Poetry Tadka

Inspirational Harivansh Rai Bachchan Poems

 अँधेरे का दीपक

है अँधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है?

कल्पना के हाथ से कम
नीय जो मंदिर बना था,
भावना के हाथ ने जिसमें
वितानों को तना था,

स्वप्न ने अपने करों से 
था जिसे रुचि से सँवारा 

स्वर्ग  के दुष्प्राप्य रंगों 
से, रसों से जो सना था,

ढह गया वह तो जुटाकर 
एक अपनी शांति की
ईंट, पत्थर, कंकड़ों को
कुटिया बनाना कब मना है?