लिपट रही ये स्ह मेरी
मैं इस तरह आग न होता,
जो हो जाती तू मेरी
एक सांस से दहक जाता है
शोला दिल का
शायद हवाओ में फैली है खुशबू तेरी
अब वो आग नहीं रही,
न शोलो जैसा दहकता हूँ,
रंग भी सब के जैसा है,
सबसे ही तो महकता हूँ
एक अरसे से हूँ थामे कश्ती को भवर में,
तूफ़ान से भी ज्यादा साहिल से डरता हूँ
-जाकिर खान