याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गए !
उस की गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गए !
ख़ूब गए परदेस के अपने दीवार-ओ-दर भूल गए !
शीश-महल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गए !
तुझको भी जब अपनी कसमें अपने वादे याद नहीं !
हम भी अपने ख़्वाब तेरी आँखों में रख कर भूल गए !
मुझको जिन्होंने क़त्ल किया है कोई उन्हें बतलाये !
मेरी लाश के पहलू में वो अपना ख़ंजर भूल गए !!
चांद के साथ कई दर्द पुराने निकले !
कितने गम थे जो तेरे गम के बहाने निकले !
फ़सल-ए-गुल आई फ़िर एक बार असीनाने-वफ़ा !
अपने ही खून के दरिया में नहाने निकले !!
दिल ने एक ईंट से तामीर किया हसीं ताजमहल,
तुने एक बात कही लाख फसाने निकले !!
मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने !
अब गुज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने !
मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन !
सोचता हूँ मुझे आए थे उठाने कितने !
जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है !
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने !
तुम नया ज़ख़्म लगाओ तुम्हें इस से क्या है !
भरने वाले हैं अभी ज़ख़्म पुराने कितने !!