारे बन्दर भाग कर एक कोने में चले गए| यह प्रक्रिया चलती रही और जैसे ही कोई बन्दर सीढी पर केले खाने के लिए चढ़ता, उस पर और साथ-साथ बाकि बंदरों को इसकी सजा मिलती और उन पर ठंडा पानी डाल दिया जाता| बहुत बार ठन्डे पानी की सजा मिलने पर बन्दर समझ गए कि अगर कोई भी उस सीढी पर चढ़ने की कोशिश करेगा तो इसकी सजा सभी को मिलेगी और उन सभी पर ठंडा पानी डाल दिया जाएगा| अब जैसे ही कोई बन्दर सीढी के पास जाने की कोशिश करता तो बाकी सारे बन्दर उसकी पिटाई कर देते और उसे सीढी के पास जाने से रोक देते| थोड़ी देर बाद उस बड़े से पिंजरे में से एक बन्दर को निकाल दिया गया और उसकी जगह एक नए बन्दर को डाला गया| नए बन्दर की नजर केलों पर पड़ी| नया बन्दर वहां की परिस्थिति के बारे में नहीं जानता था इसलिए वह केले खाने के लिए सीढी की तरफ भागा| जैसे ही वह बन्दर उस सीढी की तरफ भागा, बाकि सारे बंदरों ने उसकी पिटाई कर दी| नया बन्दर यह समझ नहीं पा रहा था कि उसकी पिटाई क्यों हुई | लेकिन जोरदार पिटाई से डरकर उसने केले खाने का विचार छोड़ दिया| अब फिर एक पुराने बन्दर को उस पिंजरे से निकाला गया और उसकी जगह एक नए बन्दर को पिंजरे में डाला गया| नया बन्दर बेचारा वहां की परिस्थिति को नहीं जनता था इसलिए वह केले खाने के लिए सीढी की तरफ जाने लगा और यह देखकर बाकी सारे बंदरों ने उसकी पिटाई कर दी| पिटाई करने वालों में पिछली बार आया नया बन्दर भी शामिल था जबकि उसे यह भी नहीं पता था कि यह पिटाई क्यों हो रही है| यह प्रक्रिया चलती रही और एक-एक करके पुराने बंदरों की जगह नए बंदरों को पिंजरे में डाला जाने लगा| जैसे ही कोई नया बन्दर पिंजरे में आता और केले खाने के लिए सीढी के पास जाने लगता तो बाकी सारे बन्दर उसकी पिटाई कर देते| अब पिंजरे में सारे नए बन्दर थे जिनके ऊपर एक बार भी ठंडा पानी नहीं डाला गया था| उनमें से किसी को यह नहीं पता था कि केले खाने के लिए सीढी के पास जाने वाले की पिटाई क्यों होती है लेकिन उन सबकी एक-एक बार पिटाई हो चुकी थी| अब एक और बन्दर को पिंजरे में डाला गया और आश्चर्य कि फिर से वही हुआ| सारे बंदरों ने उस नए बन्दर को सीढी के पास जाने से रोक दिया और उसकी पिटाई कर दी जबकि पिटाई करने वालों में से किसी को भी यह नहीं पता था कि वह पिटाई क्यों कर रहे है| हमारे जीवन भी ऐसा ही कुछ होता है| अन्धविश्वास और कुप्रथाओं का चलन भी कुछ इसी तरह होता है क्योंकि उन हम लोग प्रथाओं और रीति-रिवाजों के पीछे का कारण जाने बिना ही उनका पालन करते रहते है और नए कदम उठाने की हिम्मत कोई नहीं करता क्योंकि ऐसा करने पर समाज के विरोध करने का डर बना रहता है| कोई भी कुछ नया करने की सोचता है तो उसे कहीं न कहीं लोगों के विरोध का सामना करना ही पड़ता है| भारत की जनसँख्या 121 करोड़ से ऊपर है लेकिन भारत खेलों में बहुत पीछे है क्योंकि ज्यादातर अभिवावक अपने बच्चों को खेल के क्षेत्र में जाने से रोकते है क्योंकि बाकी सारा समाज भी ऐसा ही कर रहा है| उन्हें असफलता का डर लगा रहता है| ये बड़ी अजीब बात है कि अभी हाल ही में उतरप्रदेश में चपरासी के सिर्फ 368 पदों के लिए 23 लाख आवेदन आए थे और उसमें से भी 1.5 लाख ग्रेजुएट्स, 25000 पोस्ट ग्रेजुएट्स थे और 250 आवेदक ऐसे थे जिन्होंने पीएचडी की हुई थी| दूसरी तरफ भारत को आज भी विदेशों से लाखों करोड़ का सामान इम्पोर्ट करना पड़ता है और खेल जैसे क्षेत्र में भारत बहुत पीछे है| संभावनाएं बहुत है लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाते क्योंकि हम भीड़चाल में चलते है| ये हमारी मानसिकता ही है जो हमें पीछे धकेल रही है| हम चाहें तो बन्दर की तरह लोगों की देखा देखी कर सकते या फिर खुद की स्वतन्त्र सोच के बल पर सफलता की सीढी चढ़ सकते है
Bandar Chaal

Aaj Jab Dophar Ko

आज हम जब दोपहर को खाना खाने घर गया तो देखा कि हमारी बिटिया ने अपना गुल्लक तोड़ दिया था और पैसे अपने दुप्पटे मे इकट्ठा कर रही थी मैने पूंछा यह गुल्लक क्यों तोड़ दिया तो रोने लगी और दौड कर हमारे पास आकर हमसे लिपट कर रोने लगी और बोली। पापा हमारी चाची बीमार है चाचा काम करने गये हैं चाची को तेज बुखार है चाची दर्द से कराह रहीं है मै एक छण अपनी बिटिया को देखता रहा और मेरी आंखों में आँसू आ गये। हमने कहा कि चाची के साथ तो तुम्हारी मां का झगड़ा है । तुम यह सब क्यों कर रही हो । बिटिया ने धीरे से कहा कि मम्मी और चाची का झगड़ा है हमारा नही हमने अपने छोटे भाई को फोन किया और पूंछा कहां हो बो बोला काम मे बिजी हू। साम तक आ पाऊगा हमने डाक्टर साहब को बुलाया बहू का इलाज कराया हम अपने जेब से पैसे निकाल कर देने लगा तो बिटिया बोली डाक्टर अंकल बो पैसे ना लो । यह हमारी गुल्लक बाले पैसे ले लीजिए डाक्टर साहब एक छण हमारी तरफ देखते हुए बोले माजरा क्या है हमने पूरा बाक्या सुनाया डाक्टर साहब नम आंखों से हमसे बोले देखलो किशनपाल ऐसी होतीं हैं बिटियां। ।।।।।। डाक्टर जी ने कुछ दवाइयां लिख कर पर्चा देते हुए कहा हमे फीस नही चाहिए इन्ही पैसे से आपकी बिटिया की सादी में हमारी तरफ से एक तोहफ़ा दे देना मै हैरान था ➕ कि हम जिन बेटों के लिए बेटियों का गर्भपात करवा देते है । और बाद मे बो ही बेटे हमको घर से बाहर आश्रम में रहने भेज देते है ।। इसलिए भाइयो बेटी की रक्षा देश की रक्षा आप सभी को बेटी बचाओ बेटी पढाओ का अनुसरण देता हूँ। शेयर जरूर करें
Aaj Jab Dophar Ko

Tum Bahot Achey Ho

तुम बहुत अच्छे हो . ठंड अपने पूरे यौवन पर थी। अभी रात के आठ बजे थे, लेकिन ऐसा लगता था कि आधी रात हो गई है। मैं अम्बाला छावनी बस स्टैंड पर शहर आने के लिए लोकल बस की इंतज़ार कर रहा था। जहां मैं खड़ा था उससे कुछ ही दूरी पर दो-तीन ऑटो रिक्शा वाले एवं टैक्सी वाले खड़े थे। मुझे वहां खड़े हुए लगभग बीस-पच्चीस मिनट हो चुके थे, लेकिन बस थी कि आ ही नहीं रही थी। खड़े-खड़े ठंड के कारण मेरी देह अकड़ने लगी थी। ऑटो-रिक्शा वाले से बात की तो उसने शहर जाने के लिए चालीस रुपये मांगे थे। बस में जाने से चार रुपये और ऑटो-रिक्शा में जाने से चालीस रुपये। घर जल्दी पहुंच कर भी क्या करना है? मैंने मन को समझाया। ख़ामख़ाह में छत्तीस रुपये की नक़द चपत लगेगी। जबकि इन छत्तीस रुपये से मुझ जैसे नौकरीपेशा युक्त व्यक्ति की बहुत-सी ज़रूरतें पूरी हो सकती थीं। बहुत-सी समस्याएं सुलझ सकती थीं। मैं इसी उधेड़बुन में था कि जाऊं या नहीं, तभी दूर से एक बस की ‘हैड-लाइट’ नज़र आई थी। बस नज़दीक आई। मेरी नज़रें गिद्ध समान बस से चिपकी थी। बस देहरादून से आई थी और चंडीगढ़ जानी थी। बस स्टैंड पर बस रुकी। उतरने वाली तीन-चार सवारियां ही थीं। उन सवारियों में एक युवा लड़की भी थी। कंधे पर सामान का एक बैग झूलता हुआ। उतरने वाली अन्य सवारियां रिक्शा करके जा चुकी थीं। वह युवा लड़की भी किसी अन्य वाहन की तलाश में थी। तभी वह लड़की ऑटो-रिक्शा वाले के पास गई, बोली, “भैया! अम्बाला शहर के लिए कोई बस…..?” वाक्य उसने अधूरा छोड़ दिया था। ऑटो-रिक्शा वाले ने उसे ऊपर से नीचे तक निहारने के बाद कहा, “इस समय कोई बस नहीं मिलेगी। ऑटो रिक्शा में चलना है तो…..?” “कितने पैसे लोगे? उसने पूछा।” “40 रुपये।” “यहां से कितनी दूर है?” उसने फिर पूछा। “यही कोई 10-11 किलोमीटर!” वह चुप हो गई। सोचती रही। ‘चार्जेज़’ बहुत ज़्यादा हैं। दूसरी वह अकेली…..? कहीं रास्ते में…..? वह सिहर उठी थी। उसके चेहरे पर घबराहट और भय के मिले-जुले भाव थे। तभी वहां दो युवक आ गए। शक्ल से वे ‘शरीफ़’ नहीं लग रहे थे। पान चबाते हुए उनमें से एक ने उस लड़की को देख कर मुस्कुरा कर पूछा, “कहां जाओगी?” “मुझे शहर जाना है।” स्वर में हल्का-सा कंपन था। पैर लरज़ रहे थे। “हम छोड़ देंगे।” दाढ़ी वाला दूसरा युवक मुस्कुराया आंखों में अजीब-सी चमक लिए हुए। ठंड और भी बढ़ गई थी। लेकिन उस युवा लड़की की ‘पेशानी’ पर पसीने की बूंदे झिलमिलाने लगी थीं। आंखों में भय के साथ-साथ नमी भी झलकने लगी थी। मैं उनके बीच ‘बिन बादल बरसात’ की तरह टपक पड़ा। “सुनिये!” मैं लड़की का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए धीरे से बड़बड़ाया। सवालिया निगाहें उस युवा लड़की के साथ-साथ उन दोनों युवकों व पास ही खड़े ऑटो-रिक्शा चालक की मुझ पर उठी थीं। “आप शहर जा रही हैं न?” जानते-बूझते हुए भी मैंने एक प्रश्न किया था। उस लड़की ने गर्दन ‘हां’ में हिलाई। चेहरे पर अब भी ख़ौफ़ था। “मुझे भी शहर जाना है। अगर आप मेरे साथ चलना चाहो तो…..?” न जाने कैसे ये शब्द मैं उससे कह गया था? मन में डर भी था कि कहीं वह लड़की मुझे ग़लत न समझ ले। डर उन ‘तीनों’ से भी था जो वहां खड़े थे। मुझे उस युवा लड़की से बातें करते देख वे तीनों वहां से सटके थे। मैंने भी राहत की सांस ली। मेरे प्रश्न के उत्तर में वह मेरे पास खिसक आई। उसका पास आना उसकी स्वीकृति का सूचक था कि उसे मुझ पर विश्वास था। बस अभी भी दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही थी। “आप कहां से आ रही हैं?” मैंने पूछा। “मेरठ से!” संक्षिप्त-सा उसने उत्तर दिया। “शहर कहां जाना है?” मैंने फिर प्रश्न किया। “मैं ‘मेडिकल होस्टल’ में रहती हूं।” वह बोली। कुछ देर मैं चुप रहा। क्या बात करूं यही सोचता रहा। फिर मैंने कहा, “आप को दिन में आना चाहिए था या फिर किसी को साथ लेकर?” “वैसे पापा ने आना था, मगर उनकी तबीयत अचानक ख़राब हो गई।” वह मजबूरी बताते हुए बोली। “तो किसी और को साथ….. मतलब भाई…..?” “घर में छोटा भाई व छोटी बहन ही है। इसीलिए…..? फिर भी मैं समय से ही चली थी। लेकिन सहारनपुर में बस स्टैंड पर चालकों ने पहिया जाम कर दिया था। शायद किसी पैसेंजर से झगड़ा हो गया था। अन्यथा मैं सायं को ही यहां पहुंच जाती।” उसने अपनी बेबसी व मजबूरी झलकाई थी। “बस तो आ नहीं रही, क्या आप मेरे साथ ऑटो-रिक्शा में चलना पसंद करोगी? किराया आधा-आधा कर लेंगे।” मैंने व्यावहारिक बनने की कोशिश की। इससे पूर्व कि वह कोई जवाब देती, वही दोनों युवक एक मारुति में नज़र आये। उनमें से एक उस लड़की को देख कर चिल्लाया, “अम्बाला शहर…… अम्बाला शहर।” मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा था और शायद यही हाल उसका भी था। उसकी हालत देख कर अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वह किस क़दर भयभीत हो उठी थी। मैं कोई फ़िल्मी हीरो नहीं था कि उन दोनों का मुक़ाबला कर सकता। पर साथ ही मुझे साथ खड़ी लड़की का ख़्याल आया। आज निस्संदेह इस लड़की के सितारे गर्दिश में हैं। इसके साथ आज कुछ भी हो सकता है। अगर मैं न होता तो शायद यह उनके साथ चली जाती? और फिर…..? मैं कल्पना-मात्र से ही सिहर उठा। तभी बस आती नज़र आई। “लगता है बस आ रही है!” मैंने उस युवा लड़की से कहा। नज़रें, आ रही बस पर टिकी थीं। बस आकर रुकी थी। मैं बस में चढ़ा। मेरे पीछे वह भी चढ़ी थी। मैंने दो टिकट शहर की ली। उसने टिकट के पैसे देने चाहे थे। मैंने मना कर दिया। अजनबियत की पारदर्शी दीवार हम दोनों के बीच गिर चुकी थी। हम दोनों साथ-साथ बस में बैठे थे। मैं उससे इस क़दर हट कर बैठा था, मानों मुझे या उसे छूत की बीमारी हो या फिर उसके कोमल मन पर इस धारणा को पक्की करने की ललक में था कि मैं कोई ग़लत युवक नहीं हूं। मैं ऐसा क्यों कर रहा था, यह मेरी समझ से बाहर था। क्या मैं उसकी ओर आकर्षित हो रहा हूं? मेरे पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं था। “आप क्या करते हैं?” उसने अचानक मुझ से सवाल किया। “मैं…..?” मैं उसकी ओर देखते हुए चौंका, बोला, “सरकारी नौकरी में हूं….. साथ ही लेखन से जुड़ा हूं।” बेवजह मैंने अपने लेखन की बात कही। शायद उसे प्रभावित करने के लिए। “किस नाम से?” उसने खिड़की से बाहर झिलमिलाती रौशनियों की ओर देखते हुए पूछा। “दीपांकर नाम से। वैसे मेरा नाम भी ‘दीपांकर’ है।” मैं सोच रहा था कि नाम सुन कर वह कहेगी, “हां! मैंने इस नाम को पढ़ा है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं कोई बड़ा लेखक नहीं था उसकी नज़र में।” “वह ख़ामोश हो गई थी। मैंने कनखियों से उसकी तरफ़ देखा। वह सुन्दर थी- बेहद सुन्दर। उसकी सादगी दिल में उतर जाने वाली थी, सीधे ही। एक सुकून पहुंचाने वाली।” “आप मेडिकल होस्टल में…..?” मेरी बात का आशय समझ वह बोली, “जी! मैं नर्स की ‘ट्रेनिंग’ ले रही हूं।” तब तक हमारी मंज़िल तक बस पहुंच चुकी थी। मैंने उससे धीमे स्वर में कहा, “आओ! दरवाज़े के पास चलें।” हम दोनों बस से उतरे थे। वहां से मेडिकल होस्टल का पैदल रास्ता 5-7 मिनट का था। इस वक़्त वहां गहन अंधेरा फैला था। “कहो तो ‘तुम्हें’ मेडिकल होस्टल तक छोड़ आऊं?” मैंने उससे पूछा। “अगर आपको तकलीफ़ न हो तो…..?” उसने वाक्य अधूरा छोड़ कर मेरी तरफ़ देखा। “नहीं….. नहीं, तकलीफ़ कैसी? मैं आपको छोड़ देता हूं।” मैंने कलाई की ओर बंधी घड़ी की ओर देखते हुए कहा। होस्टल तक का सफ़र हमने चुपचाप पैदल पार किया। होस्टल पहुंच कर वॉर्डन से सामना हुआ। वॉर्डन ने कुछेक प्रश्न मुझसे पूछे और कुछ उससे। वॉर्डन के सामने ही उसने मुझसे मेरा पता पूछा था। मैंने उसे पता लिख कर दिया। वॉर्डन ने मुझे घूरा था, बोली, “आप इसे पत्र लिखेंगे?” मैं चुप रहा। वॉर्डन की ओर देखते हुए उसके कहने का मतलब समझने की कोशिश करता रहा। “देखिए! आप पत्र सोच-समझ कर डालना।” “मतलब?” मैंने पूछा। “यहां पत्र खोले जाते हैं। कहीं ऐसा-वैसा पत्र…..?” मैं मुस्कुराया था। फिर उस युवा लड़की की ओर देखा, फिर बोला, “आप मुझे ग़लत समझ रही हैं। पता इन्होंने मुझसे लिया है। मैं न तो इनका नाम जानता हूं, न ही पता। ये पत्र लिखना चाहें तो इनकी मर्ज़ी।” इतना कह कर मैं चलने के लिए उठा। उस युवा लड़की की ओर देखा। कृतज्ञता के भाव उसके चेहरे पर फैले थे। वह बाहर छोड़ने को आई थी। आंखों में नमी फैल गई थी उसकी। बोली, “आपका यह एहसान मैं ज़िन्दगी भर न भूल पाऊंगी।” मैं कुछ नहीं बोला। वहां से चला आया। घर पहुंचता हूं। रात के लगभग दस बज रहे हैं। पत्नी मेरे इंतज़ार में खाने के लिए बैठी हुई थी। “आज बहुत देर कर दी।” मेरी आंखों में प्यार से झांकते हुए पत्नी ने कहा। पत्नी को सारा क़िस्सा सुनाता हूं। वह ख़ामोशी से टकटकी बांधे ग़ौर से मेरी बात सुनती रही। क़िस्सा सुनाने के बाद पूछता हूं, “ऐसे क्या देख रही हो मुझे?” मन ही मन सोचता हूं कि पत्नी कहीं शक तो नहीं कर रही। वह उठती है। मेरे समीप आकर मेरी नाक अपने दांए हाथ के अंगूठे व सांकेतिक उंगली से दबा कर चहकते हुए कहती है, “तुम….. तुम बहुत अच्छे हो।” पत्नी की आंखों में छाया विश्वास मन को गुदगुदा गया। पत्नी को बांहों में भर कर धीमे से उसके कानों में गुनगुना उठता हूं, “और….. तुम….. भी तो…..!”
Tum bahot achey ho

Shauteli Maa

"मां...सौतेली मां" रीता बडी खूबसुरत लड़की थी जोकि शादी लायक हो चली थी उसकी शादी की बात घर मे चलने लगी और तय दिन लड़के वालो का घर मे आना तय हुआ तो बुआजी ओर रीता ने अपनी मां से कहा - जब लड़के वाले आये तो तुम अंदर ही रहना ...हम नहीं चाहते की तुम उनके सामने आओ ..एक तो तुम सौतेली ऊपर से बदसूरत... असल मे रीता की मां का चेहरा काफी हद तक जला हुआ था मां ने कुछ नहीं कहा और बस मुस्करा दिया की -ठीक हैं मैं उनके सामने नहीं आउंगी.. हालांकि पिता ने बहन ओर बेटी को समझाने की कोशिश की तो बडी बहन नाराज हो गई लड़के वाले आये और रिश्ता भी पक्का हो गया उसके पिता ने शादी की तारीख भी तय कर दी तब रीता ने अपनी मां से कहा की -देखा तुम्हारे सामने नहीं आने से मेरा रिश्ता तय हो गया बस कुछ ही दिन की बात है फिर तुम्हारा ये मनहुस चेहरा मैं कभी नहीं देखूंगी..मां फिर से मुसकुरा दी रीता अपनी शादी की तैयारी मे मां को कभी सामने नहीं रखती ना ही अपने सामान को हाथ लगाने देती तब भी मां ने उसे कभी कुछ नहीं कहा कुछ दिनो बाद शादी का वो वक़्त भी आ गया..शादी होते वक़्त जब लड़के वालो ने रीता की मां के बारे मे पूछते तो बुआजी बहाना बनाकर टाल देती....लेकिन आखिर विदाई के वक़्त लड़के वाले रीता की मां से मिलने की बात पर अड़ गए.. और गुस्से मे रीता की मां बुरा भला कहने लगे की -कैसी मां है ये जो अपनी इकलौती बेटी की विदाई मे नहीं है अपनी पत्नी के बारे मे अपशब्द सुनकर रीता के पिता से ना रहा गया और उसने कहा की -बस कीजिए आप लोग मैं बताता हूं की आखिर कयो वो सामने क्यो नहीं आई...रीता की पहली मां तो उसे जन्म देकर भगवान को प्यारी हो गई उसकी परवरिश को मैने दूसरी शादी की एक बेहद खूबसूरत लडकी से रीता की परवरिश अच्छे से हो इसीलिए उसने अपनी औलाद की कभी इच्छा नही की लेकिन उस दिन...-जब रीता 3 साल की थी तब हमारे घर मे अचानक आग लग गयी थी और रीता उस समय अकेली सो रही थी, तब मेरी खूबसुरत पत्नी ने अपनी जान की परवाह ना करते हुए अपनी बेटी को बचाया, ज़िसकी वजह से उसका पूरा चेहरा जल गया अगर उस दिन इसकी मां इसे ना बचाती तो शायद आज ये इस दुनिया मे ना होती और मेरी पत्नी आज भी सुन्दर होती ये सुनकर दुल्हन बनी रीता की आँखो से झर-झर आंसू बहने लगे और वो अपनी मां को पुकारती उसके कमरे की और दौड़ पड़ी जहां उसकी मां रीता की बचपन की एक छोटी सी गुडिया को अपनी बाहो मे पकड़े फूट फूट कर रो रही थी रीता दौड़ कर अपनी मां के पास गई और अपने किए की माफी मांगने लगी... दोस्तो ऐसा सिर्फ एक मां ही कर सकती है मां के प्यार को बताने की एक छोटी सी कोशिश..
Shauteli Maa

दिल को छू जाने वाली एक मार्मिक प्रेम कहानी

एक लड़की थी। बहुत ही खूबसूरत। जितनी वह सुंदर थी उतनी ही ईमानदार। न कि‍से से झूठ बोलना न फालतू की बातें करना। अब अपने काम से काम। उसी क्लास में एक लड़का था। वह मन ही मन उससे बहुत प्यार करता था। लड़का अक्सर उसके छोटे-मोटे काम कर दिया करता था। बदले में जब लड़की मुस्करा कर थैंक्यू कहती थी तो लड़के की खुशी की सीमा नहीं रहती थी। एक बार की बात है। दोनों लोग साथ-साथ घर जा रहे थे। तभी जोरदार बारिश होने लगी। दोनों ने एक पेड़ के नीचे शरण ली। पेड़ बहुत छोटा था बूंदू छन-छन कर उससे नीचे आ रही थीं। ऐसे में बारिश से बचने के लिए दोनों एक दूसरे के बेहद करीब आ गये। लड़की को इतने करीब पाकर लड़का अपने जज्बातों पर काबू न रख सका। उसके लड़की को प्रजोज कर दिया। लड़की भी मन ही मन चाहती थी इसलिए वह भी राजी हो गयी। और इस तरह दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा। एक बार की बात है लड़की उसी पेड़ ने नीचे लड़के का इंतजार कर रही थी। लड़का बहुत देर से आया। उसे देखकर लड़की नाराजगी से बोली 'तुम इतनी देर से क्यों आए? मेरी तो जान ही निकल गयी थी।' यह सुनकर लडका बोला 'जानेमन मैं तुमसे दूर कहां गया था मैं तो तुम्हारे दिल में ही रहता हूं। तुम्हें यकीन न हो तो अपने दिन से पूछ लो।' लड़के की इस प्यारी सी बात को सुनकर अपना सारा गुस्सा भुल गयी और वह दौड़ कर लड़के से लिपट गयी। एक दिन दोनों लोग उसी पेड़ के नीचे बैठे बातें कर रहे थें। लड़की पेड़ के सहारे बैठी थी अैर लड़का उसकी गोद में सर रख कर लेटा हुआ था। तभी लड़की बोली ''जानू अब तुम्हारी जुदाई मुझसे बर्दाश्त नहीं होती। तुम्हारे बिना एक पल भी मुझे 100 साल के बराबर लगता है। तुम मुझसे शादी कर लो नहीं तो मैं मर जाऊंगी।'' लडके ने झट से लड़की के मुंह पर अपना हाथ रख दिया और बोला ''मेरी जान ऐसी बात मत किया करो अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं कैसे जिंदा रहूंगा।'' फिर वह कुछ सोचता हुआ बोला ''तुम चिंता मत करो मैं जल्द ही अपने घर वालों से बात करूंगा।'' धीरे-धीरे काफी समय बीत गया। एक दिन की बात है। दोनों लोग उसी पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। उस समय लड़के का चेहरा उतरा हुआ था। लड़की के पूछने पर वह रूआंसा होकर बोला ''जान मैंने अपने घर वालों को बहुत समझाया पर वे हमारी शादी के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने मेरी शादी कहीं और तक कर दी है।'' यह सुन कर लड़की का कलेजा फट पड़ा। उसका मन हुआ कि वह जोर-जोर से रोए। लेकिन उसने अपने जज्बात पर काबू पा लिये और बोली ''मैं तुमसे सच्चा प्यार किया है मैं तुम्हें कभी भुला नहीं सकती।'' ''प्लीज मुझे माफ कर देना'' लड़का धीरे से बाेला वैसे अगर तुम चाहो तो हम हम हमेशा अच्छे दोस्त रह सकते हैं।'' लडकी यह सुन कर ज़ार-ज़ार रोने लगी। लड़के ने उसे समझाया और फिर दोनों लोग रोते हुए अपने-अपने घर चले गये। देखते ही देखते लड़के की शादी का दिन आ गया। लड़के को यकीन था कि उसकी शादी में उसकी दोस्त जरूर आएगी। पर ऐसा नहीं हुआ। हां लड़की का भेजा हुआ एक गिफ्ट पैक उसे ज़रूर मिला। लड़के ने कांपते हांथों से उसे खोला। उसे देखते ही वह बेहोश हो गया। गिफ्ट पैक में और कुछ नहीं खून से लथपथ लड़की का दिल रखा हुआ था। और साथ ही में थी एक चिट्ठी जिसमें लिखा हुआ था- अरे पागल अपना दिल तो लेते जा वरना अपनी पत्नि को क्या देगा। दोस्तो किसी के लिए मोहब्बत टाइमपास होती है और किसी के लिए जिंदगी से बढ़कर। अगर किसी से मोहब्बत करना तो उसे ताे उसे ताउम्र निभाना भी। वर्ना क्या पता आपका हाल भी ऐसा ही हो जाए जो उस दिन के बाद न तो जी सका और न ही मर सका। उसकी सारी जिंदगी पछतावे और अफसोस में घुट-घुटकर कटती रही।

दिल को छू जाने वाली एक मार्मिक प्रेम कहानी

Aik Baar Aik Ladke

एक बार एक लडके को अपनी ही कॉलेज कि एक लडकी से प्यार हो गया था लडके ने लडकी को दोस्त बनाया पर अपने प्यार का इजहार ना कर सका °°° क्योँकी वो डरता था कि कहीँ लडकी ने मना कर दिया तो दोस्ती भी टुट जाऐगी और वो ऊससे कभी बात तक नही करेगी ईसी वजह से वो लडका परपोज करनै से डरता था °°° उनकी दोस्ती जितनी गहरी हो रही थी लडके का प्यार भी उतना ही गहरा होता गया °°° धीरे धीरे कॉलेज भी खतम हौ गया पर लडके ने अपने प्यार का इजहार नही किया वो डर उसे प्यार का इजहार करने से रोक लेता था °°° कॉलेज पुरा हो गया था इसलिए वो बाहर ही मिलते थे एक दिन लडके ने हिम्मत करके लडकी को कॉल किया और कहॉ कि मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है लडकी ने कहॉ कि मुझे भी तुमसे कुछ जरुरी बात करनी ह °°°ै होटल मै मिलते है लडका शाम को ये ठान कर गया कि आज मै अपने प्यार का इजहार करकै हि रहुँगा चाहै कुछ भी हो लडकी कहती है कि पहले तुम अपनी बात कहोगे या मै अपनी बात कहुँ लडका कहता है कि पहले तुम ही कहो लडकी कहती ह °°°ै कि अगले हप्ते मैरी शादी हौ रही है और खासकर तुमे जरुर आना है लडका ने ये शुनते ही जैसै दिल कै अन्दर से आशमान कि टुटने कि आवाज आई °°° फिर लडकी बोली कि अब तुम कहो लडके ने कहाँ कि मैनै देर करदी शायद पहलै मै अपनी बात करता इतना कह कर लडका चला जाता ह °°°ै और लडकी अपनै घर चली जाती है दुसरै दिन लडका लडकी को कॉल करके एक पार्क मै बुलाता है और कहता ह °°°ै कि मै पढाई कै लिए अमेरीका जा रहा हूँ मै तुम्हारी शादी मै नही आ पाऊगाँ इतना कह कर लडका रोते हुऐ जाता है तो लडकी बस इतना कहती ह °°°ै कि जिससे मै शादी करने जा रहुँ उसका यहाँ होना भी तो जरुरी है लडका कहता कि पर वो तो यहॉ है ना °°° लडकी कहती कि पागल मै तुमसे शादी कर रही हू तेरे दोस्त ने मुझे 1 महीने पहले सब कुछ बता दिया है अगर अच्छी लगी कमेंट जरूर बताना

Aik baar aik ladke

Kagaz Ka Tukda

😢कागज का एक टुकड़ा✍️ राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था। दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे। चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए। राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका से लेने थे। साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा। राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे। दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी। इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर। सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन राधिका और राधिका की माता जी। नवीन घर मे अकेला ही रहता था। मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं। राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है। घर मे परिवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने। सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था। नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा" राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई। वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे। प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की। क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है। बस एक बार पीकर बहक गया था नवीन। हाथ उठा बैठा था उसपर। बस वो गुस्से में मायके चली गई थी। फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नोबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया। न राधिका लोटी और न नवीन लाने गया। राधिका की माँ बोली" कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ?" "चुप रहो माँ" राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा। फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया। बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया। राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही। फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया। नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया " रखलो मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में ।" गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी। "क्यूँ कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था" "कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है।" सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई। "नही चाहिए। वो दस लाख भी नही चाहिए" "क्यूँ?" कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया। "बस यूँ ही" राधिका ने मुँह फेर लिया। "इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ काम आएगें।" इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था। राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी। राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई। वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर। जैसे भीतर के सैलाब को दबाने दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला। मग़र ज्यादा भावुक नही हुई। सधे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक?" "मैंने नही तलाक तुमने दिया" "दस्तखत तो तुमने भी किए" "माफी नही माँग सकते थे?" "मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।" "घर भी आ सकते थे"? "हिम्मत नही थी?" राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया" मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी। राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।" फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई। घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है। उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं। कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से? फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी। कितने सुनहरे दिन थे वो। इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई। बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया। अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया। बोला--" मत जाओ माफ कर दो" शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया । और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे। दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही। काश उनको पहले मिलने दिया होता?

Kagaz Ka Tukda

Sundar Si Beti

एक गरीब परिवार में एक सुंदर सी बेटी ने जन्म लिया, बाप दुखी हो गया बेटा पैदा होता तो कम से कम काम में तो हाथ बटाता, उसने बेटी को पाला जरूर, मगर दिल से नही वो पढने जाती थी तो ना ही स्कूल की फीस टाइम से जमा करता, और ना ही कापी किताबों पर ध्यान देता था, अक्सर दारू पी कर घर में कोहराम मचाता था। उस लड़की की माँ बहुत अच्छी व बहुत भोली भाली थी वो अपनी बेटी को बडे लाड प्यार से रखती थी, वो पति से छुपा-छुपा कर बेटी की फीस जमा करती और कापी किताबों का खर्चा देती थी। अपना पेट काटकर फटे पुराने कपडे पहन कर गुजारा कर लेती थी, मगर बेटी का पूरा खयाल रखती थी पति अक्सर घर से कई कई दिनों के लिये गायब हो जाता था। जितना कमाता था दारू मे ही फूक देता था !! वक्त का पहिया घूमता गया… बेटी धीरे-धीरे समझदार हो गयी, दसवीं क्लास में उसका एडमिशन होना था, मॉ के पास इतने पैसै ना थे जो बेटी का स्कूल में दाखिला करा पाती.. बेटी डरडराते हुये पापा से बोली पापा मैं पढना चाहती हूं मेरा हाईस्कूल में एडमिशन करा दीजिए मम्मी के पास पैसै नही है! बेटी की बात सुनते ही बाप आग बबूला हो गया और चिल्लाने लगा बोला:- तू कितनी भी पढ़ लिख जाये तुझे तो चौका चूल्हा ही सम्भालना है क्या करेगी तू ज्यादा पढ़ लिख कर, उस दिन उसने घर में आतंक मचाया व सबको मारा पीटा। बाप का व्यहार देखकर बेटी ने मन ही मन में सोच लिया कि अब वो आगे की पढाई नही करेगी, एक दिन उसकी मॉ बाजार गयी। बेटी ने पूछा मॉ कहॉ गयी थी, मॉ ने उसकी बात को अनसुना करते हुये कहा:- बेटी कल मै तेरा स्कूल में दाखिला कराउगी। बेटी ने कहा: नही़ं मॉ मै अब नही पडूगी मेरी वजह से तुम्हे कितनी परेशानी उठानी पडती है पापा भी तुमको मारते पीटते हैं कहते कहते रोने लगी। मॉ ने उसे सीने से लगाते हुये कहा:- बेटी मै बाजार से कुछ रुपये लेकर आयी हूं। मै कराउगी तेरा दखिला.. बेटी ने मॉ की ओर देखते हुये पूछा: मॉ तुम इतने पैसै कहॉ से लायी हो?? मॉ ने उसकी बात को फिर अनसुना कर दिया… वक्त बीतता गया… मॉ ने जी तोड मेहनत करके बेटी को पढ़ाया लिखाया बेटी ने भी मॉ की मेहनत को देखते हुये मन लगा कर दिन रात पढाई की और आगे बडती चली गयी… इधर बाप दारू पी पीकर बीमार पड गया डाक्टर के पास ले गये डाक्टर ने कहा इनको टी.बी. है, एक दिन तबियत ज्यादा गम्भीर होने पर बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराया। दो दिन बाद उस जबे होश आया तो डाक्टरनी का चेहरा देखकर उसके होश उड गये! वो डाक्टरनी कोई और नही वल्कि उसकी अपनी बेटी थी.. शर्म से पानी पानी बाप कपडे से अपना चेहरा छुपाने लगा और रोने लगा हाथ जोडकर बोला: बेटी मुझे माफ करना मैं तुझे समझ ना सका… दोस्तों बेटी आखिर बेटी होती है बाप को रोते देखकर बेटी ने बाप को गले लगा लिया.. दोस्तों गरीबी और अमीरी से कोई फर्क नहीं पडता, अगर इन्सान का इरादा हो तो आसमान में भी छेद हो सकता है! किसी ने खूब कहा:- “कौन कहता है कि आसमान मे छेद नही हो सकता, अरे एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों” एक दिन बेटी माँ से बोली: माँ तुमने मुझे आज तक नहीं बताया कि मेरे हाईस्कूल के एडमीसन के लिये पैसै कहाँ से लायी थी?? बेटी के बार बार पूछने पर माँ ने जो बात बतायी उसे सुनकर बेटी की रूह काँप गयी, माँ ने अपने शरीर का खून बेच कर बेटी का एडमीसन कराया था! दोस्तों तभी तो मॉ को भगवान का दर्जा दिया गया है, माँ जितना औलाद के लिये त्याग कर सकती है, उतना दुनियाँ में कोई और नही.!! दोस्तो ऐसी ही अच्छी कहानियां और किस्सों को हम आप तक पहुंचाते रहेंगे इसके लिए आप हमारे पेज को फॉलो या लाइक करो आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
Sundar Si Beti

Aik Yuvti

एक युवती बगीचे में बहुत गुस्से में बैठी थी, पास ही एक बुजुर्ग बैठे थे उन्होने उस परेशान युवती से पूछा क्या हुआ बेटी? क्यूं इतना परेशान हो युवती ने गुस्से में अपने पति की गल्तीयों के बारे में बताया, बुजुर्ग ने मंद मंद मुस्कराते हुए युवती से पूछा बेटी क्या तुम बता सकती हो तुम्हारे घर का नौकर कौन है? युवती ने हैरानी से पूछा क्या मतलब? बुजुर्ग ने कहा- तुम्हारे घर की सारी जरूरतों का ध्यान रख कर उनको पूरा कौन करता है ? युवती - मेरे पति बुजुर्ग ने पूछा :- तुम्हारे खाने पीने की और पहनने ओढ़ने की जरूरतों को कौन पूरा करता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- तुम्हें और बच्चों को किसी बात की कमी ना हो और तुम सबका भविष्य सुरक्षित रहे इसके लिए हमेशा चिंतित कौन रहता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग ने फिर पूछा- सुबह से शाम तक कुछ रुपयों के लिए बाहर वालों की और अपने अधिकारियों की खरी खोटी हमेशा कौन सुनता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- परेशानी ऒर गम में कॊन साथ देता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- तुम लोगोँ के अच्छे जीवन और रहन सहन के लिए दूरदराज जाकर, सारे सगे संबंधियों को यहां तक अपने माँ बाप को भी छोड़कर जंगलों में भी नौकरी करने को कौन तैयार होता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- घर के गैस,बिजली, पानी, मकान, मरम्मत एवं रखरखाव, सुख सुविधाओं, दवाईयों, किराना, मनोरंजन भविष्य के लिए बचत, बैंक, बीमा, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, पास पड़ोस, ऑफिस और ऐसी ही ना जाने कितनी सारी जिम्मेदारियों को एक साथ लेकर कौन चलता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग :- बीमारी में तुम्हारा ध्यान ऒर सेवा कॊन करता है ? युवती :- मेरे पति बुजुर्ग बोले :- एक बात ऒर बताओ तुम्हारे पति इतना काम ऒर सबका ध्यान रखते है क्या कभी उसने तुमसे इस बात के पैसे लिए ? युवती :- कभी नहीं इस बात पर बुजुर्ग बोले कि पति की एक कमी तुम्हें नजर आ गई मगर उसकी इतनी सारी खुबियां तुम्हें कभी नजर नही आई ? आखिर पत्नी के लिए पति क्यों जरूरी है ? मानो न मानो जब तुम दुःखी हो तो वो तुम्हे कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। वो अपने दुःख अपने ही मन में रखता है लेकिन तुम्हें नहीं बताता ताकि तुम दुखी ना हो। हर वक्त, हर दिन तुम्हे कुछ अच्छी बातें सिखाने की कोशिश करता रहता है ताकि वो कुछ समय शान्ति के साथ घर पर व्यतीत कर सके और दिन भर की परेशानियों को भूला सके। हर छोटी छोटी बात पर तुमसे झगड़ा तो कर सकता है, तुम्हें दो बातें बोल भी लेगा परंतु किसी और को तुम्हारे लिए कभी कुछ नहीं बोलने देगा। तुम्हें आर्थिक मजबूती देगा और तुम्हारा भविष्य भी सुरक्षित करेगा। कुछ भी अच्छा ना हो फिर भी तुम्हें यही कहेगा- चिन्ता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।। माँ बाप के बाद तुम्हारा पूरा ध्यान रखना और तुम्हे हर प्रकार की सुविधा और सुरक्षा देने का काम करेगा। तुम्हें समय का पाबंद बनाएगा। तुम्हे चिंता ना हो इसलिए दिन भर परेशानियों में घिरे होने पर भी तुम्हारे 15 बार फ़ोन करने पर भी सुनेगा और हर समस्या का समाधान करेगा। चूंकि पति ईश्वर का दिया एक स्पेशल उपहार है, इसलिए उसकी उपयोगिता जानो और उसकी देखभाल करो।...
Aik Yuvti

Chatur Patni

चतुर पत्नी एक गांव में एक दरजी रहता था जो बड़े छोटे सब के कपडे सिलता था और उस कमाई से दो टंक का खाना अपनी पत्नी को खिलाता था। कपडे वो एसे लबाबदार सिलता की सालों तक चलते। उसी गाँव का राजा बड़ा दयालु था । एक बार राजा ने खुश होकर उसको महल बुलाया। राजकुमारी का कुछ दिन में विवाह था । राजा ने दरजी को राजकुमारी के लिए अच्छे से अच्छे कपडे बनाने का आदेश दिया । राजकुमारी का विवाह उसकी मर्जी के खिलाफ हो रहा था । राजकुमारी किसी और को चाहती थी । उसका कपडे सिलवाने का जरा भी मन न था । दरजी दुसरे दिन सुबह राजकुमारी के कपडों की सिलाई के लिए माप लेने आ गया । राजकुमारी ने विवाह से बचने के लिए एक योजना बना ली । उसने दरजी को अपने शयनकक्ष में बुलाया । दासियों को कमरे से बाहर चले जाने का आदेश दे दिया । जैसे ही दरजी ने माप लेना शुरू किया कुछ ही क्षणों में राजकुमारी जोर जोर से रोने लगी । पूरे महल को सुनाई दे वैसे वह चिल्लाना शुरू कर दी । दरजी डर के मारे स्तब्ध हो गया । उसको कुछ समझ में आये उससे पहले ही राजकुमारी के शयन में सब दौड़े चले आए। सिपाही दासियाँ एवं राजा खुद भागते हुए इकठ्ठे हो गए । राजकुमारी ने दरजी पर उसकी छेड़ती का आरोप लगा दिया । दरजी खड़ा खड़ा कांप रहा था । उसने रोते रोते राजा को बताया की उसने एसा कुछ भी नहीं किया है । लेकिन राजा ने एक न सुनी । दरजी को कैद कर लिया और मौत की सजा सुना दी । राजा ने एलान कर दिया की जब तक राजकुमारी पूर्णतया स्वस्थ नहीं हो जाती उसका विवाह नहीं होगा । इस बात का पता दरजी की पत्नी को चला । वो भागते हुए राजमहल पहुंची । उसने अपने पति के अच्छे चरित्र के कई पुरावे दिए लेकिन राजा को अपनी बेटी के अपमान के सामने और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । दरजी की पत्नी पर दया खा कर राजा ने उसको दरजी के जाने के बाद का आजीवन भरण पोषण भी दे दिया । दरजी की पत्नी ने राजा का वह प्रस्ताव ठुकरा दिया और एक वचन माग लिया । राजा ने दरजी की जिंदगी को छोड़कर जो मांगे देने का वचन दिया । तब दरजी की पत्नी ने बताया की वह जो भी मांगेगी राजा से अकेले में मांगेगी उसको दरबार के लोगों पर भरोसा नहीं है । राजा ने उसकी बात मान ली और उसको अपने कक्ष में बात करने बुलाया । तभी कुछ क्षणों में राजा के कक्ष से जोर जोर से रोने की आवाजे आने लगी । सब इकठ्ठे हो गए । राजा क्रोध्ध से तिलमिला उठा । तभी दरजी की पत्नी ने सबको बताया की राजा ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया है । बुजुर्ग राज दरबारी सब राजा को गुनाह की नजरों से देखने लगे । अब राजा को पूरी बात समझ में आयी । उसने तुरंत दरजी को रिहा करने का आदेश दे दिया । उसने दरजी और उसकी पत्नी से अनजाने में हुए अपराध की माफ़ी मांगी । दरजी की पत्नी ने भी राजा पर लगाये गलत गुनाहों की माफ़ी मांगी । दोनों सन्मान के साथ घर पहुंचे और अपनी जिंदगी साथ में हसी ख़ुशी बीता दी । बोध : अक्सर दो व्यक्तिओ के बीच अकेले में घटी घटनाओ में कुछ बाते अनकही रह जाती है । दोनों में से जिसके शुभचिंतक अधिक होते है उसकी बात का भरोसा किया जाता है और दुसरे व्यक्ति को बोलने का मौका तक नहीं दिया जाता है । एसे में निर्दोष व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक सजाओ का भोगी बनता है ।🙏🙏

Chatur Patni

Kaam Wali Bai

कामवाली बाई... सच्ची घटना पर आधारित यह बात कुछ दिनों पुरानी है, जब स्कूल बस की हड़ताल चल रही थी। मेरे मिस्टर अपने व्यवसाय की एक आवश्यक मीटिंग में बिजी थे इसलिए मेरे 5 साल के बेटे को स्कूल से लाने के लिए मुझे टू-व्हीलर पर जाना पड़ा। जब मैं टू व्हीलर से घर की ओर वापस आ रही थी, तब अचानक रास्ते में मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं एवं मेरा बेटा हम दोनों गाड़ी सहित नीचे गिर गए। मेरे शरीर पर कई खरोंच आए लेकिन प्रभु की कृपा से मेरे बेटे को कहीं खरोंच तक नहीं आई । हमें नीचे गिरा देखकर आसपास के कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने हमारी मदद करना चाही। तभी मेरी कामवाली बाई राधा ने मुझे दूर से ही देख लिया और वह दौड़ी चली आई । उसने मुझे सहारा देकर खड़ा किया, और अपने एक परिचित से मेरी गाड़ी एक दुकान पर खड़ी करवा दी। वह मुझे कंधे का सहारा देकर अपने घर ले गई जो पास में ही था। जैसे ही हम घर पहुंचे वैसे ही राधा के दोनों बच्चे हमारे पास आ गए। राधा ने अपने पल्लू से बंधा हुआ 50 का नोट निकाला और अपने बेटे राजू को दूध ,बैंडेज एवं एंटीसेप्टिक क्रीम लेने के लिए भेजा तथा अपनी बेटी रानी को पानी गर्म करने का बोला। उसने मुझे कुर्सी पर बिठाया तथा मटके का ठंडा जल पिलाया। इतने में पानी गर्म हो गया था। वह मुझे लेकर बाथरूम में गई और वहां पर उसने मेरे सारे जख्मों को गर्म पानी से अच्छी तरह से धोकर साफ किए और बाद में वह उठकर बाहर गई । वहां से वह एक नया टावेल और एक नया गाउन मेरे लिए लेकर आई। उसने टावेल से मेरा पूरा बदन पोंछ तथा जहां आवश्यक था वहां बैंडेज लगाई। साथ ही जहां मामूली चोट पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाया। अब मुझे कुछ राहत महसूस हो रही थी। उसने मुझे पहनने के लिए नया गाउन दिया वह बोली "यह गाउन मैंने कुछ दिन पहले ही खरीदा था लेकिन आज तक नहीं पहना मैडम आप यही पहन लीजिए तथा थोड़ी देर आप रेस्ट कर लीजिए। " "आपके कपड़े बहुत गंदे हो रहे हैं हम इन्हें धो कर सुखा देंगे फिर आप अपने कपड़े बदल लेना।" मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी । मैं गाउन पहनकर बाथरुम से बाहर आई। उसने झटपट अलमारी में से एक नया चद्दर निकाल और पलंग पर बिछाकर बोली आप थोड़ी देर यहीं आराम कीजिए। इतने मैं बिटिया ने दूध भी गर्म कर दिया था। राधा ने दूध में दो चम्मच हल्दी मिलाई और मुझे पीने को दिया और बड़े विश्वास से कहा मैडम आप यह दूध पी लीजिए आपके सारे जख्म भर जाएंगे। लेकिन अब मेरा ध्यान तन पर था ही नहीं बल्कि मेरे अपने मन पर था। मेरे मन के सारे जख्म एक एक कर के हरे हो रहे थे।।मैं सोच रही थी "कहां मैं और कहां यह राधा?" जिस राधा को मैं फटे पुराने कपड़े देती थी, उसने आज मुझे नया टावेल दिया, नया गाउन दिया और मेरे लिए नई बेडशीट लगाई। धन्य है यह राधा। एक तरफ मेरे दिमाग में यह सब चल रहा था तब दूसरी तरफ राधा गरम गरम चपाती और आलू की सब्जी बना रही थी। थोड़ी देर मे वह थाली लगाकर ले आई। वह बोली "आप और बेटा दोनों खाना खा लीजिए।" राधा को मालूम था कि मेरा बेटा आलू की सब्जी ही पसंद करता है और उसे गरम गरम रोटी चाहिए। इसलिए उसने रानी से तैयार करवा दी थी। रानी बड़े प्यार से मेरे बेटे को आलू की सब्जी और रोटी खिला रही थी और मैं इधर प्रायश्चित की आग में जल रही थी । सोच रही थी कि जब भी इसका बेटा राजू मेरे घर आता था मैं उसे एक तरफ बिठा देती थी, उसको नफरत से देखती थी और इन लोगों के मन में हमारे प्रति कितना प्रेम है । यह सब सोच सोच कर मैं आत्मग्लानि से भरी जा रही थी। मेरा मन दुख और पश्चाताप से भर गया था। तभी मेरी नज़र राजू के पैरों पर गई जो लंगड़ा कर चल रहा था। मैंने राधा से पूछा "राधा इसके पैर को क्या हो गया तुमने इलाज नहीं करवाया ?" राधा ने बड़े दुख भरे शब्दों में कहा मैडम इसके पैर का ऑपरेशन करवाना है जिसका खर्च करीबन ₹ 10000 रुपए है। मैंने और राजू के पापा ने रात दिन मेहनत कर के ₹5000 तो जोड़ लिए हैं ₹5000 की और आवश्यकता है। हमने बहुत कोशिश की लेकिन कहीं से मिल नहीं सके । ठीक है, भगवान का भरोसा है, जब आएंगे तब इलाज हो जाएगा। फिर हम लोग कर ही क्या सकते हैं? तभी मुझे ख्याल आया कि राधा ने एक बार मुझसे ₹5000 अग्रिम मांगे थे और मैंने बहाना बनाकर मना कर दिया था। आज वही राधा अपने पल्लू में बंधे सारे रुपए हम पर खर्च कर के खुश थी और हम उसको, पैसे होते हुए भी मुकर गए थे और सोच रहे थे कि बला टली। आज मुझे पता चला कि उस वक्त इन लोगों को पैसों की कितनी सख्त आवश्यकता थी। मैं अपनी ही नजरों में गिरती ही चली जा रही थी। अब मुझे अपने शारीरिक जख्मों की चिंता बिल्कुल नहीं थी बल्कि उन जख्मों की चिंता थी जो मेरी आत्मा को मैंने ही लगाए थे। मैंने दृढ़ निश्चय किया कि जो हुआ सो हुआ लेकिन आगे जो होगा वह सर्वश्रेष्ठ ही होगा। मैंने उसी वक्त राधा के घर में जिन जिन चीजों का अभाव था उसकी एक लिस्ट अपने दिमाग में तैयार की। थोड़ी देर में मैं लगभग ठीक हो गई। मैंने अपने कपड़े चेंज किए लेकिन वह गाउन मैंने अपने पास ही रखा और राधा को बोला "यह गाऊन अब तुम्हें कभी भी नहीं दूंगी यह गाऊन मेरी जिंदगी का सबसे अमूल्य तोहफा है।" राधा बोली मैडम यह तो बहुत हल्की रेंज का है। राधा की बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं घर आ गई लेकिन रात भर सो नहीं पाई । मैंने अपनी सहेली के मिस्टर, जो की हड्डी रोग विशेषज्ञ थे, उनसे राजू के लिए अगले दिन का अपॉइंटमेंट लिया। दूसरे दिन मेरी किटी पार्टी भी थी । लेकिन मैंने वह पार्टी कैंसिल कर दी और राधा की जरूरत का सारा सामान खरीदा और वह सामान लेकर में राधा के घर पहुंच गई। राधा समझ ही नहीं पा रही थी कि इतना सारा सामान एक साथ में उसके घर मै क्यों लेकर गई। मैंने धीरे से उसको पास में बिठाया और बोला मुझे मैडम मत कहो मुझे अपनी बहन ही समझो यह सारा सामान मैं तुम्हारे लिए नहीं लाई हूं मेरे इन दोनों प्यारे बच्चों के लिए लाई हूं और हां मैंने राजू के लिए एक अच्छे डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है अपन को शाम 7:00 बजे उसको दिखाने चलना है उसका ऑपरेशन जल्द से जल्द करवा लेंगे और तब राजू भी अच्छी तरह से दोड़ने लग जाएगा। राधा यह बात सुनकर खुशी के मारे रो पड़ी लेकिन यह भी कहती रही कि "मैडम यह सब आप क्यों कर रहे हो?" हम बहुत छोटे लोग हैं हमारे यहां तो यह सब चलता ही रहता है। वह मेरे पैरों में गिरने लगी। यह सब सुनकर और देखकर मेरा मन भी द्रवित हो उठा और मेरी आंखों से भी आंसू के झरने फूट पड़े। मैंने उसको दोनों हाथों से ऊपर उठाया और गले लगा लिया मैंने बोला बहन रोने की जरूरत नहीं है अब इस घर की सारी जवाबदारी मेरी है। मैंने मन ही मन कहा राधा तुम क्या जानती हो कि मैं कितनी छोटी हूं और तुम कितने बड़ी हो आज तुम लोगों के कारण मेरी आंखे खुल सकीं। मेरे पास इतना सब कुछ होते हुए भी मैं भगवान से और अधिक की भीख मांगती रही मैंने कभी संतोष का अनुभव नहीं किया। लेकिन आज मैंने जाना के असली खुशी पाने में नहीं देने में है । मैं परमपिता परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कि आज उन्होंने मेरी आंखें खोल दी। मेरे पास जो कुछ था वह बहुत अधिक था उसके लिए मैंने परमात्मा को बार-बार अपने ऊपर उपकार माना तथा उस धन को जरूरतमंद लोगों के बीच खर्च करने का पक्का निर्णय किया।
Kaam Wali Bai

Bahoo Nahin Beti

बहू नहीं बेटी घर लाओ नई बहू से बात करते हुए सासु माँ ने बोली आज मेरे पैरों में बहुत दर्द हैं तभी बेटा देखों माँ के पैरों में दर्द है दबा दो बहुँ-: मैं सुबह से काम करके थक गई हूँ मुझे नींद आ रही हैं मैं सोने जा रही हुँ । पति चिल्लाते हुए -: शिखाआआ😡😡 तभी सासु -: हाय राम दो दिन की आयी हुई और ऐसे ज़ुबान चला रही है । कोई संस्कार है या नही तुमे शिखा : मम्मी जी आप लोगों ने मांगा नही था । सासु : क्या मतलब शिखा : हाँ मम्मी जी आपलोगों ने जो दहेज के समान का लिस्ट लिखा था उसमें संस्कार तो कही नही लिखा था । फ़्रीज टी वी अलमारी कैश गाड़ी सोने के सभी जेवरातबेड सोफा वाशिंग मशीन डिनर सेट और घर के जरूरत का सब समान लिखा था पर #संस्कार नहीं लिखा था मम्मी जी औऱ से सब जुटाने में मेरे पापा ने घर गिरवी रख दिया माँ ने सभी जेवर बेच दिया पापा के दोस्तों ने कुछ आर्थिक मदद की और कुछ कर्ज बैंक से हुआ है । बस इसी सब मे मैंने अपना संस्कार_भी_बेच_दिया । पति और सास की नज़र झुकी रह गयी ।

Bahoo Nahin Beti

Aik Grihni

एक गृहणी वो रोज़ाना की तरह आज फिर इश्वर का नाम लेकर उठी थी । किचन में आई और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया। फिर बच्चों को नींद से जगाया ताकि वे स्कूल के लिए तैयार हो सकें । कुछ ही पलों मे वो अपने सास ससुर को चाय देकर आयी फिर बच्चों का नाश्ता तैयार किया और इस बीच उसने बच्चों को ड्रेस भी पहनाई। फिर बच्चों को नाश्ता कराया। पति के लिए दोपहर का टिफीन बनाना भी जरूरी था। इस बीच स्कूल का रिक्शा आ गया और वो बच्चों को रिक्शा तक छोड़ने चली गई । वापस आकर पति का टिफीन बनाया और फिर मेज़ से जूठे बर्तन इकठ्ठा किये । इस बीच पतिदेव की आवाज़ आई की मेरे कपङे निकाल दो । उनको ऑफिस जाने लिए कपङे निकाल कर दिए। अभी पति के लिए उनकी पसंद का नाश्ता तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था की छोटी ननद आई और ये कहकर ये कहकर गई की भाभी आज मुझे भी कॉलेज जल्दी जाना, मेरा भी नाश्ता लगा देना। तभी देवर की भी आवाज़ आई की भाभी नाश्ता तैयार हो गया क्या? अभी लीजिये नाश्ता तैयार है। पति और देवर ने नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने अपने ऑफिस के लिए निकल चले । उसने मेज़ से खाली बर्तन समेटे और सास ससुर के लिए उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी । दोनों को नाश्ता कराने के बाद फिर बर्तन इकट्ठे किये और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी । इस बीच सफाई वाली भी आ गयी । उसने बर्तन का काम सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगेरा इकट्ठा करने पहुँच गयी और फिर सफाई वाली के साथ मिलकर सफाई में जुट गयी । अब तक 11 बज चुके थे, अभी वो पूरी तरह काम समेट भी ना पायी थी की काल बेल बजी । दरवाज़ा खोला तो सामने बड़ी ननद और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे । उसने ख़ुशी ख़ुशी सभी को आदर के साथ घर में बुलाया और उनसे बाते करते करते उनके आने से हुई ख़ुशी का इज़हार करती रही । ननद की फ़रमाईश के मुताबिक़ नाश्ता तैयार करने के बाद अभी वो नन्द के पास बेठी ही थी की सास की आवाज़ आई की बहु खाने का क्या प्रोग्राम हे । उसने घडी पर नज़र डाली तो 12 बज रहे थे । उसकी फ़िक्र बढ़ गयी वो जल्दी से फ्रिज की तरफ लपकी और सब्ज़ी निकाली और फिर से दोपहर के खाने की तैयारी में जुट गयी । खाना बनाते बनाते अब दोपहर का दो बज चुके थे । बच्चे स्कूल से आने वाले थे, लो बच्चे आ गये । उसने जल्दी जल्दी बच्चों की ड्रेस उतारी और उनका मुंह हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया । इस बीच छोटी नन्द भी कॉलेज से आगयी और देवर भी आ चुके थे । उसने सभी के लिए मेज़ पर खाना लगाया और खुद रोटी बनाने में लग गयी । खाना खाकर सब लोग फ्री हुवे तो उसने मेज़ से फिर बर्तन जमा करने शुरू करदिये । इस वक़्त तीन बज रहे थे । अब उसको खुदको भी भूख का एहसास होने लगा था । उसने हॉट पॉट देखा तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी । उसने फिर से किचिन की और रुख किया तभी पतिदेव घर में दाखिल होते हुये बोले की आज देर होगयी भूख बहुत लगी हे जल्दी से खाना लगादो । उसने जल्दी जल्दी पति के लिए खाना बनाया और मेज़ पर खाना लगा कर पति को किचिन से गर्म रोटी बनाकर ला ला कर देने लगी । अब तक चार बज चुके थे । अभी वो खाना खिला ही रही थी की पतिदेव ने कहा की आजाओ तुमभी खालो । उसने हैरत से पति की तरफ देखा तो उसे ख्याल आया की आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं । इस ख्याल के आते ही वो पति के साथ खाना खाने बैठ गयी । अभी पहला निवाला उसने मुंह में डाला ही था की आँख से आंसू निकल आये पति देव ने उसके आंसू देखे तो फ़ौरन पूछा की तुम क्यों रो रही हो । वो खामोश रही और सोचने लगी की इन्हें कैसे बताऊँ की ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता हे और लोग इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं । पति के बार बार पूछने पर उसने सिर्फ इतना कहा की कुछ नहीं बस ऐसे ही आंसू आगये । पति मुस्कुराये और बोले कि तुम औरते भी बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो, बिना वजह रोना शुरू करदेती हो। आप इसे शेयर नहीं करेंगे, अगर आपको भी लगता है की गृहणी मुफ़्त की रोटियां तोड़ती है । सभी गृहणियों को सादर समर्पित..🙏🏼
Aik Grihni

Kal Mai Dukan Se Jaldi

कल मैं दुकान से जल्दी घर चला आया। आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूं, कल 8 बजे ही चला आया। सोचा था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा, फिर कहूंगा कि कहीं बाहर खाना खाने चलते हैं। बहुत साल पहले, , हम ऐसा करते थे। घर आया तो पत्नी टीवी देख रही थी। मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है, मैं कम्यूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा, कुछ देर बाद पत्नी चाय लेकर आई, तो मैं चाय पीता हुआ दुकान के काम करने लगा। अब मन में था कि पत्नी के साथ बैठ कर बातें करूंगा, फिर खाना खाने बाहर जाऊंगा, पर कब 8 से 11 बज गए, पता ही नहीं चला। पत्नी ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया, मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते हुए मैंने कहा कि खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे, गप करेंगे। पत्नी खुश हो गई। हम खाना खाते रहे, इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा और मैं खाते-खाते सीरियल में डूब गया। सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था। जब नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी। बहुत अफसोस हुआ। मन में सोच कर घर आया था कि जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा। पर यहां तो शाम क्या आधी रात भी निकल गई। ऐसा ही होता है, ज़िंदगी में। हम सोचते कुछ हैं, होता कुछ है। हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे, पर हम कभी नहीं जीते। हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे, पर नहीं कर पाते। आधी रात को सोफे से उठा, हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा दिन के काम से थकी हुई सो गई थी। मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोच रहा था। पच्चीस साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था। पीले रंग के शूट में मुझे मिली थी। फिर मैने इससे शादी की थी। मैंने वादा किया था कि सुख में, दुख में ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा। पर ये कैसा साथ? मैं सुबह जागता हूं अपने काम में व्यस्त हो जाता हूं। वो सुबह जागती है मेरे लिए चाय बनाती है। चाय पीकर मैं कम्यूटर पर संसार से जुड़ जाता हूं, वो नाश्ते की तैयारी करती है। फिर हम दोनों दुकान के काम में लग जाते हैं, मैं दुकान के लिए तैयार होता हूं, वो साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है। फिर हम दोनों भविष्य के काम में लग जाते हैं। मैं एकबार दुकान चला गया, तो इसी बात में अपनी शान समझता हूं कि मेरे बिना मेरा दुकान का काम नहीं चलता, वो अपना काम करके डिनर की तैयारी करती है। देर रात मैं घर आता हूं और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं। एक पूरा दिन खर्च हो जाता है, जीने की तैयारी में। वो पंजाबी शूट वाली लड़की मुझ से कभी शिकायत नहीं करती। क्यों नहीं करती मैं नहीं जानता। पर मुझे खुद से शिकायत है। आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है, सबसे कम उसी की परवाह करता है। क्यों? कई दफा लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते। हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए काम करते हैं। हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं। कल से मैं सोच रहा हूं, वो कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे। क्या हम गाड़ी, टीवी, फोन, कम्यूटर, कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं? मैं तो सोच ही रहा हूं, आप भी सोचिए कि ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे यूं जाया मत कीजिए। अपने प्यार को पहचानिए। उसके साथ समय बिताइए। जो अपने माँ बाप भाई बहन सागे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश्ता जोड़ आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा किया उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही। एक दिन अफसोस करने से बेहतर है, सच को आज ही समझ लेना कि ज़िंदगी मुट्ठी में रेत की तरह होती है। कब मुट्ठी से वो निकल जाएगी, पता भी नहीं चलेगा।
Kal Mai Dukan se Jaldi

Sharma Ji Office Se

दिल को छू जाने वाली कहानी ऑफिस से निकल कर शर्मा जी ने स्कूटर स्टार्ट किया ही था कि उन्हें याद आया पत्नी ने कहा था 1 किलो जामुन लेते आना। तभी उन्हें सड़क किनारे बड़े और ताज़ा जामुन बेचते हुए एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गयी। वैसे तो वह फल हमेशा "राम आसरे फ्रूट भण्डार" से ही लेते थे पर आज उन्हें लगा कि क्यों न बुढ़िया से ही खरीद लूँ ? उन्होंने बुढ़िया से पूछा "माई जामुन कैसे दिए" बुढ़िया बोली बाबूजी 40 रूपये किलो शर्माजी बोले माई 30 रूपये दूंगा। बुढ़िया ने कहा 35 रूपये दे देना दो पैसे मै भी कमा लूंगी। शर्मा जी बोले 30 रूपये लेने हैं तो बोल बुझे चेहरे से बुढ़िया ने"न" मे गर्दन हिला दी। शर्माजी बिना कुछ कहे चल पड़े और राम आसरे फ्रूट भण्डार पर आकर जामुन का भाव पूछा तो वह बोला 50 रूपये किलो हैं बाबूजी कितने दूँ ? शर्माजी बोले 5 साल से फल तुमसे ही ले रहा हूँ ठीक भाव लगाओ। तो उसने सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया। बोर्ड पर लिखा था- "मोल भाव करने वाले माफ़ करें" शर्माजी को उसका यह व्यवहार बहुत बुरा लगा उन्होंने कुछ सोचकर स्कूटर को वापस ऑफिस की ओर मोड़ दिया। सोचते सोचते वह बुढ़िया के पास पहुँच गए। बुढ़िया ने उन्हें पहचान लिया और बोली "बाबूजी जामुन दे दूँ पर भाव 35 रूपये से कम नही लगाउंगी। शर्माजी ने मुस्कराकर कहा माई एक नही दो किलो दे दो और भाव की चिंता मत करो। बुढ़िया का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा। जामुन देते हुए बोली। बाबूजी मेरे पास थैली नही है । फिर बोली एक टाइम था जब मेरा आदमी जिन्दा था तो मेरी भी छोटी सी दुकान थी। सब्ज़ी फल सब बिकता था उस पर। आदमी की बीमारी मे दुकान चली गयी आदमी भी नही रहा। अब खाने के भी लाले पड़े हैं। किसी तरह पेट पाल रही हूँ। कोई औलाद भी नही है जिसकी ओर मदद के लिए देखूं। इतना कहते कहते बुढ़िया रुआंसी हो गयी और उसकी आंखों मे आंसू आ गए । शर्माजी ने 100 रूपये का नोट बुढ़िया को दिया तो वो बोली "बाबूजी मेरे पास छुट्टे नही हैं। शर्माजी बोले "माई चिंता मत करो रख लो अब मै तुमसे ही फल खरीदूंगा और कल मै तुम्हें 1000 रूपये दूंगा। धीरे धीरे चुका देना और परसों से बेचने के लिए मंडी से दूसरे फल भी ले आना। बुढ़िया कुछ कह पाती उसके पहले ही शर्माजी घर की ओर रवाना हो गए। घर पहुंचकर उन्होंने पत्नी से कहा न जाने क्यों हम हमेशा मुश्किल से पेट पालने वाले थड़ी लगा कर सामान बेचने वालों से मोल भाव करते हैं किन्तु बड़ी दुकानों पर मुंह मांगे पैसे दे आते हैं। शायद हमारी मानसिकता ही बिगड़ गयी है। गुणवत्ता के स्थान पर हम चकाचौंध पर अधिक ध्यान देने लगे हैं। अगले दिन शर्माजी ने बुढ़िया को 500 रूपये देते हुए कहा "माई लौटाने की चिंता मत करना। जो फल खरीदूंगा उनकी कीमत से ही चुक जाएंगे। जब शर्माजी ने ऑफिस मे ये किस्सा बताया तो सबने बुढ़िया से ही फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया। तीन महीने बाद ऑफिस के लोगों ने स्टाफ क्लब की ओर से बुढ़िया को एक हाथ ठेला भेंट कर दिया। बुढ़िया अब बहुत खुश है। उचित खान पान के कारण उसका स्वास्थ्य भी पहले से बहुत अच्छा है । हर दिन शर्माजी और ऑफिस के दूसरे लोगों को दुआ देती नही थकती। शर्माजी के मन में भी अपनी बदली सोच और एक असहाय निर्बल महिला की सहायता करने की संतुष्टि का भाव रहता है @"जीवन मे किसी बेसहारा की मदद करके देखो यारों अपनी पूरी जिंदगी मे किये गए सभी कार्यों से ज्यादा संतोष मिलेगा 🙏🙏🙏🙏

Sharma Ji Office se

Rishtey Ki Seemayen

हर रिश्ते की कुछ सीमाएं होती हैंउसे ना तोड़े जब भी रमेश की पत्नी गीता रमेश के साथ मायके जाने की बातें करती थी तो रमेश भी रोमांचित हो जाता रोमांचित होने का कारण था जवानी की दहलीज पे पैर रखती हुई उसकी खुबसुरत साली निशा साली के साथ होने वाले रोमान्टिक बातें और उसकी मुस्कान उसे बेहद पसंद थे रमेश और गीता ससुराल पहुँच गए गीता जहां रिश्तेदारों से बातचीत के लिए कहीं निकल पड़ी वही रमेश अकेलेपन का फायदा लेते हुए साली के पास पहुँच गया और उसके साथ बतियाने लगा वह साली के मंद मुस्कान और खुबसुरत चेहरे पर फिदा हो चुका था खुद को संभाल नहीं पाया और मौका देखते ही निशा के गाल पे एक चुम्बन जड़ दिया जबाब मे निशा ने मुस्कुराते हुए कहा- जीजू बहुत दिनों से आप को कुछ बोलना चाहती थी आज मौका मिल गया कह दूं रमेश उत्साहित दिख रहा था उसे लगा शायद निशा भी वही चाहती होगी जो वह चाहता है तो खुश होते हुए बोला- बताओ क्या बात है निशा ने कहा- जीजू अगर आपकी ये हरकत दीदी देख लेती तो उसे कैसा लगता वह कितना टूट जाती कभी सोचा है आपने इस बारे में रमेश ने किंचित भी डगमगाए बिना बोल दिया- “अरी पगली तुम तो मेरी साली हो - वह कहते हैं ना कि साली आधी घरवाली होती है यह सब तो तुम्हारी दीदी के साथ होते हुए थोड़े ही होगा निशा -जी बोलते तो है वैसे कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि साली को फुसलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती निशा ने नजरें चुराते हुए कहा रमेश रोमांचित हो रहा था निशा ने फिर से उस से अनुरोध की- “सुनिए जीजू एक और बात भी बोलना चाहती थी पर हिम्मत नहीं जुटा पाई आज शायद मौका हाथ में है “बोलो नारमेश सुनने को आतुर था निशा ने नजदीक आते हुए कहा- “मैं ठहरी आपकी इकलौती सालीऔर आप मेरे इकलौते जीजू मगर सोचती हूं जब मुझे सिर्फ एक जीजू को झेलना इतना कठिन है तो बारी-बारी से घर में आने वाले पाँच-पाँच जीजाओं को झेलना आपकी सब से छोटी बहन मीनू को कितना कठिन लगता होगा क्यो जीजू? निशा के मुंह से ये सुनकर रमेश का सिर शर्म से झुक गया दोस्तों साली से हंसी मजाक एक सीमा तक ही कीजिए याद रखिए वो भी किसी की बेटी है बहन है जैसे आपकी बहन है बेटी है दोस्तों स्त्री कोई खिलौना नही है उसे सम्मान दीजिए एक अच्छा इंसान बनकर।।

Rishtey ki seemayen

Patni Ho To Aisi

पत्नि_हो_तो_ऐैसी बेटा अब खुद कमाने वाला हो गया था ...इसलिए बात-बात पर अपनी माँ से झगड़ पड़ता था .... ये वही माँ थी जो बेटे के लिए पति से भी लड़ जाती थी।मगर अब फाइनेसिअली इंडिपेंडेंट बेटा पिता के कई बार समझाने पर भी इग्नोर कर देता और कहता, "यही तो उम्र है शौक की, खाने पहनने की, जब आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी तो क्या करूँगा।" * बहू खुशबू भी भरे पूरे परिवार से आई थी, इसलिए बेटे की गृहस्थी की खुशबू में रम गई थी। बेटे की नौकरी अच्छी थी तो फ्रेंड सर्किल उसी हिसाब से मॉडर्न थी । बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर मॉडर्न बनने को कहता, मगर बहू मना कर देती .....वो कहता "कमाल करती हो तुम, आजकल सारा ज़माना ऐसा करता है, मैं क्या कुछ नया कर रहा हूँ। तुम्हारे सुख के लिए सब कर रहा हूँ और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो। क्वालिटी लाइफ क्या होती है तुम्हें मालूम ही नहीं।" * और बहू कहती "क्वालिटी लाइफ क्या होती है, ये मुझे जानना भी नहीं है, क्योकि लाइफ की क्वालिटी क्या हो, मैं इस बात में विश्वास रखती हूँ।" * आज अचानक पापा आई. सी. यू. में एडमिट हुए थे। हार्ट अटेक आया था। डॉक्टर ने पर्चा पकड़ाया, तीन लाख और जमा करने थे। डेढ़ लाख का बिल तो पहले ही भर दिया था मगर अब ये तीन लाख भारी लग रहे थे। वह बाहर बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करे..... उसने कई दोस्तों को फ़ोन लगाया कि उसे मदद की जरुरत है, मगर किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ बहाना कर दिया। आँखों में आँसू थे और वह उदास था।.....तभी खुशबू खाने का टिफिन लेकर आई और बोली, "अपना ख्याल रखना भी जरुरी है। ऐसे उदास होने से क्या होगा? हिम्मत से काम लो, बाबू जी को कुछ नहीं होगा आप चिन्ता मत करो । कुछ खा लो फिर पैसों का इंतजाम भी तो करना है आपको।.... मैं यहाँ बाबूजी के पास रूकती हूँ आप खाना खाकर पैसों का इंतजाम कीजिये। ".......पति की आँखों से टप-टप आँसू झरने लगे। * "कहा न आप चिन्ता मत कीजिये। जिन दोस्तों के साथ आप मॉडर्न पार्टियां करते हैं आप उनको फ़ोन कीजिये , देखिए तो सही, कौन कौन मदद को आता हैं।"......पति खामोश और सूनी निगाहों से जमीन की तरफ़ देख रहा था। कि खुशबू का का हाथ उसकी पीठ पर आ गया। और वह पीठ को सहलाने लगी। * "सबने मना कर दिया। सबने कोई न कोई बहाना बना दिया खुशबू ।आज पता चला कि ऐसी दोस्ती तब तक की है जब तक जेब में पैसा है। किसी ने भी हाँ नहीं कहा जबकि उनकी पार्टियों पर मैंने लाखों उड़ा दिये।" * "इसी दिन के लिए बचाने को तो माँ-बाबा कहते थे। खैर, कोई बात नहीं, आप चिंता न करो, हो जाएगा सब ठीक। कितना जमा कराना है?" * "अभी तो तनख्वाह मिलने में भी समय है, आखिर चिन्ता कैसे न करूँ खुशबू ?" * "तुम्हारी ख्वाहिशों को मैंने सम्हाल रखा है।" * "क्या मतलब?" * "तुम जो नई नई तरह के कपड़ो और दूसरी चीजों के लिए मुझे पैसे देते थे वो सब मैंने सम्हाल रखे हैं। माँ जी ने फ़ोन पर बताया था, तीन लाख जमा करने हैं। मेरे पास दो लाख थे। बाकी मैंने अपने भैया से मंगवा लिए हैं। टिफिन में सिर्फ़ एक ही डिब्बे में खाना है बाकी में पैसे हैं।" खुशबू ने थैला टिफिन सहित उसके हाथों में थमा दिया। * "खुशबू ! तुम सचमुच अर्धांगिनी हो, मैं तुम्हें मॉडर्न बनाना चाहता था, हवा में उड़ रहा था। मगर तुमने अपने संस्कार नहीं छोड़े.... आज वही काम आए हैं। " * सामने बैठी माँ के आँखो में आंसू थे उसे आज खुद के नहीं बल्कि पराई माँ के संस्कारो पर नाज था और वो बहु के सर पर हाथ फेरती हुई ऊपरवाले का शुक्रिया अदा कर रही थी। {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?} ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे
Patni Ho to Aisi

Tera Tujhko Appan

तेरा तुझ को अर्पण 🙏🙏 एक पुरानी सी इमारत में वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो। एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपनी तंत्रिकाओं पर नियंत्रण पा लिया। आटे-दाल-चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था, *"बेटी का विवाह 20 तारीख़ को है, उसके दहेज का सामान।"* कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की क़ीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा, '' *यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।*'' एक-दो रोगी आए थे। उन्हें वैद्यजी दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दवाखाने के सामने आकर रुकी। वैद्यजी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके पास आते रहते थे। दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह सूटेड-बूटेड साहब कार से बाहर निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैद्यजी ने कहा कि अगर आपको अपने लिए दवा लेनी है तो इधर स्टूल पर आएँ ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करें। वह साहब कहने लगे "वैद्यजी! आपने मुझे पहचाना नहीं। मेरा नाम कृष्णलाल है लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आपके दवाखाने पर आया हूँ। आप को पिछली मुलाकात का हाल सुनाता हूँ, फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो मैं खुद नहीं आया था अपितु ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि मैं कार से अपने पैतृक घर जा रहा था। बिल्कुल आपके दवाखाने के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर लगवाने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा था तो आप मेरे पास आए और दवाखाने की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें और कुर्सी पर आकर बैठ गया। ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी। एक छोटी-सी बच्ची भी यहाँ आपकी मेज़ के पास खड़ी थी और बार-बार कह रही थी, '' चलो न बाबा, मुझे भूख लगी है। आप उससे कह रहे थे कि बेटी थोड़ा धीरज धरो, चलते हैं। मैं यह सोच कर कि इतनी देर से आप के पास बैठा था और मेरे ही कारण आप खाना खाने भी नहीं जा रहे थे। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें। मैंने कहा वैद्यजी मैं पिछले 5-6 साल से इंग्लैंड में रहकर कारोबार कर रहा हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चे के सुख से वंचित हूँ। यहाँ भी इलाज कराया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत ने निराशा के सिवा और कुछ नहीं दिया।" आपने कहा था, "मेरे भाई! भगवान से निराश न होओ। याद रखो कि उसके कोष में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। आस-औलाद, धन-इज्जत, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। यह किसी वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहीं होता और न ही किसी दवा में होता है। जो कुछ होना होता है वह सब भगवान के आदेश से होता है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे थे और साथ-साथ पुड़िया भी बनाते जा रहे थे। सभी दवा आपने दो भागों में विभाजित कर दो अलग-अलग लिफ़ाफ़ों में डाली थीं और फिर मुझसे पूछकर आप ने एक लिफ़ाफ़े पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखकर दवा उपयोग करने का तरीका बताया था। मैंने तब बेदिली से वह दवाई ले ली थी क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पैसे पूछे तो आपने कहा था, बस ठीक है। मैंने जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है। मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने हमारी चर्चा सुनकर मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी राशि वैद्यजी ने भगवान से माँगी थी वह ईश्वर ने उन्हें दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते। मैं कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में लज्जित भी कि मेरे विचार कितने निम्न थे और यह सरलचित्त वैद्य कितना महान है। मैंने जब घर जा कर पत्नी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। आज मेरे घर में दो फूल खिले हुए हैं। हम दोनों पति-पत्नी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। इतने साल तक कारोबार ने फ़ुरसत ही न दी कि स्वयं आकर आपसे धन्यवाद के दो शब्द ही कह जाता। इतने बरसों बाद आज भारत आया हूँ और कार केवल यहीं रोकी है। वैद्यजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड में सेटल हो चुका है। केवल मेरी एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ भारत में रहती है। हमारी भान्जी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी है। न जाने क्यों जब-जब मैं अपनी भान्जी के भात के लिए कोई सामान खरीदता था तो मेरी आँखों के सामने आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी और हर सामान मैं दोहरा खरीद लेता था। मैं आपके विचारों को जानता था कि संभवतः आप वह सामान न लें किन्तु मुझे लगता था कि मेरी अपनी सगी भान्जी के साथ जो चेहरा मुझे बार-बार दिख रहा है वह भी मेरी भान्जी ही है। मुझे लगता था कि ईश्वर ने इस भान्जी के विवाह में भी मुझे भात भरने की ज़िम्मेदारी दी है। वैद्यजी की आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं और बहुत धीमी आवाज़ में बोले, '' कृष्णलाल जी, आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा कि ईश्वर की यह क्या माया है। आप मेरी श्रीमती के हाथ की लिखी हुई यह चिठ्ठी देखिये।" और वैद्यजी ने चिट्ठी खोलकर कृष्णलाल जी को पकड़ा दी। वहाँ उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि ''दहेज का सामान'' के सामने लिखा हुआ था '' यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।'' काँपती-सी आवाज़ में वैद्यजी बोले, "कृष्णलाल जी, विश्वास कीजिये कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि पत्नी ने चिठ्ठी पर आवश्यकता लिखी हो और भगवान ने उसी दिन उसकी व्यवस्था न कर दी हो। आपकी बातें सुनकर तो लगता है कि भगवान को पता होता है कि किस दिन मेरी श्रीमती क्या लिखने वाली हैं अन्यथा आपसे इतने दिन पहले ही सामान ख़रीदना आरम्भ न करवा दिया होता परमात्मा ने। वाह भगवान वाह! तू महान है तू दयावान है। मैं हैरान हूँ कि वह कैसे अपने रंग दिखाता है।" वैद्यजी ने आगे कहा,सँभाला है, एक ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का आभार करो, शाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करो, खाते समय उसका आभार करो, सोते समय उसका आभार करो। अगर यह पोस्ट आप लोगों को अच्छा लगा हो तो ज्यादा से ज्यादा शेयर कर अपने प्रिय जनों तक पहुंचाने का कष्ट करे।🌷🌷🌷🌷
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Three Brothers And Sister

एक घर मे तीन भाई और एक बहन थी...बड़ा और छोटा पढ़ने मे बहुत तेज थे। उनके माँ बाप उन चारो से बेहद प्यार करते थे मगर मंझले बेटे से थोड़ा परेशान से थे। बड़ा बेटा पढ़ लिखकर डाक्टर बन गया। छोटा भी पढ लिखकर इंजीनियर बन गया। मगर मंझला बिलकुल अवारा और गंवार बनके ही रह गया। सबकी शादी हो गई । बहन और मंझले को छोड़ दोनों भाईयो ने Love मैरेज की थी। बहन की शादी भी अच्छे घराने मे हुई थी। आख़िर भाई सब डाक्टर इंजीनियर जो थे। अब मंझले को कोई लड़की नहीं मिल रही थी। बाप भी परेशान मां भी। बहन जब भी मायके आती सबसे पहले छोटे भाई और बड़े भैया से मिलती। मगर मझले से कम ही मिलती थी। क्योंकि वह न तो कुछ दे सकता था और न ही वह जल्दी घर पे मिलता था। वैसे वह दिहाडी मजदूरी करता था। पढ़ नहीं सका तो...नौकरी कौन देता। मझले की शादी कीये बिना बाप गुजर गये । माँ ने सोचा कहीं अब बँटवारे की बात न निकले इसलिए अपने ही गाँव से एक सीधी साधी लड़की से मझले की शादी करवा दी। शादी होते ही न जाने क्या हुआ की मझला बड़े लगन से काम करने लगा । दोस्तों ने कहा... ए चन्दू आज अड्डे पे आना। चंदू - आज नहीं फिर कभी दोस्त - अरे तू शादी के बाद तो जैसे बीबी का गुलाम ही हो गया? चंदू - अरे ऐसी बात नहीं । कल मैं अकेला एक पेट था तो अपने रोटी के हिस्से कमा लेता था। अब दो पेट है आज । कल और होगा। घरवाले नालायक कहते हैं मेरे लिए चलता है। मगर मेरी पत्नी मुझे कभी नालायक कहे तो मेरी मर्दानगी पर एक भद्दा गाली है। क्योंकि एक पत्नी के लिए उसका पति उसका घमंड इज्जत और उम्मीद होता है। उसके घरवालो ने भी तो मुझपर भरोसा करके ही तो अपनी बेटी दी होगी...फिर उनका भरोसा कैसे तोड़ सकता हूँ । कालेज मे नौकरी की डिग्री मिलती है और ऐसे संस्कार मा बाप से मिलते हैं । इधर घरपे बड़ा और छोटा भाई और उनकी पत्नियां मिलकर आपस मे फैसला करते हैं की...जायदाद का बंटवारा हो जाये क्योंकि हम दोनों लाखों कमाते है मगर मझला ना के बराबर कमाता है। ऐसा नहीं होगा। मां के लाख मना करने पर भी...बंटवारा की तारीख तय होती है। बहन भी आ जाती है मगर चंदू है की काम पे निकलने के बाहर आता है। उसके दोनों भाई उसको पकड़कर भीतर लाकर बोलते हैं की आज तो रूक जा? बंटवारा कर ही लेते हैं । वकील कहता है ऐसा नहीं होता। साईन करना पड़ता है। चंदू - तुम लोग बंटवारा करो मेरे हिस्से मे जो देना है दे देना। मैं शाम को आकर अपना बड़ा सा अगूंठा चिपका दूंगा पेपर पर। बहन- अरे बेवकूफ ...तू गंवार का गंवार ही रहेगा। तेरी किस्मत अच्छी है की तू इतनी अच्छे भाई और भैया मिलें मां- अरे चंदू आज रूक जा। बंटवारे में कुल दस विघा जमीन मे दोनों भाई 5- 5 रख लेते हैं । और चंदू को पुस्तैनी घर छोड़ देते है तभी चंदू जोर से चिल्लाता है। अरे???? फिर हमारी छुटकी का हिस्सा कौन सा है? दोनों भाई हंसकर बोलते हैं अरे मूरख...बंटवारा भाईयो मे होता है और बहनों के हिस्से मे सिर्फ उसका मायका ही है। चंदू - ओह... शायद पढ़ा लिखा न होना भी मूर्खता ही है। ठीक है आप दोनों ऐसा करो। मेरे हिस्से की वसीएत मेरी बहन छुटकी के नाम कर दो। दोनों भाई चकितहोकर बोलते हैं । और तू? चंदू मां की और देखके मुस्कुराके बोलता है मेरे हिस्से में माँ है न...... फिर अपनी बिबी की ओर देखकर बोलता है..मुस्कुराके. ..क्यों चंदूनी जी...क्या मैंने गलत कहा? चंदूनी अपनी सास से लिपटकर कहती है। इससे बड़ी वसीएत क्या होगी मेरे लिए की मुझे मां जैसी सासु मिली और बाप जैसा ख्याल रखना वाला पति। बस येही शब्द थे जो बँटवारे को सन्नाटा मे बदल दिया । बहन दौड़कर अपने गंवार भैया से गले लगकर रोते हुए कहती है की..मांफ कर दो भैया मुझे क्योंकि मैं समझ न सकी आपको। चंदू - इस घर मे तेरा भी उतना ही अधिकार है जीतना हम सभी का। बहुओं को जलाने की हिम्मत किसी मे नहीं होती मगर फिर भी जलाई जाती है क्योंकि शादी के बाद हर भाई हर बाप उसे पराया समझने लगते हैं । मगर मेरे लिए तुम सब बहुत अजीज हो चाहे पास रहो या दुर। माँ का चुनाव इसलिए कीया ताकी तुम सब हमेशा मुझे याद आओ। क्योंकि ये वही कोख है जंहा हमने साथ साथ 9 - 9 महीने गुजारे। मां के साथ तुम्हारी यादों को भी मैं रख रहा हूँ। दोनों भाई दौड़कर मझले से गले मिलकर रोते रोते कहते हैं आज तो तू सचमुच का बाबा लग रहा है। सबकी पलको पे पानी ही पानी। सब एक साथ फिर से रहने लगते है। {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?} मेरा पूरा पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया इस तरह का पोस्ट पढ़ने के लिए आपको अच्छा लगता हो तो मुझे फेंड रिकवेस्ट भेजे या सिर्फ फौलो भी कर सकते हैं हम हमेशा कुछ ना कुछ पोस्ट लेकर ही आएंगे जो आपके दिल को छू जाएगा शुक्रिया आपका धन्यवाद दिल से आपका दोस्त..😭😭 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 . ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे
Three brothers and sister

Pita A Hindi Story

😭😭😭😭----- पिता -----😭😭😭😭 पांच साल ससुराल रहने के बाद बेटी पीहर लौट आई थी ससुराल कभी वापस ना जाने के लिए। पिता की आँखों में सवाल थे। माँ के पास तमाम सवालों के जवाब।पर पिता बेटी से ही सुनना चाहते थे। बेटी ने पिता का पर्दा किया और तमाम सवालों के जवाब दिये। "किस तरह ससुराल में दूधमुहि बेटी को छोड़ खेतों में काम करने के बाद भी बेटी को गले नहीं लगा सकती।काम का बोझ, उस पर भी ढोर डंगर की जिम्मेदारी भी उसी की। उस पर भी सासू जी के ताने छलनी करते हैं। उपेक्षा का दंश झेलने के बावजूद प्यार के दो बोल के लिए तरस जाती है वो।" "इसमें नया क्या है बेटा, हमने भी यही सब किया है, हर औरत यही करती है। तुम कोई नवेली तो हो नही जो तुम्हारे साथ कुछ अलग होगा?" माँ ने घूँघट की ओट से कहा। पिता कुछ पल सोचते रहे। फिर बेटी के ससुराल फ़ोन लगाया। " आपसे बात करनी है, जितनी जल्दी आ सकें जवाई जी के साथ पधारिये।" बेटी का पति, सास और ससुर हाजिर थे। "बहू अगर घर का काम न करे, खेत पर न जाए, ढोर डंगर की देखभाल, दूध निकलना ना करे तो क्या उसे आलिये में बैठा के पूजा करें उसकी।" सास का सवाल था। "ऐसा तो नहीं कहा उसने कि पूजा कीजिये उसकी। मगर कम से कम उसे इंसान तो समझिए। उसकी बच्ची से पूरा दिन उसे दूर रहना पड़ता है, आखिर दूध पीती बच्ची है अभी उसकी। पर आप लोग उसे बहू कम नौकरानी ज्यादा समझ रहे हैं।" कमरे में क्षण भर चुप्पी छा गई। "अब मेरी बेटी आपके साथ नहीं जाएगी। उसके नाम से जमीन का चौथा हिस्सा और मकान कीजिये। और आप चाहें तो दूसरी शादी करने को स्वतंत्र हैं।" पिता ने फैसला सुनाया। "खाना खाकर पधारें आप..." पिता ने हाथ जोड़े और दरवाजे से निकल गए। बेटी दरवाजे की ओट से सब सुन रही थी। पिता ने बेटी के सर पर हाथ रखा। "शादी ही की है, इसका ये मतलब नहीं कि तुझे अकेला छोड़ दिया है। अब भी मेरा गुरुर है तू।" पिता ने बेटी के सर पर हाथ फेरा। आँखे दोनों की छलछला रहीं थी 😢😢😢 ----
Pita A hindi Story

Two Old Man

एक पार्क मे दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे.... पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BE किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है कोई लडका नजर मे हो तो बताइएगा..v दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...?? पहला :- कुछ खास नही.. बस लडका ME /M.TECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो... दूसरा :- और कुछ... पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए.. मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए.. वो क्या है लडाई झगड़े होते है... दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नही है, मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है.. पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का.. दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है की लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो... कहते कहते उनका गला भर आया.. फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी.... पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा... दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही... मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बडे ,घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है... वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी... पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नही बोल पाए... दोस्तों परिवार है तो जीवन मे हर खुशी, खुशी लगती है अगर परिवार नही तो किससे अपनी खुशियाँ और गम बांटोगे.
Two Old Man

Sanskaar Hindi Story

------------ संस्कार ------------ मिसेज शर्मा के घर किट्टी पार्टी में हाई क्लास घर की औरतें अंग्रेजी में मेल मिलाप करते हुए हाय शोना हाय स्वीटहार्ट हे डार्लिंगव्हाट्स आप फाइन बेबी ह्ह्ह्ह्हम्म्म्म्म ओह कम ऑन उम्मम्मम्मह्ह्ह्ह्हाआ ये सभी पार्टी का आनंद ले ही रही थीं कि मिसेज शर्मा की भतीजी सृष्टि जो बिलकुल सादे कपड़ों में नीचे हॉल में आई। मिसेज शर्मा ये कौन है नई नौकरानी रखी है क्या ? मिसेज गुप्ता ने सृष्टि की तरफ इशारा करते हुए पूछा। मिसेज शर्मा ने कहा "नहीं ये मेरी भतीजी है आज ही गाँव से आई है" उन्होंने सृष्टि को अपने पास बुलाया सृष्टि ने नमस्ते से सबका अभिवादन किया ही था कि सभी खिलखिला कर हँस पड़ीं मिसेज सैनी तो बोल ही पड़ी गाँव से आई है इस से अधिक उम्मीद भी नहीं थी। सृष्टि बोली :- माफ करना आँटी लेकिन शुक्र है गाँव वालों से कम से कम आपको इतनी उम्मीद तो है कि वो अपने संस्कार सहेज कर रखते हैं जो उन्हें हर किसी की इज्जत करना सिखाता है और छोटे हों या बड़े हों सभी के मान और प्रतिष्ठा का पूरा ख्याल रखते हैं वरना शहर के शो कॉल्ड हाई क्लास दिखावे से तो मुझे इतनी भी उम्मीद नहीं है कि वो मातृभाषा में किए अभिवादन का प्रतिउत्तर देने के काबिल भी होंगे आप लोगों का ये बनावटी दिखावापन है और खोखला घमंड है बाकि कुछ नहीं है इतना कहकर सृष्टि वहाँ से चली गई। मिसेज शर्मा गरम पड़ गईं और तुनकते हुए बोलीं कि आप सब जानती भी हैं वो यूक्रेन से डॉक्टर की पढ़ाई करके आई है दो साल कैनेडा के रिसर्च सेंटर में काम किया है और अभी अपने गाँव में अपने खुद के पैसों से हॉस्पिटल खोलने की तैयारी कर रही है ताकि अपने गाँव के गरीबों की सेवा कर सके वैसे कैनेडा में ही उसको अच्छा खासा पैकेज मिल रहा था मगर अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करने का जज्बा उसे अपने गाँव तक खींच लाया है। मिसेज शर्मा की बात सुनने के बाद किट्टी पार्टी के दिखावे वाली रौनक शर्म और ग्लानि के नीचे दबी हुई सी महसूस कर रही थी सभी एक दूसरे से नज़र तक नहीं मिला पा रहीं थीं चारों तरफ सन्नाटा मानो मातम पसर गया हो।। अगर ये संदेश पसंद आया हो तो कृपया काँमेट जरूर करें (((धन्यवाद))) 🙏🙏🙏

Sanskaar hindi story

Mai Jab Ghar Me Aai

मै .....जब से इस घर मे आई आपको अपनी बड़ी बहन माना, मेरी कोई बहन नही थी तो मै बहुत खुश थी कि मुझे जेठानी के रुप मे दीदी मिल गई है। मैने कितना सोचा था, कि हम साथ मे मिलकर रहेगे ,आप से ढेर सारी बाते करुगी कुछ पूछना होगा तो पूछ लूंगी,पर मेरे सारे अरमान धरे के धरे रह गए । पर...... आप ने मेरी भावनाओ को कभी समझा ही नहीं। आप आई थी इस घर मे तो सब उतना ही खुश रहे होगे जितना मेरे आने से, लेकिन आप को तकलीफ होने लगी कि मेरे आने से आपका मान सम्मान कम हो गया है। पर ये आपकी गलतफ़हमी थी। आज भी आपका वही ओहदा है जो कल था बस फर्क ये है कि कल आप अकेली बहु थी और आज मै भी हूँ। जब......... भी मै कुछ नया बनाती थी आप कितनी खुशी से खिलाने के लिये ले जाती थी पर आप कभी टेस्ट नही करती थी। कि मेरे बनाये का सब लोग तारीफ़ कर रहे है, इस बात से भी आपको तकलीफ होती थी। जब .........भी मै रात का खाना बनाती आप अपने हिस्से की शब्जी धीरे से जूठे मे डाल देती, और घरवालो के सामने ये जताती कि मै आपके लिए शब्जी नही रखती आपको आचार से खाना पड़ता।हमेशा आप मुझे हर जगह नीचा दिखाने की कोशिश करती है। अगर कुछ मुझसे बिगड़ जाता तो आप बताने की जगह घुम घुम कर दिखाने लगती मै ......हमेशा कोशिश करती कि आप की छोटी बहन बनू पर आप हमेशा अपना मुझे प्रतिद्वन्दी ही समझा। उस...... दिन मैने कितनी उम्मीद से कहा था कि दीदी आप मेरे साथ मार्केट चल चलिए पर आपने तुरंत मना कर दिया। और बाद मे आप अकेले चल गई। जब कभी आप खाली नही रहती थी तो आप के बच्चे को मै देख लेती थी ,उसका नैपकिन भी बदल देती थी। पर जब मेरा बच्चा हुआ तो, आप तो उसकी बड़ी मम्मी थी। पर एक बार भी उसको गोद नही लिया। मैने आपको बड़ी बहन समझा था पर आप तो जेठानी भी नहीं बन पाई। अक्सर घर मे दो बहु रहती है।घर के सदस्य किसी एक की तारीफ करते है तो कभी बड़ी को छोटी के प्रति तो कभी छोटी के बड़ी के प्रति द्वेष की भावना उत्पन्न होने लगती है। पर एक दूसरे के भावनाओ को समझने लगे तो ऐसी स्थिति कभी उत्पन्न नही होगी। पोस्ट पसंद आये तो लाइक ,कमेंट जरूर करे। धन्यवाद॥
Mai Jab Ghar Me Aai

Paraya Ghar

एक बार पढ़ कर देखो ☺ शादी के तीसरे दिन ही बीएड का इम्तेहान देने जाना था उसे। रात भर ठीक से सो भी नहीं पायी थी। किताब के पन्नों को पलटते हुए कब भोर हुई पता भी नहीं चला। हल्का उजाला हुआ तो रितु जगाने के लिए आ गयी। बहुत मेहमान थे तो सबके जागने से पहले ही दुल्हन नहा ले। नहीं तो फिर आंगन में भीड़ बढ़ जाएगी। सबके सामने सब गीले बाल सिर पर पल्लू लिए बिना थोड़े निकलेगी। नहा कर रूम मे बैठ कर फिर किताब में खो गयी। मुँह-दिखाई के लिए दो-चार औरतें आयी थी। सब मुँह देख कर हाथों में मुड़े-तुड़े कुछ पचास के नोट और सिक्के दे कर बैठ गयी ओसारा पर। घड़ी में देखा तो साढ़े आठ बज़ रहे थे। नौ बजे निकलना था। तैयार होने के लिए आईने के सामने साड़ी ले कर खड़ी हो गयी। चार-पाँच बार बांधने की कोशिश की मगर ऊपर-नीचे होते हुए वो बंध न पाया। साड़ी पकड़ कर रुआंसी सी हो कर बैठ गयी। "जीजी को बोला था शादी नहीं करो मेरी अभी। इम्तेहान दे देने दो। मेरा साल बर्बाद हो जायेगा मगर मेरी एक न सुनी। नौकरी वाला दूल्हा मिला नहीं की बोझ समझ कर मुझे भेज दिया। " आंसू पोछतें हुए बुदबुदा रही थी। "तैयार नहीं हुई। बाहर गाड़ी आ गयी है। जल्दी करो न।" दूल्हे साहब कमरे में आते हुए बोले। वो चुप-चाप बिना कुछ बोले साड़ी लपेटने लगी। इतने में पीछे से सासु माँ कमरे में कुछ लेने आयी। दुल्हन को यूँ साड़ी लिए खड़ी देख कर माज़रा समझ में आ गया। वो कमरे से बाहर आ कर रितु को आवाज लगा कर कुछ लाने को बोली। "सुनो बेटा ये पहन कर जाओ परीक्षा देने माथे पर ओढ़नी रख लेना आज हमें कोई कुछ बोलेगा तो कल को तुम मास्टरनी बन जाओगी तो सब का मुंह बन्द हो जाएगा ।" अपनी बेटी वाला सूट-सलवार बहू को देते हुए बोली। उसने भीगी नज़रों से सास को देखा। सासु माँ सिर पर हाथ फेरते हुए कमरे से निकल गयी। पीछे से आईने में मुस्कुराते हुए दूल्हे मियाँ अपनी दुल्हन को देखने लगे। ऐसी रीति-रिवाज ही क्या जो हमारे बेटी-बहुओं को आगे न बढ़ने दे ✍🙏🙏

Paraya Ghar

Bete Ka Rishta

एक_वकील_साहब ने अपने बेटे का रिश्ता तय किया__! कुछ दिनों बाद, वकील साहब होने वाले समधी के घर गए तो देखा कि होने वाली समधन खाना बना रही थीं। सभी बच्चे और होने वाली बहू टी वी देख रहे थे। वकील साहब ने चाय पी, कुशल जाना और चले आये। 👉__एक माह बाद, वकील साहब समधी जी के घर, फिर गए। देखा, भावी समधन जी झाड़ू लगा रहीं थी, बच्चे पढ़ रहे थे और होने वाली बहू सो रही थी। वकील साहब ने खाना खाया और चले आये। 👉___कुछ दिन बाद, वकील साहब किसी काम से फिर होने वाले समधी जी के घर गए !! घर में जाकर देखा, होने वाली समधन बर्तन साफ़ कर रही थी, बच्चे टीवी देख रहे थे और होने वाली बहू खुद के हाथों में नेलपेंट लगा रही थी। वकील साहब ने घर आकर, गहन सोच-विचार कर लड़की वालों के यहाँ खबर पहुचाई, कि हमें ये रिश्ता मंजूर नहीं है" 👉__कारण पूछने पर वकील साहब ने कहा कि, "मैं होने वाले समधी के घर तीन बार गया !! तीनों बार, सिर्फ समधन जी ही घर के काम काज में व्यस्त दिखीं। एक भी बार भी मुझे होने वाली बहू घर का काम काज करते हुए नहीं दिखी। जो बेटी अपने सगी माँ को हर समय काम में व्यस्त पा कर भी उन की मदद करने का न सोचे, उम्र दराज माँ से कम उम्र की, जवान हो कर भी स्वयं की माँ का हाथ बटाने का जज्बा न रखे,,, वो किसी और की माँ और किसी अपरिचित परिवार के बारे में क्या सोचेगी। 👉__मुझे अपने बेटे के लिए एक बहू की आवश्यकता है, किसी गुलदस्ते की नहीं, जो किसी फ्लावर पाटॅ में सजाया जाये !! 👉इसलिये सभी माता-पिता को चाहिये, कि वे इन छोटी छोटी बातों पर अवश्य ध्यान दें । 👉__बेटी कितनी भी प्यारी क्यों न हो, उससे घर का काम काज अवश्य कराना चाहिए। समय-समय पर डांटना भी चाहिए, जिससे ससुराल में ज्यादा काम पड़ने या डांट पड़ने पर उसके द्वारा गलत करने की कोशिश ना की जाये। हमारे घर बेटी पैदा होती है, हमारी जिम्मेदारी, बेटी से "बहू", बनाने की है। 👉अगर हमने, अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से नहीं निभाई, बेटी में बहू के संस्कार नहीं डाले तो इसकी सज़ा, बेटी को तो मिलती है और माँ बाप को मिलती हैं, "जिन्दगी भर गालियाँ"। हर किसी को सुन्दर, सुशील बहू चाहिए। लेकिन भाइयो, जब हम अपनी बेटियों में, एक अच्छी बहु के संस्कार, डालेंगे तभी तो हमें संस्कारित बहू मिलेगी? ? 👉👏ये # कड़वा_सच , शायद कुछ लोग न बर्दाश्त कर पाएं ....लेकिन पढ़ें और समझें, बस इतनी इलतिजा.. वृद्धाआश्रम में माँ बाप को देखकर सब लोग बेटो को ही कोसते हैं, लेकिन ये कैसे भूल जाते हैं कि उन्हें वहां भेजने में किसी की बेटी का भी अहम रोल होता है। वरना बेटे अपने माँ बाप को शादी के पहले वृद्धाश्रम क्यों नही भेजते.
Bete Ka Rishta

Suno Kal Mammi Papa

"सुनो..कल मम्मी पापा आ रहे हैं दस दिन रूकेंगे.. एडजस्ट कर लेना.. "मयंक ने स्वाति को बैड पर लेटते हुए कहा। "..कोई बात नही आने दिजिए आपको शिकायत का कोई मौका नही मिलेगा.." स्वाति ने भी प्रति उत्तर में कहा और स्वाति ने लाइट बन्द कर दी और दोनो सो गए। सुबह जब मयंक की आंख खुली तो स्वाति बिस्तर छोड़ चुकी थी। "चाय ले लो..स्वाति ने मयंक की तरफ चाय की प्याली को बढाते हुए कहा.. अरे तुम आज इतनी जल्दी नहा ली.. हां तुमने रात को बताया था कि आज मम्मी पापा आने वाले हैं तो सोचा घर को कुछ व्यवस्थित कर लूं..स्वाति ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा..वैसे..किस वक्त तक आ जाएंगे वो लोग.. "दोपहर वाली गाड़ी से पहुंचेंगे चार तो बज ही जाऐंगे.. मयंक ने चाय का कप खत्म करते हुए जवाब दिया.. "स्वाति..देखना कभी पिछली बार की तरह.."नही नही..पिछली बार जैसा कुछ भी नही होगा..स्वाति ने भी कप खत्म करते हुए मयंक को कहा और उठकर रसोई की तरफ बढ गई। मयंक भी आफिस जाने के लिए तैयार होने के लिए बाथरूम की तरफ बढ गया। नाश्ता करने के बाद मयंक ने स्वाति से पूछा "..तुम तैयार नही हुई..क्या बात..आज स्कूल की छुट्टी है..??.. " नही..आज तुम निकलो मैं आटो से पहुंच जाऊंगी..थोड़ा लेट निकलूंगी..स्वाति ने लंच बाक्स थमाते हुए मयंक को कहा। "..बाय बाय..कहकर मयंक बाइक से आफिस के लिए निकल गया। और स्वाति घर के काम में लग गई.. "..मुझे तो बहुत डर लग रहा है मैं तुम्हारे कहने से वहां चल तो रहा हूं लेकिन पिछली बार बहू से जिस तरह खटपट हुई थी मेरा तो मन ही भर गया था। ना जाने ये दस दिन कैसे जाने वाले हैं.. मयंक के पिताजी मयंक की मम्मी से कह रहे थे। "..अजी..भूल भी जाइये..बच्ची है.. कुछ हमारी भी तो गलती थी। हम भी तो उससे कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगाए बैठे थे। उन बातों को सालभर बीत गया है.. क्या पता कुछ बदलाव आ गया हो। इंसान हर पल कुछ नया सीखता है.. क्या पता कौन सी ठोकर किस को क्या सिखा दे.. मयंक की मां ने पिताजी को हौंसला देते हुए कहा.. मयंक की मां यह कहकर चुप हो गई और याद करने लगी.. दो भाइयों में मयंक बड़ा था और विवेक छोटा। मयंक गांव से दसवीं करके शहर आ गया.. आगे पढने और विवेक पढाई में कमजोर था इसलिए गांव में ही पिताजी का खेती बाड़ी में हाथ बंटाने लगा। मयंक बी_टेक करके शहर में ही बीस हजार रू की नौकरी करने लगा। स्वाति से कोचिंग सेन्टर में ही मयंक की जान पहचान हुई थी यह बात मयंक ने स्वाति से शादी के कुछ दिन पहले बताई। पिताजी कितने दिन तक नही माने थे इस रिश्ते के लिए.. वो तो मैने ही समझा बुझाकर रिश्ते के लिए मनाया था वरना ये तो पड़ौस के गांव के अपने दोस्त की बेटी माला से ही रिश्ता करने की जिद लगाए बैठे थे। गांव आकर स्वाति के घर वालों ने शादी की थी.. दो साल होने को आए उस दिन को भी। शादी करके दोनो शहर में ही रहने लगे। स्वाति भी प्राइवेट स्कूल में टीचर की जाॅब करने लगी। पिछली बार जब गांव से आए थे तो मन में बड़ी उमंगे थी पर सात आठ दिन में ही बहू के तेवर और बेटे की बेबसी के चलते वापस गांव की तरफ हो लिए। कई बार मयंक को फोन करकर बोला भी की बेटा गांव आ जा..पर वो हर बार कह देता.. मां छुट्टी ही नही मिलती कैसे आऊं.. लेकिन मैं ठहरी एक मां..आखिर मां का तो मन करता है ना अपने बच्चे से मिलने का..बहू चाहे कैसा भी बर्ताव करे.. काट लेंगे किसी तरह ये दस दिन.. पर बच्चे को जी भरकर देख तो लेंगे.. "अरे भागवान..उठ जाओ.. स्टेशन आ गया उतरना नही है क्या.. मयंक के पिताजी की आवाज मयंक की मां को यादों की दुनियां से वापस खींच लाई.. सामान उठाकर दोनो स्टेशन से बाहर आ गए और आटो में बैठकर दोनो मयंक के घर के लिए रवाना हो गए.. घर पहुंचे तो बहू घर पर ही थी। जाते ही बहू ने दोनो के पैर छुए.. हम दोनो को ड्राइंगरूम में बिठाकर हम दोनो के लिए ठण्डा ठण्डा शरबत लाई हम लोगों ने जैसे ही शरबत खत्म किया बहू ने कहा "पिता जी... आप सफर से थक गए होंगे..नहा लिजिए.. सफर की थकान उतर जाएगी फिर मैं आपके लिए खाना लगा देती हूं। पिताजी नहाने चले गए। बहू रसोई में घुसकर खाना बनाने लगी। थोड़ी देर में मयंक भी आ गया। फिर बैठकर सबने थोड़ी देर बातें की और फिर सबने खाना खाया। मयंक और बहू सोने चले गए और हम भी सो गए। सुबह पांच बजे पिताजी उठे तो तो बहू उठ चुकी थी पिताजी को उठते ही गरम पानी पीने की आदत थी बहू ने पहले से ही पिताजी के लिए पानी गरम कर रखा था नहा धोकर पिताजी को मंदिर जाने की आदत थी.. बहू ने उनको जल से भरकर लौटा दे दिया.. नाश्ता भी पिताजी की पसंद का तैयार था.. सबको नाश्ता करवाकर बहू मयंक के साथ चली गई पिताजी ने भी चैन की सांस ली.. चलो अब चार पांच घण्टे तो सूकून से निकलेंगे। दिन के खाने की तैयारी बहू करकर गई थी सो मैने चार पांच रोटियां हम दोनो की बनाई और खा ली। स्कूल से आते ही बहू फिर से रसोई में घुस गई और हम दोनों के लिए चाय बना लाई.. शाम को हम दोनों को लेकर बहू पास के पार्क में गई वहां उसने हमारा परिचय वहां बैठे बुजुर्गों से करवाया.. वो अपनी सहेलियों से बात करने लगी और हम अपने नए परिचितों से परिचय में व्यस्त हो गए। शाम के सात बज चुके थे..हम घर वापस आ गए। मयंक भी थोड़ी देर में घर आ गया। बैठकर खूब सारी बातें हुई। बहू भी हमारी बातों में खूब दिलचस्पी ले रही थी थोड़ी देर बाद सब सोने चले गए। अगले दिन सण्डे था बहू, मयंक और हम दोनो चिड़ियाघर देखने गए.. हमारे लिए ताज्जुब की बात ये थी की प्रोग्राम बहू ने बनाया था..बहू ने खूब अच्छे से चिड़ियाघर दिखाया और शाम को इण्डिया गेट की सैर भी करवाई.. खाना पीना भी हम सबने बाहर ही किया.. फिर हम सब घर आ गए और सो गए.. इस खुशमिजाज रूटीन से पता ही नही चला वक्त कब पंख लगाकर उड़ गया.. कहां तो हम सोच रहे थे कि दस दिन कैसे गुजरेंगे और कहां पन्द्रह दिन बीत चुके थे। आखिर कल जब विवेक का फोन आया कि फसल तैयार हो गई है और काटने के लिए तैयार है तो हमें अगले ही दिन गांव वापसी का प्रोग्राम बनाना पड़ा। रात का खाना खाने के बाद हम कमरे में सोने चले गए तो बहू हमारे कमरे में आ गई बहू की आंखों से आंसू बह रहे थे। मैने पूछा.."क्या बात है बहू..रो क्यों रही हो.? तो बहू ने पूछा "..पिताजी, मां जी.. पहले आप लोग एक बात बताइये.. पिछले पन्द्रह दिनों में कभी आपको यह महसूस हुआ की आप अपनी बहू के पास है या बेटी के पास.. "नही बेटा सच कहूं तो तुमने हमारा मन जीत लिया.. हमें किसी भी पल यह नही लगा की हम अपनी बहू के पास रह रहें हैं तुमने हमारा बहुत ख्याल रखा लेकिन एक बात बताओ बेटा.. "तुम्हारे अंदर इतना बदलाव आया कैसे..?? "पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई थी। मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा बढिया नही है। इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए तरसते देखा.. बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत होते देखा.. मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर सकता था। मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत दुखी थी। उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही थी.. कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ किया था। ""किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे।"" मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी होंगे... बहू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई। मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया.. "हां बेटा अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा... ठोकर सबको लगती है लेकिन सम्भलता कोई कोई ही है "लेकिन हम दुआ करेंगे कि तुम्हारी भाभी भी सम्भल जाए.. बहू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के प्रायश्चित के आंसू थे..
Suno Kal Mammi Papa

Sundar Ladki Jyoti

ज्योति एक सुंदर, पढ़ी लिखी, समझदार लड़की थी। कॉलेज में उसने दो -तीन गोल्ड मेडल अपने नाम किए थे ।पुरस्कार वितरण के लिए शहर के प्रतिष्ठित बिजनेसमैन अरुण कुमार जी को बुलाया गया। पुरस्कार देते हुए उन्हें ज्योति अपने बेटे रोहित के लिए पसंद आ गई। उन्होंने घर जाकर अपनी पत्नी रीमा जी और राहुल से इस विषय पर बात की। पिता की बात मानकर रोहित माता- पिता के साथ ज्योति को देखने उसके घर गया। ज्योति की सुंदरता पर रोहित पहली नजर में ही मोहित हो गया। रीमा जी ने भी सोचा कि, छोटे घर की लड़की है दबकर रहेगी। ज्योति के पिता बचपन में ही गुजर गए थे । माँं ने ही सिलाई करके और दूसरों के घर खाना बनाकर ज्योति और उसके भाई की परवरिश की थी। इतने बड़े घर का रिश्ता आया था ,इसलिए ज्योति की मां का मना करने का कोई सवाल ही नहीं उठता था। शादी बहुत अच्छे से हुई ,लगभग सारा खर्चा अरुण जी ने ही किया। रोहित ने एक नया बिजनेस शुरू किया। उसके उद्घाटन समारोह में ज्योति ने अपनी मां और भाई को भी बुलाया फंक्शन खत्म होने पर ज्योति ने मां को कुछ दिनों के लिए रोक लिया। एक बार ज्योति के ससुर जी से मिलने उनके खास दोस्त आए। जो शहर के प्रसिद्ध वकील और उनकी पत्नी आरती जी ,एक एनजीओ चलाती थी ।वह जमीन से जुड़े व्यक्ति थे ।ज्योति की मां ने ही सारा खाना बनाया था ।साधारण रहन-सहन के कारण ज्योति की सास ने उन्हें सब के साथ खाना खाने के लिए आमंत्रित नहीं किया। इससे ज्योति को बहुत बुरा लगा। मेहमानों ने खाने की तारीफ की तो, ज्योति ने कहा कि यह खाना उसकी मां ने बनाया हैं। तब उसकी सास बोली की " जिंदगी भर उन्होंने खाना ही तो बनाया है"। आरती जी ने उनसे मिलने की इच्छा जताई तो, ज्योति अपनी मां को बाहर लाई और सबसे मिलवाया। ज्योति बोली "यह मेरी मां है ,पापा के गुजर जाने के बाद इन्होंने सिलाई और दूसरों के घर खाना बनाकर हमे इस लायक बनाया है"। सबके जाने के बाद रोहित बोला" क्या जरूरत थी सबके सामने सिलाई और खाना बनाने की बात कहने की "। ज्योति ने कहा "मुझे उन पर गर्व है , जिस मेहनत से उन्होंने हमें बड़ा किया "।हम आपके दरवाजे नहीं आए थे। हमारी इतनी हैसियत नहीं थी। आप लोग आए थे रिश्ते के लिए तो अब क्यों शर्मिंदा होते हैं। आप लोग इस तरह मेरी मां का अपमान नहीं कर सकते। रोहित और उसकी मां चुपचाप सुनते रह गए।
Sundar Ladki Jyoti

Beta Ka Zanmdin

👉बेटे_के_जन्मदिन_पर ...🍀🌹🍀 रात के 1:30 बजे फोन आता है, बेटा फोन उठाता है तो माँ बोलती है:- "जन्म दिन मुबारक लल्ला" बेटा गुस्सा हो जाता है और माँ से कहता है: - सुबह फोन करती। इतनी रात को नींद खराब क्यों की? कह कर फोन रख देता है। थोडी देर बाद पिता का फोन आता है। बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता बल्कि कहता है:- सुबह फोन करते। फिर पिता ने कहा: - मैनें तुम्हे इसलिए फोन किया है कि तुम्हारी माँ पागल है जो तुम्हे इतनी रात को फोन किया। वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी। जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था। वो मरने के लिए तैयार हो गई पर ऑपरेशन नहीं करवाया। रात के 1:30 को तुम्हारा जन्म हुआ। शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी । लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो सारी पीड़ा भूल गयी ।उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । तुम्हारे जन्म से पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाये थे कि अगर कुछ हो जाये तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे। तुम्हे साल में एक दिन फोन किया तो तुम्हारी नींद खराब हो गई......मुझे तो रोज रात को 25 साल से रात के 1:30 बजे उठाती है और कहती है देखो हमारे लल्ला का जन्म इसी वक्त हुआ था। बस यही कहने के लिए तुम्हे फोन किया था। इतना कहके पिता फोन रख देते हैं। बेटा सुन्न हो जाता है। सुबह माँ के घर जा कर माँ के पैर पकड़कर माफी मांगता है....तब माँ कहती है, देखो जी मेरा लाल आ गया। फिर पिता से माफी मांगता है तब पिता कहते हैं:- आज तक ये कहती थी कि हमे कोई चिन्ता नहीं हमारी चिन्ता करने वाला हमारा लाल है। पर अब तुम चले जाओ मैं तुम्हारी माँ से कहूंगा कि चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारा हमेशा की तरह आगे भी ध्यान रखुंगा। तब माँ कहती है:- माफ कर दो बेटा है। सब जानते हैं दुनियाँ में एक माँ ही है जिसे जैसा चाहे कहो फिर भी वो गाल पर प्यार से हाथ फेरेगी। पिता अगर तमाचा न मारे तो बेटा सर पर बैठ जाये। इसलिए पिता का सख्त होना भी जरुरी है। माता पिता को आपकी दौलत नही बल्कि आपका प्यार और वक्त चाहिए। उन्हें प्यार दीजिए। माँ की ममता तो अनमोल है। निवेदन:- इसको पढ़ कर अगर आँखों में आंसू बहने लगें तो रोकिये मत, बह जाने दीजिये। मन हल्का हो जायेगा!*
Beta Ka Zanmdin

Aik Dhaba Par

एक ढाबा पर एक छोटा सा लडका था जो ग्राहको को खाना खिला रहा था कोई ऎ छोटू कह कर बुलाता तो कोई ओए छोटू वो नन्ही सी जान ग्राहको के बीच जैसे उलझ कर रह गयी हो । यह सब मन को काट रहा था । मैने छोटू को "छोटू जी" कहकर अपनी तरफ बुलाया । वह भी प्यारी सी मुस्कान लिये मेरे पास आकर बोला "साहब जी क्या खाओगे ? "मैने कहा " साहब नही; भाईयाँ जी बोल तब ही बताऊगाँ ।" वो भी मुस्कुराया और आदर के साथ बोला "भाईयाँ जी आप क्या खाओगे? "मैने खाना आर्डर किया और खाने लगा । छोटू जी के लिये अब मे ग्राहक से जैसे मेहमान बन चुका था । वो मेरी एक आवाज पर दौडा चला आता और प्यार से पूछता "भाईयाँ जी और क्या लाये खाना अच्छा तो लगा ना आपको??? "और मै कहता" हाँ छोटू जी आपके इस प्यार ने खाना और स्वादिष्ट कर दिया । "खाना खाने के बाद मैने बिल चुकाया और 100रू छोटू जी की हाथ पर रख "कहा ये तुम्हारे है रख लो और मलिक से मत कहना । "वो खुश होकर बोला" जी भईया "फिर मैने पुछा" क्या करोगो ये पैसो का । "वो खुशी से बोला" आज माँ के लिये चप्पल ले जाऊगाँ 4 दिन से माँ के पास चप्पल नही है नग्गे पैर ही चली जाती है साहब लोग के यहाँ बर्तन माझने । "उसकी ये बात सुन मेरी आँखे भर आयी ।मैने पुछा "घर पर कौन कौन है ।" तो बोला" माँ है मै और छोटी बहन है पापा भगवान के पास चले गये ।" मेरे पास कहने को अब कुछ नही रह गया था।मैने उसको कुछ पैसे और दिये और बोला"आज आम ले जाना माँ के लिये और माँ के लिये अच्छी सी चप्पल लाकर देना और बहन और अपने लिये आईसक्रिम ले जाना और अगर माँ पुछे किस ने दिया तो कह देना पापा ने एक भइया को भेजा था वो दे गये । "इतना सुन छोटू मुझसे लिपट गया और मैने भी उसको अपने सीने से लगा लिया । वास्तव ने छोटू अपने घर का बडा निकला ।पढाई की उम्र मे घर का बोझ उठा रहा है । ऎसी ही ना जाने कितने ही छोटू आपको होटल ढाबो या चाय की दुकान पर काम करते मिल जायेगे । आप सभी से इतना निवेदन है उनको नौकर की तरह ना बुलाये थोडा प्यार से क पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया आपका ऐसी और भी पोस्ट पढ़ने के लिए हमे मित्र अनुरोध जरूर भेजे। ( कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइएे

Aik Dhaba par