yhi waqt hai
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का,
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का
ae dil
ऐ दिल की ख़लिश चल यूँ ही सहीं
चलता तो हूँ उन की महफ़िल में
उस वक़्त मुझे चौंका देना
जब रँग में महफ़िल आ जाए
khamoosh huy jati hai
वो ख़लिश जिस से था हंगामा-ए-हस्ती बरपा
वक़्त-ए-बेताबी-ए-ख़ामोश हुई जाती है
aap ke dushman
आप के दुश्मन रहें वक़्त-ए-ख़लिश सर्फ़-ए-तपिश
आप क्यों ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार-ए-हिजराँ कीजिये
chup chap khada hoon
सब एक नज़र फेंक के बढ़ जाते हैं आगे
मैं वक़्त के शो-केस में चुप-चाप खड़ा हूँ
dard ki raat
तुम ने वो वक्त कहां देखा जो गुजरता ही नहीं
दर्द की रात किसे कहते हैं तुम क्या जानो