वो बचपन भी क्या दिन थे मेरे
न फ़िक्र कोई..न दर्द कोई.
बस खेलो, खाओ, सो जाओ
बस इसके सिवा कुछ याद नहीं
पापा से डर जब लगता था
उन्हें दूर से देख के भगता था
उस दिन क्यूँ पड़ी थे मार मुझे
उस दिन की कहानी याद नहीं
कितने किस्से थे दादी के.
हाथों से खाना दादी के.
लाखों नखरे..कितना गुस्सा
वो शर्त पुरानी याद नहीं
ढेरों बच्चे जब आँगन में
था शोर-शराबा आँगन में
माँ ने डांटा था चिल्लाकर
वो डांट जबानी याद नहीं