याद नहीं क्या क्या देखा था सारे मंज़र भूल गए !
उस की गलियों से जब लौटे अपना भी घर भूल गए !
ख़ूब गए परदेस के अपने दीवार-ओ-दर भूल गए !
शीश-महल ने ऐसा घेरा मिट्टी के घर भूल गए !
तुझको भी जब अपनी कसमें अपने वादे याद नहीं !
हम भी अपने ख़्वाब तेरी आँखों में रख कर भूल गए !
मुझको जिन्होंने क़त्ल किया है कोई उन्हें बतलाये !
मेरी लाश के पहलू में वो अपना ख़ंजर भूल गए !!