शुरवात मैं जम तो जाता है,
पर धिरे - धिरे पिघलना शुरू हो जाता है,
अंधेरे से भरी जिन्दगी मैं आ कर
कुछ पल के लिए रोशनी तो लाता है।
बाती के साथ साथ मोम भी पिघल जाता है,
उसी तरह खुद भी जलता है,
और सब को भी जला ले जाता है
अन्त में धूएं में धूएं सा रूप बना कर
न जाने किस और चला जाता है,
वहां पर सिर्फ अपनी सोंधी - सोंधी खुशबू छोड़ जाता है,
ना जाने क्यों इश्क मुझे मोमबत्ती की याद दिलाता है।