मिलने- मिलाने की कभी, फुर्सत नहीं होती जहाँ,
वो बस्तियां इन्सान की अब, शहर कहलाने लगीं
चंद सिक्कों के लिए छोड़ आये गलियां गाँव की,
बारिशें शहरों की मगर, खंज़र नज़र आने लगीं !!
दुआएँ भी होंगी वफ़ाएँ भी होंगी
कई खूबसूरत अदाएँ भी होंगी
चले जायेंगे तेरी महफ़िल से बरहम
तेरी आँख में फ़िर सदाएँ भी होंगी
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