धुप में तो कांच के टुकड़े भी चमकते है
इन्सान को बोलना सीखने में ३ साल लग जाते है
लेकिन क्या बोलना है ये सीखने में पूरी ज़िन्दगी लग जाती है
इस दुनिया के लोग भी कितने अजीब है ना,
सारे खिलौने छोड़ कर जज्बातों से खेलते हैं।
कोई सुने ना सुने,
खुद की सुनना
समस्याओ की अपनी कोइ साइज़ नहीं होती
वो तो सिर्फ हमारी हल करने की छमता के
आधार पर छोटी और बड़ी होती है
जिंदगी में ऐसे लोग जोड़ना,
जो वक़्त आने पर आपकी परछाई,
और सही वक़्त पर आपका आईना बने,
क्योंकि आईना कभी झूठ बोलता नहीं,
और परछाई कभी साथ छोड़ती नहीं !