Jo Sochte Hain Ki Kal Se Parsaann Rahengey
Achi batain of the day
जो सोचते हैं कि वो कल से प्रसन्न रहेंगे वास्तव में वो परसों भी प्रसन्न नहीं हो पाते। हम समय कम होने की शिकायत तभी करते हैं जब हम समय व्यर्थ कर रहे होते हैं। यदि हम सोचते हैं कि संसाधन बढ़ाने से हम प्रसन्न रहेंगे तो ये सोचना निरर्थक है, संसाधन हमें सुविधाएँ दे सकता है परन्तु सुख नहीं। प्रसन्नता के लिये स्वर्ण के और काष्ठ के दरवाजे एक समान है वो तो वहाँ आती है जहाँ समर्पण, प्रेम और संतोष है।
सदैव याद रखें कि असंतुष्ट मस्तिष्क ही पाप का कारण बनता है।