शख्सियत ए लख्ते-जिगर कहला न सका !
जन्नत के धनी पैर कभी सहला न सका !
दुध पिलाया उसने छाती से निचोड़कर !
मैं निकम्मा कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका !
बुढापे का सहारा हूँ अहसास दिला न सका !
पेट पर सुलाने वाली को मखमल पर सुला न सका !
वो भूखी सो गई बहू के डर से एकबार मांगकर !
मैं सुकुन के दो निवाले उसे खिला न सका !
नजरें उन बुढी आंखों से कभी मिला न सका !
वो दर्द सहती रही में खटिया पर तिलमिला न सका !
जो हर जीवनभर ममता के रंग पहनाती रही मुझे !
उसे दीवाली पर दो जोड़ कपडे सिला न सका !
बिमार बिस्तर से उसे शिफा, दिला न सका !
खर्च के डर से उसे बडे़ अस्पताल ले जा न सका !
माँ के बेटा कहकर दम तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ !
दवाई इतनी भी महंगी न थी के मैं ला ना सका !!