मत कर खाक के पत्ते पर गुरूर वबे न्याजी इतनी
खुद को खुद में झांक कर देख तुझ में रक्खा क्या है
हमने तन्हाई को अपना बना रक्खा
राख के ढ़ेर ने शोलो को दबा रक्खा है
मेरा उस शहरे अदावत में बसेरा है ऐ इकबाल
जहाँ लोग सिजदो में लोगो का बुरा सोचते है
मुझे इश्क के पर लगा कर उड़ा
मेरी खाक जुगनू बना के उड़ा
दिल से जो बात निकली है असर रखती है
पर नहीं ताकत -ए-परवाज मगर रखती है