लोग पत्थर के बुतों को पूज कर मासूम रहे यारो
हम ने एक इंसान को चाहा और गुनाहगार हो गए
मेरी आँखों में छुपी उदासी को कभी महसूस तो कर
हम वो हैं जो सब को हंसा कर रात भर रोते है
मैं क़ाबिल-ए-नफ़रत हूँ तो छोड़ दो मुझको,
यूं मुझसे दिखावे की मोहब्बत ना किया करो
मेरी तलाश का है जुर्म या मेरी वफा का क़सूर,
जो दिल के करीब आया वही बेवफा निकला