Kabir Dohe
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थ: जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है।
निंदक नियरे
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर!
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर!!
अर्थ:- इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं,
कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो!
कबीरा खड़ा बाज़ार में
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
।। हिन्दी मे इसके अर्थ ।।
कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता।
यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों !