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Waqt Shayari

yhi waqt hai

सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का,

यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का

ae dil

ऐ दिल की ख़लिश चल यूँ ही सहीं

चलता तो हूँ उन की महफ़िल में

उस वक़्त मुझे चौंका देना

जब रँग में महफ़िल आ जाए

khamoosh huy jati hai

वो ख़लिश जिस से था हंगामा-ए-हस्ती बरपा

वक़्त-ए-बेताबी-ए-ख़ामोश हुई जाती है

aap ke dushman

आप के दुश्मन रहें वक़्त-ए-ख़लिश सर्फ़-ए-तपिश

आप क्यों ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार-ए-हिजराँ कीजिये

 

chup chap khada hoon

सब एक नज़र फेंक के बढ़ जाते हैं आगे

मैं वक़्त के शो-केस में चुप-चाप खड़ा हूँ

dard ki raat

तुम ने वो वक्त कहां देखा जो गुजरता ही नहीं

दर्द की रात किसे कहते हैं तुम क्या जानो