दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ। आओ फिर से दिया जलाएं