हर इक ग़म बैठा रहता है अदब से मेरे आगे
लगा रहता है दिल में रोज़ ही दरबार मेरा
सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ। आओ फिर से दिया जलाएं
मेरी तिजारत में रुकावट है मेरा इंसान होना
दरिंदों के शहर में लाज़िम है परेशान होना