अब हो गया है आदमी दुकान की तरह !
बिकता है यह प्यार सामान की तरह !
पहचान भी है मुश्किल मुखोटो के दोर में !
दीखता है बेड़िया भी इन्सान की तरह !!
ना तस्वीर है उसकी जो दीदार किया जाए
ना पास है वो जो उससे बात किया जाए
ये कैसा दर्द दिया उस बेदर्द ने
ना उसके बिन रहा जाए ना उसके बिन जिया जाए