क्यूंकि मेरे कुछ ख़्वाब अभी ख़्वाब ही हैं !!
"सफर में हमसफर साथ ना हो,
तो कठिन डगर लगता है।।
तुम बिना घर द्वार आंगन सुना,
मन बेघर लगता है..!
तुम संग होती महफिल में
सजी कुछ और ही रंग होती,
तेरी नूर से सजी न हो,
वो बेकार शाम-ओ-शहर लगता है..!"
सफर वही तक जहाँ तक तुम हो,
नज़र वही तक जहाँ तक तुम हो,
वैसे तो हज़ारों फूल खिलतें हैं गुलशन में
खुशबू वही तक जहाँ तक तुम हो।
मीलों का सफर पल में बर्बाद कर गया,
उसका ये कहना, कहो कैसे आना हुआ ।