ना जाने वो कितनी नाराज़ है मुझसे,
ख्वाब में भी मिलती है तोः बात नहीं करती.
ज़िंदगी का तो पता नहीं बस तारीख़ें जरूर बदल रही हैं
बनाकर ताजमहल किसी शहंशाह ने दौलत से
हम गरीबों की मोहब्बत का मजाक उड़ाया है
ना जाने क्यों उस बेवफा को मेरे प्यार पर शक था,
पर वो नादान क्या जाने मेरी हर सांस पर उसका हक़ था